धार्मिक कविता-1 : नज़ीर अकबराबादी

Dharmik Kavita-1 : Nazeer Akbarabadi

1. हम्द (ईश्वर-वन्दना)

इलाही तू फ़य्याज़ और करीम
इलाही तू ग़फ़्फ़ार है और रहीम
मुकद्दस, मुअल्ला, मुनज़्ज़ा, अज़ीम
न तेरा शरीक और न तेरा सहीम
तेरी ज़ाते-बाला है सबसे क़दीम

तेरे हुस्ने-कुदरत ने या किर्दगार !
किये हैं जहां में वो नक़्शो-निगार
पहुंचती नहीं अक़्ल उन्हें ज़र्रा-वार
तहय्युर में हैं देखकर बार-बार
हैं जितने जहां में ज़हीनो-फ़हीम

ज़मी पर समावात गर्दां किये
नजूम उनमें क्या-क्या दरख़्शां किये
नबातात बेहद नुमायां किये
अयां बहर से दुर्रो-मरजां किये
हजर से जवाहर भी और ज़र्रो-सीम

शिगुफ़्ता किये गुल-ब-फ़स्ले-बहार
अनादिल भी और कुमरी-ओ-कब्कसार
बरो-बरगो-नख़्लो-शजर शाख़सार
तरावत से ख़ुशबू से हंगाम-कार
रवां की सबा हर तरफ़ और नसीम

बयां कब हो ख़िलकत की अनवाअ का
जो कुछ हस्र होते तो जावे कहा
खुसूसन बनी-आदमे-ख़ुश-लक़ा
शरफ़ उन सभी में इन्हीं को दिया
ये इस्लाम-ओ-ईमानो-दीने-क़दीम

अता की इन्हें दौलते-माअरिफ़त
इबादत इताअत निको-मंज़िलत
हया, हुस्नो-उल्फ़त, अदब, मस्लहत
तमीज़ो-सुख़न खुल्क ख़ुश-मक़मत
फ़रावां दिये और नाज़ो-नईम

तेरा शुक्रे-अहसां हो किससे अदा
हमें मेह्र से तूने पैदा किया
किये और अल्ताफ़ बे-इंतहा
''नज़ीर'' इस सिवा क्या कहे सर झुका
ये सब तेरे इकराम हैं, या करीम ।

(फ़य्याज़=दानी, करीम=कृपालु, ग़फ़्फ़ार=
क्षमाशील, रहीम=दयालु, मुकद्दस=
पवित्र, मुअल्ला=उच्च, मुनज़्ज़ा=पवित्र,
अज़ीम=उच्च, सहीम=हिस्सेदार, किर्दगार=
विधाता, ज़र्रा-वार=थोड़ी भी, तहय्युर=
हैरानी, ज़हीनो-फ़हीम=बुद्धिमान, समावात=
आकाश, गर्दां=घूमने वाले, नजूम=सितारे,
दरख़्शां=चमकने वाले, नबातात=वनस्पती,
अयां=प्रकट, बहर=समुद्र, दुर्रो-मरजां=
मोती-मूंगे, हजर=पत्थर, ज़र्रो-सीम=सोना-चांदी,
शिगुफ़्ता=प्रफुल्लित, अनादिल=बुलबुलें, कब्कसार=
तीतर, बरो-बर्गो-नख़्लो-शजर=फल,पत्ते,वृक्ष,पौधे,
हंगाम-कार=भरी, सबा=सुबह की हवा, नसीम=
ठंढी हवा, ख़िलक़त=सृष्टि, अनवाअ=किस्मों,
हस्र=सीमा, बनी-आदमे-ख़ुश-लक़ा=सुन्दर मानव
जाति, शरफ़=आदर, माअरिफ़त=ईश्वरीय-ज्ञान,
इबादत=पूजा, इताअत=आज्ञाकारिता,
निको-मंज़िलत=नेकी, खुल्क़=शिष्टाचार, ख़ुश-
मक़मत=दया की भावना, फ़रावां=बहुत ज़्यादा,
नाज़ो-नईम=ऐशो-इशरत, अल्ताफ़=मेहरबानियां)

2. ऐ बरतर अज़ ख़्यालो क़यासो गुमाने मा

यारब है तेरी जात को दोनों जहां में बरतरी।
है याद तेरे फज्ल को रस्में खलाइक परवरी।
दाइम है खासो आम पर लुत्फ़ो अता हिफ़्ज़ आवरी।
क्या उनसिया, क्या तायेरा, क्या वह्श, क्या जिन्नों परी।
पाले है सबको, हर जमा तेरा करम और यावरी।
तू खालिके अर्ज़ों समा, तू हाकिमे क़ुदरत नुमा।
है हुक्म तेरा जा बजा, ले अर्श ता तहतूस्सरा।
बरतर मुक़द्दस, जुलउला, बंदे तेरे शाहो गदा।
दुनियाओ दीं की या खुदा बरहक तुझी को है रवा।
फरमारबाई, हाकिमी, शाही, खुदाई, सरवरी।
क़ुदरत ने तेरी हर जमा लेकर जमीं ता आस्माँ।
क्या क्या बहारें की अयाँ, क्या क्या दिखाई खूबियाँ।
मर्गूब रंगआमेजियाँ, महबूब हुस्न आराइयाँ।
हक तेरी सनअत पै यहाँ हैं खत्म लारेबो गुमा।
रंगीनी-ओ, तर्राही, आं नक्काशी ओ, सूरत गरी।
तूने बनाये सब फ़लक पैदा किये हूरो-मलक।
इंसा सबीहो पुर नमक, हैवां अजायब यक बयक।
हर जी तजल्ली और झमक बेइंतिहा नूर और चमक।
कहती है दानिश उनको तक, है यह भी क़ुदरत की झलक।
चमके हैं जिससे इस कदर खुर्शीदी माहो-मुश्तरी।
तू कादिरो-सुबहान है, अकदस मुअल्ला शान है।
ख़ालिक़ है और रहमान है रज़्जाक और मन्नान है।
तेरा करम हर आन है, एहसान बेपायान है।
हमको यही शायान है, जब तक बदन मे जान है।
हर आन में लावें बजा शुकरानओ फरमाबरी।
जो जो है तेरी कुदरतें क्या क्या बयां उनका करें।
आती नहीं कुछ फह्म में, जूज़ यह कि उनको तक रहें।
क्या क्या बनाई नैमतें, क्या क्या बनाई रहमतें।
कब शुक्र उनका कर सकें लेकिन यही हर दम कहें।
यारब तेरा फज़्लो करम लुत्फ़ो-इनायत गस्तरी।
है तू ही रब्बुल आलमी, और तू ही खैरूर्राहिमी।
यकताई है तेरे तई, हमसर तेरा कोई नहीं।
ले आस्माँ से ता जमीं, हैं सब इबादो ताबई।
है यह ‘नज़ीर’ इस्यांकरी जाने है बा सिद्कोयकी।
होगी तेरे ही फज्ल से हर जा मेरी खोटी खरी।

