Bismil Azimabadi
बिस्मिल अज़ीमाबादी

बिस्मिल अज़ीमाबादी (1901-1978) का असली नाम सैयद शाह मोहम्मद हसन उर्फ़ शाह झब्बो था। उनका जन्म पटने (अज़ीमाबाद) से तीस किलोमीटर पर स्थित गाँव खुसरू पूर में हुआ।लेकिन दो साल के थे कि पिता चल बसे। शिक्षा-दीक्षा का भार नाना सैयद शाह मुबारक हुसैन पर आन पड़ा । आपको दो भाषायों अरबी और फ़ारसी का अच्छा ज्ञान था । उर्दू तो इनकी रगों में बसी थी। इनके दादा और चाचा भी शायर थे, जो मशहूर वाहिद इलाहाबादी के छात्र थे। बिस्मिल अज़ीमाबादी शुरुआत में शायरी की इस्लाह शाद अज़ीमाबादी से लेते रहे। इनके बाद मुबारक अज़ीमाबादी को उस्ताद माना। ‘हिकायत-ए-हस्ती’ उनका काव्य-संग्रह है।। मशहूर ग़ज़ल 'सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' उन्हीं की रचना है ।

बिस्मिल अज़ीमाबादी की रचनाएँ

बिस्मिल अज़ीमाबादी की प्रसिद्ध ग़ज़लें

  • सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
  • अब दम-ब-ख़ुद हैं नब्ज़ की रफ़्तार देख कर
  • अब मुलाक़ात कहाँ शीशे से पैमाने से
  • अब रहा क्या है जो अब आए हैं आने वाले
  • कहाँ आया है दीवानों को तेरा कुछ क़रार अब तक
  • ख़िज़ाँ के जाने से हो या बहार आने से
  • ख़िज़ाँ जब तक चली जाती नहीं है
  • चमन को लग गई किस की नज़र ख़ुदा जाने
  • जब कभी नाम-ए-मोहम्मद लब पे मेरे आए है
  • तंग आ गए हैं क्या करें इस ज़िंदगी से हम
  • न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे
  • निगाह-ए-क़हर होगी या मोहब्बत की नज़र होगी
  • मेरी दुआ कि ग़ैर पे उन की नज़र न हो
  • ये बुत फिर अब के बहुत सर उठा के बैठे हैं
  • रुख़ पे गेसू जो बिखर जाएँगे
  • सारी उम्मीद रही जाती है
  • सोचने का भी नहीं वक़्त मयस्सर मुझ को