बाल कविताएँ : अनिता सुधीर आख्या
Children Poetry : Anita Sudhir Akhya
नभ
टिमटिम करते कितने तारे। नभ में रहते मिल कर सारे।। दूर बहुत ये हमसे कितने! प्यारे सबको लगते इतने।। जब बादल सारे छँट जाते चंदा सँग फिर तारे आते।। भोर हुई तब तारे भागे। सूरज चमके नभ में आगे।। तारे दिन में खो जाते क्या। दूर गगन में सो जाते या।। सूरज एक बड़ा तारा है। उससे जग में उजियारा है।। पौधों को सूरज भाता है। तब आहार बना पाता है।। निशि दिन खेल चला करता है। सबका नित्य भला करता है।। पृथ्वी से नभ दिखता सुंदर। हाथ बढ़ा कर छू लो अंबर।।
नदिया
कल-कल करके नदिया बहती। हर-पल हर-क्षण बहती रहती।। धरती की प्यास बुझाने में अपनी गाथा सबसे कहती।। ऊँचे पर्वत से आती हूँ। टेढ़ा-मेढ़ा पथ पाती हूँ।। गाँव शहर से होते-होते सागर को गले लगाती हूँ।। नही बिजूके से डरती हूँ। खेतो में पानी भरती हूँ। गेहूँ की बाली फिर झूमे सपनों को पूरा करती हूँ।। नालों का कूड़ा भरते हैं। कब परिणामों से डरते हैं।। गंदा पानी हो जाता तब मुझको मैला क्यों करते हैं।। सदियों से मैं पूजी जाती। ऋषियों मुनियों का तप पाती।। बाँध सरोवर मुझ पर बनते जीवन को नित सुखी बनाती।।