(ऐ बरतर अज़ ख़्यालो क़यासो गुमाने मा=वह व्यक्तित्व
जो हम लोगों के ख़्याल गुमान और वहम से भी परे है,
बरतरी=श्रेष्ठता, फज्ल=कृपा, खलाइक=जनसाधारण,
परवरी=पालन करना, दाइम=सदा, लुत्फ़=आनंद, हिफ़्ज़=
रक्षा,हिफाज़त, उनसिया=स्त्रियाँ, तायेरा=पक्षी, वह्श=
जंगली जानवर, जिन्नों=आग से पैदा होने वाले,दिखाई
न देने वाले प्राणी, यावरी=सहायता, अर्ज़ो-समा=पृथ्वी,
आकाश, तहतूस्सरा=पाताल, बरतर=श्रेष्ठ, मुक़द्दस=पाक,
पवित्र, जुलउला=बहुत बड़ा, गदा=फ़कीर, बरहक=दुरुस्त,
सच, रवा=उचित,वाजिब, फरमारबाई=बादशाही, सरवरी=
बुज़ुर्गी, अयाँ=प्रकट, मर्गूब=रुचिकर, रंगआमेजियाँ=
चित्रकारी, हुस्न आराइयाँ=सुंदरता को आभूषित करना,
हक=सच है, सनअत=हुनर,कारीगरी, लारेबो=निस्संदेह,
गुमा=शंका,शक, तर्राही=नक्काशी, सूरत गरी=चित्र
बनाना, फ़लक=आकाश, हूरो-मलक=स्वर्ग में रहने
वाली सुंदर स्त्रियाँ-फरिश्ते, सबीहो=सुंदर, यक बयक=
अनायास, तजल्ली=रोशनी, बेइंतिहा=अत्यधिक, दानिश=
बुद्धि, खुर्शीदी=सूरज, माहो-मुश्तरी=चाँद-बृहस्पति,
कादिरो-सुबहान=क़ुदरत रखने वाला-पाक, अकदस=
बहुत पवित्र, मुअल्ला=उत्तम,श्रेष्ठ, ख़ालिक़=पैदा करने
वाला, रहमान=रहम करने वाला, रज़्जाक=अन्नदाता,
मन्नान=अहसान करने वाला, बेपायान=असीम,बेहद,
शायान=मुनासिब, फरमाबरी=आज्ञाकारिता, फह्म=
अक्ल,बुद्धि, जूज़=अतिरिक्त, लुत्फ़ो-इनायत=करुणा-कृपा,
रब्बुल आलमी=पूरी दुनिया को पैदा करने वाला और
पालने वाला, खैरूर्राहिमी=सबका भला करने वाला,
यकताई=बेमिसाली,जिसके समान कोई न हो,
हमसर=बराबर, इबादो=सेवक, ताबई=आज्ञाकारी,
इस्यांकरी=पापों में लिप्त, सिद्कोयकी=सच्चे विश्वास)

3. मुसद्दस करीमा दर मुनाजात बारीएतआला

सदा दिल से ऐ मोमिने पाकबाज़।
वजू करके पढ़ पंज-वक्ती नमाज।
ब वक्ते मुनाजात बा सद नियाज।
यह कह अपने हाथों को करके दराज़।

करीमा व बख़्शाए बर हाले मा।
कि हस्तम असीरे कमंदे हवा।

इलाही तू सत्तारो गफ़्फ़ार है।
मेरा यां गुनाहों का अंबार है।
न हामी कोई ना मददगार है।
अब इस बेकसी में तू ही चार है।

न दारीम गै़र अज़ तू फ़रयादरस।
तुई आशियाँ रा ख़ता बख्शो बस।

हुए जुर्म तुझ से सग़ीरो कबीर।
पड़ा है तू दामे गुनाह में असीर।
जरा ख्वाबे ग़फ़लत से चौंक ऐ ‘नजीर’।
दुआ मांग जल्द और कह ऐ ख़बीर।

निगहदार मार अज़तूराहे ख़ता।
ख़ता दर गुज़ारो सबाबम नुमा।

(मोमिने=ईमान वाले,मुसलमान,
मुनाजात=ईश-प्रार्थना, सद नियाज=
सैकड़ो इच्छाएँ, दराज़=फैलाकर,
करीमा व बख़्शाए बर हाले मा।
कि हस्तम असीरे कमंदे हवा=ऐ
बख़्शिश करने वाले हमारे हाल पर
रहम फरमा। हम पर करम और
बख़्शिश कर इसलिए कि मैं लालच
और खुदगरजी के जाल का कैदी हूं,
न दारीम गै़र अज़ तू फ़रयादरस।
तुई आशियाँ रा ख़ता बख्शो बस=ऐ
खु़दा! हम तेरे सिवा कोई भी फ़रियादों
को सुनने वाला नहीं रखते। दरअसल
तू ही हम गुनहगारों की ख़ताओं को
बख़्शने वाला और माफ़ करने वाला
है और केवल तू ही, ख़बीर=ऐ जानकार,
निगहदार मार अज़तूराहे ख़ता।
ख़ता दर गुज़ारो सबाबम नुमा=ऐ ख़ुदा!
तू हमको ख़ता और ग़लती के रास्ते
से बचाकर रख। हमारी ग़लतियों को
माफ़ कर और सही और सीधा रास्ता
दिखा! )

4. दरसनाए पैग़म्बरे ख़ुदा

सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ।

तेरा दोस्त है वह जो ख़ेरुलवरा ।
मुहम्मद नबी मालिके दोसरा ।
कहाँ वस्फ़ हो मुझ से उसका अदा ।
व लेकिन है मेरी यही इल्तिजा ।
ज़बाँ ताबुवद दर दहाँ जाए गीर ।
सनाऐ मुहम्मद बुवद दिल पज़ीर ।

वह शाहे दो आलम अमीरे उमम ।
बने वास्ते जिसके लौहो-क़लम ।
सदा जिसके चूमें मलायक क़दम ।
करूँ उसका रुतबा मैं क्यूँकर रक़म ।
हबीबे ख़ुदा अशरफ़ुल अंम्बिया ।
कि अर्शे मजीदश बुवद मुत्तक़ा ।

अगर्चे यह पदा हुआ ख़ाक पर ।
गया ख़ाक से फिर वह इफ़लाक पर ।
मेरा जी फ़िदा उस तने पाक पर
तसद्दुक़ हूँ मैं उसके फ़ितराक पर ।
सवारे जहाँ गीर यकराँ बुराक़ ।
कि बगज़श्त अज़ करने नीली-ए-खाक़ ।


(सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम=अल्लाह का दुरुद
और सलाम आप पर हो, वस्फ़=प्रशंसा, लौहो-क़लम=
वह तख़्ती और लेखनी, जिनके द्वारा ईश्वर की आज्ञा से
भविष्य में होने वाली सब घटनाएँ लिखी हों, मलायक=
फ़रिश्ते, रक़म=लिखना, अर्शे मजीदश बुवद मुत्तक़ा=
रसूल जो ख़ुदा के महबूब हैं और नाबियों में जिनका
रुत्बा सबसे ज़्यादा है । जिनका निवासस्थान अर्श पर
बना, इफ़लाक=आकाश, तसद्दुक़=न्यौछावर, फ़ितराक=
वह डोरी जो घोड़े की ज़ीन में दोनों ओर लगाते हैं,
बगज़श्त अज़ करने नीली-ए-खाक़=वह व्यक्ति जो अकेले
बुराक़ घोड़े पर सवार होकर सारे ब्रह्माण्ड की सैर कर आए
जो कि इस नीले गुम्बद वाले महल से भी परे चले गए)

5. श्री कृष्ण जी की तारीफ़ में

है सबका ख़ुदा सब तुझ पे फ़िदा ।
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।
हे कृष्ण कन्हैया, नन्द लला !
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।

इसरारे हक़ीक़त यों खोले ।
तौहीद के वह मोती रोले ।
सब कहने लगे ऐ सल्ले अला ।
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।

सरसब्ज़ हुए वीरानए दिल ।
इस में हुआ जब तू दाखिल ।
गुलज़ार खिला सहरा-सहरा ।
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।

फिर तुझसे तजल्ली ज़ार हुई ।
दुनिया कहती तीरो तार हुई ।
ऐ जल्वा फ़रोज़े बज़्मे-हुदा ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।

मुट्ठी भर चावल के बदले ।
दुख दर्द सुदामा के दूर किए ।
पल भर में बना क़तरा दरिया ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।

जब तुझसे मिला ख़ुद को भूला ।
हैरान हूँ मैं इंसा कि ख़ुदा ।
मैं यह भी हुआ, मैं वह भी हुआ ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।

ख़ुर्शीद में जल्वा चाँद में भी ।
हर गुल में तेरे रुख़सार की बू ।
घूँघट जो खुला सखियों ने कहा ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।

दिलदार ग्वालों, बालों का ।
और सारे दुनियादारों का ।
सूरत में नबी सीरत में ख़ुदा ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।

इस हुस्ने अमल के सालिक ने ।
इस दस्तो जबलए के मालिक ने ।
कोहसार लिया उँगली पे उठा ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।

मन मोहिनी सूरत वाला था ।
न गोरा था न काला था ।
जिस रंग में चाहा देख लिया ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।

तालिब है तेरी रहमत का ।
बन्दए नाचीज़ नज़ीर तेरा ।
तू बहरे करम है नंद लला ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।


