शब्द गुरू अर्जन देव जी
Shabad Guru Arjan Dev Ji in Hindi

1. किआ तू रता देखि कै

किआ तू रता देखि कै पुत्र कलत्र सीगार ॥
रस भोगहि खुसीआ करहि माणहि रंग अपार ॥
बहुतु करहि फुरमाइसी वरतहि होइ अफार ॥
करता चिति न आवई मनमुख अंध गवार ॥१॥
मेरे मन सुखदाता हरि सोइ ॥
गुर परसादी पाईऐ करमि परापति होइ ॥१॥ रहाउ ॥
कपड़ि भोगि लपटाइआ सुइना रुपा खाकु ॥
हैवर गैवर बहु रंगे कीए रथ अथाक ॥
किस ही चिति न पावही बिसरिआ सभ साक ॥
सिरजणहारि भुलाइआ विणु नावै नापाक ॥२॥
लैदा बद दुआइ तूं माइआ करहि इकत ॥
जिस नो तूं पतीआइदा सो सणु तुझै अनित ॥
अहंकारु करहि अहंकारीआ विआपिआ मन की मति ॥
तिनि प्रभि आपि भुलाइआ ना तिसु जाति न पति ॥३॥
सतिगुरि पुरखि मिलाइआ इको सजणु सोइ ॥
हरि जन का राखा एकु है किआ माणस हउमै रोइ ॥
जो हरि जन भावै सो करे दरि फेरु न पावै कोइ ॥
नानक रता रंगि हरि सभ जग महि चानणु होइ ॥4॥1॥71॥42॥

2. सभे थोक परापते

सभे थोक परापते जे आवै इकु हथि ॥
जनमु पदारथु सफलु है जे सचा सबदु कथि ॥
गुर ते महलु परापते जिसु लिखिआ होवै मथि ॥१॥
मेरे मन एकस सिउ चितु लाइ ॥
एकस बिनु सभ धंधु है सभ मिथिआ मोहु माइ ॥१॥ रहाउ ॥
लख खुसीआ पातिसाहीआ जे सतिगुरु नदरि करेइ ॥
निमख एक हरि नामु देइ मेरा मनु तनु सीतलु होइ ॥
जिस कउ पूरबि लिखिआ तिनि सतिगुर चरन गहे ॥२॥
सफल मूरतु सफला घड़ी जितु सचे नालि पिआरु ॥
दूखु संतापु न लगई जिसु हरि का नामु अधारु ॥
बाह पकड़ि गुरि काढिआ सोई उतरिआ पारि ॥३॥
थानु सुहावा पवितु है जिथै संत सभा ॥
ढोई तिस ही नो मिलै जिनि पूरा गुरू लभा ॥
नानक बधा घरु तहां जिथै मिरतु न जनमु जरा ॥4॥6॥76॥44॥

3. मिठा करि कै खाइआ

मिठा करि कै खाइआ कउड़ा उपजिआ सादु ॥
भाई मीत सुरिद कीए बिखिआ रचिआ बादु ॥
जांदे बिलम न होवई विणु नावै बिसमादु ॥१॥
मेरे मन सतगुर की सेवा लागु ॥
जो दीसै सो विणसणा मन की मति तिआगु ॥१॥ रहाउ ॥
जिउ कूकरु हरकाइआ धावै दह दिस जाइ ॥
लोभी जंतु न जाणई भखु अभखु सभ खाइ ॥
काम क्रोध मदि बिआपिआ फिरि फिरि जोनी पाइ ॥२॥
माइआ जालु पसारिआ भीतरि चोग बणाइ ॥
त्रिसना पंखी फासिआ निकसु न पाए माइ ॥
जिनि कीता तिसहि न जाणई फिरि फिरि आवै जाइ ॥३॥
अनिक प्रकारी मोहिआ बहु बिधि इहु संसारु ॥
जिस नो रखै सो रहै सम्रिथु पुरखु अपारु ॥
हरि जन हरि लिव उधरे नानक सद बलिहारु ॥4॥21॥91॥50॥

4. तिचरु वसहि सुहेलड़ी

तिचरु वसहि सुहेलड़ी जिचरु साथी नालि ॥
जा साथी उठी चलिआ ता धन खाकू रालि ॥१॥
मनि बैरागु भइआ दरसनु देखणै का चाउ ॥
धंनु सु तेरा थानु ॥१॥ रहाउ ॥
जिचरु वसिआ कंतु घरि जीउ जीउ सभि कहाति ॥
जा उठी चलसी कंतड़ा ता कोइ न पुछै तेरी बात ॥२॥
पेईअड़ै सहु सेवि तूं साहुरड़ै सुखि वसु ॥
गुर मिलि चजु अचारु सिखु तुधु कदे न लगै दुखु ॥३॥
सभना साहुरै वंञणा सभि मुकलावणहार ॥
नानक धंनु सोहागणी जिन सह नालि पिआरु ॥4॥23॥93॥50॥

5. मेरा मनु लोचै

मेरा मनु लोचै गुर दरसन ताई ॥
बिलप करे चात्रिक की निआई ॥
त्रिखा न उतरै सांति न आवै बिनु दरसन संत पिआरे जीउ ॥१॥
हउ घोली जीउ घोलि घुमाई गुर दरसन संत पिआरे जीउ ॥१॥ रहाउ ॥
तेरा मुखु सुहावा जीउ सहज धुनि बाणी ॥
चिरु होआ देखे सारिंगपाणी ॥
धंनु सु देसु जहा तूं वसिआ मेरे सजण मीत मुरारे जीउ ॥२॥
हउ घोली हउ घोलि घुमाई गुर सजण मीत मुरारे जीउ ॥१॥ रहाउ ॥
इक घड़ी न मिलते ता कलिजुगु होता ॥
हुणि कदि मिलीऐ प्रिअ तुधु भगवंता ॥
मोहि रैणि न विहावै नीद न आवै बिनु देखे गुर दरबारे जीउ ॥३॥
हउ घोली जीउ घोलि घुमाई तिसु सचे गुर दरबारे जीउ ॥१॥ रहाउ ॥
भागु होआ गुरि संतु मिलाइआ ॥
प्रभु अबिनासी घर महि पाइआ ॥
सेव करी पलु चसा न विछुड़ा जन नानक दास तुमारे जीउ ॥४॥
हउ घोली जीउ घोलि घुमाई जन नानक दास तुमारे जीउ ॥ रहाउ ॥1॥8॥96॥

