Jaun Elia
जौन एलिया

जॉन एलिया (14 दिसंबर 1931-8 नवंबर 2004) उर्दू के एक महान शायर हैं। उनका जन्म अमरोहा में एक मशहूर ख़ानदान में हुआ। उनके वालिद अल्लामा शफ़ीक़ हसन एलिया अदब में ख़ासी दिलचस्पी रखते थे और शायर होने के साथ साथ नजूमी भी थे। जॉन घर में सब से छोटे थे और महज़ 8 बरस की उम्र में पहला शेर कह चुके थे। उर्दू और फ़ारसी में मास्टर्स की डिग्री, बहुत सी किताबों का तर्जुमा और शायरी के मजमुए इनकी अदबी हैसियत की अलामत हैं। वह 1957 में पाकिस्तान हिजरत कर गए और उसके बाद कराची में आबाद रहे । वह अब के शायरों में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले शायरों में शुमार हैं। शायद, यानी, गोया, गुमाँ, लेकिन इनके प्रमुख संग्रह हैं । जौन सिर्फ पाकिस्तान में ही नहीं हिंदुस्तान व पूरे विश्व में अदब के साथ पढ़े और जाने जाते हैं। पाकिस्तान में रहते हुए भी अपने जन्मस्थान अमरोहा (भारत) अमरोहा को कभी भूल नहीं पाए ।

शायद जौन एलिया

  • शायद
  • अजनबी शाम
  • तआ'क़ुब
  • बस एक अंदाज़ा
  • दरीचा-हा-ए-ख़याल
  • सज़ा
  • मगर ये ज़ख़्म ये मरहम
  • अब वो घर इक वीराना था बस वीराना ज़िंदा था
  • आज लब-ए-गुहर-फ़िशाँ आप ने वा नहीं किया
  • किसी से अहद-ओ-पैमाँ कर न रहियो
  • क्या हुए आशुफ़्ता-काराँ क्या हुए
  • गँवाई किस की तमन्ना में ज़िंदगी मैंने
  • गाहे गाहे बस अब यही हो क्या
  • जाओ क़रार-ए-बे-दिलाँ शाम-ब-ख़ैर शब-ब-ख़ैर
  • ज़िक्र-ए-गुल हो ख़ार की बातें करें
  • तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ ये कैसी तन्हाई है
  • नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम
  • न हुआ नसीब क़रार-ए-जाँ हवस-ए-क़रार भी अब नहीं
  • भटकता फिर रहा हूँ जुस्तुजू बिन
  • हम कहाँ और तुम कहाँ जानाँ
  • हम रहे पर नहीं रहे आबाद
  • हू का आलम है यहाँ नाला-गरों के होते
  • है फ़सीलें उठा रहा मुझ में
  • है बिखरने को ये महफ़िल-ए-रंग-ओ-बू
  • शर्म दहशत झिझक परेशानी
  • है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
  • हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
  • जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
  • चाँद की पिघली हुई चाँदी में
  • मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
  • मैंने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
  • जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
  • जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
  • इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
  • साल-हा-साल और इक लम्हा
  • पास रह कर जुदाई की तुझ से
  • ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
  • कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
  • क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
  • उसके और अपने दरमियान में अब
  • वो किसी दिन न आ सके पर उसे
  • मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
  • सर में तकमील का था इक सौदा
  • पसीने से मिरे अब तो ये रूमाल
  • ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
  • थी जो वो इक तमसील-ए-माज़ी आख़िरी मंज़र उसका ये था
  • गुमाँ जौन एलिया

  • अजब इक तौर है जो हम सितम ईजाद रखें
  • अजब हालत हमारी हो गई है
  • अपनी मंज़िल का रास्ता भेजो
  • अब किसी से मिरा हिसाब नहीं
  • आदमी वक़्त पर गया होगा
  • आप अपना ग़ुबार थे हम तो
  • उसने हम को गुमान में रक्खा
  • एक गुमाँ का हाल है और फ़क़त गुमाँ में है
  • एक ही मुज़्दा सुब्ह लाती है
  • ऐ कू-ए-यार तेरे ज़माने गुज़र गए
  • ऐश-ए-उम्मीद ही से ख़तरा है
  • कब उस का विसाल चाहिए था
  • कभी कभी तो बहुत याद आने लगते हो
  • काम की बात मैं ने की ही नहीं
  • किस से इज़हार-ए-मुद्दआ कीजे
  • किसी से कोई ख़फ़ा भी नहीं रहा अब तो
  • कू-ए-जानाँ में और क्या माँगो
  • कौन से शौक़ किस हवस का नहीं
  • क्या यक़ीं और क्या गुमाँ चुप रह
  • क्या ये आफ़त नहीं अज़ाब नहीं
  • ख़ुद मैं ही गुज़र के थक गया हूँ
  • ख़ुद से रिश्ते रहे कहाँ उन के
  • ख़ून थूकेगी ज़िंदगी कब तक
  • ख़्वाब के रंग दिल-ओ-जाँ में सजाए भी गए
  • ग़म है बे-माजरा कई दिन से
  • गुज़राँ हैं गुज़रते रहते हैं
  • घर से हम घर तलक गए होंगे
  • चलो बाद-ए-बहारी जा रही है
  • जुज़ गुमाँ और था ही क्या मेरा
  • ज़ख़्म-ए-उम्मीद भर गया कब का
  • ज़िक्र भी उस से क्या भला मेरा
  • तंग आग़ोश में आबाद करूँगा तुझ को
  • तिफ़्लान-ए-कूचा-गर्द के पत्थर भी कुछ नहीं
  • तिश्नगी ने सराब ही लिक्खा
  • तुझ से गिले करूँ तुझे जानाँ मनाऊँ मैं
  • तुम से भी अब तो जा चुका हूँ मैं
  • तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो
  • दिल कितना आबाद हुआ जब दीद के घर बरबाद हुए
  • दिल की तकलीफ़ कम नहीं करते
  • दिल गुमाँ था गुमानियाँ थे हम
  • दिल जो इक जाए थी दुनिया हुई आबाद उस में
  • दिल जो है आग लगा दूँ उस को
  • दिल ने वफ़ा के नाम पर कार-ए-वफ़ा नहीं किया
  • दिल से है बहुत गुरेज़-पा तू
  • न हम रहे न वो ख़्वाबों की ज़िंदगी ही रही
  • नहीं निबाही ख़ुशी से ग़मी को छोड़ दिया
  • फ़ुर्क़त में वसलत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में
  • बड़ा एहसान हम फ़रमा रहे हैं
  • बे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे
  • मुझ को तो गिर के मरना है
  • मैं न ठहरूँ न जान तू ठहरे
  • याद उसे इंतिहाई करते हैं
  • वो क्या कुछ न करने वाले थे
  • वो ख़याल-ए-मुहाल किस का था
  • वो जो था वो कभी मिला ही नहीं
  • शहर-ब-शहर कर सफ़र ज़ाद-ए-सफ़र लिए बग़ैर
  • शाम तक मेरी बेकली है शराब
  • शाम थी और बर्ग-ओ-गुल शल थे मगर सबा भी थी
  • सब चले जाओ मुझ में ताब नहीं
  • सर-ए-सहरा हबाब बेचे हैं
  • सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई
  • हम तिरा हिज्र मनाने के लिए निकले हैं
  • हर धड़कन हैजानी थी हर ख़ामोशी तूफ़ानी थी
  • हवास में तो न थे फिर भी क्या न कर आए
  • हिज्र की आँखों से आँखें तो मिलाते जाइए
  • है अजब हाल ये ज़माने का
  • विविध ग़ज़लें जौन एलिया