(ग़नी,=बेपरवाह, इसरार=भेद,
तौहीद=एक ईश्वर को मानना,
गुलज़ार=बाग़, सहरा-सहरा=
जंगल-जंगल, तजल्ली=नूर, ज़ार=
भरपूर, फ़रोज़े=रौशन करने वाले,
बज़्मे-हुदा=सत्य की महफिल,
ख़ुर्शीद=सूरज, रुख़सार=गाल,
नबी=पैग़म्बर, सीरत=स्वभाव,
अमल=काम, सालिक=साधक,
दसतो जबलए=जंगल और पहाड़,
कोहसार=पहाड़, तालिब=इच्छुक,
नाचीज़=तुच्छ, बहरे करम=दया,
का सागर)

6. गुरू नानक शाह

हैं कहते नानक शाह जिन्हें वह पूरे हैं आगाह गुरू ।
वह कामिल रहबर जग में हैं यूँ रौशन जैसे माह गुरू ।
मक़्सूद मुराद, उम्मीद सभी, बर लाते हैं दिलख़्वाह गुरू ।
नित लुत्फ़ो करम से करते हैं हम लोगों का निरबाह गुरु ।
इस बख़्शिश के इस अज़मत के हैं बाबा नानक शाह गुरू ।
सब सीस नवा अरदास करो, और हरदम बोलो वाह गुरू ।।१।।

हर आन दिलों विच याँ अपने जो ध्यान गुरू का लाते हैं ।
और सेवक होकर उनके ही हर सूरत बीच कहाते हैं ।
गर अपनी लुत्फ़ो इनायत से सुख चैन उन्हें दिखलाते हैं ।
ख़ुश रखते हैं हर हाल उन्हें सब तन का काज बनाते हैं ।
इस बख़्शिश के इस अज़मत के हैं बाबा नानक शाह गुरू ।
सब सीस नवा अरदास करो, और हरदम बोलो वाह गुरू ।।२।।

जो आप गुरू ने बख़्शिश से इस ख़ूबी का इर्शाद किया ।
हर बात है वह इस ख़ूबी की तासीर ने जिस पर साद किया ।
याँ जिस-जिस ने उन बातों को है ध्यान लगाकर याद किया ।
हर आन गुरू ने दिल उनका ख़ुश वक़्त किया और शाद किया ।
इस बख़्शिश के इस अज़मत के हैं बाबा नानक शाह गुरू ।
सब सीस नवा अरदास करो, और हरदम बोलो वाह गुरू ।।३।।

दिन रात जिन्होंने याँ दिल बिच है यादे-गुरू से काम लिया ।
सब मनके मक़्सद भर पाए ख़ुश-वक़्ती का हंगाम लिया ।
दुख-दर्द में अपना ध्यान लगा जिस वक़्त गुरू का नाम लिया ।
पल बीच गुरू ने आन उन्हें ख़ुशहाल किया और थाम लिया ।
इस बख़्शिश के इस अज़मत के हैं बाबा नानक शाह गुरू ।
सब सीस नवा अरदास करो, और हरदम बोलो वाह गुरू ।।४।।

याँ जो-जो दिल की ख़्वाहिश की कुछ बात गुरू से कहते हैं ।
वह अपनी लुत्फ़ो शफ़क़त से नित हाथ उन्हीं के गहते हैं ।
अल्ताफ़ से उनके ख़ुश होकर सब ख़ूबी से यह कहते हैं ।
दुख दूर उन्हीं के होते हैं सौ सुख से जग में रहते हैं ।
इस बख़्शिश के इस अज़मत के हैं बाबा नानक शाह गुरू ।
सब सीस नवा अरदास करो, और हरदम बोलो वाह गुरू ।।५।।

जो हरदम उनसे ध्यान लगा उम्मीद करम की धरते हैं ।
वह उन पर लुत्फ़ो इनायत से हर आन तव्ज्जै करते हैं ।
असबाब ख़ुशी और ख़ूबी के घर बीच उन्हीं के भरते हैं ।
आनन्द इनायत करते हैं सब मन की चिन्ता हरते हैं ।
इस बख़्शिश के इस अज़मत के हैं बाबा नानक शाह गुरू ।
सब सीस नवा अरदास करो, और हरदम बोलो वाह गुरू ।।६।।

जो लुत्फ़ इनायत उनमें हैं कब वस्फ़ किसी से उनका हो ।
वह लुत्फ़ो करम जो करते हैं हर चार तरफ़ है ज़ाहिर वो ।
अल्ताफ़ जिन्हों पर हैं उनके सौ ख़ूबी हासिल हैं उनको ।
हर आन ’नज़ीर’ अब याँ तुम भी बाबा नानक शाह कहो ।
इस बख़्शिश के इस अज़मत के हैं बाबा नानक शाह गुरू ।
सब सीस नवा अरदास करो, और हरदम बोलो वाह गुरू ।।७।।


(कामिल=मुक्म्मिल,सम्पूर्ण, रहबर=रास्ता दिखाने वाले, माह=
चाँद, मक़्सूद मुराद=दिल चाही इच्छा, अज़मत=बढ़ाई,शान,
इर्शाद=उपदेश दिया, तासीर=प्रभाव, मक़्सद=मनोरथ,इच्छा,
हंगाम=समय पर, शफ़क़त=मेहरबानी, गहते=पकड़ते, अल्ताफ़=
मेहरबानी, तवज्जै=ध्यान देना, वस्फ़=गुणगान)

7. मदह हज़रत सलीम चिश्ती

हैं दो जहां के सुल्तां हज़रत सलीम चिश्ती
आलम के दीनो-ईमां हज़रत सलीम चिश्ती
सरदफ़्तरे-मुसलमां हज़रत सलीम चिश्ती
मकबूले-ख़ासे-यज़्दां हज़रत सलीम चिश्ती
सरदारे-मुल्के-इरफ़ां हज़रत सलीम चिश्ती॥1॥

बुर्जे़ असद की रौनक अर्शे बरी के तारे।
गुलज़ारे दीं के गुलबन अल्लाह के संवारे।
यह बात जानो दिल से कहते हैं सब पुकारे।
तुम वह वली हो बरहक़ जो फैज़ से तुम्हारे।
आलम है बाग़ो बुस्तां हज़रत सलीम चिश्ती॥2॥

शाहों के बादशा हो बा-ताज बा-लिवा हो
और किब्लए-सफ़ा हो और काबए-ज़िया हो
ख़िलक़त के रहनुमा हो, दुनिया के मुक़्तदा हो
तुम साहबे-सख़ा हो महबूबे-किब्रिया हो
है तुम से ज़ेबे-इमकां हज़रत सलीम चिश्ती॥3॥

शाहो-गदा हैं ताबेअ सब तेरी मुमलिकत के
लायक तुम्हीं हो शाहा इस कद्रो-मंज़िलत के
परवर्दा हैं तुम्हारे सब ख़्वाने-मक़मत के
शाहा शरफ तू बख़्शे ख़ालिक की सल्तनत के
और तुम हो मीरे-सामां हज़रत सलीम चिश्ती॥4॥

है नामे-पाक तेरा मशहूर शहरो-बन में
करती हैं याद तुमको ये जानें हैं जो तन में
है ख़ुल्क़ की तुम्हारे खुशबू गुलो-समन में
खिदमत में है तुम्हारी फ़िरदौस के चमन में
जन्नत के हूरो-ग़िल्मां, हज़रत सलीम चिश्ती॥5॥

काबा समझ के अपना मुश्ताक़ तेरे दर को।
करते हैं आ ज़ियारत दिल से झुकाके सर को।
औसाफ़ तेरे हर दम पाते हैं सीमो-ज़र को।
पढ़ते हैं मदह तेरी गुलशन में हर सहर को।
हो बुलबुले खु़शइलहाँ हज़रत सलीम चिश्ती॥6॥

है सल्तनत जहां की सब तेरे ज़ेरे-फ़रमां
चाकर हैं तेरे दर के फ़ग़फूर और खाक़ां
ख़्वाने-करम पे तेरे है ख़ल्क सारी मेहमां
हैं हुक्म में तुम्हारे जिन्नो-परी-ओ-इंसां
हो वक़्त के सुलेमां हज़रत सलीम चिश्ती॥7॥