6. तूं पेडु साख तेरी फूली

तूं पेडु साख तेरी फूली ॥
तूं सूखमु होआ असथूली ॥
तूं जलनिधि तूं फेनु बुदबुदा तुधु बिनु अवरु न भालीऐ जीउ ॥१॥
तूं सूतु मणीए भी तूंहै ॥
तूं गंठी मेरु सिरि तूंहै ॥
आदि मधि अंति प्रभु सोई अवरु न कोइ दिखालीऐ जीउ ॥२॥
तूं निरगुणु सरगुणु सुखदाता ॥
तूं निरबाणु रसीआ रंगि राता ॥
अपणे करतब आपे जाणहि आपे तुधु समालीऐ जीउ ॥३॥
तूं ठाकुरु सेवकु फुनि आपे ॥
तूं गुपतु परगटु प्रभ आपे ॥
नानक दासु सदा गुण गावै इक भोरी नदरि निहालीऐ जीउ ॥4॥21॥28॥102॥

7. तूं मेरा पिता

तूं मेरा पिता तूंहै मेरा माता ॥
तूं मेरा बंधपु तूं मेरा भ्राता ॥
तूं मेरा राखा सभनी थाई ता भउ केहा काड़ा जीउ ॥१॥
तुमरी क्रिपा ते तुधु पछाणा ॥
तूं मेरी ओट तूंहै मेरा माणा ॥
तुझ बिनु दूजा अवरु न कोई सभु तेरा खेलु अखाड़ा जीउ ॥२॥
जीअ जंत सभि तुधु उपाए ॥
जितु जितु भाणा तितु तितु लाए ॥
सभ किछु कीता तेरा होवै नाही किछु असाड़ा जीउ ॥३॥
नामु धिआइ महा सुखु पाइआ ॥
हरि गुण गाइ मेरा मनु सीतलाइआ ॥
गुरि पूरै वजी वाधाई नानक जिता बिखाड़ा जीउ ॥4॥24॥31॥103॥

8. आपन तनु नही जा को गरबा

आपन तनु नही जा को गरबा ॥
राज मिलख नही आपन दरबा ॥१॥
आपन नही का कउ लपटाइओ ॥
आपन नामु सतिगुर ते पाइओ ॥१॥ रहाउ ॥
सुत बनिता आपन नही भाई ॥
इसट मीत आप बापु न माई ॥२॥
सुइना रूपा फुनि नही दाम ॥
हैवर गैवर आपन नही काम ॥३॥
कहु नानक जो गुरि बखसि मिलाइआ ॥
तिस का सभु किछु जिस का हरि राइआ ॥4॥37॥106॥187॥

9. करै दुहकरम दिखावै होरु

करै दुहकरम दिखावै होरु ॥
राम की दरगह बाधा चोरु ॥१॥
रामु रमै सोई रामाणा ॥
जलि थलि महीअलि एकु समाणा ॥१॥ रहाउ ॥
अंतरि बिखु मुखि अम्रितु सुणावै ॥
जम पुरि बाधा चोटा खावै ॥२॥
अनिक पड़दे महि कमावै विकार ॥
खिन महि प्रगट होहि संसार ॥३॥
अंतरि साचि नामि रसि राता ॥
नानक तिसु किरपालु बिधाता ॥4॥71॥140॥194॥

10. थिरु घरि बैसहु हरि जन पिआरे

थिरु घरि बैसहु हरि जन पिआरे ॥
सतिगुरि तुमरे काज सवारे ॥१॥ रहाउ ॥
दुसट दूत परमेसरि मारे ॥
जन की पैज रखी करतारे ॥१॥
बादिसाह साह सभ वसि करि दीने ॥
अम्रित नाम महा रस पीने ॥२॥
निरभउ होइ भजहु भगवान ॥
साधसंगति मिलि कीनो दानु ॥३॥
सरणि परे प्रभ अंतरजामी ॥
नानक ओट पकरी प्रभ सुआमी ॥4॥108॥201॥

11. दुख भंजनु तेरा नामु जी

दुख भंजनु तेरा नामु जी दुख भंजनु तेरा नामु ॥
आठ पहर आराधीऐ पूरन सतिगुर गिआनु ॥१॥ रहाउ ॥
जितु घटि वसै पारब्रहमु सोई सुहावा थाउ ॥
जम कंकरु नेड़ि न आवई रसना हरि गुण गाउ ॥१॥
सेवा सुरति न जाणीआ ना जापै आराधि ॥
ओट तेरी जगजीवना मेरे ठाकुर अगम अगाधि ॥२॥
भए क्रिपाल गुसाईआ नठे सोग संताप ॥
तती वाउ न लगई सतिगुरि रखे आपि ॥३॥
गुरु नाराइणु दयु गुरु गुरु सचा सिरजणहारु ॥
गुरि तुठै सभ किछु पाइआ जन नानक सद बलिहार ॥4॥2॥170॥218॥

12. ब्रहम गिआनी सदा निरलेप

ब्रहम गिआनी सदा निरलेप ॥
जैसे जल महि कमल अलेप ॥
ब्रहम गिआनी सदा निरदोख ॥
जैसे सूरु सरब कउ सोख ॥
ब्रहम गिआनी कै द्रिसटि समानि ॥
जैसे राज रंक कउ लागै तुलि पवान ॥
ब्रहम गिआनी कै धीरजु एक ॥
जिउ बसुधा कोऊ खोदै कोऊ चंदन लेप ॥
ब्रहम गिआनी का इहै गुनाउ ॥
नानक जिउ पावक का सहज सुभाउ ॥1॥272॥

13. कई कोटि खाणी अरु खंड

कई कोटि खाणी अरु खंड ॥
कई कोटि अकास ब्रहमंड ॥
कई कोटि होए अवतार ॥
कई जुगति कीनो बिसथार ॥
कई बार पसरिओ पासार ॥
सदा सदा इकु एकंकार ॥
कई कोटि कीने बहु भाति ॥
प्रभ ते होए प्रभ माहि समाति ॥
ता का अंतु न जानै कोइ ॥
आपे आपि नानक प्रभु सोइ ॥7॥276॥

