गोरा वध : श्यामनारायण पाण्डेय

Gora Vadh : Shyam Narayan Pandey

(1956 ई. में ही श्यामनारायण पाण्डेय का एक और खण्डकाव्य प्रकाशित हुआ- गोरा वध। यह सात सर्गों का है। इसे जौहर महाकाव्य के गोरा वध वाले प्रकरण को किंचित्‌ विस्तार देकर प्रकाशित किया गया है। इसमें गोरा नामक पात्र की वीरगति का वर्णन हुआ है। जब रानी पद्मिनी अलाउद्दीन ख़िलजी के पास सैनिकों की सात सौ डोलियों के साथ गयी थी, उस समय गोरा ने ख़िलजी की सेना के साथ घमासान युद्ध करके वीरगति पाई थी। इसी इतिवृत्त को कवि ने वीर और करुण रस से सिंचित करके प्रस्तुत किया है। इस ग्रन्थ पर टिप्पणी करते हुए डॉ. उदयनारायण तिवारी ने लिखा है-“भारतीय दासता की कड़ियाँ अब टूट चुकी हैं और स्वतन्‍त्रता-प्राप्ति के साथ-साथ युवकों में उत्साह की तरंगें उद्देलित हो रही हैं। वस्तुतः किसी देश में वीर काव्य की रचना तभी होती है, जब देश स्वतन्त्र होता है। आशा है, भविष्य के कवि ऐसी रचनाओं से युवकों में उत्साह और जोश भरकर भारतीय राष्ट्र को सबल बनाने में सहायक होंगे।” (वीरकाव्य, पृ. 25)
गोरा का उत्सर्ग देश, धर्म तथा सतीत्व की रक्षा के लिए किया गया उत्सर्ग है। श्यामनारायण पाण्डेय ने इस उत्सर्ग को ओज और करुण भाव से परिपूर्ण करके इस रूप में प्रस्तुत किया है कि पाठकों और श्रोताओं में अनीति-अन्याय और अधर्म के ख़िलाफ़ युद्ध करने का उत्साह पैदा हो जाए।)

जो बनी थी लाल-मूँगों की अमर ।
रौद्र उनके वदन पर था राजता,
हाथ में तलवार चाँदी की प्रखर ॥

अरि अधीर हो उठा,
व्यस्त - चीर हो उठा।
वह कुलाँचने लगा;
मस्त नाचने लगा ॥

वहाँ धूलमाटी में खेला
होगा गोरा शिशुपन में
चरण-चिन्ह होगा ही उसका

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