पदावली : संत मीरा बाई (भाग-8)

Padavali : Sant Meera Bai (Part-8)

1. सइयाँ तुम बिनि नींद न आवै हो

सइयाँ तुम बिनि नींद न आवै हो।
पलक पलक मोहि जुगसे बीतै, छिनि छिनि विरह जरावै हो।
प्रीतम बिनि तिम जाइ न सजनी, दीपक भवन न भावै हो।
फूलन सेज सूल होइ लागी जागत रैण बिहावै हो।
कासूँ कहूँ कुण मानै मेरी, कह्याँ न को पतियावै हो।
प्रीतम पनंग डस्यो कर मेरो, लहरि लहरि जिव जावै हो।
दादर मोर पपइया बोलै, कोइल सबद सुणावै हो।
उमिग घटा घन ऊलरि आई, बीजू चमक डरावै हो।
है कोई जग में राम सनेही, ऐ उरि साल मिटावै हो।
मीराँ के प्रभु हरि अबिनासी, नैणाँ देख्याँ भावै हो।।

(तिम=अन्धकार, सूल=काँटे, पतियावै=विश्वास करना,
पनंग=पन्नग,सर्प, दादर=दादुर,मेंढक, साल=दुःख)

2. सखि म्हाँरो सामरियाणे, देखवाँ कराँरी

सखि म्हाँरो सामरियाणे, देखवाँ कराँरी ।।टेक।।
साँवरो उमरण, साँवरो सुमरण, साँवरो ध्याण धराँ री।
ज्याँ ज्याँ चरण धरणाँ धरती धर, त्याँ त्याँ निरत कराँरी।
मीराँ रे प्रभु गिरधर नागर कुंजा गैल फिराँरी।।

(सामरिया=श्यामवर्ण श्रीकृष्ण, निरत=नृत्य,नाच)

3. सखी आपनो दाम खोटो

सखी आपनो दाम खोटो दोस काहां कुबज्याकू॥टेक॥
कुबजा दासी कंस रायकी। दराय कोठोडो॥१॥
आपन जाय दुबारका छाय। कागद हूं कोठोडो॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। कुबजा बडी हरी छोडो॥३॥

4. सखी, मेरी नींद नसानी हो

सखी, मेरी नींद नसानी हो।
पिवको पंथ निहारत सिगरी रैण बिहानी हो॥
सखिअन मिलकर सीख दई मन, एक न मानी हो।
बिन देख्यां कल नाहिं पड़त जिय ऐसी ठानी हो॥
अंग अंग व्याकुल भई मुख पिय पिय बानी हो।
अंतरबेदन बिरह की कोई पीर न जानी हो॥
ज्यूं चातक घनकूं रटै, मछली जिमि पानी हो।
मीरा व्याकुल बिरहणी सुद बुध बिसरानी हो॥

पाठांतर
सखी म्हारी नींद नसानी हो।
पिय रो पंथ निहरात सब रैण बिहानी हो।।टेक।।
सखियन सब मिल सीख दयां मन एक न मानी हो।
बिन देख्यां कल ना पड़ां मन रोस णा ठानी हो।
अंग खीण व्याकुल भयाँ मुख पिय पिय वाणी हो।
अन्तर वेदन विरह री म्हारी पीड़ णा जाणी हो।
ज्यूं चातक घनकूं रटै, मछरी ज्यूं पाणी हो।
मीराँ व्याकुल बिरहणी, सुध बुध विसराणी हो।।

(नसानी=नष्ट होना, कल ना पड़ाँ=चैन नहीं
मिलता, खीण=क्षीण, अन्तर=आन्तरिक,
विसराणी=छोड़ दी)

5. सखी म्हांरो कानूडो कलेजे की कोर

सखी म्हांरो कानूडो कलेजे की कोर।।टेक।।
मोर मुगट पीताम्बर सोहै, कुण्डल की झकझोर।
बिन्द्रावन की कुँज गलिन में, नाचत नन्द किसोर।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, चरण कँवल चितचोर।।

(कानूडो=कान्ह,श्रीकृष्ण, कलेजे की कोर=हृदय का
टुकड़ा,अत्याधिक प्यारा, झकझोर=हिलना-डुलना,
चितचोर=मन को चुराने वाला)

