शब्द गुरू तेग बहादुर साहिब जी
Shabad Guru Teg Bahadur Sahib Ji in Hindi

रागु गउड़ी महला ९

1. साधो मन का मानु तिआगउ

साधो मन का मानु तिआगउ ॥
कामु कोधु संगति दुरजन की ता ते अहिनिसि भागउ ॥1॥रहाउ॥
सुखु दुखु दोनो सम करि जानै अउरु मानु अपमाना ॥
हरख सोग ते रहै अतीता तिनि जगि ततु पछाना ॥1॥
उसतति निंदा दोऊ तिआगै खोजै पदु निरबाना ॥
जन नानक इहु खेलु कठनु है किनहूं गुरमुखि जाना ॥2॥1॥219॥

2. साधो रचना राम बनाई

साधो रचना राम बनाई ॥
इकि बिनसै इक असथिरु मानै अचरजु लखिओ न जाई ॥1॥रहाउ॥
काम कोध मोह बसि प्रानी हरि मूरति बिसराई ॥
झूठा तनु साचा करि मानिओ जिउ सुपना रैनाई ॥1॥
जो दीसै सो सगल बिनासै जिउ बादर की छाई ॥
जन नानक जगु जानिओ मिथिआ रहिओ राम सरनाई ॥2॥2॥219।

3. प्रानी कउ हरि जसु मनि नही आवै

प्रानी कउ हरि जसु मनि नही आवै ॥
अहिनिसि मगनु रहै माइआ मै कहु कैसे गुन गावै ॥1॥रहाउ॥
पूत मीत माइआ ममता सिउ इह बिधि आपु बंधावै ॥
म्रिग त्रिसना जिउ झूठो इहु जग देखि तासि उठि धावै ॥1॥
भुगति मुकति का कारनु सुआमी मूड़ ताहि बिसरावै ॥
जन नानक कोटन मै कोऊ भजनु राम को पावै ॥2॥3॥219।

4. साधो इहु मनु गहिओ न जाई

साधो इहु मनु गहिओ न जाई ॥
चंचल त्रिसना संगि बसतु है, या ते थिरु न रहाई ॥1॥
कठन करोध घट ही के भीतरि जिह सुधि सभ बिसराई ॥
रतनु गिआनु सभ को हिरि लीना ता सिउ कछु न बसाई ॥1॥
जोगी जतन करत सभि हारे गुनीरहे गुन गाई ॥
जन नानक हरि भए दइआला तउ सभ बिधि बनि आई ॥2॥4॥219॥

5. साधो गोबिंद के गुन गावउ

साधो गोबिंद के गुन गावउ ॥
मानस जनमु अमोलकु पाइओ बिरथा काहि गवावउ ॥1॥रहाउ॥
पतित पुनीत दीन बंध हरि सरनि ताहि तुम आवउ ॥
गज को त्रासु मिटिओ जिह सिमरत तुम काहे बिसरावउ ॥1॥
तजि अभिमान मोह माइआ फुनि भजन राम चितु लावउ ॥
नानकु कहत मुकति पंथ इहु गुरमुखि होइ तुम पावउ ॥2॥5॥219॥

6. कोऊ माई भूलिओ मनु समझावै

कोऊ माई भूलिओ मनु समझावै ॥
बेद पुरान साध मग सुनि करि निमख न हरि गुन गावै ॥1॥रहाउ॥
दुरलभ देह पाइ मानस की बिरथा जनमु सिरावै ॥
माइआ मोह महा संकट बन ता सिउ रुच उपजावै ॥1॥
अंतरि बाहरि सदा संगि प्रभु ता सिउ नेहु न लावै ॥
नानक मुकति ताहि तुम मानहु जिह घटि रामु समावै ॥2॥6॥220॥

7. साधो राम सरनि बिसरामा

साधो राम सरनि बिसरामा ॥
बेद पुरान पड़े को इह गुन सिमरे हरि को नामा ॥1॥रहाउ॥
लोभ मोह माइआ ममता फुनि अउ बिखिअन की सेवा ॥
हरख सोग परसै जिह नाहनि सो मूरति है देवा ॥1॥
सुरग नरक अंम्रित बिखु ए सभ तिउ कंचन अरु पैसा ॥
उसतति निंदा ए सम जा कै लोभु मोहु फुनि तैसा ॥2॥
दुखु सुखु ए बाधे जिह नाहनि तिह तुम जानउ गिआनी ॥
नानक मुकति ताहि तुम मानउ इह बिधि को जो प्रानी ॥3॥7॥220॥

