बाबे नानक देव जी दी वार भाई गुरदास
Babe Nanak Dev Ji Di Vaar Bhai Gurdas

1

नमस्कार गुरदेव को सतनामु जिस मंत्र सुणाया ॥
भवजल विच्चों कढ्ढके मुक्ति पदारथ मांहि समाया ॥
जन्म मरन भउ कट्ट्या संसा रोग विजोग मिटाया ॥
संसा इह संसार है जन्म मरन विच दुख सबाया ॥
जमदंड सिरों न उतरै साकत दुर्जन जन्म गवाया ॥
चरन गहे गुरदेव के सति सबद दे मुक्ति कराया ॥
भाय भगत गुरपुरब कर नाम दान इशनान द्रिड़ाया ॥
जेहा बीउ तेहा फल पाया ॥1॥

2

प्रथमैं सास न मास सन अंध धुन्द कछ खबर न पाई ॥
रक्त बिन्द की देह रच पांच तत की जड़त जड़ाई ॥
पउन पानी बैसंतरो चौथी धरती संग मिलाई ॥
पंच विच आकास कर करता छटम अदिश समाई ॥
पंच तत्त पचीस गुन शत्र मित्र मिल देह बणाई ॥
खानी बानी चलित कर आवागउन चरित दिखाई ॥
चौरासीह लक्ख जोन उपाई ॥2॥

3

चौरासीह लक्ख जोन विच उत्तम जनम सु मानस देही ॥
अखी वेखन करन सुनन मुख शुभ बोलन बचन सनेही ॥
हथीं कार कमावनी पैरी चल सतिसंग मिलेही ॥
किरत विरत कर धरम दी खट्ट खवालन कार करेही ॥
गुरमुख जनम सकारथा गुरबानी पड़्ह समझ सनेही ॥
गुर भाई संतुशट कर चरनामृत लै मुख पिवेही ॥
पैरी पवन न छोडीऐ कली काल रहरास करेही ॥
आप तरे गुर सिख तरेही ॥3॥

4

ओअंकार आकार कर एक कवाउ पसाउ पसारा ॥
पंच तत्त परवान कर घट घट अन्दर त्रिभवन सारा ॥
कादर किने न लख्या कुदरत साज किया अवतारा ॥
इकदूं कुदरत लक्ख कर लक्ख बिअंत असंख अपारा ॥
रोम रोम विच रख्योन कर ब्रहमंड करोड़ शुमारा ॥
इकस इकस ब्रहमंड विच दस दस कर औतार उतारा ॥
केते बेद ब्यास कर कई कतेब महंमद यारा ॥
कुदरत इक एता पासारा ॥4॥

5

चार जुग कर थापना सतिजुग त्रेता दुआपुर साजे ॥
चौथा कलजुग थाप्या चार वरन चारों के राजे ॥
बहमन छत्री वैश सूद्र जुग जुग एको वरन बिराजे ॥
सतिजुग हंस अउतार धर सोहम्ब्रहम न दूजा पाजे ॥
एको ब्रहम वखाणीऐ मोह मायआ ते बेमुहताजे ॥
करन तपस्सया बन विखे वखत गुजारन पिन्नी सागे ॥
लख वर्हआं दी आरजा कोठे कोट न मन्दर साजे ॥
इक बिनसे इक असथिर गाजे ॥5॥

6

त्रेते छत्त्री रूप धर सूरज बंसी बड अवतारा ॥
नउं हिसे गई आरजा माया मोह अहंकार पसारा ॥
दुआपुर जादव वेस कर जुग जुग अउध घटै आचारा ॥
रिगबेद महं ब्रहमक्रित पूरब मुख शुभ करम बिचारा ॥
खत्री थापे जुजर वेद दखन मुख बहु दान दातारा ॥
वैसों थाप्या स्याम वेद पछम मुख कर सीस निवारा ॥
रिग नीलम्बर जुजर पीत सवेतम्बर कर स्याम सुधारा ॥
त्रेहु जुगीं त्रै धरम उचारा ॥6॥

