हलधर फिर हुंकार उठे
Haldhar Phir Hunkar Uthe
'हलधर फिर हुंकार उठे' कृति में किसान मजदूर संघर्ष 2020 से सम्बंधित कविताएँ हैं । जो भी कवि महोदय हमें इस विषय पर अपनी रचनाएँ भेजना चाहें उनका सहृदय स्वागत है ।
हम लौट जाएँगे-नरेंद्र कुमार (जलंधर)
हम लौट जाएँगे हमारा पानी वापिस दो हमारी मिट्टी वापिस दो हम लौट जाएँगे। अपनी खाद ले जाओ मारक दवाएँ ले जाओ काली कमाई लेते जाओ हमें हमारी ख़ुदाई वापिस दो हम लौट जाएँगे। तुम कहते हो हरित क्रांति से पहले कोई तरक्की नहीं हुई हम बताते हैं- हरित क्रांति के पहले किसी परिवार ने कभी कभी खुदकुशी नहीं थी उठाई अपनी क्रांति लेते जाओ। हमारी शांति लौटा दो हम लौट जाएँगे। हम कीमत माँगने नहीं हिसाब करने आए हैं। आज के नहीं सदियों के सताए हैं। झूठ के पुलिन्दे ले जाओ अपने कर्ज़े ले जाओ हमारे अंगूठे वापिस दो हम लौट जाएँगे। हमारा स्वच्छ जल वापिस दो हमारी साफ मिट्टी वापिस दो हम लौट जाएँगे। अनुवादक- प्रदीप सिंह (हिसार, हरियाणा)
टीवी चैनलों पर-नरेंद्र कुमार (जलंधर)
टीवी चैनलों पर मचे शोर में बहसबाजी के इस दौर में जब हर चेहरा दुहाई देता है मुझे तू क्यों सुनाई देता है ! बहुत दूर से ही सही, पर तेरे साथ जब हो रही हो 'मन की बात' तो तेरी गर्दन पर उसका हाथ मुझे क्यों दिखाई देता है ! मंदी हो, बेकारी या महामारी वह लूटेगा सबको बारी बारी लुटेंगे मरेंगे सब, बस बचूँगा मैं मन यह झूठी गवाही क्यों देता है! मेरा हो, तुम्हारा या उसका सच तो सच है, और झूठ रहेगा झूठ बचा लो झूठ या रंग दो सच का मुँह वक़्त तो बस स्याही देता है!
पहली बार-गुरभजन गिल
हलों के निशानों सी गहरा गई हैं त्योरियां। हल चलाने वालों ने करके दुश्मन की निशानदेही दर्दों पर हल चलाया है। बहुत कुछ देखा है इस धरती ने। नहरों के बंद खाने खोले थे बुजुर्गों ने। हरसा छीना आज भी ललकारता है मालवे में बिसवेदारों को भगाया था मुजारों ने किशनगढ़ से हड़काया था मंडी-मंडी गाँव-गाँव से। भगाया था सफेदपोशों को सुरखपोशों ने इतिहास ने देखा। तानाशाही का सामना करते खुश रहने के कर को ललकारते आज भी हैं यादों में जागते चोर चाचा भतीजा डाकू चौपालों में गाते जांबाज। ढेरियों की रखवाली करना जानते हैं। तंग ज़ेलियों वाले। लड़े सरकारों से हर बार। देखा पर ये पहली बार अलग सा सूरज नई किरणों संग हुआ उदय। दुश्मन की निशानदेही हुई है। कॉरपोरेट घरानों के कंपनी शाहों को रावण के साथ जलाया है। दशहरे के मायने बदले हैं। वक़्त की छाती पर दर्दमंदों की आहों ने नई अमिट इबारत लिखी है। हमें नचाने वाले खुद नाचते हैं हकीकतों के द्वार। बेशर्म ठहाकों में घिर गए तीन मुँह वाले शेर छिपते फिरते हैं। तख्तियों वाले तख़्त को ललकारते हैं। कभी कभी इस तरह भी होता है कि बिल्ला खुद पैर रख अपने आप ही फँस जाए जलते तंदूर में। काढ़नी से दूध पीता कुत्ता गर्दन फँसा बैठे। चोर घुसते ही पकड़ा जाए। गीदड़ मार खाता फँसा फँसा बेशर्मी से कुछ कहने लायक न रहे। पहली बार हुआ है कि खेत आगे-आगे चल रहे हैं कुर्सियाँ पीछे-पीछे बिन बुलाए बारातियों सी। हमें भी ले चलो यार कहती। मनु स्मृति के बाद नए अछूत घोषित हुए हैं वक़्त की अलिखित किताब में। पहली बार तूँबी ढड-सारँगीयों से दर्द-बंटाने वाली धुनें निकली हैं समय ने आईना दिखलाया आलापों को मुक्के बने ललकार चीख बनी दहाड़ और आवाज़ पा गया भीतर का दर्द मुक्ति को पता मिला है। जो पक रहा था बाहर आया है साज़िशें, चालें, षड्यंत्र, कन्याकुमारी से कश्मीर तक हुआ है एक भारत लूट-तंत्र के ख़िलाफ़ किताबों से बहुत पहले वक़्त बोला है। नागपुरी संतरों का रंग लोक-दरबार में फीका पड़ा है। मंडियों में तड़पता है अनाज। आढ़तियों आहें भरी हैं। पल्लेदारों ने कस ली कमर सड़कों, रेलवे-ट्रेक ने दादे-पोते दादी पोती ज़िंदाबाद के रूप में देखा है। पहली बार बंद दरों के भीतर लगे दर्पणों ने बताया है असल किरदार कि कुर्सियों नाच नचाया नहीं बल्कि झाँझर पहन खुद नाच किया है। काठ की पुतली नचाते तनावों के पीछे वाले हाथ नंगे हुए हैं। पराली के बीच उगने से गेहुँ का इंकार है। सहम गया है ढाब का पानी खूँटों से बंधी गाय-भैंसे दूध नहीं देती। दूध पीने वाली बिल्ली थैली से बाहर आई है। हाली-पाली अर्थशास्त्री हुए हैं बिना गए स्कूल-कॉलेज की क्लासेस में बोल रहे हैं शब्द दर शब्द खोलते हैं अर्थ सत्ता की व्याकरण के। गुट जुड़ें न जुड़ें अर्थ कतार लगाए खड़े हैं। पहली बार अर्थों ने शब्दों कठघरे में खड़ा कर ला-जवाब किया है। अंबर के तारों की छाँव में मुद्दत बाद देखे हैं बेटे-बेटियाँ लंगर बनाते-खिलाते। सूरज और चंद्रमा ने बेरहम तारामंडल नजदीक से देखा है। कंबल की ठंड वाले महीनें में अंदर दहकती है आग। पसीने से भीगा है पूरा तन-बदन। झंडे सामने झंडियाँ मुजरिम लगे हैं। चौकीदारों को सवालों ने किया छ्लनी बिन तीर-तलवार। गोदी बैठे लाडले अक्षर चौंक में हुए हैं अविश्वासी। सवालों का कद बढ़ गया है जवाबों से। (ज़ेली एक हरियाणवी शब्द है जो पंजाबी शब्द तंगली के लिए प्रयोग होता है) अनुवाद- प्रदीप सिंह (हिसार, हरियाणा)
कोरा जवाब-गुरभजन गिल
विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है रक्त से लिखे खत का लिख भेजा है दिल्ली ने जवाब। जवान! काली स्याही से अंग्रेजी में फिर चिट्ठी लिखकर भेज हमारा स्कैनर पंजाबी में खून से लिखी इबारत नहीं पढ़ पाता। अनुवाद- प्रदीप सिंह(हिसार, हरियाणा)
अब आगे की बात करो-गुरभजन गिल
माना कि नहीं बजती एक हाथ से ताली मगर आप ताली नहीं थप्पड़ मार रहे हैं विधान के तमतमाए लाल चेहरे पर। थप्पड़ एक हाथ से ही लगता है। हम जानते हैं निकलती है ताली की ताल हाथों के मिलाप से और थप्पड़ कड़ाक से। हमसे पहले आप कितनों से कहाँ-कहाँ कैसी-कैसी ताली बजाते रहे हैं! वक़्त की बही में दर्ज़ है हिसाब पाई-पाई का। मेहरबां! दोनों आवाज़ों में भी बुनियादी अंतर है। थप्पड़ तड़ाक से एकदम लगता है और लगातार बजती हैं तालियाँ। बांधकर हमारे हाथ-पाँव हमें तालियाँ न कहो बजाने को तालियाँ। हाथ खोलो फिर देखते हैं कैसे है बजाना। फिलहाल तो आप बोल रहे हैं हम सुन रहे हैं वार्तालाप कहाँ है? हमारे गुरु का उपदेश है जब तक जीवित हो, कुछ सुनो भी, कुछ कहो भी रोष न करो सटीक जवाब दो। अब आगे की बात करो। हिंदी अनुवाद- प्रदीप सिंह (हिसार, हरियाणा)
संघर्षनामा-गुरभजन गिल
पहले तो सुना था अब आँखों से देखा है चींटियों ने तोड़ दिया है पहाड़। कीकर बीज कर किशमिश की रखता चाह फिर रहा कांटे चुनता। तेरे उत्पाती संग थे उठने-बैठने अब तुझे अकेला छोड़ गए हैं। हम गर्म लोहों की संतानें अब तो तूने परख लिया है। तिनके कब देखे टिकते दरियाओं के सामने। खोटी नियत थी कानून काले बनाना मुँह के बन गुमान गिरा है। अनाज की रखवाली बकरे को सौंप किसने सुख पाया है। शीश हथेली पर धरा शीशगंज ने जब किले को पसीना आया है। तेरा ज़ुल्मी कुल्हाड़ा कमर से टूटा सब्र वालों ने पीठ न दिखाई। हमें तुझसे प्यारा है वतन बता क्या सबूत चाहिए? बरगद से बुजर्ग और वृद्ध थी माएं तन गई जो बनकर दीवार। बतीस दाँतों ने चबा लिया देखो नाग फुँफकारता। हिंदी अनुवाद- प्रदीप सिंह (हिसार, हरियाणा)
ये आग अब हो गयी बड़ी-भूपिन्दर सिंघ 'बशर'
ये आग अब हो गयी बड़ी, दामन बचाओगे कब तक। फैसले की करीब आ गयी घड़ी, दामन बचाओगे कब तक। बन पहरेदार काँटों ने, ज़ख्मी जो किया फूलों को, लहू सा रस जब टपका बगावत उठ हो गयी खड़ी, दामन बचाओगे कब तक। ये आग अब हो गयी बड़ी, दामन बचाओगे कब तक। अंगारो से सजा कर माँग, आक्रोश की प्रस्तुति को, चंडी बना कलम की, वो घर से निकाल पड़ी, दामन बचाओगे कब तक। ये आग अब हो गयी बड़ी, दामन बचाओगे कब तक। हर ज़ख़म की हो समीक्षा पुख्ता शोर है ये हर ओर फ़रेबी तकरीरों से आज़ार मुर्दा भीड़ उठ हो गयी खड़ी, दामन बचाओगे कब तक। ये आग अब हो गयी बड़ी, दामन बचाओगे कब तक। 'बशर' रीत है ये सदियों पुरानी, आतिश के खेल में हाथ ही जले, ईलम-ए-नुख्सा था उन्हे भी खूब लेकिन नब्ज़ ही उल्टी गयी पढ़ी दामन बचाओगे कब तक। ये आग अब हो गयी बड़ी, दामन बचाओगे कब तक।
सरहद पे नित मरते वीर-भूपिन्दर सिंघ 'बशर'
सरहद पे नित मरते वीर सेना के जवान, समर्थन मूल्य खातिर लड़ रहे हैं किसान। चीन से है चिंतित और पाक से परेशान, देश का तथाकथित विकासशील इंसान। असहयोगीओं को नैतिक सबक सिखाने, चली सत्ता अब रंगमंच को जौहर दिखाने। समझदार को इशारा काफी लगी समझने, खास लोगों को अच्छे लगते हैं आम खाने। सत्ता करती मनमानी ना होती टस से मस, बेतुकी बातों पे मिडिया दिनरात करे बहस। समर्थक भक्ति में लीन पी कर गांजा चरस, बेशर्मी की सारी हदें पार कर गया 'हाथरस'। निर्भया भय से थरथरा उठी एक बार फिर, रामराज्य में न्याय मांगने भला जाए किधर। बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का शोर मचा कर 'बशर' खुद शोषण में लिप्त दिखते हैं मगर।
हमारे नुमाइंदे बन हमारी ही गर्दनों पर-भूपिन्दर सिंघ 'बशर'
हमारे नुमाइंदे बन हमारी ही गर्दनों पर चाकू धरोगे ऐसा तो सोचा न था। खुद को गरीब का बेटा कह अमीरों का पानी भरोगे ऐसा तो सोचा न था। हाथों में रोटी लिए बैठे थे, हाँ तुम से जरा मांग ली सहूलियत, तो थाली दिखा कर रोटी ही छीन लोगे ऐसा तो सोचा न था। हमने भूखमरी को हराने का निश्चय दृढ़ किया था लेकिन, षडयंत्र रच तुम ही हमें हराने पर तुलोगे ऐसा तो सोचा न था। हम मिट्टी में से जीवन तलाश लाते हैं अपनी समझ लगा कर, सूट बूट पहन कर हमें ही मुर्ख कहोगे ऐसा तो सोचा न था। तुम्हारे मन की सुन पक्क गए, जब हम अपनी कहने निकले तो, 'बशर' किसानों पर ठंड में बौछारें करोगे ऐसा तो सोचा न था।
जुल्म की हुई इन्तेहा-गुरप्रीत कौर
कर रही है त्राहि-त्राहि निरंतर ये मानवता बढ़ रहा है आगे हर पल प्रलय की और ये नटराज रोंद रहा पैरों तले संकीर्ण विचारों शोषण करने वालों आवाज़ दबाने वालों को कि अब हुई इन्तेहा अन्याय दु:शाशन शोषण और हर बात की जागो सभी आया समय अब एक नयी शुरुआत का आयो सब मिलके करें तांडव ये बदलाव का
बड़ा विचलित है देश का चौकीदार-जोगिंदर आजाद
बड़ा विचलित है देश का चौकीदार । जन सैलाब बढ़ता आ रहा है उसके महलो की ओर । डाल दिए उन्होंने डेरे राजधानी के चारो ओर, सुनसान सड़को पर बसा लिए है शहीदो के नाम पर नगर । रसद से भरे पड़े उनके नव निर्मित '"घर" जंगल को कर दिया है मंगल नही है उनके पास कोई शस्त्र पर बहुत भयभीत है चौकीदार। । धक धक कर रहा है उसका 56 का सीना सैलाब ने अभी नही पसारे राजधानी की ओर कदम गाते रहते है वीर रस के गीत, नानक, गोबिंद, भगत सराभे के ये वारिस सुनाते रहते है चौकीदार के पापो की गाथा ललकारते है, धिक्कारते है चौकीदार को, निकलो महलो से बाहर सुनो प्रजा की बात । बड़ा भयभीत है चौकीदार, नही आया कोई अस्त्र शस्त्र काम धूल मे मिला दी है उसकी कुटिल चाले उमड़ता आ रहा है सैलाब आत्म विश्वास से लबरेज नि शस्त्र कर रहा है युद्ध हिंसक सत्ता से, अदम्य साहस, विवेक और बाहुबल से पी रहा है शहादत के जाम। बहुत भयभीत है देश का चौकीदार उङ गई है उसकी नींद अभिनय कर रहा है, निर्भय होने का।
दिल जैसा तेरा नाम री दिल्ली-अरतिंदर संधू
दिल जैसा तेरा नाम री दिल्ली पर तू बिन दिल जीती तेरा अपना लहू है धवला ख़ुद तू है रत्त पीती चाहती सर लोगों के झुके सब के मुंह पे ताले सहोगी कैसे खड़े सामने प्रश्न पूछने वाले पर किसान न डरता दिल्ली वह कष्टों का जाया सरहदों की रक्षा करते जिसने ख़ून बहाया तपते जेठ औ’ घना कोहरा यह खुद पे झेलता आया सांपों के सर मसले-कुचले माटी से अन्न उगाया तख्तों पे बैठे लोगों ने ऐसा खेल रचाया सारे देश का पेट भरे जो अब सड़कों पर आया जिसकी मेहनत की रोटी खाएं उसे ही रोज़ डराएँ सोने के अंडों वाली मुर्गी अब तू काटना चाहें पर इतिहास को गर फिर देखें आए याद तुझे नानी धरती के पुत्रों के आगे मिटे कई अभिमानी लोगों का हक जिसने छीना मिली जगह न कोई धरती और किसान का नाता तोड़ सका न कोई अनुवादक-मनोज शर्मा
मेरे गांव का किसान-सुभाष भास्कर (चंडीगढ़)
रंग गेहुंआ दाढ़ी चिट्टी है हुआ मिट्टी से जो मिट्टी है। खलिहान में बैलों के पीछे जो मार रहा ललकारें वह गांव मेरे का किसान है 'गर मानो धन्ने जैसे, फिर पत्थर भी भगवान है। रूखी-मिस्सी खा सो जाता है सुबह उठ कर हल चलाता है जब खेत में फसलें लहराएं फिर होत ख़ुशी के गान है 'गर मानो धन्ने... बंजर उपजाऊ कर देता हल का मुन्ना जो पकड़ लेता। जब चढ़ता जट्ट सुहागे पे फिर समतल सब मैदान है। 'गर मानो धन्ने... 'गर रब्ब का दूसरा नाम है वह श्रमिक और किसान है इक ओंकार को माने जो वो विरला ही इंसान है 'गर मानो धन्ने... वो दाता यह अन्नदाता है दोनों का धुर का नाता है जिस नानक नाम पछाता है वह सबसे बड़ा धनवान है 'गर मानो धन्ने... होएं नतमस्तक उस पालक को पालक के उस संचालक को दुनिया के हरेक घर घर में जिसकी वजह से थाली है क्यों उसकी थाली खाली है यह बात सोचने वाली है 'गर हलधर ही हुंकार उठा फिर समझो बड़ा घमसान है 'गर मानो धन्ने जैसे, फिर पत्थर भी भगवान है।
हल-मनोज छाबड़ा
चलाया- तो हल था उठाने पर हथियार हुआ
किसान (1)-प्रियंका भारद्वाज
किसान बोता आस मन की सींचता खून तन का काटता दिन मजबूरी के कर्ज़ देता अपने होने का...
किसान (2)-प्रियंका भारद्वाज
किसान - वो जर्द चेहरा मायूस आंखें कुछ कह रही हैं तुम नहीं जान पाओगे उनमें छुपे दर्द को नहीं समझ पाओगे उसके लाचार मन को तुम नहीं जान पाओगे कि दुर्दिनो में भी कुछ हौंसला अच्छे दिनों का छुपाये हुए हैं वो सीने में कि- कभी उगलेगी सोना, पानी को तरसती ये जमीन कभी खत्म होगी नहरबंदी की समस्याएँ और! कभी तो कुछ उग आयेगा अच्छे दिनों सा!!
मेरे पिता-प्रियंका भारद्वाज
भय से देखती हूँ सुना पडा़ आसमान आंखों के किनारे भीग चुके हैं एक बुरी सी कल्पना से चेतना खो चुके बदन को महसूस करने की कोशिश करती हूँ ! खडी़ दुनिया के आखिरी ध्रुव पर जम चुका हो नसों में बहता खून जैसे एक उसांस लेती मैं करती हूँ कोशिश खुद को फिर से सचेतन में लाने की अखबार के मुख्य पृष्ठ पर छपती हर रोज किसानों की आत्महत्या कहीं गोली मार देने की खबरे किताबों में सिर डाले बैठी शहर के इस होस्टल में मुझे याद आता है मेरे पिता का किसान होना ! लगाने लगती हूँ ! हिसाब मेरे पढ़ने के लिए उठाए कर्ज के ब्याज पर लगते ब्याज का और करती हूँ फैसला घर लौट जाने का! पास बैठ पिता को धीरे से कहती हूँ! देख लो कच्चा सा घर कोई जहाँ मुझे ब्याह सको कम दहेज देकर मैं कर्ज से आत्महत्या तक का सफ़र नहीं देखना चाहती मेरे पिता...
शाही फ़कीर-मदन वीरा
दिल्ली का शाही फ़कीर मन की बात के समय मुँह जब भी खोलता है मन बहुत डोलता है उसके रटे रटाए जुमलों की बाढ़ और सुदृढ़ कर देता है भ्रम और पाखंड के ढहने वाले बुर्ज और ऊँचे कर देता है मनु के रंगभेद वाले दुर्ग और नागपुरी शान वाले नफ़रत के गढ़ अब झोले वाले इस फ़कीर ने नये जुमलों के साथ बगल में लटके भिक्षु-थैले में समेट लिए हैं गाँव के गाँव- हरे खेतों के हार इस कौतुकी ने- रोज़ी-रोटी की गठरी- दलालों की थाली में धरके कर लिए हैं नये करार और लोगों से कहता है आओ करें कृति की जै जैकार... अब भक्तों के रेवड़ की तालियों और थालियों के शोर में न इसको खलकत की टेर सुनाई देती है न लोगों की हूक मन आई कहने वाला मनमानी करने वाला सुनने के समय हो गया है मूक न इसको रोना सुनाई देता है न नज़र आता है लोगों का रोष पर यह मिट्टी नहीं खामोश दिल्ली की दहलीज़ पर बैठे लाखों लोग हैं जब अवाज़ार और तब घोड़े बेंच कर देश को रेहन रख कर सो गया है चौकीदार। (मूल पंजाबी से अनुवाद : राजेंद्र तिवारी)
ज़मीन से उठती आवाज़-बल्ली सिंह चीमा
ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के । अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के । कह रही है झोंपड़ी औ' पूछते हैं खेत भी, कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गाँव के । बिन लड़े कुछ भी यहाँ मिलता नहीं ये जानकर, अब लड़ाई लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के । कफ़न बाँधे हैं सिरों पर हाथ में तलवार है, ढूँढने निकले हैं दुश्मन लोग मेरे गाँव के । हर रुकावट चीख़ती है ठोकरों की मार से, बेड़ियाँ खनका रहे हैं लोग मेरे गाँव के । दे रहे हैं देख लो अब वो सदा-ए-इंक़लाब, हाथ में परचम लिए हैं लोग मेरे गाँव के । एकता से बल मिला है झोंपड़ी की साँस को, आँधियों से लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के । देख 'बल्ली' जो सुबह फीकी दिखे है आजकल, लाल रंग उसमें भरेंगे लोग मेरे गाँव के ।
लूट गेहूँ, बाजरे औ' धान की-प्रेम साहिल देहरादून
लूट गेहूँ, बाजरे औ' धान की आ गयी अब समझ में देहक़ान की जा रहा है लाभ जो सेठों के घर हाँ उसी तो लाभ की पहचान की सौंप सेठों को हमारा कल रहे चूल ठोकें उसपै भी एहसान की देके हम तक़्दीर उनके हाथ में क्यों करेंगे नौकरी दरबान की छोड़ना बिलकुल न साहिल अब कभी ली पकड़ गर्दन अगर शैतान की देहक़ान- किसान
हलधर दोहे-डॉ. जसबीर चावला
जय किसान जय किसान कहेंगे, जीतने नहीं देंगे। मंडियां जीने नहीं देंगी, कानून मरने नहीं देंगे।। जय किसान कहने से किसान कैसे जीतेंगे। विकास विकास कहते देश ले बीतेंगे।। मुंह में जय किसान बगल में अडाणी छुरी। कृष्ण चले अयोध्या राम सुदामापुरी।। पूंजी का खेल है मेहनत से धोखाधड़ी। कुर्सी का छोटा मुंह देशप्रेम बात बड़ी।। जीतेंगे तब ना जब जी पायेंगे। सड़कों पर हलधर ठंढे मर जायेंगे?
भीष्म हलधर की निष्ठा-डॉ. जसबीर चावला
पड़ा रहेगा उत्तरायण के बाद भी प्राण नहीं छोड़ेगा। धर्मयुद्ध धर्म क्षेत्रे कुरूक्षेत्रे नहीं सिंघु तक घसक गया है सरस्वती से दूर राजपथ है साक्षी भीष्म प्रतिज्ञा ली है हलधरों ने। छूट जायें शरीर सैंकड़ों, प्रण नहीं पर प्राण-पण से शर-शैय्या पर लिटा दिये हैं कपटी मीडिया ने। बरसें घन कड़कती ठंड में गिरें ओले, चाहे शिला-वृष्टि बिजलियां मिल भयंकर झंझावात ढायें अब सहस्र बुद्ध बैठे हैं तपस्या में आग्रह है सत्य का, श्रम का, स्वेद का बलिदान है किसानों का कैसा रचा खेल खलिहानों का। मूक है संसद, बधिर न्याय अंधा युग पूंजी के दलालों का। यहां आ खड़ा है जलियां काला कृषि कानून हुक्मरानों का। आओ जनार्दन, देखो कैसे हो रही गीता चीर-अपहृता कैसे लूटी जा रही धरती पुत्रों की अस्मिता देखो कैसे धोयी जा रही मेहनती रक्त से पूंजी सेवित सत्ता की विष्टा असुरक्षित राष्ट्र हुआ पार्टीबाजी में कैसे छोड़े प्राण भीष्म-हलधर की निष्ठा?
एक असभ्य सवाल-हूबनाथ
वे जानना चाहते हैं कि क्या कर रही हैं औरतें किसान आंदोलन में इन्हें बहुत पुरानी आदत है औरतों को घर में देखने की लक्ष्मण रेखा के भीतर औरतों को बिस्तर पर देखने की दिल बहलाव के खिलौनों की तरह इन्होंने बनाई है बड़ी मशक्कत से जगह औरतों के लिए जूतियों के पास सीली लकड़ी की तरह रसोईं में धुंधुआती औरतें घड़ों पानी सिर पर लादे खानदान का पानी बचाते गोबर पाथते लकड़ियां बीनतें आटों के पहाड़ सानते धरती का सारा कपड़ा पटक पटक पछींटतें पनघट पर मरघट पर पौरुष के अंगूठे तले कसमसाती बिलबिलाती घुटती जलती मर मर जीती जीते जी मरती सत्ता की चौखट पर नाक रगड़ती माथा फोड़ती एड़ियां घिसतीं औरतें देखने की देखते रहने की बहुत पुरानी आदत है इन्हें लड़ती औरतें झगड़ती औरतें हक़ मागतीं न्याय गुहारती ऊंची आवाज़ में चीखती चिल्लातीं नाचती गाती नारे लगाती पुरुषों के कंधे से कंधा लगाए ही नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था को कंधा देती औरतें किसी भी सभ्य समाज के लिए ठीक नहीं होतीं अपनी बनी बनाई औक़ात के बाहर निकलते ही औरतें बन जाती हैं मनुष्य औरतों का मनुष्य होना असभ्यता का लक्षण है इसीलिए वे पूछ रहे हैं एक बेहद मासूम लेकिन असभ्य सवाल कि औरतें क्या कर रही हैं किसान आंदोलन में और वे भूल जाते हैं कि धरती पर खेती की शुरुआत औरतों ने ही की थी वे शायद यह भी भूल गए हैं कि धरती को मां भी कहा जाता है और हर मां पहले औरत ही होती है माई लॉर्ड!
जलियांवाला बाग बना दो-डॉ. जसबीर चावला
जलियांवाला बाग बना दो यहीं बना दो काला पानी। सिंघु बाडर अमर रहेगा अमर हो गयी दिल्ली रानी। पूंजी की जिद कैसी होती लिखते अंबानी आडाणी। कुर्सी कैसे नौकर बनती देख रहा हर हिंदुस्तानी। बूंद-बूंद की कीमत देगा हलधर जब सींचेगा पानी।
खूनी रजाई, नेताजी!-डॉ. जसबीर चावला
रजाई में दुबका भी कांप रहा हूं रूह तक हे मेरे मौला, इतनी किसानी मौतों का जिम्मेदार हूं? मानुस, माटी मां की कसम गुनहगार हूं। क्या फायदा पढ़े-लिखे होने का? खोया हुआ एक मत हूं लोकतंत्रमें या अचार हूं? बुला नहीं सकता वापस? हरामखोर को इंपीच करो! मेरी छाती पर ही मूंग दल रहा मेरे भाईयों को छल रहा उनकी चड्डी-पतलूनों से जल रहा! संसद है या राक्षस है? संवेदनहीन, शर्म-शून्य! हे नेताजी! आओ! कहीं आत्मा अगर भटकती हो अकाल-मृत्यु से झापड़ मारो इन काले अंग्रेजों की गाल पर अरे, कांग्रेसी इन काले कानूनों का डर दिखला वोट लेकर हंसते थे लागू नहीं करते थे तुम ने टांग ऊपर रख दी, हलधरों का कबाड़ा कर दिया। सुबह का भूला ही बन शाम तो वापस आ! रात बहुत ठंढी है बंद कमरे की गर्माहट में सुबका भी, महसूस करता हूं खूनी रजाई में दुबका हूं।
हमारे पास खेत हैं-दीप इन्दर
हमारे पास खेत हैं पेड़ हैं चिड़िया है जो सदा रहे और सदा रहेंगे ***** तुम्हारे पास महल है कुर्सी है और कागज़ हैं महल ढह जाएगा कुर्सी टूट जाएगी कागज़ जल जाएंगे और तुम तुम तो कभी भी रद्द कर दिए जाओगे
यह एक कील मुबारक हो !-बोधिसत्व (मुंबई)
एक कील गांधी की छाती पर बधाई हो एक कील राम के माथे पर बधाई हो। एक कील बुद्ध के कंठ में एक कील कृष्ण के तलुवे में एक कील अम्बेडकर की पीठ पर एक कील ईसा की हथेली में एक कील मुहम्मद की कलाई पर एक कील नानक के घुटनों में बधाई हो। एक कील भारत मां के आंखों में एक कील नेहरू की कनपटी पर एक कील सुभाष कंधे पर एक कील पटेल के पेट में एक कील विवेकानंद की वाणी में एक कील भगत सिंह की नाड़ी में मुबारक हो! एक कील अकबर नथुनों में एक कील राणा प्रताप के नाखूनों में एक कील परम हंस की ग्रीवा में एक कील मां शारदा के कपाल में सादर समर्पित है! एक कील सावित्री फुले की खोपड़ी में एक कील रानी झांसी की रीढ़ की हड्डी में! एक कील मेरी आतों में एक कील तुम्हारी जीभ में एक कील संविधान के पृष्ठ पर एक कील नए बिहान की दृष्टि पर बधाई हो! एक कील हमारे कौर में एक कील भीष्म के ठौर में सप्रेम अर्पित! एक कील हम सब को मिले एक कील हमारे उर में अग्नि सम खिले!
समर्पण-डॉ. जसबीर चावला
दिन मालिक है, रात कुत्ती। खोल देता है पट्टा छोड़ देता है खुली। पूछो मत कितने नोंचती सर्द पंजों कितने काटती बर्फीले जबड़ों सुबह तक कितने हलधर लिख जाते जमीन, प्राणों की मसि भारत माता के नाम दस्तखत करते दम तोड़ देते टिके अंगूठे का सबूत-कागज ढही लाश संसद को सौंप बलि बनते काले न्याय-यज्ञ की। (नोट : दिन=पूंजी, कुत्ती=राजनीति)
कोई को दुःख नहीं-डॉ. जसबीर चावला
कोई को दुःख नहीं, किसी ने इस्तीफा नहीं दिया हलधर खेत में न सही, राजधानी-सीमा पर मरा। एक कहे मेरा एरिया नहीं, दूजा कहे मेरा नहीं लाल किला फालतू में झंडे से डरा डरा। जानते बूझते मक्खी कैसे निगल लें हलधर चावला कहता पिस्ता है जो दिखता हरा हरा देश को नाज़ होना चाहिए ऐसी राष्ट्र -भक्ति पर सड़ रही हो लाश और कहे बेहोश है ज़रा ज़रा। धुर्, आप अपना काम कीजिए ना चावला जी अभी नहीं, सुनाऊंगा मौके पर खरा खरा।
मैं कौन हूं-नरेन्द्र कुमार
मैं कौन हूं कुछ पता चलते ही बता दूंगा तुम्हें मैं यह कहने वाला था हाथ पकड़ कर रोका था मैंने खुद को मैं जो होने वाला था डर था या लिहाज बस उस पल तय होने वाला था की मैं पड़ गया दुनिया दारी के कामों में आज जब लगभग काम तमाम होने वाला था तो मुझे याद आया मेरे हाथों पे वही निशान जो आज कल में जाने वाला था मैं किन बातों में पड़ गया हूं मैं कौन से काम पे जाने वाला था पता चलते ही बता दूंगा तुम्हे मैं यह कहने वाला था
बौखला गया है चौकीदार-जोगिंदर आजाद
बौखला गया है चौकीदार । चूर चूर हो गये हैं उसके रंगीन सपने एकछत्र सम्राट बनने के । घेर लिया है उसके अश्वमेघयज्ञ के घोड़े को खेतों के सपूतोंने जो सरपट रौंदता आ रहा था धरती को, जनमानस को । तड़प रहा है चौकीदार तार तार हो गयाहै उसका चक्र व्यू । बेनकाब हो गया उसका षडयंत्र खेतों के सपूतों को खेतों में दफ़न करनेका नर संहार करवाने का । अब वह ताली नहीं बजाता खोखली हंसी हंसता है धार लिये है उसने सफेद वस्त्र जैसे किसी दुष्ट आत्मा ने छल से वध करना हो किसी पुण्य आत्मा का। आग बबूला है चौकीदार खेतों के सपूतों की जननी पर उनके मित्रों, परिजनों, रहबरो, रक्षकों पर दिया है उनको नया नाम '"अन्दोलन जीवी" जो बेखौफ़ पथ प्रदर्शक बन बचा रहे हैं खेतों को, असमतो को, अधिकारों को परजीवी जोको से, खेतों के दुश्मनों से, हिंसक जानवरों से, फसलों पर गिद्ध दृष्टि रखने वाले व्यापारियों से । आग बबूला है चौकीदार । निरंतर फैल रहे अन्दोलन पर, अन्दोलन के पथ प्रदर्शक" अन्दोलन जीवियो "पर । विष घोल रहा है, कर रहा है एक और चक्र व्यू तैयार । निगलना चाहता है तमाम अन्दोलन जीवी; जो सर पर बांधे कफ़न लङ रहे हैं, परजीवियों से, मानवता के दुश्मनों से, अन्ध राष्ट्र वादियों से, हिटलर की औलाद से । बांध लिये है उसके अश्वमेघ यज्ञ के घोङे। तिलमिला रहा है चौकीदार ।
निर्मम हाकिम-जोगिंदर आजाद
राम नाम सत्य है बोलो राम नाम सत्य है कंधों पर उठाए अपने परिजन के शव को गुजर रहे जनाज़े को देख हाथ जोड़ और आँखे बंद कर रूक जाता है हर राही। किस का है यह जनाज़ा? नही मालूम उसका धर्म, जाति, भाषा समुदाय । फिर क्यो नतमस्तक हो जाता है हर राही? सीख है यह हमारे पूर्वजों की, गुरुजनों की, यही चलन है, यही संस्कृति है हमारी । पर कितने निर्मम है हमारे हाकम हर रोज अन्न दाता दे रहे हैं प्राणों की आहुति अपने खेतों को बचाने के लिए हिंसक भेङियो से । पर मेज थपथपा रहे हाकम, खिलखिला रहे हैं भक्त जन। गणतंत्र है यहाँ । महान संस्कृति के उपासकों के उतर रहे हैं नकाब।
हलधर मेल-डॉ. जसबीर चावला
लाखों किसान फंस गए हैं देश भर के गांवों से, खापों-पंचायतों से सड़कों-पटरियों उतर आए हैं इंतज़ारते हलधर मेल खुले प्लेटफार्मों पर जगह-जगह यंत्रणाएं सहते लावारिस यात्रियों-से। कितने स्वर्ग सिधार गए कितने बीबी-बच्चों समेत मजबूर काटने को सर्द रातें। तीन काले कानूनों की घोषणाएं लगातार हो रहीं संसद कल्याणकारी वही दुहरा रही। रद्द नहीं हुई हलधर मेल विलंब से चल रही अनिश्चितकालीन। उन्हें है यकीन। हलधर संभालेंगे संसदीय इंजन संभालेंगे कानूनी गार्ड का डब्बा हलधर मेल चला लायेगा कोई किसान का बेटा। गोट्टा भारतवर्ष के खेतिहर मेहनतकश किसान मजदूर तभी लौटेंगे घर अपने छप्पन ईंची सीना तान भारत माता की जय बोल।
उम्मीद की उपज-गोलेन्द्र पटेल
उठो वत्स! भोर से ही जिंदगी का बोझ ढोना किसान होने की पहली शर्त है धान उगा प्राण उगा मुस्कान उगी पहचान उगी और उग रही उम्मीद की किरण सुबह सुबह हमारे छोटे हो रहे खेत से….!
गाँव से शहर के गोदाम में गेहूँ?-गोलेन्द्र पटेल
गरीबों के पक्ष में बोलने वाला गेहूँ एक दिन गोदाम से कहा ऐसा क्यों होता है कि अक्सर अकेले में अनाज सम्पन्न से पूछता है जो तुम खा रहे हो क्या तुम्हें पता है कि वह किस जमीन का उपज है उसमें किसके श्रम की स्वाद है इतनी ख़ुशबू कहाँ से आई? तुम हो कि ठूँसे जा रहे हो रोटी निःशब्द!
ईर्ष्या की खेती-गोलेन्द्र पटेल
मिट्टी के मिठास को सोख जिद के ज़मीन पर उगी है इच्छाओं के ईख खेत में चुपचाप चेफा छिल रही है चरित्र और चुह रही है ईर्ष्या छिलके पर मक्खियाँ भिनभिना रही हैं और द्वेष देख रहा है मचान से दूर बहुत दूर चरती हुई निंदा की नीलगाय !
उर्वी की ऊर्जा-गोलेन्द्र पटेल
उम्मीद का उत्सव है उक्ति-युक्ति उछल-कूद रही है उपज के ऊपर उर है उर्वर घास के पास बैठी ऊढ़ा उठ कर ऊन बुन रही है उमंग चुह रही है ऊख ओस बटोर रही है उषा उल्का गिरती है उत्तर में अंदर से बाहर आता है अक्षर ऊसर में स्वर उगाने उद्भावना उड़ती है हवा में उर्वी की ऊर्जा उपेक्षित की भरती है उदर उद्देश्य है साफ ऊष्मा देती है उपहार में उजाला अंधेरे से है उम्मीद।।
किसान है क्रोध-गोलेन्द्र पटेल
निंदा की नज़र तेज है इच्छा के विरुद्ध भिनभिना रही हैं बाज़ार की मक्खियाँ अभिमान की आवाज़ है एक दिन स्पर्द्धा के साथ चरित्र चखती है इमली और इमरती का स्वाद द्वेष के दुकान पर और घृणा के घड़े से पीती है पानी गर्व के गिलास में ईर्ष्या अपने इब्न के लिए लेकर खड़ी है राजनीति का रस प्रतिद्वन्द्विता के पथ पर कुढ़न की खेती का किसान है क्रोध !
जवानी का जंग-गोलेन्द्र पटेल
बुरे समय में जिंदगी का कोई पृष्ठ खोल कर उँघते उँघते पढ़ना स्वप्न में जागते रहना है शासक के शान में सुबह से शाम तक संसदीय सड़क पर सांत्वना का सूखा सागौन सिंचना वन में राजनीति का रोना है अंधेरे में जुगनूँ की देह ढोती है रौशनी जानने और पहचानने के बीच बँधी रस्सी पर नयन की नायिका नींद का नृत्य करना नाटक के नाव का नदी से किनारे लगना है फोकस में घड़ी की सूई सुख-दुख पर जाती है बारबार जिद्दी जीत जाता है रण में जवानी का जंग समस्या के सरहद पर खड़े सिपाही समर में लड़ना चाहते हैं पर सेनापति के आदेश पर देखते रहते हैं सफर में उम्र का उतार-चढ़ाव दूरबीन वही है दृश्य बदल रहा है किले की काई संकेत दे रही है कि शहंशाह के कुल का पतन निश्चित है दीवारे ढहेंगी दरबार खाली करो दिल्ली दूह रही है बिसुकी गाय दोपहर में प्रजा का देवता श्रीकृष्ण नाराज हैं कवि के भाँति!
बारिश के मौसम में ओस नहीं आँसू गिरता है-गोलेन्द्र पटेल
एक किसान मूसलाधार बारिश में बायें हाथ में छाता थामे दायें में लाठी मौन जा रहा था मेंड़ पर मेंड़ बिछलहर थी! लड़खड़ाते-सम्भलते... अंततः गिरते ही देखा एक शब्द घास पर पड़ा है उसने उठाया और पीछे खड़े कवि को दे दिया कवि ने शब्द लेकर कविता दिया उसने उस कविता को एक आलोचक को थमा दिया आलोचक ने उसे कहानी कहकर पुनः किसान के पास पहुँचा दिया उसने उस कहानी को एक आचार्य को दिया आचार्य ने निबंध कहकर वापस लौटा दिया अंत में उसने उस निबंध को एक नेता को दिया नेता ने भाषण समझ कर जनता के बीच दिया जनता रो रही है किसान समझ गया यह आकाश से गिरा पूर्वजों की आँसू है जो कभी इसी मेंड़ पर भूख से तड़प कर मरे हैं बारिश के मौसम में ओस नहीं आँसू गिरता है!
ऊख-गोलेन्द्र पटेल
(१) प्रजा को प्रजातंत्र की मशीन में पेरने से रस नहीं रक्त निकलता है साहब रस तो हड्डियों को तोड़ने नसों को निचोड़ने से प्राप्त होता है (२) बार बार कई बार बंजर को जोतने-कोड़ने से ज़मीन हो जाती है उर्वर मिट्टी में धँसी जड़ें श्रम की गंध सोखती हैं खेत में उम्मीदें उपजाती हैं ऊख (३) कोल्हू के बैल होते हैं जब कर्षित किसान तब खाँड़ खाती है दुनिया और आपके दोनों हाथों में होता है गुड़!
जोंक-गोलेन्द्र पटेल
रोपनी जब करते हैं कर्षित किसान; तब रक्त चूसते हैं जोंक! चूहे फसल नहीं चरते फसल चरते हैं साँड और नीलगाय..... चूहे तो बस संग्रह करते हैं गहरे गोदामीय बिल में! टिड्डे पत्तियों के साथ पुरुषार्थ को चाट जाते हैं आपस में युद्ध कर काले कौए मक्का बाजरा बांट खाते हैं! प्यासी धूप पसीना पीती है खेत में जोंक की भाँति! अंत में अक्सर ही कर्ज के कच्चे खट्टे कायफल दिख जाते हैं सिवान के हरे पेड़ पर लटके हुए! इसे ही कभी कभी ढोता है एक किसान सड़क से संसद तक की अपनी उड़ान में!
सावधान-गोलेन्द्र पटेल
हे कृषक! तुम्हारे केंचुओं को काट रहे हैं - "केकड़े" सावधान! ग्रामीण योजनाओं के "गोजरे" चिपक रहे हैं - गाँधी के 'अंतिम गले' सावधान! विकास के "बिच्छुएँ" डंक मार रहे हैं - 'पैरों तले' सावधान! श्रमिक! विश्राम के बिस्तर पर मत सोना डस रहे हैं - "साँप" सावधान! हे कृषका! सुख की छाती पर गिर रही हैं - "छिपकलियाँ" सावधान! श्रम के रस चूस रहे हैं - "भौंरें" सावधान! फिलहाल बदलाव में बदल रहे हैं - "गिरगिट नेतागण" सावधान!
किसान की गुलेल-गोलेन्द्र पटेल
गुलेल है गाँव की गांडीव चीख है शब्दभेदी गोली लक्ष्य है दूर दिल्ली के वृक्ष पर! बाण पकड़ लेता है बाज़ पर विषबोली नहीं गुरु गरुड़ भी मरेंगे देख लेना एक दिन राजनीति के रक्त से बुझेगी ग्रामीण गांडीव की प्यास!
हमारा अन्नदाता-दीपक शर्मा
नित्य टेलीविजन पर हर शाम एक ऐंकर और कुछ प्रवक्ता आते हैं और जोर-जोर से चिल्लाते हैं "किसान हमारे अन्नदाता हैं हम उनका भला करेंगे" भला करने के लिए पक्ष और विपक्ष आपस में लड़ पड़ते हैं झगड़ पड़ते हैं किंतु भला कोई नहीं करता दरअसल वे भला की थाली में गुड़ का स्वाद मिलाकर मीठा जहर देते हैं जिसे अन्नदाता चुपचाप निगल लेते हैं और अपना बहुमुल्य मत नेताओं के झूठे वायदों पर न्योछावर कर देते हैं हमने विचार किया - हमरा अन्नदाता इतना लाचार क्यों है? हमारा अन्नदाता परेशान क्यों है? हमारा अन्नदाता दुःख से बेहाल क्यों है ? हमारे अन्नदाता की परवाह किसको है ? बैलों के पीछे-पीछे चलने वाला हमारा अन्नदाता पूरे देश का पेट भरता है किंतु खुद फटे वस्त्र और टूटे चप्पलों के सहारे अपनी जिंदगी गुजार देता है हल, कुदाल, फावड़ा उनके आभूषण हैं हमारा अन्नदाता जब खेत में पराली जलाता है तो उनके उपर मुकदमे ठोक दिये जाते हैं हक माँगने पर उन्हें खालिस्तानी घोषित कर दिया जाता है सड़क पर निकलता है तो उनके रास्ते में गड्ढे खोद दिये जाते हैं रैलियाँ करता है तो उनके उपर आँसू गैस और पानी की बौछारें की जाती है संसद की ओर देखता है तो कंटीले तार और नुकीले काँटे बिछा दिए जाते हैं उनके आंदोलन को कमजोर करने के लिए विजली पानी सब काट दी जाती है उनके साथ ठंड से ठिठुर रहे बुजुर्ग, महिलाओं और बच्चों की परवाह अब नहीं रही किसी को किंतु सूरज की तेज तपन और पुस की रात का ठंड सहने वाला हमारा अन्नदाता सब कुछ सह लेता है हमारा अन्नदाता खेत में अच्छी फसल के लिए श्रम के साथ खाद, बीज, पानी देने में कोई कसर नहीं छोड़ता प्रकृति की मार को वह सहजता से झेल लेता है सूखा, बाढ़, ओला से बरबाद होती है फसल तो उसे अपना भाग्य समझ लेता है हमारा अन्नदाता बैंक, सेठ, साहूकारों के कर्ज तले हमेशा दबा रहता है वह समय से बच्चों की फीस नहीं भर पाता है बेटी की शादी के लिए पूरी जिंदगी इंतजाम करता है किसी गम्भीर बीमारी पर चौरा माता से ठीक होने की मन्नते कर लेता है हमारा अन्नदाता बहुत गरीब है वह बदहाल और दुःख की स्थिति में हमेशा होता है उनके आँसू किसी को नहीं दिखतें व्याज सहित कर्ज न चुका पाने की जुर्म मे वह आत्महत्या कर लेता है उनकी लाश पर उनके बीबी बच्चों के सिवाय रोती हैं सिर्फ धरती माता उस रुदन को संसद के लाउडस्पीकर की आवाज तले दबाने की पूरजोर कोशिश की जाती है ताकि बाहर न दिख सके अन्नदाता का दुःख। धीरे-धीरे एक तरफ हमारे अन्नदाता पर पूँजीपति और कॉरपोरेट शक्तियाँ हावी होती जा रही हैं तो दूसरी तरफ उन्हें ईश्वर की उपाधि दी जा रही है वह ईश्वर आत्मरक्षा करना जानता है खुद से उन्हें गुलाम बनाने की कोशिश विफल होगी लोकतंत्र की आवाज दबाने में नाकाम होगी सत्ता इस बार क्योंकि सड़क पर हमारे अन्नदाता हैं
होरियों ! सावधान हो जाओ-दीपक शर्मा
देश के होरियों ! सावधान हो जाओ। "फैसला तुम्हारे हित में हुआ है" मन की बात नहीं सुनी तुमने? न्यूनतम समर्थन मूल्य निजी कम्पनियां तय करेंगी अब। तुम्हारे ही खेत में वे जब चाहेंगे चाय उगवायेंगे जब चाहेंगे कॉफी, जूट, मशालें तुम जीओगे उन्हीं की शर्तों पर हुकूमत हमेशा कहती रही "भला होगा तुम्हारा" इस झूठे छलावे में झँसते और फँसते रहे हर बार तुम। राय साहब तो एसी में बैठे हैं वे क्या जाने तुम्हारे खून पसीने की कमाई वे तुम्हारी आत्महत्या को भी देशहित के मापदंड से देखेंगे आय दोगुनी तो दूर अपनी सोना और रूपा की शादी के लिए पैसे भी नही जुटा पाओगे खेती से गोबर से कहो परदेश में ही रहे वो। धनिया मूर्ख नहीं थी जो तुम्हें चापलूसों से हर बार सावधान करती रही। क्या तुम नहीं जानते सरपंच का फैसला सर्वोपरि ही होता रहा है हमेशा सच या झूठ।
नई-पुरानी जमीन का रिकॉर्ड बतानेवाले-वसंत सकरगाए
यादों की भीड़ को चीरता हुआ आज उतर रहा हूँ एक पुरानी याद में अनुवादक मित्र बलवंत जेऊरकर के साथ मैट्रो से उतर रहा हूँ मंडी-हाउस स्टेशन पर और उतरते हुए सोच रहा हूँ कि तिल रखने की जग़ह नहीं कहाँ रखूँगा पाँव ! कि दिल्ली की भीड़भाड़ में बड़ा मुश्किल है अपना पाँव बचाते हुए पाँव रखना मैं मन-ही-मन दिल्लीवासियों से कहता हूँ निकलने भर के लिए मुझे पाँव रखने की जग़ह दीजिए अपने पाँव जमाने मैं नहीं आया हूँ दिल्ली मैं उन राजा-सुल्तानों की तरह नहीं हूँ जिन्होंने कत्लेआम किया और अस्मत लूटी दिल्ली की मैं कोई सत्ताधीश भी नहीं जो संसद और लालाक़िले की प्राचीर से नये-नये वायदे करता है और गुमराह करता है देश की जनता को मैं एक कवि हूँ लौट जाऊँगा कुछ किताब़ें लेकर मंड़ी-हाउस स्टेशन उतरकर हम दोनों मित्रों को जाना है आसफ़ अली रोड़ स्थित एक किताब़ की दूकान पर कि उस दूकान में अब भी हैं कुछ दुर्लभ किताब़ें जिनमें मौजूद है दिन-ब-दिन खोती जा रही हमारी भाषा की बची हुई तमीज और वे तमाम वाक्य विन्यास जो बिखर गये हैं समय के साथ और वे शब्द जो अब कर दिए गये हैं शब्दकोषों से बाहर उन किताब़ों ने बड़े जतन से सहेज रखा है जिन्हें मगर आसफ़ अली रोड के फुटपाथ पर अतिक्रमण है कुछ ऐसे लोगों का जिनका दावा है कि उनके पास सारा रिकॉर्ड मौजूद है नई-पुरानी ज़मीन का इन दावेदारों की भीड़ से बड़ी मशक्क़त के बाद हालाँकि हम पहुँच जाते हैं किताब़ की दूकान पर और खरीद लेते हैं कुछ ज़रूरी किताब़ें लेकिन देख रहा हूँ उस मरियल साईकिल रिक्शेवाले को पता नहीं कितने बरसों से रिक्शा खींच रहा है दिल्ली की सड़कों पर पर हिम्मत नहीं कर पा रहा है इन दावेदारों से अपने हिस्से की नई-पुरानी कोई भी ज़मीन पूछने की पता नहीं कहाँ रहता-सोता होगा वह भिखारी जो शायद कई वर्षों से खड़ा हुआ सिग्नल पर और वे तमाम लोग जो तालाबंदी के दौरान एकाएक दिखे थे दिल्ली की सड़कों पर दिल्ली में जिनकी नहीं थी अपनी कोई ज़मीन बावजूद इसके वे रहते रहे हैं दिल्ली में पता नहीं कितनों के कितने खेत दफ़्न है दिल्ली के विशाल पाँवों के नीचे और कितने किसानों के कितने और खेत दबाने को आमादा है यह दिल्ली !
दौड़ो, ट्रैक्टर दौड़ो !-वसंत सकरगाए
ट्रैक्टर ! आज मुझे ज़रा कोफ़्त नहीं होगी नहीं आएगा गुस्सा तुम पर आज तुम मेरे आगे- आगे दौड़ो आज मुझे नहीं निकलना तुम से आगे आज मुझे कत्तई झुँझ नहीं होगी कि बारदाने से लिपटी तुम्हारी ट्राली ने घेर ली पूरी सड़क दिख नहीं रहा है आगे का रास्ता आज ख़ुद से नहीं कहूँगा, कहाँ का कहाँ फँस गया ट्रैक्टर के पीछे ! आज तुम बेशक़ खाली दौड़ो दौड़ो दिल्ली की सड़कों पर दौड़ो दौड़ो और इतनी तेजी से दौड़ो कि सत्ता की चूलें हिल जाए तुम्हारी धमक से इंक़लाबी तरानों की तरह दुनियाभर में गूँजे तुम्हारी आवाज़ दौड़ो कि आज तुम्हारा दौड़ना बहुत ज़रूरी है दौड़ो, इसलिए दौड़ो कि पूरा देश फँसा हुआ है आँखों से ओझल हो गया है आज़ादी का हर दृश्य दौड़ो कि पूँजीपतियों के दलालों से इस देश का संविधान आज तुम्हें बचाना है आज मुझे सिर्फ़ तुम्हारे दौड़ने का दृश्य देखना है आज मैं चलना चाहता हूँ तुम्हारे पीछे-पीछे!
रोड़ा हटाने के बाद किसान जोत रहा है खेत-वसंत सकरगाए
मैं देख रहा हूँ खेत जोतते हुए किसान को कि अचानक ठिठक गये हैं बैलों के पैर एक बड़ा-सा रोड़ा आ गया है हल के नीचे किसान के हल का फाल अटक गया है फ़िलहाल लेकिन हताश-निराश और न लाचार नहीं हुआ है किसान किसान के हाथों में देख रहा हूँ कुदाल,फावड़ा, और बहुत मजबूत बड़ी-सी रस्सी देख रहा हूँ कि देखते-देखते किसान ने खोद डाली है रोड़े के आसपास की सारी ज़मीन और हिलाकर रख दिया है इस चट्टाननुमा बड़े-से रोड़े का सारा वजूद देख रहा हूँ कि चारों तरफ़ से कसकर बाँधा चुका है खेत के रास्ते में आये रोड़े को और बैल खदेड़ रहे हैं खेत की सरहद से दूर..बहुत दूर! देख रहा हूँ कि किसान पाट रहा है रोड़े के गड्डे को मैं देख रहा हूँ कि खेत से रोड़ा हटाने के बाद किसान जोत रहा है खेत !
दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर विष्णु नागर-वसंत सकरगाए
कैसी है नये साल की यह पहली सुबह ! कि घने कोहरे से ढँकी इस ठिठुरती सुबह ऐनक को बार-बार साफ़ करते हुए विष्णु नागर को जाना पड़ रहा है दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर खड़े हुए हैं विष्णु नागर और वक़्त बता रहे हैं सुबह के पौने आठ बजे का और बता रहे हैं कि अब भी बेहद घना कोहरा है दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर क्या सचमुच इतना घना कोहरा है दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर कि सत्ता को कुछ सूझ नहीं रहा है और क्या इतना भी नहीं सूझ रहा है, कि दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर डेरा डाले हजारों किसान के पास क्यों खड़ा है एक उम्रदराज कवि एक पत्रकार- विष्णु नागर ट्रक के नीचे ट्रक में तम्बू में सो रहे किसानों को देख आख़िर क्यों कहना पड़ रहा है विष्णु नागर को कि मोदी जी एक ऐसे दिन यहाँ सोकर बताएँ कि मोदियों को अंदाज़ा भी हो तकलीफ़ों का ! क्या एक कवि एक ईमानदार पत्रकार ही होता है समाज का कृतज्ञ नागरिक और क्या प्रधानमंत्री सिर्फ़ प्रधानमंत्री होता है आख़िर एक सामान्य नागरिक क्यों नहीं होता प्रधानमंत्री! हमारे समय की यह कैसी विडम्बना है कि घने और बेहद घने कोहरे को चीरते हुए अपने चश्मे को बार-बार साफ़ करते हुए दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर जाना पड़ रहा है विष्णु नागर को !!!
कल-परसों-वसंत सकरगाए
मेरी हथेलियों पर उग आए सरसों तो मेरे इरादों पर ताज्ज़ुब मत करना दोस्तों ! यह वक़्त ही ऐसा है कि किसान के श्रम से नहीं राजनीति के भ्रम से उग रही हैं फ़सलें!
सिंघु बॉर्डर से लाइव-वसंत सकरगाए
मैं टीवी के सामने बैठा हूँ और सिंघु बॉर्डर को जीवंत देख रहा हूँ देख रहा हूँ कि तुम्हारे हर अँधेर को चीरती इस अँधेरी रात के पास कई विकल्प हैं और नये सूरज उगाने के दृढ़ संकल्प कि किसानों के मुँह से उत्सर्जित ऊष्मित भाँप के नारों से धीरे-धीरे छँट रही है कोहरे से ढँकी ठिठुरती सुबह सिंघु बॉर्डर पर ओ हुक़्मरानों! मैं साफ़-साफ़ देख रहा हूँ कि किसी भी किसान के कँधे पर किसी ने नहीं रखी कोई बँदूक तुम्हारे इस मुहावरे के अभिप्राय समझ चुका है पूरा देश और कितना हास्यास्पद है यह एक जुमलेबाज़ के मुँह से बरगलाने, बहकाने जैसे शब्दों को सुनना मैं सिंघु बॉर्डर को जीवंत देख रहा हूँ टीवी पर और क़ामयाब होता देख रहा हूँ कॉपोरेट की गुलामी के खिलाफ़ आज़ाद भारत का "स्वतंत्रता-संग्राम" शहीद हुए किसानों को सत् सत् प्रणाम!
जिस किसान की फसल-कवि स्वप्निल श्रीवास्तव
जिस किसान की फसल बर्बाद हो गयी हो उस किसान का रोना कभी आपने देखा है ? क्या आपने देखी है उस आततायी की हंसी जो दमन की कार्यवाही के बाद अपनी जीत का जश्न मना रहा है ? क्या आपने उन कातिल बिदूषको को देखा है जो हंसने के लिए हमें उत्तेजित करते रहते है ? क्या आपने देखा है वह समय जिसमे झूठ बोलने वालों की ताकत सच बोलनेवालों से ज्यादा बढ़ गयी है ? क्या आप इन प्रहसनों के नायकों से परिचित है जो अपने मनोरंजन के लिये हमें दर्शक बनाते रहते है ? ये हमारे समय के प्रश्नवाचक वाक्य हैं जिसके जबाब भविष्य में छिपे हुए हैं ।
मेरे पिता किसान थे-कवि स्वप्निल श्रीवास्तव
मेरे पिता किसान थे जब वे कंधे पर हल लिए चलते थे तो मुझे उन सैनिकों की याद आती थी जो अपने कंधे पर इसी शान के साथ बंदूकें रखे हुए सीमांत पर क़वायद करते है मैं गौरव से भर जाता था पिता अनाज की रखवाली करते थे और सैनिक सीमा की रक्षा के लिए तैनात होते थे पिता और सैनिक दोनों एक साथ याद आते थे दोनों जमीन के लिए जान देने को तत्पर थे पिता मुझे बताते थे कि सब कुछ चला जाय लेकिन जमीन को हाथ से न जाने देना यह जमीन नही तुम्हारी जन्मभूमि है जिसकी धूल से तुम पैदा हुए हो पिता सूत्रों में बात करते हुए कहते थे जो अपनी जमीन नही बचा सकता उसे जमीन पर रहने का कोई हक़ नही है ज़मीन पर रहकर ही आसमान के सपने देखे जा सकते है यही बात दिल्ली की सरहद पर आंदोलन करते हुए किसान याद दिलाते है
किसान-श्रीप्रकाश शुक्ल
न उसका कोई रूप है न उसकी कोई जाति न उसका कोई घर है न उसकी कोई पाति आकाश उसकी छत है मौसम उसका आभूषण हत्या उसका बचपन है आत्महत्या उसकी जवानी जिसे आप बुढ़ापा कहते हैं वह है उसकी आज़ादी जिसे ढहने के पहले उसने सुरक्षित कर लिया है धरती के नीचे अपने रकबे में। रचनाकाल : 12.01.2008 ("ओरहन और अन्य कविताएं" से)
हम अन्नदाता कहेंगे तुम्हें-प्रोफेसर चंद्रेश्वर
पुरानी बात है हम कवच-कुंडल के साथ ही उतरवा लेते हैं वक्ष की त्वचा भी कभी आवश्यक हुआ तो माँग लेते हैं तुमसे तुम्हारी देह की समूची हड्डियाँ अवसर आने पर अपने सुरक्षित वर्तमान और भविष्य के लिए हत्या भी ज़ायज है हमारे लिए किसी निर्दोष की हम अन्नदाता कहेंगे तुम्हें और तुम आत्महत्या के लिए होगे विवश हमें गर्व है अपनी पुरानी बातों पर अगर सीखना ही है तो तुम सीखो हमसे केवल गर्व करना !
किसान-रेनू
"किसान" सड़कों का किनारा लेकर खड़ा हुआ था फावड़े उठाये मिट्टी पर हर बार वार करता था उसड़-खाबड मिट्टी को समतल बनाये अब छाये का आसरा लिये दिन रात फिरता था मेहनत मजदूरी करके बस पेट वो भरता था तम्बू ताने वस्त्र से वो धूप मिटाता था बारिश की हर बूँद वो खुद सोख लेता था भूख की आग तपती दोपहरी से और जल जाता था पानी के विश्वास से ही बस प्यास बुझाता था नहीं मिलता तो हारकर आँसओं की बूँद का सहारा लिये वक्त हँसकर गुजारते हुये उसें घूँट-घूट कर पीता और कहता था क्या यहीं है मेरी जिंदगी का अन्तिम किनारा ? (शोधार्थी हिंदी विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय)
किसान-प्रोफेसर शशिकला त्रिपाठी
जिसके लिए जमीन रोटी, कपड़ा और मकान वह है किसान। कहलाता है अन्नदाता लेकिन, नहीं भर पाता स्वयं का भी पेट। तो भी उसका जमीन से जुड़ाव नाभिनाल सा गहरा जमीन पर होकर वह देखता है नभ में धान, गेहूँ, बाजरा। अदम्य लालसा से बो कर बीज करता है श्रम अनथक कोडाई, जोताई,और सिंचाई। आँखे आह्लादित होकर देखना चाहती हैं लहलहाते फसलों को हो सके वर्ष भर का प्रबंध। उसके लिए सर्वस्व है जमीन जिसके रक्षण हेतु अर्जुन बन करता है वह धर्मयुद्ध और सूखती है जमीन पर रिश्तों की तरलता। कलयुग में प्रकट नहीं होते कृष्ण दबोचा जाता है शिकारियों के जाल में तडपते, छटपटाते हुए होता है अंत सुला दिया जाता है उसे उसकी ही जमीन पर सदा- सदा के लिए।
सरकारी बसंत-सीमांकन यादव
सुना है बसंत चल रहा है! लेकिन, कहाँ? किसान के खेतों में? या बेरोज़गार हाथों में? या महँगाई की दुनिया में? या ये कहें कि बसंत का निजीकरण हो गया है, अब वह चल रहा है सरकारी आदेश में, पूँजीपतियों के इशारे पर!
मिट्टी का स्वाद-सुरेन्द्र प्रजापति
खेत में लहलहा रहा है उम्मीदों का फसल स्वप्नों की सोंधी खुश्बू हृदय का मिठास अभी-अभी घने कुहरे से मचल कर निकली है धुप माघ का कनकनी लिए शीतल पवन का रूप घास काटती स्त्री अपने अल्हड़ गीतों में फूँक रही है साँस आशा का उर्वरक मिट्टी को तोड़कर ला रहा है कुबेर का धन किसान के पुरखे देख रहे हैं पदचिन्हों में गड़ा श्रम ढूंढ रहे हैं मिट्टी का स्वाद
क्या तुम सही कर रहे हो?-अरविन्द कालमा
देश के असली कर्णधार हैं किसान लाठियों के वार से पड़े उनपे निशान सियासत के चक्कर में क्यों मर रहे हो जरा सोचो, क्या तुम सही कर रहे हो।। जो अपनी मेहनत के दम पर हैं खड़े तुम फ़ालतू में उनके पीछे क्यों पड़े क्या किसानों से तुम सच में डर रहे हो जरा सोचो, क्या तुम सही कर रहे हो।। तुम सच में सत्ता की हो भीगी बिल्ली तभी रोक रहे हो उन्हें आने से दिल्ली क्यों किसानों को पकड़कर धर रहे हो जरा सोचो, क्या तुम सही कर रहे हो।। सुनलो सत्ताधारियों धरती पुत्र की पुकार डोल उठेगा सिंहासन जब भरेगा वो हुंकार सत्ता की लोलुपता में क्यों मर रहे हो जरा सोचो, क्या तुम सही कर रहे हो।। चुनाव में किसानों को हिन्दू बना देते हो जब हक मांगे तब खाली बिंदु बना लेते हो तुम इतना सब नाटक क्यों कर रहे हो जरा सोचो, क्या तुम सही कर रहे हो।। पुलिस भी तुम्हारी सत्ता भी है तुम्हारी किसानों पर नहीं चलेगी मर्जी तुम्हारी अरे ओ राजनीति की नपुंसक औलाद जरा सुनले किसान है असली फौलाद।। मांग रहे हैं किसान अपने वाजिब दाम तुम क्या जानो कितना करते वो काम तुम्हें पता है अपना पेट कैसे भर रहे हो जरा सोचो, क्या तुम सही कर रहे हो।। जय जवान जय किसान के नारे लगाते हो जब वो आंदोलन करे तब उन्हें भगाते हो तुम डरपोक हो जो किसानों से डर रहे हो जरा सोचो, क्या तुम सही कर रहे हो।। भादरुणा (साँचोर) राजस्थान
हलधर-परचम-डॉ. जसबीर चावला
हलधर! तेरे निशान साहब झुलाने से लाल किला गुरुद्वारा बन जायेगा? करोना की मार खाते गरीब-गुरबा खातिर लंगर लग जायेगा? कितना भोला है रे! डालमिया की पूंजी है अब मुगलिया सल्तनत की बुलंदी का निशान उस पर तिरंगा नहीं, क्वालीटी (क्यू) का झंडा फहरायेगा! थी, है और रहेगी भी एम एस पी कानून बन जायेगा पहले करोना से बच, तभी हलधर हुंकार का परचम फहरायेगा।
हलधरों का अमृत-महोत्सव-डॉ. जसबीर चावला
आज़ादी का अमृत -महोत्सव हृलधर भी मनायें कैसे-कैसे क्रमवार शोषण हुआ, बतायें। कैसे धरती का विनाश हुआ, आंकड़े सुनायें। कैसे उनकी पीठ पर बोझा लदता गया दर्शायें। उर्वरकों के दावों ने घावों से भर दिया पूंजी-कीटों ने ऊपर से छिड़के नमक बैंकों के ब्याजों ने चटाये ज़हर मंडी-दलालों ने ढाये कहर वोट-लुटेरे बांटें नशे घर-घर किसानों की पगड़ी ले भागें शहर कैसे मजबूरियां फांस बनीं गरदन में संसदीय भार-तले दुहरी कमर। जगह-जगह घूम बेबसी के ग्राफ दिखायें पावर-प्वायंट पर हलधर ह्रास-यात्रा समझायें। चलें १९०६ के काले कानूनों की मिट्टी ले गांवों की राह डांडी तक जायें ७५ सालों का हलधर अमृत महोत्सव मनायें।
आकर राजधानी के तट पर-डॉ. जसबीर चावला
आकर राजधानी के तट पर हलधर ने ललकारा है दूर हटो,दूर हटो ऐ पूंजी बहादुर! हिंदुस्तान हमारा है। खून चूसने वाले गोरे कैसे कह दें छोड़ गये अपने ही बनियों ने अपने ही लोगों को मारा है। खून-पसीना एक करे जो मेहनत की रोटी खाये दूध उसी में, दूजे का हक,रक्त की हिंसक धारा है। जनता की इज्जत-दौलत जो सरेआम नीलाम करे पूंजी की बेशर्मी का अब खेल न होगा नारा है। जिस धरती का खाये पापी उसी अन्न में छेद करे ऐसा भक्त न हिन्दू होगा, कृषकों का हत्यारा है।
तू खेती आंसुओं की कर-राम नारायण मीणा 'हलधर'
तू खेती आंसुओं की कर उन्हें क्या फ़र्क पड़ता है जिए तो जी मरे तो मर उन्हें क्या फ़र्क पड़ता है उन्हें पटरी बिछानी है उन्हें सड़कें बनानी हैं तेरी खेती छिने या घर उन्हें क्या फ़र्क पड़ता है भले ही ख़ून से लिख दे तू अपने दर्द की गाथा समंदर आंसुओं से भर उन्हें क्या फ़र्क पड़ता है लटक जा पेड़ पे चाहे कुएं में डूब के मर जा सुसाइड मंडियों में कर उन्हें क्या फ़र्क पड़ता है तुझे सूखा निगल जाए या फिर सैलाब खा जाए गिरे बिजली भले तुम पर उन्हें क्या फ़र्क पड़ता है उन्हें हर काम में रिश्वत मुनाफ़ा चाहिए 'हलधर' ख़ुदा से तू डरे तो डर उन्हें क्या फ़र्क पड़ता है
अश्रुज्वाला-डा-एनुगु नरसिंहा रेड्डी
मूल तेलुगु, हिन्दी अनुवाद : डा-सुमनलता रुद्रावझला आँसू! कितने स्वच्छ अमृत से सींच कर तेरी आँखों में सजाया होगा रब ने ! रासायनिक गन्दगी से रख कर दूर, कितनी हिफाजत से तुमने उन्हें सहेज रखा ! बाबोजी! तुम केवल एक जाट नहीं हो मात्र एक मानव नहीं बल्कि,नेक सोच के सत्य वचन के सत्य का ही आचरण करने वाले औसतन,डेढ़ औसत के सचमुच किसान हो! तेरे दिल की धक-धक तेलंगाणे तक सुनने में आ रही है। तेरी आँखों से उमडे जल प्लावन ने दिल्ली के षडयंत्रों को साफ कर डाला! हे कृषक राकेश तिकायत ! अब घाजीपुर पूरब और पश्चिम में ही नहीं दक्षिण से उत्तर तक अनवरत पसरने का आयुध बन पडा तुम्हारे दुःख का वह जल सोत ! काले कानूनों पर सवार हो जुलूस में निकले आर्य गणों को अब काले और सफेद के बीच खडा कर देने वाला है ! उस्ताद कह फिरते दलों ने जो नहीं किया, तुम्हारे अश्रु बिन्दु ने कर दिखाया! स्वीकारो कृषक महान्! अपने हृदय को ही अक्षर बनाकर समर्पित एक तेलुगु कवि का नमन!!
यह भारत किस राह पर चल पड़ा है-डॉ. जसबीर चावला
यह भारत किस राह पर चल पड़ा है माता को बेच देने पर अड़ा है कहता जय है करता हार की है किस चिकनी मिट्टी का घड़ा है किस पट्टी, किस मंदिर, किस गुरु कुल ऐसी शिक्षा किस आचार्य से पढ़ा है फरसा उठाया है परशुराम का अपने पैरों चलाने को खड़ा है अपने हलधरों का नाश चाहता शर्म में हर भारतीय गड़ा है।
किसान की चाह-डॉ. जसबीर चावला
खालिस्तानी पूरे देश में फैल गये हैं जगह-जगह किसानों के रूप धर लिये हैं। हिंसा नहीं करते, न कहते, न सोचते सत्याग्रही सच्चे हलधर बन गये हैं। हक मांगते, काले कानून रद्द मांगते जिंदा रहने को सच मांगते तिरंगे का अपमान नहीं, पल-पल चूमते अपने शहीद बेटों का ध्वज मांगते लाल किले निशान साहब फहरा मांगते संसद से सड़क तक शोषण-मुक्त भारत निष्पक्ष चुनाव की राह मांगते।
अपने अपने दुःख हैं अपने ही सहने हैं-डॉ. जसबीर चावला
अपने अपने दुःख हैं अपने ही सहने हैं अपने ही अपनों के दुश्मन क्या कहने हैं किस्मत को क्यों दोष दे रहे हलधर राजा पूंजी के घर मेहनत के बल ही ढहने हैं। काले हों कानून तो कोई कर्म करे क्या किरसानी का काम कमीशन के गहने हैं। मीठे नारे कड़वे हैं कानून बनाते ऊपर चोला सांसद साधु का पहने हैं। कितने दौर और, और कितने अच्छे दिन न पहले थे, न अब ही हैं, न रहने हैं।
हर चौराहा काला कानून वापस चाहता है-डॉ. जसबीर चावला
हर चौराहा काला कानून वापस चाहता है वह शहर का शहर बेचना चाहता है। हर खेत सत्याग्रही बन खड़ा है वह गांव का गांव रेहन चाहता है। हलधर को सट्टा खेलना नहीं पसंद वह हर मंडी स्टाक एक्सचेंज चाहता है। दो गज दूरी सुलझाई किसानों ने उन्हीं की मिट्टी दफन चाहता है। थाली बजाई खुशहाली की खातिर थाली की रोटी छिने, चाहता है उन्हीं हलधरों का दमन चाहता है सींचेंगे खूं से जो वतन चाहता है।
राजधानी की सरहदों पर कैद हुए हैं-डॉ. जसबीर चावला
राजधानी की सरहदों पर कैद हुए हैं काले कानूनों में अवैध हुए हैं हलधर इस रोग की दवा खुद हैं संसदीय बीमारों के वैद हुए हैं हल जोतने से ही निकलेगी पृथ्वी-पुत्री जनकराज के बाल सुफैद हुए हैं देश छुड़ाना है चंगेज़ी पंजों से हर गांव हलधर मुस्तैद हुए हैं। रद्द होंगे तीनों कानून काले क़ातिल किसानों के कैद हुए हैं।
आज एक लंबी सैर का इरादा लेकर निकला हूं-डॉ. जसबीर चावला
आज एक लंबी सैर का इरादा लेकर निकला हूं पहले से भी ज़्यादा हौसला लेकर निकला हूं। फांसी पर लटकना कोई बच्चों का खेल तो है नहीं काले कानून रद्द करवाने का प्रण लेकर ही निकला हूं। हलधर हूं ट्रैक्टर नहीं कि बिना डीज़ल चल न सकूं खालिस्तानी हूं, देशद्रोही नहीं, कि किसानों की मौत पर दहल न सकूं। मां बेचकर रोम का श्रृंगार कोई समझाये हलधर कैसे कर लें धरती बंजर करने वाले विलायती बीजों पर एतबार कैसे कर लें? मुल्क की हिफाजत के लिए चारों बेटे फौज को दिये अब सांसें इतनी बिकाऊ भी नहीं कि अपनी मिट्टी में न मिल सकूं मुंहबोली कीमत से फसल लूटने वालों संग काग़ज़ कैसे कर लें दाने-दाने तरसें मजूरे जान-बूझ सौदा कैसे कर लें? हलधर हूं भारत भूमि का गिद्धों से इसे बचाने निकला हूं काले कानून रद्द करवाने कफ़न सर बांध कर निकला हूं।
काला धन जो बाहर पड़ा है-डॉ. जसबीर चावला
काला धन जो बाहर पड़ा है खूं-ए-हलधर चूसा हुआ है। कर्ज़ माफी कुबेरों ने खाई हलधरों से तो धोखा हुआ है। पसीने को कीमत न मिलती मालामाल दलाल हुआ है। सब्ज़ बाग दिखाते रहे हैं फसलों से काला हुआ है। आज सांसों पे डाका पड़ा है मरता हद जा डटा हुआ है।
किसानों के समर्थन में-डॉ. जसबीर चावला
किसानों के समर्थन में हर चौराहे झंडे लेकर खड़े हैं सभी कहते कृषि कानून काले, वे कहें इनके फायदे बड़े हैं। फायदे बड़े हैं पर किसको यह तो देखते ही नहीं अपनी जाति बिरादरी के चंद हैं बाकी सबको डाके पड़े हैं। डाके पड़े हैं जो नौकरीपेशा कच्चे और रोज़ कमाते खाते हैं बेरोजगार शिक्षक तो पहले ही थे आज भूखे तड़पे हैं भूख से तड़पे हैं ऊपर से सरकारी वादों झूठों का कोई अंत ही नहीं एक चुनाव से दूसरे चुनाव तक टलते नियुक्ति पत्र रद्द गड़े हैं। रद्द गड़े हैं क्योंकि अदालतों में सुनवाई सिर्फ सरकार के पक्ष में है विपक्ष ताबूत बंद हलधर हुंकारते मीडिया पूंजी के स्वार्थी धड़े हैं।
जितना धूप में है उतना उजाला-डॉ. जसबीर चावला
जितना धूप में है उतना उजाला किसी और में है? जितना हलधर में है, उतना हौसला किसी और में है? जितना संतोष के साथ है, उतना सुख किसी और के साथ है? जितना किसान के साथ है, उतना धोखा किसी और के साथ है?