  • अख़लाक़ न बरतेंगे मुदारा न करेंगे
  • अपना ख़ाका लगता हूँ
  • अब जुनूँ कब किसी के बस में है
  • आगे असबे खूनी चादर और खूनी परचम निकले
  • आज भी तिश्नगी की क़िस्मत में
  • इक ज़ख़्म भी यारान-ए-बिस्मिल नहीं आने का
  • ईज़ा-दही की दाद जो पाता रहा हूँ मैं
  • उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या
  • उसके पहलू से लग के चलते हैं
  • ऐ वस्ल कुछ यहाँ न हुआ कुछ नहीं हुआ
  • ऐ सुबह मैं अब कहाँ रहा हूँ
  • कभी जब मुद्दतों के बा'द उस का सामना होगा
  • कोई दम भी मैं कब अंदर रहा हूँ
  • कोई हालत नहीं ये हालत है
  • क्या कहें तुम से बूद-ओ-बाश अपनी
  • क्या हो गया है गेसू-ए-ख़मदार को तिरे
  • ख़ुद से हम इक नफ़स हिले भी कहाँ
  • ख़ूब है शौक़ का ये पहलू भी
  • ख़्वाब की हालातों के साथ तेरी हिकायतों में हैं
  • जाने कहाँ गया है वो वो जो अभी यहाँ था
  • जॉन ! गुज़ाश्त-ए-वक्त की हालत-ए-हाल पर सलाम
  • जी ही जी में वो जल रही होगी
  • जो ज़िंदगी बची है उसे मत गंवाइये
  • जो हुआ 'जौन' वो हुआ भी नहीं
  • ज़िंदगी क्या है इक कहानी है
  • तुझ में पड़ा हुआ हूँ हरकत नहीं है मुझ में
  • तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो
  • दिल-ए-बर्बाद को आबाद किया है मैंने
  • दिल का दयार-ए-ख़्वाब में दूर तलक गुज़र रहा
  • दिल की हर बात ध्यान में गुज़री
  • दिल को दुनिया का है सफ़र दरपेश
  • दिल ने किया है क़स्द-ए-सफ़र घर समेट लो
  • दीद की एक आन में कार-ए-दवाम हो गया
  • न पूछ उस की जो अपने अंदर छुपा
  • नाम ही क्या निशाँ ही क्या ख़्वाब-ओ-ख़याल हो गए
  • बज़्म से जब निगार उठता है
  • बजा इरशाद फ़रमाया गया है
  • बद-दिली में बे-क़रारी को क़रार आया तो क्या
  • बाहर गुज़ार दी कभी अंदर भी आएँगे
  • मसनद-ए-ग़म पे जच रहा हूँ मैं
  • महक उठा है आँगन इस ख़बर से
  • यह ग़म क्या दिल की आदत है? नहीं तो
  • यादों का हिसाब रख रहा हूँ
  • ये अक्सर तल्ख़-कामी सी रही क्या
  • ये पैहम तल्ख़-कामी सी रही क्या
  • रंज है हालत-ए-सफ़र हाल-ए-क़याम रंज है
  • लाज़िम है अपने आप की इमदाद कुछ करूँ
  • शर्मिंदगी है हम को बहुत हम मिले तुम्हें
  • शाम हुई है यार आए हैं यारों के हमराह चलें
  • समझ में ज़िंदगी आए कहाँ से
  • सर ही अब फोड़िए नदामत में
  • सोचा है कि अब कार-ए-मसीहा न करेंगे
  • हम जी रहे हैं कोई बहाना किए बग़ैर
  • हम तो जैसे वहाँ के थे ही नहीं
  • हमारे ज़ख़्म-ए-तमन्ना पुराने हो गए हैं