7

कलिजुग चौथा थाप्या सूद्र बिरत जग मह वरताई ॥
करम सु रिग जुजर स्यामदे करे जगत रिद बहु सुकचाई ॥
माया मोही मेदनी कलि कल वाली सभ भरमाई ॥
उठी गलान जगत विच हउमै अन्दर जले लुकाई ॥
कोई न किसे पूजदा ऊच नीच सभ गति बिसराई ॥
भए बिअदली पातशाह कलिकाती उमराव कसाई ॥
रहआ तपावस त्रेहु जुगी चौथे जुग जो देइ सु पाई ॥
करम भ्रशट सभ भई लुकाई ॥7॥

8

चहुं बेदां के धरम मथ खट शासत्र मथ रिखी सुनावै ॥
ब्रहमादिक सनकादिका ज्यु तेह कहा तिवें जग गावै ॥
गावन पड़न बिचार बहु कोटि मधे विरला गति पावै ॥
इह अचरज मन आंवदी पड़्हत गुड़्हत कछु भेद न आवै ॥
जुग जुग एको वरन है कलजुग किवें बहुत दिखलावै ॥
जन्द्रे वजे त्रेहु जुगीं कथ पड़्ह रहै भरम नहं जावै ॥
ज्यों कर कथ्या चार वेद खट शासत्र संग सांख सुणावै ॥
आपो आपने सब मत गावै ॥8॥

9

गोतम तपे बिचार कै रिग वेद की कथा सुणाई ॥
न्याइ शासत्र को मथ कर सभ बिध करते हत्थ जणाई ॥
सब कुझ करते वस है होर बात विच चले न काई ॥
दुहीं सिरीं करतार है आप न्यारा कर दिखलाई ॥
करता किनै न देख्या कुदरत अन्दर भरम भुलाई ॥
सोहं ब्रहम छपायकै पड़दा भरम कतार सुणाई ॥
रिग कहै सुन गुरमुखहु आपे आप न दूजी राई ॥
सतिगुरू बिनां न सोझी पाई ॥9॥

10

फिर जैमन रिख बोल्या जुजरवेद मथ कथा सुणावै ॥
करमां उते निबड़े देही मद्ध करे सो पावै ॥
थापसि करम संसार विच करम वास कर आवै जावै ॥
सहसा मनहु न चुकई करमां अन्दर भरम भुलावै ॥
भरम वरत्तन जगत की इको माया ब्रहम कहावै ॥
जुजर वेद को मथन कर तत्त ब्रहम विच भरम भुलावै ॥
करम दिड़ाय जगत विच करम बंध कर आवै जावै ॥
सतिगुर बिना न सहसा जावै ॥10॥

11

स्याम वेद कउ सोध कर मथ वेदांत ब्यास सुणाया ॥
कथनी बदनी बाहरा आपे आपन ब्रहम जणाया ॥
नदरी किसे न ल्यावई हउमैं अन्दर भरम भुलाया ॥
आप पुजाय जगत विच भाउ भगत दा मरम न पाया ॥
त्रिपति न आवी वेद मथि अगनी अन्दरि तपत तपाया ॥
माया दंड न उतर्रे जम दंडे बहु दुख रूआया ॥
नारद मुन उपदेस्या मथ भगवत गुन गीत कराया ॥
बिन सरनी नह कोइ तराया ॥11॥

12

दुआपर जुग बीतत भए कलिजुग के सिर छत्र फिराई ॥
बेद अथरबन थाप्या उतर्र मुख गुरमुख गुनगाई ॥
कपल रिखीशर सांख मथ अथरबन बेद की रिचा सुनाई ॥
ग्यानी महारस पिय कै सिमरै नित अनित न्याई ॥
ग्यान बिना नह पाईऐ जे कई कोट जतन कर धाई ॥
करम जोग देही करे सो अनित खिन टिकै न राई ॥
ग्यान मते सुख ऊपजै जनम मरन का भरम चुकाई ॥
गुरमुख ग्यानी सहज समाई ॥12॥

