थके हुए डॉ. अमरजीत टांडा
Thake Hooye Dr. Amarjit Tanda

मैंने अमरजीत टांडा की कुछ रचनाओं का आनंद लिया है। उनकी कविताएं सामाजिक धरातल के गहरे विचार और समझ पर आधारित हैं और उनके पास भाषा पर बहुत अच्छा जावता है-डॉ एस एस जौहल

कविता के क्षेत्र में समर्पण और कड़ी मेहनत के लिए उत्सुकता डॉ अमरजीत टांडा की एक अनूठी विशेषता है। वह बहुत ही जागरूक कवि है। उसकी कविता का सरोदी बहाव पन्नों पे फैलने का सामर्थ्य बखशता है डॉ सुरजीत पातर

अमरजीत टांडा इतना भावनात्मक है कि कविता उसके रोम रोम में बसी हुई है। डॉ सुरिंदर सिंह दुसांझ

अमरजीत टांडा की कविता तो एक कुंवारी सलोनी कंनिया का नूर है। इसलिए उसकी महारानी कविता करीने से शबदों का प्रबंधन भी करती है -डॉ जोगिंदर कैरों

डॉ टांडा की कविता में, मनुष्य दर्द और पीड़ा से समृद्धि और स्नेह हैं। ऐसी कविता ही केवल पाठकों के साथ रिशता बनाती है। ऐसी कविता से ही मेरा अंतरंग नाता है -मोहनजीत

उनकी कवितायों में अनिसचता नहीं होती यह कविता विस्तारणीय है। जिसमें भूले विसर चुके शब्दों का आना जाना लगा रहता है- जगतारजीत सिंह

अमरजीत की कविता अंतरराष्ट्रीय प्रतिमान स्थापित करती है। उनके बिंबों मे एक मिकनातीसी आकर्षण है जो पाठक को उंगली पकङ कर अपने साथ ले चलता है। ऐसे मिकनातीसी बिंब बहुत ही कम शायरी मे मिलते हैं। यह शायरी आपकी भावनाओं और सपनो से अभिभूत करती है -डा सुखचैन

उनकी दृष्टि भविष्य है, और समाज, मनुष्य, प्रकृति का कल्याण उसकी सांस में है। यह हिंदी किताब, निश्चित रूप से, हिंदी कविता दुनिया के लिए एक मूल्यवान कदर है -स्वरनजीत सवी



आप को भी याद होगीं

आप को भी याद होगीं सितारों की नाज़ुक सी टिमटिमाती कतारें प्यारी प्यारी सी नदिआ के किनारे और वो तेरे मिलन पल दिलकश से लमहे ज़ी-नफ़स गलिआं शादाब-नुमा गायों जज़ीरा-नुमा हमारा वो गुनगुनाता संसार नज़्मों का ज़खीरा लहकती फसलों की महकें गुम हो गईं हैं यहीं कहीं दुश्मनी सदायें हैं हर जग़ह सभ रूठ गई हैं मौज-ए-शबाब की चहल पहल वो रोशन चेहरे तामीर बादल-ए-तखरीब हर गली में वहशत नाचने लगी नगर नगर जंगल-ए-राज सी तवारीख पोलीस जा मग़रिब के बूटों की खराशें हैं सरहद पर हर रोज़ कोई न कोई साँस-ए-हरकत बंद होये निज़ाम देखता तो है एक बियाँ बन जाता है दिन-ए-शहादित एक नन्ने बच्चे का भाभिष मांग का संधूर कहाँ जाएँ वो टूटी हुई कलाई और रंगों में जो चलता था सुहाग का सफ़र गोरी गोरी बाँहों पे लाल चूड़े का नग्मा सुबह से ढूंड रहा हूँ मुझे तो ये नहीं पता चल रहा के मेरा घर कहाँ है रौनकें राहों कीं कहाँ अलोप हो गईं खामोश ज़मीं के सीने में से उगने लगीं खैमों की तनाबें शाम की वो सदायें फौजों के भयानक दस्तों की आवाज़ खा गई है फूलों सी क़बायें डूब गईं हैं किसी समंदर में टैंकों की धूल डीक गई है मेरे शहर की सभी रौनक़ें अजनास की कीमत ऊपर जा रही है गिरने लगें हैं भाओ इनसान के सीने के चौपाल में कम् आते हैं लोग मेले की रौनक घट गई है जीने की ख़ाहिश मर गई है सुबह में से दिन आज कल हँसते नहीं निकलले बाहर तमन्ना के सपने रातों ने खा लिए हैं जिस्मों के बाज़ार हैं हर गली तिजारत होती है तो हुसन की दायो पे लगतीं है तो खूबसूरत शाम-ए-महफ़िल अब तो कुश भी नहीं बचा बेचने के लिए एक कौली भर चाबल है घर में रोटी के साथ दाल भी नहीं बना सकते महंगाई अम्बर को छोहने जा रही है टूटी में सुध पानी नहीं हैं सूखी आँखों में अब आंसू भी नहीं टपकते इन नाहरों बाज़ारों में न कहीं ग़ैरत मिल रही है और न ही वो भवल खेड़ा माँ-बाप की चौखट छोड़ गई है औलाद बहनें भाई और माएँ लाड़ले ढूंड रहीं हैं पनघट पे कोई नहीं आता भरे राहों की बहारें मेलों में कंवारीयों के झूंड कहीं नज़र नहीं आते कहाँ से लायूं गायों की महफ़िलें ढून्ढ कर वो घर २ की मौज मस्ती कहाँ छोड़ कर आयें ये उदास सी हवाएँ और कैसे शंबलें ये गिरता हुआ मकान झूले में से बच्चे का गीत लचकती शाखों पे अनखिले फूल की महिक खलियानों में नहीं सुनी थी कभी भूखी सी आवाजें और बाज़ारों में विकने को गैरत इतनी नहीं हुई थी ग़रीब कभी मेरे शहर की गलिआं बदहाली ने कभी इतना नहीं खाया था मेरे घरों के चैन को भरे तहखाने कैसे लगा देतें हैं दरवाजे पे 'सभ खली है' का बोर्ड कभी नहीं देखा था पता नहीं कैसे बची है मेरे बच्चों की थोड़ी सी निदिआ मेरी भाबी का दर्पण में बनता नया ख्बाब क्यों नहीं बताता वो अब जो ले गया था मोहल्ले की वोट और दे गया था चमकता हुए भविष्य का दावा कहाँ है वो ? ढूँढो उसे-तोड़ दो उस की सूराखिआ कड़ी पूशो उसे दिए वादों का जुआब -अब मौसम है आज का दिन है आप के पास

