Bihari
बिहारी

महाकवि बिहारीलाल (1595?-1664) का जन्म ग्वालियर में हुआ । वे जाति के माथुर चौबे थे । उनके पिता का नाम केशवराय था। उनका बचपन बुंदेल खंड में और युवावस्था ससुराल मथुरा में व्यतीत हुई:-
जनम ग्वालियर जानिये खंड बुंदेले बाल।
तरुनाई आई सुघर मथुरा बसि ससुराल।।
कहते हैं बिहारी ने अम्बर-नरेश मिर्जा राजा जयसिंह को उनकी नयी रानी के प्रेम-पाश से मुक्त कराने के लिये यह दोहा उनके पास पहुंचाया:
नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।
अली कली ही सा बिंध्यों, आगे कौन हवाल।।
इससे राजा जय सिंह बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने बिहारी से और भी दोहे रचने के लिए कहा और प्रति दोहे पर एक अशर्फ़ी देने का वचन दिया। बिहारी जयपुर नरेश के दरबार में रहकर काव्य-रचना करने लगे । वहां उन्हें पर्याप्त धन और यश मिला। बिहारी की एकमात्र रचना सतसई है। यह मुक्तक काव्य है। इसमें 713 दोहे संकलित हैं। यह श्रृंगार रस की अत्यंत प्रसिद्ध कृति है। किसी ने उनके दोहों के बारे में कहा हैः
सतसइया के दोहरा ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगैं घाव करैं गम्भीर।।

महाकवि बिहारी की रचनाएँ

महाकवि बिहारी की कविताएँ

  • अलि हौं तो गई जमुना जल को, सो कहा कहौं वीर! विपत्ति परी
  • केसरि से बरन सुबरन बरन जीत्यौ
  • खेलत फाग दुहूँ तिय कौ मन राखिबै कौ कियौ दाँव नवीनौ
  • जाके लिए घर आई घिघाय, करी मनुहारि उती तुम गाढ़ी
  • जानत नहिं लगि मैं मानिहौं बिलगि कहै
  • नील पर कटि तट जटनि दै मेरी आली
  • पावस रितु बृन्दावनकी दुति दिन-दिन दूनी दरसै है
  • बिरहानल दाह दहै तन ताप, करी बड़वानल ज्वाल रदी
  • बौरसरी मधुपान छक्यौ, मकरन्द भरे अरविन्द जु न्हायौ
  • माहि सरोवर सौरभ लै, ततकाल खिले जलजातन मैं कै
  • मैं अपनौ मनभावन लीनों
  • रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ
  • वंस बड़ौ बड़ी संगति पाइ, बड़ाई बड़ी खरी यौ जग झेली
  • सौंह कियें ढरकौहे से नैन, टकी न टटै हिलकी हलियै
  • है यह आजु बसन्त समौ, सु भरौसो न काहुहि कान्ह के जी कौ
  • हो झालौ दे छे रसिया नागर पनाँ