बाल कविताएं डॉ. दिनेश चमोला "शैलेश"
Children Poetry Dr. Dinesh Chamola Shailesh



1. जीवन की सौगातें

अगर दिवस कंबल हो जाते और रजाई, रातें फिर तो सपनों से कर सकते हम, मन ही मन बातें अजब, हमारा घर फिर होता गजब, हमारी वर्दी क्या मजाल जो लग पाती फिर चुटकी भर भी सर्दी सूरज नाना प्रहरी बन, गर साथ निभाते अपना फिर बचपन का लोक अनोखा, कितना होता अपना ? इच्छाएँ, बन पींग अनोखी दुलरातीं, बिन पैसे फिर अभाव की बूढ़ी नानी भला रुलाती कैसे ? गर सपने बन दूत हमारे नभ में हमें उड़ाते युगों- युगों के बंदी दुख हम खुश हो खूब छुड़ाते चाहों सी गर राहें मिलतीं होते दिवस निराले हम बच्चों के खो जाते फिर विपदा के दिन काले घोड़े गर, इच्छाएँ होतीं, मंजिल हम पा जाते फिर बचपन के महल अनूठे कितना हमें सजाते सोने जैसे दिन होते गर चांदी जैसी रातें फिर तो बदलीं-बदलीं रहतीं जीवन की सौगातें

2. गर धूप सलोनी जाड़े की!

फूल खुशी के, मन क्यारी में मृदु सपनों की फुलवारी में नटखट स्वांग रचाते कैसे? जीवन में यह मिली न होती गर धूप सलोनी जाड़े की! राजा रानी फिर क्या करते खुद नाना नानी तक मरते जीव-जंतु भी क्या बच सकते? घर -आँगन मृदु खिली न होती गर धूप सलोनी जाड़े की! चिड़ियों का चह(चहा)ना ऐसे भोरों का मंडराना जैसे तितली का इतराना वैसे होता कैसे, मिली न होती गर धूप सलोनी जाड़े की! नदिया, पोखर, ताल, तलैया वन, पर्वत की जीवन लाली आंगन-आँगन खुशियों के पल झरते कैसे? मिली न होती गर धूप सलोनी जाड़े की! पंचम स्वर कोयल का गाना ऋतु-पर्वों का बीन बजाना जड़-चेतन का बन-ठन आना होता कैसे ? खिली न होती गर धूप सलोनी जाड़े की! फूलों का खुश्बू फैलाना बागों में अमिया बौराना खुशियों की नव पींग बढ़ाना संभव कैसे ? मिली न होती गर धूप सलोनी जाड़े की! रूप-रंग का महल सजाना खशियों का यह गजब खजाना जैव विविधता दुनिया भर की मिलती कैसे ? खिली न होती गर धूप सलोनी जाड़े की! इस सुंदर भू पर आने को अखिल विश्व को देखाने को देव - सृष्टि ललचाती कैसे ? जग को सुंदर, मिली न होती गर धूप सलोनी जाड़े की!

3. यह जाड़े की धूप !

नानी की लोरी सी लगती यह जाड़े की धूप दुआ मधुर, दादी की लगती यह जाड़े की धूप ! गिफ्ट बड़ा दादू-नानू का यह जाड़े की धूप ! जादू की गुल्लक सी लगती यह जाड़े की धूप ! ऋतुओं में ठुल्लक सी लगती यह जाड़े की धूप ! सपनों की रानी सी लगती यह जाड़े की धूप ! बिन माँ की, नानी सी लगती यह जाड़े की धूप ! मक्के की रोटी सी लगती यह जाड़े की धूप ! मक्खन, घी मिस्री सी लगती यह जाड़े की धूप ! निर्धन के चूल्हे सी जगती यह जाड़े की धूप ! पापा की पप्पी सी लगती यह जाड़े की धूप ! भली नींद झप्पी सी लगती यह जाड़े की धूप !

4. मम्मी ! लाओ गरम पकौड़े!

किट-किट करते दाँत ठंड से हवा मारती कोड़े मम्मी ! लाओ गरम पकोड़े! पहनो कितने वस्त्र ऊन के पड़ते सब हैं थोड़े मम्मी ! लाओ गरम पकोड़े! जीव - जंतु भी गए कहां सब ? चिड़िया, बंदर, घोड़े सर्दी, मार रही ज्यों कोड़े ! फाहों सी है झड़ी बर्फ की, बनी लोमड़ी सिल्ली कांपे जन, बन भीगी बिल्ली! शान्ता से सब पेड़ बने हैं घर ज्यों शेखचिल्ली गोया ठंड उड़ाए खिल्ली! घर आंगन सब दबे पड़े, ज्यों चांदी की सिल्ली शीत लहर, यह बड़ी निठल्ली ! बर्फ बने हैं ताल - तलैया जम गई नदिया रानी अजब यह मौसम की मनमानी ! गर्मी में भाती है यह सर्दी अब मन धूप सुहाती समझ न आती आंखमिचौनी !

5. मेरी, दादी बड़ी कमाल !

बाल चमकते चांदी जैसे चंचल हिरणी जैसी चाल रिमोट चलाती एक हाथ से जपती वह दूजे से माल मेरी, दादी बड़ी कमाल ! फैशन में नानी की नानी पेटू , ज्यूँ वह मालामाल दिन भर मेवे खूब उड़ाती डीलडौल टमाटर लाल मेरी, दादी बड़ी कमाल ! हमको महज खिलौना समझे बसते, टी वी में हैं प्राण नहीं समझ आती है दादी कि है वह, कैसी नटवरलाल ? मेरी, दादी बड़ी कमाल ! कथा-कहानी भूल गई सब सीरियल सारे याद हम बच्चों से बढ़कर टी वी, हैं चकित, देख यह हाल मेरी, दादी बड़ी कमाल! पापा, मम्मी या दादू को बात-बात पर है धमकाती काम न करती, धाम न करती पर, बनकर रहती ढाल मेरी, दादी बड़ी कमाल! चाहे सबको बहुत डांटती हम बिन लेकिन रह नहीं पाती आदत से लाचार है दादी है, पर सच में बड़ी धमाल ! मेरी, दादी बड़ी कमाल!