रंगों में तुझे तलाश लिया

रंगों में तुझे तलाश लिया पत्थर मिला बना लिया बुत तुझे अब इन के लिए मुठी भर साँस तलाश रहा हूँ इन रंगों में जीवन भर रहा हूँ गीत ढूंढ रहा हूँ इन के होंठों के लिए ऐसे ही बहुत से हैं लोग उम्र भर ढूँढ़ते रहतें हैं साँस पीते रहते हैं घूँट स्वर के किसी आने वाले दिन को सजाने के लिए कहाँ से नक्श-ए-नृत लाओगे ऐसे कब आती है एड़ी में कंपन पायल कब जगे तेरी अंगड़ाई के बिन बदन-ए-तरंग ना आये जब तीक हुलारों में कोई ना घूमे आ तो सही कभी शोला बन कर भर दूं तेरी आँखों में तमाम नख़रे बेबाकी मांग लाऊं तेरे अंग अंग के लिए अभी तेरी पेंटिंग को मैं ने आसमां पर टाँगना है आयें तबस्सुम में गीत की तर्ज़ लटकानी है काली जुल्फों में सुगन्ध-ए-जास्मीन आजिज करना है आँखों को अभी तो इस के गीले होंटों पे एक रखना है चुंबन सिलवटों की करवटों पर लेटना है बच्चे की तरह निश्चल करना हैं इन की गति को भरनी है अक्स में धड़कन नक़्शे-ए-आफ़रीं में लहरें लानी हैं अदायों के लिए मस्ती खोजनी है सीने में फूल खिलाने हैं जवां ऋतू के करवटों से बुझानी है आग सी लगी खत पढ़ना है अभी आया उनका

चलो कोई नज़म कहें

चलो कोई नज़म कहें घर की दीवारों पे बचपन खोज कर फ्रेम करें मां से रोते रोते पिग्गी बैंक के लिए कुछ यादें मांगें चलो कोई नज़म चुने नंग धड़ंग दिनों को गलिओं से चुन कर किसी आसमाँ पे धरें चलो कोई नज़म बनाएँ नज़म का कोई धर्म नहीं मुहबत होती है इसी का सिमरन करें इसी का गीत बुने चलो कोई नज़म गुनगुनाएं पवन जैसी जो दरवाजे पे दस्तक दे कर चल दी छोड़ गई सिर्फ़ मेहंदी के निशां जिसम पर वटने की महक चलो कोई नज़म ढूंढें साया बन जाये वो पैरों की धुल का सांसों में गुनगुनाए नया गीत चुन कर लाएं सितारों का थाल एक एक क़दमों पे धरें चलो कोई नज़म चुराएं हो तो उसके इशक की हो तो उसकी अंगड़ाई की या हो उसकी खोई हूई निंदिया की चलो कोई नज़म कशीदें उसके होठों से मुस्कराहट चुरा कर बदन की खुशबू डाल पलकों की अदा मिला कर

आज तख्त उछाले जायेंगे

आज तख्त उछाले जायेंगे मट्टी में रूलायेंगे आज इनके ताज तमन्ना नाचेगी गायेगी एक शौक है आज बलिदान का बिरखों को जान देने को भी तैयार हैं सितारे आत्मबलि वीरता इतनी के साहस और हिम्मत को साथ ले चल दिए हैं सिर कटने का भी कोई भय नहीं है इनको दिल में इतना चयो के कातिल को पुकार दी है बाँहों में इतना ज़ोर के परबत उछाल देने को तैयार दरिया थमने की चाहत दिलों में आज तारीख-ऐ- पंजाब लिखी जाएगी परचम लहरायेंगे इंकलाब के कायनात गूंजेगी दिन भर वरसात होगी वोटों की साथ साथ अम्बर ढूंड रहा है समंदर को वर्साने के लिए आज देखेंगे आज कितना जोर है बाँहों में जालम की वक्त है आज पल पल पुकार रहा है बाहर खड़ा आज बता देंगे समह को कि कया है हमारे सीने में कितने नग्में हैं लहू में हम एक एक फूल ले कर आएं हैं सरफरोशों के बुतों के गले के हारों से यूं आते है इंकलाब फिर ऐसे झूमतीं हैं क्रांति की हवा

पी ए यू

ऐ पी ए यू ! मेरी और मेरे दोस्तों की पाक पवित्र सरज़मीन हम सभी आप को सजदा करते हैं प्यार से झुकाते हैं वो सर जो सर ऊँचे हैं संसार भर में हम दिल की धडकनों में बिठाऐ तेरी सभी यादें साथ लिऐ मस्तक में संभाले हूऐ हैं तेरे नाम का बीज बोते नगमें गाते तेरी सड़कों के तेरे रंग बिरंगे वृक्षों के फूल लिए घूम रहे हैं देश विदेश आदाब करता हूँ जब भी कभी तेरी वादी में से गुजरता हूँ पड़े है जवानी के हुसीन साल तेरी सड़कों पे तरह तरह के खाब बुनें क्लासों के कमरों में दोस्त बनी जिंदगी फूलों जैसी यार बने खिलते फूल मुसकराते गुलाब जैसे दफन हैं बहुत सी कुम्हलाई उमंगें तेरे शहर में तेरे हर पहर में कभी नहीं भुला पायूंगा नवाजिशें तेरी तेरी जवान महकती सनम-ए-जाँ-फ़िज़ा शोरोगुल पाल आडीटोरीअम का वो अमलतास के पेड़ों से भरी फूलों से सजी सड़क किसे नहीं याद होगी यहाँ भीड़ सी रहती थी सपनों की वोही सभी खाब होम साईंस के होस्टल में जा कर किसी न किसी कमरे के दरवाजे पर दस्तक देते थे चुराते तो होंगे निंदिया किसी की ऐसे में ही कई साल गहरी फ़ज़ाएँ बनी टूटती रहीं हसतीं निराश होती पागलपन में झूमती रही पेड़ों के झुरमट में कंटीन की चाये चुसकीयों के इर्द गिर्द और पुस्तकालय में देर तीक मिलती थी एक बनती उसरती दुनिया जो चमन खिले बहार बने जो खिल ना पाऐ ख़ार बने मैं अपनी बहुत सी नजमें छुपा लाया था जेबों में बहाँ से उन में से कुछ तो अंगार बन गईं और मुठी भर बन गईं आंसू अै मेरी दोस्त सरज़मीन तू ने पाला हमें हम भूल कर तुझे अपनी यादें ले कर भाग आऐ ये बहुत बड़ा इलज़ाम है हम पर इस लिए हम बदनाम हूऐ हर शहर हर गली तेरी सुंदर महकती हूई फ़ज़ायों की कसम तेरे बगैर दिल नहीं लगता कईं हमारी जिंदगी भी यईं साँस भी यईं कहीं

मां थी एक

मां थी एक पुरवई सावन सुरभि बसन्त पहली रिमझिम अषाढ़ की बगिया फूल तितलियों की नानक का शब्द दोहा कबीर का सुर साज मीरा की चौपाई तुलसी की वेदना कविता जैसी स्याम लहर नदिया की निर्मल सी जल धारा समंदर सी ममता विश्वास हिमालय जैसा माँ श्रद्धा की आदिशक्ति सी कावा है कैलाश है हरी दूब सी केशर क्यारी सम्पूर्ण सृष्टि ममता की मंजिल अनमोल सूरत मेरी ऊँगली अखियाँ उडीक हिम्मत हर मेहनत दुर्गा गोविंद मुश्किल राह की प्रेरणा मेरी लोरी मेरा गीत चैन निंदिया मेरी हँसना खेलना मेरा मेरी शक्ति भगति