8. मन रे कहा भइओ तै बउरा

मन रे कहा भइओ तै बउरा ॥
अहिनिसि अउध घटै नही जानै भइओ लोभ संगि हउरा ॥1॥रहाउ॥
जो तनु तै अपनो करि मानिओ अरु सुंदर ग्रिह नारी ॥
इन मैं कछु तेरो रे नाहनि देखो सोच बिचारी ॥1॥
रतन जनमु अपनो तै हारिओ गोबिंद गति नही जानी ॥
निमख न लीन भइओ चरनन सिंउ बिरथा अउध सिरानी ॥2॥
कहु नानक सोई नरु सुखीआ राम नाम गुन गावै ॥
अउर सगल जगु माइआ मोहिआ निरभै पदु नही पावै ॥3॥8॥220॥

9. नर अचेत, पाप ते डरु रे

नर अचेत, पाप ते डरु रे ॥
दीन दइआल सगल भै भंजन सरनि ताहि तुम परु रे ॥1॥रहाउ॥
बेद पुरान जास गुन गावत ता को नामु हीऐ मो धरु रे ॥
पावन नामु जगति मै हरि को सिमरि सिमरि कसमल सभ हरु रे ॥1॥
मानस देह बहुरि नह पावै कछू उपाउ मुकति का करु रे ॥
नानकु कहतगाइ करुनामै भव सागर कै पारि उतरु रे ॥2॥9॥220॥

रागु आसा महला ९

10. बिरथा कहउ कउन सिउ मन की

बिरथा कहउ कउन सिउ मन की ॥
लोभि ग्रसिओ दस हू दिस धावत आसा लागिओ धन की ॥1॥रहाउ॥
सुख कै हेति बहुतु दुखु पावत सेव करत जन जन की ॥
दुआरहि दुआरि सुआन जिउ डोलत नह सुध राम भजन की ॥1॥
मानस जनम अकारथ खोवत लाज न लोक हसन की ॥
नानक हरि जसु किउ नही गावत कुमति बिनासै तन की ॥2॥1॥411॥

रागु देवगंधारी महला ९

11. यह मनु नैक न कहिओ करै

यह मनु नैक न कहिओ करै ॥
सीख सिखाइ रहिओ अपनी सी दुरमति ते न टरै ॥1॥रहाउ॥
मदि माइआ कै भइओ बावरो हरि जसु नहि उचरै ॥
करि परपंचु जगत कउ डहकै अपनो उदरु भरै ॥1॥
सुआन पूछ जिउ होइ न सूधो कहिओ न कानधरै ॥
कहु नानक भजु रामनाम नित जा ते काजु सरै ॥2॥1॥536॥

12. सभ किछु जीवत को बिवहार

सभ किछु जीवत को बिवहार ॥
मात पिता भाई सुत बंधप अरु फुनि ग्रिह की नारि ॥1॥रहाउ॥
तन ते प्रान होत जब निआरे टेरत प्रेति पुकारि ॥
आध घरी कोऊ नहि राखै घर ते देत निकारि ॥1॥
म्रिग त्रिसना जिउ जग रचना यह देखहु रिदै बिचारि ॥
कहु नानक भजु रामनाम नित जा ते होत उधारु ॥2॥2॥536॥

13. जगत महि झूठी देखी प्रीति

जगत महि झूठी देखी प्रीति ॥
अपने ही सुख सिउ सभ लागे किआ दारा किआ मीत ॥1॥रहाउ॥
मेरउ मेरउ सभै कहत है हित सिउ बाधिओ चीत ॥
अंति कालि संगी नह कोऊ इह अचरज है रीति ॥1॥
मन मूरख अजहू नह समझत सिख दै हारिओ नीत ॥
नानक भउजलु पारि परै जउ गावै प्रभ के गीत ॥2॥3॥536॥

रागु बिहागड़ा महला ९

14. हरि की गति नहि कोऊ जानै

हरि की गति नहि कोऊ जानै ॥
जोगी जती तपी पचि हारे अरु बहु लोग सिआने ॥1॥रहाउ॥
छिन महि राउ रंक कउ करई राउ रंक करि डारे ॥
रीते भरे भरे सखनावै यह ता को बिवहारे ॥1॥
अपनी माइआ आपि पसारी आपहि देखनहारा ॥
नाना रूपु धरे बहुरंगी सभ ते रहै निआरा ॥2॥
अगनत अपारु अलख निरंजन जिह सभ जगु भरमाइओ ॥
सगल भरम तजि नानक प्राणी चरनि ताहि चितु लाइओ ॥3॥1॥537॥

सोरठि महला ९
ੴ सतिगुर प्रसादि

15. रे मन राम सिउ करि प्रीति

रे मन राम सिउ करि प्रीति ॥
स्रवन गोबिंद गुनु सुनउ अरु गाउ रसना गीति ॥1॥रहाउ॥
करि साध संगति सिमरु माधो होहि पतित पुनीत ॥
कालु बिआलु जिउ परिओ डोलै मुखु पसारे मीत ॥1॥
आजु कालि फुनि तोहि ग्रसि है समझि राखउ चीति ॥
कहै नानकु रामु भजि लै जातु अउसरु बीत ॥2॥1॥631।

