Ghananand
घनानंद

घनानंद (१६७३- १७६०) रीतिकाल की तीन प्रमुख काव्यधाराओं- रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त के अंतिम काव्यधारा के अग्रणी कवि हैं। ये 'आनंदघन' नाम से भी प्रसिद्ध हैं। इनके जन्मस्थान और जनक के नाम अज्ञात हैं। आरंभिक जीवन दिल्ली तथा उत्तर जीवन वृंदावन में बीता। जाति के कायस्थ थे। ये अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण के समय मारे गए। इनके ग्रंथों की संख्या ४१ बताई जाती है- सुजानहित, कृपाकंदनिबंध, वियोगबेलि, इश्कलता, यमुनायश, प्रीतिपावस, प्रेमपत्रिका, प्रेमसरोवर, व्रजविलास, रसवसंत, अनुभवचंद्रिका, रंगबधाई, प्रेमपद्धति, वृषभानुपुर सुषमा, गोकुलगीत, नाममाधुरी, गिरिपूजन, विचारसार, दानघटा, भावनाप्रकाश, कृष्णकौमुदी, घामचमत्कार, प्रियाप्रसाद, वृंदावनमुद्रा, व्रजस्वरूप, गोकुलचरित्र, प्रेमपहेली, रसनायश, गोकुलविनोद, मुरलिकामोद, मनोरथमंजरी, व्रजव्यवहार, गिरिगाथा, व्रजवर्णन, छंदाष्टक, त्रिभंगी छंद, कबित्तसंग्रह, स्फुट पदावली और परमहंसवंशावली।

घनानंद की प्रसिद्ध कविताएँ

  • अंग अंग स्याम-रस-रंग की तरंग उठै
  • अच्छर मन कों छरै बहुरि अच्छर ही भावै
  • अति सूधो सनेह को मारग है
  • अन्तर आँच उसास तचै अति
  • अंतर उदेग दाह, आंखिन प्रवाह आँसू
  • अंतर में बासी पै प्रवासी कैसो अंतर है
  • अंतर हौं किधौ अंत रहौ
  • अरी, निसि नींद न आवै
  • आनाकानी आरसी निहारिबो करौगे कौलौं
  • आँखैं जो न देखैं तो कहा हैं कछु देखति ये
  • आसही अकास मधि अवधि गुनै बढ़ाय
  • आसा गुन बाँधिकैं भरोसो सिल धरि छाती
  • इन बाट परी सुधि रावरे भूलनि
  • ईछन तीछन बान बरवान सों
  • उर गति ब्यौरिवे कौं सुंदर सुजान जू को
  • उर भौन में मौन को घूंघट कै
  • ए रे बीर पौन! तेरो सबै ओर गौन
  • कहाँ एतौ पानिप बिचारी पिचकारी धरै
  • कहियै काहि जलाय हाय जो मो मधि बीतै
  • क्यों हँसि हेरि हियरा
  • कान्ह परे बहुतायत में
  • कारी कूर कोकिला कहाँ को बैर काढ़ति री
  • केती घट सोधौं पै न पाऊँ कहाँ आहि सो धौं
  • खेलत खिलार गुन-आगर उदार राधा
  • खोय दई बुधि सोय गयी सुधि
  • गुरनि बतायौ, राधा मोहन हू गायौ
  • घननंद के प्यारे सुजान सुनौ
  • 'घनाआनँद' जीवन मूल सुजान की
  • 'घनआनँद' प्यारे कहा जिय जारत
  • घनआनंद रस ऐन, कहौ कृपानिधि कौन हित
  • घेरि घबरानी उबरानिही रहति घन
  • चातिक चुहल चहुं ओर चाहे स्वातिही कों
  • चेटक रूप-रसीले सुजान
  • चोप चाह चावनि चकोर भयो चाहतहीं
  • छवि को सदन मोद मंडित बदन-चंद
  • जहाँ तैं पधारै मेरे नैननि हों पाँव धारे
  • जान के रूप लुभायकै नैननि
  • जानराय जानत सबै, अंतरगत की बात
  • जासों प्रीति ताहि निठुराई सों निपट नेह
  • जा हित मात कौं नाम जसोदा
  • जिन आँखिन रूप-चिन्हार भई
  • जिनको नित नीके निहारत हीं
  • जिय की बात जनाइये क्यों करि
  • जीवन ही जिय की सब जानत जान
  • झलकै अति सुन्दर आनन गौर
  • ढिग बैठे हू पैठि रहै उर में
  • तब तौ छबि पीवत जीवत है
  • तब ह्वै सहाय हाय कैसे धौं सुहाई ऐसी
  • तरसि-तरसि प्रान जानमनि दरस कों
  • तुम ही गति हौ तुम ही मति हौ
  • दसन बसन बोली भरि ए रहे गुलाल
  • धुनि पुरि रहै नित काननि में
  • निसि द्यौस खरी उर माँझ अरी
  • पकरि बस कीने री नँदलाल
  • परकारज देह को धारे फिरौ परजन्य
  • प्रीतम सुजान मेरे हित के निधान कहौ
  • प्रेम को महोदधि अपार हेरि कै, बिचार
  • पहिले घन-आनंद सींचि सुजान
  • पहिले अपनाय सुजान सनेह सों क्यों
  • पिय के अनुराग सुहाग भरी
  • पीर की भीर अधीर भर्इ अँखियां
  • पीरी परी देह छीनी, राजत सनेह भीनी
  • पूरन प्रेम को मंत्र महा पन
  • बरसैं तरसैं सरसैं अरसैं न
  • बहुत दिनानके अवधि आस-पास परे
  • बिकच नलिन लखैं सकुचि मलिन होति
  • बैस नई, अनुराग मई
  • भए अति निठुर, मिटाय पहचानि डारी
  • भोर तें साँझ लों कानन ओर निहारति
  • मन जैसे कछू तुम्हें चाहत है
  • मंतर में उर अंतर मैं सुलहै नहिं क्यों
  • मरम भिदै न जौ लौं करम न पावै तौलों
  • मरिबो बिसराम गनै
  • मारति मरोरै जिय डारति कहा कहौं
  • मीत सुजान अनीत करौ जिन
  • मूरति सिंगार की उजारी छबि आछी भाँति
  • मेरोई जिव जो मारतु मोहिं तौ
  • मोसों होरी खेलन आयौ
  • रस आरस सोय उठी कछु भोय लगी
  • राति-द्यौस कटक सचे ही रहे
  • राधा नवेली सहेली समाज में
  • रावरे रूप की रीति अनूप
  • रूप चमूय सज्यौ दल देखि भज्यौ
  • रोम रोम रसना ह्वै लहै जो गिरा के गुन
  • लाजनि लपेटि चितवनि भेद-भाय भरी
  • लै ही रहे हौ सदा मन और कौ
  • वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि
  • वैस की निकाई, सोई रितु सुखदायी
  • स्याम घटा लपटी थिर बीज कि सौहै
  • सावन आवन हेरि सखी
  • सौंधे की बास उसासहिं रोकत
  • हंसनि लसनि आछी बोलनि चितौनि चाल
  • हिय में जु आरति सु जारति उजारति है
  • हीन भएँ जल मीन अधीन कहा
  • होरी के मदमाते आए