6. सखी री लाज बैरण भई

सखी री लाज बैरण भई।।टेक।।
श्रीलाल गोपाल के सँग, काहे नाहीं गई।
कठिन क्रूर अक्रूर आयो, साजि रथ कहै नई।
रथ चढ़ाय गोपाल लैगो, हाथ मींजत रही।
कठिन छाती स्याम बिछुरत, बिरह तें मत तई।
दासी मीरां लाल गिरिधर, बिखर क्यूँ ना गई।।

(क्रूर=कठिन, अक्रूर=कंस का एक दूत जो
कृष्ण को रथ पर चढ़ाकर मथुरा ले गया,
हाथ मींजत रही=हाथ मलती रही, तई=
संपत्प होती रही, बिखर क्यूँ ना गई=
टुकड़े-टुकड़े क्यों न हो गई)

7. सजणी कब मिलस्याँ पिय म्हाराँ

सजणी कब मिलस्याँ पिय म्हाराँ।
चरण कँवल गिरधर सुख देख्याँ, राख्यां नैणाँ थेरा।
णिरखाँ म्हारो चाव घणेरो मुखड़ा देख्यां थाराँ।
व्याकुल प्राण धरयांणा धीरज वेग हरयाँ म्हा पीराँ।
मीरां रे प्रभु गिरधरनागर, थें बिण तपण घणेरा।।

(पिव=प्रियतम, थेरा=समीप,सामने, णिरखाँ=निरखने
का,दर्शन करने का, धरयाँणा धीरज=धैर्य नहीं धरते,
तपण=दुःख, घणेरा=अधिक)

8. सजन सुध ज्यूँ जाणे त्यूँ लीजै हो

सजन सुध ज्यूँ जाणे त्यूँ लीजै हो।।टेक।।
तुम बिन मोरे अवर न कोई, क्रिपा रावरी कीजै हो।
दिन नहिं भूख रैण नहिं निंदरा, यूँ तन पलपल छीजै हो।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, मिल बिछड़न मत कीजै हो।।

(अवर=और, रावरी=अपनी, छीजे हो=क्षीण होता जाता है)

9. सहेलियाँ साजन घर आया हो

सहेलियाँ साजन घर आया हो।
बहोत दिनां की जोवती बिरहिण पिव पाया हो।।
रतन करूँ नेवछावरी ले आरति साजूं हो।
पिवका दिया सनेसड़ा ताहि बहोत निवाजूं हो।।
पांच सखी इकठी भई मिलि मंगल गावै हो।
पिया का रली बधावणा आणंद अंग न मावै हो।
हरि सागर सूं नेहरो नैणां बंध्या सनेह हो।
मरा सखी के आगणै दूधां बूठा मेह हो।।
पाठांतर
सहेलियां साजन घर आया हो।।टेक।।
बहोत दिना की जोवती, बिरहिन पिव पाया हो।
रतन करूँ नेछावरी, ले आरति साजुँ हो।
पिया का दिया सनेसड़ा ताहि बहोत निवाजूँ हो।
पांच सखी इकट्ठी भई, मिलि मंगल गावै हो।
पिय की रती बधावणां आणन्द अंगि न मावै हो।
हरि सागर सू नेहरो, नैणा बाँध्यो सनेह हो।
मीरां सखी के आंगणै, दूधां बूँठा मेह हो।।

(जोबती=प्रतीक्षा करती, सनेसड़ा=सन्देश,
निवाजूँ=कृतज्ञ होना, पाँच सखी=पाँचों
इन्द्रियाँ, मावै हो=समाती, नेहरो=स्नेह,
दूधाँ बूँठा मेह हो=दूध की वर्षा से भर
गया,उत्साह और आनन्द से परिपूर्ण
हो गया)

10. साजन घर आवो जी मिठबोला

साजन घर आवो जी मिठबोला।।टेक।।
कब की ठाढ़ी पंथ निहारूँ, थांई आयाँ होसी भला।
आवो निसंक संक मत मानो, आयो ही सुख रहला।
तन मन वार करूँ न्योछावर, दीजो स्याम मोहेला।
आतुर बहोत विलम नहीं करनाँ, आयां ही रंग रहेला।
तेरे कराण सब रंग त्यागा, काजल तिलक तमोला।
तुम देख्याँ बिन कल न परत है कर घर रही कपोला।
मीराँ दासी जनम जनम की, दिल की घुँडी खोला।।

