Zauq
ज़ौक़

शेख़ इब्राहिम ज़ौक़ (1789-1854) उर्दू अदब के एक मशहूर शायर थे। उनका पूरा नाम शेख़ मुहम्मद इब्राहिम ज़ौक था। उनका जन्म दिल्ली के एक सिपाही शेख़ मुहम्मद रमज़ान के घर हुआ। ज़ौक़ आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के उस्ताद और राजकवि थे। मिर्ज़ा ग़ालिब से उनकी प्रतिद्वंदिता प्रसिद्ध है। ज़ौक़ बेहद नरम मिजाज के थे और उनकी याददाश्त बहुत तेज थी । जितनी विद्याएं और उर्दू फ़ारसी की जितनी कविता-पुस्तकें उन्होंने पढ़ी थीं, उन्हें वे अपने मस्तिष्क में इस प्रकार सुरक्षित रखे हुए थे कि हवाला देने के लिए पुस्तकों की ज़रूरत नहीं पड़ती थी, अपनी याददाश्त के बल पर हवाले देते चले जाते थे। । ग़ालिब के समकालीन शायरों में ज़ौक़ बहुत ऊपर का दर्जा रखते हैं।

ज़ौक़ की रचनाएँ हिन्दी में

शेख़ इब्राहिम ज़ौक ग़ज़लें

  • अज़ीज़ो इस को न घड़ियाल की सदा समझो
  • अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे
  • आज उनसे मुद्दई कुछ मुद्दआ कहने को है
  • आते ही तू ने घर के फिर जाने की सुनाई
  • आँख उस पुर-जफ़ा से लड़ती है
  • आँखें मिरी तलवों से वो मिल जाए तो अच्छा
  • इक सदमा दर्द-ए-दिल से मिरी जान पर तो है
  • इस तपिश का है मज़ा दिल ही को हासिल होता
  • उस संग-ए-आस्ताँ पे जबीन-ए-नियाज़ है
  • उसे हमने बहुत ढूँढा न पाया
  • ऐ 'ज़ौक़' वक़्त नाले के रख ले जिगर पे हाथ
  • कब हक़-परस्त ज़ाहिद-ए-जन्नत-परस्त है
  • कल गए थे तुम जिसे बीमार-ए-हिज्राँ छोड़ कर
  • कहाँ तलक कहूँ साक़ी कि ला शराब तो दे
  • किसी बेकस को ऐ बेदाद गर मारा तो क्या मारा
  • कोई इन तंग-दहानों से मोहब्बत न करे
  • कोई कमर को तिरी कुछ जो हो कमर तो कहे
  • कौन वक़्त ऐ वाए गुज़रा जी को घबराते हुए
  • क्या आए तुम जो आए घड़ी दो घड़ी के बाद
  • क्या ग़रज़ लाख ख़ुदाई में हों दौलत वाले
  • क़स्द जब तेरी ज़ियारत का कभू करते हैं
  • क़ुफ़्ल-ए-सद-ख़ाना-ए-दिल आया जो तू टूट गए
  • ख़त बढ़ा काकुल बढ़े ज़ुल्फ़ें बढ़ीं गेसू बढ़े
  • ख़ूब रोका शिकायतों से मुझे
  • गईं यारों से वो अगली मुलाक़ातों की सब रस्में
  • गुहर को जौहरी सर्राफ़ ज़र को देखते हैं
  • चश्म-ए-क़ातिल हमें क्यूँकर न भला याद रहे
  • चुपके चुपके ग़म का खाना कोई हम से सीख जाए
  • जब चला वो मुझ को बिस्मिल ख़ूँ में ग़लताँ छोड़ कर
  • जुदा हों यार से हम और न हो रक़ीब जुदा
  • जो कुछ कि है दुनिया में वो इंसाँ के लिए है
  • ज़ख़्मी हूँ तिरे नावक-ए-दुज़-दीदा-नज़र से
  • तेरा बीमार न सँभला जो सँभाला लेकर
  • तेरे आफ़त-ज़दा जिन दश्तों में अड़ जाते हैं
  • तेरे कूचे को वोह बीमारे-ग़म दारुलशफा समझे
  • दरिया-ए-अश्क चश्म से जिस आन बह गया
  • दिखला न ख़ाल-ए-नाफ़ तू ऐ गुल-बदन मुझे
  • दिल बचे क्यूँकर बुतों की चश्म-ए-शोख़-ओ-शंग से
  • दूद-ए-दिल से है ये तारीकी मिरे ग़म-ख़ाना में
  • न करता ज़ब्त मैं नाला तो फिर ऐसा धुआँ होता
  • न खींचो आशिक़-तिश्ना-जिगर के तीर पहलू से
  • नहीं सबात बुलंदी-ए-इज्ज़-ओ-शाँ के लिए
  • नाला इस शोर से क्यूँ मेरा दुहाई देता
  • निगह का वार था दिल पर फड़कने जान लगी
  • नीमचा यार ने जिस वक़्त बग़ल में मारा
  • बज़्म में ज़िक्र मिरा लब पे वो लाए तो सही
  • बर्क़ मेरा आशियाँ कब का जला कर ले गई
  • बलाएँ आँखों से उन की मुदाम लेते हैं
  • बाग़-ए-आलम में जहाँ नख़्ल-ए-हिना लगता है
  • बादाम दो जो भेजे हैं बटवे में डाल कर
  • मज़ा था हम को जो लैला से दू-ब-दू करते
  • मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे
  • मरते हैं तेरे प्यार से हम और ज़्यादा
  • महफ़िल में शोर-ए-क़ुलक़ुल-ए-मीना-ए-मुल हुआ
  • मार कर तीर जो वो दिलबर-ए-जानी माँगे
  • मिरे सीने से तेरा तीर जब ऐ जंग-जू निकला
  • ये इक़ामत हमें पैग़ाम-ए-सफ़र देती है
  • रिंद-ए-ख़राब-हाल को ज़ाहिद न छेड़ तू
  • लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले
  • लेते ही दिल जो आशिक़-ए-दिल-सोज़ का चले
  • वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें
  • वो कौन है जो मुझ पे तअस्सुफ़ नहीं करता
  • सब को दुनिया की हवस ख़्वार लिए फिरती है
  • हम हैं और शुग़्ल-ए-इश्क़-बाज़ी है
  • हंगामा गर्म हस्ती-ए-ना-पाएदार का
  • हाथ सीने पे मिरे रख के किधर देखते हो
  • हुए क्यूँ उस पे आशिक़ हम अभी से
  • हैं दहन ग़ुंचों के वा क्या जाने क्या कहने को हैं