कुण्डलियां : साधना ठकुरेला

Kundaliyan : Sadhana Thakurela

1. चलती रहती जिंदगी

चलती रहती जिंदगी, ज्यों कागज़ की नाव ।
लोग भटकते लक्ष्य से, करते नहीं चुनाव ।।
करते नहीं चुनाव, हवा खे कर ले जाती ।
कुछ हो जाती पार, कहीं पर भँवर डुबाती ।
कहे 'साधना' सत्य, करो मत कोई गलती ।
हाथ रखो पतवार, नाव तब ढंग से चलती ।।

2. चढ़ती चींटी सर्वदा

चढ़ती चींटी सर्वदा, अनथक करे प्रयास ।
ले जाती है शीर्ष तक, बस मंजिल की आस ।।
बस मंजिल की आस, सदा श्रम करती जाती ।
हो जाता श्रम साध्य, और मंजिल को पाती ।
कहे 'साधना' सत्य, लगन ही आगे बढ़ती ।
देती श्रम की सीख, तुच्छ चींटी जब चढ़ती ।।

3. जाला मकड़ी बुन रही

जाला मकड़ी बुन रही, करके यही विचार ।
कीट फसेंगे जाल में, कर लूँ सहज शिकार ।।
कर लूँ सहज शिकार, मजे से पेट भरुँगी ।
ऐश करूँ दिन-रात, नहीं अब कभी मरूंगी ।
खुद फँस खुद के जाल, सहज बन गयी निवाला ।
ऐसे ही इंसान, बनाता रहता जाला।।

4. गढ़ता काँटा पैर में

गढ़ता काँटा पैर में, देता भारी पीर ।
तीखी वाणी भी सदा, मन को देती चीर ।।
मन को देती चीर, घाव ऐसा हो जाता ।
होते यत्न अनेक, नहीं फिर भी भर पाता ।
कहे 'साधना' सत्य, विवेकी बस यह पढ़ता ।
तन, मन रहे सचेत, न कोई काँटा गढ़ता ।।

5. नेकी कर के भूल जा

नेकी कर के भूल जा, मत कर उसको याद ।
मिल जायेगा फल तुझे, कुछ दिन के ही बाद ।।
कुछ दिन के ही बाद, मिले यश, मान, बड़ाई ।
दे सुख अमित, अपार, यही है नेक कमाई ।
कहे 'साधना' सत्य, याद रखना जाने की ।
मानव बनो प्रबुद्ध, करो तुम हर दिन नेकी ।।

6. पीड़ा दें संसार में

पीड़ा दें संसार में, कुछ अपने ही कर्म ।
लेकिन जो अनभिज्ञ हैं, नहीं जानते मर्म ।।
नहीं जानते मर्म, दोष ईश्वर पर मढ़ते ।
कोसें अपना भाग्य, कहानी नित नव गढ़ते ।
कहे 'साधना' सत्य, सुखों की बाजे वीणा ।
करते रहो सुकर्म, हरे ईश्वर सब पीड़ा ।।

7. आजादी की आड़ में

आजादी की आड़ में, नारी हुई असभ्य ।
रँगी पश्चिमी रंग में, खुद को समझे सभ्य ।।
खुद को समझे सभ्य, भूल बैठी मर्यादा ।
सभ्य जनों की सीख, न उसको भाती ज्यादा ।
कहे 'साधना' सत्य, कर रही खुद बर्बादी ।
विस्मित हैं सब लोग, भला ये क्या आजादी ।।

8. सेवा का अवसर मिले

सेवा का अवसर मिले, तजो स्वार्थ, अभिमान ।
तन, मन से लग जाइये, खुश होता भगवान ।।
खुश होता भगवान, परम पद पर बैठाता ।
बिन लालच का कर्म, सदा सम्मान दिलाता।
कहे [साधना' सत्य, मुफ्त में मिले न मेवा ।
निज दायित्व सँभाल, यही है सच्ची सेवा ।।

9. पाला जिसने भी यहाँ

पाला जिसने भी यहाँ, अति लगाव का रोग ।
तृप्त नहीं कर पायेंगे, उसे जगत के भोग।।
उसे जगत के भोग, लालसा बढ़ती जाये ।
जैसे घृत से आग, न बुझती कभी बुझाये ।
कहे 'साधना' सत्य, हो रहा क्यों मतवाला ।
कब उसका कल्याण, रोग जिसने यह पाला ।।

10. बेटी को दे दीजिये

बेटी को दे दीजिये, शिक्षा औ' संस्कार ।
भारत की संस्कृति बचे, फिर से करो विचार।।
फिर से करो विचार, अपाला और गार्गी ।
संस्कारों की देन, बनीं वे ज्ञान-मार्गी ।
कहे 'साधना' सत्य, खुशी की भर दे पेटी ।
समुचित करो विकास, कुलों को तारे बेटी ।।