दुई कर हलधर जोरि के-डॉ. जसबीर चावला
दुई कर हलधर जोरि के, भणत माथ निवाय। भारत माता के सबब, देहु त्रिफॉस हटाय।। हौसला ही तुम्हारा टूल किट है, हौसला ही शान इतिहास रचने वाले हलधर, तू देश भक्त महान। पगड़ी बिकी तो क्या हुआ, साबुत अभी जमीर। भारत माता के सबब, हलधर धरे सरीर।।
देते रहे जो दे रहे देते भी रहेंगे-डॉ. जसबीर चावला
देते रहे जो दे रहे देते भी रहेंगे धो लो वही खा लो हिंद के हलधर हो, धोखा नहीं पालो। धोखे से ही चलता रहा गणतंत्र देश में पूंजी से प्यार करता बशर भगवे वेश में कानून से क्या काम तुम्हें, जान बचा लो हिंद के हलधर हो धोखा नहीं पालो। घर छोड़कर आ बैठे हो दिल्ली को घेरकर हर विंदु पर हम बात करें मुँह फेरकर टेढी नज़र से शनि की नस्ल बचा लो हिंद के हलधर हो धोखा नही पालो।
जहाँ सवाल पूछने के भी पैसे लगते हैं-डॉ. जसबीर चावला
जहाँ सवाल पूछने के भी पैसे लगते हैं वैसे कुएं में कौन लोग रहते हैं? पहले अदालतें ही कारखाना थीं अब संसद में भी झूठ बना करते हैं। देवों को कभी बहुत प्रिय था यह देश अब तो दानव भी रुकने से डरते हैं। दलालों धोखेबाजों की बनी ऐशगाह मेहनत मजूरे यहाँ लाशें बने फिरते हैं। दुनिया के बवाल सह अन्न उपजाये जो जसबीर हलधर को मवाली यहाँ कहते हैं।
संसद का बोझ किसानों के सर-डॉ. जसबीर चावला
संसद का बोझ किसानों के सर पेंशन पा नेता हुआ है अमर। हरसूं उनकी तस्वीर देखिए अल्लाह भी छुपता रहे डर डर। निगाहों से मेरी अगर देखते हुस्न के जादू का होता है असर। हलधर का दिल न दुखाते अगर वबा का कभी ना बरसता कहर। दो गज की दूरी भी क्या फासला कोरोना फलक पर ही जाता ठहर। थालियां पीटता देश तेरे साथ था मौके को फायदे घुसाए ख॔जर। पास कराए तीन काले कानून पीटने को छाती लगाए हलधर।
हलधरों ने व्हिप जारी किया-डॉ. जसबीर चावला
हलधरों ने व्हिप जारी किया तो पेगासस बाहर आया है वही बतायेगा किस देश द्रोही ने चाबुक चलाया है। ऐसे नक्सली दिमाग की संसद भर्त्सना करती है अंग्रेज़ों ने भी ऐसों को तोपों के मुंह बांध उड़ाया है। कलम का रंग लाल है मतलब लाल ही लिखेगा सरकार ने इस तरह का विज्ञापन जनता में फैलाया है। किसानों को कैमरों की निगरानी में रख दिया और बिना बहस काले कानूनों को पारित कराया है। झूठों के सारे रिकार्ड तोड़ डाले हैं सत्ता ने मंत्रियों के भत्तों ने जसबीर तक को ललचाया है।
यह दर्द क्यूं किस बात का है-डॉ. जसबीर चावला
यह दर्द क्यूं किस बात का है रोना धोना गर हालात का है ठिठुरता जो मर गया हलधर रहा पूछिए मत शहीद किस जात का है पार करता गोली खा राजधानी सीमा सत्याग्रही भूमि प्रेमी जात का है आँसू गोले तोप पानी सर्दियां सिंघु बॉर्डर डर अब हिम पात का है देश पिसता दोनों पाटों वजन सारा संसदीय सेवकों के घात का है उनकी पूंछें हिल रही हैं माल खाते यहाँ मसला रोजी रोटी भात का है
आकाश बांट दिया खांचों में-डॉ. जसबीर चावला
आकाश बांट दिया खांचों में हकीकत उलझ गई जांचों में रब ने तो एक ही बनाई थी ढल गई जुदा जुदा सांचों में मै मोमिन की या मवाली की नाचती एक सी कांचों में नालियाँ पन्नियों पाट डालीं कचरों के ढूह कई ढांचों में सुराज गाँव गाँव पंचायत युधिष्ठिर एक नहीं पाँचों में उबाल किस तरह आए जसबीर ताप ठंढा पड़ा जब आँचों में
हम अपने घरों को जलता हुआ पाते हैं-डॉ. जसबीर चावला
हम अपने घरों को जलता हुआ पाते हैं इस तरह वे अपने घर ठंढ पहुँचाते हैं। हमारे टिकाणे तवों से तप रहे वे इसे वातानुकूलन बताते हैं। चुन चुन के हममें से पोसे है मालिक परों में प्यारे पैगाम छुपाते हैं। स्थायी घरों की उनको जरूरत खानाबदोशी हमारी हटाते हैं। सत्ता के भूखे आपस में लड़ लें हमारे बच्चे क्यों लड़वाते हैं। उन्होंने डराया है हम तो नहीं डरते मरेंगे वही जो शहीद लिखे जाते हैं। यकीं है हलधर को अपनी वफा पर कानून काले वापस हो जाते हैं।
इंदिरा इज़ इंडिया कहने वाले भी थे इस देश में-डॉ. जसबीर चावला
इंदिरा इज़ इंडिया कहने वाले भी थे इस देश में जैसे अंबानी अडाणी ही भारत करने वाले आज हैं। वे भी संसद की कुर्सी खातिर चिपक चाटते थे ये भी सत्ता में बने रहने को उनके मोहताज हैं। मजूर किसान गरीब पिछड़ों के बारे न सोचा न सोचेंगे सबके अपने अपने नाटक करने के अन्दाज हैं। अपने परिवार जाति प्रांत मंडली के घर भरने की धुन है आज भी टुकड़े टुकड़े है भारत बाकी सब अल्फाज हैं। कोरे नारों दर्जनों योजनाओं के पीछे महज़ विज्ञापन मैं मैं करते स्वार्थसाधू ठग धोखेबाज हैं। जनता को मुक्ति के लिये साथ देना होगा हलधर का सड़कों पर खोलते गद्दार मंत्रियों के राज़ हैं।
आज़ादी के महोत्सव में हलधर ने-डॉ. जसबीर चावला
आज़ादी के महोत्सव में हलधर ने प्रजातंत्र को समझा अपनी लाठी से ही अपने सिर कैसे फुड़वाते इस तंत्र मंत्र को समझा। कुर्सी किस तरह नौकरशाहों के मुँह पूँजी की जुबान बोलती टूटी बांह का दर्द झेलते आकाश वाणी से मन की बात को समझा। मेहनत से कमाई नहीं मेहनत से दलाली करो तो बेहतर मुल्क में चलते चोर सिपाहीराजाम॔त्री के खेल को समझा। वादों का लालच दे वोट लूटने आती बिचौलियों की टोली खूनपसीना हक मेहनतकश का चूसनेवाली पद्धति को समझा। दिल्ली में एक नाट्य गृह एक रंगमंच पर खेला होच्छे आजादी के 75 बीते तब जाकर हलधर ने इस प्रजातंत्र को समझा।
अपने प्यारे देश वासियों को-डॉ. जसबीर चावला
अपने प्यारे देश वासियों को काले नहीं प्यारे कानून दो आय दुगुनी चाहे मत करना रोज़गार दोनों जून दो। बेचारे भोले हैं बातों में आ जाते हैं चिकनी चुपड़ी इसका यह मतलब नहीं अंगूठा लगवाए वोट ले भून दो। यह काम तालिबानों का है कहते हो, फिर तुम ऐसे क्यों हो मर रहे देश वासियों को ऑक्सीजन दो, अपना खून दो। उल्टा तुम दस बीस बढ़ाकर उड़ाते हो उनके दर्द का मज़ाक सस्ते कर्जों के झांसे दे ज़मीनें हड़पने का खेला अब रहण दो । बहुत हो चुका राष्ट्र भक्तो पूंजी प्रेमियो सांसद व्यापारियो हलधरो, मुल्क चिपकी जोंकें छुड़ाने वाला लूण दो।
बड़ी मुश्किल से सहर आई है-डॉ. जसबीर चावला
बड़ी मुश्किल से सहर आई है क्या हुआ जो आज धुंध छाई है। रात भर दर्द में तड़पता ही रहा पौ फटी तब आँख जुड़ पाई है। चाक दामन बिलखता रहा दर दर लैला की नज़र अब शरमाई है। ये अशआर डूब कर पढ़ना इनमें दुनिया की गहराई है। माफी मांग शर्मिंदा मत करना हलधर ने खासी कीमत चुकाई है।
कच्चा भी खोलेंगे पक्का भी खोलेंगे-डॉ. जसबीर चावला
कच्चा भी खोलेंगे पक्का भी खोलेंगे नेताओ तुम्हारे सारे चिट्ठे खोलेंगे। कितने अपराध और दो नंबरी धंधे किस तरह काला धन जुटाया बोलेंगे। जनता का खा जनता से ही दगाबाजी चट्टे बट्टे एक ही थैली के बराबर तोलेंगे। नशाबंदी कह नकली शराब का माफिया हत्यारों को कुर्सी दे अपने पाप धो लेंगे। यही है हकीकत जाली राष्ट्र भक्ति की हलधर पहले मर लें घड़ियाली रोलेंगे।
हलधर स्तुति-डॉ. जसबीर चावला
हलधर, तुम कर्मधारय (कर्मधारी) समास हो बहुब्रीहि तो हो ही । बलभद्र के पर्याय हो भद्रता पूर्वक बल प्रयोग करने वाले बल के राम हो, बल में राम हो। पता नहीं, तुम्हें पता है कि नहीं याद दिलाऊं शाप-वश भूली शक्ति? वैसे शेषनाग के अवतार हो जिस के फनों पर टिका सृष्टि का भार हो वही शेषनाग, क्षीरसागर में जिस पर विष्णु अर्धांगिनी लक्ष्मी संग सवार हो। यानि जो पालन कर्ता ब्रह्मांड का और जिस माया से चलती सारी दुनिया दोनों को अपनी देह-शय्या पर सुखासन देते धूप-बारिश-ओलों से बचाने को सहस्र फणों की छाया का प्रसार हो। वही शेषनाग जो प्रभु राम का सहोदर बन करता मेघ नादों का संहार हो लक्ष्मण बन पृथ्वी माता की राखी करते रेखा बन योगी-भेखी रावणों का रोकते दुराचार हो। धन्य हो हलधर! तुम्हारी क्यों न जय-जयकार हो? निर्विघ्न काज कराने वाले देव से पहले चहुंलोक तुम्हारा सत्कार हो।
पूंजी की लाठी मेहनत के सर-डॉ. जसबीर चावला
पूंजी की लाठी मेहनत के सर हलधर शहीद मजदूर अमर। चाणक्य अर्थ शास्त्री कूटनीतिज्ञ बनते कौटिल्य लट्ठ भांजकर। टुकड़े टुकड़े करने अखण्ड भारत आये देश प्रेमी जय माता बोलकर। अमृत आजादी के साल पचहत्तर मनायें किसानों के सर कुचल कर। सत्ता के मद में अंधे हो गये सुन लो देश वासियो कान खोलकर। अंबानी अडाणी का पांच ट्रिलियन विदेशों से काला धन देश बेच कर। चांदी का जूता कुर्सी के सर मुंह मिट्ठू मीडिया झूठ पुरखतर।
हे हलधर, हमारी उलझन समझो-डॉ. जसबीर चावला
हे हलधर, हमारी उलझन समझो हम सम्मान करते हैं तुम्हारे धर्म का, कर्म का सलाम करते हैं तुम्हारी मेहनत को, त्याग को हमारी श्रद्धा लो, वंदना लो पर तुम मात्र एक कड़ी हो अर्थ व्यव्स्था में एक सीढ़ी मात्र हो पूंजी के ढांचे में तुमको सहना ही होगा संसद का भार खाना ही होगा लेकर उधार चुकाना ही होगा खा खा मार पेट हो भरा तो कैसे करोगे आत्म हत्या खुशहाल होओगे तो तंत्र जायेगा चरमरा । सिक्खी सरूप को देखें कि पूंजी की धूप को देखें? तुम्हें बचायें और खुद को दें गला? कैसे होगा? कुर्सी के मंसूबों में बाधा जो बनोगे तोप के मुंह बांध देंगे उड़ा। उसी को तुम्हारी ही जीत कहेंगे महान हलधर शहीद की तस्वीर पर सारे सांसद देंगे फूल चढ़ा।
एक गुजराती ने एक कर दिया था-डॉ. जसबीर चावला
एक गुजराती ने एक कर दिया था सारी छोटी छोटी रियासतों को मिला एक और गुजराती एक एक कर देगा छोटे छोटे गणतंत्रों में अलग-थलग निन्यानबे साल की लीज़ पर लिया था पचहत्तर में वापस कर देगा टुकड़े टुकड़े भारत हलधर छप्पन इंची छातियां ले आगे डट जायेंगे खैला होबे खेला करते टायरों तले रौंद दिया जायेगा भारत । बाप सत्ता के, बेटा ड्रग के नशे में धुत्त था किसान कुत्तों को खालिस्तानी कह रगड़ दिया। बाप को नहीं, बेटे को बनाओ होम मिनिस्टर वह ठीक दरड़ सकेगा छोटी जातों को टायरों से रगड़ कर। वे उच्च वर्णी हैं भारतीय संस्कृति की धरोहर बाकी मवाली, उनसे कैसे होगा विश्व गुरू भारत उठेंगे बढ़ेंगे हासिल कर के रहेंगे रौंदकर अपने प्यारे देश वासी करेंगे टुकड़े टुकड़े भारत।
घोर गलत हुआ है-डॉ. जसबीर चावला
घोर गलत हुआ है, तभी विपक्षी पहुंच रहे खीरी वर्ना तुम्हारे जश्नों में कोई जाता है? जब शाखा लगाते, बौद्धिक करते विरोधी खेमे से कोई आता है? तो आँखें क्यों नहीं खुल रहीं? घोर गलत हुआ है, अनर्थ हुआ है द्रोपदी-सुभद्रा नहीं भारत माता रो रही है कौरवी कपूतों ने अहंकार में अंधे हो हलधर अभिमन्यु का वध किया है निहत्थे किसानों को पीछे से तेज गति थार से रौंद दिया है तीरों की शय्या पर लेटे भारतीय प्रजातंत्र का हृदय छलनी हो गया है। किसानों को टायरों से कुचलने वाले, अरे जयद्रथ! छुपकर अमरीका भाग जा पाताल अगर जान प्यारी हो, मोह हो तो आज नहीं तो कल वर्ना कृष्ण का उद्घोष होगा देख हलधर, उठा ट्रैक्टर! सूरज अभी अस्त नहीं हुआ है। अनर्थ हुआ है।
सांसद और विधायक क्या कर रहे हैं?-डॉ. जसबीर चावला
सांसद और विधायक क्या कर रहे हैं? क्यों मूक दर्शक बने हैं किसानों की हत्याओं का? कोई लाज-शरम हो तुरंत इस्तीफा दें जिस भी पार्टी में हों ऐसी तानाशाही ओढ़े प्रजातंत्र का बायकाट करें! जिन लोगों का इतने सालों खाया उनका हक अदा करें, इंसाफ करें (पेंशन तो मिलेगा ही)। जनता अपने सांसदों को वापस बुला ले नहीं आते वापस तो वापस जाने न दें करो या मरो लगा घरों नज़रबंद कर दें तानाशाह बैठा रहे अकेला छाती खाली कुर्सियों पर राज करता बेशर्म संसद की आबरू बहाल करने सर्वोच्च न्यायालय अक्षम दिखता हलधर ही प्रबंध करें।
थैली वही एक है-डॉ. जसबीर चावला
थैली वही एक है चट्टे-बट्टे नाना ढंग दिखाते हैं मोटी करने की होड़ में मोटे भाव बिक जाते हैं। कहते हैं पांच खरबी होगी पूंजी देश की अतः रेल, अन्न गोदाम, पत्तन बिकवाते हैं। पहले दिन से लगे हैं माता-माता करने प्रेम में भरकर न॔गी नचवाते हैं। दलाल हैं आबरू से ज्यादा दौलत प्यारी है काले कानून छल-बल से पास कराते हैं। भारत माता की प्रतिमा हलधर के रक्त से धोते इस तरह आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाते हैं।
वे सिर्फ कहते थे-डॉ. जसबीर चावला
वे सिर्फ कहते थे तुम सचमुच में कर दोगे वे डर-डर के तुम ताल ठोंक के कर दोगे। टुकड़े- टुकड़े गैंग तुमलोगों में घुस गया है चीर दिखाओगे नहीं भारत चूर-चूर कर दोगे। टुकड़ों पर नहीं भरपूर पल रहा प्रेम छाती में छप्पन इंची सलामत, देश खंड-खंड कर दोगे। हलधर जाए भांड़ में सम्पत्ति अंबानी की जनसंख्या गुलाम अडाणी के नाम कर दोगे। आत्म-निर्भर हो लें देश के पूँजीपति किसान जवान का काम तमाम कर दोगे।....
महज पत्थर नहीं हलधर ने उछाला यारो-डॉ. जसबीर चावला
महज पत्थर नहीं हलधर ने उछाला यारो आठ सौ जानों की कुर्बानी हवाला यारो। सूराख अब भी मगर कौन सी हवा में हुआ वहां कोहरा नहीं पांच जी पर्दा यारो। बहरे कानों पे रेंगी न कोई जूं ही अभी एक भी आह को न दिल से निकाला यारो। फिरंगी करते थे इस तरह से कुत्तों से सलूक बिकाऊ संसद का मुँह करो काला यारो। असली पूंजी है मेहनत और खेती की जमीन वोट की खेती में जनता का दिवाला यारो।
रौशनी इस तरह छिन जायेगी-डॉ. जसबीर चावला
रौशनी इस तरह छिन जायेगी, सूरज समझा न था खेती कानून इतने काले हैं,छोटे हलधर को पता न था। सरहदों पर साल से बैठे हुए हैं दिल्ली के सिर्फ हंगामा खड़ा करना इनका मकसद न था। मिट्टी स॔ग मिट्टी होने वाले ये धरती के सपूत सैंकड़ों मिट्टी में रल गये, जुनून शौकिया न था। यह लड़ाई है फसल नसल और संविधान को बचाने की रहबरों की दुश्मनी के तोड़ का दूसरा कोई जरिया न था। हजारों किसानों को फाँसी टाँगते थे पेड़ों पर लाखों कुर्बानियों से आज़ादी ली, कोई तोहफ़ा न था। मेहनतकश इंसान के हक और अस्मत पीसकर ताज पूंजी का सजा दें, लोकतंत्र की शोभा न था। असली आज़ादी का मनाना चाहते गर अमृत उत्सव निहत्थे हलधरों को कुचलना वाजिब न था ।
फूट डालो राज करो-डॉ. जसबीर चावला
फूट डालो राज करो=गोरे अंग्रेज फूट डालने के लिए राज करो=काले अंग्रेज अंततः कटना हलधर को है वही तरबूज है। उसी के लिये कानून बनाये जायेंगे काहे कि वही अर्थ व्यव्स्था की जड़ है। अनाज से ही उपजते धन-धान्य बंजर हो जमीन तो खंडहर महल आलीशान मेहनत-उपजऔर मतों के दलाल सत्ता की रंगदारी से जनता हलकान बिक जायेगा राष्ट्र गर दुःखी रहा किसान बिक जाते हैं देश गर भूखे मरें किसान।
हलधर को डर है-डॉ. जसबीर चावला
हलधर को डर है कि यह कोरी जुमले बाजी न हो भेड़िया आया भेड़िया आया कह गया,आगे कोई न हो। गड़रिये का लाडला यह बड़े बड़े खेल रचता है बाडर छोड़ किसान घर चला जाए संसद में चूं तक न हो। तुम्हारा क्या है राष्ट्र के नाम एक और संदेश दे दोगे फिर राह बनाते सिर फोड़ दिये जायें,ऑक्सीजन तक न हो। कितने उजड़ गये सात सै तो सिंघूपर मरे पड़े हैं बाबा नानक के जन्म दिहाड़े बेकसूरों की चर्चा तक न हो। दिल ही नहीं तोड़ा यकीन चूर-चूर कर डाले हैं जैसी सेवा की है, रब खैर करे, वोट पे चोट तक न हो।
विजय दिवस मनाना जब-डॉ. जसबीर चावला
विजय दिवस मनाना जब राम घर आये शर नाभि पर लगा है कहीं सिर न जग जाये। कर दो ही रावण के आनन मगर दस हैं मुँह एक, मौका ताड़ जय राम जी न कह जाये। जीत कहते हैं जिसे वह हार हलधर की जब तलक लंका से सत्ता कुबेरी न टल जाये। हर एक पग फूंक कर चलना पड़ेगा राम युद्ध लंबा है, बाडर पर मारीच न छल जाये। निकले हो ट्रैक्टर ले खेतों को छोड़कर लखन कहीं रेखा खींच दूर न निकल जाये।
वे साम-दाम-दंड-भेद कूटनीति-डॉ. जसबीर चावला
वे साम-दाम-दंड-भेद कूटनीति के माहिर हैं हम गरीबी-मेहनत-अशिक्षा में जग-जाहिर हैं। वे बहका-फुसला मतों का कारोबार करते हैं हम अपने हकों की खातिर बेमौत मरते हैं। पहले वही हमें हरित क्रांति के गुर समझाते रहे मिट्टी बंजर,फसल कैंसर कारी करवाते रहे। जब आमदन बढ़ी तो हर चौक ठेके खुलवा दिये हलधर परिवार को नशे की लत लगवा दिये। जो समझदार गभरू बढ़ता उस तंत्र के खिलाफ उसे कट्टरवादी खालिस्तानी कह गोली मरवा दिये। जो बेटे हमारे फौज में उन्हें कुर्बानी प्यारी है उन्हें क्या समझ चाणक्य की लीला सारी है। बाप-बेटा दोनों बाडरों पर ही मरेंगे काले कानून बनाने वाले देश भक्ति करेंगे।
ये पेड़ क्यों चिल्लाने लगे हैं-डॉ. जसबीर चावला
ये पेड़ क्यों चिल्लाने लगे हैं अपने कानून बनाने लगे हैं। किस ने मज़ाक में कुचल डाला गले में टायर डलवाने लगे हैं। संसद से सड़क तक लिखी पांडे ने ये सच कर दिखलाने लगे हैं। पुलिस कचहरी सब खिलाफ इनके भारत के हलधर बरगलाने लगे हैं। दया के पानी पर पलनेवाले काले मेघों को थर्राने लगे हैं। छाती पर गोलियां खाकर भी पेड़ फिर गाने लगे हैं।
अब जो भी मंज़र नज़र आयेंगे हलधर वेख लेंगे-डॉ. जसबीर चावला
अब जो भी मंज़र नज़र आयेंगे हलधर वेख लेंगे गाते चिल्लायें जां चिल्लाते गायें हलधर देख लेंगे। बहुत हुआ सत्तर साल हाल बदहाल विकास नारे नाटक मज़ाक वादे करो फिर हलधर देख लेंगे। जो नोट चढ़ाते हैं उनकी केयर देखभाल होगी ही जो कुचले जायेंगे बेसहारा खेती मजूर हलधर देख लेंगे। ढेर अंग्रेजी पिलाते हैं खून चूसने वाले संसदीय सांप जो आस्तीन के हैं उन्हें भी हलधर देख लेंगे। किसकी सत्ता किसकी सेवा वाह तपस्या लम्बी बातें गहरे जख्म दिये सत्ता ने सेवा हलधर पेख लेंगे।
रात लंबी थी मील के पत्थर जैसी-डॉ. जसबीर चावला
रात लंबी थी मील के पत्थर जैसी कमसकम सात सौ सपनों की शहीदी देखी। जुल्म की तेग चली मौसमों की मार झली लोकशाही में शाहों की बेरुखी देखी। हलधर अहिंसक जी जान से डटा ही रहा देशप्रेमी छातियों में प्रेम की कमी देखी। न्याय अंधा सियासत संसदी बहरी देखी आह तक भर न पाये दल की बेबसी देखी। लोकतंत्र जिंदा है प्रधान पुरोहित ने कहा शायद नराहुतियों की यज्ञ में कमी देखी।
दुनिया का सबसे ऊँचा स्टैचू-डॉ. जसबीर चावला
दुनिया का सबसे ऊँचा स्टैचू चीनी नहीं भारत के हलधर और मजदूर बनायेंगे संसार का सबसे लंबा अहिंसक आंदोलन चलानेवाले भारत के हलधर खेतिहर इतिहास में अमर हो जायेंगे। इक शहंशाह ने बनवाके कानूनों का काला ताजमहल सारी दुनिया में हलथर की मशक्कत का उड़ाया है मज़ाक सीधी खाते में दुगुनी आय का लालच देकर उसकी फसल और नस्ल डकारने का इरादा लेकर कृषि के तीन कानूनों को पास कराया जबरन हजार सालों की मेहनत को किया सुपुर्दे खाक़। दुनिया का सबसे अमीर आदमी हो गुजराती दुनिया का सबसे विशाल सभागार हो गुजराती दुनिया का सबसे ज्यादा मन की बातों वाला हो गुजराती दुनिया का सबसे तेज भगोड़ा हो गुजराती
वो कल जो था आज कहां है-डॉ. जसबीर चावला
वो कल जो था आज कहां है सूरज डूबता नहीं था, राज कहां है। सोने की चिड़िया न होती तो भी चलता भूखों की तादाद का अंदाज कहां है। रोज दस गुना बढ़ जाती कैसे दौलत हिंद पे होता था वह नाज़ कहां है। हलधर के बच्चों को चक्कों तले जो रौंदा सौ करोड़ जनता की आवाज कहां है। आकाश में उड़ते हो पंखों के सहारे ही न पेट में हो दाना परवाज़ कहां है। खेतों को बेच देना खेतिहर को कुचल देना बापू के सपनों का स्वराज कहां है।
मुँह पे तारीफ पीठ पीछे जड़ ही काटेंगे-डॉ. जसबीर चावला
मुँह पे तारीफ पीठ पीछे जड़ ही काटेंगे हलधर सावधान अब परसाद बांटेंगे। सत्ता के दांत हैं जरा डट कर संभालना हंसते हुए दिखेंगे पर भरपूर काटेंगे। मेहनत के खेत चर रहा पूंजी का नागराज संसद के खेल खेलते कीचड़ ही घाटेंगे। तुम पर बनी है आस्था खेतिहर मजूर की हलधर ही ऊंच-नीच की खाई पाटेंगे। इस देश को है लोड़ जसबीर बुद्ध की वर्ना पिपासे लहू के शमशीर चाटेंगे।
तेरी गठरी में लागा चोर-डॉ. जसबीर चावला
तेरी गठरी में लागा चोर हलधर जग रहना यहां वोटों का है शोर हलधर जग रहना बात करें तेरी तेरी मतलब है कुछ और हलधर जग रहना। तेरी गठरी में लागा (टेक) आपस में जो एक रहोगे संघबद्ध हो मोर्चा लोगे नोट के दांत खट्टे करोगे लालच में नहीं जोर,हलधर जग रहना। तेरी गठरी में लागा (टेक) संसद ने तुझको आजमाया एक साल बॉडर पर बिठाया तुमने हर आफत को हराया तुममें गुरुओं का जोर,हलधर जग रहना। तेरी गठरी में लागा (टेक) चार नहीं सात सौ वारे तब जा नैया लगी किनारे सत्ता पूंजी के है सहारे मेहनत का सच और, हलधर जग रहना। तेरी गठरी में लागा (टेक) लोकतंत्र पैसे का खेला इसे बदलना बड़ा झमेला देखा,अपने पर है झेला समझ लो हल्ला बोल, हलधर जग रहना। तेरी गठरी में लागा (टेक)
सर्व-विक्रय-साधना-तंत्र में-डॉ. जसबीर चावला
सर्व-विक्रय-साधना-तंत्र में कुछ कमी रह गई हलधर हजार भी न मरे कुछ कमी रह गई। जनमेजय के नाग-यज्ञ-सा यह हलधर-यज्ञ चार सीमाओं पर बंट गई सो समिधा में कमी रह गई। कुदरत से मारा अलग टायरों तले भी कुचला लाशों पर चढ़ मंत्र-जाप में कमी रह गई। कर्मण्ये हि अधिकार अस्ते फल कहां मिला गीता वाला पार्थ बना नरसंहार में कमी रह गई। कर्जे मुआफ कर दें पूंजी को क्या जवाब घोड़ों की तय खुराक घासों में कमी रह गई।
इतना ही गर है प्यार अहंकार क्यों है-डॉ. जसबीर चावला
इतना ही गर है प्यार अहंकार क्यों है भैरवी के सुरों में मल्हार क्यों है जब चाहो जहां भाव सब बेच सकोगे फिर सस्ते और मंहगे का बाज़ार क्यों है खेत के मालिक हैं मेहनत के भरोसे हैं खाद पानी आढ़त मुनाफावार क्यों है भरता जो पेट संसदी श्रम स्वेद बहाकर फसल पौने दाम औने ठोकरों लाचार क्यों है हलधर हरेक राज्य का खालिस्तानी है सच अहिंसा काटने काली तलवार क्यों है
धन्यवाद-डॉ. जसबीर चावला
जिसने तुम्हें शक्ति याद दिलाई उसका धन्यवाद जिसने तुम्हारी शक्ति को ललकारा उसको धन्यवाद वह जामवंत हो या जातुधान, उसको धन्यवाद! संचरित है अब तुममें सत्य अहिंसा की सात्विक बिजली सात सौ निरपराध शहीदों की संकल्प भक्ति जांच ली अपनी साल भर अधर लटकी तब जाकर पाषाणी छप्पन छाती गिरने वाली छलांग, धन्यवाद! उठो धावो पूरी सांस भर, भरो एक उड़ान बाबा स्मरण कर बोल जय संविधान ! अपने ही दम पर कर पाओगे अरबी लोकतंत्र का सागर पार जा उतरोगे सोने की संसदीय लंका में सावधान! लुटी-पुटी आज़ादी की सीता वहीं छुपाई है पूंजी की नकली छायावाली अशोक नहीं 'जन-जन का शोक ' वाटिका सजाई है। देना मुंदरी उसके हाथों जो भारत मां ने तुमको पहनाई है हलधर धरती घर लायेगा, जनता ने आस लगाई है। आग लगा देंगे राक्षस मूंछ-पूंछ और केशों में खूब उछलना डाल- डाल कुंए, मंच,प्रदेशों में राख हो जाये सत्ता काली, सीता को नुकसान न हो रावण मरता नहीं पूंजी का, जब लग मेहनतकश हनुमान न हो।
आज़ादी के अमृत महोत्सव पर-डॉ. जसबीर चावला
आज़ादी के अमृत महोत्सव पर हलधर भारत का अपनी गुलामी का 75 वां साल मना रहा है पहले कुचक्री कर्ज़ों में कुचला जा रहा था, अब काली सत्ता के टायरों तले रौंदा जा रहा है। कूड़ परधान था लालो के जमाने में महोत्सव में प्रधान मंत्री बनने जा रहा है। छल फरेब मक्कारी बेशर्मी सियासत का पर्याय बुद्ध का भारत गणतंत्र की हत्या का जश्न मना रहा है। जितनी जल्दी हो सके खेत खलिहान हटा रहा है जनता का धन कौड़ियों बेचने का कीर्तिमान बना रहा है रोजगार छीन नौजवानी नारों लारों नफरतों लपेट, भारत एक को सर्वाधिक अमीर बना खुद विश्व गुरू बनने जा रहा है।
कब बोलना कब चुप रहना-डॉ. जसबीर चावला
कब बोलना कब चुप रहना उसे खूब आता है कब कितना क्या कहना उसे खूब आता है। कब घंटों मन की बातें करना कब चुपा जाना कब किस जगह पहुंच कब लौट आना उसे खूब आता है। कब रूंधना कब भर्राना कब ऊंचे गले दहाड़ना कब बुदबुदाना कब बड़बड़ाना उसे खूब आता है। कब आंखों कब भवों कब त्यौरियों बतियाना कब बुल्लियां वट्ट कब खिलें होंठ मुस्काना उसे खूब आता है। किन कपड़ों किस बोली किस कोन किस नाज़ बदल बदल आवाज़ अंदाज़ उचरना उसे खूब आता है। वह नौसिखिया नहीं हलधर, जो रुलाये थारी मौत बलि बलि जाओ, शामसुंदर नरेंद्र करना उसे खूब आता है।
भेड़िए की नीयत खराब हो-डॉ. जसबीर चावला
भेड़िए की नीयत खराब हो कोई भी दोष डालेगा गद्दार बता कमजोर मेमना मार डालेगा। कानून किसने बनाये काले सड़कें कौन खोद गया ज़ुल्म हलधर के बतला खुद को मजलूम बना लेगा। चला था झूठ फरेब के मृत्युंजयी मंत्र पढ़ने कि मर गये किसानों को ज़िंदा लौटा देगा। आतिश छुपा कर ले गया था दुनिया के घर जलाने सात सौ चिताओं में हवन सामग्री डालेगा। चुनाव जीतने को जितनी हैं तिकड़में कम उल्लू अगर हो सीधा गधे को बाप बना लेगा।
नफरत भरी हुई प्यार से फैली-डॉ. जसबीर चावला
नफरत भरी हुई प्यार से फैली भुजाओं में पुतला ही भेजना धृतराष्ट्र की बांहों में। हलधर महाभारत है चाणक्य ने मचाई खेल है पूंजी का तुम खेलते सच्चाई। तुम खेत जोतते हो वह पंचतंत्र की पढ़ाई हाड़तोड़ मेहनत कब कर सकी कमाई। तुम को मिला मिट्टी में वह देश बनायेगा सड़कें करेगा चौड़ी रफ्तार बढ़ायेगा। ऊंचे करेगा पुतले जापानियों को लाकर हलधर की हड्डियों से दिव्यास्त्र चलायेगा। वह योग में है माहिर भोग में आला है मरते तो तुम रहे हो पहले से ही चाला है। सरकारें जितनी आईं खाती रहीं मलाई पहले कभी न बोले चुपचाप सहो भाई।
बीती विभावरी जाग री!-डॉ. जसबीर चावला
बीती विभावरी जाग री! भूमि-पुत्री सीते सन्नारी! बीती विभावरी जाग री! पूंजी-पनघट में डुबो रही मेहनत-घट संसद बावरी। हलधर-कुल खुल-खुल चीख रहा जुमलेबाजों से सीख रहा लूटखोरों की घोषणाएं कोरी हैं बकवास री। बीती विभावरी जाग री! मूल्य-समर्थन का झांसा दे दारू दर-दर वोटों बदले भोले-भाले मेहनती बंदे लेते कर्जों में फांस री। बीती विभावरी जाग री! विज्ञापन का युग है भोली मिडिया है उनका हमजोली तेरे बल पा पेंशन-भत्ते कुचलें श्रमिक समाज री। बीती विभावरी जाग री!
गांधी बिरहमन था कि हिंदू था-डॉ. जसबीर चावला
गांधी बिरहमन था कि हिंदू था गोडसे मुस्लिम था कि ब्राह्मण था दोनों पूज्य दो विचारों में राम-सा ही पूज्य रावण था। जहां जिसकी चलती है, चलाते हैं कभी गांधी, कभी गोडसे को देशद्रोही बताते हैं। तुम्हीं देख लो शहर में नफरत गंदगी फैलाते हैं जो हिंदू हैं वे बिरहमन नहीं हैं जो ब्राह्मण हैं, वही हिंदू बन जाते हैं चित तो अपनी रखते ही, पट भी अपना जताते हैं हलधर की जात सबसे वखरी मेहनत का खाते, पराया हक न मारते रब का शुक्र करते, देश के लिए मर जाते हैं।
किसान मजदूर का संयुक्त समाज है-डॉ. जसबीर चावला
किसान मजदूर का संयुक्त समाज है छोटा व्यापारी तो बड़े के साथ है। श्रम और पूंजी दो वर्ग हैं एक खटता दूजा करता राज है। पेट और लालच सब को है सोचता दिमाग करता हाथ है। दोनों बराबर के भागीदार जब लग होता चहुंतरफा विकास है। पूंजी डकारती जब पसीने का हक काला धन पैदा हो करता विनाश है। हलधर के सर संसद का बोझा मजदूर की पीठ पर गिरती गाज है।
सियासत के खेतों में पूंजी की पराली है-डॉ. जसबीर चावला
सियासत के खेतों में पूंजी की पराली है पहले जलाओ जिसमें थोड़ी जगह खाली है। सिस्टम बहुत है काला हलधर को बदलना है नफरत भरे मवाली सत्ता की दलाली है। कर लो इरादा पक्का बीड़ा अगर उठाया एकला चलो आगे मुड़ना तो अब गाली है। झूठ के खेतों में सच्चाई का पानी भर करुणा के बीज रोपो मेहनत ही माली है। नानक नदर करेगा फसलें पकेंगी सच्ची जाली नहीं संसद असली किसान वाली है।
ऐम ऐस पी थी ऐमेसपी है एमसपी रहेगी-डॉ. जसबीर चावला
ऐम ऐस पी थी ऐमेसपी है एमसपी रहेगी कुचलते थे कुचलते हैं कुचलते रहेंगे। राजे थे राज करते हैं आगे भी राज करेंगे लोगों का काम है कहना कुछ तो लोग कहेंगे। पिछड़े थे पिछड़े हैं आगे भी पिछड़े रहेंगे तुम वोट पे चोट करो डंके की चोट करेंगे। हम हिंदू थे हिंदू हैं आगे भी हिंदू रहेंगे हिंदू ही ब्राह्मण हैं ब्राह्मण ही हिंदू रहेंगे। हलधर हैं सबके साथ सब का पेट भरेंगे मानस की जात सभै एकै पहचान करेंगे।
हलधर सिंहासन नहीं दिलों पर विराजता है-डॉ. जसबीर चावला
हलधर सिंहासन नहीं दिलों पर विराजता है जय जवान जय किसान कहता हर देशवासी नतमस्तक उसकी तपस्या स्वीकारता है। राजा सत्ता मद में अंधा उसे कुचलता आठ सौ बेगुनाह मौत के घाट उतारता दंड का भागी तो यहां है ही नर्क में कई जन्म गुजारता है। पर देख लो, लोकतंत्र का उड़ता मज़ाक दोषी खुलेआम छुट्टा ललकारता है भारत विश्व गुरू बनने का दंभ भरता किन उदाहरणों से छबि संवारता है? मजबूरन किसान को लड़ना चुनाव है सुन अहंकार को पैरों लताड़ना है चोट वोट पर करनी है बड़ी तगड़ी हत्यारों को जेल घुसाड़ना है। राज करना नहीं है लक्ष्य हलधर है नाश अधर्म का हो जिससे सामना है।
बड़ी संजीदगी से मन की बातें करने आये थे-डॉ. जसबीर चावला
बड़ी संजीदगी से मन की बातें करने आये थे क्या पता था जुमलेबाजों के पठाये थे। इक इक दर्द दिल का अपनों-से टोहते थे क्या पता था धंधेबाजों-से पराये थे। आये तो कभी खुद को कभी घर को देखते हम क्या पता था चुनाव जोगा फोटो खिचाये थे। गुजराती में हरी को नीली बोलते जैसे क्या पता था मां की बिक्री को आय बताये थे। सर्वोच्च पद भी झूठ बोल साके है? क्या पता था हत्यारे डॉक्टर बन आये थे।
चश्मा नहीं फिर से, आंखों को अपनी खोज-डॉ. जसबीर चावला
चश्मा नहीं फिर से, आंखों को अपनी खोज थोड़ी बची हया क्या, मूंद करके सोच। टायरों तले किसान के बच्चों को कुचल देना दौलत और कुर्सी संग जायेंगे क्या सोच। कानून कीन लोगे इंसाफ बेच दोगे वक्त की जाने दे इतिहास की तो सोच। दाढ़ी मूंछ वालों को पहले भी जलाया था वह भीड़ थी तुम खूनी यह भी तो जरा सोच। हलधर हैं दुःखी दिल से दे दें भी जे मुआफी तवारीख क्या लिखेगी तेरी जात यह तो सोच।
सारे सपने उड़ा दे ऐसी थकान हो-डॉ. जसबीर चावला
सारे सपने उड़ा दे ऐसी थकान हो नींद गहरी फलक से ऊंची उड़ान हो। मुक्ति की कामना है फिर डर क्यों संयुक्त समाज हो कोई निशान हो। काले कानून लागू न कर सकें संसद में जैसा मर्जी तूफान हो। हलधर-मजदूर की सत्ता हो कानून रखवाला संविधान हो। समता, न्याय, शिक्षा, रोजगार दो नहीं एक नंबरी जहान हो। सस्ता, शुद्ध, सच्चा, सीधा मरना नहीं जीना आसान हो।
दल बदलते जैसे कबूतर मुंडेरे-डॉ. जसबीर चावला
दल बदलते जैसे कबूतर मुंडेरे दिखे जनता के सेवक बहुतेरे। डैनों पर चोट क्या करे हलधर परिंदे झाड़ पर बिकते सुबह सबेरे। अपने ईमान पर भरोसा रख पैठ जा चुनाव के पानी गहरे। बस किसानों की बोली न लगे सट्टा बाजार सियासत है अरे। संसदी लंका में रावण का प्रताप कुबेरी शक्तियों का वास अखरे। सिरों में नहीं नाभि में छेदा करना फूटेगा पूंजी-घट पाप तभी जा मरे।
लड़ने का सिर्फ नाटक करना-डॉ. जसबीर चावला
लड़ने का सिर्फ नाटक करना वोट पर चोट मिल कर करना पूंजी की जब्त हो जमानत भी ऐसी कोशिश जी भर करना। कब से धरती डरी बैठी है उसके दिल में असर करना। पूंजी खरीद नहीं सकती हलधर मातृ भूमि निडर करना। काला कानून कभी न बने संसद में पहले से खबर करना।
काले कानूनों के दौर से अभी उबरे नहीं हो-डॉ. जसबीर चावला
काले कानूनों के दौर से अभी उबरे नहीं हो आस्तीन के सांप ने डंसा, मरे नहीं हो। छुट्टा घूम रहा नाग-यज्ञ रचने वाला तुम्हीं से होम करायेगा,समझे नहीं हो। वह चाणक्य है नीति-निपुण माहिर जाल में फंसोगे नहीं, ऐसे खतरे नहीं हो। पद पर आसीन अभी सत्ता के चश्मे वाला पूंछ नहीं हिलाते,भौंकते हो, हलधर नहीं हो। आंदोलन जीवी हो आठ सौ शहीदों के औकात देख, अंबानी के अं तक नहीं हो।
सत्ता का खेल इस सफाई से खेला गया-डॉ. जसबीर चावला
सत्ता का खेल इस सफाई से खेला गया साढ़े सात सौ मरे हलधर, तब गुरू चेला भया। नानक का जन्म दिन, प्रकाश-पर्व, धुंध मिटी रद्द तीनों काले कानूनों का बावेला भया। वोट पर चोट पड़ी दिल्ली ने मुंह की खाई नेता इधर से उधर, राजनीतीर माठे खेला भया। मठाधीश रणनीतिकार विश्लेषक सर्वेक्षक सरगर्म हुए चैनल धुरंधरों का झमेला भया। कह जसबीर कविराय पेगासस का करे धेले का धंधा अंधेर नगरी राज चौपट अधेला भया।
हर जगह पूंजी का बोल बाला है-डॉ. जसबीर चावला
हर जगह पूंजी का बोल बाला है सच बोलने वाले का मुंह काला है। हर चमकता दूर से सोना नहीं होता करीब से पाते हैं महा गंदा नाला है। इत्र की खुशबूयें हैं फूलों के हार हैं जैकारों बीच सब गड़बड़ झाला है। अजीब दौर है जिसको चुनो वही पाजी कौन दस नखों दी कमाई करणवाला है। हलधर मजूर किरत करदा वण्ड खाता वही संसद चलाये तो झींगा लाला है।
धुंध जिधर से मर्जी देख लो धुंध है-डॉ. जसबीर चावला
धुंध जिधर से मर्जी देख लो धुंध है धुंध में से धुंध निकालो बची फिर धुंध है। सूरज उगेगा, धुंध मिटेगी,चानण होगा उजाला जब तलक नहीं होता,धुंध है। अतः,धुंध मत देख उसकी हकीकत को समझ अन्न ही असली मुद्रा, बाकी सब धुंध है। मेहनत ही दौलत पूंजी,नकली है चकाचौंध श्रम पर टिके महल चौबारे,नहीं विकास धुंध है। धरती फलती सोना, हलधर जब फसल उपजाये योजनायें घोटाले, झूठ संसद, बजट निरी धुंध है।
समाज के सारे दलित वंचित,हलधर के साथ हैं-डॉ. जसबीर चावला
समाज के सारे दलित वंचित,हलधर के साथ हैं छोटे मंझोले बड़े, अलग नहीं,संयुक्त हाथ हैं। बिना पैसे मक्कारी विज्ञापन के, कैसे जीत जायेगा किसान कहीं से खड़ा हो, शोषितों के मत पायेगा। यही मौका है, भारत के सारे खेती प्रेमियो, एक होओ वोट पे चोट करो,संसद प्रवेश करो,एक होवो। लोकतंत्र पूंजी का गुलाम बना, रहने नहीं देंगे काला धन वापस आये न आये, और बनने नहीं देंगे। जो भगोड़े हैं और जो उनके सहायक सत्ता में हैं देश के बड़े दुश्मन, वीतराग बने,मजे मौज में हैं। फिर से काले कानून अडाणी अंबानी बनवा न पायें सारी फसलों को वाजिब मूल्य किसान सांसद दिलवायें। संयुक्त समाज संघ है,हलधर की शक्ति और बल है मोर्चा पूरे भारत में, खेतिहर स्वयंसेवकों का दल है।
आठ सौ शहीदों के लिए-डॉ. जसबीर चावला
आठ सौ शहीदों के लिए आठ घड़ियाली आंसू तक नहीं गुरूओं की आठ सौ तारीफें क्या किसी काम की नहीं? चार किसानज़ादे टायर तले कुचल डाले तो क्या हुआ चार साहिबज़ादों की शहीदी को वे याद करते हैं कि नहीं? तपस्या में कमी रह गई नहीं तो पंजाब बेसरदार कर देते प्रवासी भैय्यों के सदके भी खालिस्तान बन सकता है कि नहीं? मझबी और जट्टों में पाड़ा पा राज जब मिल सकता हो दूसरे दल तो अपनी ही उलटबासियों में फंसे हैं कि नहीं? हलधर ने संसद सरेआम राजधानी में चलाकर दिखाई है बाडरों पर अमर किसानों की स्मारक ज्योति जलनी चाहिए कि नहीं? जो हत्यारे खूंखार भेड़ियों से बेखौफ घूम रहे हैं चुनावी जीत के बाद किसानों पर छोड़े न जायें तो क्यों नहीं? वोट पर चोट का नारा देकर राजा के मन पर जो ठेस पहुंचाई है उसका खामियाजा तुम्हारी पूरी कौम न भरे तो क्यों नहीं?
कोई जोर जबरदस्ती नहीं कर सकता-डॉ. जसबीर चावला
कोई जोर जबरदस्ती नहीं कर सकता मत दो, चाहे मत दो हलधर, इस बार बिगड़ैलों को सबक सिखाओ, सन्मति दो। जिसका खाते हैं, उसी पर ज़ुल्म ढाते हैं निहत्थे किसानों को कुचल जाते हैं सामने से चाहे राम राम रख लो पीछे से, वोट गुप्त रखा जाता है,मत दो। कोई बढ़िया आदमी नहीं है हलके से सारे के सारे भ्रष्ट हैं देशद्रोही किसानघात गरीबमार मतलब देशद्रोह मार ठोकर, खारिज कर, सच्चा मत दो। कोई छीन नहीं सकता तुम्हारा अधिकार सब लुटेरे हैं अगर, मशीन में लिख दो बटन दबाना है कि भई एक्को योग्य नहीं पर वोट फिजूल फालतू आदमी को मत दो। मत दो अपनी दरियादिली का नाजायज़ फायदा तुम स्वतंत्र, स्वयं अपने भाग्य विधाता अनपढ़ हो सकते, जाहिल नहीं हो फिर भारत में लखीमपुर खीरी बनने मत दो। चुनाव है, दंड नहीं है,तुमको नेक को चुनना है जुमलों ठगों मीठी बातों को नहीं,काम को मत दो जो घूस लालच देकर वोट डलवाये, डाकू है जो खूनी हैं उनसे बचने के लिए निडर इकट्ठे हो मत दो।
वादे नेता करता है-डॉ. जसबीर चावला
वादे नेता करता है, पूरे पार्टी ने करने होते हैं नेता प्रचार धुनकी में होता है,लागू फैसले सलाह से होते हैं। इसलिए झूठ आदमी के वजन का होता है कोई मोटा भाई ऊंचा पद तो उसका झूठ भारी होता है। एक लाख करोड़ जो अलहदा रखे हैं पंजाब खातिर वह पंद्रह लाख फी नागरिक वाला जुमला भी हो सकता है। अगर अडाणी के मुनाफे से लेकर ही दें तो भी एशिया का सबसे अमीर आदमी उतना जमीन के लिए दे सकता है। सरकार की नीतियाँ संसद में नहीं कहीं और अगर तय हों तो चुनने वाली जनता वहीं जाये, तभी हिसाब हो सकता है या फिर वापस बुलाने का अधिकार हो मतदाता के पास वर्ना पांच सालों में सब उल्टा पुलटा हो सकता है। अतः, विवेक रख प्रत्याशी का आगा पीछा जांच लो भ्रष्टाचारण का मालिक सामाजिक न्याय कहां से दे सकता है? बगल में छुरी रखेगा तभी रामनाम जोर शोर से लेगा नामलेवा सोचता है कि आत्म प्रचार से तपस्या का पतन हो सकता है। नौटंकी करने वाले को मजमे में भीड़ से मतलब होता है भक्त रूप में दर्शन दे वही उसका अगला रोल हत्यारा हो सकता है। इन्हीं बदलते हालात में हलधर, ट्रैक्टर चढ़ वाही से पहले क्या कितना कहां बीजना है इसका निरना सथ में म॔जे बैठ हो सकता है।
बात सामाजिक समता की होगी-डॉ. जसबीर चावला
बात सामाजिक समता की होगी,उसकी प्रतिमा बनवा देगा बात रोजगार की होगी, कई और नयेयोग केंद्र खुलवा देगा बात स्वच्छ जल की होगी,नल से जल जैसे मंत्रालयों के विज्ञापन चलवा देगा बात न्याय की,हत्यारे मंत्रीपुत्रों की होगी,शौचालयों के आंकड़े गिनवा देगा पर्यावरण की बात पर खिलौना उद्योग के विकास हेतु बरेली के झुमके दिलवा आंखों की बीनाई वास्ते सुरमा चाहिए बोले तो बनारस का जरदा मंगवा देगा मतलब हुआ मुद्दे से भटका गीता के चंद सुझाये श्लोक रट सुना देगा। ऐसा नहीं कि वेहला बैठा है, कि काम नहीं हो रहा काम तो चौबीसों घंटे, वर्क फ्राम टायलेट सैलून भी हो रहा है बात है कि कब क्या हो रहा है,जानना हो तो मन की बात सुनो आकाशवाणी भारती कोई अंबानी चैनल गोदी मीडिया देखो सुनो कोविड प्रमाण पत्र देख लो,पंप देख लो,बस बाडी देख लो भारत की आजादी पर फिल्म बनाने की सोच रहा है, नये संसद भवन से नायक स्वयं होगा विभिन्न भूमिकाओं में, विभिन्न वेश भूषा भाषाओं में इंस्टाग्राम ट्विटर फेसबुकादि पर एक ही ड्रेस में अच्छा लगता है क्या जयललिता को मात तो नहीं दे रहा, कर्मयोगी है, न बाल न बच्चा शताब्दियों पहले जो बन जाना चाहिए था रामलला का मंदिर उसने बनवाया, तो चरणों में एक आदमकद बुत उसका, गलत है क्या? पहले सरदार की एकता प्रतिमा स्थापित,तब स्टेडियम अपने नाम इतना तो बनता है यार गुजरात माडल के हिसाब से कुछ गलत किया क्या? मेरे प्यारे हलधर, उसके पद नहीं पार्टी हाईकमान के आदेशों का अर्थ समझो तुम्हारे लाभ के लिए काले कानून लागू किये, देश हित खातिर वापस लिये। क्या?
हलधर बुद्धू, तुमसे धोखा हुआ है-डॉ. जसबीर चावला
हलधर बुद्धू, तुमसे धोखा हुआ है एक साल के अहिंसक आंदोलन में सौ प्रतिशत शुद्धता मार्का वाला सोना सुशासन नहीं मिल जाता किसी भी देश का इतिहास देख लो मात्र आठ सौ शहीद किसानों के बल पर व्यवस्था मेहनतवादी नहीं हो जाती न किसान मजदूर को उसका हक मिल जाता। आजादी के बाद जो राजनीति में आए सच्चे थे लालच फरेब अभी घुसना शुरू हुआ कि वे चल बसे धीरे धीरे पूंजी का घुन मानव प्रेमी, देश प्रेमी जड़ें खाने लगा लोकतंत्र में गुंडा तत्व जबरदस्ती छाने लगा हलधर सादा सच्चा वादों झांसों में आने लगा आज हालात ये हैं कि पाप भ्रष्टाचार की भरमार है निपट पूंजी से ही चलने वाला चुनावी कारोबार है। और पैसा पैदा कहां होता है, सोचा है कभी? धरती से अनाज ही धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का आधार है। तो धन्यवाद कहो नील-जामवंत से जिसने तुम्हारी सोई शक्तियों को वंगारा है पंद्रह लाख हर खाते,गारंटी एमार्पी हर फसल इत्यादि सब,नारा है लारा है वह चुप है दिल्ली बाडरों किसानी मौतों पर इतने दिन, बिना एकज आंसू कि हनुमान भूला बैठा अपनी शक्ति, जरा होश में आए वह लांघ सकता एक ही छलांग में पूंजीवाद का समंदर जो जोश में आए । शुक्रिया तुम्हारा भी हलधर कि तुमने भरा हुंकारा है अक्खा भारत के बेरोजगारों मजदूरों नौजवानों को जगाया है मिले सबको बराबर शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार सुविधा, तभी कहें रामराज आया है।
महज़ लफ़्ज़ नहीं लिखकर मिटा दिया-डॉ. जसबीर चावला
महज़ लफ़्ज़ नहीं लिखकर मिटा दिया इश्क कतरा है जो खूँ में रवाँ होता है। बात जब भी खुदा की करते हैं इबादत में,परसतिस में अयाँ होता है। तुम बुत हो, परी जात हो, या हो लैला खबर किसे है कौन दरमियाँ होता है। देखने लगता है तो इक आफताब होता है इश्क कहता है जब, दुहरी ज़ुबाँ होता है। हलधर तुम्हें इश्क है, मिट्टी से,हवा पानी से वर्ना उम्र ढलती में, कौन जवाँ होता है? बेदबी कभी कहीं किसी लफ़्ज़ की न हो अल्ला रहता है वहाँ, इश्क जहाँ होता है। चर्चा जसबीर की बेहतर है कभी हो ही ना मरता वतन पर, जीते जी आसमाँ होता है।
हलधर, चुनाव इस बार बहुत आसान है-डॉ. जसबीर चावला
हलधर, चुनाव इस बार बहुत आसान है कल्ले कल्ले की तुम्हें पहचान है। फिर डंके की चोट पर मोर्चे का ऐलान है कथनी करनी में फर्क न हो, ध्यान है? मंजा हो जां ट्रैक्टर, अपना ही निशान है छोड़ो नकल मारना ,अब इम्तिहान है। रंजिशें भूल,हउमै त्याग, संयुक्त हो वोट पे चोट ही,ढाल है किरपाण है। हिंदू मुस्लिम नहीं, जात ही जब किसान है दसाँ नोहाँ दी किरत करे सो महान है। वही समझ सकता गरीब गुर्बे का दर्द वही दंगल का विजेता पहलवान है। ठप्पा लगा, मत पेटी में पत्र बंद हो जाता था अब मशीन से रसीद देने का प्रावधान है। माँगो अपने वोट दिये का प्रमाण, तो मिलेगा बंगाल ने कर दिखाया, उसी में खींचतान है। अगर नहीं है कोई किसान प्रत्याशी खड़ा और रहा नहीं विश्वास किसी लुटेरे का सारे नालायकों का एक नाम नोटा है सभ तों उत्ते सच आचार, नानक का फरमान है।
डबल इंजन वाली सरकार-डॉ. जसबीर चावला
डबल इंजन वाली सरकार गाड़ी पर चढ़ नहीं पाओगे हलधर अंदर बैठना तो दूर, पटरी नेड़े फटक न पाओगे तेज तो होगी ही, मंहगी भी गुरूओं के नाम पर भी होगी जज़्बाती हो जाओगे, खूब परख चुका है तुम्हारी अणख चाणक्य अब दूसरी ब्योंत रचेगा, समझ न पाओगे। जैसे लोग टिकट खरीदे हैं चुनाव लड़ने को तुम जमीन बेचकर लोगे चढ़ने को कानून से नहीं हारे, खानून से हारोगे उनको यह थोड़े देखना है कितने भोले और सच्चे हो कितने मेहनती देश प्रेमी हो, सियासत के बिजनेस में महा कच्चे हो। उनको सर्वाधिक अमीर होना है दुनिया में सबसे ज्यादा पॉपुलर होना है देश वासियों को भूखे मारके भी विश्व गुरू बनना है, उनकी सफलता कृषि में नहीं बिक्री में है उनकी नज़र योजना पर नहीं घोषणा पर है। परजीवी आभासीय लोक में बसते हैं श्रमजीवी बॉडरों पर प्राण घसते हैं।
सरकारें हिल गईं-डॉ. जसबीर चावला
सरकारें हिल गईं संसद ने भृकुटि तानी थी पूँजी-गुलाम भारत में हलधर ने भरी जवानी थी सिंघू टिकरी के लोगों से हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वह तो ट्रैक्टर वाली रानी थी।
मर्यादा घातक हो जाती है जब-डॉ. जसबीर चावला
मर्यादा घातक हो जाती है जब उसे अधर्म नहीं दीखता प्रतिज्ञा महाभारतकारी जब उसे संसदी द्यूत नहीं दीखता अहंकार में लिपटे दुःशासन कृषि की नंगी गरीबी का सौदा कर बैठा देना चाहते हैं अंबानी अडानी की जाँघों पर। आत्म हत्याएं न करो पांडवो, तुम्हें ठगा है शकुनि चालों ने धोखा किया है तथाकथित संस्कृति के रखवालों ने पितामह की बूढ़ी आँखों ठूँस वसुधैव कुटुंब का सपना धृतराष्ट्री जुमलों में गला डाला सबका साथ और विकास प्रयास बस एक ही पूँजी का रास। लोकतंत्र जब बन ही चुका बदमाशों की रखैल वध करना होगा किसी भी युक्ति जयद्रथ जो चाहता हलधर विनाश, जा छुपा पाताल।
ऊपर आओ ठंढे जल!-डॉ. जसबीर चावला
ऊपर आओ ठंढे जल! वर्ना इन सर्दियों में भी वहीं बैठे रहोगे ठंढाते जहाँ थे पचहत्तर साल लंबी रात। गीज़र से गर्म पानी बह रहा ठीक ऊपर तुम्हें पता ही नहीं सुखद धार का मिट जायेगी कँपकँपी, ईलाज है लाचार का। ऊर्जा की कमी से उपजी बेबसी उठो, खुद भी करो थोड़ी हिम्मत हलधर कितना हिलोरेगा तुम्हें कितने बॉडरों पर लंगर लगा कितने नग शहीद करवायेगा? बर्फीले जल में शक्ति होती है ऑक्सीजन की असंख्य जीव जंतुओं जीवन देती ऊपर उठो सतह तक,संभाल लो यह गर्मी सुखदायिनी अपने लिए न सही, जन जन खातिर ठिठुर रही प्रजा को वर दो!
हा दा नारा देकर सियासत कर लेते हैं-डॉ. जसबीर चावला
हा दा नारा देकर सियासत कर लेते हैं चोर मौसेरे हैं,बॉडर पर घेर लेते हैं। किसी को कानों कान क्या करना कमीने काले कौओं को काम देते हैं। बड़ा अफसोस हलधर तेरी शहीदी पर प्रधान सेवक हैं कहने में देर लेते हैं। इतिहास तुमने रचा है तो क्या होगा उसे अंधाधुंध गन्नों सा पेर देते हैं। सर पर अपने भी पगड़ी बँधवाते गाँव में टिकट टिकट टेर लेते हैं। हलधर तो दूर से ही दिख जाते तुम्हारे साथ जौन उनको हेर लेते हैं।
पहले शोर की धुंध थी,अब चुप्पी की धुंध है-डॉ. जसबीर चावला
पहले शोर की धुंध थी,अब चुप्पी की धुंध है ईमान फाजिल, सच बातिल, लोकशाही लुंज है। विद्वान सर्वत्र फालतू, धनवान बस पूज्यते पूंजी एव जयते,किसान मरते,न्याय सुंज है। अक्ल लतीफ काला लिखते, अंधे बाँचते गूँगे गरेबाँ झांकते,कौन सेवा का पुंज है? हलधर और कितने मौके दे सेवा के, कितने दिये उसको कुल्ली,मंत्री को आलीशान कानन कुंज है। कब से लेबर चौक पर खड़ा है बेरोज़गार भैय्या न कह देना, उसका नाम शिवगुंज है।
बाईस जीरो बाईस जीरो बाईस-डॉ. जसबीर चावला
बाईस जीरो बाईस जीरो बाईस लेमन राइस प्रसादम् कर्ड राइस। दस हजार टन गेहूँ अफगानों को तीन टन ड्रग्स की फेयर प्राइस । तालिबानो, चटाओ जनता को काला आप्पे करेंगे चिट्टे की फरमाईश। चिट्टा बेचो राकेट सैंताली खरीदो जिहादी जवानों की करो आजमाइश। हलधर कुचलायेगा यहाँ,अन्न उगाते सत्ता का खैला होबे आईस बाईस। जगत चल रिहै कूड़ भरोसे लालच की सारी पैदाईश। रटत जसबीर किरपा करो नानक फैली खानाजंगी की गरमाईश।
फूल, तुम उगे हो, अच्छी बात है-डॉ. जसबीर चावला
फूल, तुम उगे हो, अच्छी बात है पर और मत उगना हलधर, तुम डटे हो, अच्छी बात है पर और मत डटना। जग अब शांति नहीं चाहता,प्रलय चाहता है हद कर दे रहा है हर बात की जहाँ बात से बात बन सकती है वहाँ घात से बात बनाना चाहता है यकीन खत्म हो गया एक दूजे में और त और भगवान में भी वैसे ओम अल्ला गॉड क्या क्या हजार नामों से सौ टिट्टन विट्टन करता पर प्यार है तो अपनी तृष्णा से, श्रद्धा है तो लालच पे, गर्व है तो अपनी चाणक्य बुद्धि पे, नाज है तो अपने युद्ध कौशल औ' साज पे फूल, तुम चाहते हो अपना हक छोटी-सी जगह में,माड़ी-सी हवा में खिलखिलाना वही उनको काँटा बन गड़ रहा है उनके साम्राज्य में सेंध हो जैसे हलधर, तुम चाहते हो हर फसल पर ऐमेसपी वह लग रहा है छीन-झपट उनकी महासंपत्ति से। इसलिए, पहले उनको फरिया लेने दो एक दूजे का गला घोंट खुश हो लेने दो ज़हर खाकर। कोशिश करना उगने की सिर्फ बेदोषे मारे गये किसानों की समाधि पर जानता हूँ, मुश्किल है ऐसा भेदभाव तुम्हारे लिए।
चल रहे हैं बशर नाक मुँह खोलकर-डॉ. जसबीर चावला
चल रहे हैं बशर नाक मुँह खोलकर उनसे उम्मीद है चलें, आँख भी खोलकर। हर शहर जल रहा बू-बू बोलकर सीना चौड़ा किया नफरतें घोलकर। देश को अब जरूरत एक इन्सान की झूठ छल को हराये सच-सच बोलकर। अंधी राजनीति में सोना मिट्टी हुआ देश ही बिक गया जीओ जीओ बोलकर। मौत के कारोबारी हुक्मराँ हैं बने हलधर निकला पड़ा वाहेगुरू बोलकर।
टुकड़े टुकड़े होकर-डॉ. जसबीर चावला
टुकड़े टुकड़े होकर अंबानी हरा नहीं सकते, पूंजी तंत्र है बड़ी मछली ही निगलेगी, निगलेगी ही छोटी अकेली रह डरा तक नहीं सकती। मिसलें भी बनोगे हलधर, तो भी एकजुट होना होगा अंग्रेज़ी फौज से भी घातक जो उसे संविधान के तीरों से छेदना होगा। नीचाहूँ अतनीच, जो वंचित पिछड़े हैं नानक तिन को सदा साथ करना होगा। लोकतंत्र का गणित है कई अध्यायों में बँटा डिफरेंशियेसन पूँजी पर, इंटीग्रेशन मेहनत पर करना होगा। सिर्फ सच्ची मेहनत से नहीं चलेगा शठे शाठ्यम् सम्यक प्रबंधन करना होगा चढ़ो जी सदके चढ़ो फाँसी रज रज दो शहीदी ,पर लाभ सर्व हारा को मिले, पक्का करना होगा, ऐसा न हो पता लगा, किसान फिर ठगा गया कोई धोखा न हो, सुनिश्चित करना होगा।
कोटि कोटि कंठों के कर्कश-डॉ. जसबीर चावला
कोटि कोटि कंठों के कर्कश क्रंदन करते करजई किसान कृषि के काले कानूनों को कातिल कहता कृषक कल्याण।
जनतंत्र टैंकी पर टकटकी लगाये है-डॉ. जसबीर चावला
जनतंत्र टैंकी पर टकटकी लगाये है टेट-पास हलधर-सुत जिंदा सिनेगॉग बनाये है राजनैतिक गिद्धों के हवाले देह कर अपनी शहीदी बेरोजगार शिक्षकों के सिर चढ़ाये है। जैसे आठ सौ हलधर शहीद,काले कानून रद्द करवाते संसदीय संवेदनाओं को जगाने में असमर्थ रहे वैसे ये डंडेखाणे मास्टर देश-प्रेम भरे काले झंडे राष्ट्र-द्रोही नेताओं को दिखाते व्यर्थ रहे। आत्म-निर्भर भारत की बुनियाद में नई पीढ़ी का खून सीचेंगे हलधर अमृत महोत्सव पर खून के आँसू पी, आजादी को कोसेंगे।
तेल नहीं है कि जब मर्जी दाम बढ़ा दो-डॉ. जसबीर चावला
तेल नहीं है कि जब मर्जी दाम बढ़ा दो कि मनचाही गरंटी कीमत हर फसल पर चढ़ा दो यह अनाज है जिसमें कीड़े पड़ जाते हैं, मिस्टर हलधर! गाड़ियाँ नहीं चलतीं इससे कि पंप नये धंधे खड़ा दो। जी,यही तो कह रहा हूँ, मिस्टर मिनिस्टर ! गाड़ियाँ चलानेवालों की जिंदगी की गाड़ियाँ इससे चलती हैं तेल तो शोषण है पृथ्वी माँकी छाती जबरदस्ती खोद पाया गया यह अनाज है,मेहनत-आस्था उपजा,माँ का आशीर्वाद पाया हुआ। कैसी विडम्बना है, हमारी हत्याएं कर भी चुकाते हैं प्रजा के दुःख बढ़ जायें, इस तरह का बजट बनाते हैं! आपके सुशासन का अंतिम लक्ष्य क्या है आखिर रामराज में जनता खुशहाल कि पूँजीपतियों के लाल गाल? मुल्क से अरबों का घोटाला कर भागनेवालों से स्नेह मैत्री और हक-हलाल की रोटी रोजी का जुगाड़ करते एक अरब मानुष का खस्ताहाल? धन्य है आपकी राष्ट्र-भक्ति और जनकल्याण का मायावी अंतर्जाल!
हे भगवन्, हे भगवन्, हे भगवन्-डॉ. जसबीर चावला
हे भगवन्, हे भगवन्, हे भगवन् और कै बार बोलना होगा भगवान? इंसान हलधर नहीं है तो भी आंदोलित है हर आदमी फँसा हुआ है सरहद पर जो अंदर है कहीं बंकरों में कानों में रूई उमेठ कर बैठा है धमाकों धँसानों के खिलाफ डरता मौत के सामने से,गुहारता गरियाता निकालो इस घमासान से,घटाटोप से! दानका गुफा में फँसा,कलेजा मशाल बना ऊपर उठाये निकल आओ दोस्तो! मेरे पीछे-पीछे पर भूख से मर रहे हमवतन सैनिकों को कैसे बचाये? कोशिश भरपूर कि एक दाना भी दुश्मन के मुँह न जाये! हे भगवान! हलधर कहाँ-कहाँ लंगर लगाये? इधर उसके अपने ही हो गये पराये। घर का जोगी जोगड़ा सिख बुद्ध नानक का खालिस्तानी देशद्रोही कहलाये। तोभी सभ की चढ़दी कला, सरबत्त का भला चाहे। खाओ, मेरी अबिकी कणक का मुफ्त लंगर छको बेशक मेरी ही जड़ें जूड़ा काट दो पर रबदा वास्ता जे, दुनिया को नफरत से बचाओ!
जो युद्ध के व्यापारी हैं-डॉ. जसबीर चावला
जो युद्ध के व्यापारी हैं लड़वायेंगे जो मौत के व्यापारी हैं मरवायेंगे जो धर्म के व्यापारी हैं बचवायेंगे जो राहत के व्यापारी हैं चलवायेंगे जो खुराक के व्यापारी हैं पैकेटवायेंगे जो दवा दारू के व्यापारी हैं घिसटवायेंगे जो आकाश के व्यापारी हैं गिरवायेंगे जो अंतरिक्ष के व्यापारी हैं टावरायेंगे जो वादों के व्यापारी हैं दिखवायेंगे जो नोट के व्यापारी हैं बदलवायेंगे जो खबरों के व्यापारी हैं बतवायेंगे जो निर्माण के व्यापारी हैं उठवायेंगे जो इतिहास के व्यापारी हैं फुँकवायेंगे गरज कि ऐ हलधर! दुनिया व्यापार है जी भरकर पूरी लगन से मेहनत करो अपनी सौगुना,आय दोगुना करवायेंगे।
थारी तारीफ होन लागे,कान खड़े कर लो-डॉ. जसबीर चावला
थारी तारीफ होन लागे,कान खड़े कर लो जाँच लो, लुम्बड़ की मंशा क्या है चोंच में टुकड़ा रोटी का या पनीर का है सोचो पहले इससे,पेड़ पर गाया क्या है आँख दौलत पर तो जवानी की तारीफ तारीफ मेहनत की तो देखना बोया क्या है जमीन खतरे में समझो जो मुफ्त शराब मिले सिवा फसल के वर्ना दुनिया में रखा क्या है जमीन गई तो फसल गई नसल भी गई इसलिए देखिए तारीफ का मुद्दा क्या है? धरत माता, पवन गुरू,पिता पानी सब रब(केंद्र)का,हलधर!तुम्हारा क्या है।
कितनी मेहनत से पहले इतनी ऊँची-ऊँची-डॉ. जसबीर चावला
कितनी मेहनत से पहले इतनी ऊँची-ऊँची आलीशान इमारतें बनाते हो इतनी खूबसूरत और कलात्मक रचने को कितना कौशल-धन जुटाते हो नगर-निर्माण सौंदर्य सभ्यता योजना व्यापार- व्यवसाय -व्यवस्था विद्वान कहलाते हो फिर उनको ध्वस्त करने को बम-राकेट-मिसाइल कैसे कैसे हथियार बनाते हो डाक्टर इंजीनियर प्रबंधक बनाने को संस्थान-विश्व विद्यालय में पढ़वाते हो फिर उन्हीं को तबाह करने के साधन जुटाते हो पहले अपने मुल्क की सुविधाएं मुहैय्या कर भाईचारा जताते हो क्या हो जाता है अचानक उन्हीं को दुश्मन बताते हो दरअसल दौलत होती है मजूर किसान की जिसे तुम बेदर्द लुटाते हो अपनी शान शौकत दरियादिली का दंभ पाले वंदना के किराये स्वरूप बहाते हो विश्व में सर्व श्रेष्ठ मानवाधिकारों के संरक्षक ठेकेदार कहलाते हो तो यह सब क्या है हलधर!देख लो इनकी हकीकत तुम तो हर घड़ी हर जगह सरबत्त का भला चाहते नानक का लंगर लगाते हो आज लोड़ है, नानक के ज्ञान - लंगर की, भूखे-न॔गे ही नहीं, प्रधान सेवकों को भी बोलो कब मानस की जात सभै एकै पहचानबो का परचम हर देश की सीमा पर लहराते हो?
मन की बात कम, कम्म दी जादा करना-डॉ. जसबीर चावला
मन की बात कम, कम्म दी जादा करना नारे लारे कम,सच्चा वादा करना। प्रयास करना वही जो पूरा कर सको मुश्किल हो जो तो समय का वादा करना। पूरा हुआ जो उसके लिए लोग बोलेंगे बस देखना भर प्रचार न जादा करना। हलधर जो चाहते हो डंके पर चोट हो अपना लाभ कम, औरों को जादा करना। शेखी बघारनी होतो जमीन पर आना गंगा उतारी,शिवलोक से दावा करना।
जनता को टोपी पहनाते-डॉ. जसबीर चावला
जनता को टोपी पहनाते, वही भाग देरासर जाते जनता को तो पहना लोगे,दैव न कबहूँ धोखा खाते। बकरा दान करो या कट्टा,जनमत को न हाथ लगाते देवी कामख्या हो या ज्वाला,भ्रष्ट आचरण से घबराते। तंत्र-मंत्र का जादू न चलता, बेशक मन- भर स्वर्ण चढ़ाते जनता में छबि खूब सुधरती,कुछ दिन जाकर पेड़ लगाते। हलधर के हक छीनने वालो, काली पूँजी से घबराते सत्ता के बल जो भी लूटा,अंत समय तो लौटा जाते। सेवा करो बिना कुर्सी अब,तन-मन-धन देश पर वारो जनता फिर एक मौका देती,सारे पाप यहीं कट जाते।
जो माफिया खत्म करना चाहते हैं-डॉ. जसबीर चावला
जो माफिया खत्म करना चाहते हैं माफिया सरदारों को ला हलधर उनसे पूछ मैल की सफाई गंदगी से होती है क्या? सावधान रहोगे तो नुकसान नहीं होगा। दौलत का नुकसान:छोटा नुकसान सेहत का नुकसान: गहरा नुकसान चरित्र का नुकसान: भारी नुकसान और मत का नुकसान: महानुकसान! सावधान! हलधर उनसे पूछ, अहिंसक किसानों की मौत का जवाब छप्पन इंची छाती चीर राम दिखाना है क्या? जब खेतिहरों के अभिमन्युओं को बाडरों पर छलनी कर रहे थे फूट के फार्मूले लगा मीडिया गन्नों- सा पेर रहे थे तब उनकी मंशाओं से आँसू कहाँ चले गये थे? दोस्तों के लाभ सर्वोपरि बने देश हित की खटिया खड़ी कर रहे थे, हलधर आप के साथ थे, गुप्त रूप से देख लें पहले, करता है झाड़ू कुछ सफाई कि यह भी सिर्फ टोपी पहनाता रहा? पूँजी के तंत्र में कोई धुला निकले, उम्मीद कम है लंका में जो घुसा रावण बना, यही गम है।
नफरत में हिंसा का बीज दबा होता है-डॉ. जसबीर चावला
नफरत में हिंसा का बीज दबा होता है फैसला प्यार की जमीन पर ही होता है। युद्ध कभी समाधान नहीं बना आज तक इस आग में सब कुछ तबाह होता है। सत्ता वालो दुनिया में जहाँ हो,सुन लो सर्वत्र वर्जयेत्, अति गुनाह होता है। सबका भला चाहते हो, मेत्ता रक्खो बेइंतिहाई किसी में, अंजाम बुरा होता है। बर्बाद करने की यह होड़ क्यों लगा दी है? यूक्रेनी हलधर के लिये जसबीर यहाँ रोता है।
धोखों का शिकार हलधर हैं-डॉ. जसबीर चावला
धोखों का शिकार हलधर हैं फसल चाटते अजगर हैं। पंद्रह मिनट में मार्का लगा देते गुणवत्ता जाँचते तस्कर हैं। मजबूरन बेचते आनन-फानन बैंक-साहूकार दुष्कर हैं। खाद पानी बिजली डीजल बीज सारे खर्चा घर हैं। खटता सारा टब्बर है दिल पे रखे पत्थर हैं।
कल चलीं, आज और तेज़ चल रही हैं-डॉ. जसबीर चावला
कल चलीं, आज और तेज़ चल रही हैं हवाओं से कह दो, आज भी हम यहीं हैं। कयामत भी बरपे, ख़लक़ में ख़ला में इरादों में हिम्मत, फ़लक औ' ज़मीं हैं। मिलेंगे जो छूटे, अलग हैं न टूटे, मंज़िल वही है, ट्रैक्टर वहीं हैं। जितने भी धोखे करो हलधर से जीतेगी मेहनत, पूँजी दम नही हैं। हमारे ही कम्म से चलती है दुनिया भूखे भजन, ऐसे भक्त नहीं हैं।
वक्त आने पर बतला ही देंगे मेरे दोस्त-डॉ. जसबीर चावला
वक्त आने पर बतला ही देंगे मेरे दोस्त मीडिया से रख छुपा जो हलधरों के दिल में है। वोट पे जो चोट थी, मत-मशीनों ने सही काफिला तो लुट गया, उसूले-रहबर दिल में है। लोकसभा ना सही,राज्य सभा जोह लो बीच कुँए में खड़े खुल बोलना,जो दिल में है। होली क्या दीवाली क्या, हलधर के घर तो मौत है न्याय मिलेगा इस जनम में, रब आसरा तो दिल में है। मूक सारे देखते, पूँजी से सत्ता नाचती सरफरोशी की तमन्ना और किसके दिल में है?
तुम क्या होली मनाओगे हलधर-डॉ. जसबीर चावला
तुम क्या होली मनाओगे हलधर तुम्हारी होली तो मन चुकी आठ सौ बंदे अपने फूँक दिये बाकी लखीमपुर में खीर कर लिये! ये तो कहो अभी गुरूओं का बलिदान है जो छिड़क देता है तरस के रंग नहीं, काले कानूनों का विरोध किया जिस ढंग तपस्या में थोड़ी कमी रह गई, रीझा नहीं महाकाल! चौरासी से ज्यादा करते बुरा हाल घल्लूघारों के लेते नज़ारे जाते अंबानी-अडाणी के गुरुद्वारे। उनके हाथ सब कुछ रंग और पिचकारी, सत्ता-संविधान तुम्हारे पास खाली पानी और श्रम ट्रैक्टर और मैदान न खाद, न कीटनाशक, न डीजल, न संद कहाँ तक पहुँचेंगे हलधर बेपारटी, बेफंड? बेच दो इनको, चुका दो ऋण हो जाओ आत्म-निर्भर कर दो बॉयकाट, बैंकों का योजनाओं का प्रलोभन हैं नाना, गले की फाँस भोले भले किसानों का करते विनाश! तुम स्वयं अनुभवी कृषि का समझते तीन-पाँच विज्ञान की सलाहों सरकारी दुआ-सलामों धरती को कैंसर, देखो वाटर-टेबल दुनियाभर प्रदूषण, उल्टे तुम्हीं पर दोषारोपण । देश की भूख मिटाने लगे रहे पैदावार बढ़ाने आय तेरी बढ़ी, शराब ठेके बढ़े तुझे मवाली करजाई बनाने में लगे पूँजी की नज़र में तेरी गाढ़ी कमाई। मत रो अपनी कुर्बानियों का रोना ऐसी व्यवस्था में यही है होना तू मुद्दा है सबकी राजनीति का खुद ही अपना हित सोच, मोह छोड़ झूठी प्रीत का।
चारों किसान नेता राज्य सभा में जायें-डॉ. जसबीर चावला
चारों किसान नेता राज्य सभा में जायें कृषि मंत्री को सबके साथ विंदुवार समझाएं अपनी तपस्या में कोई कमी न रहने दें हलधर की हकीकी जमीनी हालत दिखलायें। क्यों मजबूर कोई होता ज़हर खाने को मेहनती तो यह सब सोचता तक नहीं कौन खलनायक ज़िंदगी में आता है सब खोल-खोल हर पहलू साफ साफ दरशायें। हालाकि उनको मुश्किल है विश्वास दिलाना क्योंकि पूँजी ने आँखों कानों को नाकारा कर दिया है फिर भी शांति अहिंसा परम मानव धर्म है भारत माता की जय बोलकर अपना दर्द बँटवायें। हलधर राज्य सभा में जाँए
इंसान में दोनों हैं, राम और रहीम-डॉ. जसबीर चावला
इंसान में दोनों हैं, राम और रहीम दोनों अंदर रहते हैं दोनों बाहर लिख, गले लटका लेने से सिख इंसान नहीं हो जाता। हलधर जानता है सब, पहले खालसे का आह्वान होता है यानि दीन के लिए बंद-बंद कटवाने वाला यानि सवा लाख से अकेला टकराने वाला यानि सरबत्त का भला चाहने नहीं करने वाला। तो भई, पहले देख ले सरबत्त का बाना पहन कौन आया है हलधर जानता है सब, पर उसे अपने इस्तेमाल का पता होना चाहिए नहीं तो वह अंदर बाहर होता है और पकी रोटी कोई तीसरा है , उड़ा ले जाता है!
