गोलेन्द्र पटेल पर केंद्रित कविताएँ

Golendra Patel Par Kendrit Kavitayen



काव्यगुरु

दुनिया कुछ भी कहे चुपचाप सुन लूँगी मैं रेगिस्तान में राह चुन लूँगी क्योंकि सफ़र में विराट व्यक्तित्व के धनी प्रिय पथप्रदर्शक व ऋषि कवि गोलेन्द्र की कविता है मेरे संग सागर उठने दो मन में उमंग! हे शब्दों के सुरेंद्र! जन-ज़मीन-जंगल-जल ही नहीं धरती-आकाश और संपूर्ण प्रकृति साक्षी है कि मेरे साहित्यिक गुरु हैं गोलेन्द्र! वे उम्र में छोटे हैं लेकिन भाषा में बड़े वे संवेदना की सरहद पर खड़े कलम के सिपाही हैं नव रव के राही हैं वे अक्सर जिन गुरुओं की चर्चा करते हैं उनमें प्रमुख श्रीप्रकाश शुक्ल और सदानंद शाही हैं उनकी रचनाएँ इस बात की गवाही हैं बहरहाल, वे मेरे भाई हैं काव्यानुप्रासाधिराज हैं, रूपकराज हैं किसान कवि हैं... समय, समाज और साहित्य के साज़ हैं मेरे काव्यगुरु हैं नये राग के रवि हैं वे कहते हैं कि 'मैं तुम से सीखता हूँ तुम मुझसे हमें एक दूसरे से सीखना चाहिए सीखना क्रिया कला को परिष्कृत करती है' और वे कहते हैं कि 'सृजन में आदर सूचक शब्द बाधक होते हैं किसी भी सर्जक के नाम के साथ जी जोड़ना व्यर्थ है' और वे कहते हैं कि 'शिष्य को गुरु का भक्त होना चाहिए उनकी रचनाओं का नहीं।' वे निराशा में निराकरण के रचनाकार हैं उनका मुझ पर उपकार है वे स्वप्न व संघर्ष के सर्जक हैं उनके पास गज़ब की सृजनात्मकता शक्ति है यह नव वर्ष पर सहज मेरी अभिव्यक्ति है यह वर्ष प्रिय कवि के लिए सुख, शांति, समृद्धि, आरोग्य और रचनात्मकता का वाहक बने यही ईश्वर से प्रार्थना है हार्दिक शुभकामनाएँ! -सुनीता रचना : 01-01-2023

कविता के किसान

(हिंदी कविता का उदियमान सूरज गोलेन्द्र पटेल के लिए) कवि कविता नहीं लिखता कविता में जीता है श्रम की थकान से लहूलुहान एक किसान का स्वाभिमान उसका बिखरा हुआ अरमान विष की तरह रस-रस पीता है कवि, कविता नहीं लिखता है लिखता है शब्दों का कोलाहल नदी का कल-कल माटी की उर्वरता सागर की गंभीरता हाथ की घीसी हुई रेखा का बल और कविता में कवि दिखता है खेत-खलिहान, गली दालान घास पर टंगे आँसू, आद्रता की आँच बाँस के सरसराते पते धूल-धक्कड़ का नाच गाँव की आत्मा है वेदना की तरुणाई लेकर जो वैभव का गीत गाए वही परमात्मा है निराशा में निराकरण के और समय के सजग सर्जक हैं गोलेन्द्र पटेल वे लोक को बता रहे हैं कि तेजोमय मार्तण्ड की तरह जलना असल में गँवई गंध की थिराई भाषा में पलना है अप्रतिम आस को आकाश में फहराना बुद्धि की कर्मठ पहचान है ऊसर भूमि में जो संस्कृति उगा रहे हैं वही जीवन सृष्टा किसान हैं कविता लोक में पलती है समय की त्रासदी में ढलती है और परलोक में मुस्कुराती है। -सुरेन्द्र प्रजापति

'ओ आख्यानों के कवि'

