हिंदी कविताएँ : श्याम सिंह बिष्ट

Hindi Poetry : Shyam Singh Bisht



1. लौट आना अपने पहाड़

वो परदेशी लौटकर आना अपने पहाड़ मिलेगा तुम्हे अपनापन और बेशुमार प्यार भूल चुके हो जो तुम वह रिश्ते नाते बाहें फैलाकर करेंगे वै तुम्हारा इंतजार बहुत सहन किया मैंने खालीपन तुम्हारा खोल देना अपने बंद दरवाजे खिड़की और द्वार । यह चौखट यह हरे भरे खेत क्या अब नहीं है तुम्हारा संसार वो परदेशी लौटकर आना अपने पहाड़ । बहुत हुआ पहाड़ौ मैं यह अशुविधा शब्द का मायाजाल कभि तौ रहे होंगे यह तुम्हारे जीवन बनाने के आधार रूबरू कराना अपनी सभ्यता संस्कृति से लेकर आना साथ में अपना परिवार घूमना और दिखाना फूल, बुरांस पेड़ हमारै यै चीड़, देवदार वो परदेशी लौटकर आना अपने पहाड़ । ऐसे छोड़ कर बनाओ ना इनको खंडर कौन जाने क्या छुपा है वक़्त के गर्भ के अंदर वो परदेशी लौटकर आना अपने पहाड़ ।

2. यादों के मंजर

ये यादों के मंजर भी कितने अजीब होते हैं याद उन्ही को करते हैं जो दिल के करीब होते हैं । बुझी-बुझी सी हमारी सुबह- शाम होते है दिलो -दिमाग पर यादौ के स्याही जैसे निशान होते हैं ये यादों के मंजर भी कितने अजीब होते हैं । कभी हंसते,कभी रोते चहेरे पर यादों की हमारी पहचान होते हैं दुख -सुख के ये हमारे महेमान होते है किसि के लिये बिछरन तो किसि कि जान होते है एकांत- तनहाई में ही न जाने ये क्यों याद आते है हर समय याद अपनो कि दिला जाते है ये यादों के मंजर भी कितने अजीब होते हैं ।

3. उफ्फ तेरी ये यादें

उफ्फ तेरी ये यादें मुझे कितना रुलाती हैं दिन, पहर कट जाते हैं मेरे जिंदगी की कश्मकश मैं, रातों की इन मेरी तन्हाईयों मैं घिर आती हैं तेरी यादें बनकर काले मेघ बादल, जब भी देखता हूं खुद को मैं दर्पण मैं खुद को अधूरा ही पाता हूं, तुम हो तो प्रिये, मैं हूं बिन तेरे जीवन कैसे हो रहा मेरा ब्यतीत कब तुमसे मैं यह कह पाता हूं, उफ्फ तेरी ये यादें मुझे कितना रुलाती हैं । खोया, खोया सा रहता हूं होकर जुदा तुमसे, बिन तेरे, खुद को तन्हा ही मेने पाया है छांव मैं भी, धुप ही धूप मेरे हिस्से आया है, कमबख्त तेरी यादें जन्दगी का मेरा एक पहर मुझसे ले जाती हैं, हर रात की मेरी ये तनहाइयां मुझे नया एक किस्सा तेरा याद दिला जाती हैं, उफ्फ तेरी ये यादें मुझे कितना रुलाती हैं ।

4. कौन जाना चाहता है अपना गांव छोड़कर

कौन जाना चाहता है अपना गांव छोड़कर यह खेत, खलियान, हरे, भरे पहाड़ छोड़कर, मेरे बूढ़े मां बाप, बीवी बच्चे सारे रिश्ते नाते दार छोड़कर कौन जाना चाहता है अपना गांव छोड़कर । यह बगवाई कौतिक पहाड़ों के त्योहार छोड़कर, जुड़े हुए दिलों की मीठी याद छोड़कर, अपने मां की आंचल की छाव छोड़कर, यह गांव की मिट्टी की यादों की बारात छोड़कर, कौन जाना चाहता है अपना गांव छोड़कर । यह पहाड़ों की बर्फी वाली चोटी यह स्वर्ग जैसी कायनात छोड़कर, यह हमारे बुजुर्गों के मकान बने हुए छोड़कर, यह बहते हुए नदी झरनों की सौगात छोड़कर, कौन जाना चाहता है तेरा गांव, मेरा गांव छोड़कर ।

5. अपना टाइम कब आएगा ?