(मिठबाला=मीठा बोलने वाला,मृदुभाषी, ठाढ़ी=खडी हुई,
थांई=तुम्हारे, निसंक=शंका से रहित होकर, रहला=रहेगा,
मोहेला=दर्शन, बिलम=विलम्ब,देर, रंग रहेगा=सुख रहेगा,
तमोला=पान, कल=चैन, कपोला=गाल, घुँडी=गाँठ,दुख)

11. साधुकी संगत पाईवो

साधुकी संगत पाईवो। ज्याकी पुरन कमाई वो॥टेक॥
पिया नामदेव और कबीरा। चौथी मिराबाई वो॥१॥
केवल कुवा नामक दासा। सेना जातका नाई वो॥२॥
धनाभगत रोहिदास चह्यारा। सजना जात कसाईवो॥३॥
त्रिलोचन घर रहत ब्रीतिया। कर्मा खिचडी खाईवो॥४॥
भिल्लणीके बोर सुदामाके चावल। रुची रुची भोग लगाईरे॥५॥
रंका बंका सूरदास भाईं। बिदुरकी भाजी खाईरे॥६॥
ध्रुव प्रल्हाद और बिभीषण। उनकी क्या भलाईवो॥७॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। ज्योतीमें ज्योती लगाईवो॥८॥

12. सामळोजी मारी बात

सामळोजी मारी बात। बाई तमे सामळोजी मारी बात॥टेक॥
राधा सखी सुंदर घरमां। कुबजानें घर जात॥१॥
नवलाख धेनु घरमां दुभाय। घर घर गोरस खात॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमलपर हात॥३॥

13. सावण दे रह्या जोरा रे घर आयो

सावण दे रह्या जोरा रे घर आयो जी स्याम मोरा रे।।टेक।।
उमड़ घुमड़ चहुँदिस से आया, गरजत है घन घोरा, रे।
दादुर मोर पपीहा बोलै, कोयल, कर रही सोरा रे।
मीरां के प्रभु गिरधरनागर, ज्यों वारूँ सोही थोरा रे।।

(दे रहा जोरा रे=भावनाओं को उद्दीप्त कर रहा है,
वारूँ=समर्पित करूँ)

14. सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी

सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी॥
थें छो म्हारा गुण रा सागर, औगण म्हारूं मति जाज्यो जी।
लोकन धीजै (म्हारो) मन न पतीजै, मुखडारा सबद सुणाज्यो जी॥
मैं तो दासी जनम जनम की, म्हारे आंगणा रमता आज्यो जी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बेड़ो पार लगाज्यो जी॥
पाठांतर
साँवरो म्हारो प्रीत णिभाज्यो जी।।टेक।।
थें छो म्हारो गुण रो सागर, औगुण म्हाँ बिसराज्यो जी।
लोकणा सीझयाँ मन न पतीज्यां मुखड़ा सबद सुणाज्यो जी।
दासी थाँरी जणम जणम म्हारे आँगण आज्यो जी।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, बेड़ा पार लगाज्यो जी।।

(साँवरो=कृष्ण, णिभाज्यो=निभा दीजिए, थें छो=तुम हो,
औगुण=अवगुण,दोष, पतीज्याँ=विश्वास करता है,
सबद=शब्द,अनहद नाद, बेड़ा पार लगाज्यो=बेड़ा
पार लगा दीजिए,उद्धार कर दीजिए)

15. साँवरिया, म्हाँरी प्रीतड़ली न्हिभाज्यो

साँवरिया, म्हाँरी प्रीतड़ली न्हिभाज्यो ।।टेक।।
प्रीत करो तो स्वामी ऐसी कीज्यो, अधबिच पत छिटकाज्यो।
तुम तो स्वामी गुण रा सागर, म्हाँरा ओगुण चित मति लाज्यो।
काया गढ़ घेरा ज्यों पड़्या छे, ऊपर आपर खाज्यो।
मीराँ के प्रभु गिरिधरनागर, चित्त रखाज्यो।।

(सांवरिया=कृष्ण, प्रीतड़ली=प्रीत, न्हिभाज्यो=
निभाओ, छिटकाज्यो=दूर हटाओ, गुण रा सागर=
गुणों के सागर, ओगुण=अवगुण,दोष, चित मति
लाज्यो=ध्यान मत दो, काया=शरीर, गढ़=किला)

