भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ (ग़ज़ल) : दुष्यन्त कुमार


भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ

भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुदद्आ । मौत ने तो धर दबोचा एक चीते कि तरह ज़िंदगी ने जब छुआ तो फ़ासला रखकर छुआ । गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नही पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ । क्या वज़ह है प्यास ज्यादा तेज़ लगती है यहाँ लोग कहते हैं कि पहले इस जगह पर था कुँआ । आप दस्ताने पहनकर छू रहे हैं आग को आप के भी ख़ून का रंग हो गया है साँवला । इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो दो जब तलक खिलते नहीं ये कोयले देंगे धुँआ । दोस्त, अपने मुल्क कि किस्मत पे रंजीदा न हो उनके हाथों में है पिंजरा, उनके पिंजरे में सुआ । इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियाँ । (ग़ज़ल-संग्रह 'साये में धूप' में से)

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