अपना टाइम कब आएगा ? जब देश दीमक के भ्रष्टाचार से खत्म हो जाएगा, जब राह चलती नारी उठा ली जाएगी ओर बेआबरू होगी न्याय के कटघरे में चंद पैसों से खरीदे हुए लोगों द्वारा, अपना टाइम कब आएगा ? जब देश का किसान रो रहा होगा अपने ही उगाए हुए अन्न पर, मजहब जाति धर्म के नाम पर जब देश बट रहा होगा, अपना टाइम कब आएगा ? जब सीमाओं की सुरक्षा के लिए तैनात जवान प्रतीक्षा करेगा दुश्मन पर गोली चलाने की, जब भूख और शिक्षा से गरीबों के बच्चे खो रहे होंगे अपना हक, अपना टाइम कब आएगा ? जब लग रही होंगी अस्पतालों में लंबी मरीजों की लाइनें, ढो रहे होंगे जब लोग लाशें अपनों की मिलों नेताओं के विकासशील किताबी भाषणे से, अपना टाइम कब आएगा ? जब धर्म पर भारी हो जाएगा झूठ हर तरफ मच रही होगी लूट, धरती हो जाएगी बंजर या सूर्य, चंद्रमा हो जाएंगे लुप्त ? अपना टाइम कब आएगा ? जब यह पीढ़ी नशे में धुत होकर आएगी मदिरालायो से, अपनी संस्कृति अपने संस्कार जा रही होगी भूल, हो रहा होगा पश्चिमी सभ्यता का बोलबाला हर तरफ धुआं, धुआं Disco, नाच मैं झूम के आएंगी हर बाल, बाला अपना टाइम कब आएगा ?

6. टूटा, टूटा मेरा दिल है

टूटा, टूटा मेरा दिल है टूटी, टूटी मेरी सुबह, शामें हैं टूटी, टूटी मेरी ये उम्मीदें हैं अब तू ही बता बिन तेरे माहिया जिया कैसे जाए, ऐ, ऐ, ऐ टूटा, टूटा मेरा दिल है । बिन तेरे रहा मैं कितना अधूरा खुद मैं ही खोया हर पल तेरे लिए रोया अब तू ही बता माहिया दिल को कहां ले जाए, ऐं,ऐं, ऐं टूटा, टूटा मेरा दिल है । ये तेरी बेरुखी ज़ख्म मेरे नहीं भरती ये तेरी कैसे मजबूरी माहिया अब तू ही बता टूटा, टूटा मेरा दिल है ।

7. दो कदम पीछे तुम चलो

दो कदम पीछे तुम चलो दो कदम पीछे हम चले किसी को साथ तुम ले चलो किसी को साथ हम ले चले बहुत हो गई दौड़ पैसा कमाने की किसी की खुशियौ कै साथ तुम चलो किसी की खुशियौ कै साथ हम चलें भुला दो आपसी रंजिश को किसी को गले तुम लगा लो किसी को गले हम लगा ले बहुत हो गया जाति, धर्म का झगड़ा किसी के लिए इंसान तुम बनो किसी के लिए हम बने तोड़ दो लाज और शर्म का पहरा किसी के लिए फरिश्ते तुम बनो किसी के लिए हम बने मिटा दो यह उच्च, नीच की भावना किसी के गले तुम लगो किसी के गले हम लगे दो कदम पीछे तुम चलो दो कदम पीछे हम चले

8. बिछड़कर हमसे, वह भी तो रोई होगी

बिछड़कर हमसे, वह भी तो रोई होगी उजालों में ना सही - अंधेरों में तो - हमारी याद में खोई होगी । बयाँ बेशक ना सही, हमसे दर्दे दिल की याद पर रातों को आंखों में उनकी - यादों की चुभन तो रही होगी । दिखा लो मेरी जाना चाहै तूम - जमाने को कितना भी, अपना बनावटी चेहरा पर खुदा के आगे - जुबाँ पै तुम्हारी सलामती की दुआ तो हमारी रही होगी । कर दिया इस वक्त ने हमें बहुत बेबस पर धुंधलै से वक्त के चैहरौ पर हिचकियों की बरसात तो हुई होगी । है खुदगर्ज मेरी जाना - यह बहुत जमाना बुराईया हमारी भी- तुम सै किसी ने कही होगी । बिछड़कर हमसे वह भी तो दरवाजे की चौखट पर - खड़े हो कर रोई होगी !!

9. अब तो दौड़ कर, आओ हे राम

भक्त भगवान से---- थकने लगे हैं अब तो दुआ वाले हाथ हुआ चारों तरफ पाप का हाहाकार कब तक करोगै- क्षीरसागर सागर में विश्राम अब तो धरती पर आ जाओ हे राम । बना दिए हैं असंख्य मंदिर - मस्जिद और गुरुद्वारे कब तक ऐसे ही मौन खड़े रहोगे राम अब तो दौड़ कर आओ हे राम । हो रहा है दुनिया में बहुत पाप धनुष-बाण लेकर अब तौ आओ मेरे राम बसे हैं यहां पर मन में सबके रावण ना है कोई रहा यहा सच्चा भक्त विभीषण कैसे इनको अब पहचानोगे राम । नहीं रहा अब वह दूध माखन मदिरा पीते हैं अब लोग सुबह शाम कब तक आंखें यु हीं बंद रखोगे राम अब तो धरती पर - आ जाओ हे राम । ना रहा अब कोई भक्त यहां सीना चीर कर राम दिखाने वाला कब तक धीरज - हमारा बधाओगै राम ? अब तो दौड़कर आओ हे राम । भगवान भक्त से ------- सब मगन और मदहोश हैं यहां अपने मैं ही ना लेता अब कोई मेरा नाम तुम ही बताओ - कैसे मैं आऊं धरती पर बनकर जय श्री राम ?

