Chinta Agyeya
चिन्ता अज्ञेय

चिन्ता : विश्वप्रिया

  • छाया, छाया तुम कौन हो
  • छाया! मैं तुममें किस वस्तु का अभिलाषी हूँ
  • विश्व-नगर में कौन सुनेगा मेरी मूक पुकार
  • सब ओर बिछे थे नीरव छाया के जाल घनेरे
  • हा कि मैं खो जा सकूँ
  • तेरी आँखों में क्या मद है जिसको पीने आता हूँ
  • आ जाना प्रिय आ जाना
  • आज तुम से मिल सकूँगा था मुझे विश्वास
  • ओ उपास्य! तू जान कि कैसे अब होगा निर्वाह
  • व्यथा मौन
  • मैं अपने को एकदम
  • मेरे उर ने शिशिर-हृदय से सीखा करना प्यार
  • गए दिनों में औरों से भी मैं ने प्रणय किया है
  • फूला कहीं एक फूल
  • जाने किस दूर वन-प्रांतर से उड़ कर
  • इस कोलाहल भरे जगत में
  • प्राण तुम आज चिंतित क्यों हो
  • तुम्हारा जो प्रेम अनंत है
  • संसार का एकत्व
  • कैसे कहूँ कि तेरे पास आते समय
  • हमारा तुम्हारा प्रणय
  • तुम गूजरी हो
  • इतने काल से मैं
  • प्रिये तनिक बाहर तो आओ
  • प्राण-वधूटी
  • विद्युद्गति में
  • आओ एक खेल खेलें
  • वधुके उठो
  • सुमुखि मुझको शक्ति दे
  • जिह्वा ही पर नाम रहे
  • ये सब कितने नीरस जीवन के लक्षण हैं
  • मेरे मित्र, मेरे सखा
  • इस विचित्र खेल का अंत
  • आकाश में एक क्षुद्र पक्षी
  • अंत कब कहाँ
  • तुम्हीं हो क्या वह
  • मन मुझ को कहता है
  • मैं हूँ खड़ा देखता
  • तोड़ दूँगा मैं तुम्हारा आज यह अभिमान
  • तितली, तितली
  • जब तुम हँसती हो
  • जान लिया तब प्रेम रहा क्या
  • जब मैं तुमसे विलग होता हूँ
  • मैंने अपने आप को
  • हा वह शून्य
  • तुम जो सूर्य को जीवन देती हो
  • तुम देवी हो नहीं
  • तुम में यह क्या है
  • वह इतना नहीं
  • मैं अब सत्य को छिपा नहीं सकता
  • यह छिपाए छिपता नहीं
  • जीवन का मालिन्य
  • हम एक हैं
  • यह एक कल्पना है
  • अपने प्रेम के उद्वेग में
  • छलने! तुम्हारी मुद्रा खोटी है
  • चुक गया दिन
  • इंदु तुल्य शोभने
  • किंतु छलूँ क्यों अपने को फि
  • मैं था कलाकार
  • मैं तुम्हें किसी भी वस्तु की
  • इस प्रलयंकर कोलाहल में
  • बाहर थी तब राका छिटकी
  • वह प्रेत है
  • क्षण भर पहले ही आ जाते
  • देवता
  • मैं अपने अपनेपन से
  • कल मुझ में उन्माद जगा था
  • मैं आम के वृक्ष की छाया में
  • स्वर्गंगा की महानता में
  • दीप बुझ चुका
  • मैं केवल एक सखा चाहता था
  • नहीं, नियति को दोष क्यों दूँ
  • पता नहीं कैसे
  • हमारी कल्पना के प्रेम में
  • जीवन बीता जा रहा है
  • इस परित्यक्त केंचुल की ओर
  • नहीं देखने को उसका मुख
  • मेरे गायन की तान
  • ऊषा अनागता
  • आज चल रे तू अकेला
  • मेरे आगे तुम ऐसी खड़ी
  • मैं तुम्हें जानता नहीं
  • मैं अपने पुराने जीर्ण शरीर से
  • यह नया जीवन कहाँ से आया
  • व्यष्टि जीवन का अंधकार
  • विज्ञान का गंभीर स्वर
  • शब्द-शब्द-शब्द
  • नहीं काँपता है अब अंतर
  • मैं जीवन-समुद्र पार कर के
  • विदा! विदा!
  • हमें एक दूसरे को
  • विदा हो चुकी
  • तुम्हारी अपरिचित आकृति को देख कर
  • तरु पर कुहुक उठी पड़कुलिया
  • तुम आए, तुम चले गए
  • यह केवल एक मनोविकार है
  • मैं जगत को प्यार कर के
  • तुम्हारे प्रणय का कुहरा
  • निराश प्रकृति
  • जब तुम चली जा रही थीं
  • अब भी तुम निर्भीक हो
  • विफले! विश्वक्षेत्र में खो जा
  • प्रत्यूष के क्षीणतर होते
  • मेरे प्राण आज कहते हैं
  • तुम में या मुझ में
  • कभी-कभी मेरी आँखों के आगे
  • उखड़ा-सा दिन
  • तुम मेरे जीवन-आकाश में
  • मुझे जो बार-बार
  • आओ, हम-तुम अपने संसार का
  • वह पागल है
  • भीम-प्रवाहिनी
  • हमारा प्रेम
  • मैं तुम्हें संपूर्णतः जान गया हूँ
  • मेरे उर की आलोक-किरण
  • तुम चैत्र के वसंत की तरह हो
  • अल्लाह के
  • इस अपूर्ण जग में कब किसने
  • निष्पत्ति
  • चिन्ता : एकायन