16. सांवरियो रंग राचां

सांवरियो रंग राचां राणां सांवरियो रंग राचां।।टेक।।
ताल पखावज मिरदंग बाजा, साधां आगे णाच्याँ।
बूझया माणे मदण बावरो, स्याम प्रीतम्हाँ काचाँ।
विष रो प्यालो राणा भेज्याँ, आराग्यां णा जांच्याँ।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, जनम जनम रो साँचाँ।।

(रंग=प्रेम, राचां=अनुरक्त होना,रंग जाना, ताल=
ताली, मदण=मदन,प्रेमानुराग, काचां=कच्चा,
आरोग्यां=पी लिया, णा=नहीं, जांच्यां=जाँचा,परखा)

17. साँवरी सुरत मण रे बसी

साँवरी सुरत मण रे बसी ।।टेक।।
गिरधर ध्यान धराँ निसबासर, मण मोहण म्हारे बसी।
कहा कराँ कित जावाँ सजणी, म्हातो स्याम डसी।
मीराँ रे प्रभु कबरे मिलोगे, नित नव प्रीत रसी।।

(सुरत=सूरत, निसबासर=रात दिन, स्याम डसी=
काले साँपने काट लिया है,कृष्ण का विरह, रसी=
प्रभावित कर चुकी है)

18. सांवरो नन्द नन्दन, दीठ पड्याँ माई

सांवरो नन्द नन्दन, दीठ पड्याँ माई।
डार्यां सब लोक लाज सुध बुध बिसराई।
मोर चन्द्रका किरीट मुगट जब सोहाई।
केसर रो तिलक भाल लोचन सुखदाई।
कुण्डल झलकाँ कपोल अलकाँ लहराई।
मीणा तज सरवर ज्यों मकर मिलन धाई।
नटवर प्रभु भेष धर्यां रूप जग लोभाई।
गिरधर प्रभु अंग अंग, मीरा बलि जाई।।

(नन्दनन्दन=कृष्ण, दीठ=दृष्टि, चन्द्रका=
पंख, कीरीट=मुकुट, अलकाँ=लटें, मीणा=
मीन,मछली, सरवर=तालाब, मकर=मगर)

19. सांवरो रंग मिनोरे

सांवरो रंग मिनोरे। सांवरो रंग मिनोरे॥टेक॥
चांदनीमें उभा बिहारी महाराज॥१॥
काथो चुनो लविंग सोपारी। पानपें कछु दिनों॥२॥
हमारो सुख अति दुःख लागे। कुबजाकूं सुख कीनो॥३॥
मेरे अंगन रुख कदमको। त्यांतल उभो अति चिनो॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। नैननमें कछु लीनो॥५॥

20. सांवलिया म्हारो छाय रह्या परदेश

सांवलिया म्हारो छाय रह्या परदेश।।टेक।।
म्हारा बिछड़या फेर न मिलिया भेज्या णा एक सन्नेस।
रटण आभरण भूखण छाड़्यां खोर कियां सिर केस।
भगवां भेख धर्यां थें कारण, डूढ्यां चार्यां देस।
मीरां रे प्रभु स्याम मिलण बिणआ जीवनि जनम अनेस।।

(छाय रह्या=बसा हुआ, सन्नेस=सन्देश, खोर कियाँ=
सिर मुँडा लिया, अनेस=अप्रिय,बुरा)

21. सुण लीजो बिनती मोरी

सुण लीजो बिनती मोरी, मैं शरण गही प्रभु तोरी।

तुम तो पतित अनेक उधारे, भव सागर से तारे।।
मैं सबका तो नाम न जानूं कोइ कोई नाम उचारे।

अम्बरीष सुदामा नामा, तुम पहुँचाये निज धामा।
ध्रुव जो पाँच वर्ष के बालक, तुम दरस दिये घनस्यामा।

धना भक्त का खेत जमाया, कबिरा का बैल चराया।।
सबरी का जूंठा फल खाया, तुम काज किये मन भाया।

सदना औ सेना नाई को तुम कीन्हा अपनाई।।
करमा की खिचड़ी खाई तुम गणिका पार लगाई।
मीरा प्रभु तुमरे रंग राती या जानत सब दुनियाई।।