16. मन की मन ही माहि रही

मन की मन ही माहि रही ॥
ना हरि भजे न तीरथ सेवे चोटी कालि गही ॥1॥रहाउ॥
दारा मीत पूत रथ संपति धन पूरन सभ मही ॥
अवर सगल मिथिआ ए जानउ भजनु रामु को सही ॥1॥
फिरत फिरत बहुते जुग हारिओ मानस देह लही ॥
नानक कहत मिलन की बरीआ सिमरत कहा नही ॥2॥2॥631॥

17. मन रे कउनु कुमति तै लीनी

मन रे कउनु कुमति तै लीनी ॥
पर दारा निंदिआ रस रचिओ राम भगति नहि कीनी ॥1॥रहाउ॥
मुकति पंथु जानिओ तै नाहनि धन जोरन कउ धाइआ ॥
अंति संग काहू नही दीना बिरथा आपु बंधाइआ ॥1॥
ना हरि भजिओ न गुर जनु सेविओ नह उपजिओ कछु गिआना ॥
घट ही माहि निरंजनु तेरै तै खोजत उदिआना ॥2॥
बहुतु जनम भरमत तै हारिओ असथिर मति नही पाई ॥
मानस देह पाइ पद हरि भजु नानक बात बताई ॥3॥3॥631॥

18. मन रे प्रभ की सरनि बिचारो

मन रे प्रभ की सरनि बिचारो ॥
जिह सिमरत गनका सी उधरी ता को जसु उर धारो ॥1॥रहाउ॥
अटल भइओ ध्रअ जा कै सिमरनि अरु निरभै पदु पाइआ ॥
दुख हरता इह बिधि को सुआमी तै काहे बिसराइआ ॥1॥
जब ही सरनि गही किरपा निधि गज गराह ते छूटा ॥
महमा नाम कहा लउ बरनउ रामकहत बंधन तिह तूटा ॥2॥
अजामलु पापी जगु जाने निमख माहि निसतारा ॥
नानक कहत चेत चिंतामनि तै भी उतरहि पारा ॥3॥4॥632॥

19. प्रानी कउनु उपाउ करै

प्रानी कउनु उपाउ करै ॥
जा ते भगति राम की पावै जम को त्रासु हरै ॥1॥रहाउ॥
कउनु करम बिदिआ कहु कैसी धरमु कउनु फुनि करई ॥
कउनु नामु गुर जा कै सिमरै भव सागर कउ तरई ॥1॥
कल मै एकु नामु किरपा निधि जाहि जपै गति पावै ॥
अउर धरम ता कै सम नाहनि इह बिधि बेदु बतावै ॥2॥
सुखु दुखु रहत सदा निरलेपी जा कउ कहत गुसाई ॥
सो तुम ही महि बसै निरंतरि नानक दरपनि निआई ॥3॥5॥632॥

20. माई मै किहि बिधि लखउ गुसाई

माई मै किहि बिधि लखउ गुसाई ॥
महा मोह अगिआनि तिमरि मो मनु रहिओ उरझाई ॥1॥रहाउ॥
सगल जनम भम ही भमि खोइओ नह असथिरु मति पाई ॥
बिखिआसकत रहिओ निस बासुर नह छूटी अधमाई ॥1॥
साधसंगु कबहू नही कीना नह कीरति प्रभ गाई ॥
जन नानक मै नाहि कोऊ गुनु राखि लेहु सरनाई ॥2॥6॥632॥

21. माई मनु मेरो बसि नाहि

माई मनु मेरो बसि नाहि ॥
निस बासुर बिखिअन कउ धावत किहि बिधि रोकउ ताहि ॥1॥रहाउ॥
बेद पुरान सिम्रिति के मत सुनि निमख न हीए बसावै ॥
प र धन पर दारा सिउ रचिओ बिरथा जनमु सिरावै ॥1॥
मदि माइआ कै भइओ बावरो सूझत नह कछु गिआना ॥
घट ही भीतरि बसत निरंजनु ताको मरमु न जाना ॥2॥
जब ही सरनि साध की आइओ दुरमति सगल बिनासी ॥
तब नानक चेतिओ चिंतामनि काटी जम की फासी ॥3॥7॥632॥

22. रे नर इह साची जीअ धारि

रे नर इह साची जीअ धारि ॥
सगल जगतु है जैसे सुपना बिनसत लगत न बार ॥1॥रहाउ॥
बारू भीति बनाई रचि पचि रहत नही दिन चारि ॥
तैसे ही इह सुख माइआ के उरझिओ कहा गवार ॥1॥
अजहू समझि कछु बिगरिओ नाहिनि भजि ले नामु मुरारि ॥
कहु नानक निज मतु साधन कउ भाखिओ तोहि पुकारि ॥2॥8॥633॥

