Kedarnath Agarwal
केदारनाथ अग्रवाल

केदारनाथ अग्रवाल (१ अप्रैल १९११ - २२ जून २०००) प्रमुख हिन्दी कवि थे। १ उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जनपद के कमासिन गाँव में हनुमान प्रसाद गुप्ता व घसीटो देवी के घर हुआ था। केदार जी के पिताजी स्वयं कवि थे और उनका एक काव्य संकलन ‘मधुरिम’ के नाम से प्रकाशित भी हुआ था। केदार जी का आरंभिक जीवन कमासिन के ग्रामीण माहौल में बीता और शिक्षा दीक्षा की शुरूआत भी वहीं हुई। तदनंतर अपने चाचा मुकुंदलाल अग्रवाल के संरक्षण में उन्होंने शिक्षा पाई। तत्पश्चात् बाँदा पहुँचकर वहीं वकालत करने लगे थे।

केदारनाथ का इलाहाबाद से गहरा रिश्ता था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान ही उन्होंने कविताएँ लिखने की शुरुआत की। उनका पहला काव्य-संग्रह युग की गंगा आज़ादी के पहले मार्च, 1947 में प्रकाशित हुआ। केदारनाथ अग्रवाल ने मार्क्सवादी दर्शन को जीवन का आधार मानकर जनसाधारण के जीवन की गहरी व व्यापक संवेदना को अपने कवियों में मुखरित किया है। केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं का अनुवाद रूसी, जर्मन, चेक और अंग्रेज़ी में हुआ है। उनकी रचनाएँ हैं : गुलमेंहदी, हे मेरी तुम, जमुन जल तुम, जो शिलाएँ तोड़ते हैं, कहें केदार खरी खरी, खुली आँखें खुले डैने, कुहकी कोयल खड़े पेड़ की देह, मार प्यार की थापें, फूल नहीं, रंग बोलते हैं-1, फूल नहीं रंग बोलते हैं-2, आग का आइना, पंख और पतवार (1979), अपूर्वा, नींद के बादल, आत्म गंध, बम्बई का रक्त स्नान, युग-गंगा, बोले बोल अबोल, लोक आलोक, चुनी हुयी कविताएँ, पुष्पदीप, वसंत में प्रसन्न पृथ्वी, अनहारी हरियाली। उनकी अनूदित रचनाओं का संग्रह 'देश-देश की कविता'।
पुरस्कार : उनका कविता-संग्रह 'फूल नहीं, रंग बोलते हैं' सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित हो चुका है। कविता संग्रह 'अपूर्वा' के लिये 1986 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। इसके अलावा वे हिंदी संस्थान पुरस्कार, तुलसी पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार आदि पुरस्कारों से सम्मानित हुए।

हे मेरी तुम : केदारनाथ अग्रवाल

He Meri Tum : Kedarnath Agarwal

कहें केदार खरी खरी : केदारनाथ अग्रवाल

Kahein Kedar Khari Khari : Kedarnath Agarwal

खुली आँखें खुले डैने : केदारनाथ अग्रवाल

Khuli Aankhein Khule Daine : Kedarnath Agarwal