(सुण लीजो=सुन लीजिए, नामा=महाराष्ट्र के भक्त
नामदेव, कबिरा का बैल चराया=कबीरदास के बैल को
चराने ले गये, भाया=प्रिय,पसंद, करमा=करमा बाई,
जो भगवान जगन्नाथ की भक्त थी, वह खिचड़ी का
भोग लगाया करती थी, आज भी पुरी में जगन्नाथजी
के प्रसाद में खिचड़ी दी जाती है)

22. सुण्यारी महारे हरि आवाँगा आज

सुण्यारी महारे हरि आवाँगा आज।।टेक।।
म्हैलां चढ़ चढ़ जोवां सजणी कब आवां महाराज।
दादुर मोर पपीहा बोल्यां, कोइल मधुरां साज।
उमग्यां इन्द्र चहूँ दिस बरसां दामण छोड्यां लाज।
धरती रूप गिरधरनागर, बेग मिल्यो महाराज।।

(आवाँगा=आयेगा, म्हैलां=महल, जोवाँ=देखूंगी,
मधुराँ साज=मीठे शब्द, इन्द्र=बादल, मिलण रे
काज=मिलने के लिए, बेग=जल्दी)

23. सुमन आयो बदरा

सुमन आयो बदरा। श्यामबिना सुमन आयो बदरा॥टेक॥
सोबत सपनमों देखत शामकू। भरायो नयन निकल गयो कचरा॥१॥
मथुरा नगरकी चतुरा मालन। शामकू हार हमकू गजरा॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। समय गयो पिछे मीट गया झगरा॥३॥

24. सुंदर मारो सांवरो

सुंदर मारो सांवरो। मारा घेर आउंछे वनमाली॥टेक॥
नाना सुगंधी तेल मंगाऊं। ऊन ऊन पाणी तपाऊं छे॥
मारा मनमों येही वसे छे। आपने हात न्हवलाऊं छे॥१॥
खीर खांड पक्वान मिठाई। उपर घीना लडवा छे॥
मारो मनमों येही वसे छे। आपने होतसे जमाऊं छे॥२॥
सोना रुपानो पालनो बंधाऊं। रेशमना बंद बांधूं छे॥
मारा मनमों येडी वसे छे। आपने हात झूलाऊं छे॥३॥
मीराके प्रभू गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारु छे॥
मारा मनमों येही वसे छे। अपना ध्यान धराऊं छे॥४॥

25. सूरत दीनानाथ से लगी तो

सूरत दीनानाथ से लगी तो तू समझ सुहागण सुरता नार॥
लगनी लहंगो पहर सुहागण, बीतो जाय बहार।
धन जोबन है पावणा रो, मिलै न दूजी बार॥
राम नाम को चुड़लो पहिरो, प्रेम को सुरमो सार।
नकबेसर हरि नाम की री, उतर चलोनी परलै पार॥
ऐसे बर को क्या बरूं, जो जनमें औ मर जाय।
वर वरिये इक सांवरो री, चुड़लो अमर होय जाय॥
मैं जान्यो हरि मैं ठग्यो री, हरि ठगि ले गयो मोय।
लख चौरासी मोरचा री, छिन में गेर्‌या छे बिगोय॥
सुरत चली जहां मैं चली री, कृष्ण नाम झणकार।
अविनासी की पोल मरजी मीरा करै छै पुकार॥

(सूरत=सुरत,लय, नार=नारी, लगनी=लगन,प्रीति,
पावणा=पाहुना,अनित्य, चुड़लो=सौभाग्य की चूड़ी,
परलै=संसारी बन्धन से छूटकर वहां चला जाना,
जहां से लौटना नहीं होता है, गेर्‌यो छे बिगोय=
नष्ट कर दिया है, पोल=दरवाजा)

26. सीसोद्यो रूठ्यो तो म्हाँरो कांई करलेसी

सीसोद्यो रूठ्यो तो म्हाँरो कांई करलेसी;
म्हें तो गुण गोविन्द का गास्याँ, हो माई।।टेक।।
राणा जी रूठयो बाँरो देस रखासी;
हरि रूठयाँ कुम्हलायां, हो माई।
लोक लाज की काणा न मानूँ।
निरभै निसाण घुरास्यां, हो माई।
स्याम नाम का झांझ चलास्यां; भवसागर तर जास्यां हो माई।
मीराँ सरण सवल गिरधर की,
चरण कंवल लपटास्यां, हो माई।।