23. इह जगि मीतु न देखिओ कोई

इह जगि मीतु न देखिओ कोई ॥
सगल जगतु अपनै सुखि लागिओ दुख मै संगि न होई ॥1॥रहाउ॥
दारा मीत पूत सनबंधी सगरे धन सिउ लागे ॥
जब ही निरधन देखिओ नर कउ संगु छाडि सभ भागे ॥1॥
कहउ कहा यिआ मन बउरे कउ इन सिउ नेहु लगाइओ ॥
दीनानाथ सकल भै भंजन जसु ता को बिसराइओ ॥2॥
सुआन पूछ जिउ भइओ न सूधउ बहुतु जतनु मै कीनउ ॥
नानक लाज बिरद की राखहु नामु तुहारउ लीनउ ॥3॥9॥633॥

24. मन रे गहिओ न गुर उपदेसु

मन रे गहिओ न गुर उपदेसु ॥
कहा भइओ जउ मूडु मुडाइओ भगवउ कीनो भेसु ॥1॥रहाउ॥
साच छाडि कै झूठह लागिओ जनमु अकारथु खोइओ ॥
करि परपंच उदर निज पोखिओ पसु की निआई सोइओ ॥1॥
राम भजन की गति नही जानी माइआ हाथि बिकाना ॥
उरझि रहिओ बिखिअन संगि बउरा नामु रतनु बिसराना ॥2॥
रहिओ अचेतु न चेतिओ गोबिंद बिरथा अउध सिरानी ॥
कहु नानक हरि बिरदु पछानउ भूले सदा परानी ॥3॥10॥633॥

25. जो नरु दुख मै दुखु नही मानै

जो नरु दुख मै दुखु नही मानै ॥
सुख सनेहु अरु भै नही जा कै कंचन माटी मानै ॥1॥रहाउ॥
नह निंदिआ नह उसतति जा कै लोभु मोहु अभिमाना ॥
हरख सोग ते रहै निआरउ नाहि मान अपमाना ॥1॥
आसा मनसा सगल तिआगै जग ते रहै निरासा ॥
कामु कोधु जिह परसै नाहनि तिह घटि ब्रहमु निवासा ॥2॥
गुर किरपा जिह नर कउ कीनी तिह इह जुगति पछानी ॥
नानक लीन भइओ गोबिंद सिउ जिउ पानी संगि पानी ॥3॥11॥633॥

26. प्रीतम जानि लेहु मन माही

प्रीतम जानि लेहु मन माही ॥
अपने सुख सिउ ही जगु फांधिओ को काहू को नाही ॥1॥रहाउ॥
सुख मै आनि बहुतु मिलि बैठत रहत चहू दिसि घेरै ॥
बिपति परी सभ ही संगु छाडित कोऊ न आवत नेरै ॥1॥
घर की नारि बहुतु हितु जा सिउ सदा रहत संगि लागी ॥
जब ही हंस तजी इह कांइआ प्रेत प्रेत करि भागी ॥2॥
इह बिधि को बिउहारु बनिओ है जा सिउ नेहु लगाइओ ॥
अंत बार नानक बिनु हरि जी कोऊ कामि न आइओ ॥3॥12॥139॥634॥

ੴ सतिगुर प्रसादि
धनासरी महला ९

27. काहे रे बन खोजन जाई

काहे रे बन खोजन जाई ॥
सरब निवासी सदा अलेपा तोही संगि समाई ॥1॥रहाउ॥
पुहप मधि जिउ बासु बसतु है मुकर माहि जैसे छाई ॥
तैसे ही हरि बसे निरंतरि घट ही खोजहुभाई ॥1॥
बाहरि भीतरि एको जानहु इहु गुर गिआनु बताई ॥
जन नानक बिनु आपा चीनै मिटै न भ्रम की काई ॥2॥1॥684॥

28. साधो इहु जगु भरम भुलाना

साधो इहु जगु भरम भुलाना ॥
राम नाम का सिमरनु छोडिआ माइआ हाथि बिकाना ॥1॥रहाउ॥
मात पिता भाई सुत बनिता ता कै रसि लपटाना ॥
जोबनु धनु प्रभता कै मद मै अहिनिसि रहै दिवाना ॥1॥
दीन दइआल सदा दुखभंजन ता सिउ मनु न लगाना ॥
जन नानक कोटन मै किनहू गुरमुखि होइ पछाना ॥2॥2॥684॥

29. तिह जोगी कउ जुगति न जानउ

तिह जोगी कउ जुगति न जानउ ॥
लोभ मोह माइआ ममता फुनि जिह घटि माहि पछानउ ॥1॥रहाउ॥
पर निंदा उसतति नह जा कै कंचन लोह समानो ॥
हरख सोग ते रहै अतीता जोगी ताहि बखानो ॥1॥
चंचल मनु दहदिसि कउ धावत अचल जाहि ठहरानो ॥
कहु नानक इह बिधि को जो नरु मुकति ताहि तुम मानो ॥2॥3॥685॥

