हरियाणवी कविता : हबीब भारती

Haryanvi Poetry : Habib Bharati


आज़ादी की पहली जंग में गुप्त योजना घड़ी गयी

आज़ादी की पहली जंग में गुप्त योजना घड़ी गयी। लाखों-लाख लड़े थे उसमैं, सारे हिन्द मैं लड़ी गयी।। सन् सत्तावन मई महीना तारीख थी वा एक कम तीस, हांसी और हिसार के म्हां अंग्रेजां की बांधी घीस, गोरे अफसर उड़ा दिए भई कर दिए धड़ तै न्यारे शीश, अफरा-तफरी फैली गई भई प्रशासन को दिया पीस, अंग्रेजां की तोप देखल्यो कूण्यां के म्हां पड़ी रही।। हिसार के म्हां जेळ तोड़ दी, कैदी-कैदी लिया छूट, गोरे अफसर बारहा मारे खजाना था लिया लूट, बेड्डरबर्न डी.सी. मार्या राजपाट लिया टूट, खोज-खोज के गोरे मारे पाणी का ना मांग्या घूंट, नखरे आळी मेम देखल्यो कोणे के म्हां खड़ी रही। हांसी ऊपर हमले मैं भाई देखी कला निराली थी, बर्छी, भाले, तलवार उठा रहे संग बंदूक दुनाली थी, रोहणात, पुट्ठी, मंगलखां और संग-संग चली मंगाली थी, खरड़, अलीपुर, हाजमपुर, भाटोल राघड़ां आळी थी, जमालपुर के वीरां स्याह्मी गोरी पलटण अड़ी नहीं।। पुट्ठी आळे वीरां नै रण मैं कमाल दिखाया था, तहसीलदार किले पै मार्या अचूक निशाना लाया था, ग्यारहा गोरे टोटल मारे एकदम करया सफाया था, खज़ाना लूट्या, जेळ तोड़ दी, अपणा राज बणाया था, हबीब भारती देख छावणी पैरां नीच्चै छड़ी गयी।

कितणे लड़े सपूत देश के करकै पूरा ख्याल सुणो

कितणे लड़े सपूत देश के करकै पूरा ख्याल सुणो। भारत की आजादी आळी पहली जंग का हाल सुणो।। राव तुला राम के छोटे भाई कृष्ण गोपाल महान हुए, युद्ध विद्या मैं सर्वोत्तम थे हरियाणे का मान हुए, रामलाल थे मित्तर उनके योद्धा एक समान हुए, नसीबपुर मैं खेत रहे वैं भारत पै कुर्बान हुए, बहादुरगढ़ के शासक जंग खां लड़े उठा कै ढाळ सुणो।। झज्जर के नवाब सूरमा अब्दुर्रहमान खान हुए, अहमदकुली नवाब लड़े जो फ़रूखनगर की शान हुए, बल्लबगढ़ के राजा नाहर सिंह रूपवान बलवान हुए, छक्के बैरी के छुड़वाए देश-कौम की आन हुए, दिल्ली के म्हां फांसी तोड़े थे धोखे की चाल सुणो।। सिरसा के भट्टी सरदार बागी खुले जवान हुए, मेवात के बहादुर मेवाती रण में लहू-लुहान हुए, मुनीर बेग और जैन हुकम चन्द हांसी के अरमान हुए, दौलत राम मदीणे आळे पलटन के प्रधान हुए, गाम-गाम और नगर-नगर में थी विद्रोह की झाल सुणो।। अम्बाला में हुई ब$गावत पलटण के फरमान हुए, कई कम्पनी साथ चली थी जंग के थे ऐलान हुए, रोहतक मैं था विद्रोह होग्या खड़े जगत के काम हुए, गोरी सेना भाज लई भई फेल थे उनमान हुए, हबीब भारती हैरान हुए, कर दी पेश मिसाल सुणो।।

