विनती का अंग : संत दादू दयाल जी

Vinati Ka Ang : Sant Dadu Dayal Ji

दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरु देवत:।
वन्दनं सर्व साधावा, प्रणामं पारंगत:।1।
दादू बहुत बुरा किया, तुम्हैं न करना रोष।
साहिब समाई का धाणी, बन्दे को सब दोष।2।
दादू बुरा-बुरा सब हम किया, सो मुख कह्या न जाय।
निर्मल मेरा साइयाँ, ता कों दोष न लाय।3।
सांई सेवा चोर में, अपराधी बन्दा।
दादू दूजा को नहीं, मुझ सरीखा गन्दा।4।
तिल-तिल का अपराधी तेरा, रती-रती का चोर।
पल-पल का मैं गुनही तेरा, बखशो अवगुण मोर।5।
महा अपराधी एक मैं, सारे इहिं संसार।
अवगुण मेरे अति घणे, अंत न आवे पार।6।
बे मरयादा मित नहीं, ऐसे किये अपार।
मैं अपराधी बापजी, मेरे तुमहि एक आधार।7।
दोष अनेक कलंक सब, बहुत बुरा मुझ माँहिं।
मैं किये अपराधा सब, तुम तैं छाना नाँहिं।8।
गुनहगार अपराधी तेरा, भाज कहाँ हम जाँहिं।
दादू देख्या शोधा सब, तुम बिन कहिं न समाँहिं।9।
आदि-अंत लौं आय कर, सुकृत कछू न कीन्ह।
माया मोह मद मत्सरा, स्वाद सबै चित दीन्ह।10।

विनती काम-क्रोधा संशय सदा, कबहूँ नाम न लीन।
पाखंड प्रपंच पाप में, दादू ऐसे खीन।11।
दादू बहु बन्धान सौं बंधिया, एक बिचारा जीव।
अपणे बल छूटे नहीं, छोड़णहारा पीव।12।
दादू बन्दीवान है, तूं बन्दि छोड़ दीवान।
अब जिन राखो बन्दि में, मीराँ महरवान।13।
दादू अन्तर कालिमा, हिरदै बहुत विकार।
परकट पूरा दूर कर, दादू करे पुकार।14।
सब कुछ व्यापे रामजी, कुछ छूटा नाँहीं।
तुम तैं कहा छिपाइए, सब देखे माँहीं।15।
सबल साल मन में रहे, राम बिसर क्यों जाय।
यहु दुख दादू क्यों सहै, सांई करो सहाय।16।
राखणहारा राख तूं, यहु मन मेरा राखि।
तुम बिन दूजा को नहीं, साधु बोलै साखि।17।
माया विषय विकार तैं, मेरा मन भागे।
सोई कीजे सांइयाँ, तूं मीठा लागे।18।
सांई दीजे सो रती, तूं मीठा लागे।
दूजा खारा होई सब, सूता जीव जागे।19।
ज्यों आपै देखे आपको, सो नैना दे मुझ।
मीरा मेरा महर कर, दादू देखे तुझ।20।

करुणा दादू पछतावा रह्या, सके न ठाहर लाय।
अर्थ न आया राम के, यहु तन योंहि जाय।21।
विनती दादू कहैµदिन-दिन नवतम भक्ति दे, दिन-दिन नवतम नाउँ।
दिन-दिन नवतम नेह दे, मैं बलिहारी जाउँ।22।
सांई संशय दूर कर, कर शंका का नाश।
भान भरम दुविधया दुख दारुण, समता सहज प्रकाश।23।
दया विनती नाँहीं परगट ह्नै रह्या, है सो रह्या लुकाय।
संइयाँ पड़दा दूर कर, तूं ह्नै परगट आय।24।
दादू माया परगट ह्नै रही, यों जे होता राम।
अरस परस मिल खेलते, सब जिव सब ही ठाम।25।
दया करे तब अंग लगावे, भक्ति अखंडित देवे।
दादू दर्शण आप अकेला, दूजा हरि सब लेवे।26।
दादू साधु सिखावै आतमा, सेवा दृढ़ कर लेहु।
पारब्रह्म सौं बीनती, दया कर दर्शन देहु।27।
साहिब साधु दयालु है, हम ही अपराधी।
दादू जीव अभागिया, अविद्या साधी।28।
सब जीव तोरै राम सौं, पै राम न तोरे।
दादू काचे ताग ज्यों, टूटै त्यों जोरे।29।
सजीवनी फूटा फेरि सँवार कर, ले पहुँचावे ओर।
ऐसा कोई ना मिले, दादू गई बहोर।30।