11. सपने देखो जागकर

सपने देखो जागकर, और करो साकार ।
अनथक परिश्रम हो अगर, लेंगे वे आकार ।।
लेंगे वे आकार, नया निर्माण करोगे ।
हासिल होगा लक्ष्य, राष्ट्र का भला करोगे ।
कहे 'साधना' सत्य, कर्मफल होते अपने।
जो भी लेता ठान, सत्य हो जाते सपने ।।

12. योगी तन से हो गये

योगी तन से हो गये, मन से गया न भोग ।
फिरते हैं बहुरूपिये, संत समझते लोग ।।
संत समझते लोग, भीड़ भक्तों की बढ़ती ।
धन-सम्पदा बटोर, कर रहे अपनी चढ़ती ।
कहे 'साधना' सत्य, जगत को ठगते भोगी ।
धन, पद, यश की चाह, न करता सच्चा योगी ।।

13. सुख-सुविधा ज्यादा मिली

सुख-सुविधा ज्यादा मिली, रोगी हुआ शरीर।
आलस बढ़ता ही गया, भोग रहे अब पीर ।।
भोग रहे अब पीर, सुखों का करें दिखावा ।
हो यथार्थ से दूर, स्वयं से करें छलावा ।
कहे 'साधना' सत्य, न रहती कोई दुविधा ।
श्रम से बने शरीर, यही सच्ची सुख-सुविधा ।।

14. रोगी, दीन, दरिद्र पर

रोगी, दीन, दरिद्र पर, करो अनुग्रह आप ।
हरो कुटुम्बी स्वजन के, तुम सारे संताप ।।
तुम सारे संताप, होय कल्याण तुम्हारा ।
गौरव बढ़ता जाय, बढ़ेगा भाईचारा ।
कहे 'साधना; सत्य, वही है सच्चा योगी ।
हरे सभी के कष्ट, दीन हो या हो योगी ।।

15. वाणी औ' मन पर रखो

वाणी औ' मन पर रखो, सदा नियंत्रण आप ।
स्वयं दूर हो जायेंगे, जीवन के संताप ।।
जीवन के संताप, शीलनिधि लोग कहेंगे ।
आकर्षक व्यक्तित्व, धनी हम बने रहेंगे ।
कहे 'साधना' सत्य, ठीक कब है मनमानी।
मन पर लगाम, सँभल कर बोलो वाणी ।।

16. सीमा पर लड़ते हुए

सीमा पर लड़ते हुए, वीर दे रहे जान ।
उनको मिलना चाहिये, पग पग पर सम्मान ।।
पग पग पर सम्मान, हौसला नित्य बढ़ाऐं ।
मिले वीर को न्याय, सुरक्षित हों सीमाऐं ।
कहे 'साधना' सत्य, धन्य है आज वही माँ ।
जन्में वीर सपूत, सुरक्षित कर दे सीमा ।।

17. माता अपनी कोख से

माता अपनी कोख से मत जन ऐसा लाल ।
करे कलंकित कोख को, झुके देश का भाल।।
झुके देश का भाल, सभ्यता नष्ट करेगा ।
जाए यदि परदेश, शर्म से डूब मरेगा ।
कहे 'साधना' सत्य, समय हमको समझाता ।
करे सुसंस्कृत वत्स, कोख में से ही माता ।।

18. रोटी, कपड़ा और घर

रोटी, कपड़ा और घर, सबको ही दरकार ।
इन तीनों ही वस्तु पर, सबका हो अधिकार ।।
सबका हो अधिकार, और सब खुशी मनायें ।
स्वाभिमान के साथ, सभी जीवन जी पायें ।
कहे 'साधना' सत्य, बात यह इतनी छोटी ।
जो कर ले पुरुषार्थ, मिले घर, कपड़ा, रोटी ।।

19. द्वापर में कब मिल सका

द्वापर में कब मिल सका, द्रुपद - सुता को न्याय ।
कलयुग में भी हो रहा, उसके प्रति अन्याय ।।
उसके प्रति अन्याय , बात कैसी गढ़ डाली ।
हुआ प्रचारित झूँठ, द्रोपदी ने दी गाली ।
कहे 'साधना' सत्य, महाभारत समझाकर ।
दो नारी को न्याय, भले कलयुग या द्वापर ।।

20. शुक्ल पक्ष का चाँद है

शुक्ल पक्ष का चाँद है, भले व्यक्ति का नेह ।
कृष्ण पक्ष के चाँद सम, दुर्जन करें सनेह ।।
दुर्जन करें सनेह, स्वार्थ से उसका नाता ।
पल पल घटता प्रेम, स्वार्थ यदि ना सध पाता ।
कहे 'साधना' सत्य, प्रेम है राम, कृष्ण का ।
बढ़ता रहता नित्य, चाँद ज्यों शुक्ल पक्ष का ।।

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