13

बेद अथरबन मथन कर गुरमुख बाशेखक गुन गावै ॥
जेहा बीजै सो लुनै समें बिनां फल हत्थि न आवै ॥
हुकमै अन्दरि सभ को मन्नै हुकम सु सहज समावै ॥
आपहु कछू न होवई बुरा भला नह मन्नि वसावै ॥
जैसा करे तैसा लहै रिखी कणादिक भाख सुणावै ॥
सतिजुग का अन्याउं सुन इक फेड़े सभ जगत मरावै ॥
त्रेते नगरी पीड़ीऐ दुआपर वंस कुवंस कुहावै ॥
कलिजुग जो फेड़े सो पावै ॥13॥

14

सेखनाग पातंजल मथ्या गुरमुख शासत्र नाग सुणाई ॥
वेद अथरवन बोल्या जोग बिना नह भरम चुकाई ॥
ज्युंकर मैली आरसी सिकल बिना नहं मुख दिखाई ॥
जोग पदारथ निरमला अनहद धुन अन्दर लिवलाई ॥
अशदसा सिधि नउनिधी गुरमुख जोगी चरन लगाई ॥
त्रेहु जुगां की बाशना कलिजुग विच पातंजल पाई ॥
हथो हथी पाईऐ भगत जोग की पूर कमाई ॥
नाम दान इशनान सुभाई ॥14॥

15

जुग जुग मेर सरीर का बाशना बद्धा आवै जावै ॥
फिर फिर फेर वटाईऐ ग्यानी होइ मरम को पावै ॥
सतिजुग दूजा भरम कर त्रेते विच जोनी फिर आवै ॥
त्रेते करमां बांधते दुआपर फिर अवतार करावै ॥
दुआपर ममता अहंकार हउमैं अन्दर गरबि गलावै ॥
त्रेहु जुगां के करम कर जनम मरन संसा न चुकावै ॥
फिर कलिजुग अन्दर देह धर करमां अन्दर फेर वसावै ॥
अउसर चुका हथ न आवै ॥15॥

16

कलिजुग की सुध साधना करम किरत की चलै न काई ॥
बिनां भजन भगवान के भाउ भगत बिन ठौर न थाई ॥
लहे कमाना एत जुग पिछलीं जुगीं कर कमाई ॥
पाया मानस देह कउ ऐथों चुक्या ठौर न ठाई ॥
कलिजुग के उपकार सुन जैसे बेद अथरबन गाई ॥
भाउ भगति परवानु है जग्ग होम ते पुरब कमाई ॥
करके नीच सदावना तां प्रभ लेखे अन्दर पाई ॥
कलिजुग नावै की वड्याई ॥16॥

17

जुगगरदी जब होवहे उलटे जुग क्या होइ वरतारा ॥
उठे गिलान जगत विच वरतै पाप भ्रशट संसारा ॥
वरना वरन न भावनी खह खह जलन बांस अंगयारा ॥
निन्दा चालै वेद की समझन नह अग्यान गुबारा ॥
बेद ग्रंथ गुर हट्ट है जिस लग भवजल पार उतारा ॥
सतिगुर बाझ न बुझीऐ जिचर्र धरे न गुर अवतारा ॥
गुर परमेशर इक है सच्चा शाह जगत वणजारा ॥
चड़े सूर मिट जाय अंधारा ॥17॥

18

कलिजुग बोध अवतार है बोध अबोध न द्रिशटी आवै ॥
कोइ न किसै वरजई सोई करै जोई मन भावै ॥
किसै पुजाई सिला सुन्न कोई गोरीं मड़्ही पुजावै ॥
तंत्र मंत्र पाखंड कर कलह क्रोध बहु वाध वधावै ॥
आपो धापी होइकै न्यारे न्यारे धरम चलावै ॥
कोई पूजै चन्द्र सूर कोई धरत अकास मनावै ॥
पउन पानी बैसंतरो धरमराज कोई त्रिपतावै ॥
फोकट धरमी भरम भुलावै ॥18॥