भगत सिंह सुखदेव राजगुरु क्रांतिकारी थे-डॉ. जसबीर चावला
भगत सिंह सुखदेव राजगुरु क्रांतिकारी थे खुद न सही, हलधर बाप-दादे थे डाक्टर इंजीनियर वकील या मिनिस्टर उच्च पदस्थ अफसर,खुद न सही पुरखे-पूरवज हलधर थे, कोई हो देश जाति-धर्म नसल, दरअसल इंसान मूलतः हलधर होता है मानव-सभ्यता का इतिहास खेती से ही शुरू होता है। वनों में जानवरों के साथ जंगली शिकारी था जमीन से जुड़ा तो तजुर्बेकार विज्ञानी हो गया पसीना बहा प्रयोगों को सफल करने तुल पड़ा बीज से फल तक पहुँचाता हलधर अन्नदाता हो गया। कृषि ने ही रचे वेद-स्मृतियाँ -पुराण हलधर ने ही किये सभ्यताओं-संस्कृतियों के निर्माण कृषि ही बनाती कानून,राष्ट्र, संविधान फसल ही नियंत्रक अर्थ व्यव्स्था की जान। अतः,कानूनों से कृषि का नियंत्रण न हो उल्टी धारा बहा किसानों का कत्लेआम न हो हलधर को हर फसल एमार्पी, अहसान न हो भारत विश्व गुरु, काली पूँजी का गुलाम न हो।
दुर्योधन को कितना मोह था सिंहासन से-डॉ. जसबीर चावला
दुर्योधन को कितना मोह था सिंहासन से भग्न जंघाओं के दर्द में तड़पता भी अश्वत्थामा का राजतिलक कर गया हार नहीं माना पर। भीष्म को कितना मोह था प्रतिज्ञा से तीरों की शय्या पर बिंधे शरीर भी युधिष्ठिर को राजमुकुट पहने देख गया प्राण नहीं छोड़ा तब तक। हलधर, जिन्हें मोह है कृषि के तीन कानून सही कहते छलनी लोकशाही,लुटी किसानी, बिलखती प्रजा देख भी भगवा संगमरमर फर्श सरयू जल से धो मनुस्मृति को संविधान बनायेंगे। तुम चिड़िया हो, चोंच-चोंच पानी लाते नफरत की लपटों से बचते बरसाते लंगर से"'मानस की जात एक" पैगाम सुनाते तुम्हारा मोह प्रेम-अहिंसा से मन की बात आकाशवाणी से हर भारतीय भाषा में जन-जन तक पहुँचाओ तुम।
हल्का-हल्का बुखार रहता है-डॉ. जसबीर चावला
हल्का-हल्का बुखार रहता है मर गयों से भी प्यार रहता है। बातें जितनी सुनी -सुनायी हों दिल पे छाया गुबार रहता है। या खुदा मुझे भी तसल्ली दे कातिल अक्सर फरार रहता है। करो रिंदों से क्यूँ जवाब तलब नज़रों साक़ी ख़ुमार रहता है। हलधर जसबीर के घर जा मिलने सोचें सोचता बीमार रहता है।
दरख्त से बूँदें चूकर-डॉ. जसबीर चावला
दरख्त से बूँदें चूकर सड़क के पानी पर गिरती हैं नस-नस झनक जाती है गोल-गोल स्पंदन घिरता है अब ज़रा -सा हटकर खेत में उगे धान के बीजों बारे सोचो इनमें स्नायु-जाल कौन बुनता है? तंतुओं और सूक्ष्म रेशों से संवेदनाएं और मानव-मन के स्पंदन घिरे हैं पसीने की बूँदें हरी हो गई हैं आदमी का लहू मिट्टी में दौड़ रहा है हलधर, तुम साधक! धरती सजीव हो उठी है।
फिर से बहस शुरू करने के पहले-डॉ. जसबीर चावला
फिर से बहस शुरू करने के पहले मेरी बात मानो दोस्त, हलधर! बाहर निकल कर एक बार आकाश का मुआयना कर लो! मौसम हमारी दीवालों पर फफूँद से पहले बदन की गंध और पिशाब में पाया जाता है दीमक हमारी पिछली पीढ़ी की किताबों में नहीं थाली और गैस चूल्हे में से बरामद है आखिर एक ही बात को बादलों से सुन मेंढकों से सुनने में क्या रखा है किसी ऐसी ताक पर,जहाँ इस देश की सारी अक्ल और राष्ट्र-पिताओं की सेहत एक साथ रखी है हमें अपनी डिग्रीयाँ धरने की क्या जरूरत? पेशेवर औरतों और भड़ुओं की बातचीत में राजधानी की राजनीति छुपी है धंधा कच्चे चमड़े का हो या वोटों का गाहक की नज़र कीमत पर होती है तुम कहते हो लाचारी है, मैं कहता हूँ सरासर दुकानदारी है। तुम कहते हो हुकूमत क्या करे जनता सोती है मैं कहता हूँ लूट के वक्त अदालत और पुलिस जगी होती है। तो बहस का मुद्दा और अपराधी को सजा, हलधर को इंसाफ मौसम देखकर बदले नहीं जाते हाँ, बहस शुरू करने का वक्त ठीक किया जा सकता है।
पानी की आदतों को पहचानो हलधर-डॉ. जसबीर चावला
पानी की आदतों को पहचानो हलधर घुमाओ उसे जोर-जोर तले जो है, उगल देगा। कवि नहीं बतायेगा, अपना काम निकाल छोड़ देगा। बुद्ध का अनुयायी सब को बतायेगा। दुःख है, साँसें हैं घाँटो जोर-जोर, मथ दो मन सब उगल देगा। समुद्र ऐसे ही नहीं फालतू मथा गया बहुत कुछ बैठा हुआ है संसद-सागर में ट्रैक्टरों से मथ दो ,उलट दो करों का बोझा जो अपने सर ढोते फिरते सारे नेताओं के भत्ते-पेंशन खटते सुरक्षाओं के खर्चे पालते वही तुम्हें रावण के स्वर्ग ले चलते। मथ दो तंत्र मेहनतकशों से मिलकर एक तरफ तुम खींचो चुनाव-वासुकि दूसरी तरफ से गरीब वंचित दलित सर्वहारा । तुम्हारा ताज उसी में डूबा।
बाहर आओ, देखो हलधर-डॉ. जसबीर चावला
बाहर आओ, देखो हलधर आकाश में धरती का कौन-सा कोना घुस गया है कौन -सा लावा बह रहा है अपनी जेबों में रखे तर्क सहला लो ऐन बहस के वक्त तुम बीड़ी सुलगाते हो और यह ख्याल रखते हुए कि हमारा देश घोड़े की नाल नहीं, चमगादड़ -सा पंख फैलाये है जिस हिस्से में मोर मिलते हैं,साँप नहीं एक छोर से आवाज़ मत दो बीच में जाओ, ऊँचे खड़े होवो और पूरे ज़ोर से चिल्लाओ, ताकि बात कन्याकुमारी में आश्रमों के साधनास्थल तक पहुँचे और हिमालय की गुफाओं में भी आदिवासियों की झोपड़ियों में, और प्लेटफार्मों पर भी कारखानों और विश्वविद्यालयों में भी खेतों में और चाय बागानों में भी सीमाओं और सुरंगों में भी कचहरी में और कार्यालयों में भी प्रयोगशालाओं में और अस्पतालों में भी गिरजा और गुरुद्वारों में भी गेराजों और चकलाघरों में भी ठेकों और अहातों में भी। तुम्हारी आवाज़ एक बिजली हो जिससे इस देश के पत्थर और संसद पहाड़ और रेगिस्तान शहर और जंगल इस देश के देवता और शैतान एक साथ चौंकें सब की आँखें उस आवाज़ को एक साथ देखें और समझ लें यह बहस का वक्त नहीं है काले कानूनों को निरस्त करने का है।
जो है अदालत है-डॉ. जसबीर चावला
जो है अदालत है,और हम कुछ नहीं हैं? सर्वोच्च न्यायालय बोल दिया माने हम सब मान लें? हमलोग चुन के नहीं आये हैं? हमलोग का कोई दाम नहीं है? ब्रह्मा के मुख से नहीं जन्मे हैं? बाहुबली नहीं हैं हम? संविधान बोले तो ठीक, हम बोलें तो गलत? आपका कहने से? एँह! सजा पूरा हो गया मतलब छोड़ दें? बाहर निकल खालिस्तान माँगोगे सो? ऐसे कैसे छोड़ दें? मवाली साले! कोई अंग्रेज हैं हम? भारत माता हमको क्या बोलेगी, माफ करेगी? क्या मुँह दिखायेंगे! तुम तो हलधर, हमको मत सिखाओ ! कोई बाग का मूली ए हो न? आंदोलन जीवी हो मतलब सिर पर चढ़ोगे? असुर लोग को कुचलने में कोई पाप है? ब्रह्मा के पैर से भी पैदा होते तो ऐसा नहीं करते पैदा हुए तुम लोग विष्ठा से नहीं तो स्वप्न दोष से दुनाली से सफाई होगा,तबै बूझोगे।
देश ने राज्य पर चढ़ाई कर दी-डॉ. जसबीर चावला
देश ने राज्य पर चढ़ाई कर दी चेत, अश्वमेध का घोड़ा है। हलधर तूने रोक लिया था वापस दौड़ा,फिर छोड़ा है। राष्ट्र तो पहले भी एक था एक रंग -डूबा थोड़ा है। भूखे-नंगे टुकड़े नाना कौन धूर्त ऐसे जोड़ा है। दिल से सारे जुड़े हुए पर ऊँच-नीच का फोड़ा है। चंगा तो कंपनियाँ कर दें हलधर ही बस रोड़ा है।
डालनी थी खाद, डाल दी फूट-डॉ. जसबीर चावला
डालनी थी खाद, डाल दी फूट वाह री देश-भक्ति, राष्ट्र जाये टूट। हलधर की एकता खतरे की बात? गद्दी रहे सलामत, फैलाये झूट! आपस में लड़ मरें देश के किसान सत्ता पर काबिज हम चाँदी लें कूट। चिट्टा चटा चुप करायें,जूझें जो जाट बाकी दूषें भाग को,किस्मत गई फूट। लामबंद श्रम न हो, न हो आवाज़ चुनाव पूँजी तंत्र का,नेताबाजी लूट। मंत्रियों का आयकर देश की जनता भरे जेल तो हलधर भरें माँग लें जो छूट ।
मन में कपट, कपट में मन है-डॉ. जसबीर चावला
मन में कपट, कपट में मन है कपड़ा रँगा, रमाया तन है। जोगी सिद्ध जोगड़ा घर का आन गाँव का लंपट धन है। कब से खड़ा दुआरे थारे दुर्लभ मोहन कूँ दरसन है। सूरत टेढ़ी-मेढ़ी लगती सीधा दिल केरा दरपन है। छेड़ो कोई बात सखी री वर्ना साधु जाता वन है। कोई खोट तपस्या में है चंचल हिरनी जैसा मन है। हलधर की भई बात निराली देश के लेखे तन-मन-धन है।
प्रधान मंत्री से होता है कौन ऊपर-डॉ. जसबीर चावला
प्रधान मंत्री से होता है कौन ऊपर मिलूँगा उसे इसी वक्त यारो मेरा कर्म सच्चा मेरा धर्म सच्चा मैं चुरासी का मारा हूँ सिख यारो। मेरी आँख रेती मेरे होंठ गल गये रोते-रोते डूबे छत्ती बरस यारो। इक अकेला जसबीर नहीं हिंद अंदर तरस जोग करोड़ों हैं बशर यारो। हलधर खैर मंगे सरबत्त देश वासीयों की फिर धरने पे बैठे लेबर-मजदूर यारो।
तुम्हें यह इल्म नहीं-डॉ. जसबीर चावला
तुम्हें यह इल्म नहीं अधकचरे हलधर आंदोलन ने ही मंडी की चूलें हिला दी हैं। दूर तक गई हैं, दिल्ली बॉडरों से जो सदायें दी हैं सरहदें पार कर गई हैं पड़ोसी देशों के श्रमिकों की नींदें उड़ा दी हैं मेहनती अवाम की चेतना अंगड़ाई है भारतीय उपमहाद्वीप में पूँजी थर्राई है। लामबंद श्रम न हो, न हो आवाज चुनाव तंत्र बिजनेस है,नेता व्यवसायी है। हलधर तेरे खेतों में घुसपैठ जारी है आपस में लड़ा दें पूरी तैयारी है। नेताओं के भाग्य का फैसला वोट करते हैं मतदाताओं की मति का फैसला तुम करो सहकारिता,सहयोग बढ़ाओ हलधर भारत पूँजी की गुलामी से मुक्त करो।
सैर को बदलो सवार को बदलो-डॉ. जसबीर चावला
सैर को बदलो सवार को बदलो। मंज़िल जो पानी हो रफ्तार को बदलो। बदलो कि बादलों में रह न जाये खोट धरती के हर फूल और खार को बदलो। वोटों की फौरी दोस्ती से बाज आ जाओ गाँठ बदल दो संग यार को बदलो। इंसाफ न मिले अगर मज़लूम मूक को मुंसिफ बदल डालो पैरोकार को बदलो। कैंसर धरत मात पिता पानी को हुआ हलधर बदल दो बीज और सार को बदलो। कैसी नदी बही संसद सड़क के बीच नाव बदल डालो या पतवार को बदलो। हँसुआ न काट पाये अगर पके धान भी लोहा बदल डालो, अपनी धार को बदलो।
सुनी सुनाई बात पर-डॉ. जसबीर चावला
सुनी सुनाई बात पर करो न कभी यकीन। सबका दाता राम है, हलधर बेचो जमीन। हलधर बेचो जमीन बैंक में गिरवी रख दो कर्ज ब्याज पर लेकर नई मशीनें भर लो ड्रोन उड़ाओ फसल पर, कीटनाशक छिड़को खाद भी डालो प्रेम से, भंगड़े पर थिरको सारी फसल खरीद ली कीम आधी करके फेल टेस्ट में हो गई तेरी दारू करके। कह जसबीर कविराय यही पूँजी की करनी अब पछताय होत क्या बेमौती मरनी।
तुम्हारे गुरु उनके आदर्श हैं हलधर!-डॉ. जसबीर चावला
तुम्हारे गुरु उनके आदर्श हैं हलधर! उसी हिसाब से चलते, कानून बनाते हैं तुम लाल किले अपना परचम फहरा कैद हुए वहीं से कीर्तन करवा भषणाते हैं सजा भुगतने वाले कहाँ छूट पाते हैं? श्लोक महला नाँवाँ आठ सौ किसानों के भोग में पढ़ा गया सुनते रहे,कुछ सीखे नहीं धरती पानी एमार्पी सब आनी जानी नानक थिर नही कोय, सुख दुख एक कर मानो दुगुनी आय से दूना सुख मत समझो कर्ज ले ब्याज पटाते हो लंगर छको लगाओ लंगर जमीन से मोह क्यों लगाते हो?
हर कोई सच बोलने से कतराता है-डॉ. जसबीर चावला
हर कोई सच बोलने से कतराता है हर कोई सच सुनने से घबराता है। क्या क्या ढंग सिखाये हैं सियासत ने यहाँ पोल खुले खुद को ही गरियाता है। मस्त रहता है अंधेरे में कलंदर बनकर रौशनी देखते दुम दाब दुबक जाता है। तुम्हारे वास्ते कुछ भी नहीं जन्नत-दोज़ख़ गम का मारा हुआ दिल इनसे बहल जाता है। तुम मेरा हाथ पकड़कर हलधर चलना गमों के रास्ते जसबीर भटक जाता है।
हो सके तो हलधर के खेत पर मुँह धोओ-डॉ. जसबीर चावला
हो सके तो हलधर के खेत पर मुँह धोओ देशद्रोह है, जिस तरह के छल उससे करते हो। थी, है, रहेगी एमार्पी, और कितनी बार बोलेगा? खाद,डीजल, दवाई कीमतों बारे कुछ कहो। खुदकुशी कर लेता जब सूख दाणे बौने हो जाते किसान को उनसे बेटों से अधिक हो जाता मोह। झाड़ छोटा होने का मतलब ब्याज का बढ़ना होता है गाली गलौज दुआरी पर सूदखोरी भड़का देता है रोह। ठीकरा सारा फूटता हलधर के सर मवाली कहकर गिरवी जमीन कर्ज चुका न पाये,यही तो रहे थे जोह।
एक दाना भी होगा तुम्हारे शरीर पर-डॉ. जसबीर चावला
एक दाना भी होगा तुम्हारे शरीर पर तो नोचेंगे ये असली गिद्ध हैं मरते दम तक दबोचेंगे। जमीन गिरवी,छत गिरवी,भांडे-टिंडर गिरवी गिरवी को अस्थियां जब आयेंगी तब सोचेंगे। हलधर यह पूँजी तंत्र है, यहाँ मंडी मंत्र है दाना सुँगड़े चाहे फैले, उजड़े खेत खरोंचेंगे। किसने कहा था चिकने चेहरों चुपड़ी बातों में आने को दसखत किये हैं,माफी कैसी आत्म हत्या पर ही भरोसेंगे। सवा लाख से एक लड़ते थे, गये जमाने वे तुम्हारे एक वोट के लिए क्या दिल्ली दरबार परोसेंगे?
खेती व्यापार होती तो-डॉ. जसबीर चावला
खेती व्यापार होती तो बेहतर था हलधर वैश्य होता हाथ-पैरों से खटना, सेवा है दास-वृत्ति शूद्रों से भी नीची जात सिख नाम न होता। हर छोटी-सी बात के लिये भी तुमको लड़ना होगा इकट्ठे होकर समूह में प्रदर्शन करना होगा मौसमों के कड़ाके बेअसर तुम पर रास्तों में कील बिछा देंगे, तुमको चलना होगा बदनाम करने में सुख मिलता है सम्मान देने में उनका रोब घटता है वेदों के ज्ञाता तुम्हारे मोक्ष का भी ध्यान रखते हैं जन्म से लेकर पूरी गुष्टी का डेटा रखते हैं चिट्टा चाटकर सोचते हो इनका चिट्ठा खोल दें नहीं तो खुदकुशी कर खुदा से बोल दें यहाँ तो कोई सुनता नहीं सच्चे दरबार में ही नालिश हो भोले हो, पंजाब के हलधर खालिस हो।
अपनी आँखों के लिए खुद जिम्मेवार हो-डॉ. जसबीर चावला
अपनी आँखों के लिए खुद जिम्मेवार हो, देश दायी नहीं, जैसे बस में सवारी खुद जिम्मेवार है, जेब और सामान के लिए कंपनी दायी नहीं।लिखा हुआ है लिखने से बतंगड़ खतम। यह तो तीरथ है, भीड़ है अपने जूतों के लिए खुद जिम्मेवार हो सभी तरह के लोग होते हैं, आते हैं गुरूद्वारे में जूताचोरी नहीं होती यह कहीं नहीं लिखा। तुम्हें मालूम है एक आदमी खड़ा कर जाते हो वह बाद में मत्था टेकता है या टेकता ही रहता है। अपनी वोट के लिए खुद जिम्मेदार हो कोई पार्टी दायी नहीं विश्वास और सपने चोरी होते हैं उम्मीदों के चमकदार कागज उसी तरह लिपटे रहते हैं, हलधर भीतर से माल गायब रहता है। कहीं नहीं लिखा ऐसा हो सकता है तुम जानते हो होता है पता ही नहीं चलता दौलत कब कैसे विदेश भाग गई किसकी जिम्मेदारी है बारी बारी जाओ मत्था टेकण नहीं है कोई तो मत जाओ हलधर।
रात की किस्मत में-डॉ. जसबीर चावला
रात की किस्मत में दिन का उजाला कहाँ फसलों की राखी करता,तेरा रखवाला कहाँ? अब गोबर की खाद ले,जमीन कैंसर से बचा ठीक है दरियादिली पर अब पंजपानी पंजाब कहाँ? भारत को तब लोड़ थी पैदा सोना झोना किया पर हलधर जग देख ले धरती का जल है कहाँ? जैविक खेती बीजकर संग कोई धंधा चला चिप्स आलू प्याज के, एमार्पी में वह दम कहाँ? सॉसजैम और सब्जियाँ डिब्बाबंद मशरूम पढ़े लिखे जट गर जायें जुट टिके अडाणी कहाँ?
यह सियासत है पैंतरे बदल के देख-डॉ. जसबीर चावला
यह सियासत है पैंतरे बदल के देख चल जाए जो इक टर्म वही तो चाल है। पंजे बदल के देख पार्टी बदल के देख पेंशन लग जायेगी जनता का माल है। हलधर तुझे लड़ायें वो अपनी सुरक्षा को ठीक से लड़ो, जेड का सवाल है। सेवा ही करनी होती तो काम हैं बड़े वोटों से बने सेवक, घर मालोमाल है। जसबीर तुझे क्या पता,फालतू न लिख आज मौका है, कल खस्ताहाल है। ***** भ्रष्टाचार का भय दिखलाकर अंबानीचार फैलाओगे पूँजीचार बतला बतला हलधर अवरोध हटाओगे?
गदर ज्ञान-डॉ. जसबीर चावला
सन संतावन की तलवार लेकर भाँजोगे चमक उठी है, चमक उठी है,तो चलेगा? यहाँ गोरी सरकार नहीं काली है काले कानून बनाने वाली है झलकारी बाई हो कि लक्ष्मीबाई हो तुम्हारी बुंदेली-खड़िया सब जाननेवाली है कुल पंद्रह सौ अंग्रेजी अफसर नहीं चप्पे-चप्पे मनुवादी दफ्तर वाली है। तन लगायेंगे बलात्कार करने में मन लगायेंगे लाश ठिकाने लगाने में बुद्धि लगायेंगे सबूत मिटाने में धन लगायेंगे केस रफा -दफा करवाने में गाड़ी लगायेंगे विरोधी को कुचलवाने में कुल लगायेंगे दबदबा बनवाने में जाति बिरादरी लगायेंगे धमकाने में रसूख लगायेंगे अदालत भँजवाने में गुंडे पुलिस लगायेंगे पीड़ित परिवार बर्गलाने में थाना लगायेंगे एफआईआर दबवाने में मंत्री -संसद लगायेंगे विपक्ष हथियाने में प्रेस चैनल लगायेंगे बलात्कृता को दोषी ठहराने में मरने वाले को षड़यंत्रकारी नक्सली बताने में पुरोहिताई लगायेंगे बाल छिलवाने में पंडिताई लगायेंगे मृतक की आत्मा को शांति दिलवाने में। तुम्हारी बलिदानी गाथा क्या करेगी? बाँचते रटते रहो हर ठीहे पुरानी तलवार माँजते रहो,जाँचते रहो चमक उठी चमक उठी गाते रहो गाँजते रहो आठ हफ्ते नहीं तो दस बस उतर जायेगा फितूर भूल भाल जायेगा जनता जनार्दन को गरीब जुट जायेगा खून के आँसू पी रोजाना खोराकी की जुगाड़ में जैसा कर्म करेगा कोई,फल देगा भगवान यही तो बताया हलधर गीता का ज्ञान।
सबको अपनी सियासत की पड़ी है-डॉ. जसबीर चावला
सबको अपनी सियासत की पड़ी है देश के सामने भुखमरी खड़ी है। सबको अपनी पार्टी की पड़ी है बेकाम जवानी मुँह बाये खड़ी है। घमंड से घमंड टकराते बड़े हैं मेरी कुर्सी बड़ी कि तेरी बड़ी है। बदले की आग में जल रहा जमाना लाशें गिना रही कोरोना की लड़ी है। चुल्लू में पानी लेकर डूब कर मरो हलधर से जो करते हो धोखा धड़ी है।
देखना न, पारा आकाश छुएगा-डॉ. जसबीर चावला
देखना न, पारा आकाश छुएगा धरती पैर छूयेगी, गिड़गिड़ायेगी पारा कोई दूध तो है नहीं कि फट जायेगा उसका तो क्वथांक ही बहुत है! वह क्यों मानेगा तुम्हारी बात तुमने जैसे नहीं मानी किसानों की बात। छप्पन ईंच से सत्तावन करने में सात सौ मार दिए हेकड़ी के चलते फसलें सुंगड़ा दीं निहत्थे निरपराध कुचल दिए । बेगमपुरा में ऐसा नहीं होता क्योंकि किसानी सरकार होती मजदूर मेहनतकशों खालिस इंसानों की सरकार अपने दो यारों की चाँदी जूती न चमकाती न फसलों को धमकाती । वहाँ सत्ता चुनाव का खेला जनता के टैक्स से न खेलती वहाँ पारा मर्यादा में रहता, आकाश न छूता। माना पगड़ी सँभाल ली समय रहते लाल किले देर दुरुस्त कर ली गुरुओं के बलिदानों को याद कर मत्था टेका बारम्बार। चलो हलधर माफ कर देगा पर पारा नहीं करेगा, आकाश छुएगा लाखों हाथरसी देर रात जलाई बहाई लाशों का धुँआ जमा हो गया है अंतरिक्ष में, मोटी दीवार बना दी है डीजल-सा पारा उतना गिरेगा नहीं जितना उठेगा भोर ले सतहें ठंढायेंगी नहीं, लोग जान बचाने भाग जाना चाहेंगे जिनके पास दौलत की गर्मी है उन्हें पारे से क्या? महारानी के राजमहल में सपरिवार रहेंगे।
कणक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय-डॉ. जसबीर चावला
कणक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय इक पाये लॉकर धरे दूजे मण्डी धाय। दूजे मण्डी धाये जहाँ पूँजी के बस है बीच सरकार दलाल कणक अवश है। हलधर मजबूरी में सौदा फसल का करता कनक चाटता बार बार कर्जे में मरता। नोट : कणक, कनक =सोना, गेहूँ, धतूरा।
सच से सच का सामना, पहला सच है कौन-डॉ. जसबीर चावला
सच से सच का सामना, पहला सच है कौन छोटा सच था उबलता, बड़ा सत्य था मौन। बड़ा सत्य था मौन, भरे फिर कौन गवाही चर्चा देश-विदेश में,हलधर गल फाही। बूढ़े सच ने छोड़ जिद, रस्ता दिखलाया तुम्हीं हो पहले जाओ भाई,छोटा शर्माया। मंत्री को डर लगता हलधर के नारों से हलधर को डर लगता मंत्री के लारों से। अफसरशाही मंत्री के कानों में फुसफुस करती जनता से जन-नायक की दूरी बनती। समय-समय की बात है,समय बड़ा बलवान पहले होता भक्त बाद में बन जाता भगवान। एक बार जो चुना गया, गया हाथ से निकल दुनियाभर के ताम-झाम, क्या-क्या करें सफल। वादा पूरा न करे उसे वापस बुलवाओ हलधर मतदाता को यह अधिकार दिलाओ।
आज़ादी के पहले से भी-डॉ. जसबीर चावला
आज़ादी के पहले से भी ये रास्ते चले आ रहे थे अंग्रेज़ों ने पक्के किये। उनमें जो गुलाम थे, दिखाये नये रास्ते आज़ादी के। तुमने चौड़े किये, सड़कें बिछाये जाल फैलाये गुलामी के तुम में जो गुलाम नहीं, दिखाये नये रास्ते सिखाये कायदे आज़ादी के। हलधर! तुम्हीं पथप्रदर्शक मुक्ति के।
अनेक खेत अनेक फसलें हैं-डॉ. जसबीर चावला
अनेक खेत अनेक फसलें हैं अनेक बीज अनेक नसलें हें अनेक फलफूल सब्जियाँ अनेक हैं अनेक रितुमौसम सूरज बस एक है। अनेक गैंग अनेक गैंगपति हैं अनेक मंडियाँ अनेक मंडीपति हैं अनेक सभायें सभासद अनेक हैं अनेक विधान संविधान बस एक है। अनेक राज्य अनेक सूबे हैं अनेक राज्यपाल अनेक मंसूबे हैं अनेक ब्याज बैंक मालिक अनेक हैं कंगाल होने को हलधर सब एक हैं।
हलधर, तुम्हें अपनी संसद को खुद ही चलाना है-डॉ. जसबीर चावला
हलधर, तुम्हें अपनी संसद को खुद ही चलाना है चुनके जिस भी भेजा, निकला बेगाना है। वहाँ पूँजीतंत्र है, मेहनत पर राज करता सब बेचता, क्रय करता, ईमान बचाना है। वहाँ श्रम नहीं पूँजी की तरफदारी होती जे जाय लंका होए रावण, अखाण पुराना है। तुम उट्ठो करो एका, चुनाव जीत जाओ संसद में हर आवाज़,श्रम को ही जिताना है। कैसे किसान मजदूर के हक को कोई मारेगा दलाली कमीशनखोरी, भ्रष्टाचार मिटाना है। मशक्कत घालते जीवन में,मोक्ष के अधिकारी हक पराया खाने वालों को रस्ते पर लाना है।
हलधर पृथ्वीराज -डॉ. जसबीर चावला
जिन सोये हुओं का कत्ल कर गये थे गुस्से से भरे ही वे चल बसे थे। मूली-गाजर की तरह कटे वे सहस्राब्दि बाद बेकयामत जी गये उठ खड़े ले त्रिशूल-मीडिया बहसी भाले नफरती वाग्बाण क्रोध पाले। उन्हें क्या पता कौन थे वे करते अंधेरी रात अंधे हमले उनका मजहब यही था सिखाता? खत्म काफिर करो सबसे पहले? तुम क्यों उनकी जुबाँ बोलते हो? वे नहीं हैं ये, पापी मर चुके। गुणी इतिहास में आँख खोले पर वर्तमान की भाषा बोले पहले देखे कौन लड़नेवाले युद्ध भूमि है किसके हवाले मुद्दतों बाद बदले? आग बबूले? अब जगो, मत रहो पहले वाँगू सोये! सीखो दुश्मन से, जो कभी न सोता आठों पहर चौकन्ना रहता हलधर समझो पूँजी का खेला आगे फरियाओ जयचंद-झमेला।
नबी की शान में ऊलजलूल मत बोलो-डॉ. जसबीर चावला
नबी की शान में ऊलजलूल मत बोलो गलती हुई है तो अब इस्लाम कुबोलो। जितनी जल्द हो सके खतना करवा लो तेरा सामान नहीं खरीदेंगे, हिजाब डालो। हलधर की आय अब दुगुनी होने से रही खाड़ी के मुल्कों से पंजाब निकालो। सियासत के दाँव-पेंच कबड्डी से सीखिए ढंग मुद्दा ढूँढ टाँग खींच दबा लो। दम फूले यार पाले पार भागेगा करोना का कहर फिर से बरपा लो। बिना मिटाये लीक छोटी करनी तो ठीक बगल उससे लंबी और इक डालो।
दो आरजू में कटे, दो इंतज़ार में कट जायेंगे-डॉ. जसबीर चावला
दो आरजू में कटे, दो इंतज़ार में कट जायेंगे हलधर मिलेंगे आपस में तो दिन पलट जायेंगे। जिंदगी बस चार दिन,दुनिया का लगातार मेला है चंद राज करते जायेंगे, ज्यादा भूखे मरते जायेंगे। फसल पर डाका पड़ा तो नसल लुट्टर हो गई किसान मजदूरे बनेंगे, दर-दर की ठोकर खायेंगे। देश में धोखाधड़ी, परदेश किसको क्या पड़ी बहुत हैं गर्के-समंदर,ओवरडोज ले मिट जायेंगे। पूँजी में मेहनत के पुर्जे न लगें तो इंटर्नेट फोर फाइव जी जी करते,हुजूर उलट जायेंगे।
ईस्ट इंडिया कंपनी नहीं-डॉ. जसबीर चावला
ईस्ट इंडिया कंपनी नहीं, वेस्ट इंडिया कंपनी की भर्ती खुली है चार साल का ठेका, फिर पक्की गर किस्मत बली है मजबूत कद काठी वफादारी कुत्तों-सी हलधर तुम्हारी नस्ल इसी चाकरी के लिए सही हे। गुजरात इंडिया को शार्प शूटरों की लोड़ है जो कंपनी बहादुर के लिए मर सकते वही देश खातिर मिट सकते हलधर, तुम्हारे बेटे शहीद हुए अब यह मौका लाखों का खूब सुनहरी है।
आप ये कैसी योजनायें बनवाते हैं-डॉ. जसबीर चावला
आप ये कैसी योजनायें बनवाते हैं कभी किसानों कभी जवानों को भड़काते हैं। इन मेहनतकशों का आखिर कसूर क्या है क्यों इनको रोजी रोटी खातिर लड़वाते हैं। अच्छा नहीं सोच सकते तो बुरा न सोचिये हरे जख्मों पर नून क्यों छिड़काते हैं। घुप्प बेबसी में हलधर खुदकुशी को जाता बेबस जवानों से घर क्यों फुँकवाते हैं। जय जवान जय किसान नारे बहादुरों के कंपनी बहादुरों को लाल क्यूँ करवाते हैं। देश जनता का, जनता जनार्दन देश की चंद नेता मिल कुबेरों क्यूँ राष्ट्र लुटवाते हैं। डेटा पेगासस का,हालात भारत माँ के लागू हों पछी, पहले संसदी करवाते हैं।
तुम्हारा मत कितने में खरीदता-डॉ. जसबीर चावला
तुम्हारा मत कितने में खरीदता अपना कितने में बेचता है यह मतों का कारोबार है या गोरखधंधा है लोकतंत्र का मज़ाक़ है,हलधर तू अंधा है? न चुनते तो उसकी औकात क्या थी अब देख उसकी जायदाद कितनी चुनाव से पहले उसकी बात क्या थी? उसकी कीमत में चार चाँद लगा दिए बदले में उसने बुलडोज़र चला दिए! शतरंज-खेल है, मोहरे हैं लोकमत चाणक्य खेलते ठेकेदारी के गणित सत्ता में साफ दीखते पूँजी के दाँवपेंच मेहनत के गिरते भाव,श्रमिकों के उड़ते छत जांबाज शूरवीरों को ललकारती सरहद धर सिर तली पर फूँकते हर पग वे अग्नि पथ।
मंत्री और अफसर लूटते रहे-डॉ. जसबीर चावला
मंत्री और अफसर लूटते रहे मिल दोनों हाथों से सरकार के कर्जे क्यूँ न चुकता करवायें उन्हीं से। उनके घरों में जो सोने-चाँदी-नकदी के भंडार हैं कर्ज-मय-ब्याज कम है, दो- नंबरी कमाई से। असली आतंकवादी वही हैं पलते सरकारी खर्चे पे हलधर बेचारा बदनाम है तो उनकी वजह से। सफेद कागज नहीं कोरा कागज है बेगुनाही का श्रम अग्नि वीरों की परीक्षा है, जवाब दें सफाई से। बहुत सीधे बने तो हड्डियाँ तक बेच खायेंगे फसलें लुटवाते रहो बेहतर,मुनाफा तुम्हारी खुदकुशी से।
तीन तलाक बोलके-डॉ. जसबीर चावला
तीन तलाक बोलके किसी मोहमडन से निकाह रचा लो नहीं तो विश्व-गुरू के पद से हाथ धो डालो। मुस्लिम वर्ल्ड पड़ गयापीछे,हिंदू-सिख निकलो खाड़ी से यहाँ के मुसलमान भाईयों को,जैसे भी हैं,झेलो-संभालो। नबी की स्तुति में जुबान खोलो न खोल,खिलाफ मत बोलो जो गलतियाँ पुरखों ने कीं, उनका बचाव निकालो। हलधर दलितों को अछूत खालिस्तानी मत समझो-तोलो उच्च वर्ण और कुर्सी का फालतू अहंकार मत पालो। सती होने की नहीं, हिजाब और बुर्का,बड़ा गोश्त खा लो काफिर कटते रहे हैं हमेशा ही,अब बेरोजगारी से बचा लो।
आरती---- मकड़ी के जाले-डॉ. जसबीर चावला
(धुन----- जय जगदीश हरे) मकड़ी के जाले, मकड़ी के जाले मकड़ी के जाले मुँह बाये हैं मकड़ी के जाले,मैया मकड़ी के जाले। मकड़ी के जाले झूलें चहुँ दिस मकड़ी के जाले। मकड़ी के जाले मुँह खोले रोयें मकड़ी के जाले, ओउम् मकड़ी के जाले। मकड़ी के जाले कौन हटाये मकड़ी के जाले, स्वामी मकड़ी के जाले। हलधर अपनी जान गँवाये मकड़ी के जाले,बाबू मकड़ी के जाले मंडी मकड़ी के जाले।
अंधेरे में अपना रस्ता कैसे ढूँढ़ लेते हैं-डॉ. जसबीर चावला
अंधेरे में अपना रस्ता कैसे ढूँढ़ लेते हैं। सुनते ज्यादा,बोलते नहीं,सिर्फ सूह लेते हैं। बेरोजगारों की तादाद बढ़ती जा रही है लाचार कचरे में जिंदगी सूँघ लेते हैं। सत्ता की चाह सियासती सफर कराती सूरत गुहाटी गोआ, मुंबई गूह लेते हैं। हलधर को फरेबी दुनिया से क्या लेना प्रजातंत्र की लाश में फूँक रूह लेते हैं। नफरत के बीज बोते कहते प्यार बाँटो कैसे गोपाल हैं अमन चैन दूह लेते हैं।
किसी गोदी बैठना आसान नहीं होता-डॉ. जसबीर चावला
किसी गोदी बैठना आसान नहीं होता जो बैठ जाये गोदी इंसान नहीं होता। गला काटे जाने की परवाह नहीं होती वर्ना परवाना लौ-ए कुर्बान नहीं होता। किसी एक रब ने बनाई नहीं दुनिया अल्ला की इबादत एहसान नहीं होता। सूरज पे थूकें लार अपने पर गिरती सूरज का कोई नुकसान नहीं होता। गालियाँ निकालें रसूल नहीं दुखते बदले की हिंसा निदान नहीं होता। हलधर से पूछो बताता यही हरदम बिना संघर्ष के कल्याण नहीं होता।
अग्निवीरों के आगे छप्पन ईंची छातियाँ-डॉ. जसबीर चावला
अग्निवीरों के आगे छप्पन ईंची छातियाँ चौड़ी कर देना आखिरी साँसों तक तड़पना पर अंबानी को धरना देना। देश बिकता है बिक जाये नसल और फसल न बिके वंदे मातरम् कहना और भारत माँ की इज्ज़त पर पहरा देना। हलधर यही वक्त है,दिन अच्छे हैं,फिर दर्द कैसा है अर्जुन को बींथने देना, उसके तीरों पर रक्त का अर्घ्य देना। निहत्थे रहना, अहिंसा हारती है तो हारने देना पर इस पुण्य धरती पर किसानी वीरता की लाज रख देना। कंपनी बहादुर ने बहुतों को सूली लटकाया था पेड़ों पर 1857का इतिहास बेनटों पर भूखेपेट लटक फिर रच देना। पूँजी का ताण्डव तुम्हारे रोके नहीं रुकेगा धरती पर बर्बाद होंगे मेहनतकश, लाचारों को लंगर देना, घर देना।
हलधर का कोई पार्थिव शरीर नहीं होता-डॉ. जसबीर चावला
हलधर का कोई पार्थिव शरीर नहीं होता उसका फिर-फिर जन्म-मरण नहीं होता। फसल की खुशबू में समाया ही वह जीता मौसमों के पाले पुष्पित -पल्लवित होता। धरा से वह धैर्य धरता, सूखता मुरझाता बिजलियाँ गिरतीं, पेड़-सा ठूँठ नहीं होता। उसकी आत्मा रची-बसी होती माटी में कंकाल उसका स्वाहा हो राख नहीं होता। दूसरों के लिए कर्ज लेता स्थिति-प्रज्ञ रीढ़ देता स्फीति-वध को, दधीचि नहीं होता। सरकारें कर्ज में डुबा भी खुदकुशी नहीं करतीं भ्रष्टता के ब्याज चुकाते मरता,उऋण नहीं होता। राजधानी की सरहदों पर सिर फुड़वा शहीद होता कालों की मार झेलता,कानूनों में गर्क नहीं होता। ईनाम दो संसद को, मुआवज़ा क्यों किसको? हलधर का तो पार्थिव शरीर ही नहीं होता।
सवाल यह नहीं है कि फुँकने वाली लाशों का-डॉ. जसबीर चावला
सवाल यह नहीं है कि फुँकने वाली लाशों का ईमान धर्म क्या था नस्ल क्या थी जब दावतें रैलियाँ उड़ रहीं थीं? सवाल है कि खतने की चमड़ी वतनपरस्ती की हदें कब लाँघ जाती है सवाल है बरतानिया वजीरे-आला की आँखों में कितनी नमी कितनी शर्म बाकी है? गुलामों की स्वामि-भक्ति के किस्से मशहूर होंगे हलधर की देश-भक्ति पर सवालिया निशान भरपूर होंगे । प्रायोजित राष्ट्रवाद रानी के दस्तखत हासिल कर लेगा अमृत महोत्सव पर भारत इक लाल किला होगा । किलेदार बदलेंगे, उन्नत किस्म के हथियार नज़र आयेंगे पूँजी की वर्चुअल बेड़ियों-जकड़े सिपाहसलार नज़र आयेंगे।
दर्द अभी हद से नहीं गुजरा है-डॉ. जसबीर चावला
दर्द अभी हद से नहीं गुजरा है दवा बन जाए नीम खतरा है। ट्वीट करते ही हीट बढ़ता है हिमालय पिघल न जाए खतरा है। तमाम मुल्कों से आ रहे फतवे हिंद को काफिरों से खतरा है। परले दर्जे का फैला पूँजीतंत्र हवा पानी में बैठा खतरा है। पहले पगड़ी सँभाल हलधर वे! कीट नईं दवाईयों में खतरा है। कल नरमे की सुण्डी पीली थी अज मुंगी में पीला खतरा है।
जल्दी में गलती से किसी के मुँह से-डॉ. जसबीर चावला
जल्दी में गलती से किसी के मुँह से निकल गया संघर्ष के दिनों में चाय भी बेची तो देश बेचनेवाला कह दोगे? वही अगर भूलवश कह देता कि चाय उगाई तो देश उगा रहा है, कह देते ? ऐसा मत करो, नबी की शान का ख्याल करो! गुस्से में कोई कह दे,750 किसानों का हत्यारा है,फाँसी लगाओ इसे ! तो सन लेकर चल दोगे? कोरोना वीर देश-प्रेम में किसी से कम नहीं थे पर इसका मतलब पेंशन नहीं होता बहु पेंशन भोगी जो हैं, उनके लिए समान लाभ संहिता लगवाओ। एक मुजरिम को कै बार फाँसी लग सकती है? एक सांसद कै बार पाता है? जवान 15 साल खटता मरता तब इस लायक बनता तो हलधर, मंत्री कौन-कौन फसल उगाता कि एक ही सत्र में घपले करता इस काबिल कहलाता है?
एक-एक रग दुख रही-डॉ. जसबीर चावला
एक-एक रग दुख रही, उँगली पास ही रख न पूछ बीमार का हाल, अदा पास ही रख। तुम्हारा ही दिया है दर्द, दवा पास ही रख तुम्हीं ने आग लगाई, दीया पास ही रख। लोग आजाद थे, बदहाल थे,पर थे चंगे जंगलात काट, बूटे रोप, खुशहाली पास ही रख। हर बार फँस गये लारों में,वोट दे हलधर तू उनकी जान बखश, एमेसपी पास ही रख। नसल कुशी के लिए अपने पोर्ट खुल्ले रख दवाईयाँ नकली दे, चिट्टा पास ही रख।
जो अपने वतन की दौलत-डॉ. जसबीर चावला
जो अपने वतन की दौलत लेकर भाग जाते हैं श्रीलंका हो या भारत हो, मुँह की खाते हैं। उनकी मिट्टी कुम्हार के चाक पर नहीं टिकती उसमें गोबर, गोमूत्र, गधों की लीद मिलाते हैं। वे किसी पक्ष के हों, देशद्रोही हैं मक्कार यहीं सड़ते नर्क में, गालियाँ जूतियाँ खाते हैं। उनके लिए अपने परिवार ही सब कुछ बेरोजगारों के घर परिवार उजड़वाते हैं। हलधर जिस हाल रहें, चाहे खुदकुशी करें वतन की धूल सँवारते,सुपुर्दे-खाक हो जाते हैं।
निठ के ना बैठ हलधर-डॉ. जसबीर चावला
निठ के ना बैठ हलधर, खड़ जा धर ना धीरज,बढ़ लड़, जुट जा कुछ शल्य, भीष्म, कुछ पार्थ बने हैं कुरूक्षेत्र सज गया,व्यूह सब,भिड़ जा तुझमें जोर सिर्फ सच का,मेहनत का चाणक्य नीति पर ले सुदर्शन, चढ़ जा! खाने के हैं दाँत अलग, दिखलाते कुछ और घड़ी-घड़ाई नीति नागपुरी, बैठक सीनाजोर मुँह तुम्हारे ठूँसेंगे मिल अपने मुँह के कौर फूट डालकर राज करें,झुलवायेंगे चौर हलधर जात साफदिल भोली, सच चाहती इनका लिखा भी झूठा होता,हर अक्षर तू पढ़ जा धरना दे संसद के आगे,हक की खातिर डट जा निठ के ना बैठ वीरा, उठ खड़ जा।
तुम धरना -जीवी नहीं-डॉ. जसबीर चावला
तुम धरना -जीवी नहीं, परजीवी नहीं,शहादत जीवी हलधर हो पूँजीतंत्र के दुश्मन, खालिस्तानी मेहनती विषधर हो। बेचो खेत, बोरिया बाँधो, छोड़ो भारत खालिस्तानी आय तुम्हारी दुगुनी कर दें, अपनी लाख गुना होती तो हो। चीनी पिट्ठू, छोड़ गुरबाणी, बनने चले माओ के दूत फिक्र न करो, गाँव बसा देंगे,प्रशिक्षण भारत सीमा पर ही हो। हम जानते बेचना,तुम जैसा कहें, कच्चा माल वैसा उपजाओ दुनिया का सबसे अमीर आदमी अमृत महोत्सव में हिंदू ही हो। तुम भी गर्व से कह सको, हम सिख हलधर नहीं ,हिंदू हैं विश्व हलधर गुरू का राजतिलक हो ,सबका साथ विकास हो। एमएसपी रद्द हुई थी, काले कानून कब रद्द हुए थे? याद करो हलधर मियाँ, बहुत बूढ़े हो गये हो! मोर्चे ने कहा था भूनो मत,अपने- अपने घर जा लेने दो हाल के लिए वापस कह दो, शहीदों की लाज रख लो! थी, है, रहेगी का जो नारा था, वह मीडिया खातिर था विज्ञान भवन की वार्ता दौरों पर पर्दा ही रहने दो! लोकतंत्र की लाज भी हमने बचानी है,जाहिर है पर तुमको क्यों चक्कों तले रौंदा था, यह समझ लो! नानक के जन्म दिवस पर कितने सिखों को सोधा था जान-बूझ लो सब पहले, तब किसी बॉडर पर धरना दो! बेफालतू मरने का हुनर मत पालो,अब आजाद हो अंग्रेजों की गुलामी नहीं काट रहे, खुद मुख्तियारी का मतलब जान लो
बिना ऑक्सीजन तड़पे कोरोना कवलित-डॉ. जसबीर चावला
बिना ऑक्सीजन तड़पे कोरोना कवलित सर्द बर्फ वृष्टि पछुआ में प्राण पखेरू जम गये पर हलधर डटे रहे। अतः,लोकतंत्र के परजीवी मच्छरों के पगार-पेंशन रद्द हों दलालों के सुलगें जमें हट जायें! पूँजी के काले मेघ डराते अमृत वर्षों को शीघ्र छँट जायें! दस खुश्क बंदरगाहों की जगह गुरुद्वारों में है अडाणी जैसे कई कुबेर संगत में हैं। तिरंगे के अशोक चक्र को फॉर्च्यूनर चक्के में तब्दील करेंगे सरकारी किसान अन्यथा । जुलूस निकाल गोदी मीडिया पर कहेंगे हम ही असली वे जो शहीद हो गये बॉडरों पर खालिस्तानी वे हलधर फर्जी।
मँहगाई यहाँ की नहीं-डॉ. जसबीर चावला
मँहगाई यहाँ की नहीं, बाहर से आई है हमने तो मुफ्त रिकार्ड वैक्सीन लगाई है। गंगाजल-सा निर्मल पारदर्शी सुशासन है परिवारवाद ने देश में भ्रष्टता फैलाई है। आन बान शान से हर घर फहरेगा तिरंगा पॉलिस्टर और खादी की बेमानी लड़ाई है। पूँजीपति मजबूत होंगे तो देश की धाक जमेगी पंच खरबी अर्थ व्यव्स्था की कसम जो खाई है। हलधर को तो दलिद्दर पालने की प्रेमचंदी आदत है आय दुगुनी करने की कब से योजना चलाई है। लाखों करोड़ कर्जे चुटकी में राईट ऑफ किये जनता खुद खुश हो वाह-वाही, थाली बजाई है।
जिनके हजारों करोड़ कर्जे राईट ऑफ हुए-डॉ. जसबीर चावला
जिनके हजारों करोड़ कर्जे राईट ऑफ हुए तिरंगा तो सिर्फ उन घरों पर फहरा रहा। कर्जों खातिर जिनके खुदकुशी कर मरे उन घरों पर तिरंगा मातम बरपा रहा। यह कहाँ का इंसाफ है मौला जो जनता का धन खुलेआम डकार रहा उसे वाहवाही और लूट की छूट हाड़ तोड़ मेहनतकश लाचार धक्के खा रहा। सजायें काट चुके, रिहाई नहीं,मरें जेल में क्योंकि सिख हैं सरदार देश के गद्दार चाहे हलधर, चाहे फौजी देखो,देखो कैसा शहीदों खातिर और नाट्य कलाकारों का प्यार उमड़ा आ रहा!
तिरंगे, तुझे पता है -डॉ. जसबीर चावला
तिरंगे, तुझे पता है तेरा अमृत महोत्सव आ रहा है? हर घर जल आ रहा है और तू छत पे फहरा रहा है? केसरिया तुझमें खास, सबसे ऊपर नज़र आ रहा है डंडे के जोर तू मौज-मस्ती मानता खूब लहरा रहा है। हलधर का उगाया अनाज, छातियाँ छप्पन ईंची करता हलधरी जाया सपूत अग्नि पथे शहीद होने जा रहा है। तिरंगे तू ही बता दे आज, तेरी भक्ति का राज़ क्या है कौन है तेरा सच्चा साधक,कौन फालतू हंगामा बरपा रहा है? सुन जसबीर कान खोलकर, आज़ादी-यज्ञ में सबने आहूति दी सबकी गलतियों के कारण, हजारों साल गुलाम रहा है। तेरी कौम ने सर्वाधिक कुर्बानियाँ दीं,ख़ामख्वाह गिना रहा है आज़ादी कोई लूट का माल नहीं,बलिदान त्याग बता रहा है। सच्चा प्रेमी मर-मिट जाता है,विज्ञापन छपवा माँग नहीं करता हलधर के दिल बैठा नानक, लाल किले खड़ा तिरंगा झुला रहा है। वोट की व्यापार नीति से ऊपर उठ,दीन-दुःखियों से जुड़ तिरंगा तुझे हर मजदूर-मजलूम की छत से आवाज़ लगा रहा है।
युद्ध हूँ -डॉ. जसबीर चावला
युद्ध हूँ। धर्म से न जोड़ो पागलो जहाँ भी हूँ, मानवता-विरुद्ध हूँ। मेरा अभ्यास करते हो,शर्म करो! हाय-तौबा करते पैसा कमाया कर वसूली में जनता को सताया तबाही की कीमत आँको अर्थ-शास्त्रियो जहाँ भी हूँ, क्रुद्ध हूँ। जानते बूझते जलते हो आग में विध्वंस-साधक वैज्ञानिको बदबूदार नाली-सा अवरुद्ध हूँ। जो भी हो तुम मूर्ख, कोई नाम हो देश,समाज, व्यक्ति या कुत्ते विश्व शांति के गाने गाते पर्यावरणविदो मैं सदा से अशुद्ध हूँ। हलधर-सा वसुधा को प्यार करो मुझसे घृणा करो ब्राह्मण राष्ट्रनायको यही समझ लो, अछूत शूद्र हूँ। मैं युद्ध हूँ।
इससे पहले भी कहीं कुछ था-डॉ. जसबीर चावला
इससे पहले भी कहीं कुछ था जो यहाँ नहीं था? पहले तू भी नहीं था, यह कौन बताता? विद्यालयों में सृष्टि नहीं हुई कर्त्ता की शिवालयों में सृजन नहीं हुआ कर्म का क्रियायें चलती रहीं बदस्तूर कर्त्ताओं बिना अपादान-उपादान जल में समाये रहे सर्वत्र कौन कह सकता था भूमिपुत्रों का भविष्य? किसी एक विशेषण का अभाव पृथ्वी साल रहा था दुहरे मानदंडों वाले छलावों के शब्द सूर्यों से बजते रहे। हे भूमिपुत्र!हे सहनशील! कहीं कोई ऐसा रविवार नहीं था,तुम नहीं थे! कौन बताता? आगाह किये बिना आखेटक जंतुओं के प्राण हरते रहे। अर्थों की गिरफ्त से छूटकर शब्द हवाओं में घुलते रहे तुमने उन्हें नये सिरे से रोपा,अंकुराया, सींचा। वैश्वानर के अन्नमय कोष के रखवारे हलधर! छद्म भेष में जो जा बैठे संसद में, रूप तुम्हारा धर बोलो! कैसे लेगी भारत-श्री उनको वर?
पहाड़ों को जिस रफ्तार से छेदा गया है-डॉ. जसबीर चावला
पहाड़ों को जिस रफ्तार से छेदा गया है उसी बेदर्दी से किसान भी रौंदा गया है। खिलखिलाते थे हवायें जब गुदगुदाती थीं भूमिपुत्रों की खुशी का डाह से सौदा हुआ है। भूगर्भ से निकले हैं छोटे-बड़े पहाड़ सारे भूमि ने ही हलधरों को गिरि-वक्षी पैदा किया है। रास्तों को चौड़ा करते गिरिराज की जड़ तक हिला दी पूँजी-भक्त सत्ता ने प्रलय-पात्र ही औंधा किया है। किस तरह बाँधेगे छलनी हृदय वाले पहाड़, पानी? जिस कदर सहोदरों को मेढ़ों पर रौंदा गया है!
हलधर इस हुँकार को फुँकार में बदलो-डॉ. जसबीर चावला
हलधर इस हुँकार को फुँकार में बदलो सत्ता की हेकड़ी चुनावी हार में बदलो। संसदीय लंका में रावण पचीस हों मध्यावधि चुनाव से सरकार को बदलो। सड़कों पे गर किसान हों खेतों में विष फले राइट-ऑफ की बंदरबांट को इफ्तार में बदलो। लंगर लगा लगा के भूखों के ढिड भरो नफरत फलाने वालों के दिल प्यार से बदलो। नानक के देश में गौतम के फूल हैं दुनिया की जंगी हवा बयार में बदलो। जसबीर से जो पूछते कैसे निकालें हल स्वयं सम्यक आचरण से संसार को बदलो। बुद्ध गुरू ने दिखाया मध्यम का रास्ता अति से बचो हर दुःख को खुश हार में बदलो।
तुम्हीं नहीं हर वोटर ठगा गया है-डॉ. जसबीर चावला
तुम्हीं नहीं हर वोटर ठगा गया है गुर्दे निकालकर रेवड़ी किया गया है। घपले आबकारी के फलों के नाम दे दृष्टि-विज्ञापनों अंधा किया गया है। विधायकों की मत कहो कितनी पगार है मेहनत-मजूरी-लूट का सौदा किया गया है। बौने पौधों के फसलों में बीज दे हलधर के मोर्चों पर हमला किया गया है। हिंदू न मुसलमान न इंसान ही बचा पूँजी के राज को शाही किया गया है।
यहाँ इंसानों की तो सुनता नहीं-डॉ. जसबीर चावला
यहाँ इंसानों की तो सुनता नहीं किसानों की कौन सुनेगा? चुनाव ही इतना बढ़िया धंधा है मँहगे तेल में पकौड़े कौन तलेगा? गुंडई-बदमाशी से जो रुतब-ए-ईन है ईमानदारी की जरूरत है कौन कहेगा? संसद में घुस गये स्मार्ट गैंगस्टर हलधर की आय सौगुनी हो,बात करेगा। वचने का दरिद्रता ?कल जसबीर ही यहाँ इंसाफ-हक औ' सच की दो टूक करेगा।
हलधर तेरी सोच पे कौन देगा ठोक के पहरा-डॉ. जसबीर चावला
हलधर तेरी सोच पे कौन देगा ठोक के पहरा? तू सच का प्रहरी, जहाँ सच खातिर अंधा-बहरा। कमीशनखोरी की दुनिया में मेहनती ही मवाली है जुमलाखोरी महातम है, देख लो देश का चेहरा। हमाम है राष्ट्र की संसद, होड़ नंगे नहाने की मरेगा जो न डूबेगा, बेनंग को जान का खतरा। जगो हलधर, शहीदों की चिताओं पर लगा मेले बिका न खून असली सिंघू, न खीरी जाके ही ठहरा। उड़ाओ ड्रोन अंबानी, स्प्रे अडाणी का बरतो इलेक्शन आ रहे हैं एकजुट, बनाओ मोदी को मोहरा।
फसलों पे आँख है, पानी की लूट है-डॉ. जसबीर चावला
फसलों पे आँख है, पानी की लूट है बर्बाद करो हलधर, तुम्हें पूरी छूट है। मेहनत गुनाह है, शराफत तो ज़ुर्म है नफरत करो किसान से,असली अछूत है। मुद्दे उठाओ उसके, अपने गोदाम भर उसको ज़हर पिलाओ,नशेड़ी वह खूब है। पंजाब तो भारत का विच्छिन्न अंग है चूस लो उसको वही, गेहूँ का जूस है। अनपढ़ गँवार है , अक्खड़ भी है जसबीर गुरूओं के नाम पर छिड़ी खसोटी फूट है।
सत्य उजागर मत कर, झूठ के लंबे हाथ-डॉ. जसबीर चावला
सत्य उजागर मत कर, झूठ के लंबे हाथ जितने हैं कानून के, जुड़ जाते हैं साथ। जुड़ जाते हैं साथ मिला सुर एक ही बोलें सच के खतरे हिला-हिला टीवी पर खोलें। जुमले लगते दुनिया को सच्चे सुखकारी कड़वे सच पर चलने लगती लालच-आरी। ट्रैक्टर पर चढ़ हलधर असली राज़ बतायें भूमि-सुता रावण-कब्जे, प्रमाण दिखायें। भ्रष्ट असुर घेरे बैठे हैं अशोक वाटिका झूठ-मूठ गढ़ चकरा देते न्याय पालिका। लाल देह लाली लसे खोये क्यूँ हनुमंत? राम राज्य में मेहनती जनता हो जीवंत।
ऐ हलधर है मुश्किल जीना यहाँ-डॉ. जसबीर चावला
ऐ हलधर है मुश्किल जीना यहाँ ये है भारत, ये है इंडिया, यह है हिंदोस्ताँ! कहीं दंगा कहीं धोखा, घोटाला कहीं रेप आत्म -हत्या खूँरेजी, कहीं मर्डर कहीं रेड सजाकट सरदारों को इंसाफ कहाँ? यह है भारत, ये इंडिया,ये हिंदुस्तान। कहीं चिट्टा, हीरोइन, कहीं दारू-अफीम बिके नकली दवाई, मिले नकली स्कीम कानूनों के काले काम यहाँ। ये है भारत, यह इंडिया, यह है हिन्दोस्तान । अंबानी आडाणी मुंद्रा दाहेज गोरख के धंधों को राष्ट्र-व्यापी सेज पढ़-लिख जवान बेकार यहाँ। ये है भारत, ये है इंडिया, यह है हिंदुस्तान। कथनी नहीं करनी, बस जुमलों का शोर गोदी की दुनिया गद्दी का जोर कुचलें किसान सरेआम यहाँ। यह है भारत, ये इंडिया, यह है हिंदुस्तान। शाहों के कर्जों पर स्याही दी फेर बर्बाद फसलों के मालिक हुए ढेर एमार्पी लहूलुहान यहाँ। यह है भारत, यह इंडिया, ये है हिंदुस्तान । बुरा सत्ता को है कहता,ऐसा भोला तो न बन जो लगाता वही पाता, यह यहाँ का चलन ईवीएम के दुष्परिणाम यहाँ। यह है भारत ,ये इंडिया, ये है हिंदुस्तान। मिल जाओ,लड़कर ही पाओगे अधिकार संसद में मेहनत का हो व्यापक आधार सच को जिताये संविधान यहाँ। ये है भारत, ये है इंडिया, यह है हिंदुस्तान।
वह जो इतना माल लेकर उड़ गया है-डॉ. जसबीर चावला
वह जो इतना माल लेकर उड़ गया है दरअसल भारत माँ से जुड़ गया है। भागने की वजह भी तुमको ठहराता है जान की धमकी मिली सो डर गया है। लूट कर्जे बैंकों से, देश भक्ति के करिश्मे कौड़ी की अपनी जमीन हीरों भाव कर गया है। कृपा करके मत उड़ाना एंटिलिया या कोई जायदाद सौगुना ज्यादा कीमत का बीमा भर गया है। हलधर तुम्हारी फसल का बिल्कुल नहीं उसको यकीं उसका धंधा लूट का सत्ता को अंधा कर गया है।
दलगत राजनीति में देश हुआ तबाह-डॉ. जसबीर चावला
दलगत राजनीति में देश हुआ तबाह राष्ट्र राष्ट्र की रट लगा चमके थैलीशाह। जनता सड़कों पर खड़ी,लाखों बेरोजगार डंडे मारें फोड़ें सर हुक्मी नौकरशाह। कानून डराते फिर रहे काले और सफेद कर्जे चिट्टा रगड़ कर हलधर करें स्वाह । रोजी रोटी सब को दे यह गुरुओं का देश अपने बेशक खायें ठोकरें, ऐसा खैरख्वाह। इस मिट्टी के सूरमे मजबूर जायें विदेश जन्म से कर्जों दबे पलते भरें कराह।
कुछ ऐसे मुद्दे उछाल देंगे-डॉ. जसबीर चावला
कुछ ऐसे मुद्दे उछाल देंगे, खूँ उबाल देंगे जन्नत की हकीकत मालूम है,जी के जंजाल देंगे। यात्रायें बहुतों ने कीं, बहुतों ने काटे बनवास भी अपने-अपने मतलब के यार, हलधर को बवाल देंगे। चिड़ियाँ बिलखतीं, गिलहरियाँ चीखतीं हैं हर चमन खामोश गाँववालो!पिंजरों से चीते निकाल देंगे। कच्चे पक्के कब होंगे जब पक्कों को वेतन न मिले? सबसे बड़ी अर्थ व्यव्स्था केहड़ी?बच्चों को सवाल देंगे। बेरोजगारो!खुद हीभर लो जहाँ-जहाँ रिक्तियाँ हैं खा-पी के वर्ना चलते बनेंगे जाते थाली खंगाल देंगे।
सजा दे रहे हैं, कसूर बता ही नहीं रहे-डॉ. जसबीर चावला
सजा दे रहे हैं, कसूर बता ही नहीं रहे मेमने हो हलधर! भेड़िए गुर्रा रहे। तुमको खाना है ऐसे भी कैसे भी तुम खामख्वाह जन्म दिन मना रहे। वे दानी हैं, कुबेरों तक के दाता सगी आँखों देख लेना,गर जिंदा रहे। ख़ुदकुशी करते बधाईयाँ दे रहे हो यार! उन्हें कोई शर्म नहीं,दुनिया रहे न रहे। तुम ज्यादा से ज्यादा क्या उखाड़ लोगे? नारों भरोसे खेतों की सेवा लगे रहे।
हमारी राष्ट्र-भक्ति का अच्छा मज़ाक उड़वाया है-डॉ. जसबीर चावला
हमारी राष्ट्र-भक्ति का अच्छा मज़ाक उड़वाया है हर घर दफ्तर चीनी तिरंगा फहरवाया है! विदेशी कपड़ा, देशी मालिक, स्वदेश बाज़ार आत्म-निर्भरता का यह कैसा नमूना दिखाया है? एक देश-भक्त संगठन सेल्समैन बन कर रह गया! पूँजीतंत्र ने इस तरह का नाच नचवाया है। न जनता, न स्वयंसेवक, बस नफरत और लूट-खसोट हाय री संघ-शक्ति!अच्छा तांडव मचवाया है! निकलो बाहर हलधर ! धोती-टोपी, हॉफपैंट से भारत माँ की मिट्टी ने मेहनत का, ट्रैक्टर बुलवाया है। जिसकी खातिर मैनचेस्टरी कपड़ों की जलाई थी होली उसी खादी को, देश-प्रेम कह, नंगी जलवाया है। लीला न्यारी सत्ता की जसबीर कहे हे बनवारी नेतागिरी के खेलों ने लोगों को भूखा मरवाया है।
धूप निकली थी जाने कहाँ खो गई-डॉ. जसबीर चावला
धूप निकली थी जाने कहाँ खो गई बरसे जो मेघ उन्हीं की हो गई। रात भर सोये दिन में भी सोते रहे जवानी की नींद थी खैर पूरी हो गई। उनसे तो क्या कहते खुद से ही बोले खोये खोये रहते हो बात कोई हो गई? वीडियो बना ली अपलोड चाहे ना करी जिन्दगी में क्या कमी थी जानकारी हो गई । सोचते रहते हो जसबीर हलधर वास्ते आज फिर कर्जों के डर से आत्म हत्या हो गई।
जो मंत्री सरकार कर्ज में गर्क कर गये-डॉ. जसबीर चावला
जो मंत्री सरकार कर्ज में गर्क कर गये वे फिक्र तक नहीं करते, खुदकुशी तो दूर की बात है! तुम हलधर नाहक परेशान होते झट आत्म हत्या कर लेते हो कोई जायदाद तो बनाते नहीं,उल्टा जो सबसे अच्छी जायदाद है,सेहत उसे गर्क कर लेते हो चिट्टा चाट! गमकुशी ऐसे नहीं होती कोई जिम्मेवारी नहीं लेगा कीटनाशक कैंसर,खाद कैंसर नकली बीज, नकली दवाई कोई जिम्मेदार नहीं! तुम्हारी हमदर्द कोई सरकार नहीं। खुद को रोग से बचाओ गुरवाणी से जुड़ जाओ,नस्ल को बचाओ कम से कम बरतो, पानी को बचाओ अपनी कुर्बानी मत दो, फसल को बचाओ !
तू जिन राजों की बात करता है-डॉ. जसबीर चावला
तू जिन राजों की बात करता है कहाँ कहाँ दफन हैं, पता ही नहीं। अपने दुःखों का रोना मत रोना खौरे किस भेष में सय्याद, पता ही नहीं। फसल से ज्यादा रोग खुद में हैं कौन -सा चाट जाता जान, पता ही नहीं। मंडी भावों को पढ़ दलाल चलती है हलधर ठगी का है शिकार, पता ही नहीं। पूँजी व्याजों के बल मोटाती है कर्ज मेहनत करे कंगाल,पता ही नहीं। किसान एक होकर जुट पाते पर बाजार का बंदोबस्त, पता ही नहीं। सहकारिता समझ वण्ड छक बाबा नानक ने दी दात, पता ही नहीं।
धरम शरम दोनों छुप खड़े हैं-डॉ. जसबीर चावला
धरम शरम दोनों छुप खड़े हैं झूठ परधान बना भषणाता फिरता थाँ-थाँ फीतेकाटू दौरे-यात्रायें करता हलधर! ऐसा ही समय था नानक का किरसानी अपनाई थी बाबे ने। मन की भी, तन की भी बात बताई थी अंदर की भी, बाहर की भी शौच-स्वच्छता की जाच सिखाई थी। हाँ, अगले चुनाव तक तुम्हारी वैधता समाप्त हो जायेगी। फिर वोट दोगे तो चार्ज होगा डबल इंजन चुनोगे तो फोन पर सेवाओं का आनंद लेने लगोगे जैसे मुफ्त बिजली और घटिया खाद बौने बीज और विज्ञापनी स्वाद जैविक खेती कर्जीले विवाद! ट्रैक्टर टराली जवानी टाइम्स के घायलों की हालत गंभीर है संवेदनाएं और बड़े-बड़े लोगों के व्यक्त दुःख एक भी साँस नहीं डाल पायेंगे तुम्हें मरना होगा हलधर! छोड़ देनी होंगी धरती-पानी-खेती की आसक्तियाँ समर्पित कर देनी होंगी मेहनतें पूँजी के हवाले कर देनी होंगी हडबीती ईजादें । यही तुम्हारा प्रयास होना चाहिए समावेश तो पहले से है विकास भी है ही दुनिया के सबसे अमीर बंदे हो! साथ दोगे नहीं तो जाओगे कहाँ? खालिस्तान?
विजयादशमी विश्व-गुरू-डॉ. जसबीर चावला
दशहरा है आज, भगवान रावण को याद करने का दिन उनकी पुण्य-तिथि, श्रद्धांजली दो! उनका जन्म-स्थान न पूछना प्लीज! जो कहा कर के दिखाया अमृतनाभि होते हुए मर के दिखाया सीता नहीं छुए अपहरण के बाद बलात्कार तो दूर की बात! पर जो एक शब्द नहीं बोले थे करुणा के असुन्दर या सुंदर नारी की नाक काटे जाने पर उसी राम भगवान को पत्नी -वियोगे आठ-आठ आँसू रुलाया! दूत अगर भेजा था, सारी बात कहता शूर्पणखा के कामुक हठ बनाम तपस्वियों की धार्मिक विवशता बताता हुए अन्याय के लिए क्षमा याचना बहन हेतु संवेदना,अयोध्या में सुश्रुतीय इलाज मैत्री का प्रस्ताव रखता मामला बातचीत के दौरों में रफा-दफा हो जाता सोने के अपार भंडार वाला श्रीलंका आज कंगाली के कगार पर न आता! आज कौशल के देवता लखन का भूल-सुधार करते कन्या-सुपनखाओं का वध, पहले बलात्कार असुरों के डीएनए ढूँढ़ करते आविष्कार! राम-राम कहो हलधर! नहीं तो रटो मरा-मरा यह सब थरनाबाजी छोड़ो पहले बाल्मीकि भी यही कर तरा! मरा-मरा के ऊँचे जप-जाप प्रतिध्वनियाँ देंगे राम राज्य स्थापित हो जायेगा! ध्वनि तरंगों का चमत्कार भारत विश्व गुरू बन जायेगा!
कोई भारत जोड़ रहा है-डॉ. जसबीर चावला
कोई भारत जोड़ रहा है कोई भारत तोड़ रहा है कोई भारत रोढ़ रहा है सबका अपना-अपना भारत है अपने हिसाब से हर कोई नक्शा मोड़ रहा है! राष्ट्र-भक्ति प्राचीनतम संस्कृति सनातन वाला भारत चार वर्णों चालीस हजार जातियों बँटा यज्ञों-मंत्रों वाला भारत दबा कुचला भूखा कराहता दरिद्र भारत दुनियाभर की अमीरी में छलांग लगाता भारत आतंकवाद से जूझता अपनों से लहूलुहान भारत हर पल लूटा खसोटा जाता भगोड़ा भारत अर्थ-व्यव्स्था की पायदानों में कर्जों उलझता भारत चारों ओर से घुसपैठ का शिकार जहाँपनाह भारत आपदाओं-विपदाओं से पहले ही परेशान भारत ऊपर से भ्रष्टाचारियों की गुंडागर्दी झेलता भारत अनेकता में एकता का नाटक खेलता सहनशील भारत भारत भूमि महान है हलधर! धर्म संस्थापनार्थाय किसी गुलामी की राह तकता भारत।
तुम्हें उन लोगों की तलाश है-डॉ. जसबीर चावला
तुम्हें उन लोगों की तलाश है जो कभी नहीं लौटेंगे उन्होंने काले पान के पत्ते को काला पान कहा काले कानून को काला कहा, काले पानी गये कभी न लौटने को। वे मवाली जुआरी नहीं थे, न खेला होबे करते खालिस्तानी महज मेहनती सुच्चे दर्शक थे, और उन्हें यह मुनासिब लगा था कि पत्तों के सही रंग देखे जायें कि पत्ते सही रंग पुकारे जायें, धोखा-धड़ी, गाली-गलौज,मार-पीट, हिंसा-हुड़दंग न मचायें कोई विदेशी तो हैं नहीं,अपने हैं संविधान मुताबिक शांतिपूर्ण धरने लग जायें। चीजें जब इतनी साफ लौक रही हैं यह कैसी नामर्द जबरदस्ती है बिचौली मर्दानगी है? क्यों न समर्थ दर्शक का फर्ज निभाएं हा दा नारा दें, बोल दें जो सच है हक माँगें,हक दिलवायें। शकुनी मामा की चाल समझाएं भ्रष्ट राजनीति के जुआरियों संग जुआरी न बन जायें, न राज-पाट(मत ही है अपना राजपाट) न द्रोपदी ( मेहनत और शर्म) के दाँव लगायें! सच कहने की बजाय ढूंढ़ने चल दिये सचिआरों को सच के लिए जान देने वाली शहादतों को । उन लोगों की तलाश में लगे छानने इतिहास-भूगोल!
वे कभी नहीं लौटेंगे हलधर!-डॉ. जसबीर चावला
अपने होने का दर्द स्वयं हँढाना होगा जलतोप की बौछार हो या तोपगोले बारूदी सुरंगें हों या कँटीले गड्ढेधारी बैरिकेड्स सिर मुँडाते ओले पड़ें चाहें कुलहाड़े जैसे साढ़े सात सौ अकड़ मुए जंगी सत्ता की लपटों में तुम्हें जलना होगा!
सुख चाहते हो तो-डॉ. जसबीर चावला
सुख चाहते हो तो सुख की राह पकड़ो राह दुःख की पाती नहीं न पहुँचाती ही सुख तक। जिस मुँह जा रही हो गाड़ी, उधर ही हो मुख हवा मिलती रहेगी सामने से दूर होगा गरमी-पसीने का दुख। बाहर पटरियों पर इतराती पीली तितली अभिराम दृश्य रचती, उड़ती कुछ दूर तक पीछे तुम्हारी आँखें तक। उसका अलहदा संसार, उसको नहीं सुख-दुख उसको नहीं जाना कहीं तक। जाना ही नहीं, ले जाना भी है हलधर! करोड़ों भूखे गरीबों को सुख तक। सिर्फ लंगर लगाने, राशन बाँटने से कितने दुःख मिटेंगे? किरत करनी बतानी-सिखानी होगी। अपने पैरों खड़े होकर ही कोई राह पकड़ सकता पा सकता सुख की।
कानूनी सजायें काट चुके-डॉ. जसबीर चावला
कानूनी सजायें काट चुके किस्मत की सजायें बाकी हैं पैदा ही हुए ऐसे कुल में, जन्मों जन्मों से आकी हैं। न ब्राह्मण हैं, न सुद्दर हैं,न अगड़े हैं न पिछड़े हैं न हिंदू, न मुसलमान, अमृत उत्सव के साकी हैं। जब -जब तख्तों पर हुक्मरान जुल्मों की बाढ़ बढ़ाते हैं रोक सकें जो हर आँधी, छप्पन ईंची की छाती हैं। पंथ खालसा अग्निवीर सरहद पर जब डट जाते हैं सारी दुनिया में रहे अजेय बरसों मैदानी हाकी हैं। सरसों के फूले खेतों से जब मक्की की खुशबूयें उठें मिट्टी की कसमें खा हलधर बंदी सरदार की राखी हैं।
तीर देखे, निशाने देखे ही नहीं-डॉ. जसबीर चावला
तीर देखे, निशाने देखे ही नहीं भोले देखे,सयाने देखे ही नहीं। हलधर तेरे भेष, तेरे वेश में सरकारी देखे,दाने देखे ही नहीं। सुण्डी कीड़ों की दस्तक पर आये फसल बचाने,देखे ही नहीं। दिल्ली धूँआ धूँआ रोती असल टिकाणे देखे ही नहीं। चूरा पहाड़ों की मिट्टी हिमाचल से उड़ी, देखे ही नहीं।
गद्दी देवताओं के देख तो लो-डॉ. जसबीर चावला
गद्दी देवताओं के देख तो लो कान खाली हैं या ठेंपी चढ़े ध्यान में कहीं कुछ और दृश्य तो नहीं चल रहे! तुम्हारे धरने-मुजाहरे नज़र तो आ रहे लोग टैंकी चढ़ नारे लगा रहे मरण-व्रती दीख तो रहे,सुने नहीं जा रहे माँगें तो सबकी होती हैं, कुछ नया नहीं बतिया रहे। इंतज़ार तो करो ठूँसे निकलने का चैनल बदलने का हलधर! नाहक बौखला रहे! धीरज! चुनाव फिर आ रहे!