14. कोटि ब्रहमंड को ठाकुरु सुआमी

कोटि ब्रहमंड को ठाकुरु सुआमी सरब जीआ का दाता रे ॥
प्रतिपालै नित सारि समालै इकु गुनु नही मूरखि जाता रे ॥१॥
हरि आराधि न जाना रे ॥
हरि हरि गुरु गुरु करता रे ॥
हरि जीउ नामु परिओ रामदासु ॥ रहाउ ॥
दीन दइआल क्रिपाल सुख सागर सरब घटा भरपूरी रे ॥
पेखत सुनत सदा है संगे मै मूरख जानिआ दूरी रे ॥२॥
हरि बिअंतु हउ मिति करि वरनउ किआ जाना होइ कैसो रे ॥
करउ बेनती सतिगुर अपुने मै मूरख देहु उपदेसो रे ॥३॥
मै मूरख की केतक बात है कोटि पराधी तरिआ रे ॥
गुरु नानकु जिन सुणिआ पेखिआ से फिरि गरभासि न परिआ रे ॥4॥2॥13॥612॥

15. सगल बनसपति महि बैसंतरु

सगल बनसपति महि बैसंतरु सगल दूध महि घीआ ॥
ऊच नीच महि जोति समाणी घटि घटि माधउ जीआ ॥१॥
संतहु घटि घटि रहिआ समाहिओ ॥
पूरन पूरि रहिओ सरब महि जलि थलि रमईआ आहिओ ॥१॥ रहाउ ॥
गुण निधान नानकु जसु गावै सतिगुरि भरमु चुकाइओ ॥
सरब निवासी सदा अलेपा सभ महि रहिआ समाइओ ॥2॥1॥29॥617॥

16. दह दिस छत्र मेघ घटा घट दामनि चमकि डराइओ

दह दिस छत्र मेघ घटा घट दामनि चमकि डराइओ ॥
सेज इकेली नीद नहु नैनह पिरु परदेसि सिधाइओ ॥१॥
हुणि नही संदेसरो माइओ ॥
एक कोसरो सिधि करत लालु तब चतुर पातरो आइओ ॥ रहाउ ॥
किउ बिसरै इहु लालु पिआरो सरब गुणा सुखदाइओ ॥
मंदरि चरि कै पंथु निहारउ नैन नीरि भरि आइओ ॥२॥
हउ हउ भीति भइओ है बीचो सुनत देसि निकटाइओ ॥
भांभीरी के पात परदो बिनु पेखे दूराइओ ॥३॥
भइओ किरपालु सरब को ठाकुरु सगरो दूखु मिटाइओ ॥
कहु नानक हउमै भीति गुरि खोई तउ दइआरु बीठलो पाइओ ॥४॥
सभु रहिओ अंदेसरो माइओ ॥
जो चाहत सो गुरू मिलाइओ ॥
सरब गुना निधि राइओ ॥ रहाउ दूजा ॥11॥61॥624॥

17. गई बहोड़ु बंदी छोड़ु निरंकारु दुखदारी

गई बहोड़ु बंदी छोड़ु निरंकारु दुखदारी ॥
करमु न जाणा धरमु न जाणा लोभी माइआधारी ॥
नामु परिओ भगतु गोविंद का इह राखहु पैज तुमारी ॥१॥
हरि जीउ निमाणिआ तू माणु ॥
निचीजिआ चीज करे मेरा गोविंदु तेरी कुदरति कउ कुरबाणु ॥ रहाउ ॥
जैसा बालकु भाइ सुभाई लख अपराध कमावै ॥
करि उपदेसु झिड़के बहु भाती बहुड़ि पिता गलि लावै ॥
पिछले अउगुण बखसि लए प्रभु आगै मारगि पावै ॥२॥
हरि अंतरजामी सभ बिधि जाणै ता किसु पहि आखि सुणाईऐ ॥
कहणै कथनि न भीजै गोबिंदु हरि भावै पैज रखाईऐ ॥
अवर ओट मै सगली देखी इक तेरी ओट रहाईऐ ॥3॥
होइ दइआलु किरपालु प्रभु ठाकुरु आपे सुणै बेनंती ॥
पूरा सतगुरु मेलि मिलावै सभ चूकै मन की चिंती ॥
हरि हरि नामु अवखदु मुखि पाइआ जन नानक सुखि वसंती ॥4॥12॥62॥624॥

18. बिनु जल प्रान तजे है मीना

बिनु जल प्रान तजे है मीना जिनि जल सिउ हेतु बढाइओ ॥
कमल हेति बिनसिओ है भवरा उनि मारगु निकसि न पाइओ ॥१॥
अब मन एकस सिउ मोहु कीना ॥
मरै न जावै सद ही संगे सतिगुर सबदी चीना ॥१॥ रहाउ ॥
बिनु जल प्रान तजे है मीना जिनि जल सिउ हेतु बढाइओ ॥
कमल हेति बिनसिओ है भवरा उनि मारगु निकसि न पाइओ ॥१॥
अब मन एकस सिउ मोहु कीना ॥
मरै न जावै सद ही संगे सतिगुर सबदी चीना ॥१॥ रहाउ ॥4॥2॥670॥

19. बाजीगरि जैसे बाजी पाई

बाजीगरि जैसे बाजी पाई ॥
नाना रूप भेख दिखलाई ॥
सांगु उतारि थम्हिओ पासारा ॥
तब एको एकंकारा ॥१॥
कवन रूप द्रिसटिओ बिनसाइओ ॥
कतहि गइओ उहु कत ते आइओ ॥१॥ रहाउ ॥
जल ते ऊठहि अनिक तरंगा ॥
कनिक भूखन कीने बहु रंगा ॥
बीजु बीजि देखिओ बहु परकारा ॥
फल पाके ते एकंकारा ॥२॥
सहस घटा महि एकु आकासु ॥
घट फूटे ते ओही प्रगासु ॥
भरम लोभ मोह माइआ विकार ॥
भ्रम छूटे ते एकंकार ॥३॥
ओहु अबिनासी बिनसत नाही ॥
ना को आवै ना को जाही ॥
गुरि पूरै हउमै मलु धोई ॥
कहु नानक मेरी परम गति होई ॥4॥1॥736॥