के के जुल्म करे गोरां ने के के रोपे चाळे

के के जुल्म करे गोरां ने के के रोपे चाळे। कित-कित कितने शहीद हुए मुक्ति के रख्वाले।। चार महीने चार दिनां तक डटी-आज़ादी प्यारी, इस आज़ादी की हमने भाई कीमत दी बड़ी भारी, छब्बीस हज़ार मरे दिल्ली के म्हां बच्चे, नर और नारी, पांच हजार गए नसीबपुर में, सेना खप गी सारी, हरियाणे में कई हज़ार खपे बहे खूनं के नाळे लाल डिग्गी पै झज्जर में कई सौ तो फांसी तोड़े थे नंगे कर कर बांध दिए कई, खूब लगाए कोड़े थे, बांध-बांध के बिछा दिए और फेर चढ़ाए घोड़े थे, खून की डिग्गी भर गी थी, ना बच्चे-बूढ़े छोड़े थे, ताते कर कर चिमटे लाए, पडै़ तनां पै छाळे।। खडवाळी के सतरहां बन्दे सज़ा मौत की आए थे, कच्चा थाणा पेड़ नीम का, फांसी पै लटकाए थे, गाम गामड़ी नज़दीक गोहाणा, जुल्म गजब के ढाए थे, तेरहा ठोळेदारां के भाई शीश कलम कराए थे, बळा गाम गढ़ मान खाप का, सौ-सौ बागी गाळे हांसी आळी लाल सड़क पै हज़ारां गए लिटाए थे, सड़क बनी थी नदी खून की, न्यूं रोलर फिरवाए थे, रूहणात गाम में कोल्हू चाल्ले, भोत घणे पिड़वाए थे, चौबीसी के लीडर सारे महम मैं मरवाए थे, करंग सुखा दिए नीमां ऊपर भरे पड़े थे डाळे।। फेर साहब्बे चाल्ले, हरियाणा मैं हज़ारा गाम जळाए थे, डांगर-ढोर खेत-खलिहाण सरेआम फुंकवाए थे, कई सौ गाम लिलाम करे वे उजड़े बसे बसाए थे, जघां-जघां पै लाश टांग दी, गिद्धां तै चुनवाए थे, हबीब भारती जेळां मैं झोक्के, न्यों पड़े घरां पै ताळे।।

तेज़ ज़माना तेरी मंद चाल या क्यूकर पार बसावै

तेज़ ज़माना तेरी मंद चाल या क्यूकर पार बसावै। जै तूं चाह्वै कदम मिलाणा ना पढ़णै तैं सरमावै।। शिक्षा बिन खुद मर्द निहत्था समझे ने विचार नहींं, अनपढ़ औरत ब्याही आज्या मिटता यों अंधकार नहीं, रह्णा-सह्णा रै तू धरै कोन्या, हो कुणबे का उद्धार नहीं, टोणे-टोटके ले ज्यान पूत की वैद्यां पर एतबार नहीं, बीमार भैंस दे धार नहीं, ना बुउझा पशु पुसावै अनपढ़ बाळक रहज्यां सारे, ना तोल पटै हरजाने का, वेद-शास्त्र के कहग्ये, के सै इतिहास ज़माने का, अक्षर-ज्ञान की कुंजी बिन रहै फाटक बंद खजाने का, बेद-शास्त्र के कहग्ये, के सै इतिहास ज़माने का, अक्षर-ज्ञान की कुंजी बिन रहै फाटक बंद खजाने का, विद्या अनमोल रत्न रैहज्या, ना भेद मिले तहखाने का, खुद हाल जाण परवाने का, क्यूं सुण काम चलावै कित-कित धोखा हो रह्या सै यो जाणे बिना गुजरा ना, मंदर-मसजद के रोला सै, बचरह्या क्यूं गुरूद्वारा ना, टेशन, अड्डे, दफ्तर मैं भी पढ़े बिना कोए चारा ना, अपणे दम पै चाल खड्या हो, ढूंढे और सहारा ना, अपाहिज लाग्गै प्यारा ना, क्यूं बिरथा उम्र गंवावै अनपढ़ सरपंच चालू अफसर पता ना लाग्गै चोरी का, कदम-कदम पै फाअदा ठावैं अनपढ़ की कमज़ोरी का, ब्लैकमेल कदे धकमपेल यो खेल रहै सीनाज़ोरी का, हबीब भारती अन्त करो इस काली नाग चटोरी का यो टेम बीत ज्या भोरी का ते पाच्छै तैं पछतावै।