30. अब मै कउनु उपाउ करउ

अब मै कउनु उपाउ करउ ॥
जिह बिधि मन को संसा चूकै भउ निधि पारि परउ ॥1॥रहाउ॥
जनमु पाइ कछु भलो न कीनो ता ते अधिक डरउ ॥
मन बच कम हरि गुन नही गाए यह जीअ सोच धरउ ॥1॥
गुरमति सुनि कछु गिआनु न उपजिओ पसु जिउ उदरु भरउ ॥
कहु नानक प्रभ बिरदु पछानउ तब हउ पतित तरउ ॥2॥4॥685॥

जैतसरी महला ९
ੴ सतिगुर प्रसादि

31. भूलिओ मनु माइआ उरझाइओ

भूलिओ मनु माइआ उरझाइओ ॥
जो जो करम कीओ लालच लगि तिह तिह आपु बंधाइओ ॥1॥रहाउ॥
समझ न परी बिखै रस रचिओ जसु हरि को बिसराइओ ॥
संगि सुआमी सो जानिओ नाहिन बनु खोजन कउ धाइओ ॥1॥
रतनु रामु घट ही के भीतरि ता को गिआनु न पाइओ ॥
जन नानक भगवंत भजन बिनु बिरथा जनमु गवाइओ ॥2॥1॥702॥

32. हरि जू राखि लेहु पति मेरी

हरि जू राखि लेहु पति मेरी ॥
जम को त्रास भइओ उर अंतरि सरनि गही किरपा निधि तेरी ॥1॥रहाउ॥
महा पतित मुगध लोभी फुनि करत पाप अब हारा ॥
भै मरबे को बिसरत नाहिन तिह चिंता तनु जारा ॥1॥
कीए उपाव मुकति के कारनि दहदिसि कउ उठि धाइआ ॥
घट ही भीतरि बसै निरंजनु ता को मरमु नपाइआ ॥2॥
नाहिन गुनु नाहिन कछु जपु तपु कउनु करमु अब कीजै ॥
नानकु हारि परिओ सरनागति अभै दानु प्रभ दीजै ॥3॥2॥703॥

33. मन रे साचा गहो बिचारा

मन रे साचा गहो बिचारा ॥
राम नाम बिनु मिथिआ मानो सगरो इहु संसारा ॥1॥रहाउ॥
जा कउ जोगी खोजत हारे पाइओ नाहि तिह पारा ॥
सो सुआमी तुम निकटि पछानो रूप रेख ते निआरा ॥1॥
पावन नामु जगत मै हरि को कबहू नाहि संभारा ॥
नानक सरनि परिओ जग बंदन राखहु बिरदु तुहारा ॥2॥3॥703॥

टोडी महला ९
ੴ सतिगुर प्रसादि

34. कहउ कहा अपनी अधमाई

कहउ कहा अपनी अधमाई ॥
उरझिओ कनक कामनी के रस नह कीरति प्रभ गाई ॥1॥रहाउ॥
जग झूठे कउ साचु जानि कै ता सिउ रुच उपजाई ॥
दीनबंध सिमरिओ नही कबहू होत जु संगि सहाई ॥1॥
मगन रहिओ माइआ मै निसदिनि छुटी न मन की काई ॥
कहि नानक अब नाहि अनत गति बिनु हरि की सरनाई ॥2॥1॥31॥718॥

तिलग महला ९ काफी
ੴ सतिगुर प्रसादि

35. चेतना है तउ चेत लै निसि दिनि मै प्रानी

चेतना है तउ चेत लै निसि दिनि मै प्रानी ॥
छिनु छिनु अउध बिहातु है फूटै घट जिउ पानी ॥1॥रहाउ॥
हरि गुन काहि न गावही मूरख अगिआना ॥
झूठै लालचि लागि कै नहि मरनु पछाना ॥1॥
अजहूकछु बिगरिओ नही जो प्रभ गुन गावै ॥
कहु नानक तिह भजन ते निरभै पदु पावै ॥2॥1॥726॥

36. जाग लेहु रे मना जाग लेहु कहा गाफल सोइआ

जाग लेहु रे मना जाग लेहु कहा गाफल सोइआ ॥
जो तनु उपजिआ संग ही सो भी संगि न होइआ ॥1॥रहाउ॥
मात पिता सुत बंध जन हितु जा सिउ कीना ॥
जीउ छूटिओ जब देह ते डारि अगनि मै दीना ॥1॥
जीवत लउ बिउहारु है जग कउ तुम जानउ ॥
नानक हरि गुन गाइ लै सभ सुफन समानउ ॥2॥2॥726॥