20. घर महि ठाकुरु नदरि न आवै

घर महि ठाकुरु नदरि न आवै ॥
गल महि पाहणु लै लटकावै ॥१॥
भरमे भूला साकतु फिरता ॥
नीरु बिरोलै खपि खपि मरता ॥१॥ रहाउ ॥
जिसु पाहण कउ ठाकुरु कहता ॥
ओहु पाहणु लै उस कउ डुबता ॥२॥
गुनहगार लूण हरामी ॥
पाहण नाव न पारगिरामी ॥३॥
गुर मिलि नानक ठाकुरु जाता ॥
जलि थलि महीअलि पूरन बिधाता ॥4॥3॥9॥739॥

21. किरपा करहु दीन के दाते

किरपा करहु दीन के दाते मेरा गुणु अवगणु न बीचारहु कोई ॥
माटी का किआ धोपै सुआमी माणस की गति एही ॥१॥
मेरे मन सतिगुरु सेवि सुखु होई ॥
जो इछहु सोई फलु पावहु फिरि दूखु न विआपै कोई ॥१॥ रहाउ ॥
काचे भाडे साजि निवाजे अंतरि जोति समाई ॥
जैसा लिखतु लिखिआ धुरि करतै हम तैसी किरति कमाई ॥२॥
मनु तनु थापि कीआ सभु अपना एहो आवण जाणा ॥
जिनि दीआ सो चिति न आवै मोहि अंधु लपटाणा ॥3॥
जिनि कीआ सोई प्रभु जाणै हरि का महलु अपारा ॥
भगति करी हरि के गुण गावा नानक दासु तुमारा ॥4॥1॥882॥

22. कोई बोलै राम राम कोई खुदाइ

कोई बोलै राम राम कोई खुदाइ ॥
कोई सेवै गुसईआ कोई अलाहि ॥१॥
कारण करण करीम ॥
किरपा धारि रहीम ॥१॥ रहाउ ॥
कोई नावै तीरथि कोई हज जाइ ॥
कोई करै पूजा कोई सिरु निवाइ ॥२॥
कोई पड़ै बेद कोई कतेब ॥
कोई ओढै नील कोई सुपेद ॥३॥
कोई कहै तुरकु कोई कहै हिंदू ॥
कोई बाछै भिसतु कोई सुरगिंदू ॥४॥
कहु नानक जिनि हुकमु पछाता ॥
प्रभ साहिब का तिनि भेदु जाता ॥5॥9॥885॥

23. पवनै महि पवनु समाइआ

पवनै महि पवनु समाइआ ॥
जोती महि जोति रलि जाइआ ॥
माटी माटी होई एक ॥
रोवनहारे की कवन टेक ॥१॥
कउनु मूआ रे कउनु मूआ ॥
ब्रहम गिआनी मिलि करहु बीचारा इहु तउ चलतु भइआ ॥१॥ रहाउ ॥
अगली किछु खबरि न पाई ॥
रोवनहारु भि ऊठि सिधाई ॥
भरम मोह के बांधे बंध ॥
सुपनु भइआ भखलाए अंध ॥२॥
इहु तउ रचनु रचिआ करतारि ॥
आवत जावत हुकमि अपारि ॥
नह को मूआ न मरणै जोगु ॥
नह बिनसै अबिनासी होगु ॥३॥
जो इहु जाणहु सो इहु नाहि ॥
जानणहारे कउ बलि जाउ ॥
कहु नानक गुरि भरमु चुकाइआ ॥
ना कोई मरै न आवै जाइआ ॥4॥10॥885॥

24. चारि पुकारहि ना तू मानहि

चारि पुकारहि ना तू मानहि ॥
खटु भी एका बात वखानहि ॥
दस असटी मिलि एको कहिआ ॥
ता भी जोगी भेदु न लहिआ ॥१॥
किंकुरी अनूप वाजै ॥
जोगीआ मतवारो रे ॥१॥ रहाउ ॥
प्रथमे वसिआ सत का खेड़ा ॥
त्रितीए महि किछु भइआ दुतेड़ा ॥
दुतीआ अरधो अरधि समाइआ ॥
एकु रहिआ ता एकु दिखाइआ ॥२॥
एकै सूति परोए मणीए ॥
गाठी भिनि भिनि भिनि भिनि तणीए ॥
फिरती माला बहु बिधि भाइ ॥
खिंचिआ सूतु त आई थाइ ॥३॥
चहु महि एकै मटु है कीआ ॥
तह बिखड़े थान अनिक खिड़कीआ ॥
खोजत खोजत दुआरे आइआ ॥
ता नानक जोगी महलु घरु पाइआ ॥४॥
इउ किंकुरी आनूप वाजै ॥
सुणि जोगी कै मनि मीठी लागै ॥१॥ रहाउ दूजा ॥1॥12॥886॥

25. मुख ते पड़ता टीका सहित

मुख ते पड़ता टीका सहित ॥
हिरदै रामु नही पूरन रहत ॥
उपदेसु करे करि लोक द्रिड़ावै ॥
अपना कहिआ आपि न कमावै ॥१॥
पंडित बेदु बीचारि पंडित ॥
मन का क्रोधु निवारि पंडित ॥१॥ रहाउ ॥
आगै राखिओ साल गिरामु ॥
मनु कीनो दह दिस बिस्रामु ॥
तिलकु चरावै पाई पाइ ॥
लोक पचारा अंधु कमाइ ॥२॥
खटु करमा अरु आसणु धोती ॥
भागठि ग्रिहि पड़ै नित पोथी ॥
माला फेरै मंगै बिभूत ॥
इह बिधि कोइ न तरिओ मीत ॥३॥
सो पंडितु गुर सबदु कमाइ ॥
त्रै गुण की ओसु उतरी माइ ॥
चतुर बेद पूरन हरि नाइ ॥
नानक तिस की सरणी पाइ ॥4॥6॥17॥887॥