19

भई गिलान जगत विच चार वरन आश्रम उपाए ॥
दस नाम सन्यासियां जोगी बारह पंथ चलाए ॥
जंगम अते सरेवड़े दगे दिगम्बर वाद कराए ॥
ब्रहमन बहु परकार कर शासत्र वेद पुरान लड़ाए ॥
खट दरशन बहु वैर कर नाल छतीस पाखंड चलाए ॥
तंत मंत रासायना करामात कालख लपटाए ॥
एकस ते बहु रूप करूपी घने दिखाए ॥
कलिजुग अन्दर भरम भुलाए ॥19॥

20

बहु वाटीं जग्ग चलियां जब ही भए महंमद यारा ॥
कौम बहत्तर संग कर बहु बिधि बैर बिरोध पसारा ॥
रोझे ईद नमाझ कर करमी बन्द किया संसारा ॥
पीर पकम्बर औलीऐ ग़ौस कुतब बहु भेख सवारा ॥
ठाकुर दुआरै ढाहकै तेह ठउड़ीं मसीत उसारा ॥
मारन गउ गरीब धरती उपर पाप बिथारा ॥
काफर मुलहद इरमनी रूंमी जंगी दुशमन दारा ॥
पापे दा वरत्या वरतारा ॥20॥

21

चार वरन चार मझहबां जग विच हिन्दू मुसलमाने ॥
खुदी बकीली तकब्बरी खिंचोतान करेन धिङाने ॥
गंग बनारस हिन्दूआं मक्का काबा मुसलमाने ॥
सुन्नत मुसलमान दी तिलक जंञू हिन्दू लोभाने ॥
राम रहीम कहायन्दे इक नाम दुइ राह भुलाने ॥
बेद कतेब भुलायकै मोहे लालच दुनी शैताने ॥
सच्च किनारे रह गया खह मरदे बामन मउलाने ॥
सिरों न मिटे आवन जाने ॥21॥

22

चारे जग्गे चहु जुगी पंचायन प्रभ आपे होआ ॥
आपे पट्टी कलम आप आपे लिखणहारा होआ ॥
बाझ गुरू अंधेर है खह खह मरदे बहु बिध लोआ ॥
वरत्या पाप जगत्त्र ते धउल उडीना निसदिन रोआ ॥
बाझ दया बल हीन हो निघ्घर चले रसातल टोआ ॥
खड़ा इक ते पैर ते पाप संग बहु भारा होआ ॥
थंमे कोइ न साध बिन साध न दिस्सै जग विच कोआ ॥
धरम धौल पुकारै तले खड़ोआ ॥22॥

23

सुनी पुकार दातार प्रभ गुर नानक जग माहं पठाया ॥
चरन धोइ रहरास कर चरनामृत सिक्खां पीलाया ॥
पारब्रहम पूरन ब्रहम कलिजुग अन्दर इक दिखाया ॥
चारै पैर धरंम दे चार वरन इक वरन कराया ॥
राना रंक बराबरी पैरीं पवना जग वरताया ॥
उलटा खेल पिरंम दा पैरां उपर सीस निवाया ॥
कलिजुग बाबे तार्या सत्तनाम पड़्ह मंत्र सुणाया ॥
कलि तारन गुर नानक आया ॥23॥

24

पहलां बाबे पाया बखश दर पिछों दे फिर घाल कमाई ॥
रेत अक्क आहार कर रोड़ां की गुर करी विछाई ॥
भारी करी तप्पस्या बडे भाग हरि स्युं बनि आई ॥
बाबा पैधा सच खंड नानिधि नाम गरीबी पाई ॥
बाबा देखे ध्यान धर जलती सभ प्रिथवी दिस आई ॥
बाझहु गुरू गुबार है हैहै करदी सुनी लुकाई ॥
बाबे भेख बणायआ उदासी की रीत चलाई ॥
चड़्हआ सोधन धरत लुकाई ॥24॥