तुम सबसे हो मुअज़्ज़म और सबसे हो मुकर्रम
ख़िलक़त हुई तुम्हारी सब नूर से मुजस्सम
और ख़ूबियां जहां की तुम पर हुई मुसल्लम
अब्रे-करम से तेरे दायम है सब्ज़ो-खुर्रम
आलम का सब गुलिस्तां हज़रत सलीम चिश्ती॥8॥

पुश्तो-पनाह हो तुम हर इक गदा-व-शह के
मुहताज है तुम्हारी इक लुत्फ़ की निगह के
मंजिल पे आके पहुंचे सालिक तुम्हारी रह के
ख़ाके-कदम तुम्हारी और चश्म मेहो-मह के
हो रोशनी के सामां हजरत सलीम चिश्ती॥9॥

चश्मो चिराग़ हो तुम अब जुम्ला मोमिनी के।
रौशन हैं तुमसे पर्दे सब आस्मां ज़मीं के।
बेशक ज़ियाये दिल हो हर साहिबे यक़ीं के।
ज़र्रा नहीं तफ़ावुत तुम आस्मां हो दीं के।
हो आफ़ताबे रख़्शां हज़रत सलीम चिश्ती॥10॥

आलम है सब मुअत्तर तेरे क़रम की बू से
हुरमत है दोस्तों को हज़रत तुम्हारे रू से
यह चाहता हूं अब मैं सौ दिल की आरज़ू से
रखियो ''नज़ीर'' को तुम दो जग में आबरू से
ऐ मूजिदे-हर-अहसां हज़रत सलीम चिश्ती॥11॥

(सरदफ़्तरे-मुसलमां=मुसलमानों के नायक,
मकबूले-ख़ासे-यज़्दां=ईश्वर के परम प्यारे,
बुर्जे़ असद=सिंह राशि, अर्शे बरी=ऊंचे
आसमान, गुलबन=गुलाब का पौधा,
बरहक़=सच, फैज़=उपकार, बुस्तां=बाग़,
इरफ़ां=ज्ञान के, बा-लिवा=झंडे वाले,
किब्लए-सफ़ा=पवित्रता के पूज्य, काबए-
ज़िया=प्रकाश के पूज्य, मुक़्तदा=राह
दिखाने वाले, सख़ा=दानी, महबूबे-किब्रिया=
रब के प्यारे, ज़ेबे-इमकां=दुनिया की रौनक,
कद्रो-मंज़िलत=आदर, परवर्दा=पाले हुए,
ख़्वाने-मक़मत=कृपा का दान, शरफ़=इज़्ज़त,
मीरे-सामां=संसार के नायक,ख़ुल्क=सदाचार,
गुलो-समन=गुलाब-चमेली, फ़िरदौस=स्वर्ग,
मुश्ताक़=अभिलाषी, ज़ियारत=मिलना,दर्शन
करना, औसाफ़=खूबियाँ, सीमो-ज़र=चांदी-
सोना, मदह=स्तुति, सहर=सुबह, खु़शइलहाँ=
अच्छे स्वर वाली, फ़ग़फूर=पुराने चीन के
बादशाह, खाकां=पुराने,तुर्क बादशाह, ख़ल्क़=
संसार, मुअज़्ज़म=महान, मुकर्रम=सम्मानित,
मुसल्लम=पूरा, अब्रे-करम=कृपा के बादल,
दायम=सदा, सब्ज़ो-खुर्रम=प्रसन्न और हरा,
पुश्तो-पनाह=सहारा, सालिक=चलने वाले,
चश्म=आँख, मेहो-मह=सूर्य-चाँद, जुम्ला=
समग्र, मोमिनी=ईमान वाले, ज़ियाये=
रोशनी, ज़र्रा=कण, तफ़ावुत=फ़र्क, आफ़ताबे
रख़्शां=चमकता हुआ सूरज, मुअत्तर=
सुगंधित, क़रम=कृपा, मूजिदे-हर-अहसां=हर
कृपा करने वाले)

8. इश्क़ अल्लाह-1

पहले इस ताजे नबुव्वत से कहो इश्क़ अल्लाह।
साहिबे ख़ल्को करामत से कहो इश्क़ अल्लाह।
गुलशन दीं की तारावत से कहो इश्क़ अल्लाह।
नूरे हक़ शाफ़ए उम्मत से कहो इश्क़ अल्लाह।
यानी इस ख़त्मे रिसालत से कहो इश्क़ अल्लाह॥1॥

है जो वह नूरे नबी, शेरे खु़दा, शेरे-इलाह।
साहिबे दुलदुलो कु़म्बर शरफे़ बैतुल्लाह।
ज़ोरे दीं, क़ातिले कुफ़्फ़ार, मुहिब्बो की पनाह।
यानी वह हैदरे कर्रार, अली, आली जाह।
हर दम उस शाहे विलायत से कहो इश्क़ अल्लाह॥2॥

और वह है जिस से हरा बाग़ इमामत का चमन।
सब्ज़-ए-पोश चमन जन्नते फ़िर्दोस हसन।
ज़ह्र ने जिसका जु़मर्रुद सा किया सब्ज़ बदन।
याद कर मोमिनो उसका वह हरा पैराहन।
सब्ज़ऐ बागे़ इमामत से कहो इश्क़ अल्लाह॥3॥

और वह गुल जिस से है गुलज़ार शहादत का खिला।
ले गए दश्ते बला में जो उसे अहले जफ़ा।
तीन दिन रात का प्यासा वह बहादुर यक्ता।
लश्करे शाम को ललकार के तनहा वह लड़ा।
गोहरे दुर्रे शुजाअत से कहो इश्क़ अल्लाह॥4॥

और वह जिस मर्द का है नाम शहे जै़नुलअबा।
कर्बला में वह अगर आह का शोला करता।
जल के लश्कर वह सभी ख़ाक सियाह हो जाता।
पर सिवा हक़ की रज़ा उसने न कुछ दम मारा।
उस जवां मर्द की हिम्मत से कहो इश्क़ अल्लाह॥5॥

बाक़रो, जाफ़रो, काज़िमो रज़ा शाहे शहां।
और तक़ी नूर नबी और वह नक़ी क़िब्लऐ जां।
असकरी मेहदीओहादी वह इमामे दौरां।
हैं ज़माने में यही बारह इमाम ऐ यारां।
सब हर एक साहिबे इज़्ज़त से कहो इश्क़ अल्लाह॥6॥

हैं जहां तक कि जहां में जो वली और फु़क़रा।
हर दम उन सबके दिलों में है भरा इश्क़ अल्लाह।
और जिस मर्द ने खु़श होके बराहे मौला।
मालो जान दौलतो घर बार तलक बख़्श दिया।
उस सख़ी दिल की सख़ावत से कहो इश्क अल्लाह॥7॥

जितने अल्लाह ने भेजे हैं वली पैग़म्बर।
आरिफ़ो कामिलो दुर्वेशो मशायख़ रहबर।
और जिन्होंने ही फ़िदा हक़ के ऊपर करके नज़र।
राहे मौला में ख़ुशी होके दिया अपना सर।
उन शहीदों की शहादत से कहो इश्क़ अल्लाह॥8॥

हैं जो वह साबिरो शाकिर बरजाए मौला।
राहे मौला में चले लेके तवक्कूल हमराह।
जाके जंगल में पहाड़ों में लगा हक़ पै निगाह।
दिल में खु़श बैठे हुए करते हैं अल्लाह अल्लाह।
उन जवानों की क़नाअत से कहो इश्क़ अल्लाह॥9॥

वह जो कहलाते हैं दुनिया में खु़दा के बन्दे।
बन्दिगी करते ही करते वह सभी ख़ाक हुए।
ख़ाक भी हो गए पर करते हैं हर दम सिजदे।
हैं कहीं बातिनी लूटे हैं इबादत के मजे़।
दोस्तो उनकी इबादत से कहो इश्क़ अल्लाह॥10॥

और जो वह आबिदो ज़ाहिद हैं खु़दा की रह के।
यां के सब ऐशो मजे़ छोड़ दिये रह-रह के।
चिल्ले खींचे हैं मुहब्बत की कमां गह-गह के।
सूख कांटा हुए हर रंजो सितम सह-सह के।
यारो सब, उनकी रियाज़त से कहो इश्क़ अल्लाह॥11॥