मर गई है मोहब्बत

मर गई है मोहब्बत उसके जाने के बाद साथ ले गई है वो इशक जैसी हंस्ती दुनिया कौन जाने कहाँ होगी वो सुंदर सी महकती कली चौहदवीं का चाँद मेरी उदासीन रातों का उड़ती तो परी बन कर नाचती तो हिरणी की तरह सफ़ेद बुत्त बन कर खड़ी हो जाती थी मरियम जैसी बोलती तो फूल पत्तियां गिरतीं चलती तो गीत बनता जब भी कभी अंगड़ाई लेती आसमान को छूती दरिया बहते जब कभी आँसू बहाती आग इतनी के सूरज जलता उसकी छाती से बिजली गिरती जब पलक झपकती अलविदा कह गई वो अभी थी यहाँ अब की बात है ये क्यों कुहराम हुआ है दिन क्यों बेआराम हुआ है दिल से क्यों ईमान खोया है रोता उस बिन जहान सोया है जब कभी कोई रात होगी बिन यादों के नहीं सोएगी याद मुझे कर रोएगी ऐसी घटना एक दिन होगी फिर कभी जब चाँद निकलेगा बिन सितारे आस्मां होगा एक रात कहीं फिर रोएगी होंठ छुए बिन बांसुरी नहीं सोएगी एक कहीं आस्मां गिरेगा धरती का ईमान गिरेगा अल्लाह का पैगाम मरेगा फूलों से इल्हाम खिलेगा ये वो ना पर्त दर आई इशक सभी व्यापार बनेंगे कुफ़र सभी बाजार बनेंगे जख़्म सभी प्यार बनेंगे झूठ सभी संसार बनेंगे हादसे घर बार बनेंगे साँस मेरे क़हर बनेंगे

आँखें भीग जाती हैं

आँखें भीग जाती हैं जब भी घर छोड़ता हूँ किसी का घर न छूटे घर छूटे टूटते हैं सहारे लोगो कभी घर न छोड़ना घर के बाद एक अंबर ही रह जाती है छत तू याद करेगी ज़ुल्फ़ों सी काली रात को सूरज होगा तप्त मगर सर पे और कोई साया न होगा आँखों को छुपा कर रख तू रात चौहदवीं की तेरे मुख जैसा हीरा किसी बाज़ार में न होगा जाना है तो जरा सोच कर निकलना मेरे घर से ऊंचा दर नहीं मिलेगा न जा इस महफ़िल को छोड़ कर कल कोई शाम में तेरा गीत नहीं होगा आँसू ही होंगे पास बैठे तेरे और आँखों में एक सपना मेरा ही होगा एक सपना मिला है रात को मिट न जाए संभाल कर रख इस आस्मां में कोई सितारा तेरा न होगा ढूँढ ले खोये हुए बिखरे हुए आँसू किसी सुबह पे तेरा कभी मेरे बिन नाम नहीं होगा तू मिकनतिस बन मैं लोहा ही अच्छा हूँ खींच ले गई तू मुझे लोहा इतना दिल से कमजोर नहीं होता और नही इतना ख़राब मैं ही सिंगारता हूँ सभी ईमारतों को घर है ये घर है ये मेरी यादों में वसा इस में बहुत मालिक आए और चल दिए इस की दीवार के साथ एक मजलिस लगती थी सूरज देता था सभी को घूप सोने जैसी कोसी कोसी गाँव वाले आते बातें करते- सरगोशियाँ जैसी चुगली निंदा साज़िशें, एक अखवार सी छपती नन्हे मुन्ने खेलते छोटी छोटी लड़ाई झगड़ा होता मिटता कोई गाता कोई रोता दीवार सभी कुछ सुनती पल पलकें झपकते बुलाता किसी को! गाँव के घरों में से धुएं निकलते मक्की की रोटी के पकने की आवाज साग के तड़कने की महक आती दरवाजे खिड़कियाँ खुलतीं दरों पर कोई भिखारी आता अब वोही घर खाली पड़ा है कबूतर चमगादड़ खेल रहे हैं वहां दीवार सूनी सी बैठी है मुझे याद करती रहती हैं गाँव वाले बातें करते हैं हमारी घर खड़ा इंतज़ार कर रहा है मुझे,मेरे पुरखों को गली बह रही है कदम कदम गुजर रहा है वहां से घर मेरे दिल में वसा है मेरे से बातें करता अनेक सवाल पूछता कि कहाँ चले गए हो मुझे छोड़ कर कहाँ गया तेरा प्यार और तेरी मेरी यारी का परचम

ऐसे में भी

ऐसे में भी खो जाता हूँ अक्सर जब भी कहीं तेरी यादें ढूँढने निकलता हूँ और मुझे इेसे मौसम में इश्क के गीतों मे पल पल वह जाना अच्छा लगता है कोई वादा निभाना हो मिलने जाना हो किसी को मुझ पे नराज हो जाती हैं हवाऐं मेरे समय पे न पहुँचने पर किसी को आवाज देनी हो गले लगाना हो किसी की सिसकी को उनसे दूरी पे रह जाता हूँ किसी दरिया को थामना हो करबला को दफनाना हो इंकार कर देता हूँ ऐसी रस्मों को कोई अपना सा आऐ और आ कर महक खिंडाऐ उस की मीठी मीठी बातें सुनते उसे बाहर से अंदर लेकर जाने में अक्सर भूल हो जाती है मेरे से मौसम को बदलते देखना खुशी को घर में कहीं से ढूँढ कर लाने में गलती कर लेता हूँ कई बार बहुत भूल सी है किसी को याद रखना और ऐसे मे पल पल मरना भूल सी हो जाती है मुझ से इंसान हूँ न मैं मन में स्तर बन रही होती है किसी नज़म की कभी कभी ऐसे भी होता है कि उसे देखता ही रह जाता हूँ जैसे कोई खूबसूरत नज़म हो बार बार पड़ता हूँ स्तर स्तर ऐसे में भी खो जाता हूँ अक्सर

ख़त

लिखती रहा करो ख़त के कमबख्त बहल जाए दिल नहीं तो कौन लिखता है ख़त कोई शांत, ठंडी, वैरान नदिओं को उदास दिलों को भी लोक ख़त नहीं लिखते टूटे सितारे किस के ख़त की उडीक करें पीले पत्तों को भी कभी किसी ने नहीं लिखा ख़त मेरी मान लो लिखती रहा करो ख़त तेरा ख़त मिलता है जैसे कोई सलाम आया हो ख़त में एक उडीक होती है साया होता है किसी अपने का किसी की छुह से कोई नग़मा आता है महकता सुलगता ख़त मिलने से सांस चलतीं हैं किसी की न आये ख़त तो टपक आते हैं आंसू-मरने को तू ये नहीं जानती के मरते आसूँओं को कोई दफ़नाता नहीं कभी मुरझा जाएँ फूल तो सजाता नहीं कोई तू मेरी मान -मेरी जान रात को एक ख़त लिख कर डाल दिया कर मेरे सूने दरवाजे के सीने पे नहीं तो सूनी हो जाएगी ये दुनिआ ये गलिआं याद रखना ख़त आते रहें तो घर गीत गुणगणाते हैं सूने दरों पे कभी कोई ख़त नहीं आते और लोग ऐसे घरों के सिरनामे भूल जाते हैं