(सीसोद्यो=सिसोदिया राणा, कांई=
क्या, बांरो=अपना, काण=कान,मर्यादा,
निरभै=निर्भय होकर, घुरास्यां=बजाऊँगी,
सवल=सबल,शक्तिशाली)

27. स्याम बिण दुख पावां सजणी

स्याम बिण दुख पावां सजणी।
कुण म्हां धीर बँधावाँ।।टेक।।
यौ संसार कुबधि री भाँडो, साथ संगत णा भावाँ।
साधाँ जणरी निंद्या ठाणाँ, करमरा कुगत कुमाँवाँ।
राम नाम बिनि मकुति न पावां, फिर चौरासी जाबाँ।
साध संगथ माँ भूल णा जावाँ, मूरख जणम गमावाँ।
(कुण=कौन, म्हां=मुझको, कुबधि=कुबुद्धि,अज्ञान,
भांडो=बर्तन,भंडार, जण री=जनों की, करमरा=
कर्म से, कुगत=बुरी बातें, कुमावां=कमाता रहता
है, मकुति=मुक्ति, चौरासी=चौरासी लाख योनि)

28. स्याम! मने चाकर राखो जी

स्याम! मने चाकर राखो जी।
गिरधारी लाला! चाकर राखो जी।
चाकर रहसूं बाग लगासूं नित उठ दरसण पासूं।
ब्रिंदाबन की कुंजगलिन में तेरी लीला गासूं।।
चाकरी में दरसण पाऊँ सुमिरण पाऊँ खरची।
भाव भगति जागीरी पाऊँ, तीनूं बाता सरसी।।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहै, गल बैजंती माला।
ब्रिंदाबन में धेनु चरावे मोहन मुरलीवाला।।
हरे हरे नित बाग लगाऊँ, बिच बिच राखूं क्यारी।
सांवरिया के दरसण पाऊँ, पहर कुसुम्मी सारी।
जोगी आया जोग करणकूं, तप करणे संन्यासी।
हरी भजनकूं साधू आया ब्रिंदाबन के बासी।।
मीरा के प्रभु गहिर गंभीरा सदा रहो जी धीरा।
आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें, प्रेमनदी के तीरा।।

29. स्याम मिलण रे काज सखी

स्याम मिलण रे काज सखी, उर आरति जागी।।टेक।।
तलफ तलफ कल ना पड़ाँ विरहानल लागी।
निसदिन पंथ निहाराँ पिवरो, पलक ना पल भर लागी।
पीव पीव म्हाँ रटाँ रैण दिन लोक लाज कुल त्यागी।
बिरह भवंगम डस्याँ कलेजा माँ लहर हलाहल जागी।
मीराँ व्याकुल अति अकुलाणी स्याम उमंगा लागी।।

(आरति=दुःख,विरह-वेदना, भवंगम=भुजंग,साँप,
हलाहल=विष, उमंगा=मिलने की उमंग)

30. स्याम मिलण रो घणो उभावो

स्याम मिलण रो घणो उभावो, नित उठ जोऊ बाटड़ियाँ।।टेक।।
दरस बिना मोहि कुछ न सुहावै, जक न पड़त है आँखडियाँ।
तलफत तलफत बहु दिन बीता, पड़ी बिरह की पाशड़ियाँ।
अब तो बेगि दय करि साहिब, मैं तो तुम्हारी दासड़ियाँ।
नैण दुखी दरसण कूँ तरसै, नाभिन बैठे साँसड़ियाँ।
राति दिवस यह आरति मेरे, कब हरि राखै पासड़ियाँ।
लागि लगन छूटण की नाहीं, अब क्यूँ कीजै आँटड़ियाँ।
मीराँ के प्रभु कबरे मिलोगे, पूरी मन की आसड़ियाँ।

(घणो=अधिक, उभावो=उत्साह,उत्कण्ठा, बाटड़ियाँ=राह,
मार्ग, जक=चैन, तलफत-तलफत=तड़पते-तड़पते,
पाशड़ियाँ=पाश,फाँसी, नाभिन=नव्ज, आरति=दुःख,विनती,
पासड़ियाँ=पास, आंटड़ियां=आंट,उपेक्षा भाव)