10. जिंदाबाद, जिंदाबाद ऐ मेरे वतन

जिंदाबाद, जिंदाबाद ऐ मेरे वतन तू रहे जिंदाबाद तेरे लिए ही जीवन यह मेरा तुझ पर ही कुर्बान मेरी यह जान जिंदाबाद, जिंदाबाद ऐ मेरे वतन तू रहे जिंदाबाद लहू का मेरा एक, एक कतरा तुझ पे ही कुर्बान जिंदाबाद जिंदाबाद ए मेरे वतन तू रहे जिंदाबाद रहूं ना रहूं मैं बस तू रहे आबाद जिंदाबाद, जिंदाबाद ए मेरे वतन तू रहे जिंदाबाद हो चाहे कितने ही तेरे पथ पर कांटे हजार उखाड़ फेंकूंगा तुझ पे करके अपनी जाँ न्योछावर जिंदाबाद, जिंदाबाद ए मेरे वतन तू रहे जिंदाबाद ।।

11. ओ माही मेरे, ओ माही मेरे

ओ माही मेरे, ओ माही मेरे क्यों तोड़ा तूने दिल मेरा दिल मेरा कोई पत्थर ना था मैं साथ तेरा छोडूंगा कब ऐसा मैंने बोला था । ओ माही मेरे - ओ माही मेरे तेरे वादे सब वो झूठे थे झूठी तेरी कसमें थी झूठे तेरे वो इरादे थे ओ माही मेरे - ओ माही मेरे क्यों तोड़ा तूने दिल मेरा दिल मेरा कोई पत्थर ना था । मैं शीशा तुझको समझ कर अपना अक्स अपना तुझ में देखता था ओ माही मेरे -ओ माही मेरे दिल में तेरे दरिया बनकर मैं रहता था क्यों तोड़ा तूने दिल मेरा दिल मेरा कोई पत्थर ना था । नैन मेरे अब रोते हैं दिल बन दरिया बहता है मैं छोडूंगा साथ तेरा कब ऐसा मैंने बोला था ओ माही मेरे - ओ माही मेरे क्यों तोड़ा तूने दिल मेरा दिल मेरा कोई पत्थर ना था । वह तेरे मेरे रैन, बसेरे अब सुने, सुने लगते हैं जीने मरने की वह कसमें अब धूमिल, धूमिल से लगते हैं ओ माही मेरे - ओ माही मेरे क्यों तोड़ा तूने दिल मेरा दिल मेरा कोई पत्थर ना था ।

12. या मुझे तू दे, दे ज़हर

या मुझे तू दे, दे ज़हर, पर मेरे संग बेवफ़ाई ना कर मेरे से किए हुए, वादों की यूं तू जग हसाई ना कर । या मुझे तू दे, दे ज़हर --- मुझे है पता तु जी लेगी मेरे बिन पर मेरे संग भी, यूं रुसवाई ना कर माफ है तुझे तेरी ये सारी खताये पर मेरी खताओं का भी अपने लबों पर जिक्र ना कर । या मुझे तू दे दे ज़हर -- तुम रूठे हो हमसे, तो मना भी लेंगे हम पर यूं तो तू मेरे से बेवफ़ाई ना कर मेने चाहा तुझे अपनी साँसों से जायदा यूं मेरी सांसो से अब तु जुदाई ना कर । जाना है तो, तू जा बड़े शोक से पर इस बिष्ट की, मेरे महबूब यूं जग हसाई ना कर । या मुझे तू दे दे ज़हर --

13. आना तुम प्रिये

सीने से तेरी तस्वीर लगाए बैठे हैं तेरा दिया हूआ खत, अभी भी तकिए के नीचे दबाए बैठे हैं । कम्भख्त बहुत याद आती हो तुम इन सर्द रातों मैं, इन सुखी हूई लकड़ियों की जगह अपना दिल तुम्हारी याद मैं जलाए बैठे है । तुम वादा तो करो मिलने का मेरी खिड़कियां, दरवाजे, आंगन भी तेरे आने की आस लगाएँ बैठे हैं । यह ज़ालिमों के शहर में, एक तिनके की तरह, मेरी यह जिंदगी हर कोई हाथ मैं यहां चिंगारी दबाएं बैठे हैं । आना तुम प्रिये, खुद से भी बचकर तेरे मेरे इश्क के, ना जाने कितने दुश्मन घात लगाए बैठे हैं ।