चाहत तो ये न थी

चाहत तो ये न थी कि क्यों हो यहॉँ कोई रौशनी प्यासी क्यों हो दिलों में मौत सी उदासी क्यों हो किसी हाथ टुकड़ा रोटी वासी क्यों जलतीं है सिर्फ गरीबों की बस्ती क्यों जिंदगी महंगी औऱ मौत है सस्ती खेल क्यों बन गई है एक बन्दे की हस्ती मुहबत यहाँ क्यों व्योपार बन गई है औरत जहाँ क्यों एक बाज़ार बन गई है मानुख की नीयत क्यों बदकार बन गई है मैं ने नहीं माँगा था ये झुठ लादा समाज न ही मांगी थी ऐसी कोई किताब बताये जो दुनिया के गिरे हूए रिवाज डोलता हुआ तख्त और काँटों का ताज ऐसी जिंदगी से मैंने किआ लेना इस ने तो आखिर मुझे भी है जला देना

इश्क का राग नहीं

इश्क का राग नहीं शब्द चित्र चाँद या सितारा तो हो सकता है कुर्सी का गुमान भी नहीं है मेरा यह गीत झोपड़ी के आंसू की वेदना स्वाभिमान कलम की चाल भोजपत्र पसीने का तो हो सकता है और आग आँसुओं की भी सूने घरों आँधियों में जलता चिराग अग्निवंश की परम्परा उठी हुई कुदाल तो कह सकते हो नर्तकी के घुंघरू राजा के बोल तवायफों का खीचे जाने वाला दुपट्टा नहीं बन सकता घाटी चम्बल सी है संसद खून के हाथों से रंगी इन से तो ज्यादा खुद्दार पाजेब होती है और उसकी छनकार सूटकेशों की लेन देन है दीवारें बेइमानी का बिछौना बदलती है हर रात वेश्यांयों के बिस्तरों की चादरें जैसी दल बदल दुकानें दलाली की अभी भी भूखे देश खा कर भी ताजपोशी होनी है नऐ आऐ हैं लुटेरे खामोश बैठीऐ

लोहा पथर के घरों वाले

लोहा पथर के घरों वाले कांप रहे हैं ज़रा सा बादल कया गरजा आसमान ने आंख झंपकी है ज़रा सी झोपड़ी नाच ऊठी है गर्मी कम होगी सांस लेंगे दो पल ठंडक में कपड़ों का क्या है पहले पसीने से भीगे थे अब बारस से साफ भी हो जांएगे ठंडे भी बस्तियों में से धुयाँ निकलता तो है जब कभी रोटी पकती है पेट भरता है ईशायों का अगले दिन के अरमानों का हरा सा हो जाऐगे हमारा सूखा सा सभी चुफेर डालीयों को पत्ते फूल मिलेंगे सुलझ जाएगा कुछ जिंदगी के ऊलझे से धागे इच्छाएँ शहर की संबर जाऐंगी यहाँ हर दर्पण एक है चेहरे बदलते हैं हर रोज मेरे सुलगते क्षण भी दिख जाऐंगे इस बिजली की चमक में अब मुझे जाने दो सपना लेना है जंजीरों का उनके राग ताल का सुनी है तो बताईऐ कैसे छनकती है बेड़ी पायों में क्या तर्ज होती है हाथों में पहनी हुई हथकड़ियों की

सूने सूने घरों में

सूने सूने घरों में कब लिखा जाता है शांती का कोई नग़मा चलो बजार की रोशनी में ही बहला लेते हैं मन अक्षरों और कलम को सड़क की टिऊब लैम्प बहुत है लिखने पड़ने को किसी कागज के टुकड़े पर भी लिखी जा सकती है टूटे दामन की दास्तान उदास साँसों की बिलकती हूई कहानी अपने हिस्से आऐ हूऐ आँसूओं का राग वैराग्य घुटनों पे ही तो रखना है मुड़ी-तुडी काग़जी जिंदगी को और ख़याल में लाना है किसी चैखब गोर्की जा कीटस को लिखते पड़ते रहना चाहिए घरों में लगे बिजली के मीटर का साया चलता थमता कभी कभी पड़ना पार्क में बैठ कर में किताबों का और मछर पतंगों को हटाना मारना ऐसे भी वन सकतीं हैं रातें प्रेमचन्द दुशयंत और दिनों के सपने डिकेन्स जा फिर हार्डी करना कया है पुरानी किसी कहानी के पंनों में चिपका दो अपनी फटी पुरानी बुनआन का एक अधिआऐ समय का नया पैगाम बढ़ जाऐगी कहानी आगे बेरहम ना सोने वाली गर्म रात से बातचीत कीजीऐ शुक्र मनाऐं विकास का खुशी मनाई जाऐ वेहिसाब खुशहाल राहों की रात मे ही और विकास लाना है तो नोट बदलें पुराने हो गऐ हैं पिछले मांस वाले कोई पल जिंदगी फीकी नहीं होती अपनी टेस्ट बडज बदलाऐं वारी वारी से अपनी अपनी हथेली ले कर आईऐ आगे छुरी से नई लकीरें खींच सकता हूँ माथे पे खुन सकता हूँ नई तकदीर आजाद हैं आप ठन्डे घूंट पी कर खाली पेट पर नई योजना का लंबा सपना लिख कर भी सोया जा सकता है साँस लो लम्बे लम्बे से पवन परदूशन हल हो जाएगा जर्दा तंबाखू की एक फक्की से किस देश में सुरग दिखता है- बताईये? कहां जशन होते हैं रात भर भूखे सपनों के बजती है शहनाई हर रोज मरते सूरज के जनाजे पर

मजहब

मजहब भी कोई चुनने वाली चीज है माँ जन्मदाती को कोई मजहब न वांटो अभी तो उस नन्नी ने जन्म भी नहीं लिया था और उससे जिन्दगी का अधिकार भी खो लिया गया कया कासूर था उस बच्चे का जो सुबह स्कूल गया था और घर न लौटा क़त्ल कर दिया चुनकर दंगा फसादों, फिरकापरस्तों और अतन्क्वादियिों ने कैसा मुलक है ये और कैसा मजहब जो बचपन भी खा जाता है खिलौने भी तोड़ देता है इंसानियत को क्यों नहीं लिखते हो मजहब की सीड़ीओं पे

