Salil Saroj
सलिल सरोज

सलिल सरोज का जन्म 3 मार्च,1987, बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार) हुआ । आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार, वह इग्नू से अंग्रेजी में स्नातक एवं केंद्र टॉपर हैं, उन्हें रूसी और तुर्की भाषा का भी ज्ञान है। वह समाजशास्त्र में परास्नातक एवं नेट की परीक्षा पास हैं। वह कार्यालय महानिदेशक लेखापरीक्षा, वैज्ञानिक विभाग, नयी दिल्ली में सीनियर ऑडिटर के पद पर २०१४ से कार्यरत हैं। वह हिन्दी के कवि, कहानीकार, और लेखक हैं । आपकी हिन्दी के पत्र पत्रिकायों में कविताएं छपती रहती हैं। आपका काव्य संग्रह "यूँ ही सोचता हुआ" प्रकाशित हो चुका है।

हिन्दी ग़ज़लें सलिल सरोज

  • तेरी राह का पत्थर ही सही, तेरी राह में तो हूँ
  • भूख लगे तो रोटी की जात नहीं पूछा करते
  • बेटियों को देखकर यही समझ आता है
  • जैसे बारिश से बेनूर कोई ज़मीन है
  • कुछ देर में ये नज़ारा भी बदल जाएगा
  • जब भी बात की तो तेरी ही बात की
  • गर हो आज तुम्हारी इजाज़त मुझे तो
  • बादशाहत तुम्हारी जितनी भी बड़ी हो आज,याद रखना
  • तू मेरा कल नही, तू मेरा आज नहीं
  • तुम जब चले गए तो फिर हमें आए याद बहुत
  • छत, दरवाज़े और दीवार सब ढह गईं
  • तुम कहो तो बन जाऊँ मैं
  • छूते ही उसे जल तरंग बज उठता है
  • तुम दाखिल होना मेरे दिल में कुछ इस कदर कि
  • चलो आज पर्दा करने की रवायत ही गिरा देते हैं
  • आपको देखके न जाने क्या क्या सोचते होंगे
  • खुले आसमाँ की धूप भी पिया कर
  • देखना ये है कि नफरत को ढाहता कौन है
  • मंदिरों में आरती, मस्जिदों में अजान होता नहीं
  • काजल करने के लिए ताज़ा खून चाहिए
  • ये बच्चा सच बहुत बोलता है, यहाँ जी नहीं पाएगा
  • एक अरसे से मैं बुझा ही नहीं
  • किराए पे रह कर भी तो सदी गुजरती है
  • सियासत
  • वो मुझे मेरी हद कुछ यूँ बताने लगा
  • ज़माने से हुई ख़बर कि मैं सुधर गया
  • उसे खूब मालूम है ज़ुल्म ढाने का तरीका
  • आज वो भी जुल्म के शिकार हुए जो जुल्म किया करते थे
  • धूप सेंकता हुआ कोई चाँद सुनहरा देखना
  • आप तो इस शहर से वाकिफ़ हैं
  • कोई क़यामत न कोई करीना याद आता है
  • अगली पीढ़ी का बोझ कौन उठाएगा
  • इश्क़ का भ्रम यूँ बनाते रहिए
  • अफवाह
  • ये चाक जिगर के सीना भी जरूरी है
  • मुझे मेरी मौत का फरिश्ता चाहिए
  • इंसानियत क्या है
  • वो सीने से लगकर यूँ रो दिए
  • जिसे जन्नत कहते हैं, वो हिन्दुस्तान हर घड़ी दिखाएँगे
  • तुम्हारी महफ़िल में और भी इंतज़ाम है
  • माना वक़्त बुरा है तो मर जाएँ क्या
  • सुना है कि आप लड़ते बहुत हैं
  • जरूरी तो नहीं
  • वो जो अपने होंठों पर अंगार लिए चलते हैं
  • कुआँ सूख गया गाँव का,पानी खरीदते जाइए
  • मैं भी न सोया, वो भी तमाम रात जागते रहे
  • शाम ढले तुम छत पे क्यूँ आते हो
  • जो परिन्दे डरते हैं हवाओं के बदलते रूख से
  • मैं जितना ही हूँ, उतना तो जरूर हूँ
  • कभी खुद का भी दौरा किया कीजिए
  • खत मेरा खोला उसने सबके जाने के बाद
  • न जाने किनका ख्याल आ गया
  • दर्द ज्यादा हो तो बताया कर
  • अपने जहन में संविधान रखता हूँ
  • रात की रात से बात होती रही
  • फिर मेरी हँसी से अपनी तस्वीर रँगते क्यूँ हो
  • खुद को सबसे दूर किया है उसने
  • ज़ुल्फ़ों को चेहरे पे कितना बेशरम रखते हैं
  • अब कैसे कृष्ण, कैसे राम निकलेगा
  • कभी शबनम तो कभी क़यामत लिखो कोई
  • दो कदम साथ चलिए मेरे
  • कोई रोज़ सही कोई लम्हा भी ऐसा हो
  • जो तुम चाहते हो बस वही मान लेते हैं
  • अच्छा था मेरे दर से मुकर जाना तेरा
  • तेरी आँखों से ही कोई रास्ता निकल आए सही
  • यह इतिहास है गौर से पढ़िएगा
  • तेरे बगैर यूँ ही गुज़ारा होता है मेरा
  • अगर कुछ जलाना ही है तो जला दो मुझे
  • दिल को जब बात और लगेगी
  • कितने अलग चेहरे थे
  • कुछ दिन भरम छोड़ कर भी देखिए
  • या इलाही, वो तबाही है कोई
  • कुछ कदम तुम भी बढ़ा कर देखते
  • ये नज़ारे बदल जाएँगे,तुम कदम मिला के तो चलो
  • तुम क्या थे मेरे लिए,अब मेरी समझ में आता है
  • तुझे जाना है तो फिर आना क्यूँ
  • ज़मीर में सलामत मुआमला रखिए
  • तुम्हें खुद से ही मिलाने वाला कोई और भी था
  • सच लिखने को कलम में दावात बहुत है
  • वो मेरे चंद गुनाहों की किताब रखता है
  • इन शहरों का एक रास्ता गांव को भी खुलना चाहिए