26. महिमा न जानहि बेद

महिमा न जानहि बेद ॥
ब्रहमे नही जानहि भेद ॥
अवतार न जानहि अंतु ॥
परमेसरु पारब्रहम बेअंतु ॥१॥
अपनी गति आपि जानै ॥
सुणि सुणि अवर वखानै ॥१॥ रहाउ ॥
संकरा नही जानहि भेव ॥
खोजत हारे देव ॥
देवीआ नही जानै मरम ॥
सभ ऊपरि अलख पारब्रहम ॥२॥
अपनै रंगि करता केल ॥
आपि बिछोरै आपे मेल ॥
इकि भरमे इकि भगती लाए ॥
अपणा कीआ आपि जणाए ॥३॥
संतन की सुणि साची साखी ॥
सो बोलहि जो पेखहि आखी ॥
नही लेपु तिसु पुंनि न पापि ॥
नानक का प्रभु आपे आपि ॥4॥25॥36॥894॥

27. कारन करन करीम

कारन करन करीम ॥
सरब प्रतिपाल रहीम ॥
अलह अलख अपार ॥
खुदि खुदाइ वड बेसुमार ॥1॥
ओं नमो भगवंत गुसाई ॥
खालकु रवि रहिआ सरब ठाई ॥१॥ रहाउ ॥
जगंनाथ जगजीवन माधो ॥
भउ भंजन रिद माहि अराधो ॥
रिखीकेस गोपाल गोविंद ॥
पूरन सरबत्र मुकंद ॥२॥
मिहरवान मउला तूही एक ॥
पीर पैकांबर सेख ॥
दिला का मालकु करे हाकु ॥
कुरान कतेब ते पाकु ॥३॥
नाराइण नरहर दइआल ॥
रमत राम घट घट आधार ॥
बासुदेव बसत सभ ठाइ ॥
लीला किछु लखी न जाइ ॥४॥
मिहर दइआ करि करनैहार ॥
भगति बंदगी देहि सिरजणहार ॥
कहु नानक गुरि खोए भरम ॥
एको अलहु पारब्रहम ॥5॥34॥45॥896॥

28. चादना चादनु आंगनि

चादना चादनु आंगनि प्रभ जीउ अंतरि चादना ॥१॥
आराधना अराधनु नीका हरि हरि नामु अराधना ॥२॥
तिआगना तिआगनु नीका कामु क्रोधु लोभु तिआगना ॥३॥
मागना मागनु नीका हरि जसु गुर ते मागना ॥४॥
जागना जागनु नीका हरि कीरतन महि जागना ॥५॥
लागना लागनु नीका गुर चरणी मनु लागना ॥६॥
इह बिधि तिसहि परापते जा कै मसतकि भागना ॥७॥
कहु नानक तिसु सभु किछु नीका जो प्रभ की सरनागना ॥8॥1॥4॥1018॥

29. बिरखै हेठि सभि जंत इकठे

बिरखै हेठि सभि जंत इकठे ॥
इकि तते इकि बोलनि मिठे ॥
असतु उदोतु भइआ उठि चले जिउ जिउ अउध विहाणीआ ॥१॥
पाप करेदड़ सरपर मुठे ॥
अजराईलि फड़े फड़ि कुठे ॥
दोजकि पाए सिरजणहारै लेखा मंगै बाणीआ ॥२॥
संगि न कोई भईआ बेबा ॥
मालु जोबनु धनु छोडि वञेसा ॥
करण करीम न जातो करता तिल पीड़े जिउ घाणीआ ॥३॥
खुसि खुसि लैदा वसतु पराई ॥
वेखै सुणे तेरै नालि खुदाई ॥
दुनीआ लबि पइआ खात अंदरि अगली गल न जाणीआ ॥४॥
जमि जमि मरै मरै फिरि जमै ॥
बहुतु सजाइ पइआ देसि लमै ॥
जिनि कीता तिसै न जाणी अंधा ता दुखु सहै पराणीआ ॥५॥
खालक थावहु भुला मुठा ॥
दुनीआ खेलु बुरा रुठ तुठा ॥
सिदकु सबूरी संतु न मिलिओ वतै आपण भाणीआ ॥६॥
मउला खेल करे सभि आपे ॥
इकि कढे इकि लहरि विआपे ॥
जिउ नचाए तिउ तिउ नचनि सिरि सिरि किरत विहाणीआ ॥७॥
मिहर करे ता खसमु धिआई ॥
संता संगति नरकि न पाई ॥
अम्रित नाम दानु नानक कउ गुण गीता नित वखाणीआ ॥8॥2॥8॥12॥20॥1019॥