25

बाबा आया तीरथीं तीरथ पुरब सभे फिर देखै ॥
पूरब धरम बहु करम कर भाउ भगति बिन किते न लेखै ॥
भाउ न ब्रहमे लिख्या चार बेद सिंम्रति पड़्ह देखै ॥
ढूंडी सगली पिरथमी सतिजुग आदि दुआपर त्रेतै ॥
कलिजुग धुंधूकार है भरम भुलाई बहु बिधि भेखै ॥
भेखीं प्रभू न पाईऐ आप गवाए रूप न रेखै ॥
गुरमुख वरन अवरन होइ निव चलै गुरसिख विसेखै ॥
तां कुछ घाल पवै दर लेखै ॥25॥

26

जत सती चिर जीवने साधिक सिद्ध नाथ गुर चेले ॥
देवी देव रखीशरां भैरों खेत्र पाल बहु मेले ॥
गन गंधरब अपशरां किन्नर जच्छ चलित बहु खेले ॥
राकश दानो दैंत लख अन्दर दूजा भाउ दुहेले ॥
हउमैं अन्दर सभको डुबे गुरू सणें बहु चेले ॥
गुरमुख कोइ न दिसई ढूंडे तीरथ जात्री मेले ॥
ढूंडे हिन्दू तुरक सभ पीर पैकम्बर कउमि कतेले ॥
अंधी अंधे खूहे ठेले ॥26॥

27

सतिगुर नानक प्रगट्या मिटी धुंध जग चानन होआ ॥
ज्युं कर सूरज निकल्या तारे छपे अंधेर पलोआ ॥
सिंघ बुके मिरगावली भन्नी जाए न धीर धरोआ ॥
जिथै बाबा पैर धरै पूजा आसन थापन सोआ ॥
सिध आसन सभ जगत दे नानक आद मते जे कोआ ॥
घर घर अन्दर धरमसाल होवै कीरतन सदा विसोआ ॥
बाबे तारे चार चक नौ खंड प्रिथमी सचा ढोआ ॥
गुरमुख कलि विच परगट होआ ॥28॥

28

बाबे डिठी पिरथमी नवै खंड जिथै तक आही ॥
फिर जा चड़े सुमेर पर सिध मंडली द्रिशटी आई ॥
चौरासीह सिध गोरखादि मन अन्दर गणती वरताई ॥
सिध पुच्छन सुन बाल्या कौन शकत तुह एथे ल्याई ॥
हउं जप्या परमेशरो भाउ भगत संग ताड़ी लाई ॥
आखन सिध सुन बाल्या अपना नां तुम देहु बताई ॥
बाबा आखे नाथ जी नानक नाम जपे गत पाई ॥
नीच कहाय ऊच घर आई ॥28॥

29

फिर पुच्छन सिध नानका मात लोक विच क्या वरतारा ॥
सभ सिधीं एह बुझ्या कलि तारन नानक अवतारा ॥
बाबे कहआ नाथ जी सच्च चन्द्रमा कूड़ अंधारा ॥
कूड़ अमावस वरत्या हउं भालन चड़्या संसारा ॥
पाप गिरासी पिरथमी धौल खड़ा धर हेठ पुकारा ॥
सिध छप बैठे परबतीं कौन जग कउ पार उतारा ॥
जोगी ग्यान वेहूण्यां निसदिन अंग लगायन छारा ॥
बाझ गुरू डुब्बा जग सारा ॥29॥

30

कल आई कुत्ते मुही खाज होआ मुरदार गुसाई ॥
राजे पाप कमांवदे उलटी वाड़ खेत कउ खाई ॥
परजा अंधी ग्यान बिन कूड़ कुसत मुखहु अलाई ॥
चेले साज वजायन्दे नच्चन गुरू बहुत बिध भाई ॥
सेवक बैठन घरां विच गुर उठ घरीं तिनाड़े जाई ॥
काज़ी होए रिशवती वढ्ढी लैके हक्क गवाई ॥
इसत्री पुरखा दाम हित भावें आइ किथाऊं जाई ॥
वरत्या पाप सभस जग मांही ॥30॥