और जो वह आशिके़ सादिक हैं जहां में यक्ता।
इश्क़ बाज़ी का लिया नाम पर अपने सिक्का।
गरचे माशूक़ की जानिब से हुए जोरो जफ़ा।
मर गए तो भी न मुंह अपना वफ़ा से मोड़ा।
उनकी जांबाज़ियो जुरअत से कहो इश्क़ अल्लाह॥12॥

और वह माशूक़ जो हैं नाज़ो अदा में मग़रूर।
हुस्न रखते हैं भबूका सा जहां में पुर नूर।
गरचे ज़ाहिर में वह आते नहीं आशिक के हुजूर।
पर वह बातिन में नहीं अपने ख़रीददार से दूर।
उनकी इस दिल की मुहब्बत से कहो इश्क़ अल्लाह॥13॥

और वह जिनपै हैं अहवाल दो आलम के खुले।
चलते दरिया में हैं और रूएहवा पर उड़ते।
चाहें पत्थर के तईं लाल करें नज़रों से।
चाहें अकसीर करें ख़ाक को हर दम ले ले।
उनकी सब कश्फ़ो करामत से कहो इश्क़ अल्लाह॥14॥

और वह जो इश्क़ का गुलज़ार खिलाता है नज़ीर।
पंजतन पाक का आलम में कहाता है नज़ीर।
रेख्ता फ़र्द रूबाई भी बनाता है नज़ीर।
कह सुख़न इश्क़ का फिर सबको सुनाता है नज़ीर।
उसके सब हर्फ़ो हिकायत से कहो इश्क़ अल्लाह॥15॥

(नबुव्वत=पैग़म्बरी, ख़ल्को=सृष्टि, करामत=चमत्कार,
शाफ़ए=सिफ़ारिश करने वाला, ख़त्मे रिसालत=अन्तिम
पैगम्बर, शेरे-इलाह=अल्लाह का शेर, दुलदुलो=दुलदुल
वाले, कु़म्बर=हज़रत अली के गु़लाम का नाम,
बैतुल्लाह=अल्लाह का घर, ज़ोरे दीं=दीन का ज़ोर,
कुफ़्फ़ार=काफिर, मुहिब्बो=प्रेम करने वाला, कर्रार=
शत्रु पर बराबर आक्रमण करने वाले हजरत अली,
विलायत=ऋषि या वली होने का भाव, इमामत=
पेशबाई, जु़मर्रुद=पन्ना, मोमिनो=ईमान वालो,
पैराहन=लिबास, अहले जफ़ा=जुल्म करने वाला,
गोहरे=मोती, शुजाअत=बहादुरी, जै़नुलअबा=हज़रत
इमाम हुसैन, कर्बला=जहां पर हज़रत इमाम हुसैन
शहीद हुए, फु़क़रा=संन्यासी,दरवेश, सख़ावत=बख़्शिश
करना, पैग़म्बर=ईश्वर का आदेश लाने वाले,
आरिफ़=ईश्वर को पहचानने वाला,जानने वाला,
कामिल=पूरा, दुर्वेश=फ़कीर, मशायख़=सूफी बुजुर्ग,
रहबर=राह दिखाने वाला, साबिर=सब्र करने वाला,
शाकिर=शुक्र अदा करने वाला, बरजाए=ईश्वर की
इच्छा, तवक्कूल=ख़ुदा का भरोसा, क़नाअत=थोड़ी
चीज़ पर राजी होना, आबिद=आराधना करने वाले,
ज़ाहिद=सिवाय ईश्वर के दुनियां की इच्छा न रखने
वाले लोग, रियाज़त=परिश्रम,आराधना, सादिक=
सच्चा, गरचे=यद्यपि, जोरो जफ़ा=जुल्मो सितम,
वफ़ा=श्रद्धा,वायदा पूरा करना, जांबाज़ियो=जान पर
खेलने, जुरअत=हिम्मत, बातिन=अन्दर, आलम=
दुनिया, रूएहवा=हवा पर, अकसीर=लाभदायक,
कश्फ़=खोलना, करामत=भेद, हर्फ़ो-हिकायत=
सुखन-कहानी)

9. इश्क़ अल्लाह-2

ज़ाहिदो रौज़ए रिज़्वाँ से कहो इश्क़ अल्लाह ।
आशिक़ो कूचए जानाँ से कहो इश्क़ अल्लाह ।

जिसकी आँखों ने किया बज़्मे दो आलम को ख़राब ।
कोई उस फ़ितनए दौराँ से कहो इश्क़ अल्लाह ।।

यारो देखो जो कहीं उस गुले खन्दाँ का ज़माल ।
तो मेरे दीदए गिरयाँ से कहो इश्क़ अल्लाह ।।

हैं जो वह कुश्तए शमशीर निगाहे क़ातिल ।
जाके उस गंजे शहीदाँ से कहो इश्क़ अल्लाह ।।

आह के साथ मेरे सीने से निकले है धुआँ ।
ऐ बुताँ मुझ दिलबर जाँ से कहो इश्क़ अल्लाह ।।

याद में उसके रुख़ों ज़ुल्फ़ की हर आन ’नज़ीर’
रोज़ो शब सुंबुलो रेहाँ से कहो इश्क़ अल्लाह ।।


(ज़ाहिदो=साधु, रौज़ए रिज़्वाँ=स्वर्ग की वाटिका,
बज़्मे दो आलम=दुनिया की महफ़िल, फ़ितनए
दौराँ=ज़माने का उपद्रवी, गुले खन्दाँ=फूल की
मुस्कान, ज़माल=ख़ूबसूरती, दीदए गिरयाँ=
बहुमूल्य आँखें)

10. ज़ोरे बाज़ुए अली

एक मोजिजा कहता हूं मैं उस शाह का सुनकर।
मोती से सुख़न है लो इसे धागे से चुनकर।
एक क़ाफ़िरे बदज़ात चला लड़ने की धुन कर।
आ सामने हैदर के ग़जब आग सा भुनकर।
जूं ऊंट ज़िबह करते हैं चिल्ला के दहाड़ा॥1॥

कहने लगा मैं तुमसे अली कुश्ती लडूंगा।
कुश्ती के जो हैं पेच अली तुमसे करूंगा।
ख़म ठोंक के मैदाँ में अपनी तुमसे अडूंगा।
हां, या अली मैं आपसे कुछ गिर न पडूंगा।
हर चंद अली आपने देवों को पछाड़ा॥2॥

जब शाह उठे जोश में आ तैशो ग़ज़ब के।
यकबारगी उस काफ़िरे बदज़ात से लिपटे।
कर यादे ख़ुदा हाथ कमर बंद में उसके।
एक हाथ से फेंका जो उसे तीन चरख़ दे।
यूं गिर पड़ा जं गिरता है दरिया का कड़ाड़ा॥3॥

चाहा जो उठे ख़ौफ़ से वह कांप धड़क कर।
उस शाह ने मारी वही एक लात कड़क कर।
रूह उसकी निकलने लगी नथनों से फड़क कर।
नथनों से लहू डाल के माथे पै छिड़क कर।
मुनकिर को अजल ले चली दरिया को निवाड़ा॥4॥

दांतों से पकड़ तिनका वह बोला अली आया।
तक़्सीर हुई मुझसे मैं अपना किया पाया।
फिर उसको मुसलमां किया, कलमे को पढ़ाया।
कुफ़्फार में जा दीन के डंके को बजाया।
दीं-दाँरी को जारी किया और कुफ़र को गाड़ा॥5॥

(मोजिजा=चमत्कार, मुनकिर=शरअ को न मानने
वाला, तक़्सीर=ख़ता,कुसूर, दीं-दाँरी=दीन, धर्म पर
चलाना, कुफ़र=ईश्वर को एक न मानना)

11. परमात्मा की याद

इस अर्ज़ो-समां के अर्से में यह जितना खच्चम खच्चा है।
यह ठाठ तुझी ने बांधा है, यह रंग तुझी ने रच्चा है।
हैवान, पखेरू, नर नारी, क्या बूढ़ा बालक बच्चा है।
क्या दाना बीना भरा, क्या भोला नादां कच्चा है।
कुल आलम तेरी याद करे तू साहब सबका सच्चा है॥1॥