मतदाता ही नहीं, अन्नदाता भी है-डॉ. जसबीर चावला
मतदाता ही नहीं, अन्नदाता भी है करमों का मारा नहीं, भाग्य विधाता भी है। दुनिया की आर्थिक मंदी में भारत आशा की किरण है उसका हलधर आशा का सूरज है, उसे बारंबार नमन है। हलधर उपजाओ! माटी की कसम है हर क्षति पूरी करेंगे सुण्डी हो या खराब मौसम, मेहनत को दाम मिलेगा, नुकसान को मुआवजा पार्टी की रेवड़ियाँ नहीं, यह है इंसाफ का तकाजा। संसद में यही कानून बनेगा किसान मोहताज अब नहीं रहेगा दल कोई, सत्ता किसी की भी हो मेहनतकशों का जमीं पर राज रहेगा।
किसी चीज को ठंडी होने से-डॉ. जसबीर चावला
किसी चीज को ठंडी होने से नहीं रोक सकते चिता जल चुकी अगर उसकी, आग बुझ चुकी अतः,चिंता आग की करो अंदर या बाहर,आगे या पीछे,ऊपर या नीचे कहीं तो हो आँच, लगातार धधकती-सुलगती। तो भी यह रहता है कि कान्ने-बालण झोंक लपटें उठा लोगे कुछ डाल घी-तेल-किरासन कुछ ज्वलनशील हो तो निर्माण कर लोगे एक ऐसी वस्तु जिसके बिना आदमी जानवरी नहीं छोड़ पाता जिसके बिना साम्राज्य खड़े न होते जिसके बिना अनाज हो भी जाता तो हलधर भूखा मर जाता साथ ही मानवता भी।
ऑक्सीजन बिना जो मौतें हुईं-डॉ. जसबीर चावला
ऑक्सीजन बिना जो मौतें हुईं भुखमरी में गिन लीं किसानों की खुदकुशियाँ, भुखमरी में गिन लीं सिंघू बॉडर धरने दी शहीदियाँ भुखमरी में गिन दीं पैदल घर पहुँचती लॉकडौनी लाशें भुखमरी में गिन दीं, अन्याय है! कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया सूचकांक! फिर इतनी विशाल जनसंख्या वाले मुल्क के प्रति लाख क्षुधा-मृत्यु दर की बजाय स्वर्ग सिधारे नग गन लिये! पंजाब के हलधर दुनियाभर को खिलायें लंगर इतना झोणा पैदा किये कि कोई भुखमरी न हो। अपनी धरती का जलस्तर रसातल में पहुँचा दिया इतनी कणक पैदा किये,रखने की जगह नहीं रही खुले गोदामों सड़ रहा हजारों टन। ज्यादा खाके मोक्ष-प्राप्त लोगों के सूचकांक बनाओ भारत टॉप पर, विश्व गुरू कहलाओ।
मैं घायल पंजाब बोल रहा हूँ : डॉ. जसबीर चावला
मेरे प्यारे देशवासिओ, मैं घायल पंजाब बोल रहा हूँ पहले तो समझ सुधार लो पंजाब पंजाब रटना बंद कर दो! मेरे दो दरिया, मेरी दो बाँहें जब भारत चीरा गया काट दीं गब्बरी स्टाइल में आपने! इस उजाड़े को कैसे सहा मेरी छाती पर मेरी ही संतानों का कत्ल किया! फिर तथाकथित भारत-रत्नों ने मेरी देह के तीन लाजमी अंग लीवर और दो गुर्दे हरियाणा हिमाचल चंडीगढ़ नोंच बाहर किये, हड़प लिए । मैं मृत्यु -शरों की शय्या पर कराहता भीष्म हूँ पंजाब नहीं हूँ। मेरे किसान सपूतों ने जिस तरह धरती का पानी धान उपजाते सुखाया है तरस रहा हूँ,प्यासा तड़प रहा हूँ। मेरे अफीसरों ने जैसे जूड़ा खींच-खींच अपने घर सोना भरा है, जायदादें बनाई हैं, उसकी कहानी कौन लिखेगा? मेरे सियासतदानों ने, हुक्मरानों जितना लूट-खसोटा है कुछ नहीं छोड़ा मेरे पल्ले। सौतेले बेटे-सा पालतीरही भारत माँ, पुचकारतीः मेरा लाडला, मेरा बहादुर बेटा! अपने छोटे भाईयों को भूखा न मरने दे! पर देने के नाम दिखाती ठेंगा और चूसते रहे खून बन सहोदर। दुर्गति देख गभरू खालसा जो बढ़ता इलाज खातिर आतंकवादी करार दे भून दिया जाता, हलधर हुँकारता इंसाफ खातिर खालिस्तानी करार दे कुचल दिया जाता! मेरे प्यारे देशवासियो! मैं तिआब हूँ, लूह्ला मरणासन्न गुर्दे- लीवर विहीन देश के लिए बेइंतहा प्यार-भरा दिल धड़के आज़ादी खातिर दी कुर्बानियों की लंबी फेहरिश्त लिए, महाराजा रणजीत सिंह के विशाल साम्राज्य की यादें लिए भारत का प्रहरी। कृपा करो, मेरी फसलें नकली दवाईयों कीटनाशकों, बीजों, कर्जों की लूट से बचाओ! गुरूओं-पीरों की मेरी इस जमीन पर पैदा होने वालों को राजनीति-हीरोइन न चलाओ! अपाहिज हूँ पर टाँगें ही काफी हैं कई गबबरों को धूल चटा दूँ। इच्छा-मृत्यु है भाइयो और बहनों! मन की बात बता दूँ? तुम्हें असुरक्षित नहीं देख सकता पहचान लो अपने गद्दारों को! जो मेरी नस्लकुशी पर उतारू हैं। तिआब न रहा तो हिंदुस्तान मिट जायेगा! बेशक बिलाहिचक इसका नाम बदल दो पूरा खित्ता खालिस्तान बना दो! कोई मेरा अर्जुन, ताकि मर सकूँ बेचिंत तीर भेद पाताल से गंगाजल पिला दो!
सत्ता मिलते मते खतम : डॉ. जसबीर चावला
सत्ता मिलते मते खतम गद्दी मिलते मुद्दे खतम। अब शुरू होता है प्रबंधन साँठ-गाँठ समीकरण अफसरशाही तुष्टीकरण माँगों भागों और वित्त अधिकरण लापरवाहियों नाकामियों पर मिट्टी पाते आश्वासन दिखाने के दाँतों के विज्ञापन। कुर्सी के नये नये प्रलोभन विदेश यात्रा भारी-भरकम कमीशन सुविधाओं भत्तों अधिकारों का गर्व प्रदर्शन अब हलधर कौन, कहाँ का प्रशासन किसकी नौकरी, कैसी एमसपी,बेअदबी नशे कौन वाली हीरोइन ? अब विपक्ष की चालों,विपक्षियों का मान मर्दन अब स्वास्थ्य, शिक्षा नहीं, बहसों का मूल्यांकन अंब चैनलों ट्वीटों का दंगलीकरण अब अर्द्ध सत्यों का ध्रुवीकरण । आप कुछ समझते तो हैं नहीं चावला जी! अब अगले चुनावों के लिए नई योजनाओं का आयोजन दलगत राजनीति माफियाकरण।
हलधर! यह कैसा बंदीछोड़ दिवस ? : डॉ. जसबीर चावला
हलधर! यह कैसा बंदीछोड़ दिवस ? सजायें पूरी हो चुकीं, उससे क्या अभी भी जेल में सड़ रहे बत्तीस सिख। एक सिख गुरू था,ग्वालियर किले से बावन हिंदू कैदी राजाओं को छुड़ा लाया बिना युद्ध, जुगत लगा। आज कोई हिंदू नहीं छुड़ा लाये उन्हें कानूनन जो होने चाहिए रिहा? एक हिंदू है, ग्यारह बलात्कारी बंदियों को छुड़ा पाया जो कानूनन मुजरिम, उन पर अमृत महोत्सव की रहमदिली बरसाया। पर ऐसा कोई हिंदूसिख नहीं हलधर बंदी सिखों को इंसाफ दिला पाये? सभी तभी कहते हैं, आज हिंदू-सिख में कोई भेद समझ न आए। वे स्वतंत्रता सेनानियों-सा मरण-वरत रखें जेल में अथवा करें बलात्कार हिजाबनियों का, पैरोल पर छूट? अर्हता हो जायेगी रिहाई की? और कितने बरस बँटना है अमृत? छूटेंगे बंदी सिख सरदार चौबीस की पंद्रह अगस्त तक?
दुनियाभर के सपने हैं : डॉ. जसबीर चावला
दुनियाभर के सपने हैं दो हाथ ही अपने हैं। दाँये हाथ दो एमसपी वर्ना बाँये धरने हैं। पूँजी ने उपजाये भेद मेहनत ने सम करने हैं। हलधर तो सबका साथी लंगर छकते जितने हैं। जुमले झूठे डूब गये सच ही आँच में तरने हैं।
रेवड़ी वैसी ही बाँटो : डॉ. जसबीर चावला
रेवड़ी वैसी ही बाँटो मतदाता झट लुभा जाए झूठ भी उतना ही बोलो पाँच बरस में भुला जाए। पीठ पे बोझा उतना लो जितना कमर सुखा जाए। हलधर लारा लिखती लो वादों में न झुला जाए। संत नहीं कोई ढोंगी है वचनों संग सुला जाए।
इतने इतने भगत सिंह बन जायेंगे : डॉ. जसबीर चावला
इतने इतने भगत सिंह बन जायेंगे ऐसे ऐसे भगत सिंह बन जायेंगे हलधर! घिन्न आने लगेगी तुमसे शहीदी के आदर्श भी छिन जायेंगे। भूमिपुत्रों के संकल्पों को माटी मिलाने की पूँजीपतिया चाल है यह घबराना नहीं दोस्त, भगत सिंह फैशन नहीं फाँसी है जो नकली बनते हैं, उन्हें कुर्बान होके दिखाना होगा हर मुसीबत के सामने अटल हर लोटस के सामने अडिग हक के लिए कुछ कर के दिखाना होगा। भगत गद्दी की लड़ाई नहीं लड़ता मजूर किसानों के हकों की लड़ता है आतंकी नहीं, आतंकियों को बेनकाब करता है, जो मंत्रित्व का आतंक फैलायेंगे हलधर की अहिंसा समक्ष झुक जायेंगे।
तू उसके साथ चल : डॉ. जसबीर चावला
तू उसके साथ चल जो तेरे साथ चलता है उससे छूट जो आगे निकलता है। जो तेज हैं उनसे कदम मिला न पायेगा ताक़ते-जिस्म आजमाते गिरेगा मुँह की खायेगा। अह्सास हार नहीं अपनी औकात औ' फितरत का तकलीफदेह होगा गर हद को लाँघ जायेगा। यह दुनिया है याँ जिंदगी मुश्किल से मिलती है सरल-सा कायदा है बीज लेगा जो कल फल भी पायेगा। हलधर उदास न होना अगर सरकार धोखा दे खुदकुशी करेगा तो सबक किस तरह सिखायेगा?
बहुत खुशी है नानक जन्म की : डॉ. जसबीर चावला
बहुत खुशी है नानक जन्म की छोड़े जा रहे हो पटाखे सीटी फोड़ रहे अनार बोतल बम फैलाये जा रहे धुँआ प्रदूषण। नानक के जन्म दिहाड़े किसान ने खुदकुशी की स्वर्ग नहीं गया, सिधारा जरूर। काले तीनों कानून वापस लिये थे इसी दिन, उसे नहीं मालूम? उसका कर्ज किसी ने माफ नहीं किया बघारा जरूर। भुगतेंगे घरवाले लिखा-पढ़ी बैंकों ने वैसी ही की भोले तुम होओगे हलधर! पूँजीतंत्र नहीं खींच लेगा चमड़ी, करा देगा कुर्की। या तो हजारो करोड़ लेकर भगते कहीं और जा पटाखे छुड़ाते, पर्व मनाते गरियाता हँसते, खिलखिलाते। यहाँ तो दुःखों के पहाड़ टूटेंगे जीते जी जीने वाले कई और जान से छूटेंगे! खुद को मारना भी हिंसा है,हलधर! लड़ो तो अहिंसक लड़ाई शाह मुहम्मद को फिर न लिखना पड़े फौजाँ जित्त के वी हारीयाँ नी।
सेवन फिफ्टी कत्ल कर दिये : डॉ. जसबीर चावला
सेवन फिफ्टी कत्ल कर दिये काले कृषि कानूनों ने तौ पर भी फिर वादाखिलाफी कर दी पूँजी-हूणों ने। निकल पड़े फिर हलधर योद्धा बाँध कफन सर पगड़ी में पुष्प वृष्टि देवगण देवियाँ मंगल गातीं स्वर्गों में। हलधर निकल पड़े जिस पथ पर वनमाली तू पुष्प न फेंक मातृभूमि कब्जाये धनपशु देंगे तेरी सैलरी छेंक। मुझे तोड़ना न वनमाली न देना उस पथ पर फेंक तेरी नौकरी चली जाएगी गुस्सा होगा अडाणी सेठ। धरती माँ आजाद कराने जिस पथ जायें ट्रैक्टर अनेक उसी राह तुम भी चल देना किसान मजूर शक्ति हो एक।
हम लाये थे तूफानों से कश्ती निकाल के : डॉ. जसबीर चावला
हम लाये थे तूफानों से कश्ती निकाल के यह कैसे फँस गई माझी के जाल में? बच्चे बेखौफ थे कि मल्लाह नेक है नौका ही बिक गई अच्छी सँभाल में। फिर से पड़ेगा नाव को मंझधार में लाना बच्चों न फिर फँसाना माझी की चाल में। तुम ही हो खेवनहार हिम्मत न हारना चप्पू चलाना सब मिल नाखुदा की ताल में। यह देश है हलधर का सेठों के वश नहीं मेहनत हो सब से ऊपर, पूँजी पाताल में।
जीने मरने के जो हालात बने हैं : डॉ. जसबीर चावला
जीने मरने के जो हालात बने हैं आपसी खून में दोनों हाथ सने हैं। देश कोई हो, इंसान दुःखी है सरहदें दुश्मन हैं, हथियार तने हैं। जहरीली शराब पीकर कई लोग मरे हैं लीकर के धंधों में कई किंग घने हैं। देते हैं ज़हर दवा का लेबल लगा-लगा खेतिहर को पेरने पर विभाग ठने हैं। हलधर उठाओ ट्रैक्टर परशुराम की तरह जुल्म करने वाले भगवान बने हैं।
कोई चारागर तो कोई दिल का बीमार : डॉ. जसबीर चावला
कोई चारागर तो कोई दिल का बीमार, कोई बला का हसीं कोई तलबगार क्यूँ न हो? कोई बेइंतिहा अमीर कोई एकदम लाचार, कोई व्याधियों का मारा कोई तीमारदार क्यूँ न हो? कोई शराफतों का पुतला कोई परले दर्जे का मक्कार, कोई नंबर वन अमीर कोई खुदकुश कर्जदार क्यूँ न हो? कोई लाड़ में लबालब कोई नफरती गुनहगार, कोई ऐश में डूबा कोई चीथड़ों में रुलता भंगार क्यूँ न हो? कोई सरहदी जाँबाज कोई बॉडरों पर हलधर रखवार, कोई देश की पूँजी का कोई संसदी जनता का हकदार क्यूँ न हो?
ईंच ईंच की लड़ाई सरहद पर : डॉ. जसबीर चावला
ईंच ईंच की लड़ाई सरहद पर लड़ रहे हो हलधर! यहाँ अंदर भी चीनी तैनात हैं। तेरे हकों को मार छातियाँ हैं फूलतीं छप्पन फुलाने वाले तपस्वी शैतान हैं। दो नंबरी चुनाव थे मशीन-मास्टरी उठे जनाक्रोश संग विपक्षी हैरान हैं। तालमेल दल तेलमाल कर रहे इंसाफी पैंतड़े बेहद परेशान हैं। हलधर तुझे कसम है,माँ भारती बचाओ अहिरावणी बथेरे, नेता धंधेमान हैं।
शीत लहरी और घना कोहरा : डॉ. जसबीर चावला
शीत लहरी और घना कोहरा दृश्यता शून्य, हलधर मोहरा। कथन में है, करन में नहीं सियासत का चलन दोहरा। धरणी धरती उपज के बीज लूट खसोट रा न्याय तोहरा। कर्ज मुआफ धनकुबेरों के किसान मरके चुकाये चोहरा। लंपी स्किन और कोरोना-जाल पापी नोंचेंगे गो ते धरा।
मंज़िल भी तय है,रास्ता भी तय है : डॉ. जसबीर चावला
मंज़िल भी तय है,रास्ता भी तय है फिर तानाशाह का कैसा भय है? नकली शराब होगी तो जिंदे मुआयेगी असली के कचरे का कुँओं में विलय है। पहले उजाड़ दो फिर हमदर्दी जताओ हाकिम बेदर्द पुलिस निरदय है। हलधर जो बात करता कौन सुनता है धरने लगा के मरना कैसी जय है? अनपढ़ गँवार बोली से मीटिंग कैसी? अफसरों के पास इतना फालतू समय है?
जो कहा : डॉ. जसबीर चावला
जो कहा किया। जो कहा नहीं किया, उसका क्या? जो कहेंगे करेंगे नहीं करेंगे उसका क्या? बस कहेंगे। हम हलधर हैं अहिंसक हैं धरने देंगे। तुम मार डालोगे मरेंगे। पिलाओगे जहरीली शराब पीयेंगे। तुम्हारे कारखानों -निकसा कचरा पानी धरती में मिलाओगे मजबूरी में कब तक पीयेंगे? हम सिख किसान हैं खालिस्तानी तुम्हारी जेलों में सड़ेंगे, उफ़ न करेंगे देख ले सारा हिंदुस्तान! हमीं हैं देशद्रोही? ले लें हमारा इम्तिहान! जिसकी आजादी खातिर सबसे ज्यादा कुर्बानियां दे गोरों को भगाया हमीं हैं सिख किसान। काले कृषि कानून रद्द कराने ७५० शहीदीयां दीं, और देंगे सबसे ज्यादा देंगे। हर तरह की कोशिश कर लो हमारी नसल और फसल मिटाने की मुगलों ने भी की, कोई नई बात नहीं! अपने बंदरगाहों पर नशा मंगाकर, चिट्टा चटाकर, आतंकवादी बताकर फर्जी मुठभेड़ों में भूनकर, हर तरह सताकर, देख लो हमें जलाकर राख से हम जी उठेंगे, गुरू गोबिंद सिंह के संत सिपाही उफ़ न करेंगे,फिर अहिंसक धरने देंगे!
दिल ही नहीं किया कि तुमसे : डॉ. जसबीर चावला
दिल ही नहीं किया कि तुमसे बात भी करूं जो जी रहा हूं उससे भी जाता ही न रहूं। देखे थे मिलके ख्वाब अच्छे दिनों के खूब कैसे दिलों में टूटते घरबारों की कहूं? अपने बहुत थे रखते जिस बात का ख्याल रुख्सत के वक्त मुस्कुरा जज़्बात संग बहूं। रखूं जुबान बंद ताला लगाके मुंह पर सच को समझ लूं झूठ, चुप बैठकर सहूं? हलधर न मुझसे होगी अब और खुदकुशी बेहतर है जिंदा रहकर धरने ही शत धरूं।
ठाकुर ने कोई ग़लती नहीं की : डॉ. जसबीर चावला
ठाकुर ने कोई ग़लती नहीं की दल में रला लिया। धरने देखे, मरने देखे पक्का कर लिया। हलधर ठंढे बुर्ज में भी बच सकता है, दीवारों में चिने जाने का माद्दा रखता है, जज़्बा रखता है। गब्बर को मार मुका सकता है। तत्ती तवी पर भी समाधि लगा सकता है। जहां तक बात है गब्बर -वध की तो हथियार अपने लाये, चाहे बनाये इलाका प्रधान बना दिया है, खुद समझे। प्रचार करे ठाकुर का खुद जीते,दल को भी जिताये। हलधर वोट-बैंक हो,कीमत चुकाओ वही करो जो पुरखों ने किया शहादत दो, इतिहास बनाओ। आगे की फिर आगे देखेंगे ठाकुरजी। फिलावक्त न तुम्हारे चुटकुले बनायेंगे न मवाली कह मखौल उड़ायेंगे। पर शराब फैक्ट्री बंद नहीं करेंगे। हलधर!तुमको तो आदत है गंदे पानियों से पिलने की, खेल सकते हो! दारू जो पी सकता है गन्ने का फिर उसके कचरे से नाक-भौं क्यों? हमने कई कैंसर अस्पताल खोल देने हैं! तुमको पैसा विदेश से मिल ही जाता है पीओ और पिलाओ! हरि मंदिर नहीं ढहायेंगे, तुम को संग रलाया है माता की रोजाना जोत जलाओ!
शहादत मतलब गवाही : डॉ. जसबीर चावला
शहादत मतलब गवाही सच खातिर जान-गवाई। छोटे साहिबजादों ने दी थी शहीदी हलधर, तुमने बस रीत निभाई। साढ़े सात सौ कुर्बान कर दिये सिंघू पर बस सुनने भर कि सरकार झुकी वापस तीनों काले कानून लिये। कबीर कहे या तो पुर्जा -पुरजा कट मरो कबहू न छाडे खेत तो शहीद या फिर जुल्म सह-सह अडिग रहे मर गये, पर अहंकारी आगे झुके नहीं तो शहीद यह नहीं कि मलाई भी खाते रहे चुप छुप हकूमत की मरते घड़ी बंदों से लिखवा लिया चिल्लवा लिया शहीद....शहीद.... तर्क दिया कि बातचीत द्वारा हल का रास्ता, बीच का रास्ता निकाल रहे थे। सम्यक तलाशते मरे जो, शहीद नहीं न शहीद अखवाये। शहीद वह जो अपने विश्वास पर अडिग, अतिवादी लड़ता आर-पार की लड़ाई। खड़ा सत्य का पक्ष ले देता सच की गवाही सच के लिए झेलते बर्बादी आत्मा न थर्राई। शहादत मतलब गवाही सच खातिर जान-गवाई। सिख किसान, देखा भारतवर्ष के किसानों ने सबसे आगे कुर्बानियां देने में, डटे तो पीछे नहीं हटे गुरू- परंपरा निभाई।
धूप उंगलियां घुसा कर : डॉ. जसबीर चावला
धूप उंगलियां घुसा कर तुम्हारी खिड़कियों से पर्दे नहीं सरका सकती यह तुम जानते हो, इसलिए ऐसा कर रहे हो देखकर भी अनजान बनना समझते भी नादान बनना यही राजनीति है अगर, तो भूल जाओ! धूप आंखों में उंगलियां घुसेड़ सत्ता का अंधेरा सरकायेगी। जो कचरा पानी पीना तो दूर देखने की हिम्मत नहीं जुटाते, जिस शराब कंपनी ने बनाया है कितना पैसा खिलाया है? प्रदूषण बोर्ड के अधिकारियों को जो साल दर साल पास करते रहे, कितना खिलाया है? जिस व्यवस्था ने दुःखी परिवारों को धरने पर बैठने को मजबूर किया, जिस अदालत ने पीड़ितों को इंसाफ की जगह उल्टा डंडा दिया, बीस करोड़ कंपनी को दिया जनता के टैक्स का उस कानून को चौक पर खड़ा कर फैसला देखते क्यों नहीं? कंपनी ने असली शराब पेश कर किस जज से करवाया है? जो जहरीली शराब पीकर मरे, उ सका मुआवजा गरीब परिवारों को खत्म जो सालों जहरीला पानी अंजाने पीते बीमारियों से मरे, उनका मुआवजा हजम? देश भर में शराब बंदी हो न हो जहरीला पानी और हवा बनाने वाली कंपनियां बंद करो,बंद करो!
आपकी शराफत हर कोई भुना लेगा : डॉ. जसबीर चावला
आपकी शराफत हर कोई भुना लेगा आपकी आफ़त हर कोई बुला लेगा आप हलधर हैं भोले विश्वास करने वाले सत्ता मिलते हर कोई हल टरका हल धरा देगा। आपको कमेटी में शामिल कर भी लेगा तो असली पिला,धोखे से सबूत मिटा देगा। अंग्रेजी में सब होगा आपको उल्टा समझायेगा सब दस्खत करेंगे स्वार्थी,आपको फुसला करवा लेगा!
तू खालिस शीशा है : डॉ. जसबीर चावला
तू खालिस शीशा है पर ऐसे न सच दिखा खुद तो टूटा, हां,फरेब उजागर कर दिया। तू खालिस शीशा है पर सूरतों का ख्याल तो रख जो सामने आए दाद दे, पगड़ी संभाल कर। पूंजी ने ही ठेके खुलवाये थे हर पिंड हर नाके पर ताकि लूट लें मेहनतकशों को शराब पिलाकर। मुनाफे ने ही गन्ने को दारू में बदल दिया लत लगा मांग बढ़ाई फिर अंधी कमाई फैक्ट्री बनाकर। साल दर साल जहरीला कचरा डाला जमीन अंदर ले हलधर अब वही पी, इलाज करा जमीन बेचकर। अस्पताल भी पूंजी पतियों के आधुनिक तरीके हैं लालच, और लालच में महल बनेंगे तेरी लाश पर।
हर जगह धन का बोलबाला है : डॉ. जसबीर चावला
हर जगह धन का बोलबाला है गोरे से ज्यादा चलन में काला है। ईंट कोई -सी भी हो, उठा देखो पूरी बनावट ही घाला-माला है। एक बंदर का मुंह तो पक्का बंद बाकी दो की जुबां पर ताला है। किसान किससे जा फरियाद करें दर्दे दिल कौन वंडान वाला है? लुटें हलधर सर इल्जाम भी लें देश कंगाल कर डाला है।
रुपयों से हर सौदा है : डॉ. जसबीर चावला
रुपयों से हर सौदा है बहुमत अमृत पौधा है। रुपयों की ही बारिश हो ऐसा गड्ढा खोदा है। गिनती झूठों की क्या हो सच को ऐसा चोदा है। हलधर अपना शीश झुका तने सिरों को रौंदा है। पूंजी की सारी दुनिया श्रम का नारा बोदा है।
उनको पता लग चुका है : डॉ. जसबीर चावला
उनको पता लग चुका है तुम्हारी अपनी भाषा है हलधर, जिस वजह से बचे हुए हो अब तक। वे मिटा देंगे बोलने नहीं देंगे लिखने नहीं देंगे पढ़ने नहीं देंगे। अंग्रेजी खड़ी करेंगे मेम के साथ, अंग्रेजी शराब के साथ। तुम्हारे बच्चे भूल जायेंगे मातबोली जवान भूल जायेंगे संस्कृति गभरू भूल जायेंगे अणख-इतिहास अधेड़ बाणियां पाठ करना भूल जायेंगे जीना बूढ़ों के लिए महज़ उम्र बन रहेगा मरना किस्मत और करम। हलधर बेदखल होगा जमीन से प्रवासी हो जायेगा, मजदूरी करेगा दर-दर ठोकरें खाता बेदखल हो गया मातबोली से तो बनवासी मलंग हो जायेगा। जड़ से उखाड़ा बूटा सूख जायेगा कल उसका खुराखोज मिट जायेगा इस तरह पंजाब पर कंपनी राज हो जायेगा।
कड़ाके की ठंड में : डॉ. जसबीर चावला
कड़ाके की ठंड में उजाड़े लोग बैठे हैं अंधे रेवड़ी बांटें सुजाखे सिर लपेटे हैं। कभी गरीबी को भी इंसाफी धूप दिख जाये घटायें गहरी काली बादल ढीठ ऐंठे हैं। फरियादी जब भी जाते हैं तकिए ही नज़र आयें इलाके के सभी कान्हा उल्टे लेटे हैं। मठों में तरेड़े आ जायें या भूमि फट जाये शराबी कारखानों का कुंए कचरा समेटे हैं। हलधर अपने मुद्दों को खुद ही सुलझा लो सांसद खेतमजूरों के नहीं, सेठों के बेटे हैं।
नकली दूध और कचरा पानी : डॉ. जसबीर चावला
नकली दूध और कचरा पानी सिक्खा तेरी गई जवानी। तेरी नहरें पक्की करते दूर-दुराडे भेजा पानी। धरती भीतर का जल सूखा उपजा दाणे राजस्थानी। लंगर खूब लगाता था न? धरने लेकर जा राजधानी। हलधर संभले पगड़ी तेरी देता जा पग-पग कुर्बानी।
भयंकर भयंकर हादसे हो रहे हैं : डॉ. जसबीर चावला
भयंकर भयंकर हादसे हो रहे हैं लोग अपने खुद से खफा हो रहे हैं। धुंध है, नज़र को सफर को संभालें रफ़्तार जांचने हाई वे जा रहे हैं! जिस मय से मांगी सुकूं की प्याली ज़हर भर प्याला पीये जा रहे हैं। हलधर ने पा ली गन्ने की कीमत फैक्ट्री के पानी किडनियां पा रहे हैं। निजी हरकतों की परवाह नहीं है औरों की भूलें गिने जा रहे हैं।
अंग्रेजों ने नील की खेती कराई थी : डॉ. जसबीर चावला
अंग्रेजों ने नील की खेती कराई थी पीट पीट के बीटी की ये करायेंगे चीट चीट के। चीट मतलब ठगना, धोखा देना दो नंबरी बीज देना जिस से आगे बीज न बनें तीन नंबरी खाद, चार नंबरी दवाईयां कहेंगे नहीं, होगा हां, कंपनी के लोग हैं धोखाधड़ दिखें बनें तुम्हारे हमनवां! हलधर सावधान! जाग्रत!उत्तिष्ठ! मीठे वादों में फंसना नहीं! शिकार हो तुम इनका। शिकारी न था, न है, न होगा मेहरबां एमेसपी थी, एमसपी है और रहेगी देखी, देख ली, देख लो, देखते रहना यह जुबां।
अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है : डॉ. जसबीर चावला
अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है, मुद्रा कमजोर नोटबंदी के बाद और हल्की हो गई व्यवस्था कुछ घरानों महफूज हो गई। चौथी थे चार रुपए का होता था दसवीं आते दस का हो गया रूस जाने लगे पैंतीसी में तो पैंतीस का खरीदा था, दूसरी विदेश यात्रा पर पचास का। हम विकसित हो रहे थे, रुपया संकुचित! सौ का जब हो जायेगा डालर संस्थायें उनकी भारत को विकसित देशों में शुमार कर लेंगीं विकसित विकसित हम लाल किले पर नाचेंगे। डेढ़ सौ पर आते दुनिया कबूल कर लेगी विश्व गुरु हलधर यही है! अमृत महोत्सव पूर्ण हो जायेगा सैंतालीस में आजादी के सौ वर्ष ढकेल देंगे हजारों की गुलामी में!
धरम शरम दोनों छुप खड़े हैं : डॉ. जसबीर चावला
धरम शरम दोनों छुप खड़े हैं झूठ ही भषणाता फिरता है थां थां जोड़ यात्रायें करता है हलधर!ऐसा ही समां था नानक का जब किरसानी अपनाई थी बाबे ने। मन की भी, तन की भी बात बताई थी अंदर की भी, बाहर की भी,स्वच्छता की जाच सिखाई थी बाबा नानक ने। हां, अगले चुनाव तक तुम्हारी वैधता समाप्त हो जायेगी फिर वोट दोगे तो चार्ज होगा डबल इंजन चुनोगे, फोन पर सेवाओं का आनंद लेने लगोगे! जैसे, मुफ्त बिजली और घटिया खाद बौने बीज और विग्यापनी स्वाद । इधर ट्रैक्टर ट्राली जवानी टाइम्स के घायलों की हालत गंभीर है संवेदनायें और बड़े-बड़े व्यक्त दु़:ख एक भी सांस नहीं डाल पायेंगे, तुम्हें मरना होगा हलधर! छोड़ देनी होंगी धरती-पानी की आसक्तियां समर्पण कर देनी होंगी की मेहनतें पूंजी के हवाले कर देनी होंगीं हाड़बीती ईजादें। यही तुम्हारा प्रयास होना चाहिए समावेश तो पहले से है तुम्हीं ने अपना भू-जल कुर्बान कर झोणा उपजाया देश को भुखमरी से बचाया! विकास तो है ही दुनिया की सबसे अमीर बीमारियों के मालिक हो दुनिया की सबसे अमीर नशाबाजियों के ओवरडोजी हो! एक कुर्बानी और दो, पैली के पटे लिख दो दुनिया के सबसे अमीर इंसान की जन्मभूमि भारत को दुनिया का गुरु बन जाने दो! साथ दोगे नहीं तो जाओगे कहां? खालिस्तान? बड़े -बड़े बाहुबली यहां!
पैसे से पैसा बने और मेहनत से घाव : डॉ. जसबीर चावला
पैसे से पैसा बने और मेहनत से घाव माटी से हलधर बने मिट जाने का चाव। पैसे से पैसा बने और मेहनत से घाव हलधर मेहनत कर मुआ,मर जाने का चाव। पैसे से पैसा बना, बना मेहनत से घाव कीना कीमत कीलो की, बेचा उतने में पाव। कीमत कीलो कीन की, बेचन की दर पाव हलधर से धोखा करें, मंडी मांगे फाव। हलधर तेरे प्रेम की कथा कही न जाय माटी संग माटी बने, दर-दर हाट बिकाय। पैसे से पैसा बने और मेहनत से घाव माटी से हलधर बने, मिट जाने का चाव। मिट जाने का चाव तभी हलधर कहलाये तन पर झेले पूस रात, गर्मी झुलसाये। गर्मी सर्दी एक बात करजे की खाये हलधर आखिरी दम तक प्रीति निभाये।
घने कोहरों बाद भी धूप निकलती देखी है : डॉ. जसबीर चावला
घने कोहरों बाद भी धूप निकलती देखी है स्वादों खातिर बड़ों-बड़ों की जीभ फिसलती देखी है। नीचे से ऊपर तक खाने की आदत देखी है अदालतों तक मोटी-मोटी रकम पहुंचती देखी है। कुचले गये मवाली थे फार्च्यूनर के प्रेमी थे रौंदने वाले में हलधर प्रति, करुणा ही करुणा देखी है। राज्य मंत्री हो किसी का वालिद, कोई क्या करे बेटों खातिर अक्षौहिणी, सेना मरती देखी है। न्याय की आखिर सीमा है, जज भी मां का बेटा है औरों खातिर कुर्बानी की, बस सिखों में देखी है।
जो रौंद गये वो मवाली थे : डॉ. जसबीर चावला
जो रौंद गये वो मवाली थे कि जो रौंदे गये वो मवाली थे? रौंदने वाले जमानत पर छूट गये जो रौंदे गये इस जहन्नम से छूट गये, नहीं खुदकुशी करते! लखीमपुर के खालिस्तानियों! पंजाब भागो! यू.पी की जमीन पर चले हो हलधर बनने! क्या हक है? हर जगह खालिस्तान बनाओगे? गुरुद्वारों में हथियार छुपाओगे? तबाह करो, रौंदो हर सिख सूरत मवाली बनाकर, चिट्टा चटाकर इनकी नस्लें मिटा दो। जवानों को पंगु बच्चों को दीवारों में चिण दो! लड़कियों को भगा लाओ, जबर-जिनाह करो! इनके बंदियों को रिहा मत करो सजा काट लें, तो भी खालिस्तान बना देंगे छूटते ही। कानूनन इन्हें आजीवन कारावास नहीं, आमरण कारावास दो !
सियासत जनता को भटकाने में लगी है : डॉ. जसबीर चावला
सियासत जनता को भटकाने में लगी है मुद्दे सुलझाने नहीं धैर्य आजमाने में लगी है। कोशिश यह है कि लोग आपस में टकराएं, मुद्दे भूल जायें आग लगवाने किसी बहाने, उलझाने में लगी है। जरूरत मुताबिक रफा-दफा मामला कुछ शांत कर लो जरूरत मुताबिक कईओं को तूल देने भड़काने में लगी है। चाणक्य नीति का पाठ सारे मंत्रियों ने पढ़ लिया है येन-केन-प्रकारेण अपने उल्लू सीधे करवाने में लगी है। हलधर तेरी मुसीबतों, गमों का नहीं कोई भी दर्दमंद धरने पे बैठ, मरने पे बैठ, तेरी हौंद-ओ-हस्ती मिटाने में लगी है।
धूप जब खुद आगे बढ़ : डॉ. जसबीर चावला
धूप जब खुद आगे बढ़ खोल रही है अंधेरों का राज़ हलधर! थाम ले बढ़ इसका हाथ! अमृत की बेटी है, महोत्सव मनाने उतरी है तुझे आजाद कराने,भारत को समृद्ध बनाने तोड़ सारे बंधन मर्यादायें गायत्री मंत्रों की। पसीजी तेरी साढ़े सात सौ शहीदियां देख बाडरों पर तेरी कुर्बानियां देख आजादी की लड़ाई में तेरे बच्चों के लासानी बलिदान की सोच उतरी है। धूप आ बिछी है तेरे आंगन में, खेतों में हलधर! पल बेकार न कर, चल इसके पीछे जिधर कहती है पल्लू थाम ले, यह सद् गमया है, अमृत गमया है! तुझे संसद ले चलेगी, तेरा राजतिलक करेगी तेरी मेहनत ही सच्ची खालिस राज करेगी!
तुम नहीं पीते : डॉ. जसबीर चावला
तुम नहीं पीते, यह उनको अच्छा नहीं लगेगा दूधपीते बच्चे कह, मखौल उड़ायेंगे पूरे गुरसिख हो, पंचशीली बौद्ध तो उनके दुश्मन हो! तंबाकू तक बिकने नहीं देते! घड़ी-घड़ी बारह बजायेंगे! वे हितैषी हैं, नशेड़ी -मवाली बनाते हैं ताकि दुनिया -भर के ग़म भूल सको, अपनी गलतियों की सही वजह न जान सको! देखा होगा जहां कचरापट्टी है, स्लम्स हैं वहां घर-घर मुहैय्या कराते हैं, चिट्टा-काला सब। व्यापारी थानेदार बन जाते हैं! मवाली सरकार तुम्हारे द्वार, नकली शराब पीकर मरने वाले मवाली कहलाते हैं, नकली बनाने वाले मुआवजा पाते हैं! तुम उनके मार्केट हो भैया, थोड़ा-थोड़ा ज्यादा लोग कीनें पूंजी का घड़ा भर जाता है। तुम्हीं उनकी पूंजी बन जाते ह्यूमन रिसोर्स, मैन- पावर! मेहनत के बल पूंजी फलाते। तुम्हीं से वे अपने उलटे-सीधे काम करवाते हैं फिर दारूबाज बता, पिटवा,अंदर करवाते हैं तुम्हारी कंगाली भुनाते हैं। मां-बहनें मजबूर, नाकारा तुम बनते परिवार के तुम्हारे, वही मुखी बन जाते हैं सूद का धंधा, चूत का धंधा उनके पास गुर हैं,गुर्गे हैं,गुरू हैं,राम हैं,डेरे हैं वोट तुम्हारे, चुनाव उनके बन जाते हैं मुर्गे लड़वाते हैं! मेरे बड़े भाई हलधर! उपन्यास मत लिखवाओ! कविताई समझ लो, खुद को बाजार बनने से बचाओ! लतों को लात मार, लालच छोड़, मर्द कहलाओ! एक भारत, श्रेष्ठ भारत दारू की कचरा फैक्ट्रियां बंद करवाओ!
शराबबंदी हो सकती है : डॉ. जसबीर चावला
शराबबंदी हो सकती है, शराब बंद नहीं दुनिया बंद हो सकती है, फैक्ट्री नहीं। लोग मरें या जीयें, भांड़ में जायें पानी ना पीयें! पानी में कचरा है, लीकर तो साफ है ना? माल में कचरे वाला पानी नहीं बिसलरी जां सोडा मिलायें! व्हेले बैठे हैं हलधर, और कमायें! पानी में कचरा है, होगा, किडनियां ठोक देता है होता है, बड़े -बड़े शहरों में, ऐसी छोटी छोटी घटनाएं होती रहती हैं बड़े हलधरों की मामूली किडनी, छोटा आप्रेशन टांका लेस होता, कनाडा रिटर्न! तभी तो कहते हैं, हमारा बनाया अमृतब्रांड पानी है, इस्तेमाल करें पहले फिर विश्वास करें! पहाड़ी झरनों का शुद्ध जल गंगाजल से साफ, आजमायें! सारे ओलिंपिकी पहलवान पीते, मैडल पाते मूसा पीते, गला साफ,खुलकर गाते! फैक्ट्री बंद करो! बंद करो न चिल्लायें! चल हट! बेशक चीखें-चिल्लायें मित्रां दा नां चलदै, उप्पर तक आओ फरियायें!
इधर डिजिटल इंडिया : डॉ. जसबीर चावला
इधर डिजिटल इंडिया प्रशासन पेपरलेस करने की बात तूल पकड़ रही है उधर बड़े -बड़े लोगों की जुबां फिसलती भरोसा खो रही है! रिकार्ड ही कर लोगे तो क्या उखाड़ लोगे? लिखित तो दिया नहीं! दस्तखत तो किया नहीं! मूरख जनता को और कितना पगलाओगे? किसी दिन हलधर की जूतियां खाओगे!
गुलों को शाख से टूटने का : डॉ. जसबीर चावला
गुलों को शाख से टूटने का कुछ मलाल नहीं गुंथे सुरबाला के जूड़े, खुशहाल नहीं। देवाधिदेव के चरणों -पड़े बिलखते हैं देशभक्ति की राहों फिंके भी जलते हैं जसबीर कौन मूरख हैं, इस पथ शीश चढ़ाने कब निकलते हैं? भला यही है हमें तोड़कर सजाओ गुलदस्ते, शोबाजी खातिर मंहगे नहीं, आम आदमी -से सहज सस्ते वहां पहुंचाओ जहां हलधर जमा हों अहिंसक विरोध करने, उसे दें भेंट जो बैठे धरने।
बंदी सिख अब कहां : डॉ. जसबीर चावला
बंदी सिख अब कहां से रिहा होंगे? उनके नाते ऑस्ट्रेलियाई खालिस्तानियों से जुड़े होंगे! वहां सिख हिंदुओं से लड़े, हलधर! यहां बदला लेने हिंदू, सिखों के दुश्मने-जां होंगे! इसी तरह तो साजिशें काम किया करती हैं उनसे पहले ऐसी घटनायें कहां हुआ करती हैं?
शवों के आदान-प्रदान के लिए : डॉ. जसबीर चावला
शवों के आदान-प्रदान के लिए सहमत हैं युद्ध -समाप्ति के लिए नहीं! हाय री बुद्धि! अभी उनकी देश-भक्ति सीमाओं तक सीमित। सैनिक लिखती परिक्षायें दे रहे रक्त से भर मृत्यु -पुस्तिकायें प्रायोगिक, आधुनिक रण-कौशल की सिद्ध कर योग्यताएं! इसीलिए कर रहे थे संयुक्त युद्धाभ्यास? हे महामानव! एकमत क्यों नहीं होते? कि पृथ्वी में शांति, व्योम में शांति, अंतरिक्ष में शांति रखेंगे कहीं युद्ध नहीं, कभी युद्ध नहीं वसुधा एक कुटुंब,एक परिवार आदान-प्रदान होगा आदर और सत्कार। मिसाइल शस्त्र नहीं, शास्त्र रचेंगे हर सूरत लड़ाई से बचेंगे, मानवता के पाठ हलधर से सीखेंगे जरुरत पड़े, सरहदों धरने देंगे पर यूक्रेनी हों, रूसी हों चीनी-ताईवानी हों, इज़राइली-फिलिस्तीनी हों, हिंदुस्तानी-पाकिस्तानी हों किसी को न मरने देंगे, लाशों की दोस्ती नहीं,भाषों की दोस्ती करेंगे।
हिंसा हारती है अहिंसा से : डॉ. जसबीर चावला
हिंसा हारती है अहिंसा से इसलिए डरती है सामने से पर खुराफात से नहीं बाज आती! भड़काती है ताकि मजबूर हो अहिंसा कंटीले तार, बैरीकेड, खड्डे-खाईयां तमाम रोड़े अटकाती है,राहों में भटका लाल किले ले जाती है, पथराव करवाती है,उकसाती है कि बस जरा -सा डिगे सही ताकि हिंसा रौंद डाले अहिंसा को लखीमपुर खीरी बना दे हर थां धरनाये हलधर जहां-जहां।
तुर्की हुआ तबाह पा भूकंप के झटके : डॉ. जसबीर चावला
तुर्की हुआ तबाह पा भूकंप के झटके मलबे में जो दबे रहे सांसों में अटके। सांसों में आज़ादी की थी ख्वाहिश भारी मर्दों की मनमानी में पिसती थी नारी। क्या हुआ जो चेहरे से हिजाब उठाया हल्ला कर- कर के सूरह अल्ला भरमाया। जितना ज्यादा दमन करोगे औरत-गां का उतना ज्यादा बोझ बढ़ेगा धरती मां का। हलधर है जो मिट्टी की इज्ज़त है करता उसको जो भी दुखी करे भूकंप में मरता।
जो आया है कुछ सोचके आया होगा : डॉ. जसबीर चावला
जो आया है कुछ सोचके आया होगा इसी तरह तो छींक तक नहीं आती। महज़ नादानी में सूरज कोई निगलता है खुली आंखों तो मक्खी ही नहीं निगली जाती। इससे आगे कौन निकलेगा भला दौड़ती दौड़ दौड़ जिंदगी निकली जाती। चाहते दुनिया खरीद कर धरना सांसों के पार इक सांस न धरी जाती। हलधर, भ्रष्ट बकवास करते रहते हो शहीद किसानों पर किताब कब लिखी जाती? खुदा आवाज दे कि बोल निकालें चुप्पी अब और नहीं सही जाती। भारत जोड़ने की बात करते हैं प्यार की तुक नहीं जोड़ी जाती।
नाम इतने हैं कि रटते-रटते : डॉ. जसबीर चावला
नाम इतने हैं कि रटते-रटते जीभ थक जाए शब्द इतने हैं कि समझते -समझते दिमाग पक जाए भाषाएं इतनी हैं कि सीखते -सीखते उम्र घट जाए ध्वनियां इतनी हैं कि दांत-मुंह-नाक-कंठ सट जाए उच्चारण इतने हैं कि उसांस-सांस कट जाए! मानुष के इतने -इतने भेख प्रकार हैं कि बुद्धि पलट जाए!! तो कैसे क्या हो कि मानवता एक हो जुट पाए? कोई ऊंच-नीच न रहे, हर किस्म का भेद मिट जाए! सब मिट्टी से प्यार करें, सोना धरती ज़हर न बनायें पानियों को साफ,मन पूंजी की मैल रहित, सच्चे हलधर बन जायें।
अहिंसक को हिंसक बना डालो : डॉ. जसबीर चावला
अहिंसक को हिंसक बना डालो हलधर तो मोहरा है सियासत से बारह बजा डालो! बंद कर दो गाना नैतिकता का राग मानवता पर डाका डालो, मत सोचो मनमानियों का हिसाब देश-विदेश उड़ो घोटालो! टोल लगा थां-थां, साल दर साल ट्रैक्टर निचोड़ डालो! खाद को चिट्टा स्वाद बीज को दारू की मवाद कीटनाशक जाननाशक बना डालो! वसुधैव कुटुंबकम् बतलाकर काला व्यापार फैला दो! सरकारी खर्चे पर मजामां-मजामां प्रजा का लूट, विदेशी छूट फंसा लो! तेन त्यक्तेन भुंजीथा भांड़ में डालो! पर द्रव्येषु लोष्ठवत् किताब से ही निकलवा डालो! औरों को ज्ञान गीत, खुद को मनमाना मीत बच्चों को नौकरी नहीं, परीक्षा -नीति बुझा डालो! प्रजातंत्र की मां बन, गोद पलती चुनाव -बिटिया का ही गला दबा दो! बेटी बचाना बाद में, पहले उसे काले सबक रटा डालो!
वक्त बीमार है, हल्के बोलो : डॉ. जसबीर चावला
वक्त बीमार है, हल्के बोलो हवायें बंद हैं,खिड़की खोलो। होती मुश्किल है पूरी करनी बात करने के पेश्तर तोलो। कप्पड़ मूत-पलीती हो जाये साबुन हाथ कर,रगड़ धो लो। मति पूंजी के पाप भर जायें हलधर की किरत के संग हो लो। बहुत जी में मलाल उठता हो आंसुओं से हृदय धो लो। किसी से दिल की बात करनी हो बेहतर है जख्म उसके मत फोलो। बदनसीब कोई नहीं यां जसबीर जिंदगी नशों में मत रोलो। नसीब अपने हैं सबसे अच्छे आज से गुरू की फतह बोलो।
कैसा तो ख्वाब था, जगते बिसर गया : डॉ. जसबीर चावला
कैसा तो ख्वाब था, जगते बिसर गया कैसा खुमार था, उतरते उतर गया। बहुत आगे नहीं आये थे जानिबे-मंजिल आसां नहीं सफर,जोशे-जां बिखर गया मुश्किल नहीं खुदकुशी करना, छत से कूद कर मंज़िलें चढ़ते हुए हांफते पारा पसर गया। देखो न किस तरह कांपते कलेजा धकधका रहा गफलतों का बुखार था, छिन में छितर गया। दाद देनी पड़ेगी हलधर! मजबूत इरादों की हटा नहीं,डटा रहा, ठिठुरता बॉडर पर मर गया।
हलधर सावधान! : डॉ. जसबीर चावला
हलधर सावधान! खेल लो पहचान! चुनाव धांधली प्रकट हो गई अब राग बजेगा खालिस्तान! सत्ता पर काबिज रहने को जनता को बेवकूफ बना पूरा मीडिया खुद हथिया ठीकरा सिखों के सिर फोड़ मुद्दा बनेगा खालिस्तान! पहले भी यही करते थे हुक्मरान। खुद ही संत बनायेंगे उनके मुंह खुलवायेंगे अपने नापाक इरादे सत्ता की गुंडागर्दी -बल पूरे तेरे कंधे करवायेंगे। सिखों को मरना होगा हलधर की बर्बादी है! काली सियासत को पहचान एक बार भी मत कहना खालिस्तान! बेनकाब कर दो इनकी राष्ट्र -भक्ति जग जाहिर है इनकी पूंजी -भक्ति आस्तीन के सांपों -झांसों मत पड़ना एक बार भी खालिस्तान मत कहना! अमृत छको, संचार करो नशा-पत्ती से दूरी खातिर गतका सीखो सशस्त्र सजो अच्छी सेहत, दीन-दुखी की सेवा खातिर फालतू में मत दे कीमती जान असली दुश्मन को पहचान! हलधर सावधान!
हम तो पहले दिन से : डॉ. जसबीर चावला
हम तो पहले दिन से, सत्ता मिलते, विकास में लग गये सब साथ हैं हमारे, अनुशासित स्वयंसेवक कोई चूं नहीं करता जनता में भेद नहीं खोलता, साथ रहता है, विकास करता है। सेहत देख लो, बैलेंस देख लो यश देख लो, कोठी देख लो। अतः, विश्वास मिला दूसरी बार भी। नौकरियां जाने के बावजूद तकलीफ़ झेलते भी, पकौड़े तलते भी, लोगों का विश्वास मिला। विकास की गति भी तेज़ हुई । सबका समावेश किया जहां जहां हरियाली थी, स्वच्छता शौचालय ला टूरिज्म -शिक्षा जहां जहां ठेके थे, बिजली पानी नदियां पहाड़ सड़कें इंफ्रास्ट्रक्चर फ्लाई ओवर नौका - आयुध, मंदिर,पत्तन जहां-जहां हाथ लग सकता लाभ। अब प्रयास तो आप सबको करना होगा हमारे अकेले से तो होगा नहीं। अब हमको हटाना सहज नहीं, चाहें तो भी, खुद नहीं हट सकते। खरीदने की ताकत आई साम दाम दण्ड भेद लाई सारी बातें साफ-साफ बताईं पारदर्शी तरीके। सब कहा, क्या-क्या करना चाहिए बार -बार साबुन से अब प्रयास तो हलधर मजूर, आम जनता जनार्दन को करना होगा।
यह पगड़ी, यह धर्म है? : डॉ. जसबीर चावला
यह पगड़ी, यह धर्म है? केश-दाढ़ी-मूंछें, ये धर्म है? यह कृपाण, यह धर्म है? ये तीन चीवर, धर्म है? मुंड सफाचट, चिकने गाल, धर्म है? यह भिक्षापात्र,बोधि वृक्ष, धर्म है? यह मुसल्ला- टोपी, यह धर्म है? यह दाढ़ी फुल- हाफ मूंछ, धर्म है? यह खतना, हज -रोजा, धर्म है? यह रामनामी कंठी, यह धर्म है? जनेऊ,चोटी-तिलक,घंटी धर्म है? तीर्थ,भस्म, त्रिशूल -त्रिपुंड,धर्म है? यह क्रास- चोंगा,यह धर्म है? यह सांता क्रिसमिस,यह धर्म है? पवित्र पानी डबल रोटी,धर्म है? ये कपड़े -लत्ते,भूषा-भेष,दिन-त्योहार पोंगापंथ दिखावाचार देखना है कर्म क्या है, कर्तव्य क्या है जनहित में, लोक-कल्याण में! धर्म तो आचरण है शुद्ध आचार-विचार है। धर्म का तन से नहीं, मन से नाता है अंदर का मैल हटे, ऊपरी सफाई से क्या आता-जाता है? हलधर!तेरा धर्म महान है! जो पुलिस लाठी बरसाई किसानों पर सिर फोड़ी निहत्थों के थके -भूखे उसके जवानों को भी लंगर छकाया, धन नानक की बड़ी कमाई! हलधर-धर्म निभाया!
जो हो देखा जायेगा : डॉ. जसबीर चावला
जो हो देखा जायेगा मैदान में फरिआयेगा। मामेकं शरणं व्रज पापों से धुल जायेगा। कानून अंधा होता है दिव्य चक्षु पायेगा। हमाम में सारे नंगे हैं बाहर संत कहलायेगा। चुनाव चौबीसी याद रखेगा हलधर ऐसा हरायेगा।
मैं इधर से चलूं तुम उधर से चलो : डॉ. जसबीर चावला
मैं इधर से चलूं तुम उधर से चलो दोनों एक जगह साफ-साफ मिलें। गंदगी बहुत है, वहीं से निकलेंगे इरादे पाक भरे, दिल साफ मिलें। किसी से कोई गिला, न कोई उम्मीद भरोसे अपने, बूते अपने,दो हाथ मिलें। पहले क्या हुआ, होता, होगा क्या रोना छोड़, शेरे-अंदाज़ मिलें। हलधर तुम, जसबीर भी हलधर बढ़ाओ ट्रैक्टर, बॉडर पार मिलें।
दिल रहता तो आरज़ू करता : डॉ. जसबीर चावला
दिल रहता तो आरज़ू करता लबों में कैद हंसी पर मरता। कभी तो शोख शाख उठ जाती झुकी निगाह से बातें करता। कोई शिकवा नहीं खामोशी गर उफ़ करता भी तो चुपके करता। अदा में रंग, रंगों में होली बुत बनाता, वफ़ा के रंग भरता। दे दिया दिल, बड़ा अकेला था जुस्तजू तेरी था किया करता। वस्ल जसबीर के नसीब नहीं दिलों की खैर हो दुआ करता। बात अगर हलधर की करते हो एम एस पी के सिवा क्या करता?
कोई भी आपके जैसा नहीं है : डॉ. जसबीर चावला
कोई भी आपके जैसा नहीं है पैसा तो पद ना, पद तो पैसा नहीं है। बहुत पुरानी आपने तस्वीर देखी है आपसे बेशी कोई चमका नहीं है। शाह का भी रुख धुंध में दिखता नूर फीका छे, तेरे जैसा नहीं है। तुम चमकते हो मन की बातों से यार दुनिया में तेरे जैसा नहीं है। छाप छूटी है हलधर की लाशों, रोम जलता चले बंशी, अब वैसा नहीं है। आप के विज्ञापनों पर जितना खर्चा है मुफ्त का अनाज उतना मंहगा नहीं है।
क्या बताऊं मेरा इस देश से : डॉ. जसबीर चावला
क्या बताऊं मेरा इस देश से रिश्ता क्या है जब कहूं, जहां कहूं,जो मर्जी,जुबान का घिसता क्या है? आपको क्या?सबको, लोकतंत्र में, अभिव्यक्ति की आजादी है पप्पू फेंकू,खास हूं?घुण हूं, और गेहूं संग पिसता क्या है? कोई सुने,न सुने,बात निकली है,दूर तलक जाएगी संविधान है,सच है अकललतीफ!देख कि लिखता क्या है? खाली जुमले! बदलते नाम? फिर काले कानून लिखे! कलाम नफरती,फूट फैला,तुझे मिला, अवाम को मिला क्या है? जिधर दरख़्त गिरा था,भारी, उधर फिर पेड़ उगा है हलधर नजदीक जा के टोह, बता,इस पर न जा कि दिखता क्या है!
हर प्यार का कोई नाम हो : डॉ. जसबीर चावला
हर प्यार का कोई नाम हो, जरूरी तो नहीं हर जवां हाथ कोई काम हो, जरूरी तो नहीं। हर सवाल का जवाब ही अगर सवाल हो सवाल हर सवाल का जवाब हो, जरूरी तो नहीं। आप कहीं कुछ बोल,वादे कर,चलें आयें तो घर आकर माफी मांगते वही बोलें, जरूरी तो नहीं। आपकी मन की बातों से कायनात हिल जाती होगी दो सच्ची बातों पर उंगली ही उठ पाये, जरूरी तो नहीं। हलधर की जान का क्या है, वह तो आनी-जानी है हजारों फंदे पेड़ों लटकाये,हर नाम पता हो, जरूरी तो नहीं।
पदयात्रा सही हो तो : डॉ. जसबीर चावला
पदयात्रा सही हो तो जुबान जमीन से जुड़ जाती है जेलयात्रा करो तो डायरी लायक विचार शक्ति बन जाती है। संघर्षों तूफानों को झेलते जो पार निकल आते हैं जिंदगी उनकी प्रेरणा की मिसाल बन जाती है। सत्य सर्वोपरि पर उससे भी ऊपर सच का पालन करना सच्चों की रक्षा के लिए सचकरनी ही ढाल बन जाती है। झूठ सच का बाना पहन दो चुनाव जीत सकता है गधा जब रेंकता है,शेरखाल की पोल खुल जाती है। यह जातक कथा नहीं है हलधर!जमीनी सच्चाई है भेड़िया जब आता है सचमुच, गड़रिए की जान निकल जाती है।
कहां तो प्रयास चल रहा था : डॉ. जसबीर चावला
कहां तो प्रयास चल रहा था बंदी सिखों की रिहाई का कहां सैंकड़ों और एन एस ए में फंसा दिये! सारी एजेंसियां सिखों पर ही सफल क्यों होती हैं? अमृत छको,संचार करो पर मीडिया से बचो काकाजी जोश में आके, होश खोके, भषणाओ मत, हकीकत जानो! शहादत का जज्बा ऊंचा है उसे लाचारी मजाक न बनाओ! चाणक्य नीति फैली है हरसू हर जगह सतजुग की कथा बांचते वीरगति पाओ मत! हलधर! अब सबकुछ तुम्हारी मेहनत के आसरे है देश वीर जवानों का, नशेड़ियों का बनाओ मत!
खेला और किसको कहते हैं : डॉ. जसबीर चावला
खेला और किसको कहते हैं? खबर बनाने को! कुछ काम सार्थक हो चाहे ना हो मीडिया में नामचर्चा, वाहवाही लूटना हो गया उद्देश्य पूरा! विरोधी विपक्ष की वाट लग गई यही खेला है! खेलो नेताओ! खूब खेला होगा! ड्रिबलिंग किये, डॉज दिये अगले को पता ही नहीं चला गेंद टांगों के बीच से कब निकाल दिये! ऐसा प्लेस किये शाट उठा न सके दूसरे पाले का वश न चले इसको बोलते हैं खैला! राष्ट्रीय खेला चल रहा है नेताओ! खूब खेलो ! लोकतंत्र का खेल! राष्ट्र द्रोह बोलके, भावनायें भड़का के वसुधैव कुटुंबकम्, पंद्रह लाख हर खाते जुमले लहराके संस्कृति सभ्यता प्राचीन सुझाके फूट फैला के, मुद्दों से ध्यान भटका के जैसे हो नंबर बना लेना यही है खेला, प्रजातंत्रीय खेल! कोई मरे चाहे जीये, खेला होना चाहिए देश जाये भांड़ में, जनता चूल्ही में उनका खेला होना चाहिए! कुछ कर के नाम नहीं बनाना नाटक से, विज्ञापन से यश कमाना है चुनाव जिताना है यही खैला है हलधर! तुम हो फुटबॉल ! जब तक फट नहीं जाओगे ठोकरें खा-खा सियासत का रहेगा यही हाल!
तुम पहले नहीं हो : डॉ. जसबीर चावला
तुम पहले नहीं हो तुमसे पहले भी अमृत पालते रहे हैं दशानन ने नाभि में पाला कौए ने चोंच में। तुम्हारे लिए भी दृश्य लिख दिया कर्तार ने! दशहरे के दिन फूंके जाओगे रामलीला खेली जायेगी शुरू में। तुम्हीं जिताओगे चुनाव २०२४! अमृत महोत्सव बिना तुम्हारा अमृत निकाले नहीं मनेगा तुम भी तप करते मोक्षातुर। हलधर!बिना डरे काम जारी रखो महज़ अन्नदाता नहीं कह रहे बार-बार समाचार -अंकों में अखंड भारत शत-शत प्रणाम भी करता है उसको पूरा सम्मान मिलता जो काम करता है। मनी का क्या है?माया है लाउण्ड्रिंग आनी-जानी है प्रजा के पास हो, मंत्री के पास हो एक ही मानी है! फल की चिंता जो करता गीता को बदनाम करता है। पर सोचो जसबीर! कोई अमृत पालता क्यों है? जिसका बाप -भाई-सगा, फर्जी मुठभेड़ दिखा मारा जाता बेकसूरा इनके हृदय अमृत बनता याद करते पूर्वज,अमृत संजोते संचय करते, पालते बड़े होते अधिक बनता, जितना बन पड़ा करता औरों को छकाते, संचार करते नशे छुड़ाते अमृत की गरिमा बताते अन्याय से जूझने का साहस जुटाते हर युग में राम बनाते अमृतपाल स्वयं रावण कहलाते!
मोदी मोदी करत हौ : डॉ. जसबीर चावला
मोदी मोदी करत हौ, क्यों माल्या को याद नहीं करते? अडाणी को आहें भरते हो, क्यों मेहता को नहीं सिमरते? भारत में यह न कहो कोई किसी से कम है उतना ही कोई रखता है, जितना अगले में दम है! दलों को दाद दो फिर भी निभाये जाते हैं उगलते हैं ज्यादा हालांकि इतना कम खाते हैं। तुम नाहक हलधर! खुदकुशी को दारू समझते हो कर्ज में डूबा मुल्क है, इस ग़म में मरते रहते हो! जिंदगी कट जायेगी इसी तरह, कचरा हरसूं चाहे गंद है हर हाल खुश रहना, महापुरखी, कुछ छिलके कुछ छंद है। कमीशनखोरी सबको पसंद है अतएव मेहनतखोरी बंद है।
धूप भी है, हवा भी है : डॉ. जसबीर चावला
धूप भी है, हवा भी है, ठंढा -गरम एहसास है गर्मियां तलवों तले, घुटनों के सर्दी पास है। आप होली में जहां हों,रंगो-फाग हो मुबारक सैंकड़ों ग़म हलधर की हस्ती, हर याद का रंग खास है। खुद ही उगते हैं हमारे आंगनों कर्जे के फूल धूल उड़ती बुहर जाती, चौखटों में घास है। जब भी आओ इस घरौंदे, सूना मंज़र ही मिले मुक गये हैं रहनेवाले, स्थायी भाव उदास है। लहलहाई इक किरण जब देख दिल धड़का तुम्हें आंख मछली प्यार चितवन, जसबीर हलधर दास है।
कहना बड़ा आसां है : डॉ. जसबीर चावला
कहना बड़ा आसां है, करना वही मुश्किल है इश्क का दरिया है,आग भरा दिल है। हलधर की मुहब्बत है, मिट्टी उगाये सोना पूंजी के दलालों का, दिमाग भी संगदिल है। फसलें तबाह कर दीं, कुदरत ने कहर ढाये मीठा लगा है भाणा, किसान जिंदादिल है। है कर्म में ही निष्ठा, फल की नहीं है आशा धरती का लाल देखो हर हाल में खुशदिल है। जितनी करो सियासत, मेहनत का हक न मारो कार्पोरेट को सौ गफ्फे, सरकार दरियादिल है!
इति माने बीती : डॉ. जसबीर चावला
इति माने बीती, हास माने कहानी भू माने धरती, गोल माने गायब यानि शून्य इतिहास गवाह है हलधर ! फुसलाकर, पिलाकर, चटाकर कर्जों तले मजबूर बनाकर अंधेरों में रखकर अथवा जबरन पिस्तौल दिखा धमकाकर तेरे भोलेपन का नाजायज फायदा उठा कर अथवा और किसी तरह भी अंगूठा टिकवाया जां टुट्टे-फुट्टे दस्तखत करवा तुम्हारे खेतों को गोल कर गये! हड़प गये पूंजीधर। रोने -बिलखने, मत्थे टेकणे, वतन छोड़ने, मजूरी खटने, खुदकुशी करने सिवा कोई चारा नहीं बचा। सब रल मिल लूटते, ठग पूंजी पति ऊपरों मिट्ठे विच्चों ज़हर दरअसल कोई खैर ख्वाह न मिला। सरकारों ने भी वही किया पूंजी का ही हित साधा, पोषण किया। कैसे कहें भ्रष्टाचार खत्म हुआ! चेहरे और तरीके बदले नाम और सलीके बदले दल ओ विज्ञापन बदले, कोई जमीन का दर्द मिटाने नहीं हुआ खड़ा धंधा है, हमाम में हर कोई नंगा! हलधर! अपना काज अपणे हत्थीं संवारिये! इक मुठ होए इक चित, शांति होर अहिंसा राहीं, गल्लीं बातीं आमो-सामने गोलमेज बैठ पूंजी तंत्र को वंगारिये! रेस्पेक्ट ऑल, सस्पेक्ट ऑल चल संसदी हेराफेरी संघारिये!
करनी है तो बेपनाह मोहब्बत कर : डॉ. जसबीर चावला
करनी है तो बेपनाह मोहब्बत कर नहीं, इंसां है, खुदा से डर। बीच मंझधार में किनारा छूट जाता है लड़ लेगा तूफानों से, हौसला कर। ऐन झंझावातों में सफ़ीना ले चल जसबीर को मार दे, जुनून जिंदा कर। जिंदगी इक बार मिलती है मिटाने को मुहब्बत के लिए मिटता रहूं, दुआ कर हलधर की जान है बसी इक इक दाणे खराबा फसल का हाकिम चुकता कर।
काला धन भी आ गया : डॉ. जसबीर चावला
काला धन भी आ गया काले भगोड़े भी आ गये काले कानून नहीं आ पाये नहीं तो विश्वगुरु भारत संसार की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होता! संसार के सबसे बड़े अमीर भारत में होते पर, संसार के सबसे कंगाल हलधर भी यहीं होते। संसार में सबसे ज्यादा अमीर भारत में होते संसार में सबसे ज्यादा भूखे भी यहीं होते संसार में सबसे ज्यादा बेकार भी यहीं होते संसार में सबसे ज्यादा होनहार गर यहां होते संसार में सबसे ज्यादा लाचार भी यहीं होते! हलधर! तुम्हारा परोपकार कभी न भूलेंगे जान की बाजी लगा रोक लो पूंजी रथ को। आठ सौ शहीदियां दे अंधा कानून निरस्त करवाया इतनी और दो,ताकि जिन्हें दिखती है खेती को दी जाने वाली करोड़ों की सब्सिडी उन्हें कार्पोरेट को हजारों करोड़ की क़र्ज़ माफी भी दिखे! ताकि सत्ता का नशा उतरे तो समझे हजारों करोड़ों का फ़ायदा जो अमीरों को पहुंचाया वह कहां से आया?
क्या फ़र्क पड़ता है : डॉ. जसबीर चावला
क्या फ़र्क पड़ता है सीधी कि उल्टी कमीज है सियासत का हर खिलाड़ी बड़ा बदतमीज है। संसद का काम है जनहित में बहस करना विरोधी विचार सुनना, लेना जो सुचीज है। जनता के बहुमत का मज़ाक न उड़वाओ नियमों को ताक धरते, पैरों दहलीज है। बस एक बार सोचो, हलधर की फसली हालत मेहनत का जिसकी खाते क्यूं नाचीज़ है। पहरा लगा है जिस पर हर जगह चौबीस घंटे फिर क्यूं पकड़ के बाहर? षड्यंत्र का मरीज़ है।
बाड़ ही खेत को खाने लगी है : डॉ. जसबीर चावला
बाड़ ही खेत को खाने लगी है नींद मल्लाह को आने लगी है। डिग्रीधारी कालीदासों की जमात अंत्याक्षरी के गीत गाने लगी है। डाल पर चढ़ गई है लोमड़ी भीड़ श्वानों की मंडराने लगी है। कहां से किसको पता असि गिर पड़े युद्ध की काली घटा छाने लगी है। देख हलधर फसल की दुर्दशा आंख किस्मत की थर्राने लगी है।
खोल दो, चारों तरफ से खोल दो : डॉ. जसबीर चावला
खोल दो, चारों तरफ से खोल दो 'विश्वगुरू' में दाखिला है बोल दो। विचार सूखे, मलीन धारायें हुईं भारत की विविधता का मोल दो। झूठी खबरों की और है पहचान क्या? फर्जी डिग्रियों बराबर तोल दो। आप्पां अग्गे वधीये तां जदों मान हलधर की हटा सब टोल दो। दूध पर कर लो सियासत आगे बढ़ केंद्र -गऊओं के गले में ढोल दो।
चलते रहोगे तो पहुंच जाओगे : डॉ. जसबीर चावला
चलते रहोगे तो पहुंच जाओगे मैं चला था यही तो बतलाओगे। आम आदमी हो तो उससे क्या जो पकाओगे वही तो खाओगे। खालसा सज गए अमृत भी छका जिंदगी भर पालकर दिखलाओगे? यह नहीं कि भागकर शहीद हो मौत के गलवान में डट जाओगे। जेहा बीजे सो लुणै बात नानक की ही दुहराओगे। क्या फ़र्क पड़ता है जो जिंदा बचे बालों का गुच्छा हवा लहराओगे। बस नहीं थी एक टुकड़ा सरजमीं पीढ़ी हलधर की इसी में पाओगे। बाखूब बहुत खूब वाकई बेमिसाल जसबीर कितनी ग़ज़ल कह पाओगे?
एक जला एक घुणखाया है : डॉ. जसबीर चावला
एक जला एक घुणखाया है जंगल ने दोनों को बचाया है। दोनों के अपने अपने लफड़े हैं पेड़ों को दोनों ने भरमाया है। हलधर को दोनों में नहीं यकीं दोनों में झूठ का सरमाया है। सच्चा वही जो सच का राही हो छल पे चल सच किसने पाया है? एक दूजा दूषते हैं नाटक में मिलके लूटने का मन बनाया है।
चमड़े की जुबान फिसली जाती है : डॉ. जसबीर चावला
चमड़े की जुबान फिसली जाती है बस गोदी मीडिया से कतराती है। सियासत है, कहीं कुछ कहीं कुछ मौका -हिसाब देख,बदल दी जाती है। रघुकुल की रीत नहीं,सदा से चली पर बचन गये,बची जान, लाखों पा जाती है। हलधर की जात है, मेहनत तो करेगी ही बाड़ भी लगायेगी, खाये अगर खाती है। लाख हसीं देख लो, हम -सा न पाओगी सूरत न जाने क्यों रात-भर डराती है।
बिकता है, क्योंकि खरीदते हैं : डॉ. जसबीर चावला
बिकता है, क्योंकि खरीदते हैं खरीदते हैं क्योंकि बिकता है। बिकता है कुछ तो खरीदते हैं खरीदते हैं इसलिए बिकता है। कुछ लोग बेचते, कुछ लोग खरीदते सभी नहीं बेचते, सब नहीं बिकता। खरीदने -बेचने के बीच,बहुत भारी दुनिया हलधर का सौदा कमीशनों में बिकता। देश की खुशहाली फसलों से मिन लो खुदकुशी मंजूर है, किसान नहीं बिकता।
कब तक रूठे रहोगे सनम से : डॉ. जसबीर चावला
कब तक रूठे रहोगे सनम से कसमें हैं झूठी तुम्हारी कसम से। इक बार आओ गले से लगाओ घड़ियां मिली हैं अच्छे करम से। किसी को न मालूम कहां थी मुहब्बत खुदा ने बनायी ऊंची धरम से। हलधर इसीको इंसाफ मानो एम एस पी पाते बेकर रकम से। धरने लगाओ कि रोको जो रेलें बातें हों मसलों पर न कि हठम से।
जिंदगी ने कड़े इम्तिहान दिये हैं : डॉ. जसबीर चावला
जिंदगी ने कड़े इम्तिहान दिये हैं मौत के राज़ ओ' गुर जान लिये हैं। शंखनाद जिस तरह सच दबाते हैं धर्मयुद्ध में धर्म ने प्राण दिये हैं। पंथ कोई भी अब सुगम नहीं रहा महाजन गये थे इतना मान लिये हैं। यार,किस जमाने की बात है करता सहेंगे मार हर, किसान ठान लिये हैं। हलधर नहीं डरते सियासी पैंतरों से संसद चलाने का सही ज्ञान दिये हैं।
पानी में बुलबुले दिखाई दें : डॉ. जसबीर चावला
पानी में बुलबुले दिखाई दें समझ लेना हवा घुस आई है। किसी भी पार्टी का झंडा हो कुर्सियों की ही हाथापाई है। करवट-ए-मौसम खुशगवार लगा हलधर की जान पर बन आई है। सच्चे देशभक्त सिख बंदी ही रहें बलात्कारियों की रिहाई है। प्राण जाए पर वचन ना जाते माफी मांगें तो जगहंसाई है।
घाव हैं जो वक्त भी भर न पाया : डॉ. जसबीर चावला
घाव हैं जो वक्त भी भर न पाया साढ़े सात सौ शहीद हो गये हलधर सिंघू बाडर कौन गया, कौन आया? स्मारक तक बन न पाया! माफी मांगने का चलन ही नहीं रहा अब किसने क्या कहा, क्यों ऐसा कानून बनाया? कौन गद्दार? तपस्याओं में डाकुओं की कमी रह गई जनता ने अपना ख्वामखाह परिवार मरवाया सम्यक वाचा कौन करता किसी ने नफरती भाषण किये किसी ने गला कटवाया अपना सर्वस्व, जानो माल लुटवाया! घाव नये-नये लगते ही रहेंगे एक सौ चालीस करोड़ जनता है कुल जमा छप्पन इंच की छाती पूंजी तंत्र है, गुलाम आबादी ने आजादी खातिर तबाही झेली लीज़ पे मिली भी पिचत्तर साली अमृत महोत्सव का जश्न मनाया।
यह कैसी लंका बना डाली है? : डॉ. जसबीर चावला
यह कैसी लंका बना डाली है? सोने की है? पता नहीं, पर जो घुसता है इसमें रावण बन जाता है! कहता है, सारे नंगे हैं हमाम दिखते ही कपड़े उतारने लग जाता है! जिसने की शरम वगैरह-वगैरह की करम धरम से तुक मिलाते गाने लग जाता है ! पंद्रह लाख हजारों करोड़ के जुमले गढ़ने लग जाता है! और जाने क्या-क्या टोटके पढ़ता थालियां बजवाता, दीये जलवाता है! उधर कानून बनाने वाला फायदा उठा मौके का, काले बनाता है धंधेबाजी- मुनाफाखोरी पास करवाता है! पद दिलवाते, नीचे ऊपर पहुंचाते स्वर्ण प्राचीरों में लोहे के कील गड़वाता है! हलधर फसल की संभाल करें कि धरने बैठें? सोने की लंका में कर्ज़ी कंगाल फाहे लगाता है!
कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं : डॉ. जसबीर चावला
कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं फर्जी सिक्के नकली रुख हैं। अवर उपदेश कुशल बहुतेरे औरों को मना, करते खुद हैं। अवर उपदेसे आप ना करे दोहरे मापों के दाउद हैं। जाओ करना हो जो कर लो जंतर मंतर सब अवरुद्ध हैं। हलधर के ट्रेलर ले आओ मीडीया ने ऐलाने युद्ध हैं। कुश्ती करो या मुक्के मारो ताल ठोंक के छाती शुद्ध हैं। बेहतर मन की बात समझते वर्तमान दुनिया के बुद्ध हैं।
गरजते रहे गरजते रहे बड़ी देर : डॉ. जसबीर चावला
गरजते रहे गरजते रहे बड़ी देर अंधेरा होने तक लोग जान चुके थे, बरसेंगे नहीं। न वे भागे, न सहमे ही। खेलते रहे खेलते रहे सियासत हो कि गुल्ली-डंडा अंधेरा होने तक। हलधर सकपकाये नहीं, न खुशफहमे ही, बीजते रहे बीजते रहे बादल आये आये, गये गये अंधेरा होने तक बड़ी-बड़ी आयु काट!
पहलवाननियों ने अमृत छका होता : डॉ. जसबीर चावला
पहलवाननियों ने अमृत छका होता रखी होती गातरे में कृपाण लटकती किसी माई के लाल बाहुबली की हिम्मत न पड़ती। मुगल खाली प्राचीन काल में थोड़े होते हैं आज भी यहीं होते हैं किसी भी धर्म में! बजाड़ देतीं वहीं हाथ डालते सारी दबंगई झड़ जाती! बात एक जने की नहीं चावला! सिस्टम की है, आदमी सहता है कि चलो, बजरंगबली सुमति देंगे। पर भ्रष्टाचार की हौसला अफजाई होती है लोकतंत्र में जनता की ढील से। सम्यक विंदु पार हो जाता है पाप का घड़ा भर जाता है संतुलन डगमगाता है, धीरे-धीरे बारह बज जाते हैं अवाम चिल्लाता है, तब हलधर आता है खालसा! आना पड़ता है घोड़ों/ट्रैक्टरों पर सवार भारत की बेटियों की इज्ज़त -लाज बचाने। वह पुर्जा-पुर्जा कट मरता है साढ़े सात सौ शहीदियां देता कानूनी काला सिस्टम, बिना हिंसा ठीक करवाता है।
आग बुझ जाती है, सेंक रह जाता है : डॉ. जसबीर चावला
आग बुझ जाती है, सेंक रह जाता है मसले जलते, जुमले फेंक चला जाता है। आम चुनाव न हुआ, आफते सैलाब हुआ जनता का पैसा विज्ञापनों में बहा जाता है। बेटियों के हक के लिए बना था शहसुर्खी वक्ते हिफाजत वही, मिलने से कतराता है। हलधर मांगता है बंदी सिखों की रिहाई सिंघू शहीदों का हिसाब भुला जाता है। गोदी मीडिया को मोदी का पर्याय मान एक का ग़ुस्सा दूजे पर उतर आता है।
अरे शुकर करो बस हाथ से रस लिया : डॉ. जसबीर चावला
अरे शुकर करो बस हाथ से रस लिया चाहते तो तुम्हारा हाथरस बना डालते! पुरखे उनके साधिकार चखते रहे बिना शिलाजीत की रोटी खाये। वे प्रतापी बाहुबली, शुकर रहो अपने देश का समझा उन्होंने कभी खालिस्तानी मवाली नहीं बतलाये। तुम कुरू देश कीं, सब तो मैडल भी नहीं लाईं! पर अकूत खर्चा किये नेताजी तुम सब पर। शुक्र करो विश्वगुरू ने शिष्या नहीं बनाया! अब खालिस्तानियों की शरण ले लंगर मत डाल देना, जंतर मंतर टापू पर पृथ्वीराज चौहान के देश में! टुकड़े टुकड़े हलधर गैंग देख रहे कब्जियाते छद्म वेश में।
ना कोई जीतेगा,न कोई हारेगा : डॉ. जसबीर चावला
ना कोई जीतेगा,न कोई हारेगा पाप दोनों को बेमौत मारेगा। एक से दूसरा एक कदम आगे है दोनों को लंगी वक्त ही मारेगा। रब के घर देर है,अंधेर कहां है? ढिबरी टाइट करते पलक न मारेगा। बहुत सियासत का बड़ा दांव खेला है विधि का विधान उल्टा दे मारेगा। हलधर को कैसा बुड़बक बनाया है कर्ज़ा ले कर्जे को कर्जे से मारेगा।
अपनी याददाश्त पर मुस्कुरा न पाया : डॉ. जसबीर चावला
अपनी याददाश्त पर मुस्कुरा न पाया तुम्हें जसबीर जसबीर कह कर बुलाया। जनता ने चुनकर जिस पद पर बिठाया इतना खर्चा किये तब यह सुख पाया। किसी का काम करवाते हैं तब कुछ लेते हैं पहलवाननियों ने खामखा हंगामा मचाया। हम अपने देश में देवियों को पूजते हैं संसार ने विश्व गुरु ऐसे ही नहीं बनाया। कटघरे में क्या चौराहे पर खड़ा कर के मारो नोटबंदी के नुकसान को कोरोना टीके से हराया। हलधर को तो आदत पड़ गई है धरने की हर फसल पर एमेसपी का कानून जो बनाया।
झूठ तो झूठ, सच पर पर्दे तानते हैं : डॉ. जसबीर चावला
झूठ तो झूठ, सच पर पर्दे तानते हैं मतलब परख के झूठ सच मानते हैं। सारी सच्चाई मुंह से कही नहीं जाती ज्यादा निगाहों की शर्म से जानते हैं। दूध का दूध, पानी का पानी करना हो ग्वाले हटा, सटीक वस्त्र से छानते हैं। दंगल अखाड़े में हो या दिल्ली में हलधर जमीर की सुनते-मानते हैं। कौन उद्योगपति, और साजिश कैसी योग भ्रष्टाचार रोधी, सभी मानते हैं।
किसाननियां -किसान पक्ष में नहीं हैं : डॉ. जसबीर चावला
किसाननियां -किसान पक्ष में नहीं हैं: कोई बात नहीं जवाननियां -जवान पक्ष में नहीं हैं: कोई बात नहीं मुसलमाननियां -मुसलमान पक्ष में नहीं हैं: कोई बात नहीं पहलवाननियां-फहलवान पक्ष में नहीं हैं: कोई बात नहीं हलधरनियां-हलधर पक्ष में नहीं हैं:कोई बात नहीं खिलाड़िनें-खिलाड़ी पक्ष में नहीं हैं:कोई बात नहीं! कर्नाटक चुनाव दो रोज़ बाद ही है: कोई बात नहीं! मशीननियां -मशीनें पक्ष में हैं: आहो, यो बात सै!