30. अचुत पारब्रहम परमेसुर अंतरजामी

अचुत पारब्रहम परमेसुर अंतरजामी ॥
मधुसूदन दामोदर सुआमी ॥
रिखीकेस गोवरधन धारी मुरली मनोहर हरि रंगा ॥१॥
मोहन माधव क्रिस्न मुरारे ॥
जगदीसुर हरि जीउ असुर संघारे ॥
जगजीवन अबिनासी ठाकुर घट घट वासी है संगा ॥२॥
धरणीधर ईस नरसिंघ नाराइण ॥
दाड़ा अग्रे प्रिथमि धराइण ॥
बावन रूपु कीआ तुधु करते सभ ही सेती है चंगा ॥३॥
स्री रामचंद जिसु रूपु न रेखिआ ॥
बनवाली चक्रपाणि दरसि अनूपिआ ॥
सहस नेत्र मूरति है सहसा इकु दाता सभ है मंगा ॥४॥
भगति वछलु अनाथह नाथे ॥
गोपी नाथु सगल है साथे ॥
बासुदेव निरंजन दाते बरनि न साकउ गुण अंगा ॥५॥
मुकंद मनोहर लखमी नाराइण ॥
द्रोपती लजा निवारि उधारण ॥
कमलाकंत करहि कंतूहल अनद बिनोदी निहसंगा ॥६॥
अमोघ दरसन आजूनी स्मभउ ॥
अकाल मूरति जिसु कदे नाही खउ ॥
अबिनासी अबिगत अगोचर सभु किछु तुझ ही है लगा ॥७॥
स्रीरंग बैकुंठ के वासी ॥
मछु कछु कूरमु आगिआ अउतरासी ॥
केसव चलत करहि निराले कीता लोड़हि सो होइगा ॥८॥
निराहारी निरवैरु समाइआ ॥
धारि खेलु चतुरभुजु कहाइआ ॥
सावल सुंदर रूप बणावहि बेणु सुनत सभ मोहैगा ॥९॥
बनमाला बिभूखन कमल नैन ॥
सुंदर कुंडल मुकट बैन ॥
संख चक्र गदा है धारी महा सारथी सतसंगा ॥१०॥
पीत पीत्मबर त्रिभवण धणी ॥
जगंनाथु गोपालु मुखि भणी ॥
सारिंगधर भगवान बीठुला मै गणत न आवै सरबंगा ॥११॥
निहकंटकु निहकेवलु कहीऐ ॥
धनंजै जलि थलि है महीऐ ॥
मिरत लोक पइआल समीपत असथिर थानु जिसु है अभगा ॥१२॥
पतित पावन दुख भै भंजनु ॥
अहंकार निवारणु है भव खंडनु ॥
भगती तोखित दीन क्रिपाला गुणे न कित ही है भिगा ॥१३॥
निरंकारु अछल अडोलो ॥
जोति सरूपी सभु जगु मउलो ॥
सो मिलै जिसु आपि मिलाए आपहु कोइ न पावैगा ॥१४॥
आपे गोपी आपे काना ॥
आपे गऊ चरावै बाना ॥
आपि उपावहि आपि खपावहि तुधु लेपु नही इकु तिलु रंगा ॥१५॥
एक जीह गुण कवन बखानै ॥
सहस फनी सेख अंतु न जानै ॥
नवतन नाम जपै दिनु राती इकु गुणु नाही प्रभ कहि संगा ॥१६॥
ओट गही जगत पित सरणाइआ ॥
भै भइआनक जमदूत दुतर है माइआ ॥
होहु क्रिपाल इछा करि राखहु साध संतन कै संगि संगा ॥१७॥
द्रिसटिमान है सगल मिथेना ॥
इकु मागउ दानु गोबिद संत रेना ॥
मसतकि लाइ परम पदु पावउ जिसु प्रापति सो पावैगा ॥१८॥
जिन कउ क्रिपा करी सुखदाते ॥
तिन साधू चरण लै रिदै पराते ॥
सगल नाम निधानु तिन पाइआ अनहद सबद मनि वाजंगा ॥१९॥
किरतम नाम कथे तेरे जिहबा ॥
सति नामु तेरा परा पूरबला ॥
कहु नानक भगत पए सरणाई देहु दरसु मनि रंगु लगा ॥२०॥
तेरी गति मिति तूहै जाणहि ॥
तू आपे कथहि तै आपि वखाणहि ॥
नानक दासु दासन को करीअहु हरि भावै दासा राखु संगा ॥21॥2॥11॥1082॥

31. अलह अगम खुदाई बंदे

अलह अगम खुदाई बंदे ॥
छोडि खिआल दुनीआ के धंधे ॥
होइ पै खाक फकीर मुसाफरु इहु दरवेसु कबूलु दरा ॥१॥
सचु निवाज यकीन मुसला ॥
मनसा मारि निवारिहु आसा ॥
देह मसीति मनु मउलाणा कलम खुदाई पाकु खरा ॥२॥
सरा सरीअति ले कमावहु ॥
तरीकति तरक खोजि टोलावहु ॥
मारफति मनु मारहु अबदाला मिलहु हकीकति जितु फिरि न मरा ॥३॥
कुराणु कतेब दिल माहि कमाही ॥
दस अउरात रखहु बद राही ॥
पंच मरद सिदकि ले बाधहु खैरि सबूरी कबूल परा ॥४॥
मका मिहर रोजा पै खाका ॥
भिसतु पीर लफज कमाइ अंदाजा ॥
हूर नूर मुसकु खुदाइआ बंदगी अलह आला हुजरा ॥5॥
सचु कमावै सोई काजी ॥
जो दिलु सोधै सोई हाजी ॥
सो मुला मलऊन निवारै सो दरवेसु जिसु सिफति धरा ॥६॥
सभे वखत सभे करि वेला ॥
खालकु यादि दिलै महि मउला ॥
तसबी यादि करहु दस मरदनु सुंनति सीलु बंधानि बरा ॥७॥
दिल महि जानहु सभ फिलहाला ॥
खिलखाना बिरादर हमू जंजाला ॥
मीर मलक उमरे फानाइआ एक मुकाम खुदाइ दरा ॥८॥
अवलि सिफति दूजी साबूरी ॥
तीजै हलेमी चउथै खैरी ॥
पंजवै पंजे इकतु मुकामै एहि पंजि वखत तेरे अपरपरा ॥९॥
सगली जानि करहु मउदीफा ॥
बद अमल छोडि करहु हथि कूजा ॥
खुदाइ एकु बुझि देवहु बांगां बुरगू बरखुरदार खरा ॥१०॥
हकु हलालु बखोरहु खाणा ॥
दिल दरीआउ धोवहु मैलाणा ॥
पीरु पछाणै भिसती सोई अजराईलु न दोज ठरा ॥११॥
काइआ किरदार अउरत यकीना ॥
रंग तमासे माणि हकीना ॥
नापाक पाकु करि हदूरि हदीसा साबत सूरति दसतार सिरा ॥१२॥
मुसलमाणु मोम दिलि होवै ॥
अंतर की मलु दिल ते धोवै ॥
दुनीआ रंग न आवै नेड़ै जिउ कुसम पाटु घिउ पाकु हरा ॥१३॥
जा कउ मिहर मिहर मिहरवाना ॥
सोई मरदु मरदु मरदाना ॥
सोई सेखु मसाइकु हाजी सो बंदा जिसु नजरि नरा ॥१४॥
कुदरति कादर करण करीमा ॥
सिफति मुहबति अथाह रहीमा ॥
हकु हुकमु सचु खुदाइआ बुझि नानक बंदि खलास तरा ॥15॥3॥12॥1083॥

32. वरत न रहउ न मह रमदाना

वरत न रहउ न मह रमदाना ॥
तिसु सेवी जो रखै निदाना ॥१॥
एकु गुसाई अलहु मेरा ॥
हिंदू तुरक दुहां नेबेरा ॥१॥ रहाउ ॥
हज काबै जाउ न तीरथ पूजा ॥
एको सेवी अवरु न दूजा ॥२॥
पूजा करउ न निवाज गुजारउ ॥
एक निरंकार ले रिदै नमसकारउ ॥३॥
ना हम हिंदू न मुसलमान ॥
अलह राम के पिंडु परान ॥४॥
कहु कबीर इहु कीआ वखाना ॥
गुर पीर मिलि खुदि खसमु पछाना ॥5॥3॥1136॥