दिया तन माट्टी में घोळ, फेर बी मेरी गेल्यां रोळ

दिया तन माट्टी में घोळ, फेर बी मेरी गेल्यां रोळ मन्नै पाट्या कोन्या तोल, क्यूं लावैं दूज्जे मोल, मेरा लिकडै़ कोन्या बोल, सहूं रो रो मन मैं ।। अपनी का भा सब टेक्कैं, ना कोए जात मजहब नै देक्खैं लिया बीज चाहे खात, चाहे जूती लते भात लूण तेल और पात, चाही काळी कलम दवात फेर मेरी गैल दुभांत, कहूं रो रो मन मैं करूं बस अन्न की पैदावार, बाकी सब चीजां का खरीददार कदे ओळे कहत का दौर, कदे मरज्यां डांगर ढोर, जिनके हाथ राज की डोर, वो करते कोन्या गोर, मेरा चाल्लै कोन्या जोर, सहूं रो रो मन मैं मैं कहाऊं सूं जमींदार बी, पर बीघे कोन्या च्यार बी मेरा फूट्या पड़्या मकान, ना रहै कुत्ते का ध्यान ना पढ़ाणे का उनमान, बेचारे ढोवैंगे अज्ञान, उनकी बिगड़ज्या जुबान सहूं रो रो मन मैं मैं सारी उमर कमाऊं, फेर बी बुढ़ापे मैं दुख पाऊं घलज्या पोळी के मैं खाट, देखूं दो टूकां नै बाट फेर लेज्या टी.बी. चाट, चाहे बाहमण हूं या जाट हों पेंशनर के ठाठ दहूं रो रो मन मैं हबीब भारती सच बतावै, बिन लड़े ना मुक्ति पावै रहे महलां आळे लूट, बैरी गेर कै नै फूट, बिन भरे सब्र के घूंट, तज जात मजहब के झूठ, ले समिति के संग ऊठ कहूं टोह टोह मन मैं

रै सुणल्यो जंग की कथा सुणावण आया

रै सुणल्यो जंग की कथा सुणावण आया… मई महीना सन् सत्तावन जंग की त्यारी हो गी थी, दस तारीख नै सेना बागी हिन्दी की प्यारी हो गी थी, अम्बाला और मेरठ के म्हां मारा-मारी हो गी थी, मेरठ से था कूच किया दिल्ली सेना आई देखी, कृष्ण गोपाल कमाण्डर थे वा लाल किले पै छाई देखी, ग्यारहा तारीख याद करो भाई गोरी सेना ढायी देखी, किया लाल किले पै कब्ज़ा, मैं याद दिलवाण आया देशी सैनिक टूट पड़े, ज्यूं मूस्से पै झपट्या बाज़, बारहा तारीख मई महीना दिल्ली के म्हां बद्ल्या राज, बहादुर शाह बणे हिन्द के नेता, शीश ऊपर चढ्या ताज, गाम-गाम शहर-शहर में हो गी थी भई फौज खड़ी, सर्वखाप की फौज थी वै शत्रु स्याह्मी खूब लड़ी, हिन्द के इतिहास में आई थी वा सोरण घड़ी, हिन्दु, मुस्लिम लड़े इक्ट्ठे, गोरा मार भगाया हरियाणा लाइट इनफैंटरी रोहतक म्हां भड़क उठी, नेटिव इनफैंटरी साथ आगी गरनेडियर फड़क उठी, सोनीपत और करनाल में बिजली सी कड़क उठी, महम, मदीणे, सांपले मैं चुंगी सारी लूटी गई, कैथल, सिरसा, थाणेसर मैं गोरी सेना कूटी गई, असंध, गोहाणा, पानीपत मैं कर दी उसकी छुट्टी गई, उटावड़ के म्हां जमे मेवाती, अड़क मोर्चा लाया छोट्टे-बड्डे नगरां मैं भई सारै पाटी डीक देखी, गोरे टोह-टोह के मारे थे, निरी लिकड़ती चीख देखी, पंचाती प्रशासन बणग्याए बात बणती ठीक देखी, खजाने लूटे, जेळ तोड़ी, जनता नै लगाया भोग, गोरा शासन खत्म हुआ तो सबके कटते दीखे रोग, आज़ादी का आलम छाग्या खुशी मनावैं थे सब लोग, हबीब भारती जंग में, नया इतिहास रचाया