जज्बाती होता है,चालाक नहीं होता : डॉ. जसबीर चावला
जज्बाती होता है,चालाक नहीं होता होश खो देता है, जोश नहीं खोता। बंदूक की करनी हो, या जांच पैटन टैंक की चीथड़े उड़ें बदन के, करवा के खुश है होता। हो कारगिल पहाड़ी या गलवान चीनी दुश्मन कट पुर्जा-पुर्जा मरता, रणछोड़ कभी न होता। गुरू गोबिंद का सिपाही, खालसा संत रूपा कौम का हर धब्बा, अपने लहू से धोता। हलधर वहीं हो सिख तुम,अमृत केशाधारी केसरिया रंग पगड़ी, खालिस्तान नहीं होता!
दुबारा वही पत्ते खेले जायेंगे : डॉ. जसबीर चावला
दुबारा वही पत्ते खेले जायेंगे असली संग नकली ठेले जायेंगे। राज-पाट तक दांव पर लगाये हैं द्रोपदी लगाने वाले पेले जायेंगे। रोड-शो रैली-रिझातीं रयोड़ियां ट्रैक्टर -लदे जीत-रेले जायेंगे। कैसे लोकतंत्र में जीतता अधर्म है मृत्यु धर्मराज की देख मेले जायेंगे। बोल बजरंगबली पेटी में डाल दिया पहलवानी धरने हलधर चेले जायेंगे।
कोरोना अब महामारी नहीं रहा : डॉ. जसबीर चावला
कोरोना अब महामारी नहीं रहा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यही कहा। बाकी दो गज बीस सेकेंड नाक-मुंह सब निजी है मामला, यात्री स्वयं जिम्मेदार, संभाले अपना सामान,रहे खबरदार! वुहान-प्रयोगों का भारी नुक़सान नहीं रोक पाते सागर-पहाड़-रेगिस्तान, विश्व जुड़ जाता कानों-कान। मत करो छेड़छाड़, कुदरत का करो पूरा सम्मान। हलधर उगाता जहां कहीं जो भी कानून बना हर फसल मिले पूरा-पूरा दाम।
तौबा तौबा यह हमने क्या देखा : डॉ. जसबीर चावला
तौबा तौबा यह हमने क्या देखा बंद कुदरत का मुंह खुला देखा। चांदनी धूप में नहाती थी आफताबों का दिल बुझा देखा। सारी कायनात थम गई जैसे ऐसा जलवानुमां रवां देखा। कोई ताबीर ख्वाब में उतरी इश्क को इस कदर फिदा देखा। वक्त से दूर रह गया लम्हा सांस को नफ्स से जुदा देखा। सारी दुनिया को प्यारता हलधर ऐसे अहसास से खुदा देखा।
हराया तो ऐसा कि मशीनें भी कराह उठीं : डॉ. जसबीर चावला
हराया तो ऐसा कि मशीनें भी कराह उठीं इतने कद्दावर नेता का कुछ तो ख्याल रखिए । माना सत्ता में बैठकर विश्वासघात किया न सही जात का, न धर्म का, उम्र का तो ख्याल रखिए । कितने नजदीक ही रहता है घर से आपके भ्रष्ट हैं मानते हैं, पर पड़ोस का तो ख्याल रखिए । आपके साथ है हलधर मन में गहरे से लंका पहुंच बने न रावण, ख्याल रखिए। आगे हलधर ही ना बन जाए बली का बकरा काले कानूनों की वेदी- पूजन का ख्याल रखिए!
खाली अन्नदाता कहने से नहीं चलेगा काम : डॉ. जसबीर चावला
खाली अन्नदाता कहने से नहीं चलेगा काम देश करता शत-शत प्रणाम हर सुबह आठ बजे पहले हलधर को। तब खुलता समाचार प्रभात मोदीके नाम।
पहले होता था खेला शतरंजी बिसात पर : डॉ. जसबीर चावला
पहले होता था खेला शतरंजी बिसात पर राजनीतिक दांव-पेंच घोड़ों-प्यादों की बाजी पर आजमाये जाते। अब खेला सियासत का रच-बन नहीं सकता शतरंजी मोहरों संग। रफ़्तार बढ़ चुकी ऊंटों-घोड़ों से आगे कहीं हाकी-फुटबाल-क्रिकेट, वो भी घूम-घूम कर क ई -क ई राउण्ड में क्वार्टर फाइनल कहीं,तो सेमीफाइनल कहीं अंतरराष्ट्रीय खेला है हलधर महाराज! खाली धरने -प्रदर्शन से नहीं होगा काज चीज़ें जुड़ी हैं पोर्ट से कोर्ट तक, पेट से गेट तक, अंतर्जालीय खेला है आभासीय माया है मेहनत भी! पूंजी तो है ही है!!
नजर से नहीं,पहले अपनी आंख से मुझे देख : डॉ. जसबीर चावला
नजर से नहीं,पहले अपनी आंख से मुझे देख, फिर मेरी आंख से खुद को नजर में ला। दाग नहीं, उछाल नहीं,सवालों से मुझे पूछ ! फिर खुद से मेरे सवाल लगा! मैं हलधर हूं, किसी पर मेरा जोर नहीं। तू पुलिस क्या, फौज से लताड़ सकता है! सड़क से संसद तक फैला है दबदबा तेरा । मेहनतकश की नस्ल फसल मिटाने को कन्याकुमारी से कश्मीर जोड़ सकता है । मुकाबला क्या है? यहां तो हकों की लड़ाई है । किसी को पेंशन है, किसी को घास की खुदाई है। तुझे कई पेंशन हैं मेरी कमाई से, मुझे भूखमरी तेरी खुदाई से!
खालिस्तानी खंभा खिसियानी बिल्ली नोंचेगी : डॉ. जसबीर चावला
खालिस्तानी खंभा खिसियानी बिल्ली नोंचेगी सिख है एक तौलिया, गंदे हाथ पोंछेगी। हलधर मेरे वीरा, सियासत खेल समझ जल्दी झूठे लारों में फंसवा,आग में तुमको झोंकेगी। फसल तबाह होती है होवे, झूठी है हमदर्दी तस्वीरों में छप्पन छाती,छुरा पीठ में भोंकेगी। बांध तेरी पगड़ी अपने सर,कितने स्वांग रचायेगी राजनीति है, राहत देते, सिख की नज़रें कोंचेगी। एक चुनावी धंधा है,मुद्दे वोटों का बाजार कैसे गोटी सध जाए,गलत-सलत सब चोंचेगी।
मैं हौं, मैंहौं,करते मोर : डॉ. जसबीर चावला
मैं हौं, मैंहौं,करते मोर पूरे मुल्क मचा है शोर। अमदावाद-बड़ौदा-पाटण तोड़-मोड़ हो मोर-तोर। जोड़-तोड़ हर कदर- कदम सौ सच का एक झूठ जोर। भारी पैर कांग्रेसी अम्मा देव लोक बज उठे ढोर। सिंह गीर के, चीते चोर हलधर चीर दिया इक होर।
बहुतों को बहुत खुशी मिली इस हार से : डॉ. जसबीर चावला
बहुतों को बहुत खुशी मिली इस हार से कृपया, निडर न रहिए, जय-जयकार से। अभी तो सिर्फ एक शाख ही मुरझायी सारे शजर सूख सकते, दश्त में एक कतार से। बार-बार आगाह किया,सम्यक पर चलते रहिए छाती रहे फुलाते छप्पन, सारू -सारूकार से। और भी राज्य देश में हैं, भारत माता को प्यारे गुजरात दबा जाता नित नई,योजनाओं के भार से। सिख हलधर ने सबसे ज्यादा गेंहू दिया इस साल भी खत्म उसे न कर देना खालिस्तानी वार से।
आमो! पको और नीचे गिर जाओ! : डॉ. जसबीर चावला
आमो! पको और नीचे गिर जाओ! फलों के राजा हो तो क्या? व्यर्थ न इतराओ!! पेड़ों पर तुम्हारा हुक्म चलेगा? हवाओं को तुमसे क्या खौफ? गिलहरी तुम्हारी डालियों में मस्त। लंगूरों को तुम्हारी लाली का शौक! पक कर गिरते यह तो भारी दुआ सैंकड़ों वैसे गिरे,निशां न रहा कौन पूछता? इसलिए कहता हूं आमो! पको खुद को जानो,पेड़ों को बूझो! आंधी से डरो! तपो, पको भर जवानी गूदा मीठा करो! रूप औ' सुगंध से मन को भरो! फलों के हो राजा, राजा रहो दुनिया कहे, खुद न कहो! व्यर्थ न इतराओ, कोशिश करो औरों की खातिर पको! जितना हो सके हलधर बनो!
आंख जो कहती है, जुबां क्यूं नहीं कहती : डॉ. जसबीर चावला
आंख जो कहती है, जुबां क्यूं नहीं कहती जुबां जब कहती है,आंख चुप नहीं रहती। हम क्या करें, ज़माना करने दे तो ना चाहत कुछ ऐसी कि बेरुखी नहीं सहती। मखमली अंदाज है आवाज का जादू सुनने को कोई और धुन, तबीयत नहीं रहती। वोटों के लिए बार-बार नोटों को न बदलो मंहगाई काले धन के अख्तियार न रहती। हलधर से अगर पूछते बदहाली का इलाज लखीमपुर की काली हवा पहलवान न बहती।
भ्रष्टाचार करेंसी -नोटों में नहीं : डॉ. जसबीर चावला
भ्रष्टाचार करेंसी -नोटों में नहीं, जमीनों-जायदादों में नहीं, आचरण में है, नीयत में है जसबीर! पाप सामग्री में नहीं, मन में पलता है। क्यों किसी नेता से उल्टी उम्मीद करते हो? नदियों का पानी कभी स्वच्छ हो न पायेगा अधर्म जब तक उनमें नहायेगा। हलधर-मजूर-मेहनतकश जब संसद चलायेगा वही बतायेगा कैसे पूंजी पाप जनती शोषण-विस्तार करती, चंद मुट्ठियों बंधती -बंद होती बेलगाम होती, भ्रष्टाचार का बोधि-वृक्ष बन जाती है! हलधर ही सिखायेगा सम्यक प्रबंधन की तकनीक वही असत् से सद् की ओर ले जायेगा।
आंखों से नींद चली जाये तो क्या रहता है ? : डॉ. जसबीर चावला
आंखों से नींद चली जाये तो क्या रहता है? सपनों से चाह चली जाये तो क्या रहता है ? दर्द से आह चली जाये तो क्या रहता है? तारीफ से वाह चली जाये तो क्या रहता है? घाव से पीप चली जाये तो क्या रहता है? दीप से लौ चली जाये तो क्या रहता है? प्रीति से पीर चली जाये तो क्या रहता है? रीति से रार चली जाये तो क्या रहता है? प्रेम से भीति चली जाये तो क्या रहता है? निष्ठा से सुगंधि चली जाये तो क्या रहता है? दृष्टि से दीठि चलीं जाये तो क्या रहता है? सृष्टि से क्रांति चली जाये तो क्या रहता है? देह से पीठ चली जाये तो क्या रहता है? पीठ से रीढ़ चली जाये तो क्या रहता है? धुन्नी से धुनि चली जाये तो क्या रहता है? भाड़ से भीड़ चली जाये तो क्या रहता है? धरने से धैर्य चला जाये तो क्या रहता है? हलधर से शांति चली जाये तो क्या रहता है?
लोग दोनों पैरों लंगड़ाने लगे हैं : डॉ. जसबीर चावला
लोग दोनों पैरों लंगड़ाने लगे हैं आप ही मुंह की खाने लगे हैं। तोड़ डाला इश्तहारों ने समां झूठ की चादर फैलाने लगे हैं। कल नहीं था जिनको सपने में गुमां दिन में सपने दिखलाने लगे हैं। आओ सूरज तुम भी इनको देख लो घुप्प हनेरे पंकज खिलाने लगे हैं। हलधर इनसे पूछता है कौन जात नाम बतलाते भी घबराने लगे हैं। आप अपने मुंह की खाने लगे हैं लोग दोनों पैरों लंगड़ाने लगे हैं।
शराब फैक्ट्री का कण-कण ज़हरीला है : डॉ. जसबीर चावला
शराब फैक्ट्री का कण-कण ज़हरीला है पहले सोच में विष है, फिर हर ईंट में हिंसा गारा ढेर लालच का, सने पूंजी के खूं-खंजर प्रबंधन सत्ता -मद में धुत्त कच्चे माल में झूठ औ' छल, मशीनों में भरी नफरत। कचरा-धुंआ-दुर्गंध प्रदूषण हर तरह,हर तरफ। किसान समझाया जाता, मंहगा माल है क्योंकि यही है अमृत! समुद्र -मंथन से भी निकला था विष पी गये थे शिव। अतः,भव्य मंदिर भैरों बाबा का बनायेंगे बढ़िया से बढ़िया मदामृत चढ़ायेंगे मिट्टी में घुसायें ज़हर तो भी बचायेंगे। प्रदूषण जांचने वाले सुरा पान भी करते गर्म मुट्ठी से हों तो सब ठीक ही दिखते। कचरा सालों साल धरत माता रहा घुसता कचरा हर बरस कानून की धज्जियां उड़ाता हद पार हो गई कचरा पिता पानी विच नज़र आता! लौ पी लो रज-रज भूमि-पुत्रो! देख लो करनी का अंजाम, शराब फैक्ट्री नहीं यह हलधर की लाशों का टीला है गांवोंं के गांव बर्बाद किये शराब माफिया अमर रहे पूंजी का खेल रंगीला है।
उसने मेरी दुआओं का असर देख लिया है : डॉ. जसबीर चावला
उसने मेरी दुआओं का असर देख लिया है अब वह मेरे तीरे-नज़र का असर देखेगा। साफ कह रहा है जो बने उखाड़ लो अब मेरा सर धड़ से जुड़ा देखेगा। मैं धरने लगा- लगा के थक गया वह इंतजाम की मुस्तैदी देखेगा। हमारी जात से उसे क्या खतरा फसल, नस्ल तक मिटा देखेगा। हलधर तेरे परचम रहेंगे धरे के धरे जिस्मों को रौंदने चक्के चढ़ा देखेगा। तू किस खेत की मूली,औकात ही कितनी कौन लिखता है एफाईआर देखें, देखेगा। सवा लाख से लड़ने का चाव, ऊपर जा करना यहां एक से ही शीश गर्दन से उड़वा देखेगा।
पहले पेट, मज़हब बाद का मसला है : डॉ. जसबीर चावला
पहले पेट, मज़हब बाद का मसला है कचरा धरती में छुपाना एक घपला है। अपने मतलब को गले दूजों के घोंटें तो यह कैसा न्याय है, या कैसा बदला है? करो कीर्तन या भजन या कोई ठुमरी ही धरो वाजा वाजा है, तबला तबला है। कायदा इस तरह कि फायदा बढ़ता ही चले सांस अवाम की सांसत में, कैसा हमला है? हलधर हर बात पर राजी,उसकी बात सुनो एमेसपी है रहेगी, सच है? कोरा जुमला है?
हर इंच इक सवाल करती है : डॉ. जसबीर चावला
हर इंच इक सवाल करती है छाती है छप्पन धमाल करती है। आपसे भी पूछती है अपना नाम विज्ञापनों देखा-पढ़ा? या सुनी मन की बात? हर दिन सीधा संवाद रचती है। किस्सागोई छोड़ दें, करें सक्रिय मामलों का हिसाब, दूध दूध से अलग, पानी पानी के खिलाफ करती है। साम-दाम-दंड-भेद मुट्ठी में, देशभक्ति विश्व का कुटुंबी ख्याल रखती है।
कारवां गुज़रा नहीं गुबार दुनिया भर का है : डॉ. जसबीर चावला
कारवां गुज़रा नहीं गुबार दुनिया भर का है विश्व गुरु बनेंगे पर उधार दुनिया भर का है। जहाज निजी हैं राजमहल निजी है भाटे में दम नहीं ज्वार दुनिया भर का है। कम पड़ गये मौके फोटो खिंचाने के उद्घाटन करने से प्रचार दुनिया भर का है। जुस्तजू है बस,तपस्या पूरी नहीं हुई दुनिया को देखने का प्यार दुनिया भर का है। हलधर मेहनतकश ही बैठें नयी संसद में नेताओं के जिगरों में हिज्र दुनिया भर का है।
धरती का कोई बदल नहीं : डॉ. जसबीर चावला
धरती का कोई बदल नहीं आकाश की कोई शक्ल नहीं हवायें पनिहारिन हैं उनकी कोई नकल नहीं। हलधर, तुम चाहे जितना सुस्ता लो पी लो, भांगड़े पा लो मेहनत तुम्हीं को करनी है, मरना तुम्हें ही सीमाओं पर बुआई-सिंचाई-निराई-गुड़ाई कटाई-भरपाई तुम्हीं को करनी है, यही खालसा राज है, यही रामराज्य है। अत्तदीपो भव हलधर, अपना दीपक खुद बनो! अपना काज अपणी हत्थीं संवारिये।
प्रजातंत्र की जुल्फ खुलके बिखर जाए : डॉ. जसबीर चावला
प्रजातंत्र की जुल्फ खुलके बिखर जाए तो अच्छा हारने से पहले उद्घाटन बन जाए तो अच्छा। पहलवाननियों ने जैसा इतिहास रचा है राजदंड या सिंगोल ढोल बन जाए तो अच्छा। गुजरात का माडल है, लोकतंत्र में राजा हो संविधान तानाशाही बन जाए तो अच्छा। गुलामी की बदबू जूनी संसद से उठती है हवनकुंड नयी संसद बन जाए तो अच्छा। हलधर तू मूर्तियों का आंधी में उड़ना देख महाकाल पहलवान बन जाए तो अच्छा।
अमरता के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते : डॉ. जसबीर चावला
अमरता के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते संजीवनी बूटियां लभदे नायाब इमारतें रचते। क ई होनहार तो राघव राजा रामों को लभदे उनके हत्यारे रावण बनने का षड़यंत्र गढ़ते। क ई कुश्तीबाज तगमे दांव पर लगा देते अमरत्व प्राप्ति हेतु हनुमान चालीसा जपते। तपस्या में कमी रह जाए तो सिंगोल धरते अपने जीवनकाल में ही महाराजा बनते। गरज कि हलधर शहीद होकर अमरता लभदा राजमद में हिटलर लाखों शहीद हैं करते।
आंखें जमीन में गाड़ दो : डॉ. जसबीर चावला
आंखें जमीन में गाड़ दो, कुछ बोलो मत जब हम कहें जहां, वहीं देना अपना मत। कल्याण इसी में तेरा भी,घर-बार का भी मुफ्त अनाज, गैस और बिजली, ऊपर छत। पढ़- लिख कर बेरोजगार बनोगे,क्या मतलब पाओगे सरकारी नौकरी,गफलत पालो मत। हर पार्टी रेवड़ियां बांटे, हम देते राजा वत्सल ईह लोक से परलोक तक भैय्या रहें देवता वत । हलधर को अभी जाच सीखनी कैसे बनते रामभक्त वह अपनी मेहनत के बल अन्न उपजा लुटाता पत।
पहलवान में किसान शामिल है : डॉ. जसबीर चावला
पहलवान में किसान शामिल है और हे हलधर ! जग को बतला दो किसान का जवान बेटा ही फौज में शामिल है और हुकमरान को समझा दो! वोट पर चोट किए,काले कानून वापस लिए और वोट पर चोट करो, काले इंसान कैद में हों। ट्रंप होता तो शुकर करता पहलवाननियों ने जो प्यारे लांछनों से नवाजा है अध्यक्ष क्या, राष्ट्रपति पद त्याग देता, खजाना लुटा देता पर यहां विश्व गुरु बनने का भूत सवार है लाखों साधु संतों का पुण्य लुटा देंगे आसाराम बनाने को तैयार है! हे हलधर ! इन पार्टी पप्पूओं की बदला खोरी देखो! बचकाना हरकतें करते अंग्रेजों के समक्ष, अरे, नहीं चाहिए विदेशी ऋण! हमारे यहां कोई विदेशी अपने देश की ऐसी छीछालेदर करता है? क्या सीखा है अपनी लंबी गुलामी के इतिहास से? हलधर, कब रोकोगे इनको बकवास से?
साफ नहीं, जगह गंदी करेगा : डॉ. जसबीर चावला
साफ नहीं, जगह गंदी करेगा ऊपर कंजकां वाली चुन्नी चढ़ा देगा। इसे धर्म नहीं पाखंड कहोगे तुम्हीं को मवाली बता देगा। स्वच्छता से उसको क्या लेना-देना राधामोहन वाला हृदय दिखा देगा। कर्म ही पूजा है, वही करता है मन साफ हो, थां बेमानी बता देगा। हलधर इन पचड़ों में पड़ता ही नहीं भूखे को जहां कहो खिला देगा।
पहलवाननियों ने दी पटखनी : डॉ. जसबीर चावला
पहलवाननियों ने दी पटखनी राजा जी को मुश्किल बनी राजा भागे साधु संतों के पास साधु जग से रहे उदास संतों ने की रैली न गोंडा, न दिल्ली बालासोर उड़ीसा चली। रेलों में जहां टक्कर वहां मृत्यु का भारी तांडव हे कौरव! हे पांडव! देश सोने की चिड़िया सोनपंख उखाड़ा जिन! सुरक्षित करो बगिया। हलधर अपने संग लो पूंजी नहीं,श्रम पर बल दो! डेढ़ अरब आबादी पहनै एक दिन भी खादी अपने हाथों काते सूत विदेशी ॠण का भागे भूत अपने पैरों खड़ी आर्थिकी। दुनिया का सबसे अमीर आदमी फ़ालतू ऐसी होड़ ओलंपिक में सबसे ज्यादा पदक कब आयेंगे हलधर बोल! साधु सांसद ले संगोल भारत जोड़ो दौड़ें दौड़।
गाछपका ही असल पका है : डॉ. जसबीर चावला
गाछपका ही असल पका है गुठली तक गूदा मीठा है हो सकता है छिलका थोड़ा हरा हो सकता है ऊपर थोड़ा कड़ा पर भीतर से अमृतपगा है, असल पका है। और देखो जो हाथपका है नकल पका है। ऊपर से कितना दयाल छिलके से मासूम आंख-लुभाऊ ऊपर से कितनी मिठास पर गुठली संग गूदा कच्चा भीतर से कड़वा खट्टा नकल पका है। हलधर सरल गाछपका नेता कुटिल हाथपका। किसान नोटपका नेता वोटपका, हलधर चोटपका है नेता खोटपका है!
हर किरपा कीजे राम : डॉ. जसबीर चावला
हर किरपा कीजे राम हर किरपा कीजो राम पंद्रह हजार बार राम-राम कहने वाले खालिस्तानी हैं? बस, इतने भर से कि दाढ़ी -मूंछ-केश रखे हैं! किरपान बगल में झुलाये रखते हैं तो खालिस्तानी हो गये? और तुम जो हजारों करोड़ लगा राम मंदिर उसार रहे, खालिस्तानी नहीं हुए? तुम जो जटा-जूट बढ़ा,परशु कंधे टिका, छुट्टा घूम रहे खालिस्तानी नहीं हुए? हलधर तुमसे पूछता है खाड़कू! अश्वमेध का घोड़ा छोड़े हो धमकाते राज्यपाल हर प्रांत खुद ही खालिस्तानी बनकर करते ध्रूवीकरण चक्रांत गुरू चाणक्य चलाते भेद-साम, दंड और दाम। भूल रहे हो राजधर्म, करते पूंजीधरों का काम इससे राष्ट्र बिखर जायेगा, हो जाओगे फुल बदनाम।
हलधर! वे तुम्हीं को चाकू बनायेंगे : डॉ. जसबीर चावला
हलधर! वे तुम्हीं को चाकू बनायेंगे चीर देंगे भारत माता जगह-जगह पहले ही वह केक बनी विविध रंगों में आकर्षक सजी! वे उत्सव धर्मी एक दूजे के मुंह ठूंसेंगे जायके जश्नी क्रीम छींटेंगे, दूसते संसदी ठहाके काले कानूनों की चटनी बना, लेंगे स्वाद बदलू चटखारे ! शहंशाह के सामने डकारते फर्शी सलाम बजायेंगे अफारे। तुम पर देशद्रोह के धब्बे लगा बीग देंगे सड़क किनारे प्लास्टिकी पानी रंग के परजीवी कमजोर चाकू! छुपो गुरूद्वारे। सान पकड़ ट्रैक्टर कर्मी ! भारत माता धरतीपुत्रों को ललकारे।
हर आंदोलन को दरकार कुछ सिखों की : डॉ. जसबीर चावला
हर आंदोलन को दरकार कुछ सिखों की कुछ भगत सिंघों की। बैरीयर तोड़ें चाहे सूली चढ़ जायें गोली खायें, पहले पन्ने खून से नाम लिख जाये। तब पीछे से दुनिया धड़धड़ाती घुसे काबू कर ले दुश्मन की गर्दन कानून काले रद्द करवाये, झंडा झुलाये, विजयी विश्व तिरंगा फहराये। इतिहास बन जाये, बाद में भी बारंबार लिखा जाये! पहला पन्ना धुंधला पड़ता फट -फुट जाये, ठीक से नाम पढ़ा न जाये! भीड़ का मदारी सत्ता हथियाये। खानदान रबड़ी मलाई खाये।
सूरजमुखी उगानेवालो सूरज को : डॉ. जसबीर चावला
सूरजमुखी उगानेवालो सूरज को मुंह क्यों नहीं करते? सूरजमुखी उगाते हो तो सूरज का धन क्यों नहीं भरते? शक्ति पुंज है सरलतुंड है,महाकाय विघनन का हर्ता उसकी किरणों की ऊर्जा से चले पंप जो क्यों नहीं लेते? सौर ऊर्जा भरपूर हमारी मिट्टी को बल देती ही है उसकी बिजली से जर्सी को ठंढे घर में क्यों नहीं रखते? पढ़ लिखकर गुणवान बनें तो हलधर-पूत विदेश न जायें भारत भूमि को सूरज की भक्ति का गढ़ क्यों नहीं रचते? सूरज की हो घर-घर पूजा जल-शुद्धि का यंत्र लगाकर सूर्यमुखी -सा दमके चेहरा,सूरज को मुंह क्यों नहीं करते?
मंथरा ने चाणक्य से कुछ कह दिया है : डॉ. जसबीर चावला
मंथरा ने चाणक्य से कुछ कह दिया है राम का बनवास जाना रुक गया है। भरत ही कब लौटेगा ननिहाल से डबल इंजिन हादसे में फुक गया है। लग गये हलधर के फिर से काले दिन सूरजमुखी फसल को घुन लग गया है। पाप के हमाम में राजा घुसे, योगी घुसे दूध का कोई धुला क्यों घुस गया है? अब उसे पहचान कर बाहर करो चुनाव के दंगल का बिगुल फुंक गया है।
सिर्फ़ ज़ुल्फें ही नहीं बेचैनी का सबब : डॉ. जसबीर चावला
सिर्फ़ ज़ुल्फें ही नहीं बेचैनी का सबब शोख अदाओं ने भी कहर ढाया है। कहां मालूम था इतनी शातिर है वफा हुस्न औ' इश्क का हर पेचो-खम माया है। जाहिर है, मक़तल ही मेरा अरमां है क़ातिल क़ातिल, शोर क्यूं मचाया है। जगह-जगह फिर धरने पर बैठें हलधर हकों के वास्ते लड़ना ही अब सरमाया है। मुल्क लुट रहा है पूंजी के दरिंदी हाथों जसबीर उनसे बचाने की सोच लाया है।
हलधर जगह ढूंढ़ते हैं : डॉ. जसबीर चावला
हलधर जगह ढूंढ़ते हैं, वजह हर जगह होती है मां दूध भी तभी देती जब संतान रोती है। एमेसपी गर जो तय है,उतनी चुकाते क्यों नहीं? किसान की फसल लूटने की चाहत क्यों होती है? अगर लागत से थोड़ा ज्यादा भी दिप जाए तो क्या ? किसान खरचता है तभी मंडी में रौनक होती है ! सब कुछ तो हलधर उगाई फसल से ही जन्मता है वरना बढ़ती पूंजी हर मौसम बच्चे दे रही होती है? तुम यह देखो कि हलधर सिर धरने सड़क पर नआये चुनाव से बदलती पर लूटने की सरकारी आदत होती है।
आहत मन टटोला गया है : डॉ. जसबीर चावला
आहत मन टटोला गया है। वही झूठ बार-बार बोला गया है। नस्लकुशी पहले भी होती रही है इस बार कुशीनगर खोला गया है। हर गबरू सिख को चिट्टा चटाओ भारत की ताकत को तोला गया है। हलधर ही मरते बाडर हो कोई दंगल को इस दफे रोला गया है। टोल प्लाजों की भारी नंगी कमाई उधर से ही नेता का डोला गया है।
इससे अच्छा कुंओं में गिर जाते : डॉ. जसबीर चावला
इससे अच्छा कुंओं में गिर जाते पटाखा फैक्ट्री की आग में जल जाते दीवारों से दब जाते, टैंकर में गल जाते प्रधानमंत्री की संवेदना तो पाते! अनुग्रह राशि मिलती पीछे संतप्तों को प्रधानमंत्री राहत कोष से नहीं तो आपदा कोष से। तुम झल्ले बाडरों पर धक्के खाते, दम तोड़ते! अरे, कानून कभी गोरे काले होते? कोई परचून में बिकते? चाहे जब खरीदें, लौटा लें? मौके -बेमौके बनते हैं कानून सारे सांसदों की रज़ामंदी से कोई सत्थ,खाप, चौपाल नहीं संसद है। करोड़ों की तनख्वाहें, सुविधाएं भोगते बहुपेंशन पाते मजूरे हैं, सेवक चौकीदार ! कितनी-कितनी, कैसी-कैसी मेहनत लागत, दांव -पेंच, साम-दाम रचते तब जगह पाते हैं! उनकी कोई कीमत नहीं? उनकी बहसों-सुझावों का कोई मोल नहीं? तुम जट्ट -अनपढ़ जो बोल दो, सही? कैसे मान जायें कि कानून काले हैं? हम अन्नदाता का सम्मान करते, कैसे नस्लों-फसलों को डकार जाने वाले हैं? सिद्ध करो! हम विंदुवार बात करने वाले हैं, जो कहो बदल देंगे किसान के खाते में सीधी रकम देंगे एम एस पी थी, आज भी है, आगे भी रहेगी, यह एक पार्टी है तुम देखो, तुमको क्यों नहीं मिलती! कैसे हलधर हो ट्रैक्टर की बात नहीं जानते? सिंगल और डबल का फर्क नहीं पहचानते? सरकारें हैं, आगे -पीछे सीध में तो दोनों छोर से खायेंगे अलग अलग होंगे तो अमलाफाला आगे -पीछे हो जायेंगे।
उसने इंसानियत के दांव सीखें हैं : डॉ. जसबीर चावला
उसने इंसानियत के दांव सीखें हैं अब शराफत के वार करता है। कुछ भी कहता नहीं है चारागर मीठी दवाओं से घाव करता है। तीर तलवार का तो जिक्र नहीं हर घड़ी मन की बात करता है। उसकी हमदर्दी को तरस जाओ इस तरह खंजर पर धार करता है। उसकी तारीफ में सजदे फर्शी मुगलिया सलीके दीदार करता है।
उसने एक की, तुमने दो : डॉ. जसबीर चावला
उसने एक की, तुमने दो बदले के लिए। गलतियों इज़ाफ़ा हुआ बोझ बढ़ गया समाज के सर। यही जब भांडा फूटेगा हर बंदा बाप -बाप चिल्लायेगा। तो क्या करना था? पकड़-धकड़ करते तुरंत गलती करने वाले की, दंड देते चाहे शर्म अहसास करवाते उसे भूल का। माफ़ी मांगता, दुबारा न करने की कसम खाता । धीरे-धीरे गुस्से की आग बुझने लगती क्षय होती गलती बढ़कर तीन नहीं होती। हलधर भाई! समझाओ इनको! पहली पार्टी ने जो गलती की पहली सरकार ने जो गलती की नयी सरकार बदलाखोरी में भारी न करें पंजाब तबाह हो जायेगा! पहले लूटे, कर्ज ले-ले घी पीये खुद जनता को शराब फैक्ट्री का गंद पिलाते रहे। तंग आकर जनता ने तुम्हें चुना तुम उनको चिढ़ा-चिढ़ा वही करो, दुहराओ वही कुछ तो जनता फिर उन्हें ही ले आए क्या? या पिटाई करे सड़कों पर आ?
पंद्रह रुपए वाले मेडलों की माला : डॉ. जसबीर चावला
पंद्रह रुपए वाले मेडलों की माला अध्यक्ष गले में डाला कुश्ती करने चल दिया झाला अदालत दो हजारी नोटों पटा डाला। कोई है जो रोक पाये शराबी हाथी मतवाला? कुचल देगा सब हलधर! किसान -मजूर-जवान-पहलवान खैर मनाओ राणा के हाथ नहीं अभी भाला! लोकतंत्र -प्रजातंत्र गोट्टा नयी संसद में घुसा डाला! उठो कांवड़िओ! क़र्ज़ उतारो भोले बाबा का । भांग पिलाओ! होली से पहले ही पीसी शिलाजीत से पोतो इसका मुंह काला!
पेड़ों के आसरे गर्मी से लोहा ले लो : डॉ. जसबीर चावला
पेड़ों के आसरे गर्मी से लोहा ले लो गर्मी के आसरे लोहे से फौलाद ले लो! फौलाद के आसरे पुलों के ठेके ले लो ठेकों के आसरे बैंकों से अंधे कर्जे ले लो कर्जों के आसरे सत्ताओं के कंधे ले लो सत्ताओं के आसरे विदेशी मांगों के झोले ले लो झोलों के आसरे कुबेरों के पते खजाने ले लो खजानों के आसरे विज्ञापनों दुआयें ले लो दुआओं के आसरे अमीर-सूची में नंबर ले लो नंबरों के आसरे अंधे बैंकों से और भी ऋण ले लो हलधर-मजूरों की गाढ़े पसीने जुड़ी कमाई ले लो और भी वित्तीय संस्थाओं की जन- संपत्ति ले लो इस तरह राष्ट्र -भक्ति से सराबोर होते ही डकैत जी! फ़ौरन से पेश्तर भगोड़ ले लो!
जो पेड़ गिर जाते हैं : डॉ. जसबीर चावला
जो पेड़ गिर जाते हैं, उठ नहीं पाते भारी हैं तो और मुश्किल। एक तो अपने ही लोगों को कुचल डालते दूजा कोई पनप नहीं पाता उनके तले। एक भारी दरख़्त ने कहा था आखिरी खून की बूंद तक देश के काम आएगी उसके अपने बंदों ने ही गिरा दिया देश दुखी होता रहा कि बूंद परिवार के काम आ रही बंदे दुखी होने लगे औरों के सुख देखकर। आखीर उन्हें पता लग गया पेड़ों के जिस्म में खून नहीं होता, छाया होती है और प्राणवायु सबकी खातिर, भारी हो तो भी। गिरने के बाद पेड़ यदि यात्राएं करें हलधर उनके साथ हो लें, तो वे फिर छाया से भरने लगते हैं। गिरे दरख़्त फिर उठ लेते हैं माफी मांग आगे से कभी वे खेतों में पसीना बहाने वालों को छलेंगे नहीं।
धूप निकली तो लोग बाहर निकल आए हैं : डॉ. जसबीर चावला
धूप निकली तो लोग बाहर निकल आए हैं राह निकली तो लोग मंजिल की बतिआये हैं। आ रही सर्द हवाओं को मिलके झेलेंगे काली सत्ता से टकराने को कसमाये हैं। लोकतंत्र जिंदा है, हलधर की लाशों पे गिरा संविधान मरने न देंगे किसान शहीदाये हैं। सर्व सांझी गुरूवाणी मांगती सरबत्त दा भला इसका व्यापार क्यों? क्यूं चैनेल हथियाये हैं? अकाल का तख्त है, हुक्म अकाल पुरुख का दलगत राजनीति का क्यूं नगाड़ा बजवाये हैं? मानुष की जात सभै खालसो हित एक है रंग- वर्ण -प्रांत छांड़, जुल्म से टकराये हैं।
बरसाती डड्डुओ! बेशक एक पलड़े न चढ़ो : डॉ. जसबीर चावला
बरसाती डड्डुओ! बेशक एक पलड़े न चढ़ो पर एक स्वर तो बोलो! मोर्चा फतह करना है तो छातियां सत्तावन फुलाओ न फुलाओ दिल बड़े करो, दिमाग खोलो! हो सकता है फिसल गिरने का नाटक तोलने वाले दुश्मन को गुमराह कर दे, फिसले मेंढक को बादशाह कर दे! पर खबरदार! अगर यह सच्चाई है तुम सबकी तबाही है! पावस पर बस किसका? बस डड्डुओ ऋतु-भर मचलने -कूदने-टर्राने पर मनाही है। मात दे दो, मन की बात दे दो! तुल लो एक बार धीरज धर योग कर लो थोड़ी देर सब! सब हलधर से सीख लो! क ई बार नकली किसानों -से दो नंबरी डड्डू शामिल हो जायेंगे तुम्हारा रूप धर संयमी बर्गलायेंगे भरमाये उछल जायेंगे। कहीं होओ, इक बात याद रखना संघ में शक्ति है, जब मिलना संगच्छध्वं! फूट फेल करना सबका हित पास करना!
जो बोये हो सो काटो : डॉ. जसबीर चावला
जो बोये हो सो काटो जो थूके रहे सो चाटो पुंन्न तो करत नाहीं पापे पाप पाटो। ट्वीटो ट्वीट होओ नफो चाहे घाटो धंधा चुनावी है पोस्टर पोस्ट साटो। अफवाहें हैं फैलाओ नफरतें हैं उगाओ हलधर की बर्बादी चिट्टे चटाओ। चूस चूस मेहनत पूंजी बढ़वाओ इधर कॉलेज खाली उधर इमारत बनवाओ ।
जो वोट पे चोट करेगा : डॉ. जसबीर चावला
जो वोट पे चोट करेगा ऑफिस उसको नोट करेगा। मिलेगी उसीको संवेदना जो जीत का मोहरा बना। अपना वोट बैंक दिखलाओ सत्ता के वर भर कर पाओ। देश ने तुमको क्या दिया है तुमने देश को क्या दिया है। लोकतंत्र की जननी भारत विदेश जा कर क्यों शरारत। हलधर धैर्य धर धरने मर शहीद लिखा ले अपने सर।
किसका वज़न बढ़ता जा रहा है : डॉ. जसबीर चावला
किसका वज़न बढ़ता जा रहा है फांसी चढ़ने का दिन आ रहा है। अच्छे दिन बहुत देखे जमीं पर दिल आकाश पर मंडरा रहा है। पैर पड़ते नहीं, पक रही रेती रेत नंगे जिस्म पर बरसा रहा है। या खुदा लाज रखना इस लहू की पाक धरती सिख बाणी गा रहा है। जसबीर हलधर बेबसी की मौत मरते नीरो राष्ट्र धुन बंसी बजवा रहा है।
उल्टा रथ क्यूं चल पड़ा? : डॉ. जसबीर चावला
उल्टा रथ क्यूं चल पड़ा? उलटा रथ कौन खींच रहा? सुभद्रा -बलभद्र तैयार नहीं अभी पहले ही विपर्यय घटा रहा! वोटों की गिनती ने सवाल मिटा दिया क्या ग़लत ओर क्या सही फर्क ना रहा। झूठ के साथ संख्या है सच कहां रहा? सच के साइड जनता कम, झूठ फिर सही राजनीति है यही! घोटालों का पैसा, दूध काला सफेद दही! हर एक, दूसरे की धोती खींचे हमाम में नंगों की भरमार जगह न रही! बनवाओ नया हमाम हलधर! पर शुद्ध, खालिस स्थान पर सच और ईमान का जल ऊपर मेहनत का पहरा! नहायें सुच्चे खेतिहर मजदूर भ्रष्टाचार से दूर, हृदय करुणा परोपकार से भरे! जीयें मानवता खातिर विश्व -कल्याण के लिए मरें। लाओ सुशासन ऐसा हलधर! बार-बार पुकारता भारत।
खूब यह मालूम था फट जायेगा : डॉ. जसबीर चावला
खूब यह मालूम था फट जायेगा दूध बासी आंच न सह पायेगा। पाप करता चले शत-शत वाल्मीकि रामशरणं हाफ दे तर जायेगा। गर सियासत ही बनी हो अजामिल मरा रटता भी ग़र्क बह जायेगा। नाम से बनता नहीं है कोई चोर काम देखे जसबीर भी कह पायेगा। हलधर तुम्हारी बात पर हमको यकीं वक्ते -रुख्सत सब यहीं रह जायेगा।
तुमने ही महलों पहुंचाया : डॉ. जसबीर चावला
तुमने ही महलों पहुंचाया हलधर! उल्टा रथ भी खींचो! राम-बलराम नहीं कुछ सुनते साश्रु सुभद्रे! आंखें मींचो! हलधर, उलटा रथ भी खींचो! जन-जन तेरे साथ चला था जगन्नाथ सर मुकुट सजा था ताकत जनता ने दिखलाई तब वैभव का द्वार खुला था। आज अगर सत्ता का भूखा दुःशासन को संग मिलाये चीर हरण कर भारत मां का अपने मित्रों को चमकाये, सूख चुकी धरती की छाती फिर से अब हरियाली सींचो! हलधर! उल्टा रथ भी खींचो!
बला की खूबसूरत थी : डॉ. जसबीर चावला
बला की खूबसूरत थी जिसे काट डाला था ग़ज़ब के नखरे-अदायें, जिन्हें उबाला था। नफरत इतनी कि बला भी खौफ खाती हो मुहब्बत ऐसी घपला थी कि गड़बड़ झाला था। शर्मिंदा हैं सभी धरती पर रहने वाले राधाकृष्ण प्रेम में उत्सर्ग सदैव प्रभु का उजाला था। हलधर देखो, मिट भी माटी से निभाता है अन्न देता, कब किसी पर तेजाब डाला था। जसबीर ऐसी प्रेम-कहानियां तू रहने दे सुनते ही मन खराब, कैसा प्रेम पाला था
नख मांस का रिश्ता है : डॉ. जसबीर चावला
नख मांस का रिश्ता है जिसमें हलधर पिसता है। सत्ता हाथापाई है संसद भी गरमाई है। देश बेचता दाऊ है ग्राहक अपना ताऊ है। अपनी अपनी सबको है देश की चिंता किसको है? टेढ़ा है पर मेरा है मतलब ने सब घेरा है। बादल घेरे मौसम है बिजली गिरी का मातम है।
पप्पू को याद है जब दादी रोई थी : डॉ. जसबीर चावला
पप्पू को याद है जब दादी रोई थी पप्पू को याद है जब टॉफी खोई थी। राजनीति का नाटक है सत्ता हेतु त्राटक है! पप्पू पहचान रहा क्यों जनता बौखलाई है हलधर संग बीज-खाद छींटता करता मजूरों बीच झुक धान-रोपाई है केमिकल लोचा नहीं, लंगोटी धर बापू की त्याग सारे सुख, पूंजी से आजादी की पक्की लड़ाई है।
पानी खारा नहीं, कठोर है : डॉ. जसबीर चावला
पानी खारा नहीं, कठोर है भाई मोटा नहीं, चोर है। पूछो कुछ तो चुपा जाता बोले तो कहता और है। पूछो कुछ, कहता कुछ बोलूं तो बोले शोर है। सवाल मिले बोलती बंद,या जवाब का ओर न छोर है। नथचूड़ा मां को अर्पित गुस्सा जल पुरजोर है। हलधर की जां सांसत में है हर शाख का उल्लू मोर है।
शहर फिर शहर है, अपना बना लेता है : डॉ. जसबीर चावला
शहर फिर शहर है, अपना बना लेता है कीमती रख लेता, कूड़ा बहा देता है। नदी की नदी सोख लेता अपनी नज़रों में हर फ़िक्र धुंए -ठहाकों में उड़ा देता है। लोगो! सैलाब को दोस्त समझ कर निपटो लगाता चूना, जूझने का चाव जगा देता है। अब वो कीलें-बैरीकेड-नोकें -तारें न बचीं पीछे से हलधरों पर फॉर्चूनर चढ़ा देता है। आठ सौ मर गये थे बॉडरों पे, खुदा रो-रो फलक से, गम उनके भुला देता है।
समझ नहीं आता : डॉ. जसबीर चावला
समझ नहीं आता, कॉल का जवाब देने मैं असमर्थ क्यों है? लाइन पर भी बना रहा, थोड़े-थोड़े अनंतर पुनः प्रयास भी करता रहा, ऐसा क्या हुआ है? किस हथिनीकुंड से पानी छोड़ दिया है? अहंकार -स्तर खतरे के निशान से ऊपर पहुंच चुका है। चुप्पी साध ली है और विदेशी यात्राओं की तैयारी में जुट गए हैं। क्या ऐसा कोई मुल्क है जहां धन-शोधन पर ईनाम है? देश लूटने की होड़ में जो बाजी मारेगा वही विश्वोत्तम की उपाधि पायेगा! हलधर बेचारा सबसे पीछे रह जायेगा।
बात ही तलवार, बात ही ढाल है : डॉ. जसबीर चावला
बात ही तलवार, बात ही ढाल है बात से ही हल जो सूरत-ए-हाल है। बाता-बाती ट्वीट से या चांटे से शांति हो, बस बातों का बवाल है। मन हैं आहत बातों के अहंकार से बात बदलें, इज़्ज़त का सवाल है। द्रौपदी की बात से दुर्योधन दुःखी कुरूक्षेत्रे ज़िंदगी बदहाल है। हलधरों की आफतों बातों की जंग चित या पट सियासतों की चाल है।
हवा परिधि से दबती है : डॉ. जसबीर चावला
हवा परिधि से दबती है तो केंद्र को भागती है वहां फूटो न हो तो ढक्कन उछाल फेंकती है। छत अगर बचानी है तो पाये मजबूत करो सीमाओं पर सेनाओं को खंभे न बनने दो वहां हलचल रहे, दुश्मन की हरकत मशगूल रहे उसे पामीर की छत की खबर न रहे। तुम फ्रांस जाओ या अमरीका, वांधो नथी हलधर सिंघू न जाये, वाही मुस्तैद रहे। बाढ़ है, भू-स्खलन है पहाड़ों की अंधाधुंध कटाई की देन है, डबल इंजिन, विश्वास आधा है विकास सबका नहीं, कुछ का है, विनाश सबका है!
सबको अपने-अपने कपड़ों की पहचान है : डॉ. जसबीर चावला
सबको अपने-अपने कपड़ों की पहचान है अपने लें, दूजों के नहीं, यही नागरिक संहिता समान है। आदमी वहां जरूर पहुंचे जहां रखा अपना वस्त्र दिख नहीं रहा का मतलब 'नहीं है' नहीं है, खोजो, अगर कहीं और नहीं तो वहीं है पहुंच, पाओगे कि कुछ आड़े था वस्त्र नहीं था। दूरी चाहे जैसी रही हो: पद की, सत्ता की मरता हलधर दिख नहीं रहा था, वस्त्र वहीं था। खेतों में ही था जब आसमानी बिजली गिरी थी वहां पहुंचो, वस्त्र वहीं है!
सरकारें नशा खत्म करने का वादा करती हैं : डॉ. जसबीर चावला
सरकारें नशा खत्म करने का वादा करती हैं जल्दी खुद नशे में हो, आधा-आधा करती हैं। जिसकी मदद छुड़ाना है, उसी सरसों में भूत है ओझा नकली जिसके सिर, जिम्मे लादा करती हैं। लूट-खसोटते अगली चोणां सिर आ खड़ती हैं नशे ख़त्म हैं, कहां बचे हैं? दावा करती हैं। हलधर चाट-चाट कर चिट्टा, प्यासे मर जाते हैं आठ-आठ आंसू वाले, बयान कादा करती हैं । पंजाब को खालिस्तान बता सिख मारे जाते हैं योजना बद्ध तरीकों से गणना आधा करती हैं।
दो शब्दों में क्या : डॉ. जसबीर चावला
दो शब्दों में क्या, दो सौ अंकों में भी बयां नहीं हो सकती प्रेम कहानी जो हलधर ने माटी संग पाली है, किये जाओ मन की बातें! उससे प्रकृति -कोप शांत नहीं होते। जसबीर तो बार-बार चेताता रहा जातक सुना-सुना भरू राष्ट्र ग़र्क तबाह हुआ जब राजा भ्रष्टाचारी हुआ। जगह-जगह जहां कुलपति -कुलाधिराज विराजे उनके बीच सुनाता रहा गोदी फलों की अट्ठकथा, मन की एक बात नहीं, सब जो लिखीं सुशासन की। किसानों ने मान लीं, चाहे भुगत आसमानी बिजली पर इस मरजाणी सियासत का क्या करें? जो लाशों पर भी नहीं थमती!
पूछिए मत हाल जो अपना हुआ है : डॉ. जसबीर चावला
पूछिए मत हाल जो अपना हुआ है आसमानों बिजली -पानी की दुआ है। हमको जिनसे वफ़ा की थी उम्मीद वही पूछे हैं इसका मानी क्या है। वही नाम अगर हर डगर पर रहना है खलक में फिर भला फ़ानी क्या है। कुछ तो होता है बंदगी का सिला वरना जीस्त- ए -निशानी क्या है? जीतके सांसद ताजपोश हुआ हलधर की चाकदामनी क्या है?
देश एक पार्टी बन गया है : डॉ. जसबीर चावला
देश एक पार्टी बन गया है राष्ट्र एक दल बन गया है। समाज गुटों में बंट गया है विकास माडल बन गया है। गरीब सवालात किससे करें प्रजातंत्र पूंजी -बदल बन गया है । मतदाता इक कौड़ी का नहीं मशीनी बटन छल बन गया है । कांख में बाली की हलधर दबा है रावण का सुग्रीव संबल बन गया है।
कल देर रात तक जगते रहे थे : डॉ. जसबीर चावला
कल देर रात तक जगते रहे थे दिन भर बरसात में भगते रहे थे। पानी चोर नहीं, गैंगस्टर पूरा छलनी देह तक दगते रहे थे। ताकि इंद्र देवता का दिल पसीजे हाथ जोड़ वाहेगुरु जपते रहे थे। रसोईघर भरा नाली का नाला बाल-बच्चे राहे-हरि तकते रहे थे। हलधरों ने जब स्थिति को संभाला गुरुद्वारों लंगर हरि पकते रहे थे ।
कहां -कहां से हवा आती है : डॉ. जसबीर चावला
कहां -कहां से हवा आती है देश-दरवेशों को हिलाती है। बूहे-दरवाजों को पटकती है घंटियों देवते जगाती है। द्रौपदी धृतराष्ट्र को नहीं दिखती भीड़ नंगी कूकी क्या छिपाती है? बोले, भारत की संसद बोले सर्वोच्च न्यायालय को शर्माती है। हलधर जमीन बेचो! पूंजी को भगो कनेडा, मौत ही बुलाती है। सियासत स्वार्थ पर झगड़ती है आम जनता को जब डराती है।
अंबानी -अडाणी से हटाओ : डॉ. जसबीर चावला
अंबानी -अडाणी से हटाओ, ध्यान हैदर पर लाओ! नफरत है तो अपने हाथों तबाह करो दूसरों को बर्बाद करने किराये पर लगाओ! बानो के बलात्कारी बाहर हैं, सामने लाओ सीमा पाकिस्तान से आई मुस्लिम युवती है हिम्मत है तो शिलाजीत आजमाओ! पंडित पहलवान की सलाह ले लो बाद में मैतेयी समुदाय पास मणिपुर ले जाओ। चार बच्चे हैं, दीवारों में चिण दो बदले की आग थोड़ी तो बुझाओ राजे हो,फूट डालो, बर्गलाओ! इस प्रकार कारपोरेट की आय सौगुनी, हलधर की दोगुनी करते जाओ!
सपनों का मर जाना उतना खतरनाक नहीं : डॉ. जसबीर चावला
सपनों का मर जाना उतना खतरनाक नहीं, जितना संवेदनाओं का मर जाना है। संवेदनाओं का मर जाना उतना खतरनाक नहीं, जितना संवेदनाओं का शून्य हो जाना है। आदमी न रो पाता है, न बोल पाता है पाषाण बन जाता है! मजूरे उसे उठाते हैं फ्रांस -अमरीका ले जाते हैं। पूंजीशाह वहां उसकी कीमत लगाते हैं, कहीं उसे फिट करने की जुगत बिठाते हैं। जब पाते हैं कि अरे! यह तो संवेदना -शून्य है, फालतू है! फेंको इसे! तो मजूरे वापस ले आते हैं, हलधर के खेतों में पटक जाते हैं।
तुम्हारे यह कहने से नहीं चलेगा भगवन्! : डॉ. जसबीर चावला
तुम्हारे यह कहने से नहीं चलेगा भगवन्! कि मैं यहां नहीं था, फ्रांस -अमरीका -दुबयी में था, कि मैंने देखा नहीं, सॉरी क्या - क्या कर रहे थे कूकी-मैतेई मणिपुर में! पहले एक बार ऐसा कहके चला लिया तुमने जब सिख गले टायर डाल फूंके गये। जिस तरह तबाह किया भारतवर्ष ने उन्हें बेअंत अकेला सवा लाख सिखों की बर्बादी का सबब बना जबरदस्ती खालिस्तानी सेहरा मत्थे मढ़ की नस्लकुशी सब देखी फटी आंखों सियासत तूने, तैंकी दर्द न आया, चूंकि सरकार कांगरसी! अब यह कहने से नहीं चलेगा। कूकिस्तान नहीं मांग रहा कोई डबल इंजिन फिट किये स्वयं बोलते अब शर्म आयेगी कि आई वाज़ एब्राड बच्चा-बच्चा कहेगा बंद करो मन की बकवास! हलधर बेचारा वाहेगुरु वाहेगुरु उचरे लंगर लगाये, करे सरबत्त दे भले दी अरदास!
तुम्हें तक-तक दिल नहीं भरता : डॉ. जसबीर चावला
तुम्हें तक-तक दिल नहीं भरता दर्दे हाल से दिल भर आता है। महज़ जाति से ही नफरत है जिस्म पर दिल फिदा हो जाता है। मर्दों की भीड़ मज़े लेती है कूकी मैतेयी क्रोध उपजाता है। किसी भी औरत को नंगा कर दो मर्द खुद की आबरू मिटाता है। हलधर धरती की मांग भरता है मां को हर शख्स नज़र आता है।
बोलने के लिए अब बचा ही क्या है? : डॉ. जसबीर चावला
बोलने के लिए अब बचा ही क्या है? सब तो दो मिनट की वीडियो ने बोल दिया है क्या यही मेरे मन की बात थी? यही किया चुरासी में सिखों के साथ, फिर गुजरात में मुसलमानों के साथ, अब यही ईसाईयों के साथ, दलित -वंचित तो अपने हैं, अलग कहां हैं? बपौती हैं उनके साथ तो कभी भी, जब मर्ज़ी शताब्दियों से रगड़ते रहे हैं, क्या बोलेंगे? न उनकी चिंता में मानवाधिकारों का खून जलाओ! संविधान लिखा ही नहीं गया साफ-साफ, अपने -अपने ढंग से मतलब निकाल लें! अंग्रेज़ी मूल रूप से है ही दोगली स्पष्टता के मामले में आधी-अधूरी कुत्सा के मामले में भरी-पूरी, कुटिल थे गोरे नौकरशाह। अब ऊपर से चाणक्यबाज काले पूंजीशाह। राजनीति कुल्टा हो गई, मुसीबत तो हलधर को हो गई। खेत बाढ़ में फंसे, खेती कर्ज़ में आत्महत्या की परिस्थिति पैदा हो गई!
भगोड़े नहीं, रणछोड़ हैं : डॉ. जसबीर चावला
भगोड़े नहीं, रणछोड़ हैं राजनीति के मोड़ हैं। आगे-आगे क्या होगा प्रजातंत्र के कोढ़ हैं। भ्रष्टाचार मलाई है हड़पन को गठजोड़ हैं। मामेकं शरणं व्रज गद्दी तर कई तोड़ हैं। हलधर जाये भांड़ में राजपाल कठफोड़ हैं। अमृत काल की चुप्पी है शंख फुंके बेजोड़ हैं। चलता भारी-नाटक है भागे नहीं, रणछोड़ हैं।
राज्य और केंद्र लड़ रहे हैं : डॉ. जसबीर चावला
राज्य और केंद्र लड़ रहे हैं अदालत में जनता के पैसे झड़ रहे हैं! रोम जल रहा, नीरो बंशी पर बहस करवा रहा, खुद बयान तक नहीं दे पा रहा! चाय पर चर्चा से दिल भर चुका हर आकाशवाणी केंद्र पर फोटो वाला विज्ञापन चिपक चुका मन की बात का अगला अंक जल्द ही आ रहा! नंगी परेड पर क्या कहें? डबल इंजिन वंदे भारत उलटा रहा। हर बात के लिए केंद्र जवाबदेह नहीं। औरतें खुद ही नंगी कैट-वाक करती हैं सिक्ता-तटों पर नंगी लेट रहती हैं, हर राज्य छेड़खानियां होती हैं! वेद-संस्कृति आज्ञा नहीं देती, देवियां हमारे यहां पूजी जाती हैं, ब्रह्म -मुख से उपजे देवता गण रमण करते हैं। हलधर धरने देते जल-जल मरते हैं!
पंजाब को मिलकर लूटो!: डॉ. जसबीर चावला
पंजाब को मिलकर लूटो! विधायको नौकरशाहो! पहले से चला आ रहा सिलसिला, तुम क्यों शराफत में आगे निकलना चाहो? देश की सीमा पर हो पंजाब! सारी आपदाओं से जूझते, बेमतलब के विवादों में फंसते जवान हलधर झूठ-मूठ पिसते। दुश्मन देश के प्रलोभनों में अधिकारी फंसते सियासती एक तीर से दो निशाने कसते। पंजाब के सिखों को खालिस्तानी बता अपना बूथ मजबूत करते। केंद्र से राहत की गुहार लगाओ! भिक्षाम् देहि नहीं, संवैधानिक प्रक्रिया है अपनी पुरानी हठधर्मिता से निजात पाओ! दूसरी पार्टी के पिछलग्गू अफसर उकसायेंगे पंजाब का हित जिसमें हो, उस रास्ते जाओ!
बाढ़ में पंजाब के काफी जिले हैं : डॉ. जसबीर चावला
बाढ़ में पंजाब के काफी जिले हैं उस पार से इस पार दरिया आन मिले हैं। नकली शराब पिलाके जवान खत्म ना हुए गुजरात के चिट्टा व्यापारी आन पिले हैं। पंजाब मिट गया तो भारत गुलाम है सिखों की नस्लकुशी पर क्यों होंठ सिले हैं। हलधर निजात पाओ ठगी की दुकान से प्लास्टिक के फूल हैं दिखावे में खिले हैं। सजा काट चुके, अभी भी बंदी हैं कानून की धाराओं में विष ऐसे मिले हैं।
वह कहां है जो तुम्हारे साथ था : डॉ. जसबीर चावला
वह कहां है जो तुम्हारे साथ था खोके दिल जिसको मीलों उदास था। वह कहां है जो तुम्हारे पास था खोके जिसको दिल सदियों उदास था। फुटबॉल ड्रेस एक घंटों रुलाती रही मैती कूकी हिंसा का कैसा लिबास था? फुटबॉल खेलते थे दोनों जवान संग मणिपुर में उस दिन कोई मैच खास था? हलधर तुम्हीं समझाओ इन्हें प्रेम से बिठा शांति थी जहां, वहीं लक्ष्मी निवास था।
एक सौ बयालीस करोड़ जनता की नंगी परेड : डॉ. जसबीर चावला
एक सौ बयालीस करोड़ जनता की नंगी परेड चल रही मानसून सत्र में इस बार! जंतर-मंतर पर चल रहा नंगी कूकी की वायरल वीडियो का दरबार! कम दबाव का विक्षोभ उपजा है संसद की खाड़ी में गुजरात के तटवर्ती इलाकों से होता चक्रवात सीमा हैदर सचिन पर तेज बरसेगा अंजू हिंदू लड़की, मुस्लिम लाहौरी ध्यान भटकाता मीडिया कहानियां परोस कमजोर कर देगा। नशा ईश्क का छा रहा है! तस्करी में डालरी आय के नमूने देखता मणिपुरी हलधर अफीम उपजा रहा है।
निजी महीन संवेदनाओं को मर जाने दो : डॉ. जसबीर चावला
निजी महीन संवेदनाओं को मर जाने दो इंसानियत न मर जाये, बचा लो यारो! नफरत -मुहब्बत दुकानों में नहीं बिका करती रब दा वास्ता जे, धंधों से निकालो यारो! एकाध बार चलो आपस में गाली दे ली बात -बात में फक्कड़ न निकालो यारो! दिल दुखाते हो तो राम जी में दुखता है हर प्राणी में राम बसता, भूल न जाओ यारो! माना किन्हीं निगाहों में तुम हो काफिर पागल वहशी नहीं हो, सबूत दे डालो यारो! बदले की आग में रहे, ले अपना घर जला निजी अंधभक्ति का, तमाशा न बना लो यारो! सारी दुनिया आज पिस रही पूंजी की चक्की में कुछ सीख लो हलधर से, हक की खा लो यारो!
भरोसा रखना है तो सच्चाई पर रख : डॉ. जसबीर चावला
भरोसा रखना है तो सच्चाई पर रख स्वाद चखना है तो शहादत का चख। सवाल किसी गांधी या गोडसे का नहीं लंबी ज़ुबान रखता है, तमीज़ भी रख। क्या जवाब देगा मुल्क के अवाम को? लहराते हैं तिरंगा लाशों का ढेर रख! राष्ट्र -प्रेम, देश-भक्ति सब बस है भाषणी? छाती-फाड़ सबूत देने की हिम्मत रख। जश्न आज़ादी का हो और हलधर बाढ़ग्रस्त! हिंसा को रोकना हो तो गांधी का जिगरा रख!
तुमने प्रजातंत्र का गला घोंट दिया था : डॉ. जसबीर चावला
तुमने प्रजातंत्र का गला घोंट दिया था हमने उसकी बाकायदा हत्या कर साड़-फूंक दिया है। तुम क्या कॉफी हाऊस बुल्डोज किये रहे हम समेत टी खोलियां स्वाह किया हूं! तुम क्या सिखों का कत्लेआम कर दंगे कहे, हम पंगे को दंगे कर कत्लेआम किये। तुम छे दिन छुट्टा छोड़े पुलिसी गुंडेई हम छत्तीस दिन हथियार लुटवाये। तुम क्या करोगे नृशंसता मजलूमों पर हम कारगिल वीरों को नंगी नृशंसता परेड दिखाये। तुम क्या खा के बरोबरी करोगे हमारी? मंथन किये तब समुद्र का विष बंटवाये हम चिंतन किये, महासागर का विष-गागर बनवाये! हलधर को इससे क्या लेना-देना अन्न उपजाये दुगुना मर जाये!
ओ रे मणिपुर के हलधरों! : डॉ. जसबीर चावला
ओ रे मणिपुर के हलधरों! मेरी माटी मेरा देश करते मिट्टी ज़रा साफ जगह से उठाना! कूकी-मैतेई रक्त न हो मिला हुआ बलात्कृत औरतों का स्राव न हो मिला हुआ न जले बूढ़े -बूढ़ियों की चमड़ी हो न राख छतों की मलबी हो, देखना कि उस मिट्टी में बारूदी कण न हों न उनमें छर्रों-कारतूसों की धातु हो। देखना उस मिट्टी बमों की बुहरन न हो मासूम बच्चों की जिस्मानी कतरन न हो, उसमें किसी भ्रष्ट घर की धूल न हो किसी पूजा स्थल का झुलसाया फूल न हो! हलधरों को वासिंदो कर दें, देखना, माटी प्रेम -भरी ममता की हो। अपना देश भारत को कहना, बर्मा-चीन का नाम न लेना, नागाओं का साथ न देना, मन की बात अंदर ही रखना। बारंबार संसद -चर्चा में आते महाभारत के दृश्य शब्दबाण चल रहे निरंतर,मणिपुर - द्रौपदी -चीर अदृश्य! हलधर शांति -दूत बन आओ! घाटी-पहाड़ी कलह मिटाओ! भारत एक, श्रेष्ठ हो भारत नाग-यज्ञ का भय भगाओ!
दोनों एक-दूसरे को अहंकारी : डॉ. जसबीर चावला
दोनों एक-दूसरे को अहंकारी, खुद को सदाचारी कहते हैं सत्र पे सत्र बर्बादी को संसदीय लाचारी कहते हैं। मुद्दा मणिपुर के तीन महीने से धू-धू जलते रहने का महाभारती पात्रों में हल ढूंढ़ने को समझदारी कहते हैं ? बात बेसिर -पैर की करके हलधर को न उलझाओ चौबीसों घंटे अपने मुंह मियां मिट्ठू को बीमारी कहते हैं! मुल्क के नाम को लेकर खेलो तरह -तरह नाटक ग़ुलाम फिर करो, बेच दो भारत, इसे ही वफादारी कहते हैं ! जनता का हो रहा नित मंहगा -मंहगा मनोरंजन गंदगी द्वारा गंदगी दूर करने को महामारी कहते हैं।
एक अकेली सोने की चिड़िया नहीं भारत : डॉ. जसबीर चावला
एक अकेली सोने की चिड़िया नहीं भारत इसकी डाल -डाल पर सोने की चिड़ियां करती हैं बसेरा, सत्य, अहिंसा और धरम का यहां पग-पग लगता डेरा ऐसा देश भारत है मेरा। हलधर! मणिपुरी डाल को जलने न दो! इसके नृत्य में हमारी संस्कृति के तत्व हैं। बहेलिये अंदर के चाहे बाहर के, सोने की चिड़िया और डाल हमारी फिर काहे की लाचारी? बींध दो बहेलिये। न रचें ब्योंतें दंगी लूट हथियार ओ' असला जंगी न करें औरतें नंगी कुकृत्य हिंसा-रंगी। पहाड़ हो या घाटी देश की माटी स्वर्गादपि गरीयसी! कहें यही मैतेयी कहें कूकी भी यही। लगाओ लंगर खालसाई मानस की जात सभै एके पहिचानबो खोलो गुरूद्वारे, प्रेम से इनकी नफरत कर दो सही!
हलधर हर तरह की नाइंसाफी के खिलाफ : डॉ. जसबीर चावला
हलधर हर तरह की नाइंसाफी के खिलाफ आगे बढ़ जुल्म से टकराता है इसलिए हर तरफ से बदनाम हो जाता है। खालसा के लिए मानुष की एक जाति न कोई बैरी ना ही बेगाना । सगल संग क्या, एक संग नहीं बन पाई यह दुनिया है भाई। साम-दाम की राजनीति तुम दंड भोगने वाले! तसद्दुद सह हलधर बाडर पर शहीद हो जाता है आंकड़े जांच लें, आठ सौ में कितने गैर-सिख थे? देश की आज़ादी में देख ले कितने सिख फांसी चढ़े? कितने काला पानी सड़े? देख ले हलधर, घबराने की बात नहीं दशम पिता का वर है तुझे खालसा मेरो रूप है खास! तू जहां हो सके मजलूमों की रक्षा कर हो जा खलास! मुसलमान भी हो भूखा प्यासा रोगी पिसने वाला, औरंगजेब ने किया होगा कत्लेआम सिखों का, ठीक है पर इस मज़लूम की क्या ग़लती?हलधर !सिक्खी संभाल! सच को बल दे!
सारे दोष अपने सर ले लेगा : डॉ. जसबीर चावला
सारे दोष अपने सर ले लेगा सबको पाक साफ बोलेगा सर्व जन हिताय सर्वजन सुखाय भारत भ्रष्टाचार मुक्त हो लेगा। देश का गोट्टा भ्रष्टाचार -कूड़ा एक जगह अपने यहां बड़ा साइलो में धर लेगा, अडाणी से बनवा लेगा, नहीं तो चीन से जो पटेल प्रतिमा बनाये रहे, सीमा से थोड़ा घिसुकेंगे भी चीनी ऑडर पाकर। हलधर, तुम भी अपना अनाज उसीके साइलो में जमा करो! वहां से आसानी होगी दुनिया की सूचियों में नाम ऊपर करने में, आय कई दुगुनी होती है! तुम्हारा नाम कंगाली की फेहरिस्त में टॉप पर आ जाएगा । जमीन रख, अब भी तुम बेच ही रहे हो, कनाडा का सपरिवार फ्री टिकट देंगे! बड़े आराम से बेटे-बेटियों संग तू भंगी लग जायेगा कम से कम यहां जैसा खालिस्तानी तो ना कहायेगा!
कैसे कहते हो संवेदना हीन है : डॉ. जसबीर चावला
कैसे कहते हो संवेदना हीन है मणिपुर हिंसा पर कुछ नहीं बोला औरतों की नंगी परेड पर मौन रहा! माथे मोरपंख बांधे,नाचते फोटो खिंचाया था कि नहीं? तो क्या मांडवी पुल पर गुजराती मरे डेढ़ सौ,तब चुप नहीं था? ऐसे छोटे-मोटे ठेकों में होती रहती हैं वारदातें। सिंघू बॉडर पर जो सिख हलधर मरे साढ़े सात सौ तो कुछ बोला था? धरनों -वरनों में खालिस्तानी मरें बेबारूद और क्या चाहिए? छोटे-मोटे आंदोलनों में मरते ही हैं आंदोलन जीवी। सरदार की पगड़ी में भांगड़ा पाते फोटो खिंचवाया था कि नहीं? दुःख में आवाज़ नहीं निकलती किसी की तो क्या बोले? विपक्ष को तो बस पक्ष मिले छीछालेदर को। लाल किले की प्राचीर पर प्यारे देश वासियों को प्रिय परिवार जनों बोला? १४०करोड़ को अपना परिवार बताया कि नहीं? अभी भी खुश नहीं हो तो खुशी तुम्हारे भाग में नहीं है अरे, पूरी वसुधा को जो कुटुम्ब समझता हो, एक शब्द है कोई? तुम तो अभी किस इंडिया की मूली हो? ठीक है, ठीक है मूली नहीं कहता हलधर! मामूली हो!
आज जब सत्ता में हो गिनवा रहे हो : डॉ. जसबीर चावला
आज जब सत्ता में हो गिनवा रहे हो ढाह रहे ज़ुल्मों में उनके साथ क्यूं थे? छाती क्यों नहीं छप्पनी गोलियों के खिलाफ? जंगे-आज़ादी में शहीदों के खिलाफ क्यूं थे? सर कफ़न में न सही, सच का साथ देते जालिमों की हां में हां की आवाज़ क्यूं थे? बनके रहबर राष्ट्र को खुद भी लूटा है लुटेरों को भगाने में तुम्हारे हाथ क्यूं थे? तुम अपनी सेंकते थे, वे अपनी रोटियां हलधरों की आत्महत्या वाले हालात क्यूं थे?
गांव के गांव बह गए : डॉ. जसबीर चावला
गांव के गांव बह गए मुआवजे धरे रह गए। बादल बरसते रहे पहाड़ फटे रह गये। पत्थर फिसलते रहे रास्ते कटे रह गये। डैम भरते रहे निशान डटे रह गये। हलधर धरने रहे खतरे खड़े रह गये।
संत कह जाते हैं कि मिलकर प्रेम से रहो : डॉ. जसबीर चावला
संत कह जाते हैं कि मिलकर प्रेम से रहो नानक थिर नहीं कोय दुनिया फानी है, अगली सांस का नहीं पता! नेता कहते हैं जो बाहर से आये हैं उन्होंने हक खोहे हैं समस्याओं की जड़ हैं,नॉन-प्रांतीय निकालो ! चिट्टा बेचते दो नंबरी करते सब पता है। मंत्री कहते हैं अपने -अपने इलाकों में रहो सबको अधिकार हैं, बस दंगे न हों संविधान में पांच साल का पता है। प्रधानमंत्री कहते हैं हजार साल का सोचो भांड़ में रहो, चाय से जुड़े हजारों-लाखों हैं! नामों में विकास होते रहना चाहिए तपस्या में कमी नहीं, चौबीस का पता है। हलधर कहते हैं इस मौसम का नहीं पता बरसात थम नहीं रही पहाड़ों पर डैम के फाटक खोले जा रहे नित दुनिया पानी है, मुआवजे सरकारी वादे हैं बस चुनावी लफ्फाजी है काले कानूनों का पता है।
मेघा बरस लो! यहीं बरस लो! : डॉ. जसबीर चावला
मेघा बरस लो! यहीं बरस लो! चंडीगढ़ में वैसे कहा नहीं था आकाशवाणी से, पर सुनो, ऊपर मत जाओ! मेरी मानो प्लीज़ यहीं बरस ले! पहले ही हिमाचल में एकजुट फटे, लगता है हालात नाज़ुक, मूसलाधार झड़े( वरे) गोविंद सागर, पोंग डैम सब भरे फाटक खोले तब जाके खतरे के निशान बचे! सतलुज -ब्यास-घग्घर सैंकड़ों पंजाबी चरे लाखों एकड़ झोणा बर्बाद धरे, गांव के गांव रुढ़ गये जिले के जिले बेनल जल झेले, ऐसा बरसे ऐसा बरसे पहाड़ों के पहाड़ सड़कों लुढ़के! पर डबल इंजिन अडाणी बाबू ठेके पे ठेका निगले, हाड़ तोड़ किसान अब भरपाई करे? दसों साल सियासी खेला चले तूं मर-तूं मर रौला-रप्पा हर चैनल फले! भारत माता भारत माता प्रति दल पेले हलधर! किस्मत पीट अपनी! आत्महत्या कबूल ले!
कौन बोलता नहीं बोलता है : डॉ. जसबीर चावला
कौन बोलता नहीं बोलता है प्रति माह मन की बोलता है। अवसर मिलते फीता कटवा लो पछी, देखो धड़ल्ले से बोलता है। कहीं भी हो चुनावी रैली विपक्ष को जा-ता बोलता है। इतिहास, भूगोल, कोई विज्ञान हो कोई बोलेगा चौथी पास बोलता है? सुनो न, किस भाषा में मांगता है? अंग्रेजी चीनी तक बोलता है। हलधर क्या जाने अदरक का स्वाद थां-थां कूद-कूद बोलता है। मणिपुर हिंसा में चुप्पी, चुप्पी संसद में जब जब बोलता है। शब्दों में कम नहीं बयानबाजी लोड़ जहां चुप्पी ही बोलता है। तपस्या में बची नहीं कोई कमी जग में हिंदुस्तां बोलता है।
हलधर को उन्होंने कभी गंभीरता से नहीं लिया : डॉ. जसबीर चावला
हलधर को उन्होंने कभी गंभीरता से नहीं लिया अरे कुछ आंदोलन जीवी जट्ट हैं, मिलेंगे, कह दिया। आप लोगों को लोकतंत्र का नाटक करना नहीं आता? कैसे मंत्री हैं चौपट,बोल नहीं सकते जो रटा दिया? नानी मरती है उजड्ड पग्गड़धारी सरदारों के सामने? विंदुवार वार्ता कीजिए, प्रेस से कहिए जो कह दिया। राजधानी उनके बाप की है? कैसे घुस जायेंगे? छलनी किये बारह, सवा लाख का बारह बजा दिया। उनके पुरखों से जमीन ली थी, तब चंडीगढ़ बसाया था जरा पूछना उस वक्त कैरों ने दान ली थी? भाव नहीं दिया?
