Bhaagdaud Bhari Zindagi : Bindesh Kumar Jha

भागदौड़ भरी जिंदगी : बिंदेश कुमार झा

मनुष्य की जीवन की तीव्रता वाहनों से भी अधिक है। वाहनों के ऊर्जा के स्रोत में निरंतर विकास हुआ है। जबकि मनुष्य के ऊर्जा के स्रोत में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। तो फिर इतनी तीव्रता कहां से रही है? वर्षों से हमने अपने भीतर जो उच्चतम कोटि के ऊर्जा का समावेश किया है, वहीं अब तक हमें बनाए हुए हैं। लेकिन क्या हो अगर यह संजोया हुआ ऊर्जा समाप्त हो जाए। अर्थात आजकल के हमारे जीवन शैली और खानपान में इतनी अधिक गुणवत्ता तो नहीं कि हम अपने उर्जा का प्रभावशाली ढंग से निर्माण कर सकें। जब यह ऊर्जा समाप्त हो जाएगी तो हमारे पास सफाई देने के लिए यह पर्याप्त रहेगा कि पर्यावरण दूषित है। शायद इससे हम और हमें सुनने वाले को भी संतुष्टि प्राप्त हो जाए। क्या हम अपने खानपान में बदलाव करके ऊर्जा के नए स्रोत का विकास नहीं कर सकते? क्या जीवन शैली में बदलाव करके इसे पाया नहीं जा सकता? आजकल हम पश्चिमी सभ्यता द्वारा सुझाए गए तरीकों पर अधिक विश्वास करते हैं । क्या हमारे भारतीय इतिहास में सुझाए गए उपायों का प्रयोग करके इन लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता? अनुभवों से पता चलता है कि मनुष्य उन उपायों पर अधिक विश्वास करता है किसका परिणाम तुरंत प्राप्त हो जाए। यह कहना कहां तक उचित होगा जो परिणाम हमें तुरंत मिले वह अधिक लाभदायक ही हो?हमारे भारतीय सभ्यता में सुझाए गए उपाय प्रभाव दिखाने में समय ले सकती है किंतु यह प्रभाव लाभदायक रहेगा और लंबे समय तक प्रभावशाली भी। तो आइए आप पर हम पुनः अपने भारतीय परंपरा में लौटते हैं जहां पर हमारे जीवन को जीने के लिए बताए गए तरीके प्रभावशाली हैं।