ऐसा कोई ना मिले, तन फेरि सँवारे।
बूढ़े तैं बाला करे, खै काल निवारे।31।
परिचय करुणा विनती गलै विलै कर बीनती, एकमेव अरदास।
अरस-परस करुणा करे, तब दरवे दादू दास।32।
सांई तेरे डर डरूँ, सदा रहूँ भय भीत।
अजा सिंह ज्यों भय घणा, दादू लीया जीत।33।
पोष प्रतिपाल रक्षक दादू पलक माँहिं प्रगटे सही, जे जन करे पुकार।
दीन दुखी तब देखकर, अति आतुर तिहिं बार।34।
आगे-पीछे संग रहै, आप उठाये भार।
साधु दुखी तब हरि दुखी, ऐसा सिरजनहार।35।
सेवग की रक्षा करे, सेवग की प्रतिपाल।
सेवग की बाहर चढे, दादू दीन दयाल।36।
विनती सागर तरण दादू काया नाव समुद्र में, औघट बूडे आय।
इहिं अवसर एक अगाधा बिन, दादू कौण सहाय।37।
यहु तन भेरा भव जला, क्यों कर लंघे तीर।
खेवट बिन कैसे तिरै, दादू गहर गम्भीर।38।
पिंड परोहन सिंधु जल, भव सागर संसार।
राम बिना सूझे नहीं, दादू खेवणहार।39।
यहु घट बोहित धार में, दरिया वार न पार।
भयभीत भयानक देखकर, दादू करी पुकार।40।

कलियुग घोर ऍंधार है, तिस का वार न पार।
दादू तुम बिन क्यों तिरै, समर्थ सिरजनहार।41।
काया के वश जीव है, कस-कस बन्धया माँहिं।
दादू आतम राम बिन, क्यों ही छूटे नाँहिं।42।
दादू प्राणी बन्धया पंच सौं, क्यों ही छूटे नाँहिं।
नीधाणि आपा मारिये, यहु जिव काया माँहिं।43।
दादू कहैµतुम बिन धाणी न धाोरी जीव का, यों ही आवे-जाय।
जे तूं सांई सत्य है, तो वेगा प्रगटहु आय।44।
नीधाणि आपा मारिये, धाणी न धाोरी कोय।
दादू सो क्यों मारिये, साहिब शिर पर होय।45।
दया विनती राम विमुख युग-युग दुखी, लख चौरासी जीव।
जामे मरे जग आवटे, राखणहारा पीव।46।
पोष प्रतिपाल रक्षक समरथ सिरजनहार है, जे कुछ करे सो होय।
दादू सेवक राख ले, काल न लागे कोय।47।
विनती सांई साँचा नाम दे, काल झाल मिट जाय।
दादू निर्भय ह्नै रहै, कबहूँ काल न खाय।48।
कोई नहीं करतार बिन, प्राण उधारणहार।
जियरा दुखिया राम बिन, दादू इहि संसार।49।
जिनकी रक्षा तूं करे, ते उबरे करतार।
जे तैं छाडे हाथ तैं, ते डूबे संसार।50।