31

सिधीं मने बिचार्या किव दरशन एह लेवे बाला ॥
ऐसा जोगी कली माह हमरे पंथ करे उज्याला ॥
खप्पर दिता नाथ जी पानी भर लैवन उठ चाला ॥
बाबा आया पाणीऐ डिठे रतन जवाहर लाला ॥
सतिगुर अगम अगाध पुरख केहड़ा झले गुर दी झाला ॥
फिर आया गुर नाथ जी पानी ठउड़ नहीं उस ताला ॥
शबद जिती सिध मंडली कीतोसु अपना पंथ निराला ॥
कलिजुग नानक नाम सुखाला ॥31॥

32

बाबा फिर मक्के गया नील बसत्र धारे बनवारी ॥
आसा हत्थ किताब कच्छ कूजा बांग मुसल्ला धारी ॥
बैठा जाय मसीत विच जिथे हाजी हज्ज गुजारी ॥
जां बाबा सुत्ता रात नूं वल्ल महराबे पांइ पसारी ॥
जीवन मारी लत दी केड़्हा सुता कुफ़र कुफ़ारी ॥
लतां वल ख़ुदाय दे क्युंकर पया होइ बजगारी ॥
टंगों पकड़ घसीट्या फिर्या मक्का कला दिखारी ॥
होइ हैरान करेन जुहारी ॥32॥

33

पुछन गल ईमान दी काज़ी मुलां इकठे होई ॥
वडा सांग वरतायआ लख न सके कुदरति कोई ॥
पुछन खोल किताब नूं वडा हिन्दू की मुसलमानोई ॥
बाबा आखे हाज़ियां शुभ अमलां बाझो दोवें रोई ॥
हन्दू मुसलमान दोइ दरगह अन्दर लैन न ढोई ॥
कचा रंग कुसुंभ का पानी धोतै थिर न रहोई ॥
करन बखीली आप विच राम रहीम कुथाय खलोई ॥
राह शैतानी दुनिया गोई ॥33॥

34

धरी निशानी कौस दी मके अन्दर पूज कराई ॥
जिथे जाई जगत विच बाबे बाझ न खाली जाई ॥
घर घर बाबा पूजीए हिन्दू मुसलमान गुआई ॥
छपे नांह छपायआ चड़्या सूरज जग रुशनाई ॥
बुक्या सिंघ उजाड़ विच सब मिरगावल भन्नी जाई ॥
चड़्हआ चन्द न लुकई कढ कुनाली जोत छपाई ॥
उगवणहु ते आथवणहु नउ खंड प्रिथवी सभ झुकाई ॥
जग अन्दर कुदरत वरताई ॥34॥

35

बाबा ग्या बगदाद नूं बाहर जाय किया असथाना ॥
इक बाबा अकाल रूप दूजा रबाबी मरदाना ॥
दिती बांग निमाज़ कर सुन्न समान होया जहाना ॥
सुन्न मुन्न नगरी भई देख पीर भया हैराना ॥
वेखै ध्यान लगाय कर इक फकीर वडा मसताना ॥
पुछ्या फिरके दसतगीर कौन फकीर किस का घराना ॥
नानक कलि विच आया रब फकीर इक पहचाना ॥
धरत अकाश चहूं दिस जाना ॥35॥

36

पुछे पीर तकरार कर एह फकीर वडा आताई ॥
एथे विच बगदाद दे वडी करामात दिखलाई ॥
पातालां आकाश लख ओड़क भाली खबर सु साई ॥
फेर दुरायन दसतगीर असी भि वेखां जो तुह पाई ॥
नाल लीता बेटा पीर दा अखीं मीट ग्या हवाई ॥
लख अकाश पताल लख अख फुरक विच सभ दिखलाई ॥
भर कचकौल प्रशाद दा धुरों पतालों लई कड़ाई ॥
ज़ाहर कला न छपै छपाई ॥36॥

37

गड़्ह बगदाद निवायकै मका मदीना सभ निवाया ॥
सिध चौरासीह मंडली खट दरशन पाखंड जणाया ॥
पातालां आकाश लख जित्ती धरती जगत सबाया ॥
जिती नवखंड मेदनी सतनाम का चक्र फिराया ॥
देवदानो राकस दैंत सभ चित्र गुपत सभ चरनी लाया ॥
इन्द्रासन अपच्छरां राग रागनी मंगल गाया ॥
हन्दू मुसलमान निवायआ ॥37॥