37. हरि जसु रे मना गाइ लै जो संगी है तेरो

हरि जसु रे मना गाइ लै जो संगी है तेरो ॥
अउसरु बीतिओ जातु है कहिओ मान लै मेरो ॥1॥रहाउ॥
संपति रथ धन राज सिउ अति नेहु लगाइओ ॥
काल फास जब गलि परी सभ भइओ पराइओ ॥1॥
जानि बूझ कै बावरे तै काजु बिगारिओ ॥
पाप करत सुकचिओ नही नह गरबु निवारिओ ॥2॥
जिह बिधि गुर उपदेसिआ सो सुनु रे भाई ॥
नानक कहत पुकारि कै गहु प्रभ सरनाई ॥3॥3॥727॥
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रागु बिलावलु महला ९
ੴ सतिगुर प्रसादि

38. दुख हरता हरि नामु पछानो

दुख हरता हरि नामु पछानो ॥
अजामलु गनिका जिह सिमरत मुकत भए जीअ जानो ॥1॥रहाउ॥
गज की त्रास मिटी छिन हू महि जब ही रामु बखानो ॥
नारद कहत सुनत ध्रअ बारिक भजन माहि लपटानो ॥1॥
अचल अमर निरभै पदु पाइओ जगत जाहि हैरानो ॥
नानक कहत भगत रछक हरि निकटि ताहि तुम मानो ॥2॥1॥830॥

39. हरि के नाम बिना दुखु पावै

हरि के नाम बिना दुखु पावै ॥
भगति बिना सहसा नह चूकै गुरु इहु भेदु बतावै ॥1॥रहाउ॥
कहा भइओ तीरथ ब्रत कीए राम सरनि नही आवै ॥
जोग जग निहफल तिह मानउ जो प्रभ जसु बिसरावै ॥1॥
मान मोह दोनो कउ परहरि गोबिंद के गुन गावै ॥
कहु नानक इह बिधि को प्रानी जीवन मुकति कहावै ॥2॥2॥830॥

40. जा मै भजनु राम को नाही

जा मै भजनु राम को नाही ॥
तिह नर जनमु अकारथु खोइआ यह राखहु मन माही ॥1॥रहाउ॥
तीरथ करै ब्रत फुनि राखै नह मनूआ बसि जा को ॥
निहफल धरमु ताहि तुम मानहु साचु कहत मै या कउ ॥1॥
जैसे पाहनु जल महि राखिओ भेदै नाहि तिह पानी ॥
तैसे ही तुम ताहि पछानहु भगति हीन जो प्रानी ॥2॥
कल मै मुकति नाम ते पावत गुरु यह भेदु बतावै ॥
कहु नानक सोई नरु गरूआ जो प्रभ के गुन गावै ॥3॥3॥831॥

ੴ सतिगुर प्रसादि
रागु रामकली महला ९

41. रे मन ओट लेहु हरि नामा

रे मन ओट लेहु हरि नामा ॥
जा कै सिमरनि दुरमति नासै पावहि पदु निरबाना ॥1॥रहाउ॥
बडभागी तिह जन कउ जानहु जो हरि के गुन गावै ॥
जनम जनम के पाप खोइ कै फुनि बैकुंठि सिधावै ॥1॥
अजामल कउ अंत काल महि नाराइन सुधि आई ॥
जां गति कउ जोगीसुर बाछत सो गति छिन महि पाई ॥2॥
नाहिन गुनु नाहिन कछु बिदिआ धरमु कउनु गजि कीना ॥
नानक बिरदु राम का देखहु अभै दानु तिह दीना ॥3॥1॥901॥

42. साधो कउन जुगति अब कीजै

साधो कउन जुगति अब कीजै ॥
जा ते दुरमति सगल बिनासै राम भगति मनु भीजै ॥1॥रहाउ॥
मनु माइआ महि उरझि रहिओ है बूझै नह कछु गिआना ॥
कउनु नामु जगु जा कै सिमरै पावै पदु निरबाना ॥1॥
भए दइआल किपाल संत जन तब इह बात बताई ॥
सरब धरम मानो तिह कीए जिह प्रभ कीरति गाई ॥2॥
राम नामु नरु निसि बासुर महि निमख एक उरि धारै ॥
जम को त्रासु मिटै नानक तिह अपुनो जनमु सवारै ॥3॥2॥902॥

43. प्रानी नाराइन सुधि लेहि

प्रानी नाराइन सुधि लेहि ॥
छिनु छिनु अउध घटै निसि बासुर ब्रिथा जातु है देह ॥1॥रहाउ॥
तरनापो बिखिअन सिउ खोइओ बालपनुअगिआना ॥
बिरधि भइओ अजहू नही समझै कउन कुमति उरझाना ॥1॥
मानस जनमु दीओ जिह ठाकुरि सो तै किउ बिसराइओ ॥
मुकतु होत नर जा कै सिमरै निमख न ता कउ गाइओ ॥2॥
माइआ को मदु कहा करतु है संगि न काहू जाई ॥
नानकु कहतु चेति चिंतामनि होइ है अंति सहाई ॥3॥3॥81॥902॥