डबल इंजिन सरकार का यह फायदा होता : डॉ. जसबीर चावला
डबल इंजिन सरकार का यह फायदा होता हिमाचल में फाटक खुलते पंजाब का मुआवजा पास होता। बांधों-डैमों के पानी पर किसी सरकार का क्या वश है? खतरे के निशानों का मूल्यांकन केंद्रीय संस्था से होता। मुख्यमंत्री जो मांगता केंद्र बाढ़ग्रस्तों को हंसकर देता हलधर इस कदर शांतिपूर्ण धरनों के लिए परेशान न होता। अब तुम्हारे चुने, तथाकथित आम लोग ही खिलाफ हैं उनके अपने भ्रष्टाचारियों की फौज में कोई दूधधुला होता! यह तो धंधा-पानी है, कहीं कुल्हड़ में कहीं कट चाय कहीं चालीस फीसदी, किधरे पचास पर काम होता।
राष्ट्र -सेवक हलधर : डॉ. जसबीर चावला
हलधर! तुम सेवक मात्र हो वे स्वयं सेवक। तुम अपने प्रांत की धरती के सेवक वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक, पूरे देश के हर कस्बे, हर जिले फैले। तुम्हारे मुहल्ले पड़ोस में भी, सावधान! तुम खेतों की राखी करते वे चौकीदारी राष्ट्र की। तुम बंटे कई जातों में, धर्मों में कई दलों में वे एक जात, एक वर्ण सत्तासीन सपुलिस, ससैन्य, सदल-बल, सशस्त्र, ससंघ काले कानून मान लो! नहीं, फुड़वाओ सर! कल जो तुमसे अनाज मांग भंडारा करते थे वही तोड़ेंगे, सीधा करेंगे, ढायेंगे कहर! घर-घर नौकरी दें न दें ढायेंगे जलियांवाला! पर तुम शांत रहना, अहिंसा में शक्ति है। जपुजी-रहरास पाठ करते रहना बेशक जाओ मर! हमें इस देश को गुलामी से बचाना है। पहले अंग्रेजों से छुड़ाया था अब काले अंग्रेज़ों से आज़ाद कराना है, पर ऐतिहातन, ट्रैक्टर का इंजन लॉक कर देना नहीं तो उसीसे कुचलेंगे तुमको ताकि सबूत ही न बने उनके ज़ुल्मों का कहेंगे किसानों ने कुचलवा आत्म- हत्याएं की हैं कानूनन जुर्म है जो हलधर अपराधी है!
कैसे चलनी चाहिए, कैसे तुम चलाते : डॉ. जसबीर चावला
कैसे चलनी चाहिए, कैसे तुम चलाते, किसान दिखलाता है लोकतंत्र -मंदिर अपवित्र करने वालों ! पाप का घड़ा एक दिन भर जाता है। अपराधी देशद्रोहियो! हलधर को अनपढ़ -बेवकूफ समझ ७५साल टोपी पहनाते रहे उसकी जिंदगी में छेद करते रहे, उसकी थाली से ही खाते रहे! गोलियां खाकर भी जिन्होंने हिमालय का सिर झुकने नहीं दिया मेहनतकश मजूरों को मवाली कह सिर फोड़ जाते रहे! लानत है ऐसे गद्दार देशप्रेमियों पर जो देश बेचने का धंधा करते हैं मन की बातों लुभाते, काले कानूनों के छूरों पीठ पर वार करते हैं । पुराना देश बेचकर नया संसद बनाए तो क्या किया? टुकड़े-टुकड़े करने वाला राष्ट्र -प्रेम दिखाये तो क्या किया? सड़कों पर बेहाल ठेका मजदूर बेरोजगार विज्ञापनों में हर जगह अपना फोटो चिपकाए तो क्या किया?
तपस्या में उनके कमी रह गई : डॉ. जसबीर चावला
तपस्या में उनके कमी रह गई शुकर करो हलधर ! जमीं रह गई। दोस्त की सेवा में देश कुर्बान शहीद गये, गमीं रह गई । काले कृषि कानूनों के कारण मरे चुप्पी लगाये बेशर्मी रह गई। खालिस्तानी मवाली धरने मरे परिवारों में उनकी कमी रह गई। क्या फर्क पड़ता है सिख जो मरे श्रद्धांजलि तक थमी रह गई।
अफसोस हलधर ! : डॉ. जसबीर चावला
अफसोस हलधर ! उनका राष्ट्र-प्रेम देश-प्रेम है अफसोस कृषक! उनका देश -प्रेम प्रांत -प्रेम है अफसोस किसान! उनका प्रांत -प्रेम धर्म -प्रेम है अफसोस अन्न-दाता! उनका धर्म -प्रेम जाति-प्रेम है अफसोस खेतिहर! उनका जाति-प्रेम कुल- प्रेम है अफसोस मजदूर! उनका परिवार -प्रेम मित्र -प्रेम है अफसोस मजूरे! उनका मित्र -प्रेम गद्दी -प्रेम है और हलधर, तुम्हारा प्रेम अपनी मिट्टी से शुरू होता मिट्टी में ही उपजता, साथ मिट्टी में ही मिल जाता! तुम क्या जानो, मित्र पर प्रहार राष्ट्र पर प्रहार होता है मित्र का राष्ट्र-द्रोह खुल जाये तो उसको बचाने बलिदानी जी-जान से जुट जाए क्यूं न सारा राष्ट्र मिट्टी में मिल जाए!
ट्रॉली टाइम्स की ऐतिहासिक भूमिका है : डॉ. जसबीर चावला
ट्रॉली टाइम्स की ऐतिहासिक भूमिका है हलधर तुमने मीडिया आज़ाद किया है! आज यही वादा इंडिया गठबंधन का है देश की दशा को सही दिशा का काम किया है। तुम्हें धोखा देकर कार्पोरेट का ढिड भरने वाले काले कानूनों का समय रहते पर्दाफाश किया है। अब जमीन बेचकर कृपया कहीं न जाओ हमारी हठधर्मिता ने बड़ा नुक़सान किया है। साढ़े सात सौ शहीद किसानों का कुछ न किया सिंघू बॉडर पर स्मारक बनेगा ऐलान किया है!
प्यास देती हैं निगाहें कुछ कह : डॉ. जसबीर चावला
प्यास देती हैं निगाहें कुछ कह तरसती तकती हैं मेरी चुप रह। किसने जाना है भेद आज तलक बयां न कर पाये कवि सब सह। मेरा क्या? थैला ले कर चल दूंगा पीछे सूखेगी आंख नदी बह बह। गया जाने कहां चावला बे कहे यहीं गजलाता था दोस्तों में वह। हलधर को उदास कर गया, या रब! धरने वाली जगह पर ही गया ढह ।
अपने-अपने साज हैं, अपने-अपने राग : डॉ. जसबीर चावला
अपने -अपने साज हैं, अपने-अपने राग अपने -अपने नाम हैं, अपने -अपने साग। अपने -अपने साग सभी हलधर उपजाये खेत बिक गये पछी कुछ हाथ ना आये। भारत हो या इंडिया, दोनों पछताये। नेता महा चालाक, मुद्दा भटकाये। बेरोज़गारी चरम पर, मुंडा कित जाये? चिट्टा चाटे बाद में, जब खुद चट जाये।
मौसेरे भाईयों की बहस में : डॉ. जसबीर चावला
मौसेरे भाईयों की बहस में तुम क्यों शामिल हो गए हलधर? अभी तक समझ ना पाये इनके करतब? भारत इंडिया एक थे, हैं औ' रहेंगे ऐमैस्पी थी, है औ' रहेगी, जैसे यह तो टैम देखना पड़ता है माहौल के साथ कब क्या कहना है किसके पास। नाटक करने को एक से एक बढ़कर हैं चौदह दस चौबीस होते हैं उसी को अमृत काल कहते हैं, कहेंगे नहीं, हल्ला प्रचार करेंगे सैंतालीस होते हैं! इसी पर कुंए घुस गाली-गलौज, एक्स, मुद्देबाजी, विदेश -भ्रमण पेंशन याफ़्ता मौसेरे भाई बेफिक्र रैलियों विज्ञापनी मन की बात करेंगे। तुम छोड़-छुड़ाव कराने जाओगे खामखां तुम्हारे मत्थे मढ़ देंगे, हलधर सावधान! तुम्हीं को देने पड़ जायेंगे, किसान सावधान!
खाने+ खिलाने की कविता : डॉ. जसबीर चावला
न खाता था, न खाने दिया न खाता हूं, न खिलाता हूं न खाऊंगा, न खाने दूंगा। खाऊंगा तो खाने दूंगा थोड़ा खाऊंगा ही नहीं, भूखे मार दूंगा! ज्यादा खाऊंगा, थोड़ा खाने दूंगा पूरा खाऊंगा, पता चलने नहीं दूंगा। थोड़ा खाओगे, इंजिन दूंगा ज्यादा खाओगे, पेगासस दूंगा सारा खाओगे, ज्यादा दे चुप रहोगे पूरा खाओगे, बोलोगे खाता है ईडी का खिलाया मुंह को आता है। पूरा-पूरा खाओ, पूरा दो संग मिल ऊंचे भाषण दो: न खाऊंगा, न खाने दूंगा! मणिपुर हो कि बाली हो चौकीदार को सोने दो! हलधर तुम भांगड़ा पाओ धरनों में उच्ची गाओ लगाता था, लगाता हूं, लगाता रहूंगा।
आंखें धरी हैं चश्मे की निगाहों में : डॉ. जसबीर चावला
आंखें धरी हैं चश्मे की निगाहों में चश्म पुरनम हसरतों की बांहों में। इंतज़ार शबरी का सब्र से नहीं पुरता प्रभु राम मिलेंगे इन्हीं उजड़ी राहों में। दिन दिल्ली ढकोसलों से ढंका रहता लो मेरा दर्द सुनो रात की कराहों में। कुरेदना मत किसी हलधर के चाक सीने को छप्पन इंच के छप्पन छुरे हैं घावों में। हमारे भी लगते थे कुछ, नहीं लौटे धरने बैठ गये ज़िंदगी की ढाहों में।
कोई ग़म तुझे खाये जाता है : डॉ. जसबीर चावला
कोई ग़म तुझे खाये जाता है मेरा सब्र आजमाये जाता है। जितनी बार मिला हूं हंसकर चश्म नम शरमाये जाता है। हरेक ख्वाब चश्मदीद गवाह रंगे ईश्क भरमाये जाता है। सुकून कब मिला दुआओं से झोंका सबा कतराये जाता है। हलधर घुसता अनाज मंडी में एम एस पी ठहराये जाता है।
मुद्दे भटकाने में वे सिद्ध हस्त हैं : डॉ. जसबीर चावला
मुद्दे भटकाने में वे सिद्ध हस्त हैं न भटकें तो बंदोबस्त हैं। किस -किस को मुक्त करें भ्रष्टाचार से? सभी लिप्त, उसी में व्यस्त हैं! कैग रपट का समाधान चंद्रयान सड़क घपले, मौकापरस्त हैं। आओजू भ्रष्टाचार में सिद्धि धारकों! इस द्वारे राजाराम वरद ट्रस्ट हैं। कुचले हलधर की बात अभी रहन दो नौजवान बेरोजगार महात्रस्त हैं।
सिंधु नदी के इस पार जो है, हिंदू है : डॉ. जसबीर चावला
सिंधु नदी के इस पार जो है, हिंदू है इस पार भी सुच्चा है, पवित्र है खालिस है, प्योर है, जैसे पाक है। बंटवारे-वक्त शीर्ष नेताओं ने मिला लिया लुभा अल्पसंख्यक सिख लीडरों को। कहकर नहीं रखा नाम ख़ालिस्तान पाकिस्तान के बरक्स जो था वाजिब। जब लाखों काटे-वड्ढे गये, उज्जड़ के आ रहे थे, दिल्ली -पंजाब खालसा ने खोल दिये गुरुद्वारे हलधर ने भर-भर गड्डे कणक के पहुंचाये हर थां लंगर जोगे कि ख़ालिस्तान रखेंगे नाम, पर नहीं, धोखेबाजों ने नाम बदल कर रख दिया हिंदुस्तान हिंदुओं का स्थान जैसे मुसलमानों का पाकिस्तान हिंदुओं का क्यों नहीं प्योर-शुद्ध स्थान ख़ालिस्तान।
वही शेषनाग जो प्रभु राम का अनुज बन : डॉ. जसबीर चावला
वही शेषनाग जो प्रभु राम का अनुज बन करता मेघनादों का संहार हो वही तुम लक्ष्मण बन जानकी माता की राखी करते रेखा बन योगी-भेखी रावणों का रोकते दुराचार हो ! धन्य हो हलधर! तुम्हारी क्यों न जय -जयकार हो? निर्विघ्न राज कराने वाले देवताओं से पहले चहुंलोक तुम्हारा सत्कार हो। ध्वस्त कर दो शोषण-व्यवस्था चक्रधर से मांग लो बेशक गदा! विष्णु मंदिर, राम मंदिर कैसी विडम्बना अन्न-दाता का मंदिर न हो सिंघु-टिकरी बाडरों पर शहीद स्मारक हलधर मंदिर भी हो!
सोना आज भी शुद्ध है : डॉ. जसबीर चावला
सोना आज भी शुद्ध है, पर पहले जैसा नहीं किसान लौटे, घर आये तो अर्थव्यवस्था पटरी पर आये हलधर ज़िंदा बचे तो फसल लहलहाये। तपस्या में कमी रह गई, हजार पूरे न हुए लूट का माल बना रहा हलधर। अब पचहत्तर का दल देश -भर के ७५खेतों से उठाये माटी कर्तव्य पथ पर ७५ बार गाये राष्ट्र गान नये संसद भवन ना सामे ७५×७५ के वर्गाकार भूमि-बैंक में ७५० शहीद कृषकों के अस्थि-कलश रखे ७५ माप ऊंचा स्तूप सिरज,बोधि वृक्ष रोपे अहिंसा -शांति की ७५ बार शपथ ले अमृत बरसे, हर फसल पर ऐमैस्पी की गारंटी पाये! मित्रों की ऋण -माफी हुई हलधर की हो जाये, शहीदों के परिवारों को ही, जो १५लाख का वादा विदेशी धन में से सबको देने का था, कम से कम उनको ही मिल जाये सोना पहले-सा शुद्ध हो जाये। अमृत महोत्सव किसान नकर कैसे मनाये?
देश-भक्ति झंडों की ऊंचाई से नहीं नपती : डॉ. जसबीर चावला
देश-भक्ति झंडों की ऊंचाई से नहीं नपती देश-प्रेम मार्च करती टांगों की उठाई से नहीं मपता। विकास नारों-योजनाओं -विज्ञापनों से नहीं होता अपने मुंह मियां मिट्ठू नेता, स्टेट्समैन नहीं बनता। समाचार अंकों में एक नाम -प्रचारक प्रसार-भारती जनता का पैसा निजी स्वार्थ में लुटाना नहीं फबता । डेढ़ अरब आबादी का पेट भरने वाला भूखा रहे दुनिया में कहीं भी ऐसा मुल्क खुशहाल नहीं मरता। हलधर, तू हर मोर्चे पर कामयाब हो सकता है मगर भ्रष्टाचार -मुक्त भारत का सपना सच में नहीं फलता।
सब एक मौका मांगते, हलधर ! : डॉ. जसबीर चावला
सब एक मौका मांगते, हलधर! सेवा-पानी का किस्सा देवर-भाभी का, नाटक जेठ-जठानी का। पहले भी इनको परखा, कथनी करनी एक नहीं वादे करते जनता से, भरते पेट अडानी का। उनको पेंशन क्यों मिलती, जिनकी पहले ही जायदाद दुनिया भर के भत्ते -ऐश, वेतन अलग फुटानी का। खून चूसने की सेवा हे, दयानिधि!अब बंद करो वोटों का खुल्ला धंधा, प्रजातंत्र की रानी का। भारत प्रचारित सर्वोत्तम, सबसे जवान विश्व गुरु देश चटवा चिट्टा केम छो ने, क्या हाल किया जवानी का।
बारिश रुक गई, धूप निकल आई है : डॉ. जसबीर चावला
बारिश रुक गई, धूप निकल आई है आकाश साफ, बादलों की विदाई है। नेता वह जो नैतिकता पर कायम रहे उल्लू है गर काम बस उल्लूसिधाई है। जनता फिर फिर वैसे को ही वोट दे तो गलत है, दुर्दशा ही उसकी भरपाई है। जेल उनको जो नशाछुड़ाऊ धुन में लगे पुलिस की ऐसे लोगों से क्यों लड़ाई है? सीधे देशद्रोह की धाराओं में कैद हुए सजा काट ली,तो भी कहां रिहाई है? दुःखी लोगों की कराहें सुन हलधर धरती मां बाल खोल गुहार लगाई है ।
लोकतंत्र इमारत नहीं है : डॉ. जसबीर चावला
लोकतंत्र इमारत नहीं है न इसकी नींव भवनों में होती है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता यानि बोलने की आज़ादी बोलने की मनमानी नहीं होती है, जब मर्जी,जैसा मौका हो बोल दो सट्टाबाजार नहीं है संसद कि कभी घटा के , कभी बढ़ा के मोल दो वादों को नारों में, नारों को जुमलों में तोल दो नारी शक्ति की वंदना कर दो बस, बाद में जूती संग रोल दो, जहां-जहां भारत लिखा हो हलधर, पी एम खाता खोल दो! इस तरह खरबों की अर्थव्यवस्था वाला विश्व गुरु फिर से नालंदा में दुनिया को संस्कृत पढ़ायेगा, पुराने नाम बदलेगा, नयी संस्कृति जगमगायेगी। आदिवासी महिलाओं को आरक्षण मिलते ही कोई नंगी की कूकी औरत प्रधानमंत्री बनेगी वही मोदी स्टेडियम का नाम बदल पायेगी।
जहां चुप से काम चलता हो, बोलके क्या फ़ायदा ? : डॉ. जसबीर चावला
जहां चुप से काम चलता हो, बोलके क्या फ़ायदा? बेआबरू ही जाना है, महफ़िल में फैला दो ढेर रायता। दुनिया मरे जां जिये,सुथरा घोल पतासे पीये कहते रहें जिसकी जो मर्ज़ी, बेशर्मी जीने का क्या कायदा? उपलब्धियां गिनो ना हलधर! नाकामियां क्यों गिनें १५लाख जमा हर खाते, मय-सूद लेने में है फ़ायदा। हर बात जुमला ना ना समझो, मन की भी सुनो कितनी तरह से भारत स्वच्छ किया कर पक्का इरादा। परिवार है कहां जो अपने यहां संवाद रक्खे रक्खूं एहसान दोस्तों का ,दिल उन्हीं का मारा है दादा!
प्रगति प्रगति दुहराओ, तिहराओ : डॉ. जसबीर चावला
प्रगति प्रगति दुहराओ, तिहराओ, होने लगेगी विकास विकास रटो, होने लगेगा समावेश समावेश भजो, दिखने लगेगा यह एमवे का गुजराती फार्मूला है सब हो रहा है, आवड़तु नथी? समझ नहीं आ रहा? लॉबी का यहां भी, विदेशों में भी! काला धन बाहर से क्या आयेगा इधर से ही जा रहा सफेद होने। हलधर यहां कमीजों की चमक मिलाये किसकी सफेदी कम, कितनी ज्यादा धरनों बैठे जान गंवाये, कुछ समझ न आये, चिट्टा चाट जाये जिसको आये, बेचे पैली, कनाडा आजमाये जिसको नहीं रोकड़ा उत्ता, एजेंटों में फंस जाये, जिसको थोड़ी बहुत अकल, फर्जी वाड़े घुस जाये, जान की परवा इल्ले, गैंग्स्टर बन जाये, बड़ी-बड़ी नेता हस्तीयों के काम आये। जेलों से फतवे-हुक्मनामे-धंधे चलाये। गरज कि हलधर पंजाब का बेड़ा गर्क हो जाये! चलिए अब ऐसी जगह रहिये , जहां प्रगति न हो, दिलेर ग़ालिब का नाम विकास मित्र बन जाये समावेश का विज्ञापन में राष्ट्र भक्ति नजर आये।
पड़ोसी भी लूटेंगे, पड़ोसी के पड़ोसी भी : डॉ. जसबीर चावला
पड़ोसी भी लूटेंगे, पड़ोसी के पड़ोसी भी निजी भी लूटेंगे, कर्ज़ मांग के लाओगे,वह भी। बचाना चाहते हो तो घरवालों से पहले बचाओ लुटायेंगे, उन्हें फ़िक्र नहीं,न जानते इसकी कीमत भी। हम तो चले, जहाज चढ़ चल देंगे धक्के खाने वे न दोस्त दोस्तों के, न दुश्मन दुश्मनों के भी। विदेशी जो देंगे, उसी में मस्त हो रास्ते बतायेंगे हलधर सावधान! मुखबिर तुम्हें लुटवायेंगे, कटवायेंगे भी। मुल्क ऐसे ही गुलाम नहीं बन जाया करते खालसा की थालियां उड़ायेंगे, करेंगे छेद भी।
कुछ भी नहीं बदला : डॉ. जसबीर चावला
कुछ भी नहीं बदला, वही ढंग, वही काम वैसे ही अफवाहें फैलाते थे, विज्ञापन दे खालिस्तान बनवाते थे चाणक्य फिर लड़वाते थे, वोट बैंक बनाते जीत जाते राज चलाते थे। इसी तरह चुनी सरकारें तोड़ते दल-बदलू जितवाते थे। संस्थाओं का खुला दुरुपयोग करते विपक्ष पर चढ़ जाते थे। आज वही हो रहा। तुम दर-दर की ठोकरें खाते कभी हलधर, कभी भंगियों संग रंग जमाते, समझ में आ रही अब गलतियां? बुराई का अंजाम बुरा होता है खालसा सच्चा रोता है, उसे दुःख होता है, जो मुल्क को आज़ाद कराने सबसे ज़्यादा खून दे वह खालिस्तानी होता है? वहीं चाणक्य जरूरत से ज्यादा हो जायें तो क्या होता है ?
आकाश में जाना हो : डॉ. जसबीर चावला
आकाश में जाना हो तो मुर्दाघाट की लपट आकाश में छाना हो तो जमीन से भाप बनो आकाश में रहना हो तो जमीन पर पकड़ बनाओ आकाश पर चलना हो तो पकड़ मजबूत करो आकाश में उड़ना हो तो जमीनी गति बढ़ाओ आकाश में उड़ान भरनी हो तो गति की सीमाएं लांघ जाओ हलधर! जमीन के बिना आकाश भी कुछ नहीं शून्य है, खाली है सब कुछ का सापेक्ष धरती है जिसके तुम रखवाले हो। पांच क्या दस ट्रिलियनी अर्थव्यवस्था के घरवाले हो!
चारों तरफ इलेक्शन है : डॉ. जसबीर चावला
चारों तरफ इलेक्शन है आठों पहर करप्शन है। वित्त-वादों के डेरे हैं दूषण है, प्रतिदूषन है। विपक्ष करे तो देश-द्रोह सत्ता करे, परिवर्तन है। अपना पक्ष न रखा ठीक तो लूटन ही लूटन है। सत्तर फीसदी दे चुका बाकी बचा तो जूठन है। हलधर के लो दरिया चूस पंजाब गुरू की गरदन है। शहीद करो कर्ज-नशे चटा तपी तवी गुरु अर्जन है।
मूल से ज्यादा सूद, पूंजी करती राज : डॉ. जसबीर चावला
मूल से ज्यादा सूद, पूंजी करती राज खटते भूखे मरते, दलाली पाती ताज। मौसम की बिपदायें,फसलें करें तबाह मजबूरी के मारे, कर्ज़ संवारें काज। बैंक के चंगुल में फंसा, हलधर देता जान सरकार जो कर्जे ले रही, परजा भरती ब्याज। परजा दुखी सहती रहे, राजाओं की मार रोटी मंहगी हो रही, सस्ती हो रही लाज किसको अपना वोट दें, किसका करें विरोध थैली भरते जा रहे, सट्टे औ' रंगबाज।
एक मुठभेड़ : डॉ. जसबीर चावला
एक मुठभेड़, दो आतंकी दोनों लड़ मरने पर तुले बैर से बैर मिटाने चले! बिना रुकावट सेवाओं का आनंद अब नहीं उठा पायेंगे दोनों मिसाइल दागते हाथ उड़ जायेंगे दोनों, हमास की भड़ास, इजरायल की प्यासी तलाश दुनिया की जंगी ताकतों को उलझायेंगे दोनों मिलकर पूछते हैं जमीनों दफ़न जुझारू दोनों: धरती में सुरंगें बोने वाले बौनों! बबूल बोके आम तो पा न सके अनार-बम अनाज की जगह खाओगे? भूकंपों से सावधान करती है पृथ्वी चेत जाओ, हलधर की बात मान दोनों।
हलधर लीडरों ने तेरी बात ही नहीं की : डॉ. जसबीर चावला
हलधर लीडरों ने तेरी बात ही नहीं की जैसे सधी डील, अपनी झोली भर ली। जसबीर ने कभी तेरी सोची नहीं भली मिलते ही मौका झट , चांदी काट ली। चुनाव सिर पे , मुद्दे पानी के धर लिये जीतते ही भैंस पानी में हेल ली। ये घाघ हैं, चेहरे बदलने में उस्ताद मीठी जुबान बोल कटारी निकाल ली। तुमको ही उठना होगा अपने मसाइल ले कारीगिरी इनकी पचत्तर साल देख ली।
अंबानी अडानी एक मानसिकता है : डॉ. जसबीर चावला
अंबानी अडानी एक मानसिकता है, दुनिया को मुट्ठी में कर लेने की उद्दंडता है, अपने भी कई हैं वे सबसे अमीर बनना चाहते हैं, सबसे पहले, इलाके में। किसी सतलुज से उनको प्यार नहीं न मलाल नदियों के छूछी होने का मतलब है, करोड़ों के उगने वाले ठेके का। उनकी शिनाख्त करनी है, शांति से समझाना है: क्यों बनना चाहते हो? लोगों को घटाकर बढ़ना चाहते हो? क्या मिल जायेगा? धौंस? मीडिया कवरेज? सिर्फ नाम खातिर या और कुछ? दुनिया का नाम रख लें तुम्हारे नाम पर? उनसे पूछो सड़क, बंदरगाह,पुल, पहाड़, नदियां सब कर दें तुम्हारे नाम से? तो क्या चंद्रयान पर धर सब ले जाओगे ऊपर? एक ही सवाल पूछता है हलधर अंबानी अडानी किसी फल का नाम है? मोटे से मोटा अनाज ही पुकारा जाता! जनता का धन लूटकर भारत छोड़ जाओगे, देश की आंखों धूल झोंक माल कमाओगे? सरकार खरीद राष्ट्र भक्ति जताओगे? करोड़ों की लाचार भुखमरी खाओगे? मलिक से बेहतर तो भाग्गो है, जिसकी रोटी से दूध बरसता है विदेशों में भी धोखेबाजी की दौलत से खून ही टपकाओगे, कई हमास बनाओगे!
अग्निवीर अमृतपाल को श्रद्धांजलि -वश : डॉ. जसबीर चावला
अमृतपाल! तुम डिब्रूगढ़ जेल में हो? नशे-माफिया का भंडाफोड़ करते गिरफ्तार! या तुम यहां पाक सीमा पर अग्निवीर प्रहरी तैनात? घुसपैठियों की गोलाबारी से हुए शिकार! लाश में हो तब्दील आये हो गांव वापस हलधर बाप के इकलौते वारिस! मां की वैण-चीखें कलेजा छलनी कर रहीं देशवासियों का। तुम्हें शहीद ही होना था उन्नीस साल की उम्र में! पिता-पुरखी खेती तज सेना की नौकरी कर, कितना चाव है रे भारत-भूमि खातिर मर-मिटने का! पाकिस्तान मारता कि खालिस्तानी क्यों नहीं हो हिंदुस्तान मारता कि खालिस्तानी क्यों हो! मुसलमान औरंगजेबी इस्लाम का सच्चा काफिर कहता हिंदू राष्ट्र -द्रोही आतंकी बारहबजे कहता तुम क्या हो अमृतपाल? सच-सच बताओ! हाकी के कप्तान -से हलचल मत मचाओ! न हलधर बन काले कानूनों को ललकार लगाओ! अमृत काल में तुम्हारे शव को तिरंगे में लपेटना भी अपराध है सशस्त्र सलामी ठेका -जवान को, सेना का अपमान है! तुम राजनीति के मोहरे हो अपने ही साथियों की बोलियों -गोलियों से भूने हुए साजिशी उपहार, चुनावी लफ्फाजी नाटक के लिए मुद्दा तैयार! कौमों का ध्रुवीकरण करता वोटों का कारोबार! जो खैला चल रहा हमास में वही राष्ट्र -व्यापी संडास में वही एक माडल के विकास में वही एक दल के अनुभवी चाणक्य -प्रयास में! हाय-हाय! २०२४ के लोकतंत्र! ब्रह्मांड जला रहे कार्पोरेटी मंत्र!!
इंसान की तल्ख गहराई में न जा : डॉ. जसबीर चावला
इंसान की तल्ख गहराई में न जा देख कौन दिल से प्यार करता है लूटता था जज़्बातों में डुबा अक्सर देख कि अब जो बचा , क्या करता है गफलतों से ज्यादा रहबरों ने लूटा हलधर जां लुटाने की बात करता है अदालतों से कभी सच्चा हक न मिला पंजाब झूठ के लारों में पिसा करता है कोई मज़लूम बन के द्वारे आये जुल्म के मारों की मार जरता है।
फसलों की लूट का राज़ : डॉ. जसबीर चावला
फसलों की लूट का राज़ अब पता चला धड़ कर्ज़ में, सर नशे में, डूबा हुआ मिला। हलधर ने अपना सगा मान जिसको भी चुना वही रंगा सियार कमीशन एजेन्ट मिला। वे चाहते हैं मेहनती नस्लें गुलाम हों पूंजी को राज करने का यह रास्ता मिला। इसलिए ऋण औ' शराब मुहैय्या किये गये किसानों को ग़र्क करने का सीधा -सा गुर मिला। पहले निगाह रहती थी उपजे अनाज पर हड़पू जमीन धंधा, निर्यात का मिला। सबसे अमीर बनने का दौर जो चला हर दूसरा किसान लाचारे खुदकुशी मिला। आपस में मिल लो छोड़, इक दूजे से विवाद समझो आज़ादी बाद का कड़वा सबक मिला।
यानि धोखेबाजी का इक सिलसिला : डॉ. जसबीर चावला
यानि धोखेबाजी का इक सिलसिला चला है नाम हलधर का, उल्लू अपना सीधा किया है। क्या कहोगे? कौम को खुद रहबरों ने लूटा क्या उखाड़ लोगे? सबने यह छल किया है। ये फरेबियों की बस्ती, सियासत बनी है धंधा हलधर की थाली खाकर, उसी में छेद किया है। अब और देखो नाटक, अमृत ब्रांड खेलो समुद्र से जब निकला, असुरों से क्या किया है। महाभारत क्यों न होवे, इंसाफ मांगते हैं इजरायली या हमासी, लुटने पे सब किया है।
दिल्ली में जितने सिख सरदार हैं : डॉ. जसबीर चावला
दिल्ली में जितने सिख सरदार हैं, फूंक दो प्रदूषण फैलाते हैं, पराली जलाते हैं, प्रदूषण का बदला प्रदूषण से लो जैसे खून का बदला खून से लिया! यही चाणक्य -नीति है लोहे को लोहे से काट दिया! दिल्ली से उधर आगे सारा पंजाब है हम नहीं मानते जबरदस्ती किये टुकड़ों को-- --हरियाणा- हिमाचल भी पंजाब है वही नशे करता, पराली साड़ता है। हमारा हरियाणा, उत्तरप्रदेश तो आग लगाता है भूभुओ स्वाहा करता है मंत्र शक्ति से सारा धुंआ कश्मीर के रास्ते पाकिस्तान पहुंचाता है! और दस हवनों के बूते हमास पहुंचाने की ठानता है! जो ठान लेता है , कर दिखाता है। पंजाबी हलधर ऐसे नहीं मानता है खालिस्तानी पराली साड़ता है टोल प्लाजा गाता ट्रैक्टर बाडर ले आता है, दिल्ली में जो भी इंजिन हो, सरकार में अपना लगाता है! हवा खराब राजधानी की प्रचारो यही वज़ह है अनपढ़ हलधर लूटो, बारा बजा है! फूंक दो दिल्ली के सरदारों को टूल किट रखते हैं! साथ पगड़ी में कटार भी।
गो' नशेमन झीना-झीना बीना : डॉ. जसबीर चावला
गो' नशेमन झीना-झीना बीना, दीद तो हो ही रही है चांद है चौदहवीं का पर, ईद तो हो ही रही है। मिल रहा है रास्ता संकरी गली, बच निकल जायें बमबारी जारी भारी, गजा शहीद तो हो ही रही है ! रो ले मानवते! आज जी भर के जार जार रो ले! बदले की आग को हवा देती, दुनिया चश्मदीद तो हो ही रही है ! बुद्ध नानक हलधर मुहम्मद जरथुष्ट्र ईसा,सभी रोवो! देख लो, किस तरह तुम्हारी सीखों की लीद हो ही रही है। बंदा ढीठ, मानवाधिकारों का पैरोकार सज, बना मुखिया फिर मिसाइलों, बमवर्षकों, युद्ध की खरीद तो हो ही रही है!
सुनो हलधर ! : डॉ. जसबीर चावला
अन्न देवता होता है अन्न उगाने वाला क्या होता है? पानी पिता होता है पानी विंजाने वाला क्या होता है? पवन गुरू होता है पवन प्रदूषित करने वाला क्या होता है? धरती माता होती है धरती बेचने वाला क्या होता है? जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी, स्वर्ग से बढ़कर होती है जन्म भूमि उसे त्यागने वाला क्या होता है?
चलिए चला जाए : डॉ. जसबीर चावला
चलिए चला जाए गजा से निकला जाए। दमघोंटू धुआं है प्यास से तड़पा जाए। प्यार तो नदारद है घृणा से जिया जाए। गिरे छत गिरें बम भी मौत से मिला जाए। हलधर आस है बाकी दुआ काम आ जाए।
धुंए पर सियासत मत कर जसबीर! : डॉ. जसबीर चावला
धुंए पर सियासत मत कर जसबीर! पराली से दिवाली की तुक न मिला। कुछ कर सकता है तो जा खेतों में हलधर तंग है उसे मुआवजा दिला। बाबू क्यूं आता है उड़ाने को मज़ाक़ तू अनपढ़ है कि सारा संगरूर जिला? चढ़ा वह झंडा ले , तो गिरफ्तार किया क्यों बासमती को कहते लाल किला? जो पाप राजधानी में, उनका फल है दें हक मेहनत को, धुआं जाये बिला।
बारूद के जिस ढेर पर बैठी दुनिया : डॉ. जसबीर चावला
बारूद के जिस ढेर पर बैठी दुनिया उसमें पलीता सुलग रहा है मरते मरीज़, मासूम बच्चे, त्रस्त गर्भ, जबरिया नर्क कोई दलील काम नहीं आ रही बदले की आग में पागल पेगासस -राहु जल रहा है दुहरा हिटलर यहूदी कौम से जो हुआ उसी बेरहमी को तिहरायेगा नामो निशान न फिलीस्तीन का बच पायेगा सुरंगों वाली गजा का हमस तबाह-तबाह अल्लाह मौला, तौबा सब भूल जायेगा दोजख यहीं मिलेगी जन्नत -लालची जिहादी को यहीं कयामत का दिन बरपायेगा। इंसानियत का भूत शैतान पर सवार है १४०३ का आंकड़ा एक-एक को सवा लाख से गुणायेगा। तब अपनी गद्दी छोड़गा, खुद पर निर्दोष मानव-संहार का मुकदमा चलवायेगा अथवा अपनी पिस्तौली गोली खायेगा! देख लो हलधर नंगी आंखों से देख ले अहिंसात्मक धरने से चिपका रहकर आसुरी कार्पोरेट को हरा पायेगा?
हर एक को दूसरे में रावण दिखे : डॉ. जसबीर चावला
हर एक को दूसरे में रावण दिखे राम खून का प्यासा हो जाए। हर घर ज़मींदोज़ सुरंगदानी दिखे गेराज ड्रोन कारखाना नजर आए। बचके निकल जा उस बस्ती से हलधर हर शजर गर बम ओ' लावा बरसाए। फरियाद क्या करें जहां बेदर्द हो हाकिम निजामे कातिल फालतू हाय तौबा मचाए। मासूम हसीं हस्तियां बारूदों में उड़तीं आबे हयात नाली का पानी बन जाए। शर्मशार कर दिया बंदों ने ख़ालिक़ को इसी दरिंदगी वास्ते काबिल इंसान बनाए?
दिले बर्बाद दीवाले के जलाये दीये : डॉ. जसबीर चावला
दिले बर्बाद दीवाले के जलाये दीये अश्क आंखों से,हाथों से गंदा मूत पीये। तबाह हमास गजा ढेर मलबों का शहर सुरंग की खोज , कहर अस्पतालों के लिए। न मुसलमान, यहूदी, न ईसाई ही बने बच्चे मासूम बने खतरे इसराइल के लिए। रावण जीत रहा साथ उसके वानरदल भाग तो राम रहा हलधर जा कहां जीये? बावन हिंदू राजे बंदी, छुड़ाये सिख गुरु ने बंदी सिख कौन छुड़ाये? जलायें घी के दीये।
मेहनत की जीत हो : डॉ. जसबीर चावला
मेहनत की जीत हो, पूंजी की हार गरीब का तभी हो सकता उद्धार। मुफ़्त का अनाज सस्ती रसोई गैस भीख नहीं, हमको चाहिए रोजगार। बांहों से उछलें अपने पैरों पर खड़े हों देश को हम भी बना पायें चमकदार। माटी से उपजे , इसी में खटते मरते हैं हलधर को माटी से मां से ज्यादा प्यार। चुनाव हम जिताते अन्न हम उगाते मंत्री पद पाते लाभ वे जाते डकार। ऐसे हमारे सेवक, ऐसे गुणी कर्णधार चाकर पूंजी के, छाती राष्ट्र -चौकीदार !
मणिपुरी हिंसा के लिए कोई जिम्मेवार था : डॉ. जसबीर चावला
मणिपुरी हिंसा के लिए कोई जिम्मेवार था जो अब गजा के लिए होगा कोई पद क्यों छोड़े जब जिम्मेदार नहीं? उसे तो निर्दोषों का खून पीने से मतलब है दूध पीते बच्चों का हो या मलबे दबी गर्भवतियों का ठिठुरे आठ सौ हलधरों का या चिट्टा -चटे जवानों का कर्ज़ लदे लावारिस शवों का या बेरोजगार आत्महत्याओं का! मन की बात कर सकारात्मक सोच को बचाना है चंद्रयान से उतरना है पर्दे पर सबसे पहले चौबीसों घंटे यात्राओं से लौट हाथ मिलाती मुद्रा में योग को पेगासस संग स्थित विश्व गुरु सज मित्रों का परिवार ही संसार है, बनाना है। अस्पताल क़ब्रिस्तान हमस सुरंगिस्तान नेस्तनाबूद फिलीस्तीन नक्शे से मिटाना है बेशक सारी दुनिया हिरोशिमा बन जाए हेकड़ी है जिद है, हिटलर की यहूदी नस्लकुशी को जायज ठहराना है!
आदमी चैन की सांस कब लेता है : डॉ. जसबीर चावला
आदमी चैन की सांस कब लेता है जब कुत्ता चोर से रला कर लेता है। जब चौकीदार खुद घर से पंड चुक गेट पर चोर के हाथ धर देता है। आदमी चैन की सांस कहां लेता है जहां देखने वाला कोई नहीं होता है। जहां देवते अंधे, यमराज निठल्ला चित्रगुप्त दो हजारी गड्डी धर देता है। हलधर साइप्रस चला जाए या सूडान अन्न उगाऊ शक्ति का प्रमाण देता है। वहीं अडाणी निजी कंपनियों की लिस्ट शीर्ष नेताओं संग जहाज़ी अलबम देता है । चोर चौकीदार बने कुत्ता हो जाए चोर प्रजातंत्र चुनाव एक साथ करा देता है।
रात लंबी इसलिए हो जाती है : डॉ. जसबीर चावला
रात लंबी इसलिए हो जाती है कि उसमें अंधेरा जुड़ जाता है। सर्दियों में सूरज जल्दी ग़ुरूब हो जाता है इधर धरती जल्दबाजी में कुछ ऐसा नहीं करना चाहती कि रिश्तों में खटास आ जाए। ठीक है, रात ही है ज्यादा से ज्यादा क्या होगा लंबी खिंचती रहे, कितनी खिंचेगी? छ: महीने ही ना? जसबीर! तुम ध्रुवों की बात करने लगे ध्रुवीकरण की रात कितनी लंबी हो सकती है, तुम नहीं जानते! हलधर से पूछो जिसने अपने साढ़े सात सौ बंदे गंवा दिए अंधेरे वाला हिस्सा जुदा करते।
धुंआ पंजाब का दिल्ली को सीधा जाता है : डॉ. जसबीर चावला
धुंआ पंजाब का दिल्ली को सीधा जाता है हरियाणा दिल्ली का वहीं शुद्ध हो जाता है! अब जितना प्रदूषण है वजह पंजाब पराली है आम आदमी को सबक उससे पूरा हो जाता है। कोई पप्पू हो या गप्पू, मान- सम्मान हर को चाहिए किसी का बुत ऊंचा , किसी का स्टेडियम हो जाता है। एक दूसरे की पैंट उतारने के पीछे पड़े हो हलधर पंजाब की जनता का टैक्स व्यर्थ खर्चा जाता है। क्यों नहीं मुद्दों पर इक दूजे को बेनकाब करते? मसले खड़े कर अगले पिछले, दायित्व समाप्त हो जाता है? पंजाब तो धक्कों-धोखों से ही बना है खालसा अधिकार -शून्य, लक्ष्य पूरा हो जाता है। वे हिंदू नहीं कहते खुद को, बस राम-राम जपते हैं खाड़कू नशेड़ी पूरा नस्लकुशा हो जाता है। प्यार से ज़हर दे दिया , पंजाब पीता ही रहा धक्के से अमृत दिया , गरल समझा जाता है।
योग नफरत सिखाता है? : डॉ. जसबीर चावला
योग नफरत सिखाता है? तो मनाओ विश्व नफरत दिवस! योग कंशता जोड़ता है तो हमस क्यों, विश्व के सारे नवजातों को शिलाओं पर पटक- पटक मारो! मिहिरकुल पहाड़ों से हाथी लुढ़काते हलधर! तुम पराली साड़ते। दिल्ली ने सिख साड़े दुर्गंध संसद तक नहीं पहुंची? तब ए.क्यू.आई. का चलन नहीं था अब है। उन पर कोई कानून नहीं था तुम पर जुर्माना है, नहीं मानते तो पराली में ही साड़ देंगे बेच लेना झोना एम.एस.पी पर! उनकी क्रूरता का उत्तर रहमदिली से दो हलधर! धूपबत्ती की तरह जलाओ सांकेतिक पराली के इक दो कंडे, और अरदास कर दो: तेरे भाणे सरबत्त दा भला योग सब को सन्मति दे!
मोदी है तो मुमकिन है : डॉ. जसबीर चावला
मोदी है तो मुमकिन है लगातार जीत रही टीम हार जाए औचक सट्टे बाजों की चांदी का खेल है रोचक! दांव पर एक अरब की आबादी इतिहास रच रहा विश्व गुरु अब तक! घपलेदारों का तो पेशा है हलधर बेवकूफ ऐसा है उनका ईमान राष्ट्र पैसा है, जुर्माना उनके लगाओ इंसाफ़ कैसा है? दल कहां थे जब बंदरबांट जारी थी? केंद्र और राज्य के इंजिन में कारोबारी थी अफसर खा रहे थे, पराली भारी थी बेलिंग मशीनों की खरीददारी थी हलधर जात पर चलती आरी थी। प्रदूषण हवा नहीं, पहले नीयत का साफ करो कमीशन खोरी से इस देश को आजाद करो! अन्ना हज़ारों को रामलीला में उतारो फिर से भ्रष्टाचार कोरोना पर लौक लगाओ फिर से! टीके पूंजी को लगाओ तीनों गजा के मलबों पर बस्तियां प्यार की बसाओ तीनों।
जो ठान लिया कर दिखाया : डॉ. जसबीर चावला
जो ठान लिया कर दिखाया जनता को आंकड़ों राहीं भरमाया। ५०७७ गांव २४ घंटे बिजली गुना कर रिकार्ड उत्पादन बताया। न पर्ची, न खर्ची, न बवर्ची सीधे मुंह मिर्ची का गुच्छा ढुकाया। नौकरी मांगी टैंकी पर चढ़ गये बुलडोजर चला विपक्ष हटाया। और कहीं है? पर यहां के जवानों को गैर सरकारी में भी आरक्षण दिलवाया। ईडी आडी का भय हम नहीं देते भ्रष्ट को भ्रष्टता में टान मिलाया। बाटा जूते की कीमत -सी संख्या उठाई उतने घरों में नल से जल पहुंचाया। गिन लो हमारी उपलब्धियां उखाड़ के आपके एक वोट का कितना लाभ दिलाया। हलधर को तो गन्ने का पता होना चाहिए बिना पेरे रस निकाला , धरनों सुखाया।
क्या पराली साड़ना विरोध प्रदर्शन है? : डॉ. जसबीर चावला
क्या पराली साड़ना विरोध प्रदर्शन है? क्या धुंआ पूछता है सरकारों से कहां हैं बेलिंग मशीनें? जनता के करोड़ों टैक्स से जो आनी थीं कौन खा गया? मंत्री जां चूहे? पता करो क्यों अपने दल के दोषी पकड़ते नानी मरती है? किसी घोटालेबाज ने की आत्महत्या? क्यों हलधर को ही करनी पड़ती है? पराली साड़ने का लाखों जुर्माना? तय करता किसान का शहीद हो जाना! पराली का दमघोंटू धुआं पहले किसान में चढ़ता है, फिर हवा में हलधर का यह विरोध है समझती सत्ता? कैसे दूसरे राज्यों का धान पंजाब में घुसता एम एस पी पर बेचा जाता यहां का हलधर दुत्कारा जाता मंडी बंद पाता! आढ़तिया घूस देता, हलधर से द्रोह कमाता अगली फसल में देरी भांप , खेतों में आग लगाता।
बुद्ध ही हैं जो टकराने से बचा सकते हैं : डॉ. जसबीर चावला
बुद्ध ही हैं जो टकराने से बचा सकते हैं, उलझने से हटा सकते हैं वरना जिस तरह कवच पर कवच लग रहे हैं सींगों की लंबाई मोटाई बढ़ रही है सीढ़ियों पर भयंकर गुत्थमगुत्था होगी कोई चरण शांति का पूरा न हो सकेगा। भावनाएं बदलने की जरूरत है मित्र! मेत्ता लाओ मन में, मित्रता का भाव सत्ता पक्ष में भी अगला दोस्त है दुश्मन सोचकर पहले से शत्रु न बनाओ ठीक है, सुरक्षा रखो पर करुणा भी सौहार्द्रता के बीज हाव-भाव रखो, वज्र छाती न धमकाओ! नालियों को सुरंग बताकर तबाही न बरसाओ! सुरक्षा की अति कर दोगे तो निजी रक्षा पंक्ति ही शहीद कर देगी भ्रष्टाचार में अति लिप्तता मृत कर देगी प्रतिशोध की ज्वाला फिनिक्स कर देगी धरनों की अति नहीं हलधर! सम्यक की चर्चा ही अमृत देगी।
नेताओं की घर-वापसी होती है : डॉ. जसबीर चावला
नेताओं की घर-वापसी होती है जनता की अधर वापसी छतें ईंटें हवा में, फर्श पाताल में दगे मिसाइल दिलों में, बच्चों के शवों में अल्लाह जेहोवा कब्रों में। बंदी ज्यादा हो गये तो बंधक बने हमासी हमले हुए तो भेद खुले कौन कम आतंकी , कौन ज्यादा गुस्सैल, करो फैसले! हलधर! लाठी भैंस पर चले , तो एक बात लट्ठ बरसें, तो कहां कहां भगे ? नेता उलट पुलट बयान हांकते मलबे उचकते अस्पताल हांफते युद्ध में विराम, विरामित युद्ध नये नये शब्द गढ़ते , व्यूह रचते, जांचते विश्व को शांति चाहिए , ये हिंसा बघारते युद्धबंदी की पेशकश में नस्लकुशी ललकारते!
बन्दियों - बंधकों की अदला-बदली : डॉ. जसबीर चावला
बन्दियों - बंधकों की अदला-बदली क्रूरता देवी की तंग रहमदिली। ढही सुरंग , बेकस वहां से बच निकले गजा के मलबों से इक जिंद तड़पती निकली। कौन से बच्चे थे जिनको जिहादी बनना था ? जो अभी जन्मे थे, जिनको न प्राण वायु मिली। कसम खुदा की ऐसा मानव - प्रेम झूठा है न जिसमें करुणा हो, घोर नफरत हो, संग तंगदिली। बदले पुरखों के आज पीढ़ियों से क्यों लेते? हलधर इतिहास के पन्नों में ढूंढ़े जिंदादिली। भूलकर बुद्ध, हिटलर समान क्यूं करते? युद्ध के रास्ते कब किसी को शांति मिली?
हल मारापिट्टी नहीं : डॉ. जसबीर चावला
हल मारापिट्टी नहीं, बातचीत से निकलता है। कोई नयी बात तो है नहीं पहले कितने महाभारत हुए जब शांति वार्तायें विफल हुईं। ऐसा भी नहीं कि बातें चलाकर युद्ध नहीं टले। पहले बर्बादी, बाद बर्बादी लड़ाइयों से इससे ज़्यादा कुछ नहीं हासिल। जिन्हें शौक हो तबाही का अपनी और आबादी का, जंग छेड़े! कर ले रक्त-स्नान, शव-साधना ठंढा ले झूठा गुमान। अपनी मौत से पहले अशोक बनेगा ही। तब बहुत देर हो चुकेगी, कलिंग जन्म ले चुकेगा गजा राख करने को पट्टियां नेस्तनाबूद करने को। हलधर! इन्हें समझाते क्यों नहीं? जनता ने यह अधिकार नहीं दिया है। शांति नहीं अच्छी लगती तो सत्ता वापस दो! नहीं तो प्रजा युद्ध करेगी। फालतू खून-खराबा हो क्या mtlb?
खिड़कियां कांच से ढंक दो : डॉ. जसबीर चावला
खिड़कियां कांच से ढंक दो, हवा रुक जायेगी मोटे पर्दे उन पर चढ़ा दो, रौशनी रुक जायेगी। बंद कर दो सुरंगों में दुश्मनों बंधकों को गैस भर दो ज़हरीली, दम घुंटे, सांस भी रुक जायेगी। अगली पीढ़ी खत्म कर दो या अपाहिज दो बना मर्दों को चिट्टा चटा दो, शुक्राणु शक्ति ही रुक जायेगी। कब्जिया सब सत्ता अपने हाथ कर, ढाओ जुलम बदला है, गलत क्या? तवारीख की गति भला रुक जायेगी? उम्र थोड़ी, हवस ज्यादा, दुनिया फ़ानी, मर्ग आनी नेकनामी सदा रहती, जुल्मियों की चर्चा ही रुक जायेगी।
जिताऊंगा ताकि आखीर हराने काबिल बना रहूं : डॉ. जसबीर चावला
जिताऊंगा ताकि आखीर हराने काबिल बना रहूं राहत दूंगा ताकि खातों में रहमदिल बना रहूं। मक्कार हूं घपलेबाज, गतिविधियां बता रहीं दुनिया की नज़रों में पर शहंशाह बना रहूं। तरसा - तड़पा के मारे हैं बच्चे, बूढ़े, औरतें हो कोई देश इंसानी हकों का पैरोकार बना रहूं! नदी के मज़े चाहिए तो मगर से बैर क्यों? कश्ती पे चढ़के गाओ हर बार मांझी बना रहूं। ये जीत, ये चुनाव, मशीनें ढकोसले बजरंगी जनता के दिलों सदैव राम बना रहूं। बनाऊंगा फिर ताकि मिटाने का सरल उपाय हो भीख दूंगा योजनाबद्ध, ताकि भुनाता बना रहूं। हलधर को जिताया ताकि खेल भावना बनी रहे चाणक्य के प्रयोगों का मास्टर ब्लास्टर बना रहूं।
आये हो तो जाने की तैयारी साथ कर लो : डॉ. जसबीर चावला
आये हो तो जाने की तैयारी साथ कर लो जीते रहो रोज़ाना, रोज़ाना थोड़ा मर लो। ऐसी जगह है ग़ालिब, खुदा यहां नहीं है मर्ज़ी जितनी पीओ, मर्ज़ी जितनी भर लो। इसका नहीं अगाड़ी, इसका नहीं पिछाड़ी गाड़ी ऐसी है यह, झट आगे-पीछे कर लो। गर्माते अंदर ठूंसो , ठंढाते बाहर कर लो सिल्कियाना सुरंग है ,चारों बगल से धर लो। हलधर भुला न देना, धरनों की राजनीति किडनी -कढाऊ जीरा शराब से तो डर लो!
आज पहलू में हो इतना बहुत है : डॉ. जसबीर चावला
आज पहलू में हो इतना बहुत है मेहरबां वक्त है, इतना बहुत है। चार दिन रुक गई है बमबारी हवा ताज़ा बही, इतना बहुत है। कफ़न को तरसती हों जब लाशें हमको पगड़ी मिली, इतना बहुत है। बात हमास या तलाश नहीं दो घड़ी सोच लें, इतना बहुत है। मौत हर हाल में यकीनी है रोक लें जंग तो इतना बहुत है। चैन की सांस ले अगली पीढ़ी हलधर बच जाए, इतना बहुत है।
करता हूं, करूंगा, आखीर कब करोगे : डॉ. जसबीर चावला
करता हूं, करूंगा, आखीर कब करोगे? दुनिया फ़ना हो जाए, तब रहम करोगे? आरोपों के घेरे में, फिलीस्तीन मेमना है दे झूठे-कचरे लांछन, पूरा चटम करोगे? उनकी जमीन से ही उनको उखाड़ दोगे? हलधर बताओ कैसे, ज़ुल्मी खतम करोगे? गजा पट्टी जो हुआ है, पंजाब में भी होगा बसाये जा रहे प्रवासी, कुछ तो शरम करोगे! चिट्टा, शराब, कर्ज़ा,आतंक, ड्रोन, बाडर लायेंगे कटघरे में, कब तक भरम करोगे? जब कौम के ही रहबर, आपस में लड़ रहे हों झाड़ू गिराई मक्खी, पी दूध हजम करोगे?
जब-जब धर्म की ग्लानि हुई : डॉ. जसबीर चावला
जब-जब धर्म की ग्लानि हुई माझी ने नाव डुबाई पतवार औ' कश्ती साथी बने मझधार में शक्ति जुटाई नाखुदा मार गिराया तूफां ने जान बचाई हलधर उचरे साची बानी अकाल भये सहायी।
गलतियां किसी की हों : डॉ. जसबीर चावला
गलतियां किसी की हों, सीखने में शर्म कैसी? चिपक के गद्दी पकड़ लो, जनता की ऐसी तैसी! नाटक हो, नौटंकी हो, करने में हर्ज क्या है? सियासत ने सेवा दी, सेवा में सियासत कैसी? चिट्टे का राज है, दूर-दराज तक पुलिस ब्योपारी बनी, वोटरों की डेमोक्रेसी। क्या करे परिवार वाद, तपस्या में कमी रही त्याग दी कुर्सी तो क्या? पेंशन वैसी की वैसी। हलधर तुम्हें क्या हक? हम मरें जां जीयें सौ बंदिशें धरनों पर, सबसे सहज खुदकुशी!
जिसे पाने के लिए तबाही मचाये हो : डॉ. जसबीर चावला
जिसे पाने के लिए तबाही मचाये हो उसे कहीं अपने यहां ही छुपाए हो। जसबीर कभी तो साधु की बात करो निजी फायदे के लिए औरों को भरमाए हो। मिसाइल जिधर से दगे होनी तो बर्बादी है हथियार बिक सकें, सो भाइयों को लड़ाये हो। किसी ने तो खटखटा द्वार, दस्तक दी है क्यों ख्वामखाह शरमा, बहाने बनाये हो? वोट से चोट करो सत्ता के दलालों पर नारों -लारों में हलधर को क्यों फंसाये हो?
आज़ादी मिलने से गुलामी नहीं मिटती : डॉ. जसबीर चावला
आज़ादी मिलने से गुलामी नहीं मिटती सज़ायें पूरी काट लें पर कैद नहीं मुकती। लाखों दस्तखतों से अर्ज़ी अपील नहीं बनती करोड़ों बम बरसाने से शांति नहीं मिलती। पंजाब कर्ज़ डूबा सूद किंज भरेगा? हलधर वरगा ही आत्म -हत्या करेगा। सब लूटते रहे हैं देसी हों या प्रवासी उस पार के भी हमले, झेलता रहेगा। मजबूत गभरूओं को यदि न्याय नहीं देते विदेश की चमक में देखा -देखी फंसेगा। गुरुओं की धरती पर नफरत नहीं उपजाओ पंजाब अन्नदाता दुनिया का ढिड भरेगा। अमीरी के लालच में सिक्ख न मिटाओ सीमाओं की रक्षा में खालसा ही टिकेगा।
वे तो सिक्खों पर संगीनें ताने : डॉ. जसबीर चावला
वे तो सिक्खों पर संगीनें ताने निगरान थे उन्हें क्या इल्म था कि मोन्ने भी खालिस्तान पर मेहरबान थे! बहरी सरकारों को सुनाने के लिए संसद में धमाके करने पड़ते हैं। तानाशाही नहीं चलेगी, ये नारे अंग्रेज़ी हुकूमत के लिए गढ़े चरमपंथियों की पहचान थे। जिसे आदर्श बनाकर संसद में घुसपैठ करने की जुरर्त की है वह आतंकवादी था, आतंकवादी है, आतंकवादी रहेगा! वह न देशभक्त, न भारत रत्न था। वीर सावरकर के नाखून बराबर भी नहीं था! इसलिए भारत सरकार आज तक उस पर गुस्सायी है जो माने , उस पर बंदूक टिकायी है। तुम बनाओ गोड्से को आदर्श! औरों को भी समझाओ। हलधर , देखो न, उसी को गुरु मानता है इंडिया को उल्टी पट्टी पढ़ाता है तीन काले कानून पास करने की संसदीय हड़बड़ी की मिमिक्री उतार हर आटे में धरने सानता है!
सब कुछ पक्ष में हो तो : डॉ. जसबीर चावला
सब कुछ पक्ष में हो तो विपक्ष की जरूरत क्या है? फालतू की बहसों में समय बर्बादी का मतलब क्या है? एक-एक मिनट की कीमत है संसद की गरिमा भीतर नारे, मिमिक्री, प्लेकार्ड, उकसाने का मकसद क्या है? जैसे अंदर हो नाकारे वैसे ही रहो बाहर मुअत्तल होके कोसने -पछताने का असर क्या है? हलधर के पास जाओ जिन्होंने चुन के भेजा समझाओ कि इस प्रजातंत्र में पूर्ण बहुमत क्या है? अगले चुनाव में इसे कहीं दुहरा न दे फिर जनता जांच लें पहले ही विष क्या, और अमृत क्या है?
२२ दिसम्बर २०२३ : डॉ. जसबीर चावला
२२ दिसम्बर २०२३, शनिवार साल का सबसे छोटा दिन, सबसे लंबी रात। यानी कल रविवार, थोड़ा लंबा होगा और थोड़ी छोटी होगी रात। इसी तरह आगे धीरे-धीरे, शनै: शनै: गर्मी में फैलते जायेंगे दिन सिकुड़ती रहेगी रात। न सूरज, न धरती डिगेंगे प्रण से मौसम जरुर बदलते रहेंगे बदलते रहेंगे इतिहास। चार साहिबजादे, चालीस मुक्ते माता गुजरी, शहीदों के विश्वास चमकते रहेंगे सदैव आशा बनकर। दुनिया के हलधर एक हों एक हों मजूर किसान, ताकि हो पाये ज़ुल्मों का विनाश शांत हो रूस युक्रेन युद्ध शांत हों इस्राइल हमास!
कैंसर का एक सेल न रहे : डॉ. जसबीर चावला
कैंसर का एक सेल न रहे शरीर के सारे आरबीसी मार दें कहां की बुद्धिमानी है? हमासी सरगना एक न बचे पूरा फिलीस्तीन नेस्तनाबूद कर दें कहां की समझदारी है? जब समझा रहे हैं राष्ट्र संगठन ऐसी जिद तीसरा विश्व युद्ध छेड़ देगी धरती की बर्बादी का ठीकरा जसबीर! तेरे सिर फोड़ा जायेगा तबाही का मुआवजा वसूल किया जाएगा! हलधर का कहा मान लो युद्ध बंद करो! बातचीत से काम लो!
इंसानियत मर चुकी है : डॉ. जसबीर चावला
इंसानियत मर चुकी है मातमी धुन बजाओ ! लाखों मासूम बच्चों की बेरहम हिंसा पर हमासी वैण उठाओ ! कुपोषण ,यौन -शोषण ,कु- शिक्षा पर बनाना नीतियां बाद में राष्ट्र संघ ! पहले फिलिस्तीन के नवजातों को मिसाइल वर्षा से बचाओ! हिटलरी- बारूदी घोड़ों पर लगाम लगाओ! खालसा वीर बालकों ने, इंसानियत ताकि जिंदा रहे, खुद मौत को लगाया गले। उनके लिए वीर धुन बजाओ! सजदे करो! शत-शत नमन उनकी माता- दादियों को उनके लिए स्तुति गीत गाओ! प्रणाम ऐसे पिता को जिसने वार दिये सुत चार ताकि इंसानियत के लिए जान देने वाले पैदा हों हजार। बेथलहम के ही नहीं, पूरी दुनिया के हलधर करबद्ध प्रार्थना कर रहे बस करो , बदले की आग न फैलाओ! ओ पवित्र धरती के वाशिंदों! पृथ्वी की पवित्रता खातिर करुणा, दया, प्रेम की धुन सजाओ!
२०२४ जश्न नहीं, चुनौती है : डॉ. जसबीर चावला
२०२४ जश्न नहीं, चुनौती है जीस्त पूंजी की ही बपौती है। पहले चेतायें , गजा खाली करो जैसे बाहर भगें, बमौती है। ज़िंदा रहें ऐसे हालात नहीं, बच्चों की जान की मनौती है। भूख, प्यास, आंसू, दहशत सांसों पर लद गयी कटौती है। हलधर , भूकंप ने कहर ढाया नव वर्ष मांगता फिरौती है। लौटा दो कुदरत को , उसकी बेटी करुणा बिन शांति , अखौती है।
पहला दिन, नया साल : डॉ. जसबीर चावला
पहला दिन, नया साल ७.६ जापान बदहाल यह कैसा तोहफा? भूमि कंप भूचाल! शहीदी धमाका ईरान ओहावा में जितने मलबे-दबे उससे अधिक करमन में उड़े यह कैसा नया साल? जितना कुदरत करे उससे ज्यादा इंसान करे तबाह! जितना दुश्मन अल्लाह बना उससे ज्यादा इंसानी खुदा। वही दौर आया है हलधर! जब नानक ने तैंकी दरद ना आया? कहा मानवता पर हो रहे ज़ुल्म देख सब के सांझे रब्ब से पूछा। आज वही पूछता है जसबीर ओ मानवता के बने ठेकेदार! कहां गलती कहां सज़ा!
सत्यमेव जयते, चूर-चूर हो जाये तो भी : डॉ. जसबीर चावला
सत्यमेव जयते, चूर-चूर हो जाये तो भी किसी की गारंटी है! झूठ नहीं जीतता, नूर-नूर हो जाये तो भी सबकी भ्रांति है! जोड़-तोड़ की यात्राओं से संकल्प -न्याय सभाओं से विकास -प्रयास बोलियों से सेल्फी -शो-रैलियों से आंकड़ों -विज्ञापनों से, मन की बातों, योग की आंतों आयुर्वेदी सांसों से परीक्षा की रातों से राम -राजनीति नहीं होती राम -राज्य स्थापित करते हैं हलधर के कंधे कर्ज़ -मुक्त कर अर्थ -व्यवस्था सुधरती है कृषक को साधन समृद्ध कर राष्ट्र चलाते हैं प्रजातंत्र -पथ पर धोबी ही क्यूं न हो निर्धन की हाय सुनी जाये समय पर!
दिन और रात में फरक न रहा : डॉ. जसबीर चावला
दिन और रात में फरक न रहा पारा जहां लुढ़का , वहीं पड़ा रहा। तुझे मजबूरियां घेरे ही रहीं मैं तक़दीर को कोसता ही रहा। हलधर फिर बाडर को कूच करते हैं पुराने धरनों का कोई फायदा न रहा। गद्दी राज भूल गए वादे करके ७५० शहीदों का कोई बयां न रहा। चलो मुल्क में कोई तो है सबसे अमीर गरीब किसानों का एक भी निशां न रहा। धरती फरियाद करे, सियासतदानों सुनो! बारूदी जहान रहने के लायक न रहा।
दुनिया की 100 पावरफुल औरतें : डॉ. जसबीर चावला
दुनिया की 100 पावरफुल औरतें मिलकर भी नहीं रुकवा पा रहीं नारी-संहार मर्द हैं, हर देश में बेशर्म करते दुश्मन की मजबूर औरतों का सामूहिक बलात्कार फिर गुप्तांगों पर हिंस्र प्रहार क्षत- विक्षत धड़ प्रतिशोधी वैसा ही दुर्व्यवहार औरतों पर अत्याचारों का अंबार! दुनिया की सारी औरतें मिलकर भी नहीं रुकवा पा रहीं नाबालिग युवतियों की गुमशुदगी कहां लापता हो जातीं 18 साल से छोटीं? अपराधों के आंकड़े बयां करते मजबूर अबला जिंदगियों का कारोबार! अच्छा होता फुटबॉल ,हॉकी या क्रिकेट से बदले उतरते एक दूसरे की क्रूरता से सीखी और -और क्रूरता मौत ही खेल बनी ! यूएनओ ने कोई खेल तुम्हारे लिए नहीं रचा, सोचा । हे दुनिया की 100 पावरफुल औरतों! शामिल हो लो हलधर के धरनो में वही रुकवाएगा बेपती मां- बहनों की अमृत छका, कृपाण सजा! खालसा बन हर महिला करेगी अपना सशक्तिकरण!
संकट के समय एक ही नहीं : डॉ. जसबीर चावला
संकट के समय एक ही नहीं कई बार घुमाए कई नंबर घुमाए बार-बार इतने की बैटरियां फुंक गईं चार्ज खत्म ऊपर से बिजली नहीं। व्हाट्सएप घुप गए ! कोई नहीं आया ना इधर से, ना उधर से । न पाताल फोड़ कर कोई नरसिंह न आकाश से कोई अल्लाह । भी बुझ गए मोबाइल से ! बुद्ध दुखी नहीं, उनके उपदेश दुखी हैं जातक कथाएं दुखी हैं और इनका जो पैरोकार बना है जसबीर चावला , बहुत दुखी है तब से कह रहा है, 10 साल पहले से। सम्यक प्रबंधन को समझो क्या कर रहा ,क्या कह रहा बोधिसत्व हलधर के रूप में।
पानी के बिना कौन : डॉ. जसबीर चावला
पानी के बिना कौन जो तुमको बचायेगा? पानी के सिवा कौन जो तुमको डुबायेगा? हलधर पानी राखिए, बिन पानी सब सून पहाड़ काट आधे किए, दूने भये मानसून। झर-झर-झर पानी बहे, छिदे बड़े पहाड़ पहले जो थे रोकते, अब मिट्टी बने पठार। सारा पानी बह चला, नदी बन पोंग डैम जल्दी फाटक खोलिये, पंजाब भंसे सुख-चैन। डबल ईंजन सरकार जब, पेड़ पहाड़ कटाये जनता भुगते सालों साल, देव कहां बचाये!
सड़क पर पहाड़ औंधा पड़ा है : डॉ. जसबीर चावला
सड़क पर पहाड़ औंधा पड़ा है न, वह अंधा नहीं था कि लाठी कहीं गलत टेक, लड़खड़ा पड़ा हो! न वह दौड़ा था कि ठोकर खा गया अचानक! वह मजबूत कद- काठी का खूबसूरत सुजाखा था। उसकी आंखें फोड़ी गईं छाती में कैई-कैई सूराख किये गये बांहें काट उसे लुंज बनाया गया सब ज़ुल्म करता रहा कार्पोरेटी गब्बर। वह जो फटे बादल अपनी जटाओं में सोख लेता था आज धुंध तक संभाल न पाया! पानी घावों में भर गया दरारों में सड़ने टीसने लगा। दरक उठा पहाड़ गिरा खा पछाड़! कौन उठाये इतनी भारी लाश? जिस सड़क को चौड़ी करने को निर्वस्त्र कर उसके अंग-भंग किये गये आज वही उसे अंधराचोदा गरिया रही! मुल्क ऐसे ही गुलाम बना करते हैं हलधर! शहीद पहाड़ों की थालियों खाओ फिर उनमें छेद भी करते जाओ!
मैंने पहाड़ों को रोते देखा है : डॉ. जसबीर चावला
मैंने पहाड़ों को रोते देखा है जब उनमें घुसा छेदे जाते थे तेज़ ड्रिलों के रफ़्तारी बसूले। चीख-चीख पुकारते थे मुझे ओ बुद्ध के धम्म पबत्तक! अपनी असमर्थता पर मन ही मन आंसू बहाता जार-जार रोता था दिल दर्द से जिस्म छेदे जाते। क्या करूं ? दोस्त! माफ़ करना, यहां डबल इंजिन की सरकार ऊपर से मैं हलधर सरदार, बिंध जाऊंगा मवाली खालिस्तानी बता अभी तो सिर्फ कहने से लाचार बना दिया जाऊंगा कुछ करने से लाचार! कविता, बस कविता यही मेरा औजार! किसान -मजदूर ही उपाय कर सकते करता हूं खबरदार।
चांद का मुंह ही नहीं : डॉ. जसबीर चावला
चांद का मुंह ही नहीं, गर्दन भी टेढ़ी हो चुकी मुक्तिबोध! जिस प्रकार की रफ़्तार से उतरा उसके दक्षिणी ध्रुव सम्राट दुनिया ने नहीं देखा क्या बीती उस पर! पहले मुंह ठोंका था ऋषि गौतम ने धब्बा तो पक्का छपा ही, सीधा भी नहीं हो पाया कभी। अब जैसे उतरे हैं बंजारे पीठ पर रेंड़ मार कर रख दी, गर्दन तक टेढ़ा गई। पहले इंद्र की जालसाजी में फंसा, अब अडाणी की! वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार चला जाता है लोकसभा की बेंच पर उछलने वाला पीले रंग की बदबूभरी गैस छोड़ता इसलिए हलधर! नये साल मन की ख्वामख्याल बातों को छोड़ पकड़ जो हैं बुनियादी सवाल! क्या शराब फैक्ट्रीयों का कचरा धरती के पानियों में घुलना बंद हुआ? किडनी -फेफड़ों का बुरा हाल करती बंद हुई कैंसरी व्यवस्था? बंद हुआ जमीन हथियाऊ कर्ज़ जाल?
बच्चों के लिए किसके मन में दर्द? : डॉ. जसबीर चावला
बच्चों के लिए किसके मन में दर्द? नफरतों की क्रूरता का बोझ उठाते बच्चे। छिप जायें जिसकी ओट में आतंकी लड़ाकू जिस्मों से अपने कवच-सी दीवार बनाते बच्चे। बच्चे प्यारे सबको, बने मोहरे जंग के बच्चे अल्ला, ईशू, जेहोवा आज लहू डूबे खुदा का कत्ल करवाते बच्चे? राम लला! जगो रामल्ला में! प्राण-प्रतिष्ठा अयोध्या में! फिलीस्तीनी बच्चे भी तुम्हारे बच्चे। हलधर की बात अनसुनी कर दो! एमेस्पी रहने दो! इस भटकी मानव जाति के पहले बचाओ बच्चे!
हिंदू जब कमजोर होता है : डॉ. जसबीर चावला
हिंदू जब कमजोर होता है, देश गुलाम होता है हिंदू जब एक नहीं होता, कमजोर होता है। हिंदू जब ब्राह्मण होता है, एक नहीं होता हिंदू जब मनु होता है, ब्राह्मण नहीं होता। हिंदू जब अंधा होता है, मनु नहीं होता हिंदू जब राममय होता है, अंधा नहीं होता। हिंदू जब चुनावी होता है, राममय नहीं होता हिंदू जब हलधर होता है, चुनावी नहीं होता। हिंदू जब पूंजीपिट्ठू होता है, हलधर नहीं होता हिंदू जब हलधर नहीं होता, कमजोर होता है। हिंदू जब कमजोर होता है,देश गुलाम होता है देश जब गुलाम होता है, टुकड़े होता है।
मोहित तेरे रूप पर देव, गंधर्व, पिशाच : डॉ. जसबीर चावला
मोहित तेरे रूप पर देव, गंधर्व, पिशाच प्राण-प्रतिष्ठा कर रहे, धुल जायें सब पाप। धुल जायें सब पाप जब प्रभु राम निहारें दुनिया भर के राम भक्त स्तुति उचारें। विश्वगुरु का अमृतकाल सोत्साह मनायें चौबीस का चुनाव चिन्ह मंदिर अपनायें। राम अयोध्या आ गये पूरन कर बनवास हलधर ऐसे रूप पर मोहित म्लेच्छ पिशाच।
तीसरा दौर है आगे रहिए : डॉ. जसबीर चावला
तीसरा दौर है आगे रहिए पटियाला पेग है, जागे रहिये। राम का रस है, भर- भर पीजे नाम की लूट है, भागे रहिये। जुड़ गए राम, सकल जुड़ जाये मंदिर पास है, रागे रहिये। राष्ट्र में भक्ति रख उठो भाई न्याय की यात्रा में ठागे रहिये। कर्म अपने -अपने हैं, क्या कीजे? हलधर धरने ते लागे रहिये। भारत रामलला गले माला पिरोये फूलों के धागे रहिये।
शहर में कहीं इत्मीनान नहीं : डॉ. जसबीर चावला
शहर में कहीं इत्मीनान नहीं किसी गारंटी का इम्तिहान नहीं। हर बार तपस्या में कमी निकली लाखों रामलला, किसी में जान नहीं। हजार मुश्किलें, सैंकड़ों अड़चनें मिलतीं बंदा किसी बात पर हैरान नहीं। बमों से ठोंक पाउडर कर डाला गजा किसी युद्ध का मैदान नहीं। जसबीर हलधर के साथ चलो मनोज कुमार है वह, प्रान नहीं।
डालियां काट दी गईं कुसुमाते ही : डॉ. जसबीर चावला
डालियां काट दी गईं कुसुमाते ही दर्द की आह उठी ठहठहाते ही। बिजलियां गिरीं, आशियाने राख हुए छातियां छिदीं, खिलखिलाते ही। शहर कब्रिस्तान में तब्दील हुआ अस्पताल लाशघर में, कसमसाते ही। बच्चे बंदी, बंधक, बदहवास बहुत लला दगे प्राण प्रतिष्ठाते ही। हलधर तेरी तो औकात ही क्या रावण नहीं बचा अकेलाते ही।
जी करे तो उधर चले जाना : डॉ. जसबीर चावला
जी करे तो उधर चले जाना कब से सुनसान पड़ा मैखाना। रिंद रिंदों का खून पीते हैं लाल सागर में पड़ा तैराना। क्यूं प्यार का उड़ाया मखौल सदियों छलकता रहा पैमाना। खबरदार! खिलाफ मत बोलो कैसे भर पाओगे भारी जुर्माना? हलधर मीर के सिरहाने बोल बमों के शोर में डूबा पैताना।
तू मेरे दोस्त क्यों बाहर खड़ा है : डॉ. जसबीर चावला
तू मेरे दोस्त क्यों बाहर खड़ा है खुदा इंसान से काफी बड़ा है। जंग कैसे जीत तक जारी रहेगी? हार पर जीत का जो रंग चढ़ा है। शांति के बादलों ! मंडराओ मत! पहले धोखे में धड़ी थी, अब धड़ा है! युद्ध के विराम पर नये मोर्चे खुलेंगे जिस तरह असर मुल्कों पर पड़ा है। हर सियासती दौर में ऐसा हुआ है खास कर हलधर के सर कर बढ़ा है ।
मुझसे कुछ इस कदर नाराज मिले : डॉ. जसबीर चावला
मुझसे कुछ इस कदर नाराज मिले जैसे परसों से कोई आज मिले। शहर के खास चौराहों पर तबला -वीणा शहर के आम चौराहे पर तासाराज मिले। पहले सड़कें समझ में आती थीं अब चक्रवाती उड़न काज मिले। जूतों के रैक-से हवाई पुल रस्ते टोल प्लाजे ऐंठते रंगबाज मिले। आओ, श्री राम के मिल गुण गाओ हलधर को अमृती धोखेबाज मिले।
धुंध कब तक छाई रहेगी? : डॉ. जसबीर चावला
धुंध कब तक छाई रहेगी? रौशनी यूंही भरमाई रहेगी? सुबह कुनमुनाती है धरा पे हवा डालती रजाई रहेगी? हिम्मत कर, पुछ वेख सुरज से किरण कितना शरमाई रहेगी? क्यूं नहीं फैलती खुशहाली? क्यूं कंगाली बरपाई रहेगी? हलधर की हाड़तोड़ मेहनत है फिर क्यों भूखी भरपाई रहेगी?
लाखों लाखों की बात करते हैं : डॉ. जसबीर चावला
लाखों लाखों की बात करते हैं हजारों करोड़ों की बात करते हैं दसियों अरबों की बात करते हैं मुट्ठी भर खरबों की बात करते हैं ऊंगली भर दुनिया की बात करते हैं अस्सी करोड़ मुफ्त राशन की बात करते हैं हलधर एमेस्पी की बात करते हैं!
आदमी मौत से भी टकराता है : डॉ. जसबीर चावला
आदमी मौत से भी टकराता है पर बेरोज़गारी से घबराता है। इजराइल ले गया यूपी से गजा हमास शरणार्थी दगवाता है। एक चेहरा ही आगे रहता है हर तनाव पर जितवाता है। परीक्षा बार- बार देता है शरीर मन की बातों से यूं लुभवाता है। हलधर खुद पर यकीन रखता है पूरी वसुधा कुटुंब बनवाता है। संकल्प लेके बढ़ा जिस यात्रा परचम फ्रांस में लहराता है!
मौसम जो खराब हुआ, खराब ही रहा : डॉ. जसबीर चावला
मौसम जो खराब हुआ, खराब ही रहा उधार नकद जो भी , हिसाब ही रहा। पढ़ न पाये हाथ की सीधी लकीरें भी नज़रों जो बसा , महज़ ख्वाब ही रहा। पूजा , डरते चाहा ,इतना ही बोलना बरसों गुजर गये, चुप जवाब ही रहा। सब सच -सच कहा, मौसम विभाग ने हलधर मरा जीते, खानाखराब ही रहा आंखों के सामने औरतों की पत लुटी दौरे - नफरत खून का हिसाब ही रहा! तोड़ो कूकी मैती सियासत की शिलायें अदब हर इंसान का आदाब ही रहा।
और जो हो, राष्ट्र द्रोही हो ही नहीं सकता : डॉ. जसबीर चावला
और जो हो, राष्ट्र द्रोही हो ही नहीं सकता। पहली बात न वह सरदार, न उसने अमृत छका दूसरी बात, सहजधारी सिख भी नहीं, तीसरी बात न वह हलधर, न मजूर खालिस्तान का खा नहीं बोला। मुकदमा कौन चलाएगा उस पर? चाहे संविधान के परखच्चे उड़ा दे भारत माता की धज्जियां सड़ा दे! राष्ट्रीय सेवक है, द्रोही नहीं। ब्राह्मण है, तिस पर रामलला-भक्त ऊपर से सदस्य रायल गोदी सर्विस का सात खून माफ!