कोई ख़ालिक बारी रब मौला रहमान रहीम अल्लाह तँगरी ।
कोई अलख रूप करतार कहे निरकाल नाम धरी।
कोई राम राम कहकर सुमरे कोई बोले शिव शिव हरी हरी।
कोई दाना दीनत, देव अटल, कोई राक्षस देवत जिन्न परी।
कुल आलम तेरी याद करे तू साहब सबका सच्चा है॥2॥

दरियाओ समुन्दर झील नहर नद्दी नाले डबरे जौहर।
सीपी, घोंघे, कौड़ी, मोती, घड़ियाल और नाके, सोंस, मगर।
जोंके, भैंसे, गोहें, झींगे, मुर्गाबी, बत्तख, बैल अम्बर।
क्या लाची, परवी और भँवर, क्या कछ, मछ और क्या जी जन्तर।
कुल आलम तेरी याद करे तू साहब सबका सच्चा है॥3॥

फुलवारी, बाड़ी, बाग़, चमन है सबको याद तेरी ही भली।
तू माली, वाली, रखवाली क्या बिरछ फली क्या पेड़ बली।
कोई माला फेरे, कोई सुमिरन है सबके दिल में याद घुली।
क्या चोटी, जड़, क्या फल, कोपल, क्या टहनी पत्ता कली-कली।
कुल आलम तेरी याद करे तू साहब सबका सच्चा है॥4॥

हुशियारी दाना मस्त सटर अग़यार नज़र, नाक़िस क़ामिल।
सरदार ग़रीब अदना आला ज़ीरक सियाना नादां ग़ाफ़िल।
रम्माल नजूमी घड़ियाली मुल्ला ब्राह्मन पंडित आक़िल।
क्या बंद महनदस अब्जद दां, क्या आलिम फ़ाज़िल क्या जाहिल।
कुल आलम तेरी याद करे तू साहब सबका सच्चा है॥5॥

सैयाद सवाबित लौहो क़लम जिन्नात अदन फ़िर्दोस फ़लक।
ख़ुर्शीद से ले महताब तलक महताब से ले ख़ुर्शीद तलक।
आसार तबाएँ क़ोसोजदी मीज़ाने असद सर्तान हरयक।
क्या रिज्वां ग़िल्मां जन्नत के क्या अर्श बरी क्या हूरो-मलक।
कुल आलम तेरी याद करे तू साहब सबका सच्चा है॥6॥

है दश्त बयाबां और वादी अर्सा मैदाँ सहरा जंगल।
वीराना पर्वत झाड़, शजर बूटी, झाड़ी पेड़ और जबल।
पीलू, पाखर, नरमा, सेंभल, कचनार, संभालू, बड़, पीपल।
क्या अब्र हवा, क्या बर्क़ घटा, क्या दल बादल क्या जल और थल।
कुल आलम तेरी याद करे तू साहब सबका सच्चा है॥7॥

राबेल, नगेर और मौलसिरी, मद मालति बेला और समन।
दोपहरी, गेंदा, गुललाला नाफ़रमा करना, बान मदन।
जाई, जुई, शब्बो नरगिस, सिंगार चमेली सीम-बदन।
क्या फूल गुलाबी गुलतूर्रा क्या डेला बांसा सुख दर्सन।
कुल आलम तेरी याद करे तू साहब सबका सच्चा है॥8॥

अंगूर, संगतरा, नारंगी, बरसेव सदाफल, सीताफल।
नारंज झम्बेली और कोले खट्टे मीठे कमरख गुलगुल।
आम, इमली, जामुन, मल्लकरी बादाम, छुहारे और जाफल।
क्या गूलर, खट्टे, मौलसिरी क्या शफ़तालू क्या कटहल, बड़हल।
कुल आलम तेरी याद करे तू साहब सबका सच्चा है॥9॥

गुढ़पंख कुलंग और बारकोई सारस, बगुला, कोयल, तीतर।
सुरखाब तरमती ज़ाग़ो ज़ग़न सीमुर्ग़ और सारस, मोर, सफ़र।
बहरी, लग्घड़, तोता, मैना, हुद-हुद, शिकरे, बाशे, तीतर।
क्या बुलबुल, कुमरी, लाला बया, क्या मक्खी, भुनगा और मच्छर।
कुल आलम तेरी याद करे तू साहब सबका सच्चा है॥10॥

गज, गेंडा, अरना शेर पिलंग आहू हिरनी रोब गीदड़।
सीपी न्योला, साँड़ा, बिच्छू, अफ़ई, चीतल चित्ती, अज़दर।
कज, कूही, पाढ़ा गर्ग चरख़, गिरगिट चलपा सेब मूशोदिगर।
क्या जल मानस, क्या बन मानस, क्या हाथी, घोड़ा पील शुतर।
कुल आलम तेरी याद करे तू साहब सबका सच्चा है॥11॥

अब्दाल कुतुब और ग़ौस वली है ध्यान में तेरे दिल सबका।
क्या ज्ञानी, ध्यानी, नारद मुनि क्या जोगी जंगम गुरु चेला।
तू पालने वाला है सबका और सबका तुझसे ध्यान लगा।
क्या शाह ‘नजीर’ और क्या राजा क्या मुफ़लिस क्या कंगाल गदा।
कुल आलम तेरी याद करे तू साहब सबका सच्चा है॥12॥

(अर्ज़ो-समां=पृथ्वी और आकाश, अर्से=बीच, दाना=बुद्धिमान,
बीना=देखने वाला, आलम=संसार, ख़ालिक=पैदा करने वाला,
बारी=पैदा करने वाला, तँगरी=अल्लाह तुर्की भाषा में, दाना=
डबरे=छिछला गड्ढा, सटर=तुच्छ,छोटा,मोटा, अग़यार=ग़ैर
लोग, नाक़िस=अपूर्ण, ख़राब, क़ामिल=पूर्ण,होशियार, ज़ीरक=
अक्लमंद,दाना, रम्माल=रमल करने वाला,भविष्य की बातें
बिन्दियों द्वारा बताने की विद्या, नजूमी=ज्योतिषी,
महनदस=बुद्धिमान, अब्जद=महंत, आलिम=पढ़ा लिखा,
फ़ाज़िल=योग्य, जाहिल=मूर्ख, सवाबित=ठहरे हुए सितारे,
फ़िर्दोस=स्वर्ग, फ़लक=आकाश, ख़ुर्शीद=सूरज, महताब=चांद,
आसार=खंडहर, तबाएँ=प्रकृतियां,तबीयतें, रिज्वां=जन्नत का
दारोगा,स्वर्गाध्यक्ष, ग़िल्मां=स्वर्ग के बालक, हूरो-मलक=
स्वर्ग की सुन्दर स्त्रियां-फ़रिश्ता, दश्त=जंगल, बयाबां=
चटियल मैदान, सहरा=रेगिस्तान, शजर=पेड़, जबल=पहाड़,
अब्र=बादल, बर्क़=बिजली, समन=चमेली का फूल, गुललाला=
एक फूल, नाफ़रमा=कहना न मानने वाला,एक फूल,
सीम-बदन=चांदी जैसे शरीर वाला, अरना=भैंसा, पिलंग=
तेंदुआ, आहू=हिरन, रोब=लोमड़ी, साँड़ा=एक प्रकार का
जंगली जानवर जिसकी चरबी काम में आती है, अफ़ई=
काला सांप, चित्ती=एक प्रकार का हिरन जिसके शरीर
पर चित्तियां होती हैं, अज़दर=एक प्रकार का सांप,
अज़दहा, पाढ़ा=एक प्रकार का हिरन,चित्रमृग, चरख़=
एक शिकारी जानवर, चलपा सेब=दरिन्दे जानवर,
मूशोदिगर=चूहा, पील=हाथी, शुतर=ऊँट, अब्दाल=भक्त,
कुतुब=ऋषि, ग़ौस=महात्मा, वली=महात्मा,मित्र,
मुफ़लिस=गरीब)