33. दस मिरगी सहजे बंधि आनी

दस मिरगी सहजे बंधि आनी ॥
पांच मिरग बेधे सिव की बानी ॥१॥
संतसंगि ले चड़िओ सिकार ॥
म्रिग पकरे बिनु घोर हथीआर ॥१॥ रहाउ ॥
आखेर बिरति बाहरि आइओ धाइ ॥
अहेरा पाइओ घर कै गांइ ॥२॥
म्रिग पकरे घरि आणे हाटि ॥
चुख चुख ले गए बांढे बाटि ॥३॥
एहु अहेरा कीनो दानु ॥
नानक कै घरि केवल नामु ॥4॥4॥1136॥

34. बिनु बाजे कैसो निरतिकारी

बिनु बाजे कैसो निरतिकारी ॥
बिनु कंठै कैसे गावनहारी ॥
जील बिना कैसे बजै रबाब ॥
नाम बिना बिरथे सभि काज ॥१॥
नाम बिना कहहु को तरिआ ॥
बिनु सतिगुर कैसे पारि परिआ ॥१॥ रहाउ ॥
बिनु जिहवा कहा को बकता ॥
बिनु स्रवना कहा को सुनता ॥
बिनु नेत्रा कहा को पेखै ॥
नाम बिना नरु कही न लेखै ॥२॥
बिनु बिदिआ कहा कोई पंडित ॥
बिनु अमरै कैसे राज मंडित ॥
बिनु बूझे कहा मनु ठहराना ॥
नाम बिना सभु जगु बउराना ॥३॥
बिनु बैराग कहा बैरागी ॥
बिनु हउ तिआगि कहा कोऊ तिआगी ॥
बिनु बसि पंच कहा मन चूरे ॥
नाम बिना सद सद ही झूरे ॥४॥
बिनु गुर दीखिआ कैसे गिआनु ॥
बिनु पेखे कहु कैसो धिआनु ॥
बिनु भै कथनी सरब बिकार ॥
कहु नानक दर का बीचार ॥5॥6॥19॥1140॥

35. हउमै रोगु मानुख कउ दीना

हउमै रोगु मानुख कउ दीना ॥
काम रोगि मैगलु बसि लीना ॥
द्रिसटि रोगि पचि मुए पतंगा ॥
नाद रोगि खपि गए कुरंगा ॥१॥
जो जो दीसै सो सो रोगी ॥
रोग रहित मेरा सतिगुरु जोगी ॥१॥ रहाउ ॥
जिहवा रोगि मीनु ग्रसिआनो ॥
बासन रोगि भवरु बिनसानो ॥
हेत रोग का सगल संसारा ॥
त्रिबिधि रोग महि बधे बिकारा ॥२॥
रोगे मरता रोगे जनमै ॥
रोगे फिरि फिरि जोनी भरमै ॥
रोग बंध रहनु रती न पावै ॥
बिनु सतिगुर रोगु कतहि न जावै ॥३॥
पारब्रहमि जिसु कीनी दइआ ॥
बाह पकड़ि रोगहु कढि लइआ ॥
तूटे बंधन साधसंगु पाइआ ॥
कहु नानक गुरि रोगु मिटाइआ ॥4॥7॥20॥1140॥

36. तू मेरा पिता तूहै मेरा माता

तू मेरा पिता तूहै मेरा माता ॥
तू मेरे जीअ प्रान सुखदाता ॥
तू मेरा ठाकुरु हउ दासु तेरा ॥
तुझ बिनु अवरु नही को मेरा ॥१॥
करि किरपा करहु प्रभ दाति ॥
तुम्हरी उसतति करउ दिन राति ॥१॥ रहाउ ॥
हम तेरे जंत तू बजावनहारा ॥
हम तेरे भिखारी दानु देहि दातारा ॥
तउ परसादि रंग रस माणे ॥
घट घट अंतरि तुमहि समाणे ॥२॥
तुम्हरी क्रिपा ते जपीऐ नाउ ॥
साधसंगि तुमरे गुण गाउ ॥
तुम्हरी दइआ ते होइ दरद बिनासु ॥
तुमरी मइआ ते कमल बिगासु ॥३॥
हउ बलिहारि जाउ गुरदेव ॥
सफल दरसनु जा की निरमल सेव ॥
दइआ करहु ठाकुर प्रभ मेरे ॥
गुण गावै नानकु नित तेरे ॥4॥18॥31॥1144॥

37. पंच मजमी जो पंचन राखै

पंच मजमी जो पंचन राखै ॥
मिथिआ रसना नित उठि भाखै ॥
चक्र बणाइ करै पाखंड ॥
झुरि झुरि पचै जैसे त्रिअ रंड ॥१॥
हरि के नाम बिना सभ झूठु ॥
बिनु गुर पूरे मुकति न पाईऐ साची दरगहि साकत मूठु ॥१॥ रहाउ ॥
सोई कुचीलु कुदरति नही जानै ॥
लीपिऐ थाइ न सुचि हरि मानै ॥
अंतरु मैला बाहरु नित धोवै ॥
साची दरगहि अपनी पति खोवै ॥२॥
माइआ कारणि करै उपाउ ॥
कबहि न घालै सीधा पाउ ॥
जिनि कीआ तिसु चीति न आणै ॥
कूड़ी कूड़ी मुखहु वखाणै ॥३॥
जिस नो करमु करे करतारु ॥
साधसंगि होइ तिसु बिउहारु ॥
हरि नाम भगति सिउ लागा रंगु ॥
कहु नानक तिसु जन नही भंगु ॥4॥40॥53॥1151॥