38

बाबा आया करतारपुर भेख उदासी सगल उतारा ॥
पहर संसारी कपड़े मंजी बैठ किया अवतारा ॥
उलटी गंग वहाईयोन गुर अंगद सिर उपर धारा ॥
पुतीं कौल न पाल्या मन खोटे आकी नस्यारा ॥
बानी मुखहु उचारीऐ होइ रुशनाई मिटै अंधारा ॥
ग्यान गोश चरचा सदा अनहद शबद उठे धुनकारा ॥
सोदर आरती गावीऐ अंमृत वेले जाप उचारा ॥
गुरमुख भार अथरबन धारा ॥38॥

39

मेला सुन शिवरात दा बाबा अचल वटाले आई ॥
दरशन वेखन कारने सगली उलट पई लोकाई ॥
लगी बरसन लछमी रिध सिध नउ निधि सवाई ॥
जोगी वेख चलित्र नों मन विच रिशक घनेरी खाई ॥
भगतियां पाई भगत आन लोटा जोगी लया छपाई ॥
भगतियां गई भगत बूल लोटे अन्दर सुरत भुलाई ॥
बाबा जानी जान पुरख कढ्या लोटा जहां लुकाई ॥
वेख चलित्र जोगी खुणसाई ॥39॥

40

खाधी खुनस जोगीशरां गोसट करन सभे उठ आई ॥
पुछे जोगी भंग्र नाथ तुह दुध विच क्युं कांजी पाई ॥
फिटि आ चाटा दुध दा रिड़क्यां मखन हथ न आई ॥
भेख उातर उदास दा वत क्युं संसारी रीत चलाई ॥
नानक आखे भंग्रनाथ तेरी माउ कुचज्जी आई ॥
भांडा धोइ न जात्योन भाय कुचजे फुल सड़ाई ॥
होइ अतीत ग्रेहसत तज फिर उनहूंके घर मंगन जाई ॥
बिन दिते किछ हथ न आई ॥40॥

41

एह सुन बचन जुगीसरां मार किलक बहु रूप उठाई ॥
खट दरशन कउ खेद्या कलिजुग बेदी नानक आई ॥
सिध बोलन सभ अउखधियां तंत्र मंत्र की धुनो चड़्हाई ॥
रूप वटायआ जोगियां सिंघ बाघ बहु चलित दिखाई ॥
इक पर करके उडरन पंखी जिवें रहे लीलाई ॥
इक नाग होइ पवन छोड इकना वरखा अगन वसाई ॥
तारे तोड़े भंग्रनाथ इक चड़ मिरगानी जल तर जाई ॥
सिधां अगन न बुझे बुझाई ॥41॥

42

सिध बोले सुन नानका तुह जग नूं करामात दिखलाई ॥
कुझ दिखाईं असानूं भी तूं क्युं ढिल अजेही लाई ॥
बाबा बोले नाथ जी असां वेखे जोगी वसतु न काई ॥
गुर संगत बानी बिना दूजी ओट नहीं है राई ॥
सिव रूपी करता पुरख चले नाहीं धरत चलाई ॥
सिध तंत्र मंत्र कर झड़ पए शबद गुरू कै कला छपाई ॥
ददे दाता गुरू है कके कीमत किनै न पाई ॥
सो दीन नानक सतिगुर सरणाई ॥42॥

43

बाबा बोले नाथ जी शबद सुनहु सच मुखहु अलाई ॥
बाजहु सचे नाम दे होर करामात असाथे नाही ॥
बसतर पहरों अगनि के बरफ हिमाले मन्दर छाई ॥
करो रसोई सार दी सगली धरती नत्थ चलाई ॥
एवड करी विथार कउ सगली धरती हक्की जाई ॥
तोलीं धरति आकाश दुइ पिछे छाबे टंक चड़्हाई ॥
एह बल रखां आप विच जिस आखां तिस पार कराई ॥
सतिनाम बिन बादर छाई ॥43॥