ख़्वाब

ख़्वाब भविष्य के लिए बुनने से पहले आओ आज का ख़्वाब पड़ें इस ख़ाब की आँख में आँख डालें इस शाम को रंगीन करें कौन जाने कल का सूरज क्या होगा क्या लिखा होगा कल की सुबह के माथे पे ख़्वाब आरज़ू हैं साल सदियाँ हैं उम्र के क़दम मिलतें हैं इनके पहलू में ख़्वाब हैं तो रातों का मिलन होटों पे स्वर जिन्दगी ख़्वाब बनी तेरे होंठों ज़ुल्फ़ों से चुन चुन ख़्वाब बदन को छूह लेने का ख़्वाब ज़िंदा रहने का ख़्वाब तेरा शहर-ए-सुख़न रंगे-ए-महफिल शाम की तेरा ख़्वाब न होता तो कहीं चिड़िया न चूकती नग़मा-ए-हयात न गुनगनाता जीवन को कला ना मिलती पत्थर बुत्त न बनते सितारे तेरे राहों पे गिर गिर न मरते कहीं ख़्वाब न मर पाए टूटे न किसी की पलक का सपना होटों पे आया नया गीत अगर ऐसा हूया दुनिया की रातें नहीं सोयेंगीं आसमाँ में चाँद सितारे नहीं दिखेंगे जमीं की कोख़ से हरियावल का तिनका नहीं फूटेगा देखना कहीं किसी ख़्वाब का चेहरा न मुरझा पाए कहीं कोई ख़्वाब न परत जाये ख़्वाब आँखों में नहीं हाथों में होतें हैं रातों को नहीं नया सूरज ले कर आता है नए ख़्वाब बहुत मुश्किल मिलतें हैं ख़्वाब जैसे गीत मुरझा जातें हैं बिन राग आईए कोई ख़्वाब ढूँढ़ें चलिए नई उसारें कोई दुनिया

पवन सी कोई

पवन सी कोई गलवकड़ी में मेरे आ जाती है कभी कभी फिर छुड़ाती है अपने आपको अपनी खामोश सी अदाऐं कब छुटतीं हैं ऐसी गलवकड़ीयां सांस्कृतिक सांप की लपेट जैसे होते हैं यह छिन ऐसे में जकड़ा रह जाता है भूल कर सयीयां से पलू टाई से लिपटा बाँहों में ऊलझा कभी कभी तो चुंनड़ी चूमना नहीं छोड़ती कोट की उोड़ी छाया को ग़रम सी वहने लगती है नईया इघर उधर को समुद्र सा डूब जाता है तपते हूऐ रेगिस्तान में दिल के ऊपर लगा बरोच फँसा लेता है पलू के आनंदित संसार को बुलाने पर भी चुप रहती है जिंदगी बातें होतीं तो हैं मगर चुप्पी से पीघल जातीं हैं आखों की दास्तान पलकों में ऐसी उलझन में कौन नहीं भूल जाना चाहता कि दुनिया भी कोई नगरी है जनत भी कहीं रहती है और कहीं ऐसे फिदा हूई धड़कनों में ना तो पलू छोड़ रहा था उसे और न मैं चाहती थी कि आजाद हूँ उनकी बाँहों से हाथ छूते रहे उसके मेरी नर्म गोरी कलाईयों को साँस चलते रहे रूक रूक कर जो भी जीवत रहे थे ऐसे चलता रहा नाटक रोल करते रहे अदाकार ऐसे में जकड़ लिया आँखों में उस ने लगा लीया धड़कनों के साथ साँस जैसे इक हों गऐ हों दो जिसमों के कौन छूटना चाहता है ऐसी ऊमर कैद से कौन चाहता है कि अलग हो कर साँस लें दो जहाँ मैं ने बहुत पछताताप किया उन से दूर हो कर बहुत कुछ बोला उन सुलझे पलों को

पाश

पाश बहुत लोहा लिया था तू और मैंने साथ साथ कि इस जुलमीं मौसम की आंखों में झोंक देंगे आग जैसे अक्षर नसाज ॠतु कर देंगे तबदील हम दोनों तेरे रासते पे नमन करते थे दोस्त हम मगर सूर्य न बन पाऐ हम सीख गऐ थे कि कैसे बनना है जिंदगी आग से बात करते करते अंगारों पे नाचना हम ने तो भुला दिया था जुलफें कैसी होती हैं महबूब की और तेरी नई नजम का शलाखों के पीछे से इंतजार करते रहे कितना लुतफ मिलता था यारों की शादी में दारू पी कर भंगड़ा पा कर और बाद में निकंमें से सिसटम को कोसना ललकारना पुलिस मुखबर की शरारत को कितने नक्षस खा गई वो काली सी रातें हमारी नजमों के कितने मर गऐ साथी गीत नहरों और सरकंडों में शिस्त लिए सपने थे वो भी न परते वापिस घौंसलों को बोट थे नंने से चीख़ते चिरलाते बिन दाना सो गऐ बहुत इंतज़ार किया कि आऐगा मौसम गायों में गीतों का अब नहीं मरेगी किसी महंदी की दुनिया मगर सरसों का हुसन और गेहूं का इश्क जालम की कचहरी में भोगता रहा सालों भर तारीकें नंने बच्चों के खाब ऊमर भर न हो पाऐ जुआन बहार आती तो रही मगर उसे कभी झोपड़ीयों का सिरनामा न मिला आंसूयों के ऩगमें न सुनाई पड़े

दूर हो मुझ से

दूर हो मुझ से दिल से दूर कैसे जाओगे फ़ासला दूरी से होता है सुना था रात को पता नहीं कौन सोता है ख़ाबों में कम्बखत आयो मना लें ये शाम की दुनिआ कल आये न आये कौन जाने हम्मे नहीं परवाह इस मौसम की शांत है जा गरम आप बताओ सांसों में तो है न कोई नई इशा या मिलन हिमत देखो हमारा हौसला देखो कच्चे घड़े को तो डरपोक कोसते हैं हमे नहीं किसी की परवाह हम जब चाहें बुला लेते हैं आप को ख्यालों में

तू जरा सी

तू जरा सी दूर वहती रही और मैं करीबी से गुजरता रहा तू चंदा को देखती रही मैं तेरे हुसन को देख देख तेरी पेंटिंग बनाता रहा जैसे तू मेरे साये में पली हो तेरा एक एक अंग भरा हो महिकों से जुवान हूया हो मेरे साथ चलते चलते देख कैसे गुजर जाते हैं सालों साल एक दूसरों के सांसों में एक दूसरों कीं आखों में

दोस्त उदास न हो

दोस्त उदास न हो उदासी में ऐक पल भी नहीं गुजरता महबूब कीं यादें बिखर जाऐंगी इश्क की जान जा सकती है उदास न हो ऐसे मंजिलें नहीं मिलतीं उदासी में बिन चले चट्टानें नही फोड़ी जाती दरिया कभी उदास नहीं होते परचम कभी झुकना नहीं सीखते आँधी बन कर चीखना सीख चलना सीख तूफान बन कर पायों में तलाश रही फूलों में नऐ रंग आऐंगे मुरादें ले कर आऐगा चंदा सितारे आरती ऊतारेंगें मुस्कुराऐंगी फ़िजाऐं सुबह पे निखार आऐगा अगर खून पानी में न ढला तो नई रंगत नहीं आऐगी जिंदगी के कदमों में अँधेरों में रास्ते कैसे बन पाऐंगे उजाले कौन करेगा मंजिलों के दरवाजे पर

