शब्द राग ललित : संत दादू दयाल जी

Shabd Raag Lalit : Sant Dadu Dayal Ji

शब्द राग ललित संत दादू दयाल जी
(गायन समय प्रात: 3 से 6)

1 त्रिताल

राम तूँ मोरा हौं तोरा, पाइन परत निहोरा।टेक।
एकैं संगै वासा, तुम ठाकुर हम दासा।1।
तन-मन तुम को देवा, तेज पुंज हम लेवा।2।
रस माँहीं रस होइबा, ज्योति स्वरूपी जोइबा।3।
ब्रह्म जीव का मेला, दादू नूर अकेला।4।

2 त्रिताल

मेरे गृह आव हो गुरु मेरा, मैं बालक सेवक तेरा।टेक।
माता-पिता तूं अम्हंचा स्वामी, देव हमारे अंतरजामी।1।
अम्हंचा सज्जन अम्हंचा बंधू, प्राण हमारे अम्हंचा जिन्दू।2।
अम्हंचा प्रीतम अम्हंचा मेला, अम्हंचा जीवन आप अकेला।3।
अम्हंचा साथी संग सनेही, राम बिना दु:ख दादू देही।3।

3 गजताल

वाहला म्हारा! प्रेम भक्ति रस पीजिए,
रमिए रमता राम, म्हारा वाहला रे।
हिरदा कमल में राखिए, उत्ताम एहज ठाम, म्हारा वाहला रे।टेक।
वाहला म्हारा ! सद्गुरु शरणे अणसरे,
साधु समागम थाइ, म्हारा वाहला रे।
वाणी ब्रह्म बखाणिए, आनन्द में दिन जाइ, म्हारा वाहला रे।1।
वाहला म्हारा! आतम अनुभव ऊपजे,
उपजे ब्रह्म गियान, म्हारा वाहला रे।
सुख सागर में झूलिए, साँचो यह स्नान, म्हारा वाहला रे।2।
वाहला म्हारा! भव बन्धान सब छूटिए,
कर्म न लागे कोइ, म्हारा वाहला रे।
जीवन मुक्ति फल पामिए, अमर अभय पद होइ, म्हारा वाहला रे।3।
वाहला म्हारा! अठ सिध्दि नौ निधि आंगणे,
परम पदारथ चार, म्हारा वाहला रे।
दादू जन देखे नहीं, रातो सिरजनहार, म्हारा वाहला रे।4।

4 गज ताल

म्हारो मन माई! राम नाम रँग रातो,
पिव-पिव करे पीव को जाने, मगन रहै रस मातो।टेक।
सदा शील सन्तोष सुहावत, चरण कमल मन बाँधो।
हिरदा माँहिं जतन कर राखूँ, मानो रंक धान लाधो।1।
प्रेम भक्ति प्रीति हरि जानूँ, हरि सेवा सुखदाई।
ज्ञान धयान मोहन को मेरे, कंप न लागे कोई।2।
संग सदा हेत हरि लागो, अंग और नहिं आवे।
दादू दीन दयालु दमोदर, सार सुधा रस भावे।3।

5 राजमृगांक ताल

महरवान महरवान,
आब बाद खाक आतिश आदम नीशान।टेक।
शीश पाँव हाथ कीये, नैन कीये कान।
मुख कीया जीव दिया, राजिक रहमान।1।
मादर-पिदर परद:पोश, सांई सुबहान।
संग रहै दस्त गहै, साहिब सुलतान।2।
या करीम या रहीम, दाना तूं दीवान।
पाक नूर है हजूर, दादू है हैरान।3।

।इति राग ललित सम्पूर्ण।

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