38. हटवाणी धन माल हाटु कीतु

हटवाणी धन माल हाटु कीतु ॥
जूआरी जूए माहि चीतु ॥
अमली जीवै अमलु खाइ ॥
तिउ हरि जनु जीवै हरि धिआइ ॥१॥
अपनै रंगि सभु को रचै ॥
जितु प्रभि लाइआ तितु तितु लगै ॥१॥ रहाउ ॥
मेघ समै मोर निरतिकार ॥
चंद देखि बिगसहि कउलार ॥
माता बारिक देखि अनंद ॥
तिउ हरि जन जीवहि जपि गोबिंद ॥२॥
सिंघ रुचै सद भोजनु मास ॥
रणु देखि सूरे चित उलास ॥
किरपन कउ अति धन पिआरु ॥
हरि जन कउ हरि हरि आधारु ॥३॥
सरब रंग इक रंग माहि ॥
सरब सुखा सुख हरि कै नाइ ॥
तिसहि परापति इहु निधानु ॥
नानक गुरु जिसु करे दानु ॥4॥2॥1180॥

39. तिसु बसंतु जिसु प्रभु क्रिपालु

तिसु बसंतु जिसु प्रभु क्रिपालु ॥
तिसु बसंतु जिसु गुरु दइआलु ॥
मंगलु तिस कै जिसु एकु कामु ॥
तिसु सद बसंतु जिसु रिदै नामु ॥१॥
ग्रिहि ता के बसंतु गनी ॥
जा कै कीरतनु हरि धुनी ॥१॥ रहाउ ॥
प्रीति पारब्रहम मउलि मना ॥
गिआनु कमाईऐ पूछि जनां ॥
सो तपसी जिसु साधसंगु ॥
सद धिआनी जिसु गुरहि रंगु ॥२॥
से निरभउ जिन्ह भउ पइआ ॥
सो सुखीआ जिसु भ्रमु गइआ ॥
सो इकांती जिसु रिदा थाइ ॥
सोई निहचलु साच ठाइ ॥३॥
एका खोजै एक प्रीति ॥
दरसन परसन हीत चीति ॥
हरि रंग रंगा सहजि माणु ॥
नानक दास तिसु जन कुरबाणु ॥4॥3॥1180॥

40. किआ तू सोचहि किआ तू चितवहि

किआ तू सोचहि किआ तू चितवहि किआ तूं करहि उपाए ॥
ता कउ कहहु परवाह काहू की जिह गोपाल सहाए ॥१॥
बरसै मेघु सखी घरि पाहुन आए ॥
मोहि दीन क्रिपा निधि ठाकुर नव निधि नामि समाए ॥१॥ रहाउ ॥
अनिक प्रकार भोजन बहु कीए बहु बिंजन मिसटाए ॥
करी पाकसाल सोच पवित्रा हुणि लावहु भोगु हरि राए ॥२॥
दुसट बिदारे साजन रहसे इहि मंदिर घर अपनाए ॥
जउ ग्रिहि लालु रंगीओ आइआ तउ मै सभि सुख पाए ॥३॥
संत सभा ओट गुर पूरे धुरि मसतकि लेखु लिखाए ॥
जन नानक कंतु रंगीला पाइआ फिरि दूखु न लागै आए ॥4॥1॥1266॥

41. खीर अधारि बारिकु जब होता

खीर अधारि बारिकु जब होता बिनु खीरै रहनु न जाई ॥
सारि सम्हालि माता मुखि नीरै तब ओहु त्रिपति अघाई ॥१॥
हम बारिक पिता प्रभु दाता ॥
भूलहि बारिक अनिक लख बरीआ अन ठउर नाही जह जाता ॥१॥ रहाउ ॥
चंचल मति बारिक बपुरे की सरप अगनि कर मेलै ॥
माता पिता कंठि लाइ राखै अनद सहजि तब खेलै ॥२॥
जिस का पिता तू है मेरे सुआमी तिसु बारिक भूख कैसी ॥
नव निधि नामु निधानु ग्रिहि तेरै मनि बांछै सो लैसी ॥३॥
पिता क्रिपालि आगिआ इह दीनी बारिकु मुखि मांगै सो देना ॥
नानक बारिकु दरसु प्रभ चाहै मोहि ह्रिदै बसहि नित चरना ॥4॥2॥1266॥

42. बिसरि गई सभ ताति पराई

बिसरि गई सभ ताति पराई ॥
जब ते साधसंगति मोहि पाई ॥१॥ रहाउ ॥
ना को बैरी नही बिगाना सगल संगि हम कउ बनि आई ॥१॥
जो प्रभ कीनो सो भल मानिओ एह सुमति साधू ते पाई ॥२॥
सभ महि रवि रहिआ प्रभु एकै पेखि पेखि नानक बिगसाई ॥3॥8॥1299॥

43. चउबोले

समन जउ इस प्रेम की दम क्यिहु होती साट ॥
रावन हुते सु रंक नहि जिनि सिर दीने काटि ॥१॥
प्रीति प्रेम तनु खचि रहिआ बीचु न राई होत ॥
चरन कमल मनु बेधिओ बूझनु सुरति संजोग ॥2॥
सागर मेर उदिआन बन नव खंड बसुधा भरम ॥
मूसन प्रेम पिरम कै गनउ एक करि करम ॥३॥
मूसन मसकर प्रेम की रही जु अम्बरु छाइ ॥
बीधे बांधे कमल महि भवर रहे लपटाइ ॥४॥
जप तप संजम हरख सुख मान महत अरु गरब ॥
मूसन निमखक प्रेम परि वारि वारि देंउ सरब ॥५॥
मूसन मरमु न जानई मरत हिरत संसार ॥
प्रेम पिरम न बेधिओ उरझिओ मिथ बिउहार ॥६॥
घबु दबु जब जारीऐ बिछुरत प्रेम बिहाल ॥
मूसन तब ही मूसीऐ बिसरत पुरख दइआल ॥७॥
जा को प्रेम सुआउ है चरन चितव मन माहि ॥
नानक बिरही ब्रहम के आन न कतहू जाहि ॥८॥
लख घाटीं ऊंचौ घनो चंचल चीत बिहाल ॥
नीच कीच निम्रित घनी करनी कमल जमाल ॥९॥
कमल नैन अंजन सिआम चंद्र बदन चित चार ॥
मूसन मगन मरम सिउ खंड खंड करि हार ॥१०॥
मगनु भइओ प्रिअ प्रेम सिउ सूध न सिमरत अंग ॥
प्रगटि भइओ सभ लोअ महि नानक अधम पतंग ॥11॥1363॥