आँख खुलती है जब

आँख खुलती है जब तो नजम को भी उठा लेना बुरा नहीं अकेले सैर पे निकलना अछा नहीं होता सितारों की दूघीया नदी में टहलते तैरते और नहाने से बहुत से खाब सचे हो जाते हैं ऐसी सुबह में कोई न कोई सितारा जो अभी भी सोया नहीं होता आ जाता है रासते में दुखद कहानी सुनाने रात की सो संभल कर चला करो कोमल से पाँवों से जख्म जयादा गहरे होते हैं जिन का भरना नामुमकिन होता है राह भी बन जाते हैं नये नये सुबह की पहली सी रोशनी में जैसे तूने जरा सा धूंधट उठाया हो नजर पड़ी हो तेरी किसी तन्हा पे जो तरस रहा हो दो पल तेरे साथ को तेरे होंठो की मीठी मीठी बात को अपने जख्मों पे लगाना तन्हा रूह को कभी ठुकराना मत एन में जीने की चाहत होती है जरा सी जिंदगी मचलती है एनके सांसो में भी तेरे रुकने पे एन को जिंदगी मिल जाऐगी ये भी जी लेंगे और दो घड़ी तू मिला कर कभी कभी घरती पर तनहाईयां कम हो जाऐंगी चैन से सांस लेने लगेंगे सहमे हूऐ सपने रींगती हूई रूहें

वो दिन

वो दिन जब प्रेम ओर विश्वास को एक होना होता है ख़ुश रहने की दोस्त कामना करते हैं आदर, सम्मान और प्रेम प्रतिष्टा जीवन की एक सीड़ी पे एक साथ चड़ा जाता है ख़ुशी, हँसी, प्रेम, सुख और एक दूसरे का साथ जन्मो जन्मो तीकर बनता है समृद्धि, सदाचार, सम्पत्ति , सेवा से सुशोभित होतीं हैं धड़ीयाँ प्रेम भावनाएँ जब शिव पार्वती हो जाते हैं जब रिश्तों में चूहल तो हो लेकिन चुभन कभी भी न हो जब इतने साल एक विस्फोटक को सम्भाल कर रखा जाता है

धीरे धीरे

धीरे धीरे चल रहा है समय मंजिल भी अभी दूर है कुछ कुछ हो रहा है मन में और जिसम में फूट रही हैं किसी की याद बनी झरनाट डूब रहा है रूह में कुछ उदासी है कि जाती ही नहीं सुकून भाग गया है कहीं सुबह आने को है अभी फटेगी पौ किसकी आहट है बाहर शाम के झुटपुटे में चलते चलते वो मिल जाऐगी कहीं दो चार कदम साथ चल कर अगली गली में छुप जाएगी उस का हुसन साँस रह जाऐगा मेरे पास कैसे जीऐगी मेरे बिन हुसन साँस बिन कया जीवन सूरज उगता मरता रहेगा रात नाचती गाती सो जाऐगी कल का दिन अकेला करूँगा सुनहरी नया सूरज बन कर उसकी जुलफों की रिशमें लिए अब हम बनेंगे सूरज हर नई सुबह के गाँव गाँव गली गली को रौशन करते अंघेरे को साफ करते थकी थकी सी रातों को सोलाते टूटते सितारों को नये सूरज बनाते घर से बुलायेंगे उसे नयी शाम जलाने के लिए दो पल फिर उदास हो जाने के लिए

मालूम न था

मालूम न था कि लोगों की काट दी जाऐंगी जुबानें जरा सा भी सच्च बोलने पर अपने ही घरों में हो जाऐंगे नन्ने से खाब बेघर दूध की इंतजार में बिलकते रह जाऐंगे होंट उनके फासले से बन जाऐंगे दिलों में नफरतों का आलम होगा जो भी जीतेगा जालम होगा हाथ डूबे होंगे खून में उसके यह मालूम ही न था कि हार जाऐगें हर बार लोग दरिया मर जाऐंगे प्यासे किसी ने भी सुना नहीं था कि चांद को शर्माना पड़ेगा आप का हुसन देख कर एक धड़कन की दास्तान मर जाऐगी मोहब्बत बिन किसी के दामन में रह जाऐगा मूँह उोड़े इश्क किसे खबर थी अकेले में जकड़े आहों को सीने में कब धूँट लगतें हैं स्वादिष्ट कॉफी के रिमझिम हो दीवारों पर कोई तीर न हो ईशारों पर एक पहर न हो इकरारों पर मालूम नहीं कैसे रींगता रहा ये समह

आजकल तो

आजकल तो जिसमों का बिजनेस सा चल पड़ा है यहाँ पहले कब होता था ऐसा व्यापार देह के व्यापारी आते हैं चुन चुन कर ले जाते हैं शरीर उन्हें तो हमारे खूबसूरत चेहरे चाहीऐं नर्म जिसम से मोहब्बत है उन्हें तो कुछ पलों के लिए हमसे खिलौनों की तरह खेलते हैं उन्हें और कुछ भी अच्छा नहीं लगता हमारी गदराई सी छातीयों के सिवाय होटों के चुंबनों के बगैर आंसू तो हमारे कभी पूंछते ही नहीं फूल लगाना अभी तीक नहीं छोड़ा उनहों ने जुलफों में कि कभी उनका पति भी शायद लौट आएगा तरह-तरह का अपमान झेलना पड़ रहा है आदिवासनों को कभी पति के चले जाने पर और कभी उसके होने पर भी कोई आता है उठा कर ले जाता है बाँसुरी बजाते रहते हैं मरद लोग पुरुष दुख साहस को बाँसुरी की तरज में विलुप्त रहते हैं बस्ती में आग लगे जुलूस निकले हर-बार चुप रहकर स्त्री उसकी निष्क्रियता को नहीं झेल सकती एक बोली मैं चुप नहीं रहूँगी इस बार तोड़ दूँगी तुम्हारी बाँसुरी छीन कर इस बार जब भी वो मुझे उठाने आऐ तो हर वक्त घेरे रहता है डर का अनाम साया उन्हें ऐसी हैवानियत की शिकार होती हैं यहाँ जिंदगी घर का दरवाज़ा खोलकर सोने में डरती हैं दैहिक-शोषण इस समाज में स्त्री की स्वीकृत नियति है कहीं कोई चीख-पुकार नहीं है अवरुद्ध हो गई है प्रताड़ित स्त्री के गले में चाहकर भी भूल नहीं सकती वो बहशत भरीं रातें कैसे भूल सकतीं हैं जिनमें उनके संसार की सभी संवेदनाएँ जिंदगी का ऊँचा मीनार पावन पवन जैसा रिश्ता पलक झटकते ही खो गया हो कौन भूल पाऐगा वो काली काली सी रातें वो चीखें चिरलाटें जब आदमी बन जाता है हैवान जब समह पिघल जाता है जब किसी भगवान को सुनाई नहीं देता किसी अलहा को दिखाई नहीं देता जब पथर हो जातें हैं लोग दरिया जम जातें हैं जब ऐसे भी आंसू वहते हैं यहाँ ऐसे भी रींगता मरता है हुसन यहाँ

कमी सी होती है

कमी सी होती है हर ख़ुशी में ऐसे नहीं खुदकुशी करते आंसू अैसे नहीं फैल जाता दिल सिसकी कब सोती है गहरी नींद उोड़े भूखे बच्चों वाले परिंदे कब बैठते हैं चैन से शाखाओं पर चुप चाप बैठा था सूरज चांद भी सोया नहीं था कौन पूंछता है जिंदगी के गीतों के आंसू और कैसे जम सकती है गर्द पलकों पे ख़्वाब मर सकते हैं राहों में कोई तो भूला होगा कोई दोस्त तो वापस परता होगा बिन गले लगे दरों से किसी रात का आलम तो मरा होगा इश्क में अैसे नहीं फैलती सनसनी शहरों में अैसे नहीं जलते फूल पत्तियाँ रातों में आग रहेगी फिर भी कहीं दबी दबी सी कोई शिकवा नहीं हसरतें राख़ हो गईं तो कया हूया