31. स्याम मोरी बांहड़ली जी गहो

स्याम मोरी बांहड़ली जी गहो।
या भवसागर मंझधार में थें ही निभावण हो॥
म्हाने औगण घणा रहै प्रभुजी थे ही सहो तो सहो।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी लाज बिरद की बहो॥

पाठांतर
स्याम म्हां बांहड़िया जो गह्यां।।टेक।।
भोसागर मझधारां, बूड्यां थारो सरण लह्यां।
म्हारे अवगुण पार अपारा थें बिण कूण सह्यां।
मीराँ रे प्रभु हरि अबिनासी लाज बिरद री बह्यां।।

(बांहडिया=बांह,हाथ, भोसागर=संसार-सागर,
थें विण=तुम्हारे बिना, बह्याँ=रक्खो)

32. स्याम म्हाँसूं ऐडो डोले हो

स्याम म्हाँसूं ऐडो डोले हो, औरन सूं खेलै धमाल।
म्हाँसूं मुखहिं न बोलै हो, म्याम म्हाँसूं।।टेक।।
म्हारी गलियाँ नाँ फिरे, बाँके आँगणे डोले हो।
म्हाँरी अँगुली ना छुवे, वाकी बहियाँ मोरे, हो।
म्हाँरा अंचरा ना छुवे, वाको घुँघट खोले, हो।
मीराँ के प्रभु साँवरो, रंग रसिया डोले, हो।।

(म्हाँसू=हमसे, ऐंडो=इतराकर बचता हुआ,
वाके=उनके,अन्य स्त्रियों के, बहियाँ=बाँह,
रंग रसिया डोले=विलासी बना फिरता है)

33. स्याम विणा सखि रह्या ण जावां

स्याम विणा सखि रह्या ण जावां।।टेक।।
तण मण जीवण प्रीतम वार्या, थारे रूप लुभावां।
खाण वाण म्हारो फीकां सो लागं नैणा रहां मुरझावां।
निस दिन जोवां बाट मुरारी, कबरो दरसण पावां।
बार बार थारी अरजां करसूं रैण गवां दिन जावां।
मीरा रे हरि थे मिलियाँ बिण तरस तरस जीया जावां।।

(वार्या=न्यौछावर करना, लुभावां=मोहित होना, फीकाँ=
बेस्वाद, निसदिन=रातदिन, जोवाँ=देखना, बाट=राह,
प्रतीक्षा, कबरो=कब, तरस-तरस=तड़प-तड़प, जीया=
जी,प्राण)

34. स्याम सुन्दर पर वाराँ जीवड़ा

स्याम सुन्दर पर वाराँ जीवड़ा डाराँ स्याम।।टेक।।
थारे कारण जग जण त्यागाँ लोक लाज कुल डाराँ।
थे देख्याँ बिण कल णा पड़तां, णेणाँ चलताँ धाराँ।
क्यासूँ कहवाँ कोण बूझावाँ, कठण बिरहरी धाराँ।
मीराँ रे प्रभु दरशण दीस्यो थे चरणाँ आधाराँ।।

(वाराँ=न्यौछावर कर दिया, जीवड़ा=जीवन,
णेणाँ चलताँ धाराँ=आँखों से धारा चलती है,
निरन्तर आँसू रहते हैं, बुझावाँ=शान्त करना,
कठण=कठिन, आधाराँ=आधार)

35. स्वामी सब संसार के हो सांचे श्रीभगवान

स्वामी सब संसार के हो सांचे श्रीभगवान।।
स्थावर जंगम पावक पाणी धरती बीज समान।
सबमें महिमा थांरी देखी कुदरत के कुरबान।।
बिप्र सुदामा को दालद खोयो बाले की पहचान।
दो मुट्ठी तंदुलकी चाबी दीन्हयों द्रव्य महान।
भारत में अर्जुन के आगे आप भया रथवान।
अर्जुन कुलका लोग निहारयां छुट गया तीर कमान।
ना कोई मारे ना कोइ मरतो, तेरो यो अग्यान।
चेतन जीव तो अजर अमर है, यो गीतारों ग्यान।।
मेरे पर प्रभु किरपा कीजौ, बांदी अपणी जान।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल में ध्यान।।

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