हरियाणवी ग़ज़लें : कृष्ण कुमार निर्माण

Haryanvi Ghazals : Krishan Kumar Nirman


काम कढवाणा हो ज्यब,पूंछ हिलावैं लोग

काम कढवाणा हो ज्यब,पूंछ हिलावैं लोग। काम लिकडे पाच्छै,फेर आँख दिखावैं लोग।। ढब्बीपण का ढोंग इस ढाळ करैं सैं इब। असळ छपाकै,गलत,न्यूं पता बतावैं लोग।। चिकणे चुपड़े खूब रहैं अर बोलण म्हं आग्गै। क्रीम पोडर उतरज्या अर,ना शरमावै लोग।। सबन्ये बैरा सबका,आज काल्ह कै टैम म्हं। देख कसूते कालै,फेर भी बात बणावैं लोग करतै कालै काम,न्यूं पहरकै धौलै कपड़े। स्यान तै चाल्लै पर चेहरा नहीं छिपावैं लोग।। दिल म्हं जहर भरया पूरा,अर न्यूं भी सुणल्यो, उप्परलै मन तै बैठकै खूब बतलावैं लोग। घणा कसूत जमाना आग्या लोगो इब तो। करकै नाश कति,फेर निर्माण बतावैं लोग।

करी -कराई खोवै मतना

करी -कराई खोवै मतना। बीज बिघन का बोवै मतना।। अपणे हात्थां फूल उजाड़े। कांड्डे देख इब रोवै मतना।। बखत पड़या सै जाग ईब तो रै उठ बावलै सोवै मतना।। करमां तै मिलैं सै सुख सारे। सुक्का थूक बिलोवै मतना।। डुबकी मारें मोत्ती मिलते बैठ किनारे टोहवै मतना।। के काडढेगा लड़ भिड़कै नै। गरम खामखा होवै मतना।। कर्या कर बात तंत की। बिना बात झक झोवै मतना।।

मतना चाल्ले आंगा बांगा

मतना चाल्ले आंगा बांगा। एक दिन टूटरै तेरा तांगा।। सकल पै तो बारा बज रये। नाम धरा रया देक्खो छांगा।। के नाम्मां म्हं काडढे बावलै। यो दान करदा पाया मांगा।। माया मतना धरै जोड़कै। आया नांगा, जाणा नांगा।। आज काल्ह चल्या यो फैशन। गंजे कै हाथ म्ह पाया कांघा।

दगा करण तै हटते कोन्या

दगा करण तै हटते कोन्या। सही बातपै मरते कोन्या।। देवण म्हं दुख महारत हासल। गम किसे का हरते कोन्या।। घर के दूर पड़ोसी नेड़यै। यें तो आच्छे रिश्ते कोन्या।। दाऊँ संभलकै रहिए जग म्हं। सीधे -साधे रसते कोन्या।। कहें पढ़ाई होण लाग रयी। कलम दवात अर बसते कोन्या।। टी वी आलै दिख्यावैं जो। हालात इतणे भी खसते कोन्या।।

और तै कै लेणा,राख्य काम तै काम बावलै

और तै कै लेणा,राख्य काम तै काम बावलै देख रै न्यूं भी रटले राम का नाम बावलै इस म्हं कोन्या रोळ कति ध्यान तै सुणलै मरोड़ कै लाग्गे करोडां के रै दाम बावलै गुणां के सब गाहक बताए,सुणे,सुणाए खूब गुठली नै कुण पूच्छै,खाणा चाहवै आम बावलै न्यूं चाल्ली आर्यी,न्यू चाळदी रहैगी दुनिया चिंता फिकर छोड़-छाड़कै कर आराम बावलै जड़ै ना हो कोये गोती-नाती अर यारा-प्यारा खामखा क्यूं जाणा बता इसे गाम बावलै कर भलाई,भूल ज्या,ना सुपने म्हं याद कर चला-चलाई का मेळा,मन नै थाम बावलै क्यां खातर एंडी पाक्कै थोड़ा-सा सोच्या कर धीरे-धीरे जीवन गाड्डी होज्या जाम बावलै अर कुण ग्यान नै पुच्छै सै आज काल्ह भाई कहै सुणे की मान लिया कर निर्माण बावलै

