आरोग्य : रवीन्द्रनाथ ठाकुर

Arogya : Rabindranath Tagore


हिंसक रात चुपके-चुपके आती है

हिंसक रात चुपके-चुपके आती है दुर्बल हुए शरीर की कमजोर कुण्डी को तोड़कर अंतर में प्रवेश करती है . जीवन के गौरव के रूप का हरण करती रहती है. कालिमा के आक्रमण से मन हार मानता है. इस पराजय की ग्लानि,इस अवसाद का अपमान जब गाढ़ा हो उठता है,सहसा दिगंत में स्वर्ण किरणों की रेखांकित पताका दीख जाती है आसमान के मानो किसी दूर केन्द्र से 'मिथ्या-मिथ्या'की ध्वनि उठती है. प्रभात के खुले प्रकाश में अपनी जीर्ण-देह के दुर्ग शिखर पर दुःख-विजयी की मूर्ति को देखता हूँ. २१ जनवरी १९४१ (अनुवादक : हंस कुमार तिवारी)

सुंदर का पाया है मधुर आशीर्वाद

इस जीवन में सुंदर का पाया है मधुर आशीर्वाद मनुष्य के प्रीति-पात्र पता हूँ उन्हीं की सुधा का आस्वाद दुस्सह दुःख के दिनों में अक्षत अपराजित आत्मा को पहचान लिया मैंने. आसन्न मृत्यु की छाया का जिस दिन अनुभव किया भय के हाथों उस दिन दुर्बल पराजय नहीं हुई . महत्तम मनुष्यों के स्पर्श से वंचित नहीं हुआ उनकी अमृत वाणी को मैंने अपने ह्रदय में संजोया है . जीवन में जीवन के विधाता का जो दाक्षिण्य पाया है कृतज्ञ मन में उसी की स्मरण-लिपि रख ली. २८ जनवरी १९४१ (अनुवादक : हंस कुमार तिवारी)

मधुमय धरती की धूल

मधुमय है यह द्युलोक,मधुमय इस धरती की धूल-- ह्रदय में धारण कर लिया मैंने यह महामंत्र चरितार्थ जीवन की वाणी. दिन-दिन सत्य का जो उपहार पाया था उसके मधुरस का छय नहीं . इसलिए मृत्यु के अंतिम छोर पर गूंजती है यह मंत्रवाणी -- सभी क्षतियों को मिथ्या करके अनन्त का आनंद विराजकता है. धरणी का अंतिम स्पर्श लेकर जब जाऊँगा कह जाऊँगा ललाट पर मैंने तुम्हारी धूल का तिलक लगाया है, दुर्दिन की माया की आड़ में मैंने नित्य की जोत देखी है सत्य के आनंद के रूप में आकार लिया है यही जानकर इस धूल में अपना प्रणाम रख जाता है. १४ फरवरी १९४१ (अनुवादक : हंस कुमार तिवारी)

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