मन की कहानियां हैं : डॉ. जसबीर चावला
मन की कहानियां हैं, मन ने सुनानियां हैं मन ने बुननीं हैं, मन ने बनानियां हैं। कोई पूछे मन से क्यूं बे! किन्नी जनाणियां हैं? तू कब से राजा भोज? तेरी कितनी रानियां हैं? कब से मुसलमान? कितनी तलाकनियां हैं? तू राग में फंसा है, किस्मों की रागिनियां हैं! हलधर -सा रख ले जीवन, मरके जीवानियां हैं। किरदार भगत सिंह की, लाखों दीवानियां हैं।
अब फिर वही मौसम रहेगा : डॉ. जसबीर चावला
अब फिर वही मौसम रहेगा? घना कोहरा राम-राम कहेगा। फिर जंचेगी मछुए की लौंडी महाभारत व्यास लिखेगा! गहरी होगी धुंध की खाई राजमार्ग कोहराम मचेगा। मर्यादा प्रपंच वरेगी दूल्हा भ्रष्टाचार सजेगा। हिंद की चादर की नीलामी भारतवंशी आम करेगा। हलधर मौसम की चपेट में धरने दे दे धैर्य धरेगा!
खाली की गारंटी : डॉ. जसबीर चावला
खाली की गारंटी दी जा सकती है किसी की भरी का क्या पता? किस तरह का कितना कचरा हो! भरे घड़े का भी क्या पता पुण्य हो कि पाप हो! इसलिए हलधर!ऐलानो! तुम स्वयं एम एस पी की गारंटी दो! वही देश की अमृत संपदा , वही समृद्धि की जड़ है। पूंजी को सैंकड़ों जीभों हजार गुना मुनाफा चाटने की गारंटी दोगे तो लाखों नौकरियां नहीं करोड़ों परिवार उजड़ जायेंगे! गारंटी किसी घराने या चंद धन्ना सेठों की जागीर नहीं होती । प्रजातंत्र की जननी को आत्मसेवक नहीं भूमि और गो सेवक चाहिए, कमीशनखोर नहीं, भ्रष्टखोर चाहिए। तुम पर टिकी हैं निगाहें भारत माता की। हलधर! संग लो खेतिहर मजूर, मेहनतकश सारे हिंदुस्तान के। निकलो धरने -यात्रा पर अक्खा इंडिया बतलाओ। धरने से जुड़ते धरने , देश व्यापी इक लहर चलाओ!
वास्तों से वास्ता छूट गया : डॉ. जसबीर चावला
वास्तों से वास्ता छूट गया मौसम कुदरत से रूठ गया। मोबाइल तक धुंध पसर गई अंधेरा किरणहार लूट गया। तक़दीर लिखा कुछ न मिला उल्टे, तदबीर बना टूट गया। नये नये नारे गढ़े, , चलते बने आखरी वाला फफ्फे कूट गया। पंद्रह लाखी गारंटी सभी जानते मुसीबतों का पहाड़ फूट गया। हलधर को मेहनत पर भरोसा है सत्याग्रह के सामने झूट गया।
राम ने रावण का उद्धार किया : डॉ. जसबीर चावला
राम ने रावण का उद्धार किया कृष्ण ने कंश का बेड़ा पार किया कालचक्र घूम गया है, द्वापर त्रेता होता सतयुग आ रहा! राम की प्राण-प्रतिष्ठा भई अब कृष्ण की बारी धर्म सनातन चलता जा रहा! बस, फिर कोई हूण न आये अब्दाली चंगेज न धाये कोई मुग़ल फिरंगी न ललचाये । नहीं, आपस में लड़ मरेंगे अपने अपने के चक्कर में भाइयों से विश्वासघात करेंगे , हम जीयेंगे किसी तरह, चाटुकार रहेंगे नीचों पिछड़ों का बलिदान करेंगे नतीजतन सारे गुलाम बनेंगे। चार हजार जमीन हड़प कर बैठा पड़ोसी घात लगाए, पंडित भविष्य पुराण उठाए यही लिखा है---- पीत जाति का शासन होगा भारत भर में! हलधर! ले जा अपनी धरती जहां उठाकर ले जा सकता! मातृभूमि पर अपना कब्जा धरनों से धरवा न सकता! पूंजी का जो जाल बिछा है अंध भक्ति कटवा न सकता!
एक बार बनाओगे : डॉ. जसबीर चावला
एक बार बनाओगे, फिर उसे तोड़ोगे प्रजा की बांहों को कितना मरोड़ोगे? अफ़ज़ली साजिशें, बघनखी चमत्कार बेदिली दोस्ती तवारीखी दुश्मनी में मोड़ोगे? भुगत रहे बच्चे, जिंदगी भर भुगतेंगे! जकाती दरियादिली यतीमों से जोड़ोगे? देख लो इंसान की करतूतें आज धरती पर जसबीर, हैवान को भी शर्मशार छोड़ोगे? गांव शहर बंजर पूंजीलाल कर रहे हलधर के खेत ड्रोनों से कोड़ोगे?
पेड़ों में ही छांव होती है : डॉ. जसबीर चावला
पेड़ों में ही छांव होती है उसका कोई अतिरिक्त स्थान नहीं होता। इंसानों में ही खुदा बसता है उसका कोई अलग से मचान नहीं होता। धर्मस्थल बनाये जाते हैं कि सत्संगत हो एक पंगत में लंगर छकने से नुकसान नहीं होता। तू उसकी नहीं, अपनी शक्ल से मिला देख पत्थर से ज्यादा, भगवान हाड़-मांस का होता। एक को तबाह कर देने से दूजा महान नहीं होता स्वार्थ के लिए दिया -लिया कुछ , सौदा होता दाता की गरिमा च प्राप्ति का सम्मान नहीं होता। हलधर! तुम्हारी सारी फसलें एम्एसपी पर खरीद लें तब भी, देश को कोई घाटा - नुक्सान नहीं होता।
चौतरफा धुंध न सही : डॉ. जसबीर चावला
चौतरफा धुंध न सही ,धुंधला तो है घर घर साफ जल न सही ,जंगला तो है। लोगों ने कब चाही थी पूरी आजादी जय जय बोलने के लिए रामलला तो है। पितरों की आत्माओं के लिए हलवा रुपैया आज की पीढ़ी के लिए मिसाइल असला तो है! नरमे में सुन्ढी बढ़ा रहीं नकली दवाएं हलधर को मिटाने सियासी जलजला तो है! जसबीर से क्यों पूछते हो बदहाली की वजह जिस सरसों छुड़ाते हो, उसी में भूत पला है।
नियति पता नहीं कहां देख रही है : डॉ. जसबीर चावला
नियति पता नहीं कहां देख रही है पटरी पर चक्कों की रगड़ देख रही है। एक आंख में जो टीर है उसका पता नहीं वह किस तरफ गोदी की नज़र देख रही है। फूल हैं कि बगुले हैं ,मछियां बाखबर नहीं हिचकोले खाती राजधानी धुंध देख रही है। कब से उदास राहें हैं शबरी की आंख में बनवास से राम लौट गए, देख रही है। हलधर बड़ी उम्मीद थी कोई राहबर मिले भारत की भूमि भ्रष्टता का शिखर देख रही है।
सत्ता फूट का फायदा उठायेगी : डॉ. जसबीर चावला
सत्ता फूट का फायदा उठायेगी छेद हो तो उसमें पलीता लगायेगी। ज्यादा देश-दूश का नाटक न कीजिए पूंजी राष्ट्र भक्ति को ठेंगा दिखायेगी। हवाओं में तीन रंगी श्री राम का झंडा अमृत भिंगा नक्सली लाशें उठायेगी। वोटों पे चोट होगी तो ही बनेगी बात मशीन को मत दान कैसे सिखायेगी? हलधर का अन्न-धन जाये भांड़ में पूंजी री इज्जत सर पर बिठायेगी।
जनता क्या है जिसे गारंटी दे रहे हैं : डॉ. जसबीर चावला
जनता क्या है जिसे गारंटी दे रहे हैं ग्राहक है? और वे नेता दुकानदार? लोकसभा का चुनाव है या व्यापार? गारंटी देनी है तो हलधर को दें एमेस्पी की जो संपदा उपजाता है, गारंटी देनी है तो मजदूर को दें साल भर काम की जो संपदा संभालता है, वरना नोट क्या बच्चे देते हैं? कैसे पूंजीपति का धन बढ़ता जाता है? क्यों मेहनतकश मजबूर खुदकुशी पर उतर आता है? गारंटी इस बात की दो कि नकली बीज और नकली कीटनाशक न बिकेंगे गारंटी इस बात की दो कि उर्बरक के दाम न बढ़ेंगे, गारंटी दो कि डीजल उसी भाव मिलेगा, गारंटी दो कि फसल मौसम की मार खाते मुआवजा मिलेगा। गारंटी दो कि सारी उम्र अन्न उगाने में समर्पित हलधर पेंशन पायेगा । लोक तंत्र में उसे अपने मन की बात तक करना मुहाल है पीछे से कुचला जाता सामने से लाठियां खाता ऊपर से ड्रोन बम बरसाता! हरियाणा मैती, पंजाब कूकी बन जाता! ऐसा सुशासन अमृत काल में क्या दर्शाता? हलधर अपराधी , राज्य उसकी जेलें बनवाता! धन्य हो चाणक्य! राम राज्य इसी तरह ले आओगे किसानों की लाशों पर विश्वगुरु कहलाओगे!
लोकतंत्र की हत्या : डॉ. जसबीर चावला
लोकतंत्र की हत्या तो कब की कर चुके अब उसको तुम्हारे सर मढ़ना है ! दस परतों की किलाबंदी तोड़ घुसने, एक ना सुनी हमारी अपनी जान की परवाह नहीं की की दिल्ली कूच की तैयारी । शुभकरमन को तभी न गोली मारी! ड्रोन पतंगों से गिराने की धमकी दी तब न रात सोते हलधर पर हुई आंसूगोलों की बमबारी! संसद खतरे में आई है जब कि हलधर सत्याग्रही ! देश की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण अतः, अब चुनाव खारिज ! देश का पहला नागरिक दलित आम आदमी दे रहा संविधान बचाने की जिम्मेदारी जिसके हाथ सिंहोल, वही सिंहासन का अधिकारी। तो चुनाव लेकर क्या करेगी जनता बेचारी?
चुनाव इस बार रद्द हो जायेंगे : डॉ. जसबीर चावला
चुनाव इस बार रद्द हो जायेंगे इंडिया वाले पंजाब को गरियायेंगे। हलधर ने लोकतंत्र बचाने को जान दी मीडिया वाले उसीको हत्यारा बतायेंगे। पंजाब के टुकड़ों में एक हरियाणा बना टुकड़ों को अब आपस में लड़वायेंगे। सड़कें सरकार ने खोदीं, कीलें बिछाईं कहते हैं, हलधर दिल्ली नहीं जायेंगे। ट्रैक्टर सामना पतंगों से कैसे कर लेंगे? आंसू गैस के गोले ड्रोन बरसायेंगे। दुश्मन की सीमा में घुस कर मारेंगे पंजाब के हलधर सोये मर जायेंगे।
तभी चुपके से चला आया हूं : डॉ. जसबीर चावला
तभी चुपके से चला आया हूं गया वक्त नहीं, उसका साया हूं। खंडहर अवशेषों में खोजते नाहक आंख के सामने तस्वीर खींच लाया हूं। फुंक गया शंख चुनावी महाभारत का कहें धर्मयुद्ध गो ' अधर्मी माया हूं। मामेकं शरणं व्रज, चाहते अगर जीना हलधर! पूंजी -सत्ता का भरमाया हूं। पहले -सी मुहब्बत शुभकरन! न मांग छाती दाग दूंगा, भाई, पर पराया हूं।
तू अन्नदाता नहीं, अन्न -उत्पादक है हलधर : डॉ. जसबीर चावला
तू अन्नदाता नहीं, अन्न -उत्पादक है हलधर! समझा? अन्नदाता तो मोदी है अस्सी करोड़ से पूछ लो! अगले पांच साल और मुफ्त की गारंटी है! उसके बाद आत्म -निर्भर भारत थैला लेकर चल देगा! तुम दिल्ली घुसने को जान दे रहे! हालत देखो पहले। तुम्हारी पराली मीडिया ढेर यहां जला चुका अब बंदे तुम्हें जला देंगे! पेगासस बता रहा। सिख बंदियों को तो छोड़ते नहीं सजा पूरी कर चुके , तो भी तुम्हें कौन छोड़ेगा, एक बार तिहाड़ घुसे तो? लंगर लगाना है तो हमास हेतु लगाओ बड़े अन्नदाता बनते हो! वहां भूखे भूने जा रहे हजारों बच्चे पाउडर कर दिये! यहां पहले साढ़े सात सौ और अब नौ बस, तो बताओ लोकतंत्र यहां मरा है कि वहां? यहां हम तीसरी दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था खड़ी कर रहे साथ दुनिया का सबसे अमीर आदमी घड़ रहे। और तुम ट्राली छाप खालिस्तानी! यह तो सिख गुरूओं की वजह से छोड़ रहे नहीं, तुम्हारी वखरी पहचान यहीं बाडर पर खोद देते। बंदा बहादुर घसीट दिल्ली लाया गया याद करो , आठ सौ की शहीदी देने। तुम अच्छे खासे फार्च्यूनर दौड़ाते ऐश करो! मुंदरा पोर्ट की ड्रग्स बेच चिट्टादाता कहला़ओ! मरना जरूरी है तुमने हलधर! साम दाम दण्ड भेद करो कुछ चुनावी मशीनों का चक्कर चलाओ! वोट पे चोट करो हो एकजुट। जिद छोड़ो दिल्ली की। जिस्मानी ताकत की बजाय दिमागी ताकत आजमाओ!
जो झूठ सीधे नहीं बोल सकते : डॉ. जसबीर चावला
जो झूठ सीधे नहीं बोल सकते आंकड़ों में बोल दो अगला गणित में उलझ जायेगा तुम अगली झूठ की पोटली खोल दो! नेतागिरी एक कौशल है बोल बहकाने का, मत पड़वाने का। बाकी, आंकड़ों का सच तुम्हें पता है एक , दो किधर से शुरू करते हो! इधर से पहला, उधर से आखिरी। दुगुनी आय एक राय है धोखा नहीं , एक यदि है प्रस्ताव है ऐसा ऐसा करो ......तो। पंद्रह लाख एक राशि है जमा हो जाए सीधे अगर खाता हो! एक यदि है, धोखा नहीं है खाता खुलवाने को विज्ञापन है। भारत को डिजिटल बना रहा है प्रधानमंत्री अतः, उसका फोटो जा रहा है! वह सेवा दे रहा है, राष्ट्र का भरपूर अर्थ तो हलधर उपजा रहा है श्रमिक आकार दे रहा है पूंजीपति शेयर खा रहा है! फिर एक आर्थिकी यह भी है कि कितना बचा यह न होता क्योंकि यदि 'मैं ' न होता तो वह बचा , प्रजा को खर्च करना पड़ता! निराधार अटकलों को आंकड़े जगह देते हैं दर हक़ीक़त नहीं, संभावनाएं जताते हैं चैनल बार-बार दुहराते हैं कानों का सच बन जाते हैं। इस फरेब को समझो हलधर! हर मुद्दे पर बातचीत को तैयार हैं (यह खबर जानी है,) पर रास्ता देने में धौंसियाते हैं। आंसू गैस, लाठी, शूट, सड़कें खोद बैरीकेड, धाराएं केई, हड़काते खूनी खेल करवाते हैं। नेट जैम (खबर नहीं जानी है)। लोकतंत्र की हत्या है? यही तो तरीका है!
मन रे! और कितनी बातें बनायेगा : डॉ. जसबीर चावला
मन रे! और कितनी बातें बनायेगा? कितने साल धंधे - चंदे चलायेगा? नित नई नई योजनाएं बनाता है और कितने आंकड़ों में उलझाएगा? पूरे भारत का ही शिलान्यास कर रोज़ दौरों का भारी खर्च उठाएगा? ले, मैं खरीद देता हूं गुलामी का बौंड भ्रष्टाचार से करप्शन कैसे मिटायेगा? झोला लेकर चल देने की बात करता है इतने कर्ज़ का बोझ हलधर उठायेगा?
शीशा जसबीर को शायर नहीं कहता : डॉ. जसबीर चावला
शीशा जसबीर को शायर नहीं कहता कुत्ता जसबीर को कायर नहीं कहता। यहां जिस आग में जल रहा है इन्सान विज्ञान पास से भी फायर नहीं कहता। धूप आती है सेहत की नेमत लेकर खुदा रहमतों को रिटायर नहीं कहता। यह सुगबुगाहट है बलवों का पूर्वाभास यूं ही जल को मगर डायर नहीं कहता। हलधर तेरे हालात पर रोता है इंद्रदेव पीछे से कुचल देंगे, टायर नहीं कहता। फिकर कर, उन्हीं को चुन देगी मशीन फेंकू को अवाम लायर नहीं कहता।
कितने शहर कितने गांव आये : डॉ. जसबीर चावला
कितने शहर कितने गांव आये मंज़िले मकसूद न नज़र आये। गो ' तारीफ सुनी थी अफसानों में जब दिखे मायूस ही नज़र आये। पुख्ता थे सुरक्षा के इंतजाम ऐपर हुआ क्या? सर डरे सहमे नज़र आये। हलधर की आंखों में घुसेड़े छर्रे खट्टर को गजा हमास नज़र आये। सिख बंदियों की कौन परवाह करे? जत्थेदार खुद ही लाचार नज़र आये।
जुमलों को तकिया कलाम बना दिया : डॉ. जसबीर चावला
जुमलों को तकिया कलाम बना दिया लोकतंत्र को नंगा हमाम बना दिया। आंकड़ों में दर्द कब बयान हो सकता शौचालयों को मर्जे आराम बना दिया! नारों की खेती पर संसद जुगाड़ दी अन्न की खेती को गुलाम बना दिया। छप्पन की छातियों से भी आगे निकल सजदे गिरे इन्सां को सेराम बना दिया। वायरल जो हो गई नकली नहीं थी यार हलधर!शहीदी को सरेआम बना दिया
गब्बर के अंदाज में गारंटी देता है : डॉ. जसबीर चावला
गब्बर के अंदाज में गारंटी देता है गारंटी पूरी होने की गारंटी देता है। झोला ले चल देने की धमकी देता है योजना जानकारी की गारंटी देता है। हर मुश्किल की छुट्टी मुश्किल से पहले आधी छुट्टी पूरी शनि की ,गारंटी देता है जुमलों की सच्चाई की गारंटी देता है दावों वादों नारों की गारंटी देता है। हलधर! दांव लगाओ छाती धरने दे घुस न पाओ दिल्ली, गारंटी देता है।
जुबां क्या करे, आंखों से बयां होती है : डॉ. जसबीर चावला
जुबां क्या करे, आंखों से बयां होती है दर्दे रवायत खूं में रवां होती है। कोई दूर परदेस जा बसे तो क्या? इश्क वह चीज है , हरसूं नुमां होती है। ऐ सापा! सैलानियों से क्या कहता है? बुद्ध की देशना हर देश बयां होती है। धुंध पहाड़ों में और हवा में नरमी याद भूली- सी रग में अयां होती है। हलधर तेरी आंख धंसे गोलियों के छर्रे देख ले लोकशाही कैसे जवां होती है।
एक इसे हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं : डॉ. जसबीर चावला
एक इसे हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं, एक इसे बौद्ध द्वीप बनाना चाहते हैं, एक इस्लामिक स्टेट बनाना चाहते हैं , एक तुम्हीं हो इसे खालिस्तान बनाना नहीं चाहते! बस, खालिस्तान चाहते हो! न तो अपने खालसा का मतलब बताना चाहते हो न "आकी रहे न कोय " सिखाना चाहते हो। बस, हलधर रहकर गोली खाना चाहते हो या धोखेबाजों के चंगुल में छर्रे खाकर दम तोड़ना चाहते हो। देश दुनिया के मजदूर किसान दुःखी कर्ज़े में हैं पर कीलें उगाने वाली सत्ता से टकराने का दुस्साहस नहीं करते। तुम " निश्चै कर अपनी जीत करौं" के दम जूझ मरना चाहते हो! तो हलधर! मेरे प्यारे! लोकतंत्र के हत्यारों की चाल क्यों नहीं भांपते ? अगल बगल के राज्यों से हमले करवा उकसायेंगे, कूकी बना देंगे! ड्रोन गिराने वाली तुम्हारी पतंगों को हमासी सुरंगें बतायेंगे ट्रैक्टरों को पैटन टैंक, हूती की फंडिंग दिखायेंगे कोई भरोसा नहीं, तुम्हारे टूल किट माओवादियों के साथ मिलायेंगे! सावधान! फलों से सावधान! जिनके हाथ है कमान वे असली हुक्मरान न मुग़ल, न अंग्रेज़ , चाणक्य विद्वान! वसुधैव कुटुंबकम् का नारा और सिख नौजवानों का घान।
बीच का रास्ता सा निकल आए : डॉ. जसबीर चावला
बीच का रास्ता सा निकल आए काश, निरीहों की जान बच जाए। निकले सूरज तो सुबह को देखें दुनिया आशाओं में फिर रच जाए। क्या हुआ हम जो मिट गये जग से अंधेरा धूप न खुरच जाए । सामना इस बार टेनीबाप से है डौन सामने से न कुचल जाए । गर्व किस बात का करें हलधर खुद को इंसां अगर न कह पाए।
भारत भर यात्रायें हो रहीं : डॉ. जसबीर चावला
भारत भर यात्रायें हो रहीं विकसित, संकल्प, न्याय, स्वराज हलधर जहां कल थे, वहीं आज संभु खनौरी गिरी गाज उल्टा कहलाये धरनेबाज। बौंड लेनेवाले करें राज मेहनत करने वाले धोखेबाज। माता बिलख रही लुटी लाज भारत बेटा कर रहा उलटे काज।
बिकें पखेरू पिंजरे बिकते : डॉ. जसबीर चावला
बिकें पखेरू पिंजरे बिकते धंधे में दोनों नहीं टिकते। बिकें विधायक बिकें मंत्री जनता से दोनों नहीं पिटते। दल बदलू दल पलटू बिकते सत्ता के चरणों में दिखते। सच भी बिकते झूठ भी बिकते ख़बरों के व्यापारी घिसते। मत बिकते मतदाता बिकते लोकतंत्र में जाति रिश्ते। हलधर जान गंवा नहीं बिकते धरनों की चक्की में पिसते।
पंछी पिंजरे समेत फरार है : डॉ. जसबीर चावला
पंछी पिंजरे समेत फरार है आंकड़ा चार सौ के पार है। चुनावी बौंड के पीछे न पड़ो अस्सी करोड़ का आधार है। मोदी है तो मुमकिन है हर मुश्किल असार है। हर नारी का भविष्य उज्जवल शौचालय है तो संसार है। विदेशों से कालाधन आया श्री राम का चमत्कार है। हलधर फ़ालतू धरने धरता स्विट्जरलैंड से व्यापार है।
हवाओं को मौका मिला है : डॉ. जसबीर चावला
हवाओं को मौका मिला है तेज़ चलने का दल बदले तो कईयों ने ढंग किया बदलने का। राजनीति वादों में बंटी गारंटियों में जा घुसी कोरे दावों टिकी, जाल फेंकी, तख्त पलटने का। घर वापसी हुई कि जगह बदली कि खतरा टला प्रजातंत्र में प्रजा पिसती, चलता खेल छीन झपटने का। हलधर, एमेस्पी का शोर मचाने से अब फायदा ही क्या वक्त आ गया सिर पर, हत्यारों से खूब निपटने का। हवायें बन रहीं, नई सिरजी जा रहीं, चुनावी माहौल में लोकतंत्र की जननी में उन्माद विपक्ष कुचलने का।
आपकी आस्था चुनावी चश्मे जांचने लगे हैं : डॉ. जसबीर चावला
आपकी आस्था चुनावी चश्मे जांचने लगे हैं गर्केदरिया द्वारका सियासत बांचने लगे हैं। बहुत सी रामलीलायें करने वाले अदाकार सुदामा का अभिनय करते भूंजा फांकने लगे हैं। थैला ले चल देने वाले जुमले पुनः जी उठे लोग अमृत काल की रणभेरी सुन कांपने लगे हैं। चुनावी बौंडों का लेन-देन अकेले स्टेट बैंक में नहीं हुआ टूटे झूले, गिरे पुल, मृतकों के भूत नाचने लगे हैं। हलधर की नस्ल फसल, याददाश्त पर पाला पड़ा पीछे से कुचल आगे निकल फिर पीछे झांकने लगे हैं।
चंद लकीरों के सिवा अपने हाथ में क्या है : डॉ. जसबीर चावला
चंद लकीरों के सिवा अपने हाथ में क्या है एक नुक्ता तर्जनी पर पांच सालों बाद लगा है। हमने अपनी ही नहीं, देश की किस्मत बदलनी है चुनाव धंधा है, नेता व्यापारी, हमें सब पता है। फिर भी हम किसानों को उनका हक दिलवायेंगे सत्ता बदलती है बमुश्किल, मतदान इक जरिया है। सजा काट चुके सिख जेलों में अब तक बंद क्यों हैं यह कहां का न्याय, धार्मिक आज़ादी है कि दासता है सिख हलधर मर जाता धरनों में शांत रह दुनिया मुट्ठी में कर लेता जो , पूंजी का दबदबा है
सबकी जरूरतों भर सब कुछ है : डॉ. जसबीर चावला
सबकी जरूरतों भर सब कुछ है अमीरों को लालच सचमुच है। दुनिया को मुठ्ठी में करने वाला इंसान वोटर के तलवे चाटने को इच्छुक है। तपस्या जिसने की ,कमी कह रहा धांधली होती रही , भारी गुपचुप है। कोई चुनाव जीते अथवा कोई हारे गरीब जनता के दिल में धुक-धुक है। भारत मां पूछ रही विश्व गुरु से हलधर सपूत भून डाले क्या तुक है
फिर तुम्हें सावधान करता हूं : डॉ. जसबीर चावला
फिर तुम्हें सावधान करता हूं हलधर फिर हुंकारो मत। ये उकसायेंगे, तुम इनकी चालबाजियां समझो, प्लीज़। उस्की देंगे कभी चिल्ला कर, कभी कानों में फुसफुसा कर। टीवी पर, रेडियो पर, अखबारों में मीडिया है इनके पास, दिमाग भी। भड़कायेंगे कह कह, रह रह वखवादी हैं, अतवादी हैं, खालिस्तानी हैं बाहरी फंड है, वगैरह वगैरा उनका एजेंडा है तुम्हें बाहर करना क्योंकि लूट में तुम्हीं सबसे बड़ी रुकावट हो। तुम खालसा पंथ की न्यारी फौज और किसी से डर नहीं इनको। सबको इनके फार्मूले शूद्र वंचित गुलाम बना देंगे।
काली मुश्किल में लोग फंसे हैं : डॉ. जसबीर चावला
काली मुश्किल में लोग फंसे हैं इधर नाग, उधर सांप डंसे हैं। भुखमरी को ऐसा हथियार बनाया ज़िंदगी मुआये तो मौतें हंसे हैं। उग्गरते खब्बी, सज्जी से ठोंकते हमदर्दी का क़ातिल तेल झंसे हैं। या खुदा हमास को बंधक बना दे इजराइल की जेलों में खूब ठंसे हैं। हलधर फसल का दाम न लगा नहर में खुदकुशी की लाशें भंसे हैं।
हलधर, सियासत के नये दांव सीख लो! : डॉ. जसबीर चावला
हलधर, सियासत के नये दांव सीख लो! मांग मनवाने का ढब धरने लगाना न रहा। कल जो मन की बातों से घुसा बैठा था आज उसका कोई अफ़साना न रहा? किस को फुर्सत खतों को पढ़ने की नयी दुनिया में चलन पुराना न रहा। आज घर वापसी तो कल जेल वापसी वक्त का कोई ठौर ठिकाना न रहा। इंतजार करते करते फोन डिस्चार्ज हुआ मिलने बिछुड़ने का खास बहाना न रहा। शायरी बंद करो, दूसरी विधा ढूंढ़ो रूठने मनाने का जमाना न रहा।
जिम्मेदार जब भूलेंगे जिम्मेदारी : डॉ. जसबीर चावला
जिम्मेदार जब भूलेंगे जिम्मेदारी भास्कर लिखेगा विज्ञापन था? भरे चौराहे! तब धंधा शुरू किया था सिटी ब्यूटीफुल में कलम भी बनाई थी आकर्षक निब सहित। समय के साथ पुरानी निब का गोल छेद बड़ा होता गया स्याही टिप् तक पहुंच ही न पाती, बह जाती तिजोरी तरफ बेधड़क सच क्या, जमीनी तक न लिखा गया हलधर घुस न पाये केंद्र शासित चंडीगढ़ में जो बसा था उनकी ही जमीनों पर उनके गांव उजाड़ कर मिल न पाये अपने ही चुने मंत्रियों से दिल्ली तो दूर, अपनी ही राजधानी घुस न पाये, हलधर किसान मजदूर। पुलिस क्या कुछ करती रही उनके साथ उसी चौराहे! जिम्मेदार भूले रहे अपनी जिम्मेदारी लोकतंत्र की जननी का चीरहरण करते रहे बलात्कारी।
केजरीवाल को जेल हुई : डॉ. जसबीर चावला
केजरीवाल को जेल हुई तो नसीहत दी अमरीका ने किसी हिंदू ने खालिस्तानी न कहा क्योंकि उसके सिर पगड़ी नहीं, वह असरदार है, सरदार नहीं। हलधर सिंघू खनौरी टिकरी के खालिस्तानी, अमरीका समर्थित? मज़ाक उड़ायेंगे पहले फिर गोली से उड़ायेंगे ड्रोन लगायेंगे, पंजाब में घुस कर मारेंगे। खालिस्तान है कहां? उनसे पूछो कहां देंगे? यह पूछने का हक मेमने को नहीं दिया भेड़िए ने। तुम नहीं मांग रहे तो तुम्हारे बाप ने मांगा था गाली तुमने नहीं तो तुम्हारे बाप ने दी होगी, तर्ज़ वही भेड़िए के आगे मेमना है किसान! बस उसे मेमनिस्तान में घुसने न दो! वोट पे चोट करो! जय संविधान!
दादी जो रटाती थी हाथी घोड़ा पालकी : डॉ. जसबीर चावला
दादी जो रटाती थी हाथी घोड़ा पालकी वही रटा रहा प्रवीण नागरिकों को जय कन्हैया लाल की। फिर तालियां बजाता हार्ट के लिए दोनों बाहें गर्दन से ऊपर ले जा यादते नाचती अंतड़ियां बाबा की। जीवन पार्क की सुबह-शाम में दाखिल हो जाता गर्मी के दिनों पाला नहीं छोड़ता बूढ़ों को रजाई के अंदर घुसकर मारता। दिलों के अंदर ही अंदर होने वाली बरसातों को डरा सुखा डालते हैं ये बेमतलब के हमास इस्राइल, और हलधर को गोलियों भूनने वाले तानाशाह।
सफेद चटनी -से फैल गये हैं बादल : डॉ. जसबीर चावला
सफेद चटनी -से फैल गये हैं बादल नीले मोमजामे पर शहतूत बेचारों की चटनी बन गई है पहियों -बूटों तल। आकाश देखता, फिर जमीन देखता हलधर वृक्ष देवता नये कच्चे हरे असंख्य पत्तों के परिधान में टपकाता काले-काले कीड़ों -से मीठे फल। ओ रे जीवन! तू किस विषाद में? मुद्दे सारे गायब , चुनाव प्रगट हुआ जब जीत की चिंता, उद्योग में सब! धर्म-अधर्म क्या होते , आरंभ महाभारत छल-कपट,झूठ-सच, पाप-पुण्य कुल जायज़। अंधा युग नहीं, धंधा युग द्वारकाधीश नये अवतार में अमृत काल के महानायक!
सिख बंदी नहीं हैं, बंधक हैं : डॉ. जसबीर चावला
सिख बंदी नहीं हैं, बंधक हैं जैसे इस्राइली बंधक हैं, फिलीस्तीनी बंदी। बंदी सजा काट चुकते हैं, बंधक नहीं बंदियों को रिहा किया जाता है सज़ा खत्म होते बंधकों को नहीं। बंधक कब रिहा होते हैं? जब शर्तें होती हैं---- तुम हमारा वह करो, हम तुम्हारा यह कर देंगे या फिर हम तुम्हारा यह करेंगे, तुम हमारा वह करो! सरकार ने सिख बंधक बनाये थे, बंदी नहीं! इनको छुड़ाना हो तो चार सौ पार कराओ वोट पे चोट करोगे हलधर! तो रिहाई भूल जाओ!
मत कहो कि कुहरा ज्यादा है : डॉ. जसबीर चावला
मत कहो कि कुहरा ज्यादा है राम की, रथ की मर्यादा है। धुंध में बालिका का शील-वध व्यास के बीज का इरादा है। घाव जो वक्त भर नहीं पाया चुनाव खोलने पर आमादा है। मुहताज जीने का घोटाला है यही सियासत का धर्मादा है। हलधर नारों को वादे न समझ करनी कथनी से अलाहदा है। चाल फर्जी की टेढ़ी -मेढ़ी है जिसकी सीधी वही प्यादा है। आदमी अमलों से बड़ा होता है ग्रंथ के जापों का क्या फायदा है।
इससे पहले कभी कुहरा इतना घना न था : डॉ. जसबीर चावला
इससे पहले कभी कुहरा इतना घना न था फूलों के हाथ में खंजर कभी तना न था। सुबह से रात तक खटता है जो खलासी-सा गरीब था पहले, पर कुत्ता कभी बना न था। शुकर कि हाथ जो आई सो बेवफाई है कि उनका हाथ सिवा खून के सना न था। क्यूं हर मोड़ पर पहुंच कर तड़पती है औरत गो ' किसी राह पर चलना उसे मना न था। खौफ इस दौर का जिससे गुजरते हो जसबीर किसी दहलीज़ औ' दीवार ने जना न था। मिटा दें हस्ती ही एक सेल मिटाने के लिए इससे पहले कभी हलधर ऐसा ठना न था।
अपनी ही हांकता औरों की नहीं सुनता : डॉ. जसबीर चावला
अपनी ही हांकता औरों की नहीं सुनता बस उपदेशता , अपने पर लागू नहीं करता। पार्टियां दुकानें हैं, एक मोदीखाना चलाता नफरत मुहब्बत जो बिके, झिझक नहीं करता। विज्ञापनों की दुनिया है, वही क्यों परहेज करे? फोटो के साथ कलर , अक्षर बड़े -छोटे करता। योगी वह, जन्म लिया मजे नहीं,काम करने को इस्तीफा क्यों? जल्द तपस्या की कमी पूरी करता। काम बोलता है, फालतू में वह क्यों बोले? डबल ईंजन , मणिपुर चला जाता तो क्या करता? जिन्हें अधूरी हसरतों को पूरा करने की चाहत है दूषें मशीन, सुधि ४७ की, २४ मैटर नहीं करता। नारे होते, गारंटी जुमला नहीं होती हलधर! कंपनी करती, दुकानदार कोई गारंटी नहीं करता।
गारंटी भ ई ! गारंटी! : डॉ. जसबीर चावला
गारंटी भ ई ! गारंटी! रेवेन्यू गैस की गारंटी! राजधानी का प्लेटफार्म घोषणायें कर रहा यात्रीगण सबसे बड़ी खबर सुन रहे लगातार डबल पैसे आपके! गारंटी! गाड़ी की एक सूचना के साथ एक गारंटी वाली खबर का बोनस। याद रखिए! नंबर भी रटा रहा! उकता रहा यात्री इंतजा़रता बार - बार गारंटी सुनते कितनी बार तो देख चुका है गारंटी। ज़ख़्मों पर नमक छिड़कते रेल में बिठाने से पहले! जबकि हलधर को घुसने नहीं देते एमेस्पी की कानूनी गारंटी नहीं देते! दिल्ली घुसने की गारंटी तो दो पहले!
दूरियों की कोई बात नहीं : डॉ. जसबीर चावला
दूरियों की कोई बात नहीं इंटरकंटीनेंटल हैं एक साथ कितनी मिसाइलें रोकने वाला कवच लौह-गुंबद है? उससे ज्यादा दागेंगे। बाण लगा है, रोष जगा है सोये शेर को ललकारा है घर में घुसके मारे हमारे? तेरे घसीड़ कर भूनेंगे! जंग खत्म करने का एक ही तरीका है, जंग! दोनों यही माने हैं। बच्चे मरें तो मरें, भ्रूण तक न छोड़ेंगे जड़ से खत्म करने तेल डालेंगे बंदर घुड़की नहीं, दुनिया बर्बाद कर डालेंगे भुखमरी से मरें, कुपोषण से मरें देश क्या महादेश विस्थापित कर डालेंगे! मानवता कुरला रही है हलधर! तुम्हें रौंदनेवाले जनता को कैसे बचा लेंगे?
कुछ ऐसे प्रश्न हैं : डॉ. जसबीर चावला
कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जिनका उत्तर कोई नहीं दे सकता गौतम बुद्ध भी नहीं। हलधर! ग्यारह नहीं, बारह सवाल पूछो ताकि उनको आसानी हो जवाब देने में: बारह बज गये सरदार! कभी भी बजते हैं? यह अमृत काल है! समरथ को नहीं दोष गोसाईं ! तुलसी गोसाईं क्या जवाब दे? बता तो दिया बेचारा! उकस मत जाना! खैला देखो खेला! उसी के आदमी तुम्हें आगे लगायेंगे माठ में मत घुस जाना! तुम पर सबसे पहले गाज गिरेगी चौरासी जैसी, ......बचके! उनकी साज़िश में फंस अपनी कौम को हलधर! पराली-सा फुंकवा मत देना!
संयम! संयम! नेतन्याहू! : डॉ. जसबीर चावला
संयम! संयम! नेतन्याहू! सारे मुल्क चिल्ला रहे इधर मिसाइल और ड्रोन बिके जा रहे महाभारत के अर्जुन अश्वत्थामा याद आ रहे! हमास का नाश करते दुनिया का विनाश न कर देना याहू! वापस लो! अपने अपने अहंकार वश में लो! संयम बरतो! पानी की तोपों तक सह्य है खट्टर! गोलियां दाग खालसा खलास न कर दो! ब्रह्मास्त्र जो मुड़े नहीं नयी क ई पीढ़ीयां खा गए! विधवा कर दी भारत मां उजाड़ दिये करोड़ों घर लाखों परीक्षित खा गए! थैला लेकर चल दिए मुरलीधर पांडव स्वर्गारोहण फ़रमा गये! पीछे रह गए हलधर, भूख मिटाने इंद्रप्रस्थ खांडवप्रस्थ वाही करते अर्थ -व्यवस्था सुधारते, मेहनतकश नव-निर्माण रचाते। पूंजी के दुर्योधन फिर से काले कानून बनाते! सत्ता के दलाल फिर से साम दाम दण्ड भेद गुर्राते!
जो ठाना कर दिखाया : डॉ. जसबीर चावला
जो ठाना कर दिखाया जो नहीं ठाना, दिखने लगा जो माना वही किया जो नहीं माना, होने लगा। वही नाम, वही काम कुछ भी नहीं बदला उल्टा , बड़े स्तर पर होने लगा। कुछ शहीदों की आग जलाओ कुछ राष्ट्र भक्ति सुलगाओ, कुछ वेदां गाओ, दुकान सजाओ जो खाया हजम कर दिखाया जो नहीं खाया, बेचने लगाया, जो कमाया, विदेश लगाया जो नहीं कमाया, कर्ज़ा चढ़ाया सबका उद्घाटन, विज्ञापन, हरी झंडी देश को अकेले ठेल सैंतालीस पहुंचाया! ड्रोन खरीदे, हलधर को सबक सिखाया सिंघु खनौरी को वाघा बनाया गोबिंद सिंह के दांत खट्टे कर दिए तभै खट्टर नाम कहाया!
बिना चुने भी चुनाव होता है : डॉ. जसबीर चावला
बिना चुने भी चुनाव होता है बिना आंसुओं के चेहरा रोता है। जैसे मुर्गी कुड़क्क होती है बिना सेंके भी चूज़ा होता है। चुने हुओं को खरीद ले सत्ता यही जनता का हश्र होता है। विचार शून्य हर दली धारा चुनाव बस चंदा धंधा होता है। इस तरह गठजोड़ किया जाता है बिना सिमेंट का घर होता है। भ ई! टेस्ट्यूब का जमाना है बगैर कोख बच्चा होता है। विज्ञान जो न करा ले इस युग भाड़े पर मां बाप होता है। फसल के वास्ते हलधर जरूरी ही नहीं बीज से फल तक भूमिगत होता है!
झूठ को सच बनाके बेचेगा : डॉ. जसबीर चावला
झूठ को सच बनाके बेचेगा सच को फोटो लगाके बेचेगा। असली हलधर का लेबल चिपका के दुबई की मंडियों में बेचेगा। सूत भर जमीन नहीं हड़पी जितनी घुसा उतनी बेचेगा। चीन को साथ बिठाकर झूला सूरती हीरों के झूले बेचेगा। लाल किले झंडा फहरायेगा ऐसी नफरत के बीज बेचेगा।
शांत ट्रैक्टर मार्च ने हलधर! : डॉ. जसबीर चावला
शांत ट्रैक्टर मार्च ने हलधर! सिद्ध कर दिया कठिन है मंज़िल, पंजाब बाडर से आगे रास्ता अवरूद्ध कर दिया! शुभकरन की छाती में हरियाणा पुलिस की गोली ने सत्ता के ताबूत में आखिरी कील जड़ दिया! विकास जब विलास बन जाए, विश्वास नहीं बनता नारा जब लारा बन जाए, और कोई चारा नहीं रहता। जनता सड़कों पर आती है, सिंहासन ख़ाली कराती है। लफ्फाजी , जुमले, नौटंकी, एक सीमा तक ही लुभाती है! मंदिर, मस्जिद और गुरु द्वारे , रोजगार नहीं दिलवाते हैं पहले पेट की पूजा हो, तो ही तीर्थ सुहाते हैं शिलान्यास कर देने से, फल रातोंरात नहीं मिलते लाखों करोड़ों चिल्लाने से, कहे पंद्रह लाख नहीं मिलते! काला धन स्विस बैंक रट रट, चुनाव में वोट बटोरे हैं कहां गये वादे? भूखी परजा के हाथ कटोरे हैं!
हठ से हठधर्मिता का इलाज कैसे हो : डॉ. जसबीर चावला
हठ से हठधर्मिता का इलाज कैसे हो किसान के खिलाफ जवान कैसे हो? गोली मार दे या खुदकुशी कर ले अंधी अंधभक्ति का इलाज कैसे हो? अकाल से मांगते निश्चै अपनी जीत देख तो लो लड़ने की रीति कैसी हो? भागते फिरोगे गजा रफा के अंदर निर्दोष मारके बंधक छुड़ान कैसे हो? हलधर परले दर्जे की बेवकूफी यह कब्र में जिंदा इंसान कैसे हो?
कोशिश यह है कि खबर बन जाये : डॉ. जसबीर चावला
कोशिश यह है कि खबर बन जाये इंडिया पौधा है शजर बन जाये। खाली प्लॉटों में बनते जाते मकां गांव पत्थरों का शहर बन जाये। गजा में फोड़ दिया इतना बारूद बस्ती सहरा की नज़र बन जाये। ओढ़ इंसानों का नकली चोगा सियासत नफरत का बहर बन जाये। मलबा बन जाए मुहब्बत दिल में हलधर इलेक्शन का कवर बन जाये।
पीली बदरंग होते न होते : डॉ. जसबीर चावला
पीली बदरंग होते न होते, भूरी रंग दी अब वही कत्थई , रंगरेज कहता कोकाकोला ई, सियासत में पगड़ी ने क ई बदले, वैसे ही! विचार धारा नयी-नयी, अंततः कोई नहीं! माया, लक्ष्मी, सम्पत्ति, कोठी-कार, वाह-वाही! यही है चाहत खूनी, गुंडे, बदमाशों , नेतागिरी की भी। बस, मुहर लग जाए संसदी स्वीकृति, देखो हलधर! संविधान की! मिली प्रथम दर्जें की सिक्योरिटी समझते हो , वैसे ही? पलटू पलटी दल बदलू, इधर से उधर की मौका परस्ती, घर वापसी साम दाम दण्ड भेद, आज जरूरी समझो, चालें राजनीति की। मशीनी सफाई भ्रष्टाचार की! नेता फिर तैयार, पगड़ी रंगी काली और भी तो योजनाएं नयी अमृत काल की! रुक जाने दो महवारी चुनावी रंगरलियां फिर शुरू होंगी हलधर! जलतोपी बौछारों संगी गोलियों खूनी होली की।
सफेद मतलब सफेदी नहीं होता : डॉ. जसबीर चावला
सफेद मतलब सफेदी नहीं होता गारंटी मतलब पक्का नहीं होता दस सालों के अनुसंधान बाद पता चला शौचालय मतलब पढ़ाई सेवा मतलब कमाई पकोड़े तलना लघु उद्योग बौंड मतलब सफाई ! आम मतलब सामान्य नहीं होता नोटबंदी मतलब नौकरी नहीं होता किसान मतलब हलधर नहीं होता बोल देने भर से काला कानून रद्द नहीं होता। सजा पूरी मतलब रिहाई नहीं होता!
तू जिनसे सवाल करता है : डॉ. जसबीर चावला
तू जिनसे सवाल करता है वे इसके लायक ही नहीं। बहती गंगा में हाथ धोते हैं गंदी हो जायेगी,फिकर ही नहीं। उनके हुनर को नवाजा तुमने तुम्हारे हुनर की कीमत ही नहीं। हलधर आवाज औ'अंदाज छोड़ सीट जीती पर पार्टी तो नहीं। किस शराफ़त की बात करता है यह पाठ उनके कायदे में नहीं।
ताला ही नहीं, बाबरी नमाज पढ़ी जायेगी : डॉ. जसबीर चावला
ताला ही नहीं, बाबरी नमाज पढ़ी जायेगी यह सियासत है, आखिरी दम तक भड़कायेगी। राम अल्लाह में वैसे तो कोई फर्क नहीं खेल वोटों का है, कुर्सी लुढ़क जायेगी। मामला -ए-चार सौ, किस्मत ईवीएम -बंद जून चार तक जां-ए-जिन्न,चराग पर मंडरायेगी। हलधर धरने लगा पहले हवालात -ठुंसे बिना मुकदमों जीस्त, जेल में कट जायेगी। माटी मजबूती दे, छुड़ा लो आज़ादी पूंजी कानून रली, धांधली पनपायेगी।
नालियां अलग-अलग हैं नाला तो वही है : डॉ. जसबीर चावला
नालियां अलग-अलग हैं नाला तो वही है बहें तरह-तरह की गंदगियां, बहाला तो वही है। पार्टियां अलग -अलग हैं, अडाणी तो वही है घटनाएं जुदा -जुदा हैं, कहानी तो वही है। सवाल जगह-जगह पर, हलधर तो वही है इलाज किसिम किसिम के, भगंदर तो वही है। वायरस नये-नये हैं, इंसान का जिस्म वही है अर्थियां के ई -क ई हैं, लाशों की भस्म वही है। रेवड़ियां,पैंतड़े भिन्न -भिन्न, चुनाव वही है अंधों में कानराज, लोकतंत्र का बचाव वही है।
समय छूटने में देर नहीं लगेगी : डॉ. जसबीर चावला
समय छूटने में देर नहीं लगेगी ट्रेन छूटने में अभी लग सकती है जान एक दम बिन छूट जाती है देर नहीं लगती, एकदम छूट जाती है! समय तब थम जाता है बहुत देर के लिए, नब्ज थाम लेता है धड़कनें गिनता है। दिल दहलाते शहीद करार देता है रेल की पटरी पर हलधर को! धरने छूटने में देर लगेगी साथियो! हवालात छूटने में देर लगेगी, समय छूटने में देर लगेगी चार जून के बाद भी!
हलधर! तुम आंदोलन जीवी : डॉ. जसबीर चावला
हलधर! तुम आंदोलन जीवी, नेता चुनाव जीवी छोटा चाहे परधान, सभी मतलब जीवी। वोट पे करो चोट, बनकर सवालजीवी संविधान तुम्हें बचाना, नेता धंधाजीवी। हलधर मेहनत जीवी, नेता पेंशन जीवी! विश्व गुरु का लोकतंत्र , परजीवी मशीन जीवी!
पहले लाखों पर्चे गिराये हैं : डॉ. जसबीर चावला
पहले लाखों पर्चे गिराये हैं रफा पर फिर बमों की बरसात की है, याहू तुम्हें जीने नहीं देगा हमासियो! बाइडन तुम्हें मरने नहीं देगा फिलीस्तीनीयो! धरती पर पहली बार कुछ ऐसा हुआ है जिंदगी मौत की नौटंकी बन गई है या मौत को जिंदगी का धोखा हुआ है। दुनिया इनके संवादों में उलझ गई है राष्ट्र संघ की कृत्रिम बुद्धिमत्ता जड़ हो गई है, हद हो गई है! अपने रिटायर बारूद रिटायरों में न खपा बच्चों, अस्पतालों पर होम कर रहे हो! आज पहली बार कुछ ऐसा हुआ है खुदा पर यकीन जाता रहा है, अमरीकी लोकतंत्र मानवाधिकारों की खिल्ली उड़ा रहा है! भरोसा है उसे विश्व के सबसे सजग हलधर पर उसी के बूते संसार में लंगर लगाने की योजनाएं बना रहा है। वर्ल्ड के नंबर वन अमीर से पंजाब में साईलोज़ बनवा रहा है। इधर हलधर बाडरों, पटरियों पर धरना -शहीद होता जा रहा है। कोई सुने न सुने सवाल पूछे जा रहा है वह इस देश का नागरिक है या नहीं? कौन अमीरज़ादा उसीके घर में घुस धरनों को आतंकवादी बता , हत्यायें करवा रहा है? इसे ड्रोनों का सफल परीक्षण दिखा करोड़ों के ऑडर दिलवा रहा है! यह कैसा राष्ट्रवाद है अमृत काल में ही विष के बीज बोये जा रहा है!
इक आइना तो हो , शक्ल दिखाने वाला : डॉ. जसबीर चावला
इक आइना तो हो , शक्ल दिखाने वाला किसी सूरत सूरत-ए-शौक नज़र हो जाए। क्या हुआ ज़माने को कैसी आग लगी? जिद पक्की रहे , चाहे दुनिया बेदर हो जाए। हलधर ऐसी बेबसी का सबब क्या कहिए? खत्म कुनबा कर , खुदकुशी से सबर हो जाए। चाटता कौन ? चटाता कौन ? पता ही नहीं सियासत बेअदबी , माफिया पुरअसर हो जाए। पंजाब की धरती से वफ़ा कौन करे गभरू मिट्टी का परदेशी बेघर हो जाए।
संसार का सार धूल ही है? : डॉ. जसबीर चावला
संसार का सार धूल ही है? पेड़ों पहाड़ों खलिहानों रेगिस्तानों खदानों मैदानों से उठती है धूल वही फैलती झरती भरती जाती खाईयां -खंडहर? खाक में मिल जाती हस्ती मिट जाते तख्ते ताऊस, मिल जाते गर्द में! ढंक जाता अतीत औ' इतिहास। इंसान मुश्ते-गुबार नहीं राख होने से पहले। हलधर इक इंसान नहीं सरदार होने से पहले? हलधर माटी का पूजक, हलधर खेतों का चाषी हलधर फसलों का पालक अन्नों का उपजायक, हलधर ग्रामों का वासी। हलधर महलों का स्रष्टा अमृत युग का द्रष्टा। हलधर! यह सब सोच कुर्बान होने से पहले गुंडे बदमाशों की हैंकड़ , तोड़ जान देने से पहले।
गंदी हवा को निकल जाने दो : डॉ. जसबीर चावला
गंदी हवा को निकल जाने दो अच्छी को रास्ता बनाने दो। कहीं से तो आए शांति का झोंका बेमतलबी युद्ध को थम जाने दो। रब दा वास्ता जे रोक लो हथियारों को रफा दफा करो गजा को बस जाने दो। भरी जवानी को लाचार नशों का न करो बेशक अग्नि वीरों-सा मर जाने दो। कौन निकाल रहा तुमसे दुश्मनी हलधर! नशे का माफिया देश से मिट जाने दो।
नामजदगी में भी हरामजदगी है : डॉ. जसबीर चावला
नामजदगी में भी हरामजदगी है चुनावी धंधे में जो होड़ लगी है। येन केन प्रकारेण जीत लो इक बार सारी उम्र पेंशन फिर मुफ़्त की है। ज़िंदगी भर हलधर खटता मरता है उसकी मेहनत का फल खुदकुशी है। देखा है कोई गरीब इलेक्शन लड़ा हो हलफनामे में ही हर बशर करोड़पति है सेवा का झांसा या और कोई पोटपाट मतदाता से कर लो , जैसी खुशी है। विचार धारा की बात रहने दो जसबीर धर्म पूंजी सत्ता की रली मिली है! गारंटी देता नेता उकसा के भावनाएं कौन पूछ सकता , दिल्ली में सख्ती है।
चिड़ियों ने सुबह की घोषणा नहीं की : डॉ. जसबीर चावला
चिड़ियों ने सुबह की घोषणा नहीं की प्रसन्नता चहचहाईं, ..........हैरान हुईं एक आदमी सुबह को मुट्ठी में बता मन के जुमले चिल्लाता----- तपस्या की, तो सुबह हुई! जब-जब चाहेगा, होती रहेगी-- "बजाओ ताली!" चिड़ियों ने उसे मदारी समझा, पेट का जुगाड़! वह मजमेबाज निकला थाली बजवाता कभी झंडियां। अच्छा खासा शोरगुल इकट्ठा होने लगा। चिड़ियों ने देखा लंगर वरता रहा है, कैसा जादू है! बाल्टी तो खाली है! पूरी दुनिया में वाह-वाही भभूत नहीं सारी तकलीफ़ों के अंत की गारंटी, तपस्या का फल है। योग करके दिखलाता है परीक्षा के गुर सिखलाता है घंटों फोटो कई कोणों से खिंचवाता है! चिड़िया अवाक् थीं, एक जगह जुटने लगीं: एक साथ मिलकर इतनी तपस्या कर पायेंगी? इतनी सिद्धि पायेंगी कि सुबह मुट्ठी में कर लें? वे खेतों बीच हलधर जा सटीं सलाह मशविरे। दूर जहां बाडर है, चलें धरती आसमान मिलते हैं मिल धरने पर बैठें। किसी को हटाओ , देश बचाओ नहीं नकली नारे , मजमे हटाओ देश की माटी में सचमुच रलके मन लगाओ!
साज़िशों का बाज़ार गर्म है : डॉ. जसबीर चावला
साज़िशों का बाज़ार गर्म है चुनाव जीतना ही असली धर्म है! एव्रीथिंग इज फेयर इन वार एंड लव हलधर अगर टोके तो बेशर्म है? छित्तरों के यार कौन हैं, आईना दिखा लाख निंदो नेताओं का मोटा चर्म है। हलधर के सवालों का जो सामना करे वही एक बाप का, बूझे जो मर्म है। चुनावी धांधली में देश न बिक जाए अर्थ -व्यवस्था का प्राण कृषि -कर्म है।
वार पे वार, उलट वार पलट वार : डॉ. जसबीर चावला
वार पे वार, उलट वार पलट वार जनता की सेवा , चल रही तलवार! पैंतरे दर पैंतरे, दांव दो पेंच तीन वायरल होतीं वीडियो फिल्में भरमार। हमने सब किया सुधार और विकास चौपट करती रही पिछली सरकार! कर्ज़ पर कर्ज़, ब्याज पर ब्याज हलधर के सर, जनता सर अधिभार। जसबीर के दोस्त होते नाहक बदनाम वसूलते सारे रहे काला धन बेशुमार।
पहले ठीक था, हवाओं ने हमें मारा है : डॉ. जसबीर चावला
पहले ठीक था, हवाओं ने हमें मारा है जलवायु परिवर्तन ने किया नाकारा है। जंग में ज़िंदगी मौत से सस्ती बिकती जल के सामने पहाड़ बाजी हारा है। क ई बरस से घर- बार यार छूट गया हवाई हमलों में तिनकों का गो' सहारा है! कभी गजा ,रफा कभी युनुस खान भगे पूरी कौम को अल्लाह किये आवारा है। अपनी मांगें ले हलधर ! हम कहां बैठें? पैर धरते जमीं गड्ढी,बमों का कारा है।
क्या चुप रहने से आतंकवाद फैलता है? : डॉ. जसबीर चावला
क्या चुप रहने से आतंकवाद फैलता है? गोपनीयता की शपथ खाकर कौन मन की बात खोलता है? आतंकवाद कहीं भी है मानवता के विरुद्ध है, मणिपुर हो या गोधरा या हाथरस जातीय आतंक भी निषिद्ध है, शांति पूर्ण ढंग से हलधर आतंक फैला रहे? रास्ते अवरूद्ध, बाडर निरुद्ध पत्रकारों का गोदी आतंकवाद शुद्ध है? जो खेल चल रहा हमास में वही राष्ट्र व्यापी संडास में, वही गुजरात माडल विकास में, वही एक खास दल के प्रयास में। हाय हाय २०२४ के लोकतंत्र ब्रह्मांड जला रहे कार्पोरेटी मंत्र!
बड़ा-सा ओजोन होल बन चुका है : डॉ. जसबीर चावला
बड़ा-सा ओजोन होल बन चुका है हमारे इलाके के सर ऊपर हवाई अड्डे के करीब हैं हमारे घर। कितने जहाज सुबह-शाम रात-बेरात चढ़ते जाते उतर, पड़ती कहां खबर? पहले कहां थी धूप में इतनी चुभन? अब तो चमड़ी के भीतर घुस साड़ती। बाहर चाहे वही रहता तापक्रम! हलधर!छील देगी तुम्हें लूं जाना पैली पर मुरैठा लपेट कर सियासत बाज बेच खायेंगे चुनो उसे अपने मुद्दे नबेड़ कर।
नाम राम का , काम रावण का : डॉ. जसबीर चावला
नाम राम का , काम रावण का। हे प्रभु श्रीराम! माफी मांगने की हालत में भी नहीं छोड़ा! चुनावी बौंड लेते तुम्हारी अनुमति तक नहीं ली, न बजरंग बली से ही पूछा! की मन की, सरासर मन की। बस चुप रहा जहां गलत हुआ, होता रहा मान प्रभु की इच्छा, होने दिया। रावण आंखों के सामने, राम राम जपते चलाते रहे बगल की छुरियां पराया माल अपना करते रहे। बेचारे हलधर को शांति पूर्ण धरनों पर भूनते रहे! आंखों में छर्रे घुसेड़ते रहे! हे प्रभु श्रीराम!मेरे अंदर दशानन का अहंकार बैठ गया, रावणों का प्रतिनिधि बन गया! मैं क्या करूंगा दिल्ली की हिफाज़त खाईयां खोद बैरीकेड लगा, दिल्ली के रखवालों को घुसने नहीं दिया। राम का रथ लव कुश रोकते काश! यहां तो बाहुबलियों ने रोक लिया अयोध्या की मां-भैणों को ही नहीं छोड़ा! हे प्रभु श्रीराम! रामलला! आप लौट जाओ! तुम्हारे नाम पर ध्रुवीकरण ने सबका समावेश उलटा कर दिया। कन्या कुमारी की शिलाओं पर बैठ पश्चाताप करूंगा ध्यान में जैसा विवेकानंद ने किया। हो सकता है यही गारंटी आखिरकार काम कर जाए!
एक जून को संपन्न सतपड़ावी : डॉ. जसबीर चावला
एक जून को संपन्न सतपड़ावी चुनाव का पर्व, चुनावी उत्सव कल से आरंभ, अमृत का उत्सव सत्ता मिस छीनझपट ,उठापटक! पहली दफा मत दे अष्टादशियो! गर्व का अनुभव, दूजी दफा मत दे धर्म का अनुभव, तीजी दफा मत दे मर्म का अनुभव, चौथी दफा गर्म का अनुभव, पंजवी बार चर्म का अनुभव, छठी बार मत दे व्यर्थ का अनुभव, सातवीं दान, दे- ले अर्थ का अनुभव। मतदान के धंधे -बंदे का अनुभव मतों में चंदे मठों के अनुभव, मतों के कारोबार का अनुभव अनुभव लेते हलधर का अनुभव तख्तापलटू पूंजी का अनुभव ! काश! पात्तर! ले जाते संग में आखरी बार मत दे शर्म का अनुभव!
वोट पर चोट में खोट मिली : डॉ. जसबीर चावला
वोट पर चोट में खोट मिली दाढ़ उखड़ी नहीं, बस हिली। पूंजी की थी, गोबर की नहीं सरकार बनी तो , रली मिली। कमल ककड़ी कीचड़ में सड़ी न चंपा चमेली की कली खिली। ध्यान भटकाए तेरा अगर हलधर क़र्ज़ माफी की पहली दरियादिली गारंटी एमैस्पी की पूरी करो वरना सुनाओ कटी और जली।
सांसदों का मोबाइल स्कैन न हो : डॉ. जसबीर चावला
सांसदों का मोबाइल स्कैन न हो, तो अच्छा बालीवुड के सितारों पर कोई बैन न हो,तो अच्छा। करेले पर नीम , भीतर कुनैन न हो, तो अच्छा संसद में खूनी -बलात्कारी, बेचैन न हों, तो अच्छा। धरने बैठा हलधर अतिशांत, ट्रेन न हों, तो अच्छा अहंकारी मंत्री के उलटे बैन न हों , तो अच्छा। बेटा बन जाये बाप , बस लाल नैन न हों, तो अच्छा सिख हों शहीद, खालिस्तान के फैन न हों, तो अच्छा। बहुत मार डाले गभरू, फर्जी गनमैन न हों, तो अच्छा फिर फैलाई जा रही धुंध में ,गुरचैन न हों , तो अच्छा ।
कुछ भी बचने नहीं दिया मैंने : डॉ. जसबीर चावला
कुछ भी बचने नहीं दिया मैंने आग को घी से छू लिया मैंने। याद जब भी बदहवास चली नमदीद लबों को सी लिया मैंने। बात बनने लगी थी जब अपनी बात ही बात जी लिया मैंने। एकाध ग़ज़ल मुकम्मल कर लूं रुसवाई ए ज़हर पी लिया मैंने। हलधर देख लें सियासत का कहर धरनों का दर्द ए हक भी लिया मैंने।
दिल में हो तो घर में होती है : डॉ. जसबीर चावला
दिल में हो तो घर में होती है जगह एक खास बात होती है। खुद को हो या यार को ही हो पीड़ा कहीं भी हो आंख रोती है। अरे इंसान हैं, इतना तो समझते हैं धुआं होता है जभी आग होती है। नानक हम नहीं चंगे, बुरा नहीं कोई अपनी इज़्ज़त अपने हाथ होती है। किसी को क्या पड़ी है हलधर की गारंटी सियासत की बिसात होती है। पूंजी बनवाती बड़े बड़े साईलोज़ एमेस्पी चुनावी सुगात होती है।
तू किसी और से यह बात न कह : डॉ. जसबीर चावला
तू किसी और से यह बात न कह मन की है, खुद से कर, सुन, चुप रह। ऐसा होता, नहीं होता, जैसे कितने होने हवाने की रैण दे, देख बस सह। सामने फटे ज्वालामुखी मिसाइलों- से शहर ढहे, गांव ,विराट पुल जाते बह। तरक्की है, खुशहाली है, जो मर्जी मान कमजकम होणी, रब्ब दी रजा न कह। खून के प्यासे, हलधर की हड्डियां चूसें कट्ठी दौलत , थैले भर विदेश जाते रह।
बिरसा मुंडा ने खुद को भगवान बताया : डॉ. जसबीर चावला
बिरसा मुंडा ने खुद को भगवान बताया आज़ादी के लिए जनजातियों में अलख जगाया। मुर्दा होती हिंदू जाति में प्राण फूंकने के लिए चुनावी लीला करते मोदी ईश्वर दूत कहलाया। लोकतंत्र है, तपस्या में कमी रहना स्वाभाविक है चुनाव आयोग है, आचार संहिता लगवाया। एक सौ चालीस करोड़ जनता है, विज्ञापन भीगी जहां जिसकी चली हरवाया, नहीं चली जितवाया। मजबूत विपक्ष की होंद आज, हलधर की देन है साढ़े सात सौ जान्नें वार, तीन काले कानूनों को हटवाया।
सुबह से उमस बिदक जाती है : डॉ. जसबीर चावला
सुबह से उमस बिदक जाती है देह पंखे से चिपक जाती है। किन बादलों की बात करते हो धरती बात करने से कतराती है। नेता जो गद्दी से चिपक जाता है जनता जूतों के तल चटाती है। हलधर आवाज बुलंद करता है सत्ता जब हदें लांघ जाती है। अफसर उन की जुबां क्या समझें पंजाबी गालियां सिखाती है।
कईयों का पानी से पेट चलता है : डॉ. जसबीर चावला
कईयों का पानी से पेट चलता है टैंकर माफिया का रूल चलता है। पंजाब का पानी गया पाताल में झोणा जन गण के पेट डलता है। बड़ा दिल है, लुटाता है सब कुछ हलधर भारत खातिर पलता है। तुम उसे मवाली खालिस्तानी कहो चाणक्यी आग में वह जलता है। अपनी नौकरियां भी देता औरों को रजा दलालों को, हाथ मलता है।
परीक्षा पर चर्चा पर्चे लीक नहीं करती : डॉ. जसबीर चावला
परीक्षा पर चर्चा पर्चे लीक नहीं करती बल्कि लक्ष्मीवीर चिकित्सकों के खर्चे लीक करती है साथ ही काले धन का हिसाब किताब ठीक करती है। तीसलखिया नीट परीक्षार्थी देश की सबसे बड़ी समस्या का समाधान करेंगे जनसंख्या नियंत्रण के साथ साथ सामाजिक न्याय की अमृत वर्षा करेंगे। समितियां गठित करो भ्रष्टाचार तो गठित है ही गठित एजेंसियों में, हलधर! चिंता नास्ति! तुम्हारी धरती का कैंसर पातालगामी वाटर टेबल पर लिटाकर जीरा फैक्ट्री के कचरा थेरापी से दूर करेंगे! जड़ से उखाड़ देंगे चिट्टा बस, तुम्हारी चड्डी कबाड़ लेंगे।
लगेगा, टूट जायेगा : डॉ. जसबीर चावला
लगेगा, टूट जायेगा दिल है, पछतायेगा। फुर्सत किसे मरने की हज जा मर जायेगा। हर बूंद कीमती हलधर! घड़ा है, भर जायेगा। पाप गर बढ़ता ही चले शेवटी कहर ढायेगा। लोग चिल्लाते ही रहे फेंकू कब गायेगा?
कंधे से कंधे छिल जाते हैं : डॉ. जसबीर चावला
कंधे से कंधे छिल जाते हैं कलकत्ते दिल मिल जाते हैं। पहले मकान चढ़ते हैं फिर बाजार उतर आते हैं। हरसूं रोज़ी के लाले हैं हर थां खाने खुल जाते हैं। यूं फूंक-फूंक चलते हैं जुबानें मुंहबंद चलाते हैं। हलधर गांव से सजरे आते रात लोकल से लौट जाते हैं। फूल बिकते, घास बिकते हैं मौसमी कांटे भी बिक जाते हैं।
पेपर लीक कर दिए : डॉ. जसबीर चावला
पेपर लीक कर दिए खालिस्तानियों ने एक करोड़ नौजवानों को बाध्य कर दिया कि सोचें सिखों की इस कारिस्तानी को! दाखिल हो रहे राष्ट्र भक्त भेष धर हलधर में वडा प्रमुख तक घुस गए पगड़ी बांध! जब युवाशक्ति बौखलायेगी कहां है पेपर लीकर खालिस्तानी? कैसे पता चलेगा? पीटो जो पगड़ी बांधे है! रायल सिक्रेट एजेन्टों को वही है अपराधी हलधर। भून दो उसे जला दो टायर गले डाल वही मवाली है! चड्डी पहने मकवाना सिखों को योग सिखाती। हरि मंदिर में होतीं अय्याशी करते सिख पेपर लीकर गोदी मीडिया इल्जाम लगाती। ढहा दो सालों को! राजनीति नहीं, चाणक्य नीति है हिंदू राष्ट्र बनाओ यही आचार्य ने सिखाया है । अब कई शाह सीखे हैं!
सरकारें बाधित करती हैं : डॉ. जसबीर चावला
सरकारें बाधित करती हैं आवागमन नाम हलधर का लगता है, संविधान तकलीफों को सुनाने की आज़ादी देता है। नागरिक क्यों जायें दिल्ली गर बात उनकी सुनी जाये वहीं क्यों विपदाएं झेलते अड़ा रहे कोई? गर न हो बेइंसाफी। अलबत्ता संविधान सड़कें खोद, कंटीली बेरीकेडिंग कर अहिंसक रोष प्रदर्शन पर कहर ढाने की जनता की आवाज कुचलने गोलियों भूनने की इजाजत नहीं देता। लोकतंत्र का संविधान है। अध्यक्ष गर सत्ता पक्ष का हो तो उपाध्यक्ष विपक्ष का ताकि मनमानी न हो तानाशाही न हो संसद में कार्य हानि न हो। जबर्दस्ती को हलधर! राष्ट्र प्रेम कहते हैं क्या?
शांति समझौतों के प्रयास : डॉ. जसबीर चावला
शांति समझौतों के प्रयास संग हथियारों की तलाश, क्या मतलब? शर्तों में हल्की हल्की नरमियां संग प्रतिबंधों की घुड़कियां, क्या मतलब? एक तरफ कहर की पिटाई संग दूजी तरफ से मिठाई, क्या मतलब? किसानों से विंदुवार वार्ता का वादा संग सरकारी झूठ फरेब का कादा, क्या मतलब? इधर विस्थापितों को बसाने की चिंता संग रिफ्यूजी कैंपों पर बम वर्षा, क्या मतलब? एक ओर जख्मी भूखों से हमदर्दी संग राहत सामग्री की राहबंदी, क्या मतलब? वसुधैव कुटुम्बकं की जपमाला संग पड़ोस की तबाही का संकल्प, क्या मतलब? हलधर की सेवाओं का गुणगान संग अहिंसक धरने बैठों का चालान, क्या मतलब? सब का साथ, समावेश का ऐलान संग में डिप्टी स्पीकरी खींचातान, क्या मतलब?
दाने दाने पे मुहर उनकी है : डॉ. जसबीर चावला
दाने दाने पे मुहर उनकी है खेत की मिट्टी भर अपनी है। बीज खाद कीट दवा उनकी उगाने पकाने की खटनी है। साडी मेहनत का मोल नहीं गारंटी की माला जपनी है। फसल नसल पे हक नहीं अंधी खेती भक्ति करनी है। काले कानून हलधर खातिर एमेस्पी तां नित वधनी है।
पीठ खुजलाने वाले हाथ : डॉ. जसबीर चावला
पीठ खुजलाने वाले हाथ बैसाखी संभालते हैं चुनावों में ऐसा क्या घटा ? खुंदक निकालते हैं। हलधर ने वोट पे चोट की, जनता ने बस किया विनाश करने वाले विकास पद बहालते हैं। कैसे रामराज्य आये अगर नीयत में खोट हो बनवास की वजह , कैकेयी मुस्लिम थी, खंगालते हैं। नाम दैवी रखने से मानसिकता कहां बदली? संत साधुओं के चोलों में रावण विशालते हैं। हर तरफ माफिया है, महोत्सव है चौतरफ ! हलधर देवते धरती मथ अमृत उगालते हैं।
बाग़ी होते हैं जो गलतियां मान लेते हैं : डॉ. जसबीर चावला
बाग़ी होते हैं जो गलतियां मान लेते हैं दागी होते हैं जो गद्दी सुख टान लेते हैं। दुनिया जाये भांड़ में,मैं शाहों का शाह पंथ, कौम, सब बाप का जान लेते हैं। इस जग में रहा न कोई, मैं तो रहूंगा अपने को अमर ज्ञानी ठान लेते हैं। अड़ें अपनी जिद पर न सुनें किसी की मासूमों, निरीहों , गजा के प्राण लेते हैं। हलधर शाहों से बिल्कुल नहीं डरते धरने शांत, सहते छातियां तान लेते हैं।
कूड़ परधान था वे लालो! : डॉ. जसबीर चावला
कूड़ परधान था वे लालो! अब बजार प्रधान है । कूड़ से भरा बहुत बड़ा बाज़ार , हिंदुस्तान है वे लालो! भागो पल-पल सियासतदान वे लालो! पेट, माना, हर प्राणी संग जुड़ा है पर काल भी तो जमडंड लिये सर खड़ा है, अर्थियां सज धज हज , सत्संग करतीं राम बड़ा है कि ख़ुदा बड़ा है! बड़े बड़े परिवारों वाले राम रावण सभी गये, दुनिया मुट्ठी में करने वाले साम्राज्य हंकारी भी गये, ज़मींदोज़ आलीशान राजमहल मूर्तियां स्तूप क्या बताते? जो उपजा सो विनश मान राजे रंक हलधर सभी गये! गलतियां इंसान से होतीं पता नहीं, भगवान से होतीं! पर एक बात तो पक्की हलधर झोणा बीज कणक नहीं कटती। तेन त्यक्तेन भुंजीथा भइया! भोग लिया साठ बरस तो अब छोड़ भी दे छह बरस, चिपका न रह! भले की कह! जाते जाते कर जा देश कौम का भला पंद्रह -पंद्रह लाख डेढ़ अरब के खाते कर जा! काला धन विदेशों वाला चाहे खुद रख, यहां वाले से किसानों का कर्ज चुकता कर जा! ढाई घंटे मन की न भषणा, कुझ हथ पल्ले पा!
भगदड़ के पास समय कम होता है : डॉ. जसबीर चावला
भगदड़ के पास समय कम होता है मक्का हो या फुलरई काबा हो या भोले बाबा हाजी हो या कांवरिया नमाज़ी हो या सत्संगी , मृत्यु में तब्दील होने के लिए। सांस में थोड़ी ऑक्सीजन चाहिए, हवा का पांचवां हिस्सा भी न रहने दे मार बमों से, लताड़े धुएं से फैला दे चहुंओर नाइट्रोजन काली गैस का ईंधन, तेरी मर्जी है भई! हमासी कह, मरासी कह झेलते हम विस्थापन दर विस्थापन! रेत बना दोगे हमारी बस्तियां मिट्टी कर दोगे अस्थियां? लोथड़े कर दोगे धरती खेती कहां से होगी? लोहा भर दोगे जमीन में फसल कहां उगेगी? दुनिया का कोई भी हलधर बचा न पायेगा सत्ता के भूखो! हिंसा के छुरों से बैर की जड़ नहीं कटती! फिलीस्तीन हो चीन हलधर की शरण जाओ तुम्हें सिखायेगा कैसे मिट्टी से प्यार करते हैं उससे जुड़ते हैं, उसमें फूलते ,फलते, पकते हैं। नेह लगाये रमते हैं तिल-तिल उसे बचाते हैं अहिंसक धरने लगाते हैं। जो हरियाणवी लाठी बरसाते हैं सहते हैं, पर भगदड़ नहीं मचाते शहीद हो जाते हैं उन्हें भी लंगर छकाते हैं।
कोई भी चीज वैसी नहीं रहती : डॉ. जसबीर चावला
कोई भी चीज वैसी नहीं रहती सोने के बारे भी यही राय रख सकते हो अन्तःक्रिया, अंतर्क्रिया, बहिर्क्रिया,बहिष्क्रिया काल की एबसीसा पर एक गुच्छा समीकरण लकीरें हैं, बहुत साधारण से साधारण अंतर्संबंध भी दूर कनाडा अमरीका जा किस तरह गुजरात माडल बन जाते हैं! वज्रासन में बैठा प्रधानमंत्री भी अपनी बिरादरी से बाहर नहीं निकल पाता! ऐपर हलधर! धन्य हो तुम मिट्टी की कीमत वसूलने आये मुनाफाखोरों को भी हाड़-मांस के अतिरिक्त अपने हृदय का रक्त चटाते हो और खुद चिट्टा चाट पंजाब की माता धरत महत से विदा ले लेते हो! जान बूझकर इस व्यवस्था की जड़ें गहरी कर जाते हो? यही चाहता है न देश कि तुम्हारी अस्थियों पर साम्राज्य खड़ा कर ले केंद्रीय? तो दे दो अपनी जमीन नदियां,नहरें,पानी, ताल-तलैया फलने फूलने दो उनका कार्पोरेट नेस्तानाबूद हो जाने दो खालसा नस्लों फसलों समेत। राज नहीं करेगा खालसा, मत करे एक बार फिर आकी बन जाने दो हिंदुस्तान को राष्ट गान के पहले राज्य को नक्शे से मिट जाने दो।
चार आसन लगाने क्या सीख लिये : डॉ. जसबीर चावला
चार आसन लगाने क्या सीख लिये अहम् ब्रह्मास्मि बन बैठे लगे चरण धूलि की कीमत वसूलने, सैंकड़ों आस्थायें कुचली गईं पैरों तले मामेकं शरणं व्रज पतियाते! भोले बाबा करते। कोई टिका नहीं बाहर सारे भ्रष्टाचारी फीस दे अंदर निर्भय भये। पुल के पुल बहे छत पे छत ढहे बेशर्म चुप रहे कौन इस्तीफा दे, क्यूं दे? जिम्मेवारी कौन ले? बाकायदा पैसे दिये! जस राजा तस परजा! सब का विश्वास दिखावे पर, फोटोबाजी पर असल पर नहीं। सब का साथ भषणाने पर, दूषने पर अवर उपदेशने, आप न करने पर। हे भोलेनाथ, हलधर को भी गले लगाओ! टी-ट्वेंटी से बेहतर प्रदर्शन: ७५० शहीदी रन देकर तीन काले कानूनी स्टम्प्स उखाड़े! अपनी संसदी किताब से तो निरस्त कर दो महानायक! कि आपातकाल आपातकाल करते फिर तपस्या की कमी पूरी करने लगोगे? जय हो साकार नारायण अवतार कर दोगे संविधान का बेड़ा पार।
समय हाथ से निकला जा रहा : डॉ. जसबीर चावला
समय हाथ से निकला जा रहा हाथ कुछ नहीं आ रहा। लुग्गा परांदी चट्टी बंदर जो खोज खोज ला रहे जानकी का पता नहीं बता रहे, कटे हुए डैने तो मिले जटायु कहीं नज़र नहीं आ रहे। दूर दूर तक कोई प्रतिध्वनि तक नहीं! बाली सुग्रीव एक ही बयान रटे जा रहे लंकेश इधर से उड़ गये ही नहीं, हम पता लगा रहे सीता का कि लंका के भूगोल का भ ई? ऐसे में हलधर! तुम्हीं बताओ खुशहाली जन-जन की मां सीता वही भगवान राम की, किसने चुराई? एक से एक बड़े अपराधी संसद में भारत मां की आवाज भर्राई, एक से एक बड़े अधिकारी की सिट्टी-पिट्टी सकपकाई महा भ्रष्टाचार में लपटाई। क्या करे बेचारी प्रजा बौखलाई भोले बाबा के एजेंटों ने भगदड़ मचवाई सांप्रदायिक हिंसा की आंधी चलवाई! हा! हा! जामवंत ने कटे स्तन दिखलाये करे अग्नि प्रवेश जानकी राम यहीं इसी घड़ी ले जल-समाधि मर जाए!