44

बाबे कीती सिध गोशट शबद शांति सिधां विच आई ॥
जिन मेला शिवरात दा खट दरशन आदेश कराई ॥
सिध बोलन शुभ बचन धन्न नानक तेरी वडी कमाई ॥
वडा पुरख प्रगट्या कलिजुग अन्दर जोत जगाई ॥
मेल्यों बाबा उठ्या मुलताने दी ज़्यारत जाई ॥
अगों पीर मुलतान दे दुध कटोरा भर लै आई ॥
बाबे कढ कर बगल ते चम्बेली दुद्ध विच मिलाई ॥
ज्युं सागर विच गंग समाई ॥44॥

45

ज़्यारत कर मुलतान दी फिर करतारपुरे नूं आया ॥
चड़्हे सवाई दहदेही कलिजुग नानक नाम ध्याया ॥
विन नावै होर मंगना सिर दुखां दे दुख सबाया ॥
मार्या सिक्का जगत विच नानक निरमल पंथ चलाया ॥
थाप्या लहना जींवदे गुर्याई सिर छत्र फिराया ॥
जोती जोत मिलायकै सतिगुर नानक रूप वटाया ॥
लख न कोई सकई आचरजे आचरज दिखाया ॥
कायां पलट सरूप बणाया ॥45॥

46

सो टिका सो छत्र सिर सोई सचा तखत टिकाई ॥
गुर नानक हन्दी मोहर हथ गुर अंगद दी दोही फिराई ॥
दित्ता छड्ड करतारपुर बैठ खडूरे जोति जगाई ॥
जंमे पूरब बीज्या विच विच होर कूड़ी चतराई ॥
लहने पाई नानकों देनी अमरदास घर आई ॥
गुर बैठा अमर सरूप हो गुरमुख पाई दात इलाही ॥
फेर वसाया गोंदवाल अचरज खेल न लख्या जाई ॥
दाति जोत खसमै वड्याई ॥46॥

47

दिच्चे पूरब देवना जिस दी वसत तिसै घर आवै ॥
बैठा सोढी पातिशाह रामदास सतिगुरू कहावै ॥
पूरन ताल खटायआ अंमृतसर विच जोत जगावै ॥
उलटा खेल खसंम दा उलटी गंग समुन्द समावै ॥
दिता लईए आपना अण दिता कछ हथ न आवै ॥
फिर आई घर अरजने पुत संसारी गुरू कहावै ॥
जान न देसां सोढीयों होरस अजर न जर्या जावै ॥
घर ही की वत्थ घरे रहावै ॥47॥

48

पंज प्याले पंज पीर छटम पीर बैठा गुर भारी ॥
अरजन कायआं पलट कै मूरत हरिगोबिन्द सवारी ॥
चली पीड़्ही सोढियां रूप दिखावन वारो वारी ॥
दल भंजन गुर सूरमां वड जोधा बहु परउपकारी ॥
पुछन्न सिक्ख अरदास कर छे महलां तक दरस नेहारी ॥
अगम अगोचर सतिगुरू बोले मुख ते सुणहु संसारी ॥
कलिजुग पीड़्ही सोढियां नेहचल नीन उसार खल्हारी ॥
जुग जुग सतिगुर धरे अवतारी ॥48॥

49

सतिजुग सतिगुर वासदेव वावा विशना नाम जपावै ॥
दुआपर सतिगुर हरीकृष्ण हाहा हरि हरि नाम ध्यावै ॥
त्रेते सतिगुर राम जी रारा राम जपे सुख पावै ॥
कलिजुग नानक गुर गोबिन्द गगा गोविन्द नाम जपावै ॥
चारे जागे चहु जुगी पंचायन विच जाय समावै ॥
चारों अछर इक कर वाहिगुरू जप मंत्र जपावै ॥
जहां ते उपज्या फिर तहां समावै ॥49॥1॥