Hamari Nayi Duniya : Bindesh Kumar Jha

हमारी नई दुनिया : बिंदेश कुमार झा

यदि हम अपने मोबाइल को एक कोने में रखें और कुछ समय एकांत में बैठे हैं तो हमें यह स्वयं से पूछने की आवश्यकता है कि क्या हम वास्तविक को दुनिया में रह रहे हैं? या फिर हम एक काल्पनिक दुनिया में हैं ?इसका जवाब यदि सीधे तौर पर कहा जाए तो हम वास्तविक दुनिया में रहते हैं। लेकिन अधिक गहराई में जाने के बाद हमें पता चलता है, कि हम हमारा शरीर इस वास्तविक दुनिया में है लेकिन हमारा जो मस्तिष्क है, जो इस शरीर का संचालक है, वह एक काल्पनिक दुनिया में है ।कहने का तात्पर्य है यह जो बड़ा कार्यालय है ,इसका मालिक किसी और स्थान पर है और यह कार्यालय कहीं और है ।तो आप इसकी कार्यक्षमता पर थोड़ा बहुत तो सवाल उठा ही सकते हैं ?यदि आप आज भी थोड़ी देर के लिए अपने घर में ही घूमे तो आप पाएंगे कि आपके घर में बहुत सी ऐसी चीजें हैं जो शायद आपके जीवन का हिस्सा कई दशकों से रहे हो। लेकिन शायद आपके ध्यान में आज आई हो ।यह बोलना गलत नहीं होगा यदि हम कहें कि हमारे शरीर में भी बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो शायद बहुत सालों से हो रहा हो और हमारे चित् में आज जाके आया हो ।पर यह सवाल उठता है कि हम मोबाइल पर इतना आश्रित है ही क्यों ?इस प्रश्न का सीधा सब उत्तर हैं हमारे दैनिक जीवन की बहुत सी ऐसी आवश्यकताएं हैं जिसके लिए हम मोबाइल पर आश्रित हो चुके हैं ।शायद वह सभी आवश्यकता जो हमें वास्तविक दुनिया से जोड़ कर रखती है। जिसके लिए शरीर को थोड़ा बहुत मेहनत करना पड़ता है ।वह सभी हमने इस काल्पनिक दुनिया में डाल दिए हैं। जहां शरीर को आराम पहुंचता है। मालिक से ज्यादा कार्यालय के कर्मचारी को आराम की आवश्यकता होती है ।लेकिन वास्तविक रूप से जो मालिक संपूर्ण कार्य का संचालक होता है। वह आराम पाने की स्थिति में अंत में पहुंचता है। ऐसे में मोबाइल जो कि हमारा शरीर जो कि एक कर्मचारी है उसको पहले आराम पहुंचाता है और हमारे मस्तिष्क जो कि मालिक है ,उसके लिए थोड़ी देर बाद यदि सटीक के स्तर पर बात करें तो शायद कर्मचारी तो दिन भर की मेहनत के बाद अक्सर रात को सो ही जाता है जो कि हमारा शरीर है लेकिन मन जो कि इस शरीर का संचालक है मालिक है शायद उसे वह आराम प्राप्त नहीं हो पाता। लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं अगर एक व्यक्ति का जीवन होता तो उसे बदलना शायद आसान हो सकता है लेकिन मनुष्य का जीवन अपने आसपास के लोगों से बहुत अधिक प्रभावित होता है या यूं कहें कि अगर उसे बदलना है तो उसके आसपास के लोगों को भी उसी हिसाब से बदलना होगा। ऐसे में यह कार्य थोड़ा कठिन हो सकता है मोटे तौर पर कहीं तो हमें यह प्रयास करना चाहिए कि हम जिन चीजों में कटौती कर सकते हैं वहां तो अवश्य ही करें और जिन चीजों में नहीं हो सकता तो उसके लिए सोचना आवश्यक है। अगर आपको आवश्यकता ना हो तो आप इस यंत्र का प्रयोग कुछ समय के लिए छोड़ दें । यह दिन में कुछ ऐसा समय भी निकालें जहां आप इस यंत्र से दूर वास्तविक दुनिया में रहे । कोशिश करेंगे दिन का कुछ भाग ऐसा हो जहां आपका संपर्क प्रकृति के सौंदर्य से हो । शायद यह कुछ छोटी-छोटी परिवर्तन हमारे जीवन को फिर से उस नई दिशा में ले आए।