12. ख़ुदा की तारीफ़

ख़ुदा की ज़ात है वह जुलजलाल वल इकराम।
कि जिससे होते हैं परवर्दा सब ख़वासो अवाम।
उसी ने अर्ज़ो समावात को दिया है निज़ाम।
उसी की जात को है दायमो सबातो क़याम॥
क़दीर वहदो करीमो मुहीमिनो अनआम॥1॥

फ़लक पै तारों की क्या क्या मुरस्सा कारी की।
फिर उनमें जे़बफ़िजा कहकशां निगारी की।
ज़ियाओ-नूर की क्या क्या तजल्ली बारी की।
बुरूज बारह में लाकर रखी वह बारीकी।
कि जिसको पहुंचे न फ़िकरत न दानिशो औहाम॥2॥

बनाई कुर्सियो अर्श और ला मकां दर आं।
फिर और सदरए रफ़रफ़ से दर्ज नारो जिना।
तहूरो हूरो क़ुसूरो मलायको रिज़वां।
इधर फ़रिश्तए कबी और हैं उधर गुलमां।
कलम की लौह पै बख्शी है ताक़ते अरक़ाम॥3॥

सवाबित उसने बनाये हैं इस क़दर सैयार।
कि रोजे़ हण्र तलक हो सके न जिनका शुमार।
मगर यह नाम है उनके जो सात हैं सैय्यार।
यह दो हैं शम्सो क़मर, और साथ उनके यार।
अतारु ओ-जहलो, ज़ोहरा, मुश्तरी बहराम॥4॥

हुआ है हुक्म अज़ल से जो उनको फिरने का।
करेंगे दौर यह हमराह आस्मां के सदा।
क़वी किसी का कहां हुक्म हो सके ऐसा।
जो चाहें एक पलक ठहरें यह, सो ताक़त क्या।
फिरा करेंगे यह आग़ाज से ले ता अनजाम॥5॥

जो कुछ है उसने बनाया यह कुल निहानी अयां।
उसी की सनअतो कु़दरत के हैं यह सब शायां।
हैं ऐसे ऐसे मकां और उसके बेपायां।
बशर जो चाहे सो समझे उन्हें है क्या इमक़ां।
है यां फ़रिश्तों की आजिज़ उकू़ल और अफ़हाम॥6॥

जमीं को देखो तो कुल आब पर दिया है क़रार।
फिर उसमें और बनये हैं कोहो बर्रो बहार।
किया है और नबातात के तईं इजहार।
निकाले उनसे गुलो मेवा शाख़ गुल और बार।
सब उसके लुत्फ़ो करम के हैं आम यह इनआम॥7॥

उसी के हुक्म से हम इस जहां में आते हैं।
जुबानो, अक़्लो खि़रद चश्मो गोश पाते हैं।
उसी के तुल्फ़ से फूले नहीं समाते हैं।
उसी के बाग़ से दिलशाद होके खाते हैं।
छुहारे व किशमिशी इनजीरो पिस्तओ बादाम॥8॥

वही है ख़ालिक़ो राज़िक वही रऊफ़ो गफू़र।
उसी के मेहर से पलते हैं इन्सां वहशो तयूर।
उसी के हुक्म से ख़लक़त का यां हुआ है ज़हूर।
चमक रहा है उसी की यह कु़दरती का नूर।
बहर ज़मानो बहर साअतो बहर हंगाम॥9॥

उसी ने हुक्म किया है हमें इबादत का।
उसी ने ताअतो तक़वा का हुक्म हमको दिया।
जो ग़ौर की तो हमारा भी है इसी में भला।
कि उसका शुक्र करें शब से ता बरोज अदा।
इताअत उसकी बज़ा लावें सुबह से ता शाम॥10॥

जो उसमें लुत्फो इनायत है कब-किसी में हो।
हर इक तरफ़ है उसी के गुले करम की बू।
इबादत उसकी है जो हो वेदिल की खू़।
'नज़ीर' नुक्ता समझ मेहरो फ़ज़्ल ख़ालिक को।
उसी के फ़ज़्ल से दोनों जहां में है आराम॥11॥


(ज़ात=हक़ीकत, जुलजलाल=आदर के योग्य, इकराम=
श्रेष्ठ सम्मान योग्य, परवर्दा=पाला हुआ, ख़वासो
अवाम-साधारण-असाधारण सभी व्यक्ति, अर्ज़ो=पृथ्वी,
समावात=बहुत से आस्मान, निज़ाम=प्रबंध, दायमो=
हमेशा, सबातो=दृढ़ता, क़याम=स्थिरता, क़दीर=
सर्वशक्तिमान्, वहदो=अल्लाह, करीमो=कृपालु,
मुहीमिनो=महरबान, अनआम=दान देने वाला,
फ़लक=आस्मान, मुरस्सा=जड़ाई, जे़बफ़िजा=सुन्दरता
बढ़ाने वाली, कहकशां=आकाश गंगा, निगारी=जड़ाई,
ज़ियाओ-नूर=रोशनी, तजल्ली=रोशनी, बुरूज=बारह
राशियां, फ़िकरत=सोच, दानिशो=अक्ल, औहाम=
भ्रान्तियां,मुगालते, कुर्सियो=आठवां आस्मान,
रफ़रफ़=तेज घोड़ा,बुर्राक़, दर्ज=भरपूर, नारो=आग,
तहूरो=पवित्र, हूरो=सुन्दर स्त्रियां, क़ुसूरो=बहुत से
महल, मलायको=फरिश्ते, रिज़वां=जन्नत का
दारोगा, कबी=फरिश्ता,देवता, गुलमां=स्वर्ग के
बालक, लौह=तख़्ती, अरक़ाम=लेखन, सवाबित=
भ्रमणशील सितारे, सैयार=घूमने वाले, रोजे़ हण्र=
क़यामत, अज़ल=शुरू से, दौर=दौड़ा, हमराह=साथ,
क़वी=दृढ़,मजबूत, आग़ाज=शुरुआत, अनजाम=
अन्त, निहानी=छिपा हुआ, अयां=ज़ाहिर, शायां=
लायक, बेपायां=असीम, बशर=व्यक्ति, इमक़ां=
उम्मीद, उकू़ल=बुद्धियां, अफ़हाम=बुद्धि, आब=
पानी, क़रार=स्थिरता, कोहो=पहाड़, बर्रो=द्वीप,
नबातात=पेड़-पौधे, गुलो=फूल, बार=पेड़ के
फल,मेवा, चश्मो=आँख, गोश=कान, दिलशाद=
खुश, ख़ालिक़ो=पैदा करने वाला, राज़िक=
खाना देने वाला, रऊफ़ो=अत्यन्त दयालु,
गफू़र=गुनाहों को माफ करने वाला, वहशो=
जंगली जानवर, तयूर=परिन्दे, ज़हूर=जाहिर
होना, ज़मानो=वक्त,ज़माना, साअतो=क्षण,
समय, हंगाम=समय,मौसम, ताअतो=बन्दगी,
तक़वा=संयम, शब=रात, बरोज=दिन तक,
इताअत=बंदिगी, खू़=आदत, नुक्ता=रहस्य)

13. तारीफ़ पंजतन पाक

है दिल में मेरे याद जो बारह इमाम की।
और आरजू है साक़िये कौसर के जाम की।
यह बैत मुझको विर्द है हर सुबहो शाम की।
तस्बीह हजार दाना है और उनके नाम की।
सुमरन मुझे भली है यह पंजतन के नाम की॥1॥

अव्वल तो दिल हो साफ़ दोयम जिस्म ताबनाक।
सोयम कहाऊं दोनों जहां में गुनाह से पाक।
चौथे अदद का गै़ब से हो जावे सीना चाक।
और पांचवीं मैं डालूं मुख़ालिफ़ के सर पे ख़ाक।
सुमरन मुझे भली है यह पंजतन के नाम की॥2॥

तन है सौ पाक साफ़ मुअत्तर हो मिस्ल फूल।
हो रूह शाद दिल न हो मेरा कभी मलूल।
दोनों जहाँ में ख़ुश रहूं अज़ खि़दमते रसूल।
रोजा, नमाज़, विर्दो वज़ाइफ़ हो सब क़ुबूल।
सुमरन मुझे भली है यह पंजतन के नाम की॥3॥