विज्ञान ज्ञान के दम पै देखो उड़ते जहाज गगन में

विज्ञान ज्ञान के दम पै देखो उड़ते जहाज गगन में। टमाटर आलू एक पौधे पै अजूबे करे चमन मैं।। कदे कदे या चेचक माता खूब सताया करती रोज रोज फिरैं धोक मारते दुनिया सारी डरती फेर भी काणे भोत हुए थे कोए भरतू कोए सरती विज्ञानी जिब गैल पड़े तो देखी शीतला मरती सूआ इसा त्यार कर्या या माता धरी कफन मैं कुत्ता काटज्या इलाज नहीं था हडख़ा कै मरज्यावैं थे रोग कोढ़ का बिना दवाई फळ करमां का बतावैं थे टी.बी.आळी बुरी बीमारी गळ गळ ज्यान खपावैं थे आज इलाज सबका करदें ना रत्ती झूठ कथन मैं अग्रि के म्हां धूम्मा कोन्या बिजली चानणा ल्यावै सै टी.वी. पै तसवीर बोलती देख अचम्भा आवै सै समंदर के म्हां भर्या खजाना बंदा लुत्फ उठावै सै राकेट के म्हां बैठ मनुष भाई चन्द्रमा पै जावै सै एक्सरे तैं जाण पाटज्या के सै रोग बदन में एक जीव का अंग काट कै दूजे कै इब फिट कट कर दें मिजाइल छोड़ैं बटन दाब कै हजार कोस पै हिट कर दें सौ सौ मंजिली बणी इमारत अपणी छाप अमिट कर दें कमप्यूटर जबान पकड़ कै तेजी तैं गिट पिट कर दे सुख सुविधा हजार तरहां की साईंस लगी जतन मैं नई नस्ल के पशु बणा लिए नई किस्म की फसल उगाई नये नये औजार बणाकै पैदावार कई गुणा बढ़ाई फेर बी भूखे रहैं करोड़ों बिन कपड़े बिन छत के भाई हबीब भारती कारण को ढूंढो आपस मैं क्यूं करैं लड़ाई साइंस कै मत दोष मढ़ो ना इसका हाथ पतन मैं

वीरां की मैं कथा सुणाऊं, सुण ध्यान बात पै ला कै

वीरां की मैं कथा सुणाऊं, सुण ध्यान बात पै ला कै। आन-बान सम्मान बचे सदा ज्यान की बाज़ी ला कै।। प्रमुख योद्धा हरियाणे मैं उदमी राम था नाम जिसका, सोनीपत के पास बसै यो लिबासपुर था गाम जिसका, टांक सरोहा खाप का नेता रहा निराळा काम जिसका, राठधणे में पूछ लियो भाई चर्चा होता आम जिसका, सर्वखाप की फौज बणाई सिर पै जोखम ठा कै।। ची$फ कमाण्डर उदमी गर्ज्या, राज हिल्या था गोरां का, आगै होके भाज लिए जणू टोळा भाज्या ढोरां का, गोरा पलटन रगड़ दई थी, गजब हौंसला छोर्यां का, दिया बहादुरशाह को तख्त हिंद का, राज खोस लिया चोरां का, मौत के घाट उतारे शत्रु कसम देश की खाकै।। मछारां नै खेल रच्या भाई उल्टा पासा होग्या था, दिल्ली मैं फिर गोरे आग्ये, मोटा रास्सा होग्या था, देशभक्त गिरफ्तार कराये जी नै सांसा होग्या था, पापी हडसन के ज़ुल्मां का घर-घर बासा होग्या था, सज़ा मौत की सुणा दई ढोंगी पंचायत बुला कै।। कोर्ट मार्शल सज़ा मुताबक सूळी गया चढ़ाया था, तन के म्हां गुल मेख ठोक दी बड़ के पेड़ टंगाया था, सैंतीस दिन तक खून बह्या, वो पल-पल गया सताया था, हंसते-हंसते शूरवीर वो वीर गति को पाया था, हबीब भारती प्रणाम वीर को अपणा शीश निवा कै।।

