चौमासा : मैथिली लोकगीत

Chaumasa : Maithili Lokgeet

	

अवध नगर लागु रतनक पालना

अवध नगर लागु रतनक पालना, झूलय राम सिया संग मे चैत चकोर समान सखि रे, मालती आशा लेल कर मे नित नव सुरति निरेखू रघुवर के, पलको ने लागय मोर नयन मे आयल बैसाख सकल पुर-परिजन, औल पड़य तन-मन मे चानन अतर गुलाब काछि कय, सींचय प्रभुजी के गातन मे जेठ मास भरि कनक कटोरी, लय मिश्री पकवानन मे रुचि रुचि भोजन करू रघुनन्दन, बिजुरी छिटकि रहू दांतना मे आयल अषाढ़ घेरि घन बदरी, पवन बहय पुरिबाहन मे दान देहू रनिवास राजा मिलि, प्रेमलाल हरषे मन मे

असाढ़हि मास घटा घनघोर

असाढ़हि मास घटा घनघोर मोहि तेजि पिया गेल देसक ओर, मोहन नञि मिलिहैं हो भगवान, कोने कसूर विधना भेल बाम, मोहन नञि मिलिहैं साओन बेली फुलय भकरार देखि नयन सँ बहय जलधार, मोहन नञि मिलिहैं भादव के निशि राति अन्हार घुमिल अयलहुँ सौंसे संसार, मोहन नञि मिलिहैं आसिन आस लगाओल अपार आसो ने पूरल हमार, बितल चौमास, मोहन नञि मिलिहैं हो भगवान, कोने कसूर विधना भेल बाम, मोहन नञि मिलिहैं

केओ ने बुझाबय किए शिव शंकर रुसला

केओ ने बुझाबय किए शिव शंकर रुसला अपना मन मे कार्तिक मास गगन उजियारी, बिछुरल सोच भई मन मे कार्तिक गणपति कोरा शोभथि, एकसरि रहब कोना वन मे अगहन अधर अंग रस छूटय, अधिक संदेह होअय मन मे छोड़ि गेलाह शिव मृगछाला, लइयो ने गेलाह अपन संग मे पूस मास पाला तन पड़ि गेल, चहुँदिस छाय रहल वन मे धरब भेष योगन के शिव बिनु, शिव शिव रटन लगाय मन मे सिहरि सिहरि सारी रैन बिताओल, पिया बिनु माघ बड़ा रगड़ी भेटथि देव सखा हमर जँ, पूरय मन अभिलाष सगरी

कोना जीअब बिनु कुंअर श्याम हो

कोना जीअब बिनु कुंअर श्याम हो, बिरहा घेरि लइ तन मे फागुन मास आस हिय सालय, फड़कि-फड़कि उठय छतिया केओ नहि मोर विपत्ति केर संगी, अगहन लिखि भेजु पतिया चैत मास वन टेसू फूलय, मोहि ने भावय घर-अंगना कोइली कुहुकि-कुहकि हिया सालय, होअय मन जा डूबी यमुना ठाढ़ बैसाख तोहें होउ बटोही, तोहें देह-दशा मोरा देखू हे जाय कहू ओहि नटबर श्याम सँ, विरहिन प्राण नहि राखू हे जेठ मास पिया वारी सोहागिन, चानन अंग लेपू घसि के भेटलथि श्याम सखा मोरो स्वामी, मन अभिलाष पूरय सभ के

फेर कहां जयबै ललन ससुररिया छोड़ि

फेर कहां जयबै ललन ससुररिया छोड़ि कहां जयबै ललन परदेशिया पूसहि मास प्रिय राति अन्हरिया तोहरो नुकायब कोठरिया कहां जयबै ललन परदेशिया माघहि मास प्रिय जाड़क दिनमा तोहरो ओढ़ायब चदरिया कहां जयबै ललन परदेशिया फागुन मास प्रिय होरिक दिनमा रंग भरि मारब पिचकरिया कहां जयबै ललन परदेशिया चैतहि मास प्रिय चित्त सुधारब दुहु मिलि गहब पलंगिया कहां जयबै ललन परदेशिया

माघ मनोरथ मेघ लागल

माघ मनोरथ मेघ लागल, श्याम चलल परदेश यो हमरो पिया ओतहि गमाओल, हमर कोन अपराध यो फागुन हे सखी आम मजरि गेल, कोइली बाजय घमसान यो कोइली शब्द सुनि हिया मोर सालय, इहो थिक फागुन मास यो चैत हे सखि पर्व लगतु हैं, सब सखि गंगा स्नान यो सब सखि पहिरय पीअर पीताम्बर, हमरो के दैवा दुख देल यो बैसाख हे सखि उषम ज्वाला, घाम सँ भीजल शरीर यो रगड़ि चन्दन अंग न लेपितहुँ जँ गृह रहितथि कंत यो

माघ हे सखि मेघ लागल

माघ हे सखि मेघ लागल, पिया चलल परदेश यो अपनो वयस ओतहि बितओता, हमर कोन अपराध यो -2 फागुन हे सखि आम मजरल, कोइली बाजे घमसान यो कोइली शब्द सुनि हिय मोर सालय, नयना नीर बहि गेल यो -2 चैत हे सखि पर्व लगईछई, सब सखी गंगा स्नान यो सब सखी पहिरे पियरी पीताम्बर, हमरा के देव दुःख देल यो -2 बैसाख हे सखि उसम ज्वाला, घाम सं भीजल देह यो रगरि चन्दन अंग लेपितहूँ, जों गृह रहितथि कन्त यो -2

सजनी गे तेजल कुंजबिहारी

सजनी गे तेजल कुंजबिहारी प्रथम अखाढ़ चलल मनमोहन कोना कऽ खेपब राति भारी सजनी गे तेजल कुंजबिहारी रिमझिम रिमझिम साओन बरिसै दोसर राति अन्हारी सजनी गे तेजल कुंजबिहारी भादव रैनि भयाओन लागय सब गोपियन जीव हारी सजनी गे तेजल कुंजबिहारी आसिन आस लगाओल सजनी गे नञि आयल गिरधारी सजनी गे तेजल कुंजबिहारी

हे रघुनन्दन विश्वम्भर स्वामी

हे रघुनन्दन विश्वम्भर स्वामी, कारण कओने फिरय वन मे साओन सहृदय कियो राजा दशरथ, हर्ष भई कैकेइ मन मे विकल भेल नर-नारी अवध मे, रोदना करथि जननि घर मे भादव मास ठाढ़ रघुवर तरुतर, वुन्दक झाड़ लागय तन मे निशि अन्हार अति भयाओन, दामिनि दमकि रहल घन मे आसिन राम चलल मृग मारन, सीता सौंपल लखन संग मे मुरछि खसू मृग राम शर पीड़ित, शब्द सुनल सिय कानन मे कातिक कठिन भूप अति रावण, सिया हरल ओहि अवसर मे शम्भुदास करुणा रस सखि हे, भरत जाय पुर-परिजन मे

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