भागे चुड़ैल कांप उठे भूत और पलीद।
टल जावें देव छुपने लगें मुन्किरे शदीद।
जिन्नों परी हों दिल से मेरे आन कर मुरीद।
जीता रहूं तो शाह, जो मर जाऊँ तो शहीद।
सुमरन मुझे भली है यह पंजतन के नाम की॥4॥

नारा करूं जो हैदरी हिल जावें सब पहाड़।
थर्रावें चश्मए सार हिलें डर से बूटे झाड़।
गर ख़ारिजी हो आवे मेरे आगे मिस्ल ताड़।
पगड़ी को इसकी फेंक के दाढ़ी को लूँ उखाड़॥
सुमरन मुझे भली है यह पंजतन के नाम की॥5॥

ऐ दोस्तो अजब है बना पंजतन का नाम।
जिसके तुफ़ैल इतने बर आते हैं सब के काम।
जो हैं सो हैं यही ख़तमुलखै़र वस्सलाम।
और मैं जो हूं "नज़ीर" तो कहता हूं सुबहो शाम।
सुमरन मुझे भली है यह पंजतन के नाम की॥6॥

(इमाम=नेता,पेशवा, आरजू=चाह, कौसर=जन्नत
की शराब की नहर, बैत=काव्य पंक्ति, विर्द=किसी
बात को बार बार कहना या करना, तस्बीह=माला,
पंजतन=पांच व्यक्ति अर्थात हज़रत मुहम्मद,
हज़रत फ़ातिमा, हज़रत अली और उनके दोनों
पुत्र इमाम हसन और इमाम हुसैन, ताबनाक=रोशन,
चमकदार, सोयम=तीसरे, गै़ब=परोक्ष, चाक=फटा
हुआ, मिस्ल=तरह, शाद=प्रसन्न, मलूल=रंजीदा,उदास,
अज़=से, वज़ाइफ़=वजीफ़ा,किसी मंत्र या कु़रान
शरीफ़ के वाक्य का जाप, पलीद=नापाक,अपवित्र
प्रेत, मुन्किरे=इंकार करने वाला, शदीद=सख़्त,
ख़ारिजी=जो हलके से निकल गए हों, बर=फल
पूर्ति, ख़तमुलखै़र=ठीक से समाप्ति)

14. तारीफ़ गुरूगंजबख़्श की

हो रह विला मुदाम गुरू गंज बख़्श का।
ख़ूबी में हैं क़याम गुरू गंज बख़्श का।
कृपा में एहतराम गुरू गंज बख़्श का।
ले दिल हमेशा नाम गुरू गंज बख़्श का।
रख ध्यान सुबहो शाम गुरू गंज बख़्श का॥1॥

हरदम उन्हीं की याद का रख दिल में तू ख़याल।
और रख सुरत तू अपनी उन्हीं के चरन दे नाल।
खोते हैं सबके दिल के वही रंज और मलाल।
सेवक को अपने करते हैं एक आन में निहाल।
बख़्शिश में है यह काम गुरू गंज बख़्श का॥2॥

आते हैं वह मदद के तईं जल्द हर कहीं।
उनका हुआ जो दिल से उसे कुछ ख़तर नहीं।
यह बात ठीक है इसे कर जी में तू यक़ीं।
गिरता हुआ जो नाम ले उनका तो उस तईं।
लेता है नाम थाम गुरू गंज बख़्श का॥3॥

ख़ूबी कुछ उनके लुत्फ़ की जाती नहीं कहीं।
कृपा वह अपनी रखते हैं हर आन हर घड़ी।
गहते हैं दुःख में बांह बहुत होते हैं खुशी।
कहते हैं जिसको लुत्फ़ की मसनद सो हैं वही।
है दिल सदा मुक़ाम गुरू गंज बख़्श का॥4॥

रख उनकी लहजः लहजः तू कृपा उपर नज़र।
वह अपने गंज लुत्फ़ से देते हैं सीमो-ज़र।
जो चाहिए मुराद उन्हीं से तू अर्ज़ कर।
जो दिल से पूजते हैं तो उन सबके हाल पर।
अल्ताफ़ हैं मुदाम गुरू गंज बख़्श का॥5॥

उनकी सरन में आया तो फिर दुःख न हो कभू।
रख लेंगे अपनी मेहर से वह तेरी आबरू।
रख अपने जी से उनकी ही कृपा की आरजू।
अरदास करके सर को झुका उनके दर पे तू।
लुत्फो करम है आम गुरू गंज बख़्श का॥6॥

कर अर्ज़ उनसे अपना तू अहवाल ऐ नज़ीर।
अपने करम से लेंगे तुझे पाल ऐ नज़ीर।
रख उनकी याद जी मैं तू हर हाल ऐ नज़ीर।
रहता है जग में खुश दिलो खुशहाल ऐ नज़ीर।
है दिल से जो गुलाम गुरू गंज बख़्श का॥7॥

(विला=मित्र, मुदाम=सदा, क़याम=निवास,
एहतराम=सम्मान, चरन दे नाल=चरणों में
(पंजाबी), लुत्फ़=दया,आनन्द, मसनद=
सिंहासन, लहजः लहजः=प्रति क्षण, सीमो-
ज़र=चांदी-सोना, अल्ताफ़=महरबानियां,
आबरू=इज़्ज़त, आरजू=इच्छा)

15. हरि जी का सुमिरन

श्री कृष्ण जी की याद दिलो जां से कीजिए।
ले नाम वासुदेव का अब ध्यान कीजिए।
क्या बादा बेखु़मार दिलो जां से पीजिए।
सब काम छोड़ नाम चतुर्भुज का लीजिए॥
जो दम है जिन्दगी का यह सुमिरन में दीजिए।

आये हैं भक्त हेत जो साहब जमीं उपर।
सब-रोज दिलोजान से करता है शोर शर।
मादर पिदर बिरादरओ फ़रज़न्द पर न भूल।
दिन चार के हैं यार यह सुनता है ऐ मझूल।
कितने हजार शाह पड़े हैं बखालेधूल।
कहता हूँ बार बार तू करता नहीं कबूल॥ सब.

इस नाम के लिये से हजारों हुये हैं पार।
गनका वो अजामील से लक्खों कई हजार।
रैदास व सदना का मैं क्या करूँ शुमार।
कहता हूँ बार बार तू करता नहीं कबूल॥ सब.

इस नाम के लिये से हजारों हि तर गये।
टांडा जो लाद आप कबीरा के घर गये।
मांगन को दान राम जी जो बलि के घर गये।
रावन की मार राज भभीखन को कर गये॥ सब.

धन्ना का खेत तुख़्म बिन कुदरत से बो दिया।
दारिद्र एक पल में सुदामा का खो दिया।
जिन मैल दिल से मिर्ज़ा व माधो का धो दिया।
हिन्दू तुरक का भेद दिलों जां से खो दिया॥ सब.

प्रहलाद हेत राम ने नरसिंह औतार धर।
मारा हैं हरनाकुस को जब खंब फाड़ कर।
लाया है भक्त अपने को ग़म से उबार कर।
भौंचक्का हो के देख रहे सब निहार कर॥ सब.

जिन नामदे की गाय को मुई का जिला दिया।
आबे खिजर का उसको प्याला पिला दिया।
सरमिन्दा होके सेना ने सर को नवा दिया।
श्री राम जी का कहना हरदम रवाँ किया॥ सब.

शंख पद्म युक्त चक्र गदा बिरजें हाजरी।
करती है मेरे दिल में जो आवाज बाँसुरी।
कहता है लालजी वो बरहमन घड़ी, घड़ी।
रख याद दिल से नाम चतुर्भुज हरी हरी।
सब काम छोड़ नाम चतुर्भुज का लीजिए।
जो दम है जिन्दगी का सुमिरन में दीजिए॥ सब.

(बादा=प्याला,जाम, बेखु़मार=जिसमें नशा न हो,
फ़रज़न्द=पुत्र, मझूल=अशिक्षित,अयोग्य, बखालेधूल=
मिट्टी में, तुख़्म=बीज, आबे खिजर=अमृत)

  • धार्मिक कविता नज़ीर अकबराबादी (भाग-2)
  • मुख्य पृष्ठ : काव्य रचनाएँ : नज़ीर अकबराबादी
  • मुख्य पृष्ठ : हिन्दी कविता वेबसाइट (hindi-kavita.com)