  • सखि! आ गये नीम को बौर
  • पथ पर निर्झर-रूप बहे
  • मैंने तुम से कभी कुछ नहीं माँगा
  • मधु मंजरि
  • करुणे, तू खड़ी-खड़ी क्या सुनती
  • पुजारिन कैसी हूँ मैं नाथ
  • टूट गये सब कृत्रिम बन्धन
  • जब मैं कोई उपहार ले कर
  • उर-मृग! बँधता किस बन्धन में
  • कहीं किसी ने गाया
  • घन-गर्जन
  • बहुत अब आँखें रो लीं
  • मैं अपने पैरों के किंकिण
  • विजयी! मैं इस का प्रतिदान नहीं माँगती
  • किन्तु विजयी! यदि तुम बिना माँगे ही
  • तुम चिर-अखंड आलोक
  • मुझे जान पड़ता है, मैं चोर हूँ
  • मत पूछो, शब्द नहीं कह सकते
  • मैं गाती हूँ
  • प्राण अगर निर्झर से होते
  • मेरे इस जीर्ण कुटीर में
  • शशि जब जा कर
  • गंगा-कूल सिराने
  • पीठिका में शिव-प्रतिमा
  • पथ में आँखें आज बिछीं
  • आओ, इस अजस्र निर्झर के
  • प्रियतम! देखो
  • मैं अमरत्व भला क्यों माँगूँ
  • प्रियतम, क्यों यह ढीठ समीरण
  • मेरे आरती के दीप
  • मैं-तुम क्या? बस सखी-सखा
  • यह भी क्या बन्धन ही है
  • मेरी पीड़ा
  • शायद तुम सच ही कहते थे
  • ओ तू
  • चक्रवाकवधुके
  • मैंने देखा
  • प्रदोष की शान्त और नीरव भव्यता
  • अपने तप्त करों में ले कर
  • प्रियतम! जानते हो
  • प्रियतम मेरे मैं प्रियतम की
  • शशि रजनी से कहता है
  • मृत्यु अन्त है
  • प्रियतम, एक बार और
  • जाना ही है तुम्हें
  • मानस के तल के नीचे
  • मैं समुद्र-तट पर उतराती
  • जब तुम मेरी ओर
  • जितनी बार
  • रवि गये जान जब निशि ने
  • उल्लस शशि ने क्रीड़ा में
  • जब मैं वाताहत झरते
  • रोते-रोते कंठ-रोध है
  • मैं तुम्हारे प्रेम की
  • क्यों पूछ-पूछ जाती है
  • दूर, नील आकाश के पट पर
  • जाते-जाते कहते हो
  • जीवन तेरे बिन भी है
  • विस्मृति-विषाक्त
  • ओ तेरा यह अविकल मर्मर
  • जग में हैं अगणित दीप जले
  • रहने दे इन को निर्जल
  • नित्य ही सन्ध्या को
  • गायक! रहने दो इन को
  • समीरण के झोंके में
  • क्या खंडित आशाएँ ही हैं
  • आज विदा
  • दीपक के जीवन में
  • दोनों पंख काट कर मेरे
  • पुरुष! जो मैं देखती हूँ
  • मैं तुम से अनेक बार
  • प्रियतम! कैसे तुम्हें समझाऊँ
  • चौंक उठी मैं
  • प्रिय, तुम हार-हार कर जीते
  • तेरी स्मित-ज्योत्स्ना के
  • इस मन्दिर में तुम होगे क्या
  • प्रियतम, आज बहुत दिन बाद
  • रजनी ऊषा में हुई मूक
  • अगर तुम्हारी उपस्थिति में मैं
  • बार-बार रौरव जग का
  • मेरे उर में जिस भव्य आराधना का
  • मानव से कुछ ही ऊँचे
  • शीत के घन अम्बर को चीर
  • ओ अप्रतिम उरस्थ देवता मेरे
  • आशा के उठते स्वर पर मैं