14. इरादा है क्या

यूँ जो तुम मौन खड़े हो कोई तूफान लाने का इरादा है क्या, हाथों मैं अपने छुपाए क्या बैठे हो अब दिल मैं मेरे खंजर, चलाने का इरादा है क्या । पहले तो मिलते थे, गले लगकर अब दूर से ही, तोबा करने का इरादा है क्या । ये झुकी नजरें तुम्हारी कहती हैं इन नजरों का, किसी ओर की नजरें उतारने का इरादा है क्या । हम तो मर जाएंगे, तुम्हारी बेवफाई से ही यूँ चुप रहकर, हमें मारने का इरादा है क्या । यूँ जो तुम मौन खड़े हो अब कोई तूफान लाने का इरादा है क्या ।

15. फूल

मैं जब भी किसी फूल को देखता हूं मुझे उस से हो जाती है घृणा उस फूल ने, ना जाने कितने दिल जोड़ने के बाद तोड़ दिए होंगे वह प्यार करने वाला कितना बेचैन हूआ होगा और ना जाने कितनी रातें उसने काटी होंगी बिना खाये, सोये हूए उनके लिए कोई माँ, बाप का सहारा लटक गया होगा या पिया होगा उसने ज़हर किसी की बेवफाई में मैं जब भी देखता हूं जब भी ऐसा कोई फूल मुझे उस से हो जाती है घृणा ।

16. ओहो !! मेरी यह सोच !!

मेरे घर के आंगन में है एक गुलाब उसमें हैं अनगिनत काँटे मैं हर रोज उस गुलाब से काँटे निकालता हूँ और दफन कर देता हूँ मिट्टी में एक दिन उस गुलाब से सारे काँटे निकल जाएंगे ओर सिर्फ बचेगा वह बिना काँटे वाला गुलाब । "क्या मैं भी ऐसा बन सकता हूँ ?" ओहो !! मेरी यह सोच !!

17. वेदना स्त्री की

मैं सहना चाहता हूं वेदना प्रेम में धोखा खाई हुई किसी स्त्री की तरह, मैं करना चाहता हूं इंतजार बॉर्डर पर लड़ते हुए सैनिक के स्त्री की तरह, मैं सहना चाहता हूं दर्द प्रसव पीड़ा से जूझती हुई किसी स्त्री की तरह, मैं करना चाहता हूं प्यार मां द्वारा जैसे अपने बच्चे को, मैं करना चाहता हूं घृणा अपने पति द्वारा मार खाती हुई किसी स्त्री की तरह, मैं महसूस करना चाहता हूं वह जीवन जो जीती है उम्र भर एक विधवा, मैं पाना चाहता हूं एक मनपसंद वर जो रखती है एक प्रेयसी अपने प्रेम के लिए उपवास, मैं भी हो जाना चाहता हूं वृद्ध कार्य करते-करते उस महिला की तरह - जो करती है कार्य अपने परिवार के लिए, मैं भी छोड़ देना चाहता हूं वह मोह माया जैसे छोड़ आती है एक दुल्हन - शादी के बाद अपने पहले परिवार की, मैं भी मर जाना चाहता हूं वियोग में उसी तरह जैसे एक स्त्री मरती है अपने पति के मर जाने के बाद ।। कभी-कभी मैं सोचता हूं क्या यह मेरे लिए संभव है शायद नहीं - क्योंकि मैं एक पुरुष हूं !!

18. उफ्फ तेरा यह दर्द

हम दोनों की मुलाकात नहीं होनी थी उस सड़क के मोड़ पर काश तुम मुझे उस समय कोई तवज्जों ना देती , हम दोनों को नहीं मिलना था उस जगह जहाँ मिलते हैं अभी भी प्रेमी युगल हमनें नहीं देखने थे वो सपनें जहाँ अभी भी कई सपनें तैर रहें हैं , भावनाओं के आसमान मैं , तुम मुझे जनझोर कर कह देती उस समय या डाट देती , तो ये बातें का सिलसिला न चलता तो , तुम , ओर मैं , वो सपनें नहीं बुनते , जब , जब भी हम मिले तो तुम कह देती उस समय ये सारी बातें - जो आज हम , तुम कह रहें हैं एक दूसरे को दिल टूटना , सपनें , बिखरना , बच जाता आज , आज तुम जो दर्द झेल रही हो मेरे दिए हुए मैं वह दर्द महसूस करूँगा कल जब भगवान तेरी जगह मुझे भेजगा ।

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