ओ आख्यानों के आख्यायित कवि ओ यशोधरा, उर्मिला की छवि गल्प रचते तुम गए कवियों में तुम 'राष्ट्रकवि'। पिता रामचरण इनके थे वो भी वैष्णव भक्त 'कनकलता' उपनाम से कविता करते सशक्त। बाल्यकाल से चसक लगी कविता करते सहज-सरस् मिथकों से झोली भर लाए अपने साहित्य नगर। ओ साकेत के रचयिता महावीर के भक्त कलम तुम्हारी हो गई राममय अनुरक्त। 'सरस्वती' की छाया पाकर गीत,छंद,कविता गाकर करते रहे नवजागरण की बात भारतीय संस्कृति का उद्धार। (जो भरा नहीं है भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं वह हृदय नही है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नही) राष्ट्रीयता जिनमें भरी हुई वह राष्ट्र कवि कहलाए चिरगांव, बुंदेलखंडी बोली वो अपनाए। गरम दल की रखवानी में जयद्रथ-वध करते आये भारत-भारती के रव से हिन्द में जागरण लाए। उनकी प्रतिकृति की छाया दिनकर पर है आई सिंहासन तुम खाली करो कि जनता है अब आई। ये मेरी काव्य की लड़ी विश्नुप्रिया, पंचवटी रंग में भंग ,कुणाल गीत जयभारत, स्वदेश संगीत यशोधरा की नारी -शक्ति गुरुकुल की गुरुभक्ति। 'गोलेन्द्र'की है अनुरक्ति शब्द मेरी शक्ति मैंने है प्रवेश किया तन-मन तुझ पर वरण किया शब्द-साधक शुद्धि 'कविता' मेरी सिद्धि। -विनय विश्वा

कोरोजयी कवि से

आदिकवि वाल्मीकि डाकू थे और महाकवि कालिदास जिस डाल पर बैठे थे उसी को काट रहे थे और तुलसी के संदर्भ में किंवदंती है कि वे अपनी पत्नी के प्यार में ऐसे खोए कि तूफ़ानी रात में नदी-नार को लाँघकर अंततः साँप को रस्सी समझकर चढ़ गए छत पर और जानते हो मज़े की बात है मूर्खतई में गोलेन्दर भी कम नहीं हैं ये जिस गाँज पर बैठ थे उसी में आग लगा कर ताप रहे थे संयोग अच्छा था कि खलिहान में कुछ लोग थे वरना , तापने के चक्कर में आइस-पाइस सब...... ! (कवितांश) -इंद्रजीत सिंह

कविता के धूमकेतु

भाषा में गवईं की सभा करते हैं सूक्ष्म से स्थूल तक का सफर तय करते हैं इस सफर में कई उतार-चढ़ाव अनायास ही दिख जायेगी कई थकान मिट जायेगी जब मिट्टी माटी की पोथी में सना जाएगी तब इस गोला में एक धूमकेतु चमकेगा वह कोई और नहीं कविता की अगली पंक्ति में खड़ा मुरेठा बाँधे अपनी थाती को बचाये किसान कवि होगा अपने शब्दों में कटारी कवि होगा सृजनहारी कवि होगा। - विनय विश्वा

शब्द के आकाश

स्नेह और विश्वास के केंद्र में हैं कविता इंसानियत चहक रहा है निर्माण बहक रहा है जो रीता, जो बीता प्रकाशित कर रहा है सविता सागर का काम है संग्रह करना गंभीरता का, जाने क्या- क्या? सृष्टि के निर्माण कर्ता, ब्रम्ह! बतला रहे हैं, कि गौरव संस्कृतिओ के अध्येता महेंद्र गगनचुम्बी चोटियों से कर रहा संवाद और कविताओं में सहेज, संभारकर समीक्षा कर रहे हैं कवि गोलेन्द्र सरल हैं, सहज हैं समर्पण में विश्वास हैं सोई हुई पगड़ंडियो पर शब्द के आकाश हैं -सुरेंद्र प्रजापति

रचनाओं के रवि

गोलेन्द्र आप इस सदी के कवि कविता ही आपकी छवि रचनाओं के रवि आप एक सुंदर कविता के कवि आप कर्मठ, श्रेष्ठ सृष्टि के रंगकर्मी हैं! क्या-क्या उपनाम दूँ हर रूप भाव भेद अभेद, संदेश परिवेश के आदरणीय मूर्ति! आँखें खोल देने वाली निष्पक्ष रचनाओं के सहकर्मी हैं रचनाशीलता की उत्कृष्ट उर्मी हैं! शब्दभेदी बाण, दूषित पोषितो के म्यान हाँ, आप गोलेन्द्र ज्ञान हैं! -सरिता सिंह बड़ाइक

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