सुपने के म्हां मेरे पिया तूं थाणेदार बण्या देख्या

सुपने के म्हां मेरे पिया तूं थाणेदार बण्या देख्या गरीब बेचारे लोगां पै हो डंडा तेरा तण्या देख्या थाणेदार बण्यां पाच्छै तेरी चली गई नरमाई हो बात-बात पै गाळ लिकड़ती मन्नै दी दिखाई हो किसे नै तूं साळा कहदे किसे की करी पिटाई हो आम आदमी कटै तेरे तैं तन्नै करड़ी धाक जमाई हो दुखिया एक आई देखी तन्नै बात फंसाई हो जल्लाद जिसा था ढंग तेरा मन्नै दिया दिखाई हो के देखूं थी सुपने मैं ना मेरी समझ मैं आई हो सरकारी वर्दी मैं खूनी, तूं भरतार बण्या देख्या तूं दीख्या थाणे मैं हो देखे तेरे सिपाही पिया जुर्मी बरगा ब्योहार करैं ना माणस दिए दिखाई पिया इतणे मैं एक आया आदमी उण कुछ बात बताई पिया फूट्या सा एक घर दीख्या दो बोतल तनै दबवाई पिया एकदम तनै छापा मार्या ना देर कती तै लाई पिया पकड्या माणस रोए बाळक दया तनै ना आई पिया उस बेचारे माणस की फेर जमकै करी कुटाई पिया ना देखे तनै कानून कादे, खुद सरकार बण्या देख्या मनै देखी गोळी चलती कोए मरता दिया दिखाई हा हा कार मची देखी हो, रोती फिरैं लुगाई एक पाट्टे कपड्यां आळै नै हो आकै खबर सुणाई इतणे मैं एक धोल कपडिय़ा कुर्सी पे दिया दिखाई फेर सुणके टेलीफोन तनै हो अपणी नाड़ हलाई तनै ना दरज रपट करी हो नहीं हथकड़ी ठाई रपट लिखाणिया गया सुबकता कुछ ना पार बसाई मैं खूब जोर की चिल्लाई तन्नै ना सुण्या देख्या चोर जार बदमास लुटेरे सबकै मसती छाई हो तनै धमकाए लोगां आगै लुहकमा हाजरी लाई हो ठेकेदारां नै तेरे राज मैं दारू खूब कढ़ाई हो चकळे चाल्लैं जुआ खेल्लैं तन्नै किसत बंधाई हो धोलकपडिय़े कै चमच्यां आगै तो ना तेरी पार बसाई हो नोटां के बकसे देखे तनै कोठी तीन बणाई हो कितणी सुपने मैं सै झूठ पति कितणी सै सच्चाई हो हबीब भारती बण मेरा हिमाती तेरी गैल ठण्या देख्या

हरियाणा के वीरों सुणल्यो, करते क्यूं एहसास नहीं

हरियाणा के वीरों सुणल्यो, करते क्यूं एहसास नहीं। अमर शहीद भुला दिए, क्यों लिख्या ना इतिहास सही।। सन् सत्तावन की जगत जानता छिड़ी लड़ाई भारी थी, सर्वखाप की एक फौज बणी, जो लागी सबनै प्यारी थी, उदमीराम थे सेनापति भाई जिनकी रंगत न्यारी थी, उन वीरां ने भूए गए क्यूं जिनकी चली कटारी थी, एक रूहणात गाम इसे वीरां का सै हांसी के पास सही।। मुनीर बेग और जैन हुकम चन्द प्रमुख योद्धा म्हारे थे, हिन्दू-मुस्लिम गाम-शहर सभी मिल कै कदम उठारे थे, देश आज़ाद कराणे खातर भोत घणे गए वारे थे, आग्गै फिरंगी भाज लिया भाई देखे अजब नज़ारे थे, इस गाथा का जिक्र नहीं इब होता क्यूं बिसवास नहीं।। बख्त बदलग्या अंग्रेज़ सम्भलग्या, तोपां के मुंह फेर दिए, देश भगत जिब ढिले पडग़े दुश्मन नै वे घेर लिए, रूहणात गाम मैं कोल्हू चाल्या, पीड़-पीड़ के गेर दिए, लाल सड़क हांसी आळी पै कर वीरां के ढेर दिए, भरी लहू की नदी चली थी, करते क्यूं सब ख्यास नहीं।। एक्का म्हारा तोड़ण खातर मज़हब का जाळ फलाया था जैन हुकम चन्द गए दफनाए, मुनीर बेग को जळाया था, इसी चाल को वीर भांपगे, ना उल्टा कदम हटाया था, हंसते-हंसते सूळी चढग़े जिब बैरी थर्राया था, हबीब भारती सच कह्या दखे राख्या था इकलीस सही।।