राखणहारा एक तूं, मारणहार अनेक।
दादू के दूजा नहीं, तूं आपै ही देख।51।
दादू जग ज्वाला जम रूप है, साहिब राखणहार।
तुम बिच अंतर जनि पड़े, तातैं करूँ पुकार।52।
जहँ-तहँ विषय-विकार तै, तुम ही राखणहार।
तन-मन तुमको सौंपिया, साचा सिरजनहार।53।
दया विनती दादू कहैµगरक रसातल जात है, तुम बिन सब संसार।
कर गह कर्ता काढ ले, दे अवलम्बन आधार।54।
दादू दौं लागी जग परजले, घट-घट सब संसार।
हम तैं कछु न होत है, तुम बरसि बुझावणहार।55।
दादू आतम जीव अनाथ सब, करतार उबारे।
राम निहोरा कीजिए, जनि काहू मारे।56।
अर्श जमीं औजूद में, तहाँ तपे अफताब।
सब जग जलता देखकर, दादू पुकारे साधा।57।
सकल भुवन सब आतमा, निर्विष कर हरि लेय।
पड़दा है सो दूर कर, कलमश रहण न देय।58।
तन-मन निर्मल आतमा, सब काहू की होइ।
दादू विषय-विकार की, बात न बूझे कोइ।59।
विनती समरथ धाोरी कंधा धार, रथ ले ओर निवाहिं।
मारग माँहिं न मेलिये, पीछे बिड़द लजाहिं।60।

दादू गगन गिरे तब को धारे, धारती धार छंडे।
जे तुम छाडहु राम! रथ, कंधा को मंडे।61।
अंतरयामी एक तूं, आतम के आधार।
जे तुम छाडहु हाथ तैं, तो कौण संबाहनहार।62।
तेरा सेवक तुम लगे, तुम हीं माथे भार।
दादू डूबत रामजी, वेगि उतारो पार।63।
सत छूटा शूरातन गया, बल पौरुष भागा जाय।
कोई धीरज ना धारे, काल पहुँचा आय।64।
संगी थाके संग के, मेरा कुछ न वशाय।
भाव भक्ति धान लूटिये, दादू दुखी खुदाय।65।
परिचय करुणा विनती दादू जियरे जक नहीं, विश्राम न पावे।
आतम पाणी लौंण ज्यों, ऐसे होइ न आवे।66।
दया विनती दादू तेरी खूबी खूब है, सब नीका लागे।
सुन्दर शोभा काढले, सब कोई भागे।67।
विनती तुम हो तैसी कीजिए, तो छूटैंगे जीव।
हम हैं ऐसी जनि करो, मैं सदके जाऊँ पीव।68।
अनाथों का आसरा, निरधारों आधार।
निर्धान के धान राम हैं, दादू सिरजनहार।69।
साहिब दर दादू खड़ा निश दिन करे पुकार।
मीराँ मेरा महर कर, साहिब दे दीदार।70।

दादू प्यासा प्रेम का, साहिब राम पिलाय।
परगट प्याला देहु भर, मृतक लेहु जिलाय।71।
अल्लह आले नूर का, भर-भर प्याला देहु।
हमको प्रेम पिलाइ कर, मतवाला कर लेहु।72।
तुम को हम से बहुत हैं, हमको तुम से नाँहिं।
दादू को जनि परिहरे, तूं रहु नैनहुँ माँहिं।73।
तुम तैं तब ही होइ सब, दरश-परश दर हाल।
हम तैं कबहुँ न होइगा, जे बीतहिं युग काल।74।
तुम ही तैं तुम को मिले, एक पलक में आय।
हम तैं कबहुँ न होइगा, कोटि कल्प जे जाय।75।
क्षण विछोह साहिब सौं मिल खेलते, होता प्रेम सनेह।
दादू प्रेम सनेह बिन, खरी दुहेली देह।76।
साहिब सौं मिल खेलते, होता प्रेम सनेह।
परगट दर्शन देखते, दादू सुखिया देह।77।
करुणा तुम को भावे और कुछ, हम कुछ कीया और।
महर करो तो छूटिये, नहीं तो नाँहीं ठौर।78।
मुझ भावे सो मैं किया, तुझ भावे सो नाँहिं।
दादू गुनहगार है, मैं देख्या मन माँहिं।79।
खुसी तुम्हारी त्यों करो, हम तो मानी हार।
भावै बन्दा बख्शिये, भावै गह कर मार।80।
दादू जे साहिब लेखा लिया, तो शीश काट शूली दिया।
महर मया कर फिल किया, तो जीये-जीये कर जिया।81।

।इति विनती का अंग सम्पूर्ण।

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