मारू महला ९
ੴ सतिगुर प्रसादि

44. हरि को नामु सदा सुखदाई

हरि को नामु सदा सुखदाई ॥
जा कउ सिमरि अजामलु उधरिओ गनिका हू गति पाई ॥1॥रहाउ॥
पंचाली कउ राज सभा महि राम नाम सुधि आई ॥
ता को दूखु हरिओ करुणामै अपनी पैज बढाई ॥1॥
जिह नर जसु किरपा निधि गाइओ ता कउ भइओ सहाई ॥
कहु नानक मै इही भरोसै गही आनि सरनाई ॥2॥1॥1008॥

45. अब मै कहा करउ री माई

अब मै कहा करउ री माई ॥
सगल जनमु बिखिअन सिउ खोइआ सिमरिओ नाहि कनाई ॥1॥रहाउ॥
काल फास जब गर महि मेली तिह सुधि सभ बिसराई ॥
राम नाम बिनु या संकट महि को अब होत सहाई ॥1॥
जो संपति अपनी करि मानी छिन महि भई पराई ॥
कहु नानक यह सोच रही मनि हरि जसु कबहू न गाई ॥2॥2॥1008॥

46. माई मै मन को मानु न तिआगिओ

माई मै मन को मानु न तिआगिओ ॥
माइआ के मदि जनमु सिराइओ राम भजनि नही लागिओ ॥1॥रहाउ॥
जम को डंडु परिओ सिर ऊपरि तब सोवत तै जागिओ ॥
कहा होत अब कै पछुताए छूटत नाहिन भागिओ ॥1॥
इह चिंता उपजी घट महि जब गुर चरनन अनुरागिओ ॥
सुफलु जनमु नानक तब हूआ जउ प्रभ जस महि पागिओ ॥2॥3॥1008॥

ੴ सतिगुर प्रसादि
रागु बसंतु हिंडोल महला ९

47. साधो इहु तनु मिथिआ जानउ

साधो इहु तनु मिथिआ जानउ ॥
या भीतरि जो रामु बसतु है साचो ताहि पछानो ॥1॥रहाउ॥
इहु जगु है संपति सुपने की देखि कहा ऐडानो ॥
संगि तिहारै कछू न चालै ताहि कहा लपटानो ॥1॥
उसतति निंदा दोऊ परहरि हरि कीरति उरि आनो ॥
जन नानक सभ ही मै पूरन एक पुरख भगवानो ॥2॥1॥1186॥

48. पापी हीऐ मै कामु बसाइ

पापी हीऐ मै कामु बसाइ ॥
मनु चंचलु या ते गहिओ न जाइ ॥1॥रहाउ॥
जोगी जंगम अरु संनिआस ॥
सभ ही परि डारी इह फास ॥1॥
जिहि जिहि हरि को नामु समारि ॥
ते भव सागर उतरे पारि ॥2॥
जन नानक हरि की सरनाइ ॥
दीजै नामु रहै गुन गाइ ॥3॥2॥1186॥

49. माई मै धनु पाइओ हरि नामु

माई मै धनु पाइओ हरि नामु ॥
मनु मेरो धावन ते छूटिओ करि बैठो बिसरामु ॥1॥रहाउ॥
माइआ ममता तन ते भागी उपजिओ निरमल गिआनु ॥
लोभ मोह एह परसि न साकै गही भगति भगवान ॥1॥
जनम जनम का संसा चूका रतनु नामु जब पाइआ ॥
त्रिसना सकल बिनासी मन ते निज सुख माहि समाइआ ॥2॥
जा कउ होत दइआलु किरपा निधि सो गोबिंद गुन गावै ॥
कहु नानक इह बिधि की संपै कोऊ गुरमुखि पावै ॥3॥3॥1186॥

50. मन कहा बिसारिओराम नामु

मन कहा बिसारिओराम नामु ॥
तनु बिनसै जम सिउ परै कामु ॥1॥रहाउ॥
इहु जगु धूए का पहार ॥
तै साचा मानिआ किह बिचारि ॥1॥
धनु दारा संपति ग्रेह ॥
कछु संगि न चालै समझ लेह ॥2॥
इक भगति नाराइन होइ संगि ॥
कहु नानक भजु तिह एक रंगि ॥3॥4॥1186॥

51. कहा भूलिओ रे झूठे लोभ लाग

कहा भूलिओ रे झूठे लोभ लाग ॥
कछु बिगरिओ नाहिन अजहु जाग ॥1॥रहाउ॥
सम सुपनै कै इहु जगु जानु ॥
बिनसै छिन मै साची मानु ॥1॥
संगि तेरै हरि बसत नीत ॥
निस बासुर भजु ताहि मीत ॥2॥
बार अंत की होइ सहाइ ॥
कहु नानक गुन ता के गाइ ॥3॥5॥1187॥

