दातुन : बुन्देली लोकगीत

Datun : Bundeli Lok Geet

	

प्रात समय मैं तो जागी ती सो राधे से

प्रात समय मैं तो जागी ती सो राधे से दातुन माँगी ती। इक दार माँगी दो दार माँगी सो राधा गरूरी मुखई नई बोली। माय से आ गए किसन कन्हाई सो लो मोरी माई दातुन कर लो। अम्बा की दातुन सोने को गडुआ जमुन जल पानी ल्याये मोरी माता। दातुन कन्हैया जबहि हम करहै सो राधा कौ मायके पहुँचा आओ कन्हाई। कौन बहाने मायके पहुँचा आऊँ माई सो कौन बहाने देस निकालो री माई। हमरे बहाने बेटा मायके पहुँचा आओ सो हमरेई बहाने देसा निकालो कन्हाई। इक दार माँगी दातुन दो दार माँगी सो राधा गरूरी मुखई नई बोली। ऐ ही बहाने पहुँचा आओ कन्हाई सो राधा को देसा निकालो कन्हाई। पचरंग चार कहार बुलाये कृष्णा सो लहर लहर डोला सजाए कन्हाई इक वन नाके दूजे वन नाके सो तीजे वन ससुरारे पहुँचे जाय कन्हाई। संग की सहेली मुखई मुख देखें सो माता भौजाई मुखई नई बोली। पहुँचा के कृष्णा लौटन लागे सो अब के गए कब आओ कन्हाई। असढ़ा में मंडप छवाइयौ री राधा सो सावन हिडौंला झूलियौ री राधा। भादों की रैन अंधेरी री राधा सो क्वाँर के पितर मनाइयौ री राधा। कातिक में राधा कातिक अन्हैयो सो अगहन में अगहन अन्हैयो री राधा। फूसे रजैया भराओ री राधा सो माघ के मकर अन्हैयो री राधा। फागुन फगुआ खेलो री राधा सो चैत वन तेऊसी फूले री राधा। बैसाख पुतरिया खेलियो री राधा सो जेठ में विजन डुलाइयो री राधा। बारा महिना कृष्णा ऐसे बिताए सो हमरी सुरत न बिसारो रे कन्हाई। इक बार पिता से उरण हो जैहैं सो माता सें उरण कबहुँ नई हुइहैं। तुम मर जैहौ औरई आ जैहै सो माता जसोदा कहाँ हम पैहैं। जो जा दातुन भोरहि गावै सो हरि की सुख सेजें उठावै। जो जा दातुन दुफरे गावै सो हरि कौ पनवारौ पावै। जो जा दातुन संझा गावै सो हरि की सुख सेज लगावै। बुढ़िया गावै बैकुंठ जावै तर बैकुंठ बसेरो पावै। क्वाँरी गावै घर वर पावै बहुए गावै गोद खिलावै। प्रात समय मैं तो जागी ती...

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