धर्म जात का होग्या रोळा देस म्हं

धर्म जात का होग्या रोळा देस म्हं। यू किसा कठ्ठा होग्या टोळा देस म्हं।। आपणे-आपणे हाँग्गे की सब हांकरै। सोळा माथा होया ओळा देस म्हं।। तू भी,मैं भी अर वो भी देक्खो सारे। ठारयै न्यारा न्यारा इब झोळा देस म्हं।। सब बतावैं सैं खुद नै सबतै स्याणा। बता कौण बच्या इब बोळा देस म्हं।। कड़ै तीज त्युहार दीवाल्ली ईद रही। होळी का हो लिया होळा देस म्हं।। जो आच्छा समझया,भुंडा लिकड़या। पहरें हांडें सुथरा वो चोळा देस म्हं।। इसका,उसका अर तेरा मेरा । अर सबका आपणा ठोळा देस म्हं।। कित सी बड़कै रोवै आम आदमी। कोन्या बच्या इसा कोय कोळा देस म्हं।।

टेंशन वेंशन ना लीया कर रै, दफा कर

टेंशन वेंशन ना लीया कर रै, दफा कर। अर खूब मजे म्हं जीया कर रै, दफा कर।। खामखा क्यूं उलझा -पुळझा हांड्डे बावलै। आपणे होंठ भी सीया कर रै, दफा कर।। गाद्दड़ आळी तौळ म्हं बता बेर कदय पाकै। तू घूंट सबर का पीया कर रै, दफा कर।। सबकी आपणी सोच,सबकी आपणी मौज। बोझ ना सिर पै लीया कर रै, दफा कर।। आज उसकी सै,काल्ह तेरी बारी भी होगी। डटज्या बैरी ना छोटा हीया कर रै,दफा कर। कोये टिं करै,चये चिं करै, कोये भै पीं करै। जीसा लैक्यै, काम कीया कर रै,दफा कर। आप करैगा बख्त फैसळा तेरा उसका भी। सुण तू उएँ फैसला ना दीया कर रै,दफा कर दुनिया के रंग-ढंग का ना बेरा पटया निर्माण ना जाणण का दरद लीया कर रै,दफा कर

मत इतणा इतराया कर

मत इतणा इतराया कर बाळक भी बण जाया कर किमें धरया ना हुश्यारी म्ह दिल की खोल बताया कर मुबाइल कै इस दौर म्ह थोड़ा सा सरमाया कर कै काडढेगा नफरत करकै साच्चा प्यार कमाया कर आंदे जांदे रह सुख दुख तो इतणा ना घबराया कर चिंता तै छुटकारा होज्या नाम राम का ध्याया कर

काम करै ना धेल्ले का,जो बात बणावै बड़ी-बड़ी

काम करै ना धेल्ले का,जो बात बणावै बड़ी-बड़ी। उल्टे खूँटटे ठोकै सै,बस वो माणस घड़ी-घड़ी रंग रूप की गोरी हो अर नैण नक्श भी आच्छा हो। ना बोलण का बेरा जे वा होती कोन्या फूलझड़ी अपणे दुख तै दुखी ना कोये,खास बात याह सुणल्यो गैर के सुखनै देखकै दुनिया हांडै सड़ी-सड़ी नहीं सबर-संतोष किसे कै,ना थोड़ी सी थमास। किसे न्ये भी जिसनै देक्खो उसकै भितर माच रहयी सै हड़बड़ी। भोब्भा जिसका भरग्या, जग म्हं उसकी सै पौ बारा चादर ताणकै सोया रहै,कै ओर की उनैं पड़ी ळातां आल्यै भूत बता कद, बाताँ तै मान्नै सै। जां करकै तो मैं बी राक्खूं, लाठी,डंडे और छड़ी।। जिब हो अपणे घर की बही अर हो काका लिक्खणिया। सदा करै वो मौज जगत म्हं,औकात हो चै मड़ी-मड़ी।

पल म्हं तोळा पल म्हं मास्सा

पल म्हं तोळा पल म्हं मास्सा। सै जिंदगी एक खेल तमास्सा।। संत,फकीर,रंक अर राजा। हो रया सबकै जी नै रास्सा।। मरग्ये, खपग्ये कमा -कमाकै। फेर भी रहग्या खाल्ली कास्सा।। मर गरीब की च्यारुँ कानी। सरदी,गरमी हो चये चमास्सा।। सब समझै अर सब जाणें सैं। सबतै आच्छी प्यार की भास्सा।। जिंदगी म्हं सुख चाहवै सै जे। मतना फैंक रै उल्टा पास्सा।। इक सुक्कै म्ह ना रहा तिसाया। इक दरिया पै पाया प्यास्सा।। बात पै कती,भरोसा ना कर। नेता दे सै पक्कम झांस्सा।। निर्माण कहै अक सुणो ध्यान तै। बजै मौत का हरदम तास्सा।।

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