ੴ सतिगुर प्रसादि
रागु सारंग महला ९

52. हरि बिनु तेरो कोन सहाई

हरि बिनु तेरो कोन सहाई ॥
कां की मात पिता सुत बनिता को काहू को भाई ॥1॥रहाउ॥
धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई ॥
तन छूटै कछु संगि न चालै कहा ताहि लपटाई ॥1॥
दीन दइआल सदा दुख भंजन ता सिउ रुचि न बढाई ॥
नानक कहत जगत सभ मिथिआ जिउ सुपना रैनाई ॥2॥1॥1231॥

53. कहा मन बिखिआ सिउ लपटाही

कहा मन बिखिआ सिउ लपटाही ॥
या जग महि कोऊ रहनु न पावै इकि आवहि इकि जाही ॥1॥रहाउ॥
कां को तनु धनु संपति कां की, का सिउ नेहु लगाही ॥
जो दीसै सो सगल बिनासै जिउ बादर की छाही ॥1॥
तजि अभिमानु सरणि संतन गहु मुकति होहि छिन माही ॥
जन नानक भगवंत भजन बिनु सुखु सुपनै भी नाही ॥2॥2॥1231॥

54. कहा नर अपनो जनमु गवावै

कहा नर अपनो जनमु गवावै ॥
माइआ मदि बिखिआ रसि रचिओ राम सरनि नही आवै ॥1॥रहाउ॥
इहु संसारु सगल है सुपनो देखि कहा लोभावै ॥
जो उपजै सो सगल बिनासै रहनु न कोऊ पावै ॥1॥
मिथिआ तनु साचो करि मानिओ इह बिधि आपु बंधावै ॥
जन नानक सोऊ जनु मुकता राम भजन चितु लावै ॥2॥3॥1231॥

55. मन करि कबहू न हरि गुन गाइओ

मन करि कबहू न हरि गुन गाइओ ॥
बिखिआसकत रहिओ निसि बासुर कीनो अपनो भाइओ ॥1॥रहाउ॥
गुर उपदेसु सुनिओ नहि काननि पर दारा लपटाइओ ॥
पर निंदा कारनि बहु धावत समझिओ नह समझाइओ ॥1॥
कहा कहउ मै अपुनी करनी, जिह बिधि जनमु गवाइओ ॥
कहि नानक सभ अउगन मो महि राखि लेहु सरनाइओ ॥2॥4॥1232॥

रागु जैजावंती महला ९

56. रामु सिमरि रामु सिमरि इहै तेरै काजि है

रामु सिमरि रामु सिमरि इहै तेरै काजि है ॥
माइआ को संगु तिआगु प्रभ जू की सरनि लागु ॥
जगत सुख मानु मिथिआ झूठो सभ साजु है ॥1॥रहाउ॥
सुपने जिउ धनु पछानु काहे परि करत मानु ॥
बारू की भीति जैसे बसुधा को राजु है ॥1॥
नानकु जनु कहतु बात बिनसि जैहै तेरो गातु ॥
छिनु छिनु करि गइओ कालु तैसे जातु आजु है ॥2॥1॥1352॥

57. रामु भजु रामु भजु जनमु सिरातु है

रामु भजु रामु भजु जनमु सिरातु है ॥
कहउ कहा बार बार समझत नह किउ गवार ॥
बिनसत नह लगै बार ओरे सम गातु है ॥1॥रहाउ॥
सगल भरम डारि देहि गोबिंद को नामु लेहि ॥
अंति बार संगि तेरै इहै एकु जातु है ॥1॥
बिखिआ बिखु जिउ बिसारि प्रभ कौ जसु हीए धारि ॥
नानक जन कहि पुकारि अउसरु बिहातु है ॥2॥2॥1352॥

58. रे मन कउन गति होइ है तेरी

रे मन कउन गति होइ है तेरी ॥
इह जग महि राम नामु सो तउ नही सुनिओ कानि ॥
बिखिअन सिउ अति लुभानि मतिनाहिन फेरी ॥1॥रहाउ॥
मानस को जनमु लीनु सिमरनु नह निमख कीनु ॥
दारा सुख भइओ दीनु पगहु परी बेरी ॥1॥
नानक जन कहि पुकारि सुपनै जिउ जग पसारु ॥
सिमरत नह किउ मुरारि माइआ जा की चेरी ॥2॥3॥1352॥

59. बीत जैहै बीत जैहै जनमु अकाजु रे

बीत जैहै बीत जैहै जनमु अकाजु रे ॥
निसि दिनु सुनि कै पुरान समझत नह रे अजान ॥
कालु तउ पहूचिओ आनि कहा जैहै भाजि रे ॥1॥रहाउ॥
असथिरु जो मानिओ देह सो तउ तेरउ होइ है खेह ॥
किउ न हरि को नामु लेहि मूरख निलाज रे ॥1॥
राम भगति हीए आनि छाडि दे तै मन को मानु ॥
नानक जन इह बखानि जग महि बिराजु रे ॥2॥4॥1352॥