हां... के ‘जतन’ बणाऊं मैं

हां..... के ‘जतन’ बणाऊं मैं हर भूमि के लोगां की रै कथा सुणाऊं मैं भ्रष्टाचार म्हं सब तैं आगै भारत म्हं कहे जावां कितणा ए जुल्मी राज चलै चुपचाप पड़े सहे जावां जात पांत पै राज बांट दे हम खूब बंटे रहे जावां आग लगा दें कोए धरम की बिन सोचे दहे जावां बिना विरोध गहे जावां ना झूठ बताऊं मैं अधर्म खिलाफ हुआ युद्ध अड़ै महाभारत कहया जा सै जीत बताई सच्चाई की हुआ नसट पाप कहया जा सै फेर भी बेईमानी अर झूठ मैं हरियाणा ताज कहया जा सै बिकैं एमएलए पीस्यां मैं अड़ै दुनिया मैं आज कहया जा सै छळ का राज कहया जा सै के घणा गिणाऊं मैं बड़े आदमी जो नेता बाज्जैं मूर्ख म्हारा बणाया के ना वादे करज्यां फेर बदलज्यां मन्नै सही बताया के ना प्रण तोड़ण की अड़ै रीत पुराणी थारी समझ मैं आया के ना सुदर्शन चक्कर प्रण तोड़ कै कृष्ण नै चलाया के ना फेर भी भगवान कुहवाया कै ना किसकै दोष लगाऊं मैं चालीस लाख गरीबी लैन तळै नहीं पेट भराई खाणा फेर भी जमकै करां बड़ाई जणूं सुरग बण्या हरियाणा बोली बोलणा ऊपरल्यां की म्हारा ढंग पुराणा पीवण नै अड़ै लास्सी कोन्या बोलां दूध दही का खाणा कुछ चाहिए विचार लगाणा रै के राह सुझाऊं मैं खैर बड़े वड्रयां की बात छोडदयो अपणी सुणो कहाणी इनकै मुंह कानी देख्यां गये ना ताकत अपणी पिछाणी तैमूरलंग था दुनियां म्हं नामी अड़ै पड़गी मुंह की खाणी फेर लड़े खूब सन् सत्तावन म्हं हुई घणी म्हारी हाणी हामनै पड़गी फांसी खाणी इब थारै याद दिलाऊं मैं फेर इतणे जुल्म करे गोरयां नै म्हारी रे-रे माट्टी करदी थी ना बखसे बच्चे और बूढे कमर तोड़ कै धरदी थी गाम फूंक दिये साहबां नै म्हारी नसीं गुलामी भरदी थी जघां-जघां लटके फांसी पै म्हारी हिम्मत दीक्खी मरदी थी हबीब सो गई जनता डरदी थी रै ईब जगाऊं मैं

हे दुनिया जिसनै हीणा समझै उसकी गैल पडै़ सै

हे दुनिया जिसनै हीणा समझै उसकी गैल पडै़ सै। हे बान बैठणा ब्याह करवाणा हे बस मैं मेरै कडै़ सै।। हे ना बूज्झैं करैं सगाई, टोह कै ठोड़-ठिकाणा हे घाल जेवड़ा गेल्यां कर दें, पडै़ लाजिमी जाणा हे जिस दिन दे दें धक्का बेबे, आगै हुकम बजाणा हे यो तो बेबे घर अपणा सै, आगै देश बिराणा हे को दिन रहल्यूं मां धोरै या जितणै पार पडै़ सै हे सावित्री नै खुद टोह कै नै सत्यवान अपणाया हे सीता खात्तर रच्या स्वयंबर जिब था ब्याह करवाया हे द्रौपदी अर दमयन्ती नै मरजी तै हार पहराया हे वें तो थी राज्यां की बेट्टी चो चाह्या सो पाया हे म्हारे बरगी छोरीयां की बेबे किस्मत ओड कडै़ सै हे कोए बतावै चातर स्याणी, सुथरी, लांबी, भूरी हे कोए बतावै भोली, भूंडी, काळी अर बेसहूरी हे कंगाल बतावैं हमनै ए जणूं उनकै भरी तिजूरी हे आवै मजा इन लोगां नै यें देखैं ना मजबूरी हे भोळे भूंडे कंगल्यां का यो न्यारा देश कड़ै सै बाप की बेटी गुदडै़ लपेटी कहते धन पराया हे जिसकी मरज्या बेटी उसका कहते भाग सुवाया हे मिशाल बणाकै इन बातां की जा सै जाळ फलाया हे मैं याहे बूझणा चाहूं सूं यू किसनै देश बसाया हे बिन माता के मनै बता ये बाळक कौण घडै़ सै

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