कभी इधर कभी उधर बैठते हो : डॉ. जसबीर चावला
कभी इधर कभी उधर बैठते हो हलधर खुद से क्यूं रूठते हो? मुद्दों से भटकाते नेता गिनती में तुम्हीं छूटते हो। संसद में जब तक नहीं जाते अनसुनी होती सो टूटते हो! प्रतिनिधि श्रम के नहीं पूंजी के हैं आपस में बहसते फफ्फे कूटते हो! सियासत दंड भेद की समझो कार्पोरेट का खेल, तुम फूटते हो!
पसीना कह रहा है बारिश होगी : डॉ. जसबीर चावला
पसीना कह रहा है बारिश होगी जो देह की वही मेह की हालत होगी। पीठों को खुजलाने वाली प्लास्टिक उंगलियों की केशों को बांकुड़ा गमछों की ज़रूरत होगी। जिस तरह के काम कर रहे तस्करों के गिरोह पंजाब में हलधर जल्दी अफीम की खेती होगी। भीख मांगने वालों के पासपोर्ट रद्द कर दोगे देश को भीखमंगा बनाने वालों की इज्जत होगी। किसानी मजबूत हो तभी फिरें जनता के अच्छे दिन सोने का हलधर हो तो चिड़िया सोने की होगी।
अपनी यात्राओं का खुद ही : डॉ. जसबीर चावला
अपनी यात्राओं का खुद ही मूल्यांकन कर ऐतिहासिक कह-कह धरणीधर धरने धर! जगतनारायण तुझे एक लाईन नहीं देगा अखबार में दुनिया से राब्ता रख, फिर हलधर टाईम्स शुरू कर। हलधर हिंसा नहीं संघर्ष की बात करता है खुद को औरों के लिए मिटा देता शहीदी ठानकर। तेरा माल बेचकर देश अर्थ -व्यवस्था नहीं बनेगा तीसरी सबसे बड़ी बनेगा सस्ता खरीद मंहगा बेचकर। योगा सिखा विश्व गुरु नहीं बना, विश्व बंधु बनेगा घोटालेबाज दोस्तों की काली कमाई में इजाफा कर।
गद्दी से प्यार क्यों हो जाता है? : डॉ. जसबीर चावला
गद्दी से प्यार क्यों हो जाता है? मयखोरी खुमार क्यों हो जाता है? कांपने लगते हैं गजा के गजर ओम शांति कह वार क्यों हो जाता है? दबी सुरंगों में हमास के बंधक सच झूठ का शिकार क्यों हो जाता है? कह लो नाचीज़ है डेंगू मच्छर काट ले तो बुखार क्यों हो जाता है? लोग लटकाने लगे नीचे थैले घर बाजार लाचार क्यों हो जाता है? मांग हक की जैसे ही रखता हलधर सियासती तकरार क्यों हो जाता है?
पीछे मुड़के कोई देखता तक नहीं : डॉ. जसबीर चावला
पीछे मुड़के कोई देखता तक नहीं मकसद तो दिल को समझाना ही होता है। चाहे सात लेयर चाहे आठ लेयर लगाओ मकसद तो लूट मचाना ही होता है। लो देख लो ट्रैक्टर चल दिए दिल्ली सरकार को तो आतंक फैलाना ही होता है। अहिंसक आंदोलन गर करे हलधर उसको खालिस्तानी बताना ही होता है। वह सिख है इसलिए रहे कुचला मवाली कह नफरत जताना ही होता है।
तपस्या में कमी कन्याकुमारी में : डॉ. जसबीर चावला
तपस्या में कमी कन्याकुमारी में पूरी न हो सकी कैमरों की संख्या ठीक थी पर क्वालिटी की गारंटी न थी। रामलला, मयूरपंखी कान्हा, केदारनाथ बजरंगी देवत्व हर प्रकार से औरा में घुसता रहा हर टाईप का बस, चार्जिंग पूरी न हो सकी, विवेकानंदी शिला का साइज़ तो ठीक था पर क्वालिटी की गारंटी न थी। आणी शेवटी काय झाले? चार सौ के पार अबकी बार होता पर गारंटी की गारंटी ठीक न थी, पंद्रह लाख जैसी। साढ़े सात सौ सिंघू बाडर शहीद हलधर कितने अक्खफुट्टे जख्मी , करोड़ों लाचार शेतकरी तीन काले कानून वापस नानक जयंती पर शहीद बाल दिवस, हिसाब बराबर! हेतर होणारच होते कांग्रेस -मुक्त भारत!
उत्तर भागो, दक्षिण भागो! : डॉ. जसबीर चावला
उत्तर भागो, दक्षिण भागो! वे अच्छे लोग थे गजा के? उजड़ गए! नानक ने वरदान दिया था। बसते रहे जो थे बुरे। अच्छे फिर उजड़े उनमें जो बुरे बने रहे बसते, मारे गये जो हमासी थे। कहां है नानक? क्यों वसदे रहो का वरदान दिया? पीटो हलधर को पीटो! वही नानक नामलेवा। सारे हमासी करार दिये मारे गये, अच्छा रहता उजड़ जाते! चाहे बार- बार, बुरे बनते, हमासी तो न बनते! हलधर सिंघूटिकरी बाडरों पर जा बसे धरने चलते रहे, शहीदीआं प्राप्त करते रहे हिंदुस्तानी थे फिर भी।
हलधर राजा शिवी है : डॉ. जसबीर चावला
हलधर राजा शिवी है अपना मांस काट-काट पूंजी तंत्र के पल्ले चढ़ा रहा, उधर बजट का पलड़ा जमीन में सेंध लगा रहा! भारी-भारी कर्ज़ों के बाट धरे हर चुनावी कांटा वित्तीय घाटा दरशा रहा, योजनाओं की डांड़ी भ्रष्टाचार निर्मित आज़ादी का संकट गहरा रहा! हलधर ने वोट पर चोट की न सिर्फ चेताया "खाली करो सिंहासन कि जनता आती है" इक मौका है दिया बल्कि रामलीला नौटंकी बस अब राम राज्य लाकर दिखाओ शिक्षा , स्वास्थ्य का समान अधिकार समता, सामाजिक न्याय की गारंटी कराओ! सब स्वत: हिंदू राष्ट्र कहलायेंगे नामों की जगह कामों में मन लगाओ! झूठ -मूठ के दौरों यात्राओं में कुछ नहीं रखा हलधर से जुड़ो उसकी खेती न चरो फोकटिया कर्ज़ों में फंसा न खेत खाओ, न उसे आत्महत्या के लिए मजबूर करो सारे मोदी चोर नहीं होते जबर्दस्ती नहीं, दिल से सम्मान पाओ!
बड़े निर्णय तो बड़े निर्णय : डॉ. जसबीर चावला
बड़े निर्णय तो बड़े निर्णय छोटे निर्णय सुभान अल्लाह। कांवरिये चले चढ़ाने जल नामों का मचा तूफान अल्लाह। देश के हलधर को गोली मारे पाये पद पदक प्रधान अल्लाह। धिक्कार है ऐसी अफसर शाही चाटुकारिता की कमान अल्लाह। जसबीर देख ले अमृतकाल पूंजी कृत घमसान अल्लाह।
न खाने के, न दिखाने के : डॉ. जसबीर चावला
न खाने के, न दिखाने के अब बचे सिर्फ झुठाने के। जनता ने भरोसा खो दिया लाओ नये दांत लुभाने के। प्रधान बने रहो घर पर ही बदल गये तेवर जमाने के। पंथ की एकता नौटंकी मुद्दे तो लाभ उठाने के। पिसता हलधर दो पाटों बीच चर्चै चलते मैखाने के। जसबीर थालियां नयी कीनो चंद्रयान राग बजाने के।
आसार बन रहे हैं बारिश के : डॉ. जसबीर चावला
आसार बन रहे हैं बारिश के बादल भिड़ रहे लावारिस- से। क्या पता कितनी गोलियां बरसें पंथक एकता की खारिश से। हवाओ बहो कि खुद फिजा बदले परिवारवाद रूठ जाए ढीठ वारिस से। बने जो नहुं-मास का रिश्ता हलधर खारिज करेगा वापिस से। जसबीर पंजाब रेड अलर्ट करो रुढ़ेगा बादलफटों की बारिश से।
क्यों अपनी जाति पर इतराते हो? : डॉ. जसबीर चावला
क्यों अपनी जाति पर इतराते हो? मानुष की जात सभै एकै पहिचानबो जाति गणना करवाते हो! जाति न पूछो साधु की, न सांसद की संविधान मानो क्यों बदलवाते हो? ज्ञान विज्ञान पर, पेशे कौशल, पूंजी पर एक जाति का अधिकार नहीं हलधर! विश्व गुरु की क्यूं फजीहत करवाते हो? मनु की बात करो, मन की नहीं पप्पू से पूछो ज्ञान तो पूछते हो पापा खुद अज्ञानता का ढोल बजाते हो! पेपर लीक पहले भी दशकों से होते रहे भ्रष्टाचारी नौकरशाह भारत माता नोंच नोंच खाते रहे कौन जात के थे? आज़ादी के बाद जो पिसते रहे हलधर! कौन जात के थे?
जो हलधर को आगे पीछे से कुचल दे : डॉ. जसबीर चावला
जो हलधर को आगे पीछे से कुचल दे वह वीर अर्जुन शक्तिमान हलधर अतिवादी, न रहे शांत। उसे इतना तंग करो इतना तसद्दुद करो उस पर कि अहसासे-जुल्म से तड़प उठे, उसके दिमाग़ में डाल दो खालिस्तान उससे कहलवाओ खालिस्तान। बस, यही तो ट्रैप है मीडिया गुलाम पहले ही है जैसे उचरे खालिस्तान भून डालो बेजांच-बेइम्तहा पाओ सम्मान। सिख संहार करो अगर पूंजी का राज कायम करना चाहते बेटोक बाडर सील कर दो पंजाब के घेर लो चारों तरफ से केंद्र की फौज चढ़ा दो अंदर उसे चिट्टा चटाओ जो उतरा अडाणी बंदरगाह । एक के साथ एक पुड़ी फ्री अतिवादी ओवरडोज से मरेगा!
इक दूजे की गलतियां निकालने में : डॉ. जसबीर चावला
इक दूजे की गलतियां निकालने में ही भला है बेअदबी का मामला पहले इसी तरह टला है। माफी मांग भी लें तो संगत नहीं सुनने वाली देखा नहीं? शेख हसीना का कोई जोर चला है? सच जिसने नहीं सुनाया सच की बेला, वह रजाकार उसे प्रधानगी कैसे मिले जिसने पंथ को छला है? हलधर ! तुझे मिली है बंदा सिंघ बहादरी गुढ़ती तूने मुगल सरदारों और गद्दारों को एक संग दला है। इब एकता अकाल तखत से मांगती है जवाब निजी स्वार्थ हेतु नंहु मांस का रिश्ता क्या बला है?
सच-सच रटने से सच नहीं : डॉ. जसबीर चावला
सच-सच रटने से सच नहीं बोला जाता सच बोलने खातिर सच्चा होना पड़ता है। राष्ट्र -राष्ट्र रटने से एक राष्ट्र नहीं बन जाता एक राष्ट्र गढ़ने के लिए खालिस होना पड़ता है। हाऊ डु डू करने से भारत अमरीका नहीं बन जाता अमरीका बनाने के लिए रूपया मजबूत करना पड़ता है। गुफा में बैठ नौटंकी करने से तप देवत्व नहीं देता देवत्व पाने के लिए पंच विकारों मुक्त होना पड़ता है। सफाई पोस्टर पर थोबड़ा चिपकाने से स्वच्छता नहीं मिलती काली नदी घुस हाथों कचरा काढ़ सीचेवाल होना पड़ता है। दोस्तों को बेच देने से भारत विकसित नहीं बन जाता हलधर की तरह खटकर विकास उगाना पड़ता है।
बादलों के थमने बरसने का : डॉ. जसबीर चावला
बादलों के थमने बरसने का हिसाब करते हो कोई ग्रह नक्षत्र हैं जिनकी गणना करते हो? हर वक्त थामे बाबा साहब की किताब रहते हो शहीद हलधरों के नाम दर हफ़्ते रोज़ा रहते हो। उन्हें तो हुनर है गद्दी से चिपके रहने का तुम वैसे ही झांसी रानी फोगाट रटते रहते हो ! सिंघू पर शहीदों के नाम यादगारी गेट ही बन जाए अमर किसान ज्योति के लिए उगाही करते हो? साढ़े सात सौ हलधर परिवारों को मिले मुआवजा ! हाईवे खोद बैरीकेड डालने वालों की निंदा करते हो?
जिनके पैरों का कभी : डॉ. जसबीर चावला
जिनके पैरों का कभी जमीन से संपर्क नहीं हुआ वे हलधर के लिए नीतियां बनायेंगे! अलग-अलग देशों की थ्योरी में राष्ट्र को पढ़ा वे खालसा को राष्ट्र भक्ति सिखायेंगे! जो अपने वतन का ठीक नाम तक न रख पाये वे लाल किले पर पांच बार तिरंगा फहराने की गारंटी दुहरायेंगे जिन्हें गुजरात -गुजराती के सिवा कुछ नहीं दीखता वे पंजाब को भी सिंध की तरह राष्ट्र गान से हटायेंगे! हलधर ! वे देशद्रोही हैं जो तेरा नाम लेकर खालिस्तान प्रचरायेंगे अपना उल्लू सीधा करने तुझे बाडरों पर भुनवायेंगै।
आह भरते ही कत्ल किए जाते हैं : डॉ. जसबीर चावला
आह भरते ही कत्ल किए जाते हैं हमास कह बदनाम किए जाते हैं। हमारी नसल नेस्तानाबूद कर दें दवा दिखाते पर ज़हर दिये जाते हैं। बंदी बनाओ आशियाने धूल कर दो वतन में ही जलावतनी जिये जाते हैं। नकली दवायें फसल बर्बाद कर दीं मजबूरी में हार , क़र्ज़ लिए जाते हैं। हलधर मालूम है हकीकत राष्ट्र की शांत हैं , वोट पे चोट किये जाते हैं।
न संघर्ष विराम के लिए : डॉ. जसबीर चावला
न संघर्ष विराम के लिए, न युद्ध विराम के लिए देश तैयार हो रहे विश्व संग्राम के लिए। जो दबे उसे इतना दबाओ कि फिर उठ न सके जो झुके उसे इतना झुकाओ कि फिर खड़ न सके जो नमे उसे इतना नमाओ कि ले दम न सके यह कैसी विदेश नीति है शांति के लिए? हलधर एक बार याहू से ही पूछ लो जो बंधक तुमने बनाये हैं, वे इंसान नहीं? तुम्हारे बंधकों का दाम है उनके बंधकों का कोई नाम नहीं? एक मरेगा तो सवा लाख हमासी मारोगे? बच्चे बूढ़े मातायें, सब भून दोगे? भगा -भगा के मारोगे? घर घुसाके मारोगे? अस्पताल तक न बख्शोगे? बेदवा, भूख-प्यास से तड़पा के मारोगे? मददगार भी मारोगे? इतना गुस्सा भी ठीक नहीं। हठधर्मिता भी सम्यक होनी चाहिए! विश्व युद्ध का ठीकरा किसी के सर न फूटे , जसबीर हलधर की राय मान लो!
घर अभी संभला ही था : डॉ. जसबीर चावला
घर अभी संभला ही था कि फिर उजड़ गया टोही नज़र में फिर कोई फिलीस्तीनी गड़ गया। मुंह पर नकाब बांध के शुक्राणु संभाल लो अश्वत्थामा दागके ब्रह्मास्त्र, उखड़ गया। नाप लो दूरी आकाशी राजधानियों के बीच मिसाइल था निशाने पे, फलक में ही भिड़ गया। क्या कहोगे विज्ञान के ऐसे चमत्कार को सर का इलाज करते और उम्दा, पर धड़ गया। हलधर को यही ग़म मौत तक खाता रहा धरने दिये, बंदे मरे, कानून फिर भी मढ़ गया।
अफसोस! और हैरानी भी : डॉ. जसबीर चावला
अफसोस! और हैरानी भी शांति तो चाहते हो पर युद्ध विराम नहीं! बंधकों को जिंदा वापस चाहते हो, बंदियों को रिहा करना नहीं!! बंधकों की मुक्ति, बंदियों की नहीं!!! कहते हो चौदह सौ मरे हमारे, तुम चौदह हजार नहीं , चालीस हजार मार चुके अधिकांश हमासी जिहादी नहीं, औरतें और बच्चे निर्दोष। जो बचे खदेड़े जाते इधर से उधर भूखे प्यासे, खौफ़जदा, ज़िंदगी से हारे। हलधर नानक फरियादी कहे--- एती मार प ई कुरलानें तैंकी दर्द न आया साढ़े सात सै भये शहीद, तौभी काला कानून न हटाया!
जो आपस में बैर रखना सिखाये : डॉ. जसबीर चावला
जो आपस में बैर रखना सिखाये वह मजहब नहीं है जो अपने ही हलधर को खालिस्तानी बताये वह सज्जन नहीं है। उसकी आत्मा में ईरखा है, वह कलाकार काबिल नहीं है खूबसूरत जिस्म हो सकता है, महान वह हर्गिज नहीं है। चोरों को सारे चोर नज़र आते हैं, हो सकता है, पर सारी औरतें भाड़े की होती हैं, रंडियों की नज़र इतनी भैड़ी नहीं है। सरकार अहिंसक धरनों को भी काम काज में बाधा समझती है सबसे सलाह मशविरा तब कानून वाली नौटंकी लोकतंत्र नहीं है।
अब कोई गुलशन नहीं उजड़ता : डॉ. जसबीर चावला
अब कोई गुलशन नहीं उजड़ता अब वतन आजाद है, अब कोई हलधर हो या अग्निवीर, खुदकुशी नहीं करता अब वतन आजाद है। अब जवानों को ओवरडोज दे खत्म किया जाता अब वतन आजाद है, अब लड़कियों का बलात्कार कर मार दिया जाता अब वतन आजाद है। अब मूल मुद्दों को तसले डाल, चुनावी माहौल गर्माया जाता है अब वतन आजाद है, अब किसानों को ट्रैक्टर ले राजधानी में घुसने नहीं दिया जाता अब वतन आजाद है।
वही माहौल सिरजा जा रहा है : डॉ. जसबीर चावला
वही माहौल सिरजा जा रहा है गाता कलकत्ता चिल्ला रहा है। पहले हुआ तो , अब क्यों न हो? आपातकाल कुलबुला रहा है। आंख खोल देखिए कपोत जी बिल्ली नहीं बिल्ला बिलला रहा है। बांग मस्जिद पे कि अदा हो सुरंग में हलधर हमासी बिलबिला रहा है। ट्रम्प को गोली लगी जिस कान पर वही हैरिस राग गुनगुना रहा है!
हिंदुओं को अपनी घट रही संख्या : डॉ. जसबीर चावला
हिंदुओं को अपनी घट रही संख्या की चिंता खाये जा रही ले एक बड़ा निर्णय भगदड़ मचायें मुसलामानों पर चढ़ जायें, मुसलमान सिक्खों पर, सिख ईसाईयों पर, ईसाई बौद्धों पर, बौद्ध जैनियों पर, जैनी सारा मांस एक्सपोर्ट करने का लाइसेंस पा जायें । अछूत दलित संविधान में घुसे रहें। दूसरा बड़ा निर्णय--- निकास बंद कर दें, गलकर लुगदी बन जायें। सिख नौजवानों को दें ओवरडोज मरें तो मरें, नहीं नपुंसक बन जायें। हलधर धंसे रहें धरनों में, फंस पाते रहे शहीदियां, खाते रहें जुत्तियां, देश का ढिड भरते देते रहें अग्निवीरी फौज।
हर रात की सुबह होती है : डॉ. जसबीर चावला
हर रात की सुबह होती है हर अंधेरे की हद होती है। कहीं कोई भी हो नस्लकुशी इंसानियत को दरद होती है। चाहे यहूदी मरे या फिलीस्तीनी ज़िंदगी मौत की जद होती है। हलधर तूफ़ान से टकराता है उसकी हिम्मत ही मदद होती है। गुरु वैसों की हिफाजत करता अरदास दुआए- वफद होती है।
बुत गिरते हैं : डॉ. जसबीर चावला
बुत गिरते हैं, तेज़ हवाएं चलें न चलें पात झरते हैं , पीले पड़ें न पड़ें। बेईमानी भगवान संग चलती है भक्त शिवाजी के पकड़ें न पकड़ें। जुत्ता मारो जां चटाओ तलवे भ्रष्टता की फैली जड़ें ही जड़ें। नेताओं की गारंटियों पर मत जाओ हलधर मंचों पे ये मारें फड़ें ही फड़ें। गलतियां नज़र अंदाज़ न गुनाह माफ सियासती परवार बहाने घड़ें ही घड़ें।
एक दूसरे को माफ करने में : डॉ. जसबीर चावला
एक दूसरे को माफ करने में ही भलाई है रूसी यूक्रेनी निर्दोषों ने जान गंवाई है। ठगी बिल्लियां आपस में लड़ती रहें सदा सियासती बंदरों ने ऐसी जुगत लगाई है । माफी द्यो जी गलती हो गई, रटे जा रहे ग़लती -माफी की अच्छी रील चलाई है। मुंह से बोल भर नहीं, गद्दी से मांगनी होगी बड़ी हिम्मत चाहिए कबूलें, जो सच्चाई है। किसी लायक हलधर के कमान सुपुर्द करो कम अक्ली ने कौम को भारी क्षति पहुंचाई है।
तारीफ निगाहों से हो गयी : डॉ. जसबीर चावला
तारीफ निगाहों से हो गयी ज़ुबां को कुछ न दिखा न तेरे चाहने से रात हुई, न कोई दिन ही निकला। ज़िक्र क़यामत का हुआ, तेरा जलवा न दिखा भू-स्खलनों दबा, गांव लाशमय निकला। बंधक बंदी भी मरे, जिहादी अफसरान मरे तबाह मुल्क हुआ, नेता न तानाशाह निकला। कसमें नारे खाये, एकता फिर न हुई भूल धरने हलधर लाल किले जा निकला। गुरु की संगत में निमाणिआं दा मान गुरू सियासते संगत में परधान निमाणा निकला।
कल का पता नहीं : डॉ. जसबीर चावला
कल का पता नहीं,सौ पीढ़ियों का हिसाब करता है सुर-असुर लड़े , अमृत -काल की बात करता है। धर्म सनातन, वैर का अवैर से होता शमन पुराने इतिहास के बदलों की बात करता है। सियासतदान है, नैतिकता से उसे क्या लेना जहां सधे रामायण -महाभारतों की बात करता है। कैसे पता चलेगा सिंहोल साधना सफल हुई? चार सौ पार वाली नयी इमारत की बात करता है। हलधर क्या लिखेगा कभी व्यथा खोलकर? जब मिले, योग-कानूनों-सी मन की बात करता है।
खुद को देख : डॉ. जसबीर चावला
खुद को देख, औरों की बात मत कर ख़ुदा है, क़यामत की बात मत कर। हम यहां जिंदा हैं, जिंदगी से लड़ते हुए लाशें बेच ले , मरने की बात मत कर। सिर्फ जलवायु नहीं, धरती बदलती है यारो याही, फोनी-से चक्रवातों की बात मत कर। चांद को झटके लगें, यान जब भी उतरें पहाड़ हिलते हैं, दरारों की बात मत कर। हलधर बाडर पे मरें या टोल प्लाजा पर उनको बस रोके रख, कोई बात मत कर।
सीधा वाद-विवाद होता : डॉ. जसबीर चावला
सीधा वाद-विवाद होता अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में बचाव-घुमाव होता, मंदिर -मस्जिद करते मूल मुद्दों से भटकाव होता भारतीय चुनाव में। बात कुछ और, और की और बना देते हैं धर्म केंद्रीय विंदु बन जाता, मसला भ्रष्टाचार का बिखर जाता सत्ता और विपक्ष के बदलाव में। हमाम में सारे नंगे हों तो नहाने के नियम बदल दें पांच साल हलधर संग मिट्टी में रलो, अथवा पांच साल सीमा पर फौजी मार्च का विकल्प दिया, तब कोई जनता के बीच जा मतों की मांग करें विश्व गुरु बनने की कोरी बकवास नहीं, कुछ काम करे!
इधर भी धोखा : डॉ. जसबीर चावला
इधर भी धोखा, उधर भी धोखा धोखा हर तरफ़ है देश -परदेस चहुं ओर धोखा लीलाधर किस तरफ़ है? बीज में धोखा, खाद में धोखा दवा में धोखा, क़र्ज़ में धोखा बीमा धोखा, मंडी धोखा डीजल से हलधर बेबस है। ट्रैक्टर धोखा, ट्राली धोखा नेता धोखा , लारा धोखा मीटिंग धोखा, वादा धोखा एमेस्पी करोड़ों का चक्कर है।
कलजुग जाने वाला है : डॉ. जसबीर चावला
कलजुग जाने वाला है, सतयुग आने वाला है गीता का ज्ञान प्राप्त हो पुतिन जेलेंस्की दोनों समरपुंगवं युद्ध क्षेत्रे रक्त-पिपासु अड़े, जाकर हम पढ़ा आए ऊपर से शुभाशुभ परित्यागी दोनों। आम जनता तो पहले मरी हुई विराट दर्शन करती, काल-मुख में ठेलना-भर है! ग्राफिक्स में सैन्य-दल को साफ करने में कितना समय लगता है? युद्ध -अपराधी वे कभी नहीं कहलाएंगे दोनों अहिंसा के पुजारी बने रहेंगे बयानबाजी में आत्मरक्षा का अधिकार सीखेंगे इसराइल से, नये मोर्चे खोल-खोल तय संहार मचायेंगे। गजा के हलधर गिड़गिड़ाते शांति पूर्ण प्रदर्शन किस सीमा पर करें? हर फिलीस्तीनी किसान के भीतर सुरंग है! कंप्यूटर पर वार-गेम्स खेलने वालों! तुम्हारी देह में इक सूई चुभे तो कैसा कितना दर्द होता है ? पर्दें पर नर-संहार की पीड़ा क्या दिख पायेगी? ब्रह्मा या कोई बाबा कृपा करे सतजुग खुद आये या लाये पर इस मानवता को हिंसा की आग से बचाये।
आज हर आदमी व्यस्त है : डॉ. जसबीर चावला
आज हर आदमी व्यस्त है मोबाइल त्रस्त है। गरीब अमीर इक बराबर बीमारी ग्रस्त है। किसी को किसी से वास्ता नहीं खुदीपरस्त है। बच्चा बूढ़ा औरत मर्द उसी में मस्त है। हलधर क्यों धरे धरने? पूंजी से बाजार पस्त है। सूरज चढ़ेगा पश्चिम से पूरब में अस्त है।
घर अभी संभला ही था कि : डॉ. जसबीर चावला
घर अभी संभला ही था कि फिर उजड़ गया टोही नज़र में फिर कोई फिलीस्तीनी गड़ गया। मुंह पर नकाब बांध कर शुक्राणु संभाल लो अश्वत्थामा दाग कर ब्रह्मास्त्र उखड़ गया। नाप लो दूरी आकाशी राजधानियों बीच मिसाइल था निशाने पे पहले ही भिड़ गया। क्या कहोगे विज्ञान के ऐसे चमत्कार को सर का इलाज करते उम्दा, पर धड़ गया। हलधर को यही ग़म मौत तक खाता रहा धरने दिये, बंदे मरे, कानून फिर भी मढ़ गया।
प्याज सेब एक-से दिखते : डॉ. जसबीर चावला
प्याज सेब एक-से दिखते, एक-से बिकते एक को नासिक दूजे को किन्नौरी कहते इस ठेले पर दोनों लोकल, दोनों की अपनी पहचान एक झांझला दूजा मीठा, दोनों में फैली मुस्कान। नफरत नहीं प्यार से करते इक दूजे का खूब बखान हलधर ने दोनों को सींचा यही पढ़ाया हो कुरबान:- पूंजी हाथों बिक न जाना पद का न करना अभिमान न्याय हेतु तो सड़-गल जाना पर,संविधान का रखना मान।
सुग्गा टींया तोता पोपट : डॉ. जसबीर चावला
सुग्गा टींया तोता पोपट, मारे गए बेपैसे फोकट। पेजर ने जो आग लगाई, सारे बेरुत मची दुहाई। जो बरतेगा मानव-बम, उसे करे मोसाद खतम। घुन को चुन कर अलग करायें, तब जाकर गेहूं पिसवायें। मरता एक हमासी नेता, सौ निर्दोषों की बलि देता। हलधर, यह तो नर-संहार, बदलाखोरी मारोमार।
जो बलात्कारी सीसीटीवी निगरानी में थे : डॉ. जसबीर चावला
जो बलात्कारी सीसीटीवी निगरानी में थे डाक्टरों की लंबी हड़तालों के बावजूद पकड़े नहीं गए, सभा संसद में घुस गए। पीकर जो खाली बोतलें/कैन फुटपाथ किनारे/पार लुढ़का/थ्रो कर देते शहर ने उनके लिए बड़े-बड़े शो-रूम खोल रखे इंग्लिश वाइन और बीयर के धड़ल्ले से वे न्यायधीशों के घरों में घुस गणेश की आरती उतारने लगते छप्पन -छप्पन ईंच की क ई तख्तियां अपनी कारों किरदारों पर लटका रखीं, गर्व से यही कहते हैं: हम बुल्डोजर हैं! आगे से , पीछे से चढ़ा देंगे हलधर! रास्ते में मत आओ! मत धरो बाडर! राजधानी में दिल्ली वालों को नहीं बख्शा चाहे जिस खेत की हो, मूलियां उखाड़ व्यापार करते मुरलीधर।
वोट देने पर ही सब ठीक हो जाएगा : डॉ. जसबीर चावला
वोट देने पर ही सब ठीक हो जाएगा पाप है सोचना कश्मीरियों! लोकतंत्र है, समय लगता है ठीक करने में सब शांति से, खराब करने में नहीं। धीरज रखना होगा, हलधर खुदकुशी करेंगे नेता मौज करेंगे! मूर्तियां तोड़ने मत लग जाना धरने धरना, मतदान करते करना अगली सरकारों खातिर शामिल रहना सुधार में, देश का हिस्सा बन हिसाब करते रहना जिम्मेदारी ले, बातचीत के रास्ते बदमाशी हटाते, इंसानों बीच खुदा को न खींच लाना!
चांद के पार जाने को तो तैयार : डॉ. जसबीर चावला
चांद के पार जाने को तो तैयार पर चार सौ के पार नहीं जनता, नशे में जो हो जाते, संभाल लेती पर आस्था को रोजगार का बदल मानने को नहीं तैयार, रुझान नतीजों में घुस तो जाती जरूरी नहीं, वैसी ही निकले हलधर! मौसमों पर जैसे फरमान न चले! एक राष्ट्र, एक चुनाव ,एक ही बार खर्चा कम एक सरकार लगातार बढ़-चढ़कर भ्रष्टाचार!
हलधर, जमीन बेच दे : डॉ. जसबीर चावला
हलधर, जमीन बेच दे, सरपंच बन जा छोड़ वाही, बोली खरीद ,प्रपंच बन जा। नेतागिरी के कुछ गुर तो सीखे ही होंगे लल्लो पच्चो, दो नंबरी एजेंट बन जा। खा - खिला ,ले जेड सुरक्षा,ऐश कर सरकारी दौरे, भत्ते -पेंशन ,विरंचि बन जा। आत्म -रक्षा नाम पे , तबाह कर सारी खुदायी शांति- बंधक, युद्ध का विष-डंक बन जा। अस्पताल धर्मशाल स्कूल , प्रसाद,मंदर हर जगह भ्रष्ट बेशर्मी का आतंक बन जा।
चुनाव प्रचार चरम पर है : डॉ. जसबीर चावला
चुनाव प्रचार चरम पर है कुठाराघात धरम पर है। नगदी-नशा बरामद है लेन-देन शरम पर है। दल-बदलू सियासत है नेतागिरी नरम पर है। वोटों का व्यापार भला सरपंची गरम पर है। हलधर तेरी भाषा मीठी मरहम एक ज़ख़म पर है। चर्बी लड्डू -प्रसाद मिली पावन पूज्य परम पर है।
हमास को सबक सिखाने : डॉ. जसबीर चावला
हमास को सबक सिखाने दुनिया तबाह कर दोगे? अरे दादा, थमो! गुस्से में खुद को स्वाहा कर लोगे! पहले एक बिगड़ैल को संभालते ही हालत खराब थी ऊपर से तुम भी नहीं समझे तो सृष्टि उबाल दोगे। हलधर को उबर लेने दो कृषि के काले विवादों से कश्मीर -लद्दाखी धरनों हेतु संविधान उलाट दोगे? दुनिया नाराज हो रही तुम्हारी हठधर्मिता को देख दबाव बनाये रिहाई खातिर,टुक शांति का माहौल तो दोगे! जो काम प्यार से हो सकता, उसे धमका करें, क्या तुक? अब तक हजारों जो मरे , साम्राज्य गठित कर,जिला दोगे?
एक ने अपनी खुफियागिरी : डॉ. जसबीर चावला
एक ने अपनी खुफियागिरी का लोहा मनवाया है दूजे ने अपनी आतंकीगिरी से सबक सिखाया है। दोनों के अतिवाद में पिस रही बाकी दुनिया हलधर बचाओ! बाबा नानक ने जिम्मा लगाया है। यह ठीक है, विकल्प न बचे, तो जायज़ शमशीर जुल्म से टकराने को 'पहले शहादत' पढ़ाया है। साल भर बाद सही, बंधक सुरक्षित घर लौटें लड़- धमकियों लाशें तक न मिलें, आजमाया है । गुस्से लगाम दीजिए, युद्ध -बंदियों को छोड़ लगे कि शांति -समझौतों निमित्त कदम बढ़ाया है।
कुछ ऐसा करो कि जंग रुक जाए : डॉ. जसबीर चावला
कुछ ऐसा करो कि जंग रुक जाए बर्थ-डे-केक लगी कैंडल बुझ जाए । शहीदों को याद करते बदलों से बचें ऐसा न हो हिंसा में माथा झुक जाए। बैर से बैर , कदापि नहीं जीता जाता क्रोध की ज्वाला से प्रेम न पाला जाए। एक खेत बचे, पैली पूरी सड़ती तो सड़े ऐसी दलील से पहले हलधर उठ जाए। बंधक छुड़ा लें, जनता बनी है हमास करो युद्ध विराम तो दुनिया जुट जाए!
वे बना लें तो बंधक : डॉ. जसबीर चावला
वे बना लें तो बंधक, तुम बना लो तो बंदी? वे तो फिर भी शेखी बघारें, तुम बताते तक नहीं! वैसे ही जुल्म ढाते, जैसे वे औरतों से करते दोनों में कोई खास फर्क नहीं। तुम्हारी बपौती है सड़क? बैरीकेड बाड़ें लगा रखीं, नहीं उन्हें चलने की आजादी? किस बिनाह पर पकड़ते उनको? वे मुफ़लिस गंवार अनपढ़ तुम्हारे जैसे नहीं वैज्ञानिक। अभी भी वे कुरानपरस्त, मदरसेदार, कयामती बाकी दुनिया में दिलचस्पी नहीं। तुम नासा-वासा के माहिर खोजी धनी। पेजर फाड़ सकते, वाई-फाई उड़ा सकते मोबाइल धमाकों में। मार सकते उनके महारथी बंद कर सकते दुनिया का संचार पैगासस लगा सकते कोई क्या बात करता जान लेते तार-तार! तुम्हारे मिसाइल सुरक्षा तंत्र अभेद्य तुम्हारे खुफिया विभाग बेजोड़ सबसे बुद्धिमान तुम्हारी प्रजाति। जुल्म बन गया यह अहंकार? विनाश मानता लोहा संकट में डाल दुनिया को नहीं कर रहे उपकार! मत भूलो भारत विश्वगुरू! कहीं गलती से भी हलधर! प्र.मं हो गये घोड़े पर सवार घोषित कर देंगे खुद को कल्कि अवतार ठप्प हो जायेगी प्रणाली। मिसाइल नहीं, इंडिया-मेड तलवार ही काम आयेगी।
जो खुदकुशी करते, वही सच्चे हलधर : डॉ. जसबीर चावला
जो खुदकुशी करते, वही सच्चे हलधर खट्टर की नजरों में बाकी बेईमान कंगना की नज़र से खालिस्तान। मच्छर -सा उन्हें मसल दो बचा रहेगा संविधान! उनकी जमीनें जबरदस्ती दखल लो सीधा रहे राष्ट्रीय राजमार्ग वितान। उजड़ जायें गांव कोई बात नहीं भारी वाहनों की तेज़ रफ़्तारी में न आए कोई व्यवधान जरूरी है देश का विकास तबाह होती ग़रीबों की जान।
मिट्टी के बने थे : डॉ. जसबीर चावला
मिट्टी के बने थे, अब पत्थर के हुए दिल ओ दिमाग सख्त नामवर हुए। पनाह अस्पतालों में बरामदों के बीच हमास यहीं कहीं है, बाखबर हुए। मौत दर मौत हर जान जा घुसी उजाड़े गयों के फुटपाथ घर हुए। टेढ़ी शनि की दृष्टि मिसाइल बन लगी मातम खौफबारी के मंजर शहर हुए। सुकून कहीं हो तो जायें उस जगह हलधर हवाई रुख संभल पुरखतर हुए
शहीदी धरनों का तो असर न हुआ : डॉ. जसबीर चावला
शहीदी धरनों का तो असर न हुआ सख़्त लहजे का असर क्या होगा? झोना रुलता रहेगा मंडी में आढ़ती सेहत, असर क्या होगा? विज्ञापनी नारों में फोटो चमके जमीनी मुद्दों पे असर क्या होगा? हलधर दौड़े हरेक खंभे तक घाटे क़र्ज़े पे असर क्या होगा? अफसरशाही की गुंडई बरपी पराली धरी , असर क्या होगा? नये सरपंच कमर कस देखें ड्रग माफिया पे असर क्या होगा? धरती गुरुओं की बिलखती लालो! कूड़ परधानी, असर क्या होगा?
कुछ भी लिख नहीं पा रहा : डॉ. जसबीर चावला
कुछ भी लिख नहीं पा रहा समय बीतता जा रहा। दाना गो' नाम कतर का कहर उड़ीसा में ढा रहा। बंगाल उसी की चपेट में चक्रवाती रगड़े खा रहा। भारत बन भीगी बिल्ली शेर का फ़र्ज़ निभा रहा। हलधर रुलता झोने संग देशप्रेमी नग्मे गा रहा। सिख जवानी साजिशन चिट्टे मगर लुटा रहा। भय विच तखत बेहाल है सुक्के लैंदा सा(ह) रहा।
रह रह के बरसती हैं दाना की बदलियां : डॉ. जसबीर चावला
रह रह के बरसती हैं दाना की बदलियां सुबह से दुख रही हैं नगर की पसलियां हर तरफ पानी,हर गली गीली हर भरी नाली, जमतीं हैं छपड़ियां। रास्ते अटके, पथिक हैं भटके, भूख से खिसियातीं खंभे नोंचतीं , बिल्लियां। रुकती है थोड़ी देर, फिर शुरू हो जाती दूर चमकती हैं बारिश से बिजलियां। चक्रवाती है दाना खाड़ी बंगाल में तेज घूमता, हवायें नचाता, लहरें उठाता पानी में डुबा देता कई ठांव धरतियां। तबाही मचाता आतंकी लुटेरा है नादिरशाह दाना कहाता, उड़ीसा है पकड़ में बंगाल अकड़ में बकवास से भी आगे की इसकी कहानियां। हलधर क्षति करेगा यह, फसलें संभालना! बांग्लादेश को दे रहा लगातार घुड़कियां।
खबर के आगे क्या है? : डॉ. जसबीर चावला
खबर के आगे क्या है? परतों में क्या है? हलधर क्या जाने? वह जाने जमीनी हकीकत जाने मिट्टी की परतों में क्या है बीजों में क्या है, फसलों में क्या है। जाने कीटों की दवाईयों की। न जाने असली क्या है, नकली क्या है न जाने नेता के मुंह क्या, दिल क्या है? न जाने अंग्रेजी इबारत में लिखा क्या है ? उसके अंगूठाछाप होने का खतरा क्या है ? कोई समझाता भी है तो उसकी मंशा क्या है? दाना दाना चुक लेंगे फिर मंडी में जो रुल रहा, वह क्या है? खरीद एमेस्पी पर कही उसके हाथ जो फड़ाया, वह क्या है? शेलर आढ़ती का भीतरी रिश्ता क्या है? बघनखा पहन रखा क्यों इस पूंजी तंत्र ने? उसकी आंदरां उखाड़ बाहर करते केंद्र और राज्य का चक्कर क्या है? क्या वह इस देश का नहीं? उसने सरकार नहीं चुनी? उसके साथ इस बेईमान नौटंकी सलूक का मतलब क्या है?
आकाशवाणी बन चुकी मन की वाणी : डॉ. जसबीर चावला
आकाशवाणी बन चुकी मन की वाणी मन का बड़ा -सा चेहरा भी बाहर लगा। एक पूर्वज पत्थर को तकिया बना सपनाया मामू की भेड़ें चराता रहा चौदह साल दोनों ममेरी बहनों को बीबीयों में तब्दील करने खातिर और दो बांदियों से भी भेड़ों की तरह इकट्ठी कीं संतानें। हलधर देखो! चीन फिर बच्चे पैदा करवा रहा जवानी भड़का शादियां करवा रहा। देखो, कैसे रूस जेल कैदियों को फौज में लड़वा रहा देखो! जापान हारकर ए.आई लैस रोबोट से काम चला रहा। युद्ध करते मरने वालों की कमी हो गई है देश के लिए मरने वालों की तो और ज्यादा। तुम सिख जवानों को चिट्टा चटा मार रहे कल ऐसे जांबाजों का भीषण अकाल होगा। छप्पन की छातियां थैला लेकर विदेश चल देंगी। हलधर! पूरे संचार तंत्र में फैल रही माहवारी आवर्जना को कहां -कहां संभालोगे?
ज़ख़्मों का ज़ख़्मों से इलाज होगा? : डॉ. जसबीर चावला
ज़ख़्मों का ज़ख़्मों से इलाज होगा? गजा में गजनवी राज होगा? धनतेरस खरीदो सोना-चांदी आगे हर चीज से मंहगा अनाज होगा। दीवाली आ गयी आ गये दीये धमाका दिल्ली बेआवाज होगा। हलधर जलाओ न पराली खेतों हर मुआवजा मुकदमेबाज होगा। तुमको बाडर पर रोक लेते हैं हरियाणे का धुआं नाराज होगा। सड़क करती सवाल संसद से खाजा टके सेर कल कि आज होगा?
क़त्ल से कत्लेआम उपजता : डॉ. जसबीर चावला
क़त्ल से कत्लेआम उपजता कत्लेआम से नस्लकुशी कोई देश हो, कोई काल हो बैर न मेटे बैर न दे कोई खुशी। न कोई मोमिन, न कोई काफ़िर सब में नूर इक, जोत वही। भांति-भांति के फूल औ' पत्तों धरती माता खूब सजी। खूब पटाखे फोड़े किंतु दीपावली रही हरी! वायु बिगड़ी क्यूंकि पंजाबे पराली सड़ी। हलधर के सिर फोड़ ठीकरा राजनीति चाणक्य चली इनको शर्तों में उलझा दो, सिखों की मूरख मंडली। जब तक इनको पता चलेगा कहना अब तो देर हो चुकी चंडीगढ़ हाथ से निकला, अब बारी पूरे पंजाब की! इंदिरा गांधी तुमने मारी, हमारी सारी साजिश चली तुम गुरू के शुकराने करो, हर साल मनाओ दिन-नस्लकुशी!
घरों में लटकें ताले : डॉ. जसबीर चावला
घरों में लटकें ताले, बाहर हैं रहने वाले हर शाम गूंजें शंख, दिनों को लगे पंख त्योहार संग ब्योपार , धर्म खरीददार कहां जले पराली, हलधर ने बेच डाली रसातल गया पानी, पंजाब की जवानी गुरुओं प्यारी धरती, शहीदी देदे मरती गैरों को सिर ताज, खालसा मोहताज छडाये हिंदू राजे, अटकाये सिख राजे
पंजाब दिवस कोई न मनाया : डॉ. जसबीर चावला
पंजाब दिवस कोई न मनाया सारे मनाये रोष दिवस सिखों को इंसाफ न मिला बीते हालाकि चालीस बरस। बेगुनाहों को जलाया, घरों-दुकानों को लूटा बेपत किया औरतों को, बच्चा तक न बख्शा "भारी पेड़ गिरा है, इतना तो बनता है", सफाई दी । हलधर ! तुम भी तो सिख हो पहले कभी की थी खुदकुशी? तुम्हारी जाति के किसी ने गोली मारी साथ पूरी कौम ने सही सत्ता की बदमाशी। तुम्हारी सहनशील अहिंसा से किसी ने सीख ली? उल्टा दिल्ली जा विरोध प्रकटाने की आजादी छीन ली।
कुर्सी मुझसे चिपक गई थी : डॉ. जसबीर चावला
कुर्सी मुझसे चिपक गई थी मैं तो इससे आजिज था। जो भी ग़लती हुआ करे थी मैं तो उससे खारिज था। दुनिया जिनसे ईर्ष्या करती उन सबका मैं वारिस था। गद्दी मेरे सिर चढ़ बोली चाटुकार इन चारिज था। हलधर वाहेगुरु फतेह बुलाते मेरा इंगलिश नालिज था!
जहरीली धुएँ की चादर : डॉ. जसबीर चावला
जहरीली धुएँ की चादर अंतरिक्ष से दिखने लगी है लोहा मनवाने की धुन में विष फैलाता बाहुबली है। अंधी दौड़ में चाकू चलाते भिड़ रहे इक दूजे से मदद में छुपी बेईमानी , शांति में शत्रुता पली है। हिंसा से हिंसा खत्म करने का निर्रथक हल ढूंढ़ते हैं ऐसे इलाज़ से तो रिश्तों की नाराजगी भली है। विश्व नेता जमा हो किस विकास की योजना बना रहे? दिख नहीं रहा उन्हीं के सदके धरती बारंबार जली है! हलधर आमरण अनशन पे बैठा चेता रहा है हक की कमाई हड़पने वाली पूंजी की गोली चली है।
चुनावी भाग्यों का फैसला हो जाएगा : डॉ. जसबीर चावला
चुनावी भाग्यों का फैसला हो जाएगा पर भारत-भाग्य का क्या होगा? दल-बदलूओं के पैंतरे हैं, समीकरण हैं एक से एक बड़े चाणक्य बने हैं अविद्यस्य धनम् ही धनम्! जनता अपने मुद्दे ले, ऐपर कहां जाये? किस पर करे यकीन, बात सड़क से संसद कैसे पहुंचाये? मजूर किसान सिंघू लांघते छलनी होते अग्निवीरों के दर्दनाक किस्से दुहराये! हलधर! मन की व्यथा मन ही राखे गोय धरने लगाये मन की बात कैसे जपे? कितना गाये? राजधानी का दम घुट रहा, वाहनों के धुंए से खेतों में बेकार बिगाई पराली कहां तक बचाये? गुजरात राष्ट्र, बंगाल राष्ट्र, तमिल को अपना राष्ट्र बस बैंड खालसा भारतीय राष्ट्रगान बजाये। पर अमृत महोत्सव से पहले सबसे ज्यादा शहीदियां देने वाला अच्छा हो, इसकी आजादी को फिर से बचायें!
हमारे पूर्वजों के पहले : डॉ. जसबीर चावला
हमारे पूर्वजों के पहले तुम्हारे पूर्वज थे ज़मीनों के मालिक, सत्ता पे काबिज तुम्हारे पूर्वजों के पहले हमारे पूर्वज थे सम्राट और राजाधिराज! वंशज लड़ रहे पूर्वजों की लड़ाई खून- खराबे में लग रही पूरी पढ़ाई। मंदिर मस्जिद बने या मस्जिद मंदिर पुरखे बीच में आ कैसे करें अगुवाई? सभ जग चलणहार, वयधम्म संखारा शंकराचार्य , बुद्ध और नानक सारे मानवतावादी बार-बार देते रहे समझाई, सबने एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति की राह दिखाई। कीचड़ से कीचड़ की कैसे हो सकती सफाई? वैर-बदले की हिंसा ने कभी नफरत मिटाई? जो सत्य है साफ दिखता, उसका क्या सर्वे? करो , जिसका न बाप न माई। पुरखों के अन्यायों को जायज क्यों ठहरायें? वंशज गलतियां सुधारें, छोड़ ढिठाई। राजनीति करते उलटें न सच्चाई । हलधर ने रस्ते नहीं रोके सरकार ने सड़क पर दीवार बनाई खड्डे खोदे , बाड़ लगाई, की गहरी खाई पूंजीवाद पर आंच न आये एमेस्पी की कानूनी गारंटी फिर ठुकरायी।
तंत्र तुम्हें जीने नहीं देगा : डॉ. जसबीर चावला
तंत्र तुम्हें जीने नहीं देगा और कानून तुम्हें मरने नहीं देगा वोट पे चोट कर चाहे डंके पर टोल पे बैठ चाहे बौडर पर सिंघू ते बैठ चाहे खनौरी पर धरने पर बैठ चाहे मरने पर! किसान मजदूर में तब्दील होता मजूर हड्डियों में तब तिजोरी फैलती एक से दूसरे मुल्क में। तब जंग होती, असले और चाणक्य बनते मुनाफे की लड़ाई ठनती, बाजार की मांग छनती, युद्ध छिड़ते, मिसाइल भिड़ते तोप -टैंक राकेट दगते शांति समझौते के नाटक पैंतरे मोहरे , खेमे बदलते सालों साल तनते! किसान पिसते, जवान शहीद होते परिवार उजड़ते, कुनबे विस्थापित होते घर मलबों बिलखते ! आम जनता फरियाद करती, मारी जाती, जेलों में सड़ती -पथराती सड़कों उतर पत्थरबाजी करती अगर गोलियां खाती जगह-जगह वही कहानी दुहरायी जाती! हलधर! यही पूंजीतंत्र है बिना समझे टूटता नहीं। चक्रव्यूह है, क ई अभिमन्यु क्षत्रिय खेत रहे भेदते! है किसी में ताकत तो वह तू है हलधर मजदूर सभ्यता की रूह है अन्न और मेहनत, किरती की किरत मिल एक हों, तभी फुल पावर तभी गुरु पवण और माता धरत महत हो!
अपने, तथाकथित घरों को न लौटते : डॉ. जसबीर चावला
अपने, तथाकथित घरों को न लौटते तो कहां जाते? जहां भगाये गये थे, बमों की बरसात में वहीं मर जाते? ये अपने तथाकथित, घर, जब छोड़े थे, क्या ऐसे थे? कोई और वक्त होता, इन्हें ऐसा देख, सदमे से मर जाते। अब तो जहां जैसे कहोगे, जान बचाने खातिर, जी लेंगे बार-बार विस्थापन का, संदिग्ध हैं, ज़हर पी लेंगे । लो, यहां सिंघू बाडर से सिख हलधर तुम्हारी निंदा करता है इसे हमासी बता दाग दो, किसी सुरंग की बात करता है। हद कर दी यार! बेगुनाह मार हिजबुल्ला- संवेदना जगाओगे? ब्लैक मेलिंग के जरिए युद्ध विराम में कितने दिन शांति पाओगे? बच्चे मार दो, जवान होंगे नहीं, जो बचे अपाहिज, करेंगे क्या? औरतें, गर्भवतियां मार दो, बांसुरी बंद,बांस बज करेंगे क्या? भूख-प्यास में तड़पा दो, मिसाइल मलबों में दफ़ना दो अपनी नाकामियों की क्रूरता, ढाल बतला, इन्हीं पर ढा दो! खुदा सुडानियों से ही नहीं नाराज, यूक्रेनियों से भी ख़फ़ा है पूंजी की टेस्ट ट्यूब में नाजी यहूदीपन जगह-जगह पैदा है!
लो, मेरी बेअदबी कर लो! : डॉ. जसबीर चावला
लो, मेरी बेअदबी कर लो! अंग-प्रत्यंग उखाड़ खुर्द -बुर्द कर दो! कुत्तों को डाल दो! रूड़ी पर खिलार दो! जूतों तले रगड़-मसल दो! विज्ञापनाओ! मशहूरी कर दो! पर सुनो! मैं पन्नों की महज़ किताब नहीं हूं गुटका या ग्रंथ नहीं हूं लाखों कुर्बानियों की साधना हूं, हजारों सालों की तपस्या का फल हूं, सिर्फ भारत नहीं, सकल जगत(सरबत्त)की भलाई का आधार हूं और सुनो! सिर्फ हलधर नहीं, दुनिया के सारे किरतियों का संबल हूं। आज तक मानवता का जो भला चाहते रहे हैं उनकी संजोई वाणी अचल ते अटल हूं। मुझे क्या सजा दोगे? सजा की सारी सीमाएं लांघ चुका हूं ! ककारों समेत पहले तो सिक्खी छीन लो! सिर मूंड ,कालिख पोत,गले में तखत लटका निमाणे-से गधे पर मेरी ही पगड़ी से खींच कर बांध दो ऐसा कि जिंदगी -भर उतर न पाऊं। तनखा मत लगाओ! अश्वत्थामा के कपाल में कोई मणि थी चाकू से खोद बाहर कर, रिसते घाव के साथ, अमर कर दिया था, कभी न मरे! मुझ निमाणे सिख की पूरी मनी कुर्क कर लो! कालिख-पुते चेहरे संग दर-दर भटकते गधे की पीठ बंधा अमरता से जोड़ दो! कोई गोली मुझे छेद न पाये आग जला न पाये दरिया डोब न पाये मैं फख्रे-सियासत, कुछ नहीं चाहिए दुत्कार मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो!
ऐतिहासिकल है : डॉ. जसबीर चावला
"ऐतिहासिकल है", मंत्री कह रहा है उसने क्लासिकल से तुक परम कुर्सी से मिला दी। शास्त्रीय हो उठी है आपकी भाषा चुनाव से पहले। अछूतों ने बनाई थी । भाषा के नाम पर अब जागृति आई अमृत काल में। आदर्श हैं आपके, स्तुत्य हैं हमारे। यह भी मुद्दा है जिस पर हो सकती नफरत की लड़ाई। हलधर! अब भाषा ले धरने पर बैठना! एमेस्पी का मुद्दा भूल जाना! वोट पे चोट मत करना अशास्त्रीय होगा सावधान! ऐतिहासिकल नहीं होगा।
संविधान ही अब मोहरा : डॉ. जसबीर चावला
संविधान ही अब मोहरा बन गया है सत्ता और विपक्ष दोनों चल रहे हैं दोनों के अपने मतलब निकल रहे हैं। पता नहीं, कौन सच्चे कौन नाटक कर रहे हैं! पहले किसान मोहरा था राजनीति अब भी जिस पर हो रही हलधर को कुछ मिले न मिले बयानबाजी ऊंचे पदों से रही अगर मिलेगा, साथ में फोटो किसका होगा वोट बैंक किसका बनेगा ? कर्म की चिंता कम, फल की ज्यादा हो रही। जब से गीता के ज्ञानी राजनीति में घुसे हैं रोजगार भेड़ियों के चंगुल में फंसे हैं नौकरी -पत्र डाकिए नहीं मुख्यमंत्री देंगे रंगारंग आयोजन में लाखों खर्च करेंगे सुर्ख़ियों बटोर , सरकारी मुंहमिट्ठूई करेंगे हर मतदाता कहता है एक और आचार संहिता लागू हो जिससे समय और धन का दुरुपयोग काबू हो।
हरा छिलका धीरे-धीरे पीला : डॉ. जसबीर चावला
हरा छिलका धीरे-धीरे पीला हो जाता है निमाणा सिख छिलके से भी गया बीता होता है? छिलका, हे हलधर! बिना सुरक्षा के पकता है प्रायश्चित में, गुरु से भुल्लां बख्शवाता, जोदड़ी करता है। हमले की फ़िक्र छोड़ संतरा अंदर ही अंदर घुलता है तनखा को आत्म-मंथन का अवसर समझता है। उसे क्या पता कब कोई उसकी फाड़ी-फाड़ी कर देगा वह गुरु को सौंप देता आसक्ति, बस सिमरन करता है। उसे सियासत से ज्यादा अपनी शुद्धि की पड़ी होती है कौम का जो करना था कर चुका , सद्बुद्धि बड़ी होती है।
सड़क से संसद तक : डॉ. जसबीर चावला
सड़क से संसद तक कुर्बानियां कुर्बानियां हलधर तेरी शहीदियां मरणव्रती निशानियां। जो मांगते हो देंगे, गर उनके गीत गुण गाओ जो चाहो लड़ कर लेना ,तो लो लाठियां औ' गोलियां। जलतोपें हैं तैयार, अश्रु गोले ड्रोनों संग मरजीवड़ों को देगी हरियाणा पुलिस पटखणियां। दिल्ली नहीं घुस सकते पैदल कतार बांध भी कानून जो तोड़ोगे लाशें ढंकेगीं पगड़ियां। बंधुआ मजूर बनकर फसलें वही उगाओ गिरवी जमीन रखो, देख छप्पन इंची छातियां। अडाणी देश छोड़ देगा ,माफ अमरीका करेगा नस्लें-फसलें खराब करने की खुली पूंजी एजेंसियां।
तुम अहिंसक हो : डॉ. जसबीर चावला
तुम अहिंसक हो, वे हिंसा पर उतारू हैं तुम खेतिहर गरीब हो , वे गरीब मारू हैं! वे हर विंदु, दौर दर दौर सिर्फ चर्चा को तैयार हैं इधर हलधर , क़र्ज़ ई ,मांगें मनवाने को बेकरार हैं। शंभू बाडर पर तुम्हारी शहादतों का कोई सानी नहीं मगर इन धड़ेबंदियों मिसलों का कोई बानी नहीं? उनके हाथ देखो , सत्ता धर कितने मजबूत हैं! हलधर देशद्रोही खालिस्तानी बेसबूत हैं ! तो बीच का, देख-समझ , कोई रास्ता निकालो खैरख्वाह आगू व्यर्थ में मर जायें, बचा लो! सम्यक से काम लो, वे दंड-भेद के सुलझे चाणक्य हैं ड्रामाबाज राजनीति के पुतली प्रमुख अमात्य हैं ! याद नहीं? हरमंदर की बेदबी करता रंडीबाज सोधा था दगाबाज को उसकी भाषा में ही प्रबोधा था!
लुटते महल देखे : डॉ. जसबीर चावला
लुटते महल देखे लंका-ढाका-दमिश्क में लुटेरे लीडरों की ऐश कब तक बहिश्त में? दरिंदे माल लेकर भाग , विदेशों में लें पनाह काली पूंजी का लें ब्याज वहां मोटी किस्त में। इक दिन करेगा याद अवाम, हलधर! कुर्बानियां शहीदों के नाम जुड़ रहे लंबी फेहरिस्त में। बदलेगा कब चुनावी धांधली का राजतंत्र? कूड़ और फरेब घुल-मिल रहे आम जीस्त में ! सच्चाई गायब अब, किताबों की चीज है दो नंबरी हर जगह,हर परीक्षा और लिस्ट में।
भागते भूत की लंगोटी : डॉ. जसबीर चावला
भागते भूत की लंगोटी ही सही लुट चुका महल तो कोठी ही सही। सारी दुनिया के हलधर ये जानते मर्ज जिनका दिया चारागर भी वही। जहां में हैं एक सौ पचासी अरबपति बाकी आठ अरब जनता में भुक्ख रही। पूंजी कभी बढ़ सकती नहीं श्रम के बिना हलधर के बिन सपोर्ट सल्तनत ढही। तख्ता पलट करो जहां पूंजी की बागडोर दुनिया में अमन-चैन की तरकीब बस यही ।
दिल जब खटास से : डॉ. जसबीर चावला
दिल जब खटास से भर जाता है अपनी भड़ास से डर जाता है। कौन मुकदमा उस पर चलायेगा नज़र के तीर से मर जाता है। तुम्हारी बात कौन करे हलधर संसद हंगामों में भर्राता है। सिद्ध करो कि कौन ज़्यादा नंगा है हर चुनाव फिर हमाम भर जाता है। दिल तो नहीं रहा पर आरज़ू करता है कानूनी गारंटी एमेस्पी की पाता है।
पंजाब का धुंआ खालिस्तानी है : डॉ. जसबीर चावला
पंजाब का धुंआ खालिस्तानी है हरियाणे का धुआं वैदिक है नानक पंजाबी पाकिस्तानी है! बुद्ध नेपाली है! ट्रैक्टर को इसलिए रोके दिल्ली उनमें असला बारूद ले जायेंगे। चूंकि हलधर को रोकते बाडर सो पराली से वार करता है देखो, भेड़िया मेमने का इंसाफ करता है! पुआल जलता खेतों में धू-धू करते सिखों के दिल जलते थू-थू करते गुरुद्वारा ज्ञान गोदड़ी ढहाया किसने? पैदल भी जाने की मनाही क्यों है? धुआं हरियाणा में होता ही नहीं ? जैसे सड़कों में, हवाओं में भी खुदवाओ गड्ढे जैसे बैरीकेड लगा, वैसे यंत्रों से रोक लो धुंआ फिर देखो राजधानी में कौन वाला ज़्यादा घुसा खालिस्तानी कि वैदिक! हलधर को मोहलत नहीं कि समेटे खर पुआल क़र्ज़ का डेली ब्याज लगता है देर से बीजी तो फसल का घाटा मंडी के लालों का कट डराता है ऊपर से डीजल खाद हुए और मंहगे खरीदेंगे एमेस्पी पे दाना-दाना, सिर्फ कहते हैं, कानूनी गारंटी नहीं दर-हकीकत कौन दर चुकाता है? पंजाब संपन्न है, उसके हलधर को रखो गिरवी सब हर लो, बाकी प्रांतों जैसा फटेहाल हो, तब मानें तब असली किसान कहलाता है अभी ये नकली है,जींस पहनता है! इसको गुजरात से चिट्टा भेजो क्यों गले में फंदा लटकाता है? ज्यादा उछले तो भर्ती करो सलाखों में खास जवानों को तसीहे जी भर कर दो! कर लो देश के टुकड़े चाणक्यी विश्व गुरुओ! देश बेच के अपने घर भर लो! यही है राष्ट्र -प्रेम तो पंजाब लीज़ पर मित्रों को दे दो!
धुली धूप निकली : डॉ. जसबीर चावला
धुली धूप निकली, छंटी गंदी बदली। झुके फर्जी खेड़ूत, डटे हलधर असली। चुने दल कागज़ी, संगठन नकली। कमिटी बेतुकी, सरकारी मर्जी। जमीनी हकीकत, और और निकली। फार्मूले किताबी, सच्चाई फिसली। भूलें औ' धोखे, जिम्मेदारी पिछली। पल्ले किसान के, भुखमरी परली। मां शारदे बचाओ, शिक्षा दो अमली
अडाणी को राहुल नहीं रोक पा रहा : डॉ. जसबीर चावला
अडाणी को राहुल नहीं रोक पा रहा संसद में अडानीवाद को हलधर नहीं रोक पा रहा सड़क पर संसद से सड़क तक छाए सोरोस अडाणी मरजीवड़े पैदल दिल्ली जाने वाले मरके कैसे जा पायेंगे? जा किसको सुनायेंगे कहानी? वहां अपने चल रहे किस्से, तोता-मैना, राजा-रानी ! जो तोता है, वही राजा बन बैठा हमले ते चर्चा करो, अस्तीफे ते नहीं किसकी जान किसमें , गजब मुसीबत बनी दोनों एक हैं तो सेफ हैं! इधर संविधान पे आफत बनी! इधर पंजाब की रुलती जवानी किसानी! होते रहें हलधर के फालतू धरने हैं मरते रहें चाहे जितने, मरजीवड़े व्रत रख देखो विराट रूप, मरे हुए हैं? वे तो वैसे भी मरने हैं! उसमें राजा और तोते क्या कर सकते हैं?
तुम्हारे आह्वान बड़े मार्मिक हैं : डॉ. जसबीर चावला
तुम्हारे आह्वान बड़े मार्मिक हैं अल सारा! बड़ी उम्मीद जगती है सीरिया में सबको जश्न मनाने का न्योता देते हो चौराहों पर बाहर निकल। एक बात बड़ी अच्छी कहे---- "पर बिना गोलियां, बिना हवाई फायर, बिना किसी को डराये"। कारतूसों से कोई मुल्क खुशहाल नहीं हो सकता एक गोली का दाम गरीब के दो जून की खुराकी बराबर होता है गोली जो एक निरीह इंसान की जान ले लेती है हवाई फायर का भुगतान हलधर को अपनी फसल बेच चुकाना पड़ता है। शेर अल सारा! अल्लाह तुम्हें लंबी उम्र दे सारी नस्ली कबाइली गुटबंदियों को एक कर पाओ! सीरिया एकजुट समावेशी लोकतंत्र, सारे मतभेदों के बावजूद बीच का रास्ता, सम्यक का मार्ग ले मेरे भाई! एक राष्ट्र बने मानवतावादी ! फिडेल कास्ट्रो की राह ले चलो बेशक! पर मारकाट, हिंसा, चरमपंथी एक कदम सारी कौम को अंधी सुरंग में झोंक सकता है। अगर जगे हो तो अपनी चप्पलों पर ध्यान देना आंखें फटी देख लेना गलती से भी उल्टी न पहन लेना मुल्क के हलधर को साथ लेना! फसलों पर निगाह रखना। किसी पूंजीपति के हत्थे न चढ़ जाना ड्रग माफिया से बचाना! बांयें की दायें में पहन सिर्फ लंगड़ा भर पाओगे कभी दौड़ मंज़िल छूना चाहे लड़खड़ाते गिर जाओगे!
जो अंदर से मजबूत हों : डॉ. जसबीर चावला
जो अंदर से मजबूत हों बाहर के थपेड़ों से टूटने भी लगें तो भी बर्बाद करने में वक्त लगेगा। ओ हलधर( ओ मरण व्रत पर बैठे)! ओ गांधी हलधर! गुरु तेग बहादुर के सिख सपूत हलधर! चांदनी चौक -सा पूज्य होगा तुम्हारा लहू पी खनौरी सिर और धड़ की रक्षा करेंगे सब मिल। औरंगजेब भी भेजता था नुमाइंदे दयाला जैसे साथियों को शहीद करने आंखों के सामने उनकी मानने नहीं, अपनी मनवाने "हमारी ईन मान लो, कानून मान लो" अडाणी की बाधा न बनो मेमने! देख ले जमाना एक बार फिर किस तरह ज़ालिम हुकूमतें कारनामे करती हैं ढह ढेरी होने से पहले। किस तरह अंदर से मजबूत हलधर वार देते हैं अपने शरीर भारत माता की किसानी खातिर। किस तरह हंस-हंस के गोलियां खाते हैं आजादी के परवाने जब पूंजी सत्ता के दलाल ,संभू बाडर पर दुश्मनों-सा भूनते हैं हरियाणवी किसानों के बेटे होकर भी! यह कैसा कुचक्र रच रहे हिंदू राष्ट्र प्रेमी देश तोड़ने का! सिखों को बता खालिस्तानी, मानो नींव रखते खालिस्तान की। बाग़ी हो जाते इतना जुल्म देख सीरीया के बसरी पिट्ठू होते तो भी!
मुद्दों पे बात नहीं घात-प्रतिघात है : डॉ. जसबीर चावला
मुद्दों पे बात नहीं घात-प्रतिघात है संसद में घुसी पड़ी शंकरी बरात है। बाडर पे जो मरे नकली किसान है! बारह बजे रहते खालिस्तानी जात है! धंधा करेंगे नहीं अंग्रेजी आती नहीं शहीदी की गारंटी दिन है जां रात है। भागो कनाडा जां मरो जित्थे मर्जी हो! यहां की जमीन अडाणी जी के हाथ है हलधर की वजह से अर्थव्यवस्था न बने? सबसे बड़ी तीसरी क्या, पहली की बात है। दुनिया में सर्वश्रेष्ठ गुजराती माणस है पन्नर लाख छप्पन ईंच बांड नंबर सात है!
हमारा काम एक दूसरे को नीचा : डॉ. जसबीर चावला
हमारा काम एक दूसरे को नीचा दिखाना है तुमने जितना गलत किया उससे ज्यादा गलताना है। पार्टीबाजी मुक्केबाजी है ,मुद्दे बाजी नहीं संविधान तुम जपते, हमें संविधान रटाना है। कचरा संभालने के लिए कचरा जुटा रहे संविधान बदलने के लिए कचरा खजाना है। छोटी जाति बड़ी जात, हलधर की कौन जात? सिखों को दलितों से भी नीचा बनाना है। बाबा साहेब संसद में मकर द्वार से घुसे भरे चौराहे उनको पीट-पीट मजा चखाना है।
केंचुल छोड़ी, विष नहीं छोड़ा : डॉ. जसबीर चावला
केंचुल छोड़ी, विष नहीं छोड़ा काले कानून कृषि का फोड़ा। एमेस्पी की कानूनी गारंटी अर्थव्यवस्था का है रोड़ा? हल्ला राष्ट्र भाषा है हिन्दी सरकार चढ़े अंग्रेजी घोड़ा! गौतम सबसे धनी बने ' गर तब भारत का दु:ख हो थोड़ा! हलधर गारंटी दे होते शहीद केंद्र ने अपना व्रत न तोड़ा।
जब जलाना हो तब जला देना : डॉ. जसबीर चावला
जब जलाना हो तब जला देना मेरे महबूब को बता देना। दिल बदस्तूर जलता रहता है कभी बस यार का पता देना। कोई किसी याद में मरे या जिए दुखती रूह में पर दबा देना। दर्द हलधर का लिखे क्या कोई दिन शहीदी का हां मना देना। बेदर्द हाकिम के कान जूं रेंगे फरियाद करते करते जां देना। चोर उचक्कों के हाथ बाजी है तख्ते मर्यादा न गंवा देना। पंथ को पांच सौ मुहरें दे बकाले पहुंच के सदा देना। कसम छोटे साहिबजादों की न सारी कौम को सजा देना।
भूख हड़ताल नहीं यह : डॉ. जसबीर चावला
भूख हड़ताल नहीं यह, न रमजान का महीना है न छठ परब ,न नरातों का बरत,न व्रत करवा चौथी न इरोम शर्मिला का आमरण अनशन ही है । न कोई राजनीतिक नौटंकी, न यूनियनों का मोल-भावी दांव -पेंच ! यह गुरु तेग बहादुर के एक सिख का सिदक है यह हलधर डल्लेवाल खालिस्तानी नहीं, एक खालिस भारतीय अहिंसक, छल से लूटे गए, सत्ता के शीर्ष पर बैठे नेता का विश्वास कर पछतावा करते किसान नेता का मरण-व्रत है! "सरकार से घूस ले धरने उठानेवाला" "साढ़े सात सौ निरीह साथियों की मौत का जिम्मेवार " जैसे लांछनों से बरी होने की सच्ची सफाई है , बाल-हठ नहीं नैतिक कर्तव्य है ! प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं, अरदास करके बैठा है गलवान घाटी में चीनी भुजालियों के आगे अड़ने वाला जट्ट नहीं मिट्टी संग मिट्टी बन देश का पेट भरने वाले खतिहरों का अंग है । इस शहीदी पखवाड़े एक और शहीद होगा बाडर खनौरी पवित्र स्थलों की सूची में शरीक होगा । नाम मोदी मोदी मिट्टी पलीत होगा। देश याद करेगा ईन मनवाने वाले औरंगजेबों को, मासूमों का क़त्ल करने वाले सूबेदारों को,साथ ही जुबान दे के मुकरने वाले "प्राण जाईं पर वचन न जाई" रटने वाले राम- भक्त योगी गद्दारों को । देवताओं! लगाओ फटकार जुमलेबाजों पर बरसाओ पुष्प बुजुर्ग शहीद लाशों पर! हे मरते हलधर! क्रिसमस है, ईशु से सबक लेना माफ़ करना! सारे गुजरातियों को श्राप न देना! "नहीं जानते क्या कर रहे!" बड़ी मुश्किल से लाये हैं कश्ती निकाल के किसी एक के चलते टुकड़े न बनने देना। वह तो किसी लाबी में फंसा हुआ है सम्मानों के लालच में पूंजी का जरखरीद हुआ है नकली डिग्रीयां सरदार के गले डालने पर तुला हुआ है!
मीर को मर ही जाने दो : डॉ. जसबीर चावला
मीर को मर ही जाने दो जिंदगी भर वह नहीं सोया। उसके सिरहाने आहिस्ता बोलो शहीद ख्वाब में रहे खोया। जिनके साथ लगाये धरने दाग चुनरी में कहां धोया? हलधर वक्त की नज़ाकत है वरना भगवान भला कब रोया? गजा की तबाही अपने सिर ले ले पीठ पर हमास का बोझा ढोया।
जीत के लिए एक रन ज्यादा : डॉ. जसबीर चावला
जीत के लिए एक रन ज्यादा की जरूरत होती है एक सांस नहीं मिलती फालतू ! शहादत की सरहद पर मरणासन्न बत्तीस दिनों से खनौरी पिच पर भूख की गेंदों का सामना करते जगजीत सिंह डल्लेवाल! बल्ले एक रन कौन देगा? इतिहास में नाम वही लिखवायेगा जो हलधर को एमेस्पी की कानूनी गारंटी देगा। बाकी सब रस्मी है , फ़र्ज़ीवाल है शक्लें छुपानी न पड़ें सो बयान दे निकल जायेंगे, बिगड़ी सेहत की भारी चिंता है, शवयात्रा में अग्रिम हाजरी है और क्या कह समझायेंगे! क्योंकि बहुत तेज़ अंधड़ चला था चांदनी चौक में गुरु तेग बहादुर का सर कलम होते शवयात्रा नहीं निकली दाह-संस्कार किया श्रद्धालुओं ने संसद नेड़े रकाबगंज में! खनौरी भी उससे मुक्त न रहेगा नये साल के पद-चाप सुन रहे हिमालय की बरफों से! कोई गंभीर नहीं राष्ट्र के तथाकथित कर्णधार यही आशय दुहरा रहा जसबीर बारंबार सम्यक का विंदु संभालो! अतिवादी न बनो देश के लालो पूंजी के दलालों! केंद्र और राज्य की रस्साकसी में भारत मां चीर न फाड़ डालो!
पेजर फटे, वॉकी-टॉकी धमके : डॉ. जसबीर चावला
पेजर फटे, वॉकी-टॉकी धमके, मोबाइलों पर शक है हमास को जड़ से मिटायेंगे, आत्म-रक्षा सबका हक़ है। यह जो खौफ फैल रहा,बेरुत और खाड़ी में,आतंक नहीं है? मिसाइल हमले हिंसक नहीं, तकनीकी महारत है! इस्राइल युद्ध -नीति में अग्रणी, सर्व श्रेष्ठ, कोई शक है? मारने, तबाह करने के सरंजाम ज्यादा हैं इलाज करने के उपकरण, सुविधाएं, प्रशिक्षण कम हैं आत्मघाती बदलों से बेहतर हैं आतंकीघाती हमले? साथ में मासूमों, मांओं,निरीहों का मौत के मुंह में समा जाना जां मौत के लिए भूख -प्यास-इलाज से जीवन -भर तरस जाना? आखिर पाप की जंज काबुल से ही क्यों निकलती है? क्या अफीम लोगों के उदर-जिगर में फलती है? या अल्लाह! कौन है इन बुराइयों का हलधर? हिंसा शैतानी, हिज़्र पाशवी चट्टानी जिस्मों में ढलती है! किसी का इंटरव्यू कर लो, किसी भी देश का हो सब को सुख-चैन शांति अच्छी लगती है भले नागरिक! बागडोर पापी हुक्मरानों के हाथ क्यों दी है?
मरने पे सियासत है : डॉ. जसबीर चावला
मरने पे सियासत है, मरने में सियासत है सियासत बगैर रोटी हज़म नहीं होती। सियासत पर सेंकनी है चुनाव की रोटी अनसिंकी रोटी गरम नहीं होती। देह दाह होगी ही , खाक-घाट कोई हो सत्ता की बेरुखी तवारीखे कलम नहीं होती। रोटी उगाने वाले खा धरनों की ठोकरें काले कानूनों की पैरवी खतम नहीं होती। पूंजी की मार इस तरह नहीं, तो उस तरह से झेल हलधर की शहादत आखिरी कसम नहीं होती।
आज लो धूप पूरी आई है : डॉ. जसबीर चावला
आज लो धूप पूरी आई है पिछले दो दिनों की भरपाई है? एक तरफ जहां गढ़े(ओले) हैं पड़े हलधर की जान पर बन आई है। बर्फ़ से खेलने सैलानी आये होटलों की चांदी बन आई है। अदालतें खुद हुईं हैं फरियादी कानून सत्ता की सुनवाई है। कौन मानता है तख्त हजारे की हीर रांझे की रुसवाई है। चिंता करते हो मेरी सेहत की वजह तो बार-बार दुहराई है। तेरी नीयत में खोट है सैय्याद ज़हर है , कहता तू दवाई है!
गिरी की वह हत्या कर देता है : डॉ. जसबीर चावला
गिरी की वह हत्या कर देता है नाखून पर उसका ताजा तेल दिखाता है इस तरह बदाम का दाम ज्यादा आंका जाता है। इसी तरह गजा में होता है, दूध उफन बिखरने को होता है तो फूंकें मारता है बाइडन -परिवार! राष्ट्र संघ शांति की अपील करता है। मानवाधिकारों की याद दिला बच्चों -औरतों को निशाना बनाया जाता है हमास पर निगाहें टिका हिजबुल्ला को ठिकाने लगाया जाता है। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी संपोले खत्म तो सांपों के खतरे कम! प्रलय के पहले की तैयारियां हैं वेखो वे लोको! सतयुग आ रहा है! कलयुग का अंत बतला रहा है, इधर कल्कि अवतार, उधर मैत्रेय बुद्ध मलबों में दफ़न मलबों का मतलब समझा रहा है, हलधर! वहां उगेगा क्या जहां नरसंहार दुहरा रहा है जहां मिसाइल बंकर उपजा रहा है! लौट जाओ हूतियो! यमदूत बम बरसा रहा है! हर पड़ोस हिंसा तांडव कौन बरपा रहा है? यह कैसा सतजुग आ रहा है?
इंसाफ अब बिकने लगा है : डॉ. जसबीर चावला
इंसाफ अब बिकने लगा है सूर्य अब छिपने लगा है। काले धन का शोर क्यों था चोर अब दिखने लगा है। क्यों उठीं बदबूयें इतनी घाव अब रिसने लगा है। जा रहे हलधर क्यों दिल्ली मेघ अब घिरने लगा है। उठ रही अर्थव्यवस्था रुपया अब गिरने लगा है। रोक लो अपनी मुहिम को किसान अब छिदने लगा है। ताड़ना कोई उचित मौका लक्ष्य अब टिकने लगा है।