कौन सुनता है

कौन सुनता है दर्द किसी का किस को सुनाएं कौन है यहाँ अपना घीरे घीरे एक एक सभी कंघे पे हाथ रखें चले जा रहे हैं किन में वांटू अब सूखे आसूयों का संदेश कौन सुनेगा सिसकती पलकों की गाथा कोई नहीं है यहाँ जो अपनाले दर्द किसी का वांट ले आघे आसूयों की तड़पन जो दो कदम साथ चले उदास राहों पे कहने को तो लाखों मिल जाऐंगे राहगीर सुनने को तो बहुत आ जाऐंगे टूटे इश्क की कहानीआं कया करूं कैसे जगाऊं अभी अभी तो सुलाया था ग़म अभी अभी तो धो कर रखे थे नैनों के ख़ाब सुकून लाऊं तो कयां से भूल पाऊं तो कैसे ऐसे कब जख्म भरते हैं कब भुलाई जातीं हैं पहली सी मोहब्बत की यादें कब मरते हैं उदास दिनों के पल चैन से कब सोती है प्यार की दास्तान

नववर्ष मंगलमयीअत

कैसे भूल पायूं बीते कल को न आप आये न ही हूया कोई परछाई का मिलन ऐसे में कौन भूल सकता है बीते कल को जो दिल में वसा हो और मिला न हो सदीयों से कया ऐसे भी होती है कोई दोस्ती अैसी भी होती हैं चुप सी हवाऐं? ऐसी चुपी में मुस्कुराया भी कब जाता है खुशियाँ भी कब आतीं हैं दीवारों के सपनों में महंदी भी रंग नहीं लाती टूटी हूई आहों पे सायों को चूम लेना उोड़ लेना धूंधट की तरह वकत नहीं चाहता कि ऐसे मर जाऐं यादें किसी के आने से फूल खिल सकते हैं बगीचों के खुसबू फैल सकती है नगरों में इस लिए आपको आना ही होगा इश्क बरस सकता है मोहब्बत खिल सकती है हर शखायों पे नए साल में उजाला बन कर आयोगी तो सांस मिल जाऐंगे टूटे सितारों को कोंपलों में से ऊठ झांक सकते हैं नंने से फूलों के नैन अगर तू वायदा देती हो कि इस साल तू रौशनी वन हर भूखे बच्चों के घर आयोगी गले लगा पिलायोगी उनको अपना मीठा दूघ चांद की गराही तो मैं भूल जाता हूँ बीते साल की जुदाई तेरी दस्तक से सपने मिल जाऐंगे पलकों को जैसे डाली को फूल मिल जाते हैं खुशी मिल जाती है सूखे होंटों को जैसे किसी की दुआ से मिल जाती है जिंदगी पल भर के लिये हार्दिक शुभकामनायों से कोई आंगन नाचनें लगता है गुलशन खिल जाता है किसी की खूबसूरत नज़रों से दूर हो जातीं हैं ग़म की परछाईं भाग जाती है तनहाई तू अगर आ जायोगी तो टूटने जा रहे सितारे थम जायेंगे ख्वाब भी नहीं टूटेगा किसी रात का अगर इश्क का हुनर होगा महक होगी मोहब्बत की नववर्ष मंगलमयीअत भी आबश होगी

चूम रहा हूँ

चूम रहा हूँ वोही हाथ जिस से कभी छूहा था तुम्हें बने थे गलवकड़ी मेरे साये की उसी याद की चाकलेट टौफी चूस रहा हूँ धीरे धीरे कितनी मिठास होती है यादों में भी कितना अच्छा लगता है ऐसे ही यादों में संभाल कर रखना अब ऐसा हो गया है जीना जी चाहता है टौफी आइस्ता आइस्ता खुरे और आती रहे तेरी याद तू नहीं जानती ऐसे ग़म कम होता है मोहब्बत फिर जग जाती है तू ऐसे ही बनीं रहना यादों में रहने से तेरा क्या जाता है नहीं तो किसी की जान पे बन जाऐगी मौत आ जाऐगी परिंदों की

औरत

रुलती फिरती तक़दीर है वो फटी पुरानी तस्वीर है वो संसार में पयम्बर अवतार जने बदक़िस्मत घर में लकीर है वो हर ज़ुल्म ऐश क्यों मर्दों के लिये सज़ा रोना क्यों औरत के लिये मर्द सो सकता हर सेज पे चिता ही क्यों बनी औरत के लिये मसल कुचल औरत को धुत्कारने वाला जनम पा कर नीलाम करने वाला और कोई नहीं था ये मर्द ही था बेइज़्ज़त वस्त बने तो औरत इज़्ज़तदारों में बंटे तो औरत कोख का कारोबार औरत इश्क का व्यापार औरत मर्दों की हवस में ढले औरत गुर्बत की गोद में पले औरत क्यों औरत सजे दीवारों पे क्यों औरत नाचै दरबारों में क्यों औरत बिके बाज़ारों में क्यों औरत तुलै दीनारों में

मज़दूर

हर दिन थकी रात को मैं सोलाता हूँ थकी हुई पलकों की निदिया से दिनभर के थक्के सूरज को मैं जगाता हूँ पहले हम दोनों सूखी रोटी काली चाये में डुबो कर खाते कुश रोटी बांध कर साथ ले जाते हैं दुनिया को रौशनी देते संसार जागता आखें खोलता सुनहरी दुपहर में फटे पहर पहनें दिन भर काम में जुटते मैले पहरों को साफ करते सारा दिन पसीने से नहाते हम सभी जगह पर दुनियां के हर कोने में नंने नंने से दीये जला रहे हैं जीतना हो सके अंधेरा मिटा रहे हैं कोई ईटें उठा रहा है कोई सीमेंट मिला रहा है कोई केले सब्जी बेच रहा है कोई टूटी सड़क बना रहा है लुक के रंग जैसी तक़दीर लिए अस्पताल बनाया था हाथों से सुविधा लेने गया धक्के मिले मासूम बच्चा दम तोड़ गया बेटे की लाश उन्हीं कंकर पथरों पे पड़ी है फटी धोती में लिपटी यहाँ अभी भी हमारा पसीना पड़ा है कोई रिक्शा चला रहा है मंजिल नहीं मिली आज तीक उसे कुली जिंदगी का बोझ ढो रहा है बोझ कम न कर सका अब तीक हम ने कया लेना बड़ी बातों से हमें चाहिए चाँद जैसी गोल रोटी क्रांति की कथा लिख रहें है हम न मांगें भीख किसी से मेहनत को जिंगदी देना है हमारा धर्म लोहे के हाथ हैं हमारे कला वांट रहे हैं फूलों को खिलना सिखाते हैं इनको सभी घर इमारतों को हम ने जनम दिया पर अपने लिए झोपड़ी मिली नदियां दरिया सभी को हम ने सिखाया टुर्ना पत्थर को बुत्त और भगवान भी हम ने बनाया साज बना दिया हम ने रुख को दुनिया का भार हमारे कंधो पर ढोह रहे हैं- अपने आप को मिटाते काली सी जिंदगी को गाते

आराम से बैठे हो

आराम से बैठे हो चलो गिरते सितारों को पकड़ें इन भेड़ीयों से बच्चों के टूटते खिलौने कुछ तो बचाऐं कहाँ थे आप इतनी सदियों बीत गईं हैं आईये उस के हाथ काटें जो शैतान के पाँव साफ़ करता है रींगता है उनके आगे सर के बल मुझे कोई मघुर लोकगीत सुनाईये और दूर रखीऐ मेरे से बच्चीयों को नोचता हूया बना भगबान ढूंढें उस मर रहे इनसान के लिए दो चार और साँस और कोई ईमानदार सा रहबर इन झौपड़ियों के लिए मुझे नहीं चाहीऐ हजारों दिन रात और न सफेद बालों तीक बर्फ सी उम्र मुझे बताना जब वापस आओगे कसम से कहता हूँ औरत को सच में भी शक रहता है कोई भी हो तीर्थयात्रा मैं नहीं जाऊंगा जो गाँव को अपना पत्र नहीं लिखते अच्छा नहीं कर पा रहे वह सच था आप जब उससे मिले हम अगले मोड़ पर मिल सकते हैं

अब फैसला तेरे हाथ में है

अब फैसला तेरे हाथ में है तोतले बोलों को हलाल कर कर मारने और बलात्कार में कोई अंतर नहीं होता जिस हालत में ज़ख्मों की जुबान भी काट दी जाती है धर्म असथान में बलात्कार करना और सीढ़ी से धकेलने में कोई अंतर नहीं होता दूसरी सूरत में पुजारी पूछेगा कैसे महसूस करती हो भगवान के दर्शन करने के बाद बस से धकेल या खेत में से जिवा कर मार देने में कोई अंतर नहीं होता एक में पैसा गिन लेता है बाप दूसरा ढूँढता है अपनी नन्ही बच्ची की चीखें काले विछीयर के डसने और बलात्कार में कोई अंतर ना समझीऐ सभी कहेंगे कि आजकल कौन अकेली बेटी को पशू चरवाने भेजता है कौन पहनती है कम कपड़े कालज में कौन सी पवन गाती है अपने दर्द के गीत कोई अंतर नहीं जमाने में अपने सांस ले कर जीना और बलात्कार में देर में छुट्टी होने पे घर पहुँचने की चिंता है या फिर डराईवर और कंडक्टर से बचकर निकलना हर पेड़ अब खड़ा है नोचने को अभी अभी उसने तुझे अपनी छाया में बैठने को बोला था हर नेता की खिड़की हर थाने की दीवार बलात्कार करने के लिए उडीक में है बदबू का ढेर बन गया है यह बाज़ार हर पहर नीलाम हो रहे हैं जिसम सौदा हो रहा है हर मोड़ पर यहाँ आप की बेटीयों के अरमानो का यह हवा का झोंका सितारों की नज़रों का तीर हर औरत के उभार पे से रींगता गुजरता है चुंभ कर जाता है सुंदर जिसम की हर परत को अब जरूरत बन गई है शमशीर पहनना खंजर सजाना हाथ में चाकू ले कर भी सैर करना अब असुरक्षित है जंगल अकेले में आदमी को देखो तो पहले ही शमशीर निकाल लो मयान से घर के दरवाज़े पर भी जकीन मत कीजीऐ कोई दोस्त रिशतेदार नहीं रहा अब खंजर पे हाथ रखे बात करना हर जगह में कुंडली मारे बैठे हैं यह ज़हरीले सांप अँधेरे रास्ते धर की वगल में बस रेल गाड़ी बीयावान बैठी है यह नफ़रत लैम्प को छोड़ अंधेरे को मापीऐ हर मर्द निगाहों की कीजीऐ निरीक्षण आ रही बस पर इतबार मत कीजीऐ जिस के साथ अब कौफी पी रही हो अभी वोही कप एक चुंबन माँगेगा दुनिया को तो तेरे शरीर की सिलवटें चाहीऐ छनकार चाहीऐ तेरी पायल की समय को तो रौंदना है तुझे खेलना है तेरे अंग अंग से इनकार करने पर जान से भी जायोगी अब फैसला तेरे हाथ में है

तूने अच्छा नहीं किया

तूने अच्छा नहीं किया मेरी राह को छोड़ कर मेरे हाथ से हाथ छुड़ा कर मेरी बाजुओं में से फिसल कर अब रहोगी तन्हा सी मेरे गीतों को तरसती नज़्मों को यादों में संभाले आपको फिर भी कहीं न कहीं मिल जाऐंगी मेरी जख्मीं सीं नजरें रोते हूऐ गीतों के साये तुझे भटकने से बचाती मेरी ग़ज़ल मेरे गीत हर सुबह को उड़ जाते हैं तुझे ढूंढने के लिए और शाम को घौंसलों में लौट आते हैं आँसूयों का चोगा लिए मेरी जख्मी स्तरें इघर ऊधर सभी रास्तों पे बिखरी पड़ी हैं कभी मन न लगे तो लौट आना उनकी पैड़ों को दवाऐ चले आना अभी भी मेरे गीत बैठे हैं तुझे फिर से गाने को दिल बहलानें को तेरी रूठी सी आहों को मनाने को

तू आ गई हो

तू आ गई हो छुप गया है सूर्य तेरी इक झलक से धुँद का ज़ीना-ए-ख़्वाब न रहा क़ल्ब-गह भी ऐसे ही हो जाते हैं रौशन अक्स आईने में नहीं तैरते भूल जाते हैं कहां से आऐ थे हम तू आई तो मेरी रात ने ख़्वाब लिखा नदीयों मे आब नाचा मिली रंगीन-ए-शब परिंदो को इक तेरी सूरत का लम्हा रहा जीवत फ़ना-याब हो गईं है कायनात की सुगंध तेरी इक मुसकान से रौशनी आई शम्अ के आंगन में देखीऐ बुझे सितारे और चिराग फिर से जगमगा ऊठे हैं तेरे शबाब को देख कर

ज़रा धीरे चलीए

ज़रा धीरे चलीऐ पाँवों फिसल सकता है आ सकती है मोच पाँवों में संभल कर चलीऐ जनाब संभाल कर चलीऐ शबाब हुसन का इतबार मत कीजीऐ अन दाना लिए जा रहीं चीटीं मर जाएंगी कहर मच जाएगा इन की मौत पर बच्चों के खिलौने खिलरे पड़े हैं राह में टूट सकते हैं सोये हूऐ हैं नने से वाल निंदीया टूट सकती है इनकी आहिस्ता चलीऐ ज़रा कहीं आहट न हो बचों के टूट न पायें सपने अभी सोई माँयों की लोरीयां न बिखर जाएं कहीं आप कया जाने टूटे हूऐ खाब नहीं जोड़े जा सके कभी बिखरीं हूई लोरी कभी ऐक साथ न हो पाऐंगी टूटे हूऐ खिलौने कब जुड़ते हैं जनाब