Bhakt Dhanna Ji
भक्त धन्ना जी

भक्त धन्ना जाट जी का जन्म १४१५ ईस्वी में दियोली शहर के नज़दीक गाँव धुआं में हुआ । यह गाँव राजस्थान के टौंक जिल्हे में है। उन के गुरू रामानन्द जी थे। शुरू में वह मूर्ति-पूजक थे, परन्तु बाद में वह निर्गुण ब्रह्म की आराधना में लग गए। श्री गुरू ग्रंथ साहिब में उन के तीन शब्द हैं।

शब्द भक्त धन्ना जी

1. भ्रमत फिरत बहु जनम बिलाने तनु मनु धनु नही धीरे

भ्रमत फिरत बहु जनम बिलाने तनु मनु धनु नही धीरे ॥
लालच बिखु काम लुबध राता मनि बिसरे प्रभ हीरे ॥१॥ रहाउ ॥
बिखु फल मीठ लगे मन बउरे चार बिचार न जानिआ ॥
गुन ते प्रीति बढी अन भांती जनम मरन फिरि तानिआ ॥१॥
जुगति जानि नही रिदै निवासी जलत जाल जम फंध परे ॥
बिखु फल संचि भरे मन ऐसे परम पुरख प्रभ मन बिसरे ॥२॥
गिआन प्रवेसु गुरहि धनु दीआ धिआनु मानु मन एक मए ॥
प्रेम भगति मानी सुखु जानिआ त्रिपति अघाने मुकति भए ॥३॥
जोति समाइ समानी जा कै अछली प्रभु पहिचानिआ ॥
धंनै धनु पाइआ धरणीधरु मिलि जन संत समानिआ ॥४॥१॥੪੮੭॥

(भ्रमत =भटकते, बिलाने=गुज़र गए, नही धीरे=नहीं टिकता,
बिखु=जहर, लुबध=लोभी, राता=रंगा हुआ, चार=सुंदर,
अन भांती=और और किस्म की, जलत=जलते, अघाने=जी भर गया,
अछली =जो छला न जा सके)

2. रे चित चेतसि की न दयाल दमोदर बिबहि न जानसि कोई

रे चित चेतसि की न दयाल दमोदर बिबहि न जानसि कोई ॥
जे धावहि ब्रहमंड खंड कउ करता करै सु होई ॥१॥ रहाउ ॥
जननी केरे उदर उदक महि पिंडु कीआ दस दुआरा ॥
देइ अहारु अगनि महि राखै ऐसा खसमु हमारा ॥१॥
कुमी जल माहि तन तिसु बाहरि पंख खीरु तिन नाही ॥
पूरन परमानंद मनोहर समझि देखु मन माही ॥२॥
पाखणि कीटु गुपतु होइ रहता ता चो मारगु नाही ॥
कहै धंना पूरन ताहू को मत रे जीअ डरांही ॥३॥३॥੪੮੮॥

(चेतसि की न=तू क्यों याद नहीं करता, दमोदर=परमात्मा,
बिबहि=और, न जानसि =तूने न जानी, धावहि=तुम दौड़ोगे, जननी=माँ,
केरे=के, उदर=पेट, उदक=पानी, पिंडु=शरीर, कुमी=कछुआ,कुमी,
खीरु दूध, पाखणि=पत्थर में, ता चो=उस का, मारगु=रास्ता)

3. गोपाल तेरा आरता

गोपाल तेरा आरता ॥
जो जन तुमरी भगति करंते तिन के काज सवारता ॥१॥ रहाउ ॥
दालि सीधा मागउ घीउ ॥
हमरा खुसी करै नित जीउ ॥
पन्हीआ छादनु नीका ॥
अनाजु मगउ सत सी का ॥१॥
गऊ भैस मगउ लावेरी ॥
इक ताजनि तुरी चंगेरी ॥
घर की गीहनि चंगी ॥
जनु धंना लेवै मंगी ॥२॥४॥੬੯੫॥

(आरता=जरूरतमंद,दुखिया, सीधा=आटा, पन्हीआ=जूती,
छादनु=कपड़ा, नीका=सुंदर, सत सी का अनाजु=सात जोतों
वाला अन्न, वह अन्न जो धरती को सात बार जोत कर पैदा किया हो,
लावेरी=दूध देने वाली, ताजनि तुरी